ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

भारतीय संकृति

भारतीय संस्कृति, संस्कृत  और हिन्दी साहित्य की अवहेलना ही हमारे देश को मटियामेट कर देगी...

 प्रिय मित्रों, आप लोगों ने सुन्दरकाण्ड का पाथ अवश्य किया और सुना होगा साथ ही उसमें वर्णित चौपाई, छन्द, सोरठा और शेलोकों को मनन भी किये होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। इस काण्ड (सोपान) में श्री हनुमान जी के लंका गमन की पूरी कथा है, जो पूर्णतः आध्यात्मिक तो है ही लेकिन कुशल रणनीतिकार का प्रयोगशाला भी जहाँ हनुमानजी ने अपने नीतियों का भरपूर प्रयोग किया, जैसे प्रथम लंका में पुष्प वाटिका का विध्वंश करना अर्थात् वहाँ की आसुरी संस्कृति को सुवासित, पल्लवित करने वाले उस वाटिका का ही नास कर दिया। और दूसरा  आर्थिक क्षति पहुँचाना अर्थात् स्वर्णमयी लंका को उलट-पुलट कर जलाकर खाक् करना,आदि अर्थात् लंका पर विजय पताका फहराना था प्रभु श्रीराम को लेकिन उनके सफलता में प्रभु श्री हनुमानजी का विशेष योगदान था।
प्रिय मित्रों अपने देश के लोग भले ही सुन्दरकाण्ड को केवल पूजा अर्चना का माध्यम  मात्र  मानते हों परन्तु यह न केवल पूजा पाठ का माध्यम बल्कि इसमें राष्ट्र नीति भी छुपी है किन्तु हमारे देश के सत्ताधारी राजनेता केवल पाश्चात्य नीतियों पर अपनी निगाहें गड़ाये बैठे रहते हैं, नकी भारतीय संस्कृत साहित्य अथवा हिन्दी साहित्य के नीतियों पर। जो अत्यन्त दुःखद है।
 वहीं दूसरी ओर गहराई से चिन्तन किया जाये तो भारतीय धर्मग्रन्थों में वर्णित सभी नीतियों का अक्षरशः पालन आस-पड़ोस देश  के राजनेता कर रहे हैं और बार-बार अनदरुनी तौर पर भारत को पटखनी दे रहे हैं।
जैसे_ माना कि भारत की पुष्प वाटिका कश्मिर है , जिस पर चीन के प्रश्रय से प्रभुत्वशाली बना पाकिस्तान अपनी नज़र गड़ाये हुए हैं, और आये दिन सीज फायर कर रहा है। वहीं दूसरी ओर चीन ने हर बार भारत को पटखनी देते हुए अपने देश के प्रोडक्ट को अथवा सभी चायनीज वस्तुओं को भारत के मार्केट में उतार कर तकरीबन हर साल 100 करोड़ से भी अधिक रुपया भारत से वसूल कर रहा है। अर्थात् भारतीय समाज को अन्दर से खोखला बना रहा है गौर करने की बात यह भी है कि न केवल चायनीज वस्तुएं चीन की प्रभु सत्ता को विस्तारीत कर रहा है बल्कि भारत के नवजवानों को बेरोजगार और तमाम नये-नये रोगों से प्रभावित भी कर रहा है। और हमारे देश के राजनेता केवल फाईलों में नीतियाँ बनाने तक ही सीमट कर रह गये हैं। और बहुत हास्यास्पद बात तो हो जाती है जब फ्री में अनाज देने की परिकल्पना पाले देश का नेतृत्व  वोट बटोरने में माहिर खिलाड़ी अपने देश की जनता को पंगु बना रही है।  क्या इसे हम विकास की संज्ञा देंगे। बाते तो और भी बहुत हैं परन्तु कुल मिलाकर आज देश की दुर्दशा केवल तथाकथित प्रगतिशीलता, भारतीय संस्कृति की अवहेलना और पाश्चात्य संस्कृति को देश के नौजवानों पर थोपने की परिकल्पना तथा नीतियों को लेकर असहिष्णुता नीश्चित ही देश को गर्त में डालने का काम कर रही है।
यदि आज भी सुन्दरकाण्ड के नीतियों का परिपालन हमारे देश का नेतृत्व करे तो शायद यह दुर्गति नहीं होगी। दुर्गति के बारे में अधिक समझाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि, हमारे देश के नौजवानों के शिर काट लिये जाते हैं, हमारे देश की सीमा में बार बार चीन द्वारा घुसपैठ, पाकिस्तान का बार-बार सीजफायर आदि प्रत्यक्ष प्रमाण है। आवश्यकता है ......राष्ट्र देवो भवः।।       ।। राष्ट्रे वयं जागृयामः।। अर्थ- राष्ट्र ही देवता है यानी ईश्वर है। उस राष्ट्र रुपी ईश्वर के प्रति लोगों की आस्था को जगाना मेरा परम कर्तव्य है। बाकि सरकार और देश की जनता की मर्जी।-
पं.विनोद चौबे, संपादक, ज्योतिष का सूर्य, राष्टर्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई।09827198828

कोई टिप्पणी नहीं: