ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे
समाधि - मन की एकाग्रता
अक्षर यात्रा की कक्षा में "स" वर्ण की चर्चा जारी रखते हुए आचार्य पाटल ने बताया- "भतृüहरि" में सभा, मिलन, मजलिस के अर्थ में समाज शब्द का प्रयोग हुआ है। एक शिष्य ने पूछा- गुरूजी, समाज तो लोगों के समूह को कहते हैं।आचार्य ने बताया- "मेदिनीकोश" में पशुओं के समूह को समज या यूथ और पशुओं से भिन्न समूह को समाज कहा है। सामान्यत: कुल, जनपद या क्षेत्र, गोत्र और सजातीयता जैसी समानताओं वाले समूह या समुदाय को समाज कहा है। जैसे ब्राह्मण समाज, क्षत्रिय समाज आदि। जिनका मूल समान हो, वह समूह समाज कहलाता है। दल, सभा, मण्डल, गोष्ठी, समिति या परिष्ाद, मिलना, एकत्र होना, संख्या, समुच्चय, संग्रह के अर्थ में भी समाज शब्द का प्रयोग करते हैं। आमोद-प्रमोद विष्ायक मिलन, ग्रहों का एक योग, आधिक्य आदि के अर्थ में भी समाज शब्द काम लेते हैं। सभासद को समाजिक कहते हैं।
आचार्य ने बताया- ख्याति, प्रसिद्धि, नाम, संज्ञा, यश, कीर्ति को समाज्ञा कहते हैं। जाना हुआ, माना हुआ, समाज्ञात कहलाता है। फैलाया हुआ, ताना हुआ (धनुष्ा), निरन्तर, अविच्छिन्न के अर्थ में समातत शब्द काम लेते हैं। माता के समान मान्य स्त्री, विमाता को समाता कहा जाता है। समातृक यानी मातृ युक्त, समादत्त यानी गृहीत, प्राप्त और समादर का प्रयोग विशेष्ा आदर, प्रतिष्ठा, सत्कार के अर्थ में करते हैं।
आचार्य ने बताया- पूर्ण रूप से लेना, उपयुक्त उपहार लेना, अपने पर लेना, आरम्भ करना, निश्चय, संकल्प के अर्थ में समादान शब्द प्रयुक्त करते हैं। जैन परम्परा नित्य कर्म के लिए समादान शब्द काम लेते हैं। आज्ञा, हुक्म, निदेश, निर्देश, निषेधाज्ञा, व्यादेश के अर्थ में समादेश शब्द का प्रचलन है। साथ-साथ रखना, मिलाना, ब्रह्म के गुणों का मन से चिन्तन करना, भावचिन्तन, गहन मनन के अर्थ में समाधान शब्द काम लेते हैं। "गंगा लहरी" में शान्ति (मन की), सन्तोष्ा, स्थैर्य, स्वस्थता के अर्थ में समाधान का प्रयोग दिखता है- "चित्तस्य समाधानम्, बुद्धे समाधानम्।" एकनिष्ठता, ध्यान, समाधि, सन्देह निवारण, पूर्व पक्ष का उत्तर देना, आक्षेप का उत्तर देना, सहमत होना, प्रतिज्ञा करना आदि अर्थो में भी समाधान शब्द काम लेते हैं।
आचार्य बोले- ब्रह्म चिन्तन में पूर्ण लीनता यानी योग की आठवीं और अन्तिम अवस्था को समाधि कहते हैं। इस अर्थ में समाधि का प्रयोग कुवलयानन्द, मृच्छकटिकम, भतृüहरि, रघुवंश, शिशुपाल वध आदि ग्रंथों में दिखता है। इसे भाव चिन्तन या मन को किसी एक ही विष्ाय यथा ब्रह्म पर केन्द्रित करना भी कहा है। "गीतगोविन्द" में एकनिष्ठता, संकेन्द्रण के अर्थ में समाधि का प्रयोग हुआ है।
"शकुन्तला" और "कुवलयानन्द" में तपस्या, धर्मकृत्य, साधना के लिए समाधि का व्यवहार हुआ है। "रघुवंश" में साथ मिलाना, सम्मिश्रण, संग्रह के लिए भी समाधि शब्द प्रयुक्त हुआ है। संग्रह करना, स्वस्थ करना, (मन को) एकाग्र करना, पुनर्मिलन, मतभेद दूर करना, निस्तब्धता, शान्ति, मौन, इन्द्रिय निरोध, मनोयोग, तपस्या, सहारा, अंगीकार, स्वीकृति, प्रतिज्ञा, प्रतिदान, पूर्ति, सम्पन्नता के अर्थ में भी समाधि शब्द का प्रयोग किया जाता है। अति कठिनाई में धैर्य धारण करना, असम्भव के लिए प्रयत्न करना, (अकाल में) अनाज बचाकर रखना, अन्न संचय करना और शवप्रकोष्ठ या मकबरा के अर्थ में भी समाधि शब्द काम लेते हैं। "किरातार्जुनीय" में गरदन की एक अवस्था, गरदन के जोड़ को भी समाधि कहा है। "काव्यप्रकाश" में समाधि को एक अलंकार और "काव्यालोक" में अभिव्यक्ति शैली के दस गुणों में से एक को समाधि बताया है।
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