ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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गुरुवार, 29 जून 2017

मिसाल 'एक विवाह ऐसा भी'.

मिसाल 'एक विवाह ऐसा भी'....

आप चौंकिये मत मैं किसी फिल्माये गये फिल्म या सीरीयल की बात नहीं कर रहा बल्कि मैं बात कर रहा हुं ! भिलाई के चौहान (क्षत्रिय) परिवार द्वारा ''रॉयल ग्रीन्स'' में आयोजित  वैवाहिक कार्यक्रम का !

भव्य सजावट, पुष्प गुच्छों बेहतरीन शोभा  जो मन को सहज ही आकर्षित कर रही थीं, सूट-बूट धारी लोगों का आना-जाना बड़ी संख्या में लगा हुआ था, मैं स्वयं श्री अनिल सिंह चौहान(अमृता के पिता) यही दो लोग पजामा-कुर्ता में घूम घूम कर छटा को देख रहे थे उसी  समय चौहान जी के मोबाईल में एक फोन आता है और वह बातचीत में मशगूल हो जाते हैं तत्क्षण   सूट-बूट में कॉफी लेकर एक नवजवान आया और मुझे कॉफी दिया मैं कॉफी का लुत्फ ले ही रहा था कि - अचानक कुछ दिव्यांगों का प्रवेश हुआ ! उस राजशाही  ठाट- बाट की व्यवस्था में दिव्यांगों प्रवेश हुआ ...मैं चकित था..आखिर इस भव्य आयोजन में सैकड़ों की संख्या में दिव्यांगों की क्या आवश्यकता?  मेरे मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक था, क्योंकि प्राय: आमतौर पर आजकल के 'वेस्टर्न कल्चर' के पैरोकार समाज में ऐसा दृश्य किसी आश्चर्य से कम नहीं ! मैंने श्री चौहान जी के इकलौते पुत्र अनिमेष(वर्तमान में कनाड़ा में इंजीनियर है) से पूछा ये दिव्यांग यहां किस लिये बुलाये गये हैं 'अनिमेष' ने कहा कि इसके बारे में पूर्ण रुप से हमारे पिताजी ही बता पायेगें क्योंकि मैं तो कनाडा में ही रहता हुं मैं कल ही आया हुं.... मुझे ऑरेंजमेंट के बारे में बहुत कुछ पता नहीं है आदरणीय आचार्य जी ! मैंने अनिमेष के मित्र 'नज़ीर' भाई को बुलाकर उनसे जानकारी लेना चाही उन्होंने कहा महाराज जी मैं चौहान अंकल को बुलाता हुं.वही बता पायेंगे उसके बाद चौहान जी से इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई उन्होंने जो बताया उसे आप लोगों के समक्ष रख रहा हुं.... भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत अनिल सिंह चौहान एवं श्रीमती राजलक्ष्मी सिंह की पुत्री "अमृता" और श्री ठाकुर सिंह वर्मा एवं श्रीमती उमा सिंह वर्मा मुंबई के पुत्र "सागर" का छत्तीसगढ में दुर्ग में शिवनाथ नदी के तट पर स्थित 'रॉयल ग्रीन्स' में आयोजित विवाह समारोह था ! मुझे लगा की सामान्यत: हर माता पिता एवं वर वधु की इच्छा के मुताबिक... 

कन्या वरयते रुपं माता वित्तं पिता श्रुतम् बान्धवा: कुलमिच्छन्ति मिष्टान्नमितरेजना: विवाह के समय कन्या सुन्दर पती चाहती है| उसकी माताजी सधन जमाइ चाहती है। उसके पिताजी ज्ञानी जमाइ चाहते है|तथा उसके बन्धु अच्छे परिवार से नाता जोडना चाहते है। परन्तु बाकी सभी लोग केवल अच्छा खाना चाहते है।

और बढियां भोजन होगा तो अधिक से अधिक व्हीआईपी, व्हीव्हीआईपी कैटगरी के भारी संख्या में आगन्तुक भी होंगे, बेहतरीन साज-सज्जा तथा बेहिसाब खर्च भी होंगे ऐसी इच्छा हर मां बाप एवं  हर भावी वर एवं वधू के होते हैं

किंतु ..."अमृता" अपने पिता अनिल सिंह एवं अपनी मां से बोली ''पापा हमारे विवाह में ढेर सारे अतिथि आयेंगे उनका उत्तमोत्तम व्यवहारानुकूल उनका आतिथ्य सत्कार भी होगा  किन्तु हमारी ईच्छा है कि हमारे विवाह में ''दिव्यांग भोज'' भी कराया जाय ! बीटिया की मनमुताबिक श्री अनिल सिंह चौहान ने भिलाई के सुपेला स्थित ' मूक-बधिर'' स्कूल के सैकड़ों दिव्यांगों को आमंत्रित करके विवाह स्थल 'रॉयल ग्रीन्स'  में ही  अमृता और सागर ने स्वयं अपने हाथों से भोजन परोसकर उन दिव्यांगों को प्रेम व श्रद्धावनत् हो  भोजन  कराया जो आजकल के आयातीत वेस्टर्न कल्चर के पक्षधर युवाओं एवं नवयुवतियों के लिये प्रेरणादायी है...यहां यह कहना लाज़मी होगा 'मिसाल एक विवाह ऐसा भी' जिसकी अवधारणा भारत के हर नवयुवक एवं नवयुवतियों को करना चाहिये ! 

जहां एक ओर अनाप-शनाप खर्चिली शादियों में वफे सिस्टम या मैं अपनी भाषा में कहुं तो ''वफैलो सिस्टम'' के भोजन में अधिकाधिक तरह तरह के व्यंजन होने से अनाज (भोजन) नुकसान होता है वैसे ही बड़े आसानी से फेंक दिया जाता है जैसे किसी अनयूज्ड सामानों को कुड़े के ढेर में हम फेंक देते हैं आप कल्पना किजीये की हम कितने गरीब व असहाय तथा नि:शक्त जनों के भोजन को बेतरतीब जीवन शैली में फटकों की भांति उड़ा देते हैं.....यदि एक जून की रोटी आपको ना मिले तो आपके उपर क्या गुजरेगा! अमृता व सागर उन हर भारतीयों के लिये प्रेरक हैं जिन्होने कभी स्वयं के अलावां कभी दिव्यांगों के दु:ख दर्द को अहसास न किया हो...जिन्होंने न ही जीवन जीने की शैली मान लिया है! उम्मीद है आप में से भी कोई 'अमृता' और 'सागर' बनकर समाज के उस वर्ग की चिन्ता करेगा, जिनको आपकी आवश्यकता है ! फिलहाल इस स्टोरी के मुख्य किरदार 'अमृता और सागर' को नव दाम्पत्य जीवन की ढेर सारी शुभकामनाएं...!

-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्री मासिक पत्रिका,  सड़क- 26, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ.) मोबा.नं. 9827198828

http://jyotishkasurya.blogspot.in/2017/06/blog-post_29.html?m=1

गुरुवार, 22 जून 2017

वेद और वैदिक वांङमय का संक्षिप्त परिचय अवश्य पढें.....

वेद और वैदिक वांङमय का संक्षिप्त परिचय अवश्य पढें.....

"अन्तर्नाद" व्हाट्सएप ग्रुप के साथियों आज हम युग ऋषि वरेण्य श्रीराम शर्मा आचार्य जी के उद्धरणों को आपके समक्ष रखना चाहता हुं......सम्भवत: आप लोगों को रुचिकर अवश्य लगेगा..........
  ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद का पूर्व मों एक ही स्वरुप था 'वेद' यानी
ऋग्वेद ही आर्षवेद है! ऋक् जिसका अर्थ है-प्रार्थना अथवा स्तुति, यजुः का तात्पर्य है यज्ञ-यज्ञादि का विधान, साम-शान्ति अथवा मंगल स्थापित करने वाला गान है और अथर्व में धर्म दर्शन के अतिरिक्त लोक-जीवन के सामान्यक्रम में काम आने वाली ढेरों-उपयोगी सामग्री भरी पड़ी है।

भाष्यकार महीधर के अनुसार-प्रत्येक ‘वेद’ से जो वांग्मय विकसित हुआ, अध्ययन की सुविधा के लिए उसे पुनः चार भागों में वर्गीकृत किया गया (1) संहिता (2) ब्राह्मण (3) आरण्यक और (4) उपनिषद्। संहिता में वैदिक स्तुतियाँ संग्रहित हैं। ब्राह्मण में मंत्रों की व्याख्या और उनके समर्थन में प्रवचन दिए हुए हैं, आरण्यक में वानप्रस्थियों के लिए उपयोगी आरण्यगान और विधि-विधान है। उपनिषदों में दार्शनिक व्याख्याओं का प्रस्तुतीकरण है। कालक्रम के प्रवाह में इस वर्गीकरण का लोप हो जाने के कारण इनमें से प्रत्येक को स्वतन्त्र मान लिया गया और आज स्थिति यह है कि ‘वेद’ शब्द सिर्फ संहिता के अर्थों में प्रयुक्त होता है।

जबकि वर्गीकरण-का तात्पर्य अस्तित्व का बिखराव नहीं उसका सुव्यवस्थित उपयोग है। जिसके क्रम में वैदिक अध्ययन कई शाखाओं में विकसित हुआ। ऋग्वेद की पाँच शाखाएँ थीं शाकल वाष्कल, आश्वलायन, शाँखायन और माँडूक्य। इनमें अब शाकल शाखा ही उपलब्ध है। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन और कात्य दो शाखाएँ। कृष्ण यजुर्वे की उपलब्ध शाखाएँ इस समय चार हैं तैत्तिरीय, मैत्रायणी, काठक, और कठ। सामवेद की दो शाखाएँ हैं कौथुमी और राणायनीय। अथर्ववेद की उपलब्ध शाखाओं के नाम पैप्पलाद तथा शोनक हैं।

संहिताओं के विवेचन क्रम में अध्ययन करने पर ऋग्वेद संहिता में दस मंडलों का पता लगता है। जिनमें 85 अनुवाद और अनुवाक समूह में 1028 सूक्त हैं। सूक्तों के बहुत से भेद किए गए हैं यथा-महासूक्त क्षुद्र, सूक्त, ऋषिसूक्त, छन्दसूक्त, और देवतासूक्त। वेदज्ञ मनीषियों के अनुसार ऋग्वेद के मंत्रों की संख्या 10,402 से 10,628 तक है। यजुर्वेद के दो भाग है-शुक्ल और कृष्ण इनमें कृष्ण यजुर्वेद संहिता को तैत्तिरीय संहिता भी कहते हैं।

मुक्तिकोपनिषद् के अनुसार इसको 109 शाखाएँ थीं, जिनमें मात्र 12 शाखाएँ और 14 उपशाखाएँ ही उपलब्ध हैं। इस संहिता में कुल सात अष्टक हैं 700 अनुवादों वाले इस ग्रन्थ में अश्वमेध, अग्निहोम, राजसूय अतिरात्र आदि यज्ञों का वर्ण है। इसमें 18000 मंत्र मिलते हैं। शुक्ल यजुर्वेद की संहिता के माध्यन्दिनी भी कहते हैं। इसमें 40 अध्याय 290 अनुवाक और अनेक काण्ड हैं। यहाँ दर्शपौर्णभास, वाजपेय आदि यज्ञों का वर्णन है।

सामवेद के पूर्व और उत्तर दो भाग हैं। पूर्व संहिता को छन्द, आर्चिक और सप्त साम नामों से भी अभिहित किया गया है। इसके छः प्रपाठक हैं। सामवेद की उत्तर संहिता को उत्तरार्धिक या आरण्यगान भी कहा गया है। अथर्ववेद की मंत्र संख्या 12,300 हैं। जिसका अति न्यून अंश आजकल प्राप्त है। इसकी नौ शाखाएँ पैप्पल, दान्त, प्रदान्त स्नात, रौत, ब्रह्मदत्त शौनक, दैवीदर्शनी और चरण विद्या में से केवल शौनक शाखा ही आज रह पाई है। इसमें 20 काण्ड हैं।

संहिताओं के पश्चात ब्राह्मणों का स्थान आता है । इनके विषय को चार भागों में बाँटा गया है। विधिश्माग, अर्थवादभाग, उपनिषदभाग और आख्यानभाग। विधिभाग में यज्ञों के विधान का वर्णन है। इसमें अर्थमीमाँसा और शब्दों की निष्पत्ति भी बतायी गयी है। अर्थवाद में यज्ञों में महात्म्य को समझाने के लिए प्ररोचनात्मक विषयों का वर्णन है। ब्राह्मणों के उपनिषद् भाग में ब्राह्मण के विषय में विचार किया गया है। आख्यान भाग में प्राचीन ऋषिवंशों, आचार्य वंशों और राजवंशों की कथाएँ वर्णित हैं।

प्रत्येक वैदिक संहिता के अलग-अलग ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। ऋग्वेद के दो ब्राह्मण हैं ऐतरेय और कौषीतकि। यजुर्वेद के भी दो ब्राह्मण है कृष्ण यजुर्वेद का तैत्तिरीय ब्राह्मण और शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ ब्राह्मण। सामवेद की कौथुमीय शाखा के ब्राह्मण ग्रन्थ चालीस अध्यायों में विभक्त हैं। इसकी जैमिनीय शाखा के दो ब्राह्मण ग्रन्थ हैं जैमिनीय ब्राह्मण और जैमिनीय उपनिषद् ब्राह्मण। इन्हें क्रमशः आर्षेय और छान्दोग्य ब्राह्मण भी कहते हैं। अथर्ववेद की भी शाखाएँ हैं किन्तु एक ही ब्राह्मण उपलब्ध है गोपथब्राह्मण।

आरण्यकों की विषय वस्तु सायणाचार्य के शब्दों में लोकसेवी वानप्रस्थों की प्रशिक्षण सामग्री है। मुख्य आरण्यक ग्रन्थों के क्रम में ऋग्वेद में ऐतरेय और कौषीतकि आरण्यक मिलते हैं। यजुर्वेद में कृष्ण यजुर्वेद का एक आरण्यक है तैत्तिरीय आरण्यक। जिसके दस काण्डों में आरणीय विधि का प्रतिपादन हुआ है बृहदारण्यशुक्ल यजुर्वेद का है। सामवेद में सिर्फ छान्दोग्य आरण्यक मिलता है। जो छः प्रपाठकों में विभाजित है।

‘वेद’ का चरमोत्कर्ष उपनिषदों में मिलता है। अन्तिम भाग होने के कारण इसे ‘वेदान्त’ की संज्ञा भी प्राप्त है। उपनिषदों ने ही स्वयं इस शब्द की व्याख्या सूचित की है “यदा वै बली भवति अथ उत्थाता भवति, उत्तिष्ठन परिचरिता भवति, परिचरन, उपसत्ता भवति, उपसीदन द्रष्ट भवति, श्रोता भवति, मन्ता भवति, बोद्धा भवति, कर्ता भवति, विज्ञाता भवति (छान्दोग्य 7/8/1) जब मनुष्य बलवान होता है तब वह उठकर खड़ा होता है। उठकर खड़ा होने पर गुरु की सेवा करता है। फिर वह गुरु के पास (उप) जाकर बैठता है। (सद) पास जाकर बैठने पर वह गुरु का जीवन ध्यान से देखता है। उसका व्याख्यान सुनता है उसे मनन करता है, समझ लेता है और उसके अनुसार आचरण करता है। उसमें उसे विज्ञान यानि अपरोक्ष अनुभूति का लाभ होता है ‘उप’ ‘नि’ ये दो उपसर्ग और ‘सद’ धातु से बने इस शब्द की इस व्याख्या में ‘नि’ अर्थात् निष्ठ से की व्याख्या छूट गई है जिसका उल्लेख एक दूसरी जगह हुआ है। “ब्रह्मचारी आचार्यकुलवासी अत्यन्तम् आत्मानम् आचार्यकुले अवसादयन्” (छान्दोग्य 2/23/1) ब्रह्मचर्यपूर्वक गुरु के पास रहकर (उप) गुरु सेवा में अपने आपको विशेष रूप से (नि) खपाने वाला (सद) जो रहस्यभूत विद्या प्राप्त करता है वह है उपनिषद् ।

इन दोनों पर्यायों के इकट्ठा करके देखें तो (1) आत्मबल (2) उत्थान (3) ब्रह्मचर्य (4) गुरु सेवा में शरीर को खपा देना (5) गुरु (हृदय) सान्निध्य (6) जीवन निरीक्षण (7) श्रवण (8) मनन (9) अवबोधन (10) आचरण (11) अनुभूति-इतना सारा भाव-इस छोटे शब्द में निहित है। इनकी संख्या कितनी है? इस संदर्भ में भिन्न-भिन्न स्थानों पर अलग-अलग विवरण प्राप्त होते हैं। मुक्तिकोपनिषद् में 108 उपनिषदों की सूची है। उपनिषद्वाक्य महाकोश में 223 उपनिषद् ग्रन्थों को नामोल्लेख हुआ है। इनकी वेदों से अभिन्नता और प्राचीनता को दृष्टि में रखकर विचार करें 108 उपनिषदों की सूची ही सार्थक लगती है। अन्य के सम्बन्ध में यही कहा जा सकता है कि मध्ययुग में विभिन्न सम्प्रदायों ने अपनी प्राचीनता सिद्ध करने के लिए इनकी रचना की गई इन 108 उपनिषदों में भी अपनी विशेष गहनता के कारण ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वेतर कुछ अधिक ही महत्वपूर्ण हैं।
-''ज्योतिष का सूर्य '' राष्ट्रीय
मासिक पत्रिका, भिलाई

मंगलवार, 20 जून 2017

" योग: चित्त-वृत्ति निरोध: "

" योग: चित्त-वृत्ति निरोध: "
सभी देशवासियों को 'अन्तर्राष्ट्रीय योग' दिवस के अवसर पर 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीक मासिक पत्रिका की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं....
योग शब्द संस्कृत धातु 'युज' से निकला है, जिसका मतलब है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। योग दस हजार साल से भी अधिक समय से प्रचलन में है। मननशील परंपरा का सबसे तरौताजा उल्लेख, नासदीय सूक्त में, सबसे पुराने जीवन्त साहित्य ऋग्वेद में पाया जाता है। यह हमें फिर से सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के दर्शन कराता है। ठीक उसी सभ्यता से, पशुपति मुहर (सिक्का) जिस पर योग मुद्रा में विराजमान एक आकृति है, जो वह उस प्राचीन काल में  योग की व्यापकता को दर्शाती है। हालांकि, प्राचीनतम उपनिषद, बृहदअरण्यक में भी, योग का हिस्सा बन चुके, विभिन्न शारीरिक अभ्यासों  का उल्लेख  मिलता है। छांदोग्य उपनिषद में प्रत्याहार का तो बृहदअरण्यक के एक स्तवन (वेद मंत्र) में  प्राणायाम के अभ्यास का  उल्लेख मिलता है। यथावत, ”योग” के वर्तमान स्वरूप के बारे में, पहली बार उल्लेख शायद कठोपनिषद में आता है, यह यजुर्वेद की कथाशाखा के अंतिम आठ वर्गों में पहली बार शामिल होता है जोकि एक मुख्य और महत्वपूर्ण उपनिषद है। योग को यहाँ भीतर (अन्तर्मन) की यात्रा या चेतना को विकसित करने की एक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है।
प्रसिद्ध संवाद, “योग याज्ञवल्क्य” में, जोकि (बृहदअरण्यक उपनिषद में वर्णित है), जिसमें बाबा याज्ञवल्क्य और शिष्य ब्रह्मवादी गार्गी के बीच कई साँस लेने सम्बन्धी व्यायाम, शरीर की सफाई के लिए आसन और ध्यान का उल्लेख है। गार्गी द्वारा छांदोग्य उपनिषद में भी योगासन के बारे में बात की गई है।

अथर्ववेद में उल्लेखित संन्यासियों के एक समूह, वार्ता (सभा) द्वारा, शारीरिक आसन जोकि योगासन के रूप में विकसित हो सकता है पर बल दिया गया है| यहाँ तक कि संहिताओं में उल्लेखित है कि प्राचीन काल में मुनियों, महात्माओं, वार्ताओं(सभाओं) और विभिन्न साधु और संतों द्वारा कठोर शारीरिक आचरण, ध्यान व तपस्या का अभ्यास किया जाता था।

योग धीरे-धीरे एक अवधारणा के रूप में उभरा है और भगवद गीता के साथ साथ, महाभारत के शांतिपर्व में भी योग का एक विस्तृत उल्लेख मिलता है।

बीस से भी अधिक उपनिषद और योग वशिष्ठ उपलब्ध हैं, जिनमें महाभारत और भगवद गीता से भी पहले से ही, योग के बारे में, सर्वोच्च चेतना के साथ मन का मिलन होना कहा गया है।

हिंदू दर्शन के प्राचीन मूलभूत सूत्र के रूप में योग की चर्चा की गई है और शायद सबसे अलंकृत पतंजलि योगसूत्र में इसका उल्लेख किया गया है। अपने दूसरे सूत्र में पतंजलि, योग को कुछ इस रूप में परिभाषित करते हैं:

" योग: चित्त-वृत्ति निरोध: "- योग सूत्र 1.2

पतंजलि का लेखन भी अष्टांग योग के लिए आधार बन गया। जैन धर्म की पांच प्रतिज्ञा और बौद्ध धर्म के योगाचार की जडें पतंजलि योगसूत्र मे निहित हैं।
मध्यकालीन युग में हठ योग का विकास हुआ।

पतंजलि को योग के पिता के रूप में माना जाता है और उनके योग सूत्र पूरी तरह योग के ज्ञान के लिए समर्पित रहे हैं।

प्राचीन शास्त्र पतंजलि योग सूत्र, पर गुरुदेव के अनन्य प्रवचन, आपको योग के ज्ञान से प्रकाशमान (लाभान्वित) करते हैं, तथा योग की उत्पति और उद्देश्य के बारे में बताते हैं। योग सूत्र की इस व्याख्या का लक्ष्य योग के सिद्धांत बनाना और योग सूत्र के अभ्यास को और अधिक समझने योग्य व आसान बनाना है। इनमें ध्यान केंद्रित करने के प्रयास की पेशकश की गई है कि क्या एक ‘योग जीवन शैली’ का उपयोग योग के अंतिम लाभों का अनुभव करने के लिए किया जा सकता है|

गुरुदेव ने भी योगसूत्र उपनिषद पर बहुत चर्चा की है। गीता पर अपनी टिप्पणी में उन्होंने, सांख्ययोग, कर्मयोग, भक्तियोग, राजगुहिययोग और विभूतियोग की तरह, योग के विभिन्न अंगों पर प्रकाश डाला है।

योग के प्रकार ....

"योग" में विभिन्न किस्म के लागू होने वाले अभ्यासों और तरीकों को शामिल किया गया है।
'ज्ञान योग' या दर्शनशास्त्र'भक्ति योग' या  भक्ति-आनंद का पथ'कर्म योग' या सुखमय कर्म पथ राजयोग, जिसे आगे आठ भागों में बांटा गया है, को अष्टांग योग भी कहते हैं। राजयोग प्रणाली का आवश्यक मर्म, इन विभिन्न तरीकों को संतुलित और एकीकृत करने के लिए, योग आसन का अभ्यास है।
-पण्डित विनोद चौबे, संपादक 'ज्योतिष का सूर्य'

ममता दीदी का "फ़रहाद" प्रेम हिन्दुओं पर वज्राघात है....तुष्टिकरण तो बहाना है...लक्ष्य तो ..हिन्दुत्व से नफ़रत जताना है...


ममता दीदी का "फ़रहाद" प्रेम हिन्दुओं पर वज्राघात है....तुष्टिकरण तो बहाना है...लक्ष्य तो ..हिन्दुत्व से नफ़रत जताना है...

ममता दीदी आप प.बंगाल के हिन्दुओं पर वज्रपात करके हिन्दुत्व को नहीं मिटा सकतीं.....इराक़ में 'नृवंशी यज़ीदियों' पर अलकायदा ने 2007 में सुनियोजित कार बम ब्लॉस्ट में 800 से ज्यादा 'यज़ीदी' मार गिराया, वहां अलकायदा ने यज़ीदियों को 'काफ़ीर' घोषित कर रखा है, वहीं सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान के जुल्मों से पीड़ित अल्पसंख्यक हिन्दु बीस हजार से अधिक हिन्दु परिवार भारत में शरणार्थी के रुप में बड़े सुकुन से दिल्ली के आस-पास जगहों में अपना गुजर बसर कर रहे हैं , आप ही बताओ की आखिर कौन अपनी जमी जमाई गृहस्थी छोड़कर दूसरे देश में शरणार्थी जीवन यापन करना चाहेगा.! ममता दीदी आप जनता के द्वारा चुनी गईं भारत के पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं, आप पाकिस्तानी मीडिया (डॉन ) के एक साक्षात्कार में प.बंगाल को 'मिनी पाकिस्तान' के रुप में संबोधित करने वाले आपके सरकार के ही मंत्री 'फरहाद हकीम' को हुगली जिले के तारकेश्वर मंदिर ट्रस्ट बोर्ड का अध्यक्ष बनाया जाना और उस ट्रस्ट के अधीन संचालित हस्पताल एवं शिक्षण संस्थाओं के विकास के लिये 5 करोड़ रुपये अनुदान देना क्या हिन्दुओं के स्वाभिमान का दलन नहीं है..जबकि मुश्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मुताबिक किसी भी मुश्लिम वक्फ बोर्ड का अध्यक्ष केवल मुश्लिम धर्मानुयायी ही होते हैं...तो ममता दीदी आपने हिन्दुओं के अस्मिता से जुड़े इस तारकेश्वर मंदिर ट्रस्ट का बतौर अध्यक्ष 'फ़रहाद हक़ीम' को बनाकर कौन सा सेक्युलरिज़्म का परिचय दिया है ..या मोदी सरकार के नेतृत्व में शातिपूर्ण ढंग से विकास की ओर अग्रसर भारत को हिन्दु-मुश्लिम राईट्स में तब्दिल करने की साजिश़ है! तुष्टिकरण के कुचक्र में पश्चिम बंगाल को फांसकर जब किसी मुश्लिम चेहरे को ही तारकेश्वर मंदिर ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाना था तो किसी आदरणीय कलाम जी जैसा राष्ट्रभक्त मुश्लिम को बनाना था! ना कि पश्चिम बंगाल को 'मिनी पाकिस्तान' कहने वाले 'फरहाद हकीम' को!  लेकिन आपने यह तुष्टिकरण की घिनौनी राजनीति से भी इतर ' पश्चिम बंगाल के हिन्दुओं का दलन करने व उन्हें उद्वेलित कर के बरगलाने का काम किया है' आपको ज्ञात होगा ममता दीदी 2014 की ही बात है जरा आईये आपको यात्रा कराता हुं! चहुंओर चीख पुकार चिल्लाते बच्चे, चीखती माताएं बावजूद बेरहम इन आईएसआई के राक्षसों ने 'यज़ीदियों को बेइज्जत करके उनके सामने महिलाओं को यौन दासत्व केलिये बाध्य कर स्लाम धर्म कबूलने का कुत्सित प्रयास इन हैवानों ने किया! और यज़ीदी गांवों, नगरों का विनाश कर करोड़ों 'यजीदियों' को नौत के घाट उतार दिया...इसके बावजूद इन इराक़ में निवासरत 'यज़ीदियों' ने अपनी संस्कृति को बचाने के लिये 'स्लामिक स्टेट आईएसआई' से भी भींड़ गये हालॉकि इसमें हजारों
भारत में जिस संस्कृति को आजतक मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक नहीं मिटा पाये तो अब पश्चिम बंगाल से हिन्दुत्व को क्या मिटा पाओगी ममता दीदी! लगातार जुल्मोंसितम के कठोर 'अममता डंडे' से  प्रहार के चुनावी बिसात पर  सत्ता नाममुमकीन है,जबकि वहां के स्थानीय कुछ सच्चे मुसलमान भी ममता सरकार की ऐसी घिनौनी तुष्टिकरण नीतियों से खासे नाराज हैं..और वो नाम न छापने या न बताने के एवज़ में कहते हैं कि पिछले चार वर्षों से बांग्लादेशी मुसलमानों की प.बंगाल में संख्या बढी है रूतबा भी !
अब आप लोग सोच रहे होंगे की आखिरकार पश्चिम बंगाल से इराक़ के यजीदियों का क्या संबंध, तो हमने इसलिये यजीदियों के संत्रांस का उदाहरण दिया क्योंकि भारतीय हिन्दुओं पर मुगल शासकों ने जो जुल्म ढाहे, भारत के प्रसिद्ध हिन्दु मंदिरों को तोड़ा गया, हिन्दुओं का सर्वमान्य वेद-वेत्ताओं का प्रतीक होता 'यज्ञोपवित' यानी जनेऊ अर्थात् जनेऊ धारण करने वाले असंख्य हिन्दुओं को स्लाम कुबुल करवाने का लक्ष्य  बना मुगलों ने एक दिन में एक मन यानी 40 किलोग्राम जनेऊ उतरवाकर उन्हें जबरदस्ती स्लाम कुबुल करवाया गया, जिन विशेषताओं से भारत की पहचान थी उन पर्यटक देव स्थानों के अस्तीत्व को मिटाने का प्रयास संकीर्ण कट्टरपंथ द्वारा किया गया ऐसी दुर्दिन अवस्था में भी आज सबसे प्रचीन व बड़ी संख्या वाला पूरे विश्व को शांति का संदेश वाहक योग का जन्म देने वाला सनातन धर्म और हिन्दु  संस्कृति जीवन्त है, हमें हमारे पूर्वजों पर गर्व है कि इतनी ज्यादती, जुल्मों को हंसकर भुला देते हैं और हम उन्हीं के संतान अनेकानेक रुपों में पूरे विश्व को अमन-चैन और शांति का संदेश देते हुए भारत की आध्यात्मिक उर्वरा भूमि के लिये विश्व को आकर्षित करते हैं..! आज उसी दौर से इराक़ के यजीदी गुजर रहे हैं जो यूरोप के शरणार्थी होने को विवश हैं वहीं पाकिस्तानी अल्पसंख्यक हिन्दु भारत के शरणार्थी बनकर जैसे तैसे जीवन यापन कर रहे हैं! लेकिन भारत की उदार संस्कृति ने अन्य दूसरे संप्रदायों को पचाने का अदम्य साहस व विलक्षॅण शक्ति है तभी तो सनातन धर्म के सिद्धांतो को देश-विदेश पूरे विश्व के महान दार्शनिकों ने गुणगान किया! आज देश में सभी मजहब के लोग मिल जुल कर रहते हैं लेकिन कुछ वैदेशिक कट्टरपंथी ताकतों के इशारे पर भारतीय भाईचारे की संस्कृति और भारतीय औदार्य विचारधारा को नष्ट करने वाले कुछ 'गद्दार ' नेता 'गदर' कराने पर अमादा हैं, हमें इन विदेशी कट्टरपंथी ताकतों के 'दलालों' से बचकर रहना होगा!
किन्तु आज प.बंगाल के ताजा हालात देखकर यह कहना लाज़मी होगा की
ममता दीदी का "फ़रहाद" प्रेम हिन्दुओं पर वज्राघात है....तुष्टिकरण तो बहाना है...लक्ष्य तो ..हिन्दुत्व से नफ़रत जताना है...!

प्रसंगवश यह भी आपको जनना जरुरी है...कौन हैं 'यज़ीदी'..?

यज़ीदी मुख्यतः उतरी ईराक में रहने वाले कुर्दिश भाषी लोग है ।सदियों से अपने मुस्लिम ईसाई पड़ोसियों द्वारा घृणित इन लोगो ने 70 से ज्यादा नरसंहार का सामना किया जिनमे 2 करोड़ से ऊपर यज़ीदियों की मृत्यु का अनुमान है । और इनमें से अधिकाँश अपनी संस्कृति का त्याग करने के लिए बाध्य कर दिए गए है । यूरोप में शरण लिए हुए 150000 यज़ीदियों की संख्या मिलाकर आज लगभग 800000 वे स्वयं सच्चे ईश्वर में आस्था रखने वाले बताते है और वे मयूर देवदूत "ताऊस मेलेके" की आराधना करते है जो अनन्त ईश्वर का रूप (अवतार) है छः दूसरे देवदूत ताऊस मेलेके के सहयोगी है और वे सृष्टि के सात दिनों से सम्बन्ध है जिसमे से रविवार ताऊस मेलेके का दिन है यज़ीदियों के मंदिर और पूजा गृह तथा दूसरे स्थानों की सज्जा मोर के चित्रांकन से की जाती है उन पर हो रहे आक्रमण ईसाइयो और मुसलमानों के इस विस्वास का परिणाम है कि मयूर दूत इब्लीस यत् शैतान है ।

http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/06/blog-post_20.html?m=1

-पण्डित विनोद चौबे, संपादक- "ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई

सोमवार, 19 जून 2017

'राजनीति' नहीं 'जमीनी राष्ट्रनीति' के परिणाम हैं 'रामनाथ कोविंद' ड्राईंग रुम से बाहर निकलो तब कोई 'रामनाथ कोविंद' मिलेगा...

'राजनीति' नहीं 'जमीनी राष्ट्रनीति' के परिणाम हैं 'रामनाथ कोविंद' ड्राईंग रुम से बाहर निकलो तब कोई 'रामनाथ कोविंद' मिलेगा......

..."भीमवाद और किसानवाद" ...........
या 'दलाल नीति' या  'ड्राईंग रूम' राजनीति नहीं चलेगी....यह मोदी जी ने महामहिम के लिये श्री कोविंद जी का अचानक नाम लाकर सबको चौंका दिया....
रामनाथ कोविन्द को लेकर पीएम मोदी का ट्वीट देखिए और संकेत समझिए!

नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी और उनकी राजनीति ने दिल्ली के एलिट क्लब को बिल्कुल कुचल दिया है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रुप में *रामनाथ कोविन्द* को आगे लाकर इन दोनों ने पॉलिटिकल पंडितों को बता दिया है कि ड्राइंग रूम से बाहर निकलो और जमीन की राजनीति समझो!

देश की राजनीति आम लोगों की राजनीति हो रही है, इसे दलाल वर्ग, एलिट क्लब और घिसी-पिटी राजनीति करने वाले जितना जल्दी समझ लें, उतनी ही जल्दी उनकी बेचैनी कम होगी। वरना जब तक मोदी हैं, ये सारे ऐसे ही भौंचक्के होते रहेंगे!

विपक्ष के लिए दलित व किसान के बेटे का विरोध बहुत मुश्किल होगा। यह भीमवाद और किसानवाद के नाम पर देश में गंदी राजनीति और अराजकता फैलाने वालों के लिए सीधा संकेत है कि दलित और किसान को देश से जोड़ने की जरुरत है न कि तोड़ने की!

एक बात और। पीएम मोदी का ट्वीट देखिए और संकेत समझिए! 30 साल तक उच्च व सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाले कोविन्द को संविधान और कानून की अच्छी जानकारी है, इसलिए वो बेहद कारगर होने जा रहे हैं। संकेत साफ है कि भविष्य में संविधान की नयी व्याख्या के लिए आप सब तैयार रहें!
(लेखक:-  श्री कनिराम जी "शाश्वत राष्ट्रबोध" मासिक पत्र के समस्त प्रकल्प प्रमुख एवं प्रांत प्रचार प्रमुख (आरएसएस), रायपुर हैं)

रविवार, 18 जून 2017

किसे कहते है श्रुति और स्मृति...?

किसे कहते है श्रुति और स्मृति...?

हिंदू धर्म के पवित्र ग्रन्थों को दो भागों में बाँटा गया है- श्रुति और स्मृति। श्रुति हिन्दू धर्म के सर्वोच्च ग्रन्थ हैं, जो पूर्णत: अपरिवर्तनीय हैं, अर्थात् किसी भी युग में इनमे कोई बदलाव नही किया जा सकता। स्मृति ग्रन्थों मे देश-कालानुसार बदलाव हो सकता है।
श्रुति के अन्तर्गत वेद : ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद ब्रह्म सूत्र व उपनिषद् आते हैं। वेद श्रुति इसलिये कहे जाते हैं क्योंकि हिन्दुओं का मानना है कि इन वेदों को परमात्मा ने ऋषियों को सुनाया था, जब वे गहरे ध्यान में थे। वेदों को श्रवण परम्परा के अनुसार गुरू द्वारा शिष्यों को दिया जाता था। हर वेद में चार भाग हैं- संहिता—मन्त्र भाग, ब्राह्मण-ग्रन्थ—गद्य भाग, जिसमें कर्मकाण्ड समझाये गये हैं, आरण्यक—इनमें अन्य गूढ बातें समझायी गयी हैं, उपनिषद्—इनमें ब्रह्म, आत्मा और इनके सम्बन्ध के बारे में विवेचना की गयी है। अगर श्रुति और स्मृति में कोई विवाद होता है तो श्रुति ही मान्य होगी।
श्रुति को छोड़कर अन्य सभी हिन्दू धर्मग्रन्थ स्मृति कहे जाते हैं, क्योंकि इनमें वो कहानियाँ हैं जिनको लोगों ने पीढ़ी दर पीढ़ी याद किया और बाद में लिखा। सभी स्मृति ग्रन्थ वेदों की प्रशंसा करते हैं। इनको वेदों से निचला स्तर प्राप्त है, पर ये ज़्यादा आसान हैं और अधिकांश हिन्दुओं द्वारा पढ़े जाते हैं (बहुत ही कम हिन्दू वेद पढ़े होते हैं)। प्रमुख स्मृतिग्रन्थ हैं:- इतिहास--रामायण और महाभारत, भगवद गीता, पुराण--(18), मनुस्मृति, धर्मशास्त्र और धर्मसूत्र, आगम शास्त्र। भारतीय दर्शन के ६ प्रमुख अंग हैं- साँख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त।
मध्य युग में हमारे धर्म ग्रंथों के साथ छेड़ छाड़ की गई है । और इन ग्रंथों में वर्णित तथ्यों के अर्थ का अनर्थ भी किया गया, जबकि उपरोक्त 'आत्मा से परमात्मा' की यात्रा है!
-'ज्योतिष का सूर्य' मासिक पत्रिका, भिलाई

शनिवार, 10 जून 2017

दाम्पत्य सुख एवं वृहस्पति, शुक्र का वैवाहिक जीवन में शुभाशुभ प्रभाव :............

दाम्पत्य सुख एवं वृहस्पति, शुक्र का वैवाहिक जीवन में शुभाशुभ प्रभाव  :............



बृहस्पति और शुक्र दो ग्रह हैं जो पुरूष और स्त्री का प्रतिनिधित्व करते हैं.मुख्य रूप ये दो ग्रह वैवाहिक जीवन में सुख दु:ख, संयोग और वियोग का फल देते हैं बृहस्पति और शुक्र दोनों ही शुभ ग्रह हैं .सप्तम भाव जीवन साथी का घर होता है.इस घर में इन दोनों ग्रहों की स्थिति एवं प्रभाव के अनुसार विवाह एवं दाम्पत्य सुख का सुखद अथवा दुखद फल मिलता है.पुरूष की कुण्डली में शुक्र ग्रह पत्नी एवं वैवाहिक सुख का कारक होता है और स्त्री की कुण्डली में बृहस्पति.ये दोनों ग्रह स्त्री एवं पुरूष की कुण्डली में जहां स्थित होते हैं और जिन स्थानों को देखते हैं उनके अनुसार जीवनसाथी मिलता है और वैवाहिक सुख प्राप्त होता है.
 ज्योतिषशास्त्र का नियम है कि बृहस्पति जिस भाव में होता हैं उस भाव के फल को दूषित करता है और जिस भाव पर इनकी दृष्टि होती है उस भाव से सम्बन्धित शुभ फल प्रदान करते हैं.जिस स्त्री अथवा पुरूष की कुण्डली में गुरू सप्तम भाव में विराजमान होता हैं उनका विवाह या तो विलम्ब से होता है अथवा दाम्पत्य जीवन के सुख में कमी आती है.पति पत्नी में अनबन और क्लेश के कारण गृहस्थी में उथल पुथल मची  रहती है.
दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने में बृहस्पति और शुक्र का सप्तम भाव और सप्तमेश से सम्बन्ध महत्वपूर्ण होता है
.जिस पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह कारक ग्रह शुक बृहस्पति से युत या दृष्ट होता है उसे सुन्दर गुणों वाली अच्छी जीवनसंगिनी मिलती है.इसी प्रकार जिस स्त्री की कुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह कारक ग्रह बृहस्पति शुक्र से युत या दृष्ट होता है उसे सुन्दर और अच्छे संस्कारों वाला पति मिलता है.
शुक्र भी बृहस्पति के समान सप्तम भाव में सफल वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है.सप्तम भाव का शुक्र व्यक्ति को अधिक कामुक बनाता है जिससे विवाहेत्तर सम्बन्ध की संभावना प्रबल रहती है.विवाहेत्तर सम्बन्ध के कारण वैवाहिक जीवन में क्लेश के कारण गृहस्थ जीवन का सुख नष्ट होता है.बृहस्पति और शुक्र जब सप्तम भाव को देखते हैं अथवा सप्तमेश पर दृष्टि डालते हैं, तो इस स्थिति में वैवाहिक जीवन सफल और सुखद होता है.लग्न में बृहस्पति अगर 'पापकर्तरी योग'से पीड़ित होता है तो सप्तम भाव पर इसकी दृष्टि का शुभ प्रभाव नहीं होता है ऐसे में सप्तमेश कमज़ोर हो या शुक्र के साथ हो तो दाम्पत्य जीवन सुखद और सफल रहने की संभावना कम रहती है. और स्थिति तलाक तक पहुंच सकता है!

-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे
संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, दुर्ग, छत्तीसगढ़
9827198828