क्या अब समय आ गया है युद्ध की रणभेरी बजाने की..??
छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों हुए नक्सली हमले ने एक बार फिर पुरे देश को दहला दिया है। ऐसे में क्या वक्त आ गया है सीधी लड़ाई का, हालाकि जिनसे लड़ने की बात हो रही है वे किसी अन्य देश के नहीं वरन् अपने ही देश के लोग हैं, लेकिन भारतीय लोकतंत्र में बिश्वास न करने वाले इन लोगों पर कठोर कार्यवाही करने का वक्त आ गया है ?पहले ,साम, दाम, भेद आदि चारों नीतियों का प्रयोग करना चाहिए। इन चारों की असफलता के बाद युद्ध की तत्क्षण घोषणा कर आर-पार की लड़ाई लड़नी चाहिए। क्योंकि कुछ इसी प्रकार का वाकया आज के तकरीबन डेड़ लाख वर्ष पूर्व अयोध्या के राजकुमार भगवान श्रीराम के सामने आयी थी..उन्होंने सर्वप्रथम इन चार नीतियों का प्रयोग किया और इन नीतियों के सफल न होनें पर उन्होंने फौरी तौर पर युद्ध की घोंषणा कर दी, बावजूद एक बार पुनः रावण को मित्रता का पैगाम लेकर अंगद को भेजा परन्तु वह भी असफल रहा और 84 दिन का भयंकर युद्ध करना पड़ा साथ ही आतंक का पर्याय बन चुका तानाशाह शासक रावण का अन्त हुआ। उसी प्रकार अब वक्त आ गया है, इन लोगों पर कठोर कार्यवाही करने की। पंचतन्त्र के अनुसार ''प्रागेव विग्रहो न विधिः'' । पहले ही ( बिना साम, दान , दण्ड का सहारा लिये ही ) युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है ।
परन्तु..'दसकुमारचरित' में कहा गया है कि एक राज्य अथवा देश की शक्ति क्या है, और उसकी कितनी आवश्यकता है। निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है । शक्तियाँ मंत्र , प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । मंत्र ( योजना , परामर्श ) से कार्य का ठीक निर्धारण होता है , प्रभाव ( राजोचित शक्ति , तेज ) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह ( उद्यम ) से कार्य सिद्ध होता है । ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे , संपादक- ज्योतिष का सूर्य, राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई-09827198828