कैसे करें अक्षय नवमी
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे
मित्रों आज अक्षयनवमी है आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं दरअसल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है. आँवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहते हैं. आँवला नवमी के दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्नदान करने का बहुत महत्व होता है. इस दिन किया गया जप, तप, दान इत्यादि व्यक्ति को सभी पापों से मुक्त करता है तथा सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला होता है. मान्यता है कि सतयुग का आरंभ भी इसी दिन हुआ था. इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के वृक्ष में सभी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को भी अति प्रिय है.
आंवला नवमी कथा
प्राचीन समय की बात है, काशी नगरी में एक वैश्य रहता था. वह बहुत ही धर्म कर्म को मानने वाला धर्मात्मा पुरूष था. किंतु उसके कोई संतान न थी. इस कारण उस वणिक की पत्नी बहुत दुखी रहती थी. एक बार किसी ने उसकी पत्नी को कहा कि यदि वह किसी बच्चे की बलि भैरव बाबा के नाम पर चढा़ए तो उसे अवश्य पुत्र की प्राप्ति होगी. स्त्री ने यह बात अपने पति से कही परंतु वणिक ने ऐसा कार्य करने से मना कर दिया. किंतु उसकी पत्नी के मन में यह बात घर कर गई तथा संतान प्राप्ति की इच्छा के लिए उसने किसी बच्चे की बली दे दी, परंतु इस पाप का परिणाम अच्छा कैसे हो सकता था अत: उस स्त्री के शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया और मृत बच्चे की आत्मा उसे सताने लगी.
उस स्त्री ने यह बात अपने पति को बताई. पहले तो पति ने उसे खूब दुत्कारा लेकिन फिर उसकी दशा पर उसे दया भी आई. वह अपनी पत्नी को गंगा स्नान एवं पूजन के लिए कहता है. तब उसकी पत्नी गंगा के किनारे जा कर गंगा जी की पूजा करने लगती है. एक दिन माँ गंगा वृद्ध स्त्री का वेश धारण किए उस स्त्री के समक्ष आती है और उस सेठ की पत्नी को कहती है कि यदि वह मथुरा में जाकर कार्तिक नवमी का व्रत एवं पूजन करे तो उसके सभी पाप समाप्त हो जाएंगे. ऎसा सुनकर वणिक की पत्नी मथुरा में जाकर विधि विधान के साथ नवमी का पूजन करती है और भगवान की कृपा से उसके सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा उसका शरीर पहले की भाँति स्वस्थ हो जाता है, उसे संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है.
आँवला नवमी पूजा
प्रात:काल स्नान कर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है. पूजा करने के लिए आँवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर शोड्षोपचार पूजन करना चाहिए. दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करें. आंवले की जड़ में दूध चढा़एं, कर्पूर वर्तिका से आरती करते हुए वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें. आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा दान आदि दें तथा कथा का श्रवण करें. घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे में या गमले में आंवले का पौधा लगा कर यह कार्य सम्पन्न करना चाहिए.
आँवला नवमी महत्व
कार्तिक शुक्ल पक्ष की आंवला नवमी का धार्मिक महत्व बहुत माना गया है. आंवला नवमी की तिथि को पवित्र तिथि माना गया है. इस दिन किया गया गौ, स्वर्ण तथा वस्त्र का दान अमोघ फलदायक होता है. इन वस्तुओं का दान देने से ब्राह्मण हत्या, गौ हत्या जैसे महापापों से बचा जा सकता है. चरक संहिता में इसके महत्व को व्यक्त किया गया है. जिसके अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन ही महर्षि च्यवन को आंवला के सेवन से पुनर्नवा होने का वरदान प्राप्त हुआ था.
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे
मित्रों आज अक्षयनवमी है आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं दरअसल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है. आँवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहते हैं. आँवला नवमी के दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्नदान करने का बहुत महत्व होता है. इस दिन किया गया जप, तप, दान इत्यादि व्यक्ति को सभी पापों से मुक्त करता है तथा सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला होता है. मान्यता है कि सतयुग का आरंभ भी इसी दिन हुआ था. इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के वृक्ष में सभी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को भी अति प्रिय है.
आंवला नवमी कथा
प्राचीन समय की बात है, काशी नगरी में एक वैश्य रहता था. वह बहुत ही धर्म कर्म को मानने वाला धर्मात्मा पुरूष था. किंतु उसके कोई संतान न थी. इस कारण उस वणिक की पत्नी बहुत दुखी रहती थी. एक बार किसी ने उसकी पत्नी को कहा कि यदि वह किसी बच्चे की बलि भैरव बाबा के नाम पर चढा़ए तो उसे अवश्य पुत्र की प्राप्ति होगी. स्त्री ने यह बात अपने पति से कही परंतु वणिक ने ऐसा कार्य करने से मना कर दिया. किंतु उसकी पत्नी के मन में यह बात घर कर गई तथा संतान प्राप्ति की इच्छा के लिए उसने किसी बच्चे की बली दे दी, परंतु इस पाप का परिणाम अच्छा कैसे हो सकता था अत: उस स्त्री के शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया और मृत बच्चे की आत्मा उसे सताने लगी.
उस स्त्री ने यह बात अपने पति को बताई. पहले तो पति ने उसे खूब दुत्कारा लेकिन फिर उसकी दशा पर उसे दया भी आई. वह अपनी पत्नी को गंगा स्नान एवं पूजन के लिए कहता है. तब उसकी पत्नी गंगा के किनारे जा कर गंगा जी की पूजा करने लगती है. एक दिन माँ गंगा वृद्ध स्त्री का वेश धारण किए उस स्त्री के समक्ष आती है और उस सेठ की पत्नी को कहती है कि यदि वह मथुरा में जाकर कार्तिक नवमी का व्रत एवं पूजन करे तो उसके सभी पाप समाप्त हो जाएंगे. ऎसा सुनकर वणिक की पत्नी मथुरा में जाकर विधि विधान के साथ नवमी का पूजन करती है और भगवान की कृपा से उसके सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा उसका शरीर पहले की भाँति स्वस्थ हो जाता है, उसे संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है.
आँवला नवमी पूजा
प्रात:काल स्नान कर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है. पूजा करने के लिए आँवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर शोड्षोपचार पूजन करना चाहिए. दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करें. आंवले की जड़ में दूध चढा़एं, कर्पूर वर्तिका से आरती करते हुए वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें. आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा दान आदि दें तथा कथा का श्रवण करें. घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे में या गमले में आंवले का पौधा लगा कर यह कार्य सम्पन्न करना चाहिए.
आँवला नवमी महत्व
कार्तिक शुक्ल पक्ष की आंवला नवमी का धार्मिक महत्व बहुत माना गया है. आंवला नवमी की तिथि को पवित्र तिथि माना गया है. इस दिन किया गया गौ, स्वर्ण तथा वस्त्र का दान अमोघ फलदायक होता है. इन वस्तुओं का दान देने से ब्राह्मण हत्या, गौ हत्या जैसे महापापों से बचा जा सकता है. चरक संहिता में इसके महत्व को व्यक्त किया गया है. जिसके अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन ही महर्षि च्यवन को आंवला के सेवन से पुनर्नवा होने का वरदान प्राप्त हुआ था.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें