ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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मंगलवार, 30 मई 2017

आप 'हिन्दुत्व' को समझने के लिये इस लेख को जरूर पढें........

Pandit Vinod Choubey

आप 'हिन्दुत्व' को समझने के लिये इस लेख को जरूर पढें........

प्रात: वंदन के साथ सुप्रभात *अन्तर्नाद* (व्हाट्सएप्प ग्रुप)  मंच साथियों आईये हिन्दु शब्द की व्याख्या को समझें..हर हिंदू को इसका ज्ञान होना नितांत आवश्यक है..........
हमारे शिष्य मनोज जी ( निवासी शांतिनगर,भिलाई ) ने प्रश्न किया कि - आदरणीय पण्डित जी ये बतायें की हिंदु शब्द का सिंधु शब्द से क्या संबंध है..? और हिंदुत्व की संस्कृति यानी हिंदु विचारधारा वाले सनातन धर्म को फॉलो करने वाले लोगों की जीवन यापन सभ्यता सबसे प्राचीन क्यों मानी जाती है...?
वैदिक शब्द 'हिंदु' सिंधु से बना है.....
रमेश जी, जब मैं वाराणसी के कमच्छा स्थित 'रणवीर संस्कृत महाविद्यालय' में प्रवेशिका द्वितीय वर्ष का छात्र था तो उस समय व्याकरण के गुरुजी आदरणीय श्री शेषनाथ मिश्र जी हुआ करते थे उन्होंने इसकी व्याख्या कुछ इप्रकार की - वैदिक शब्द 'हिंदु' सिंधु से बना है। संस्कृत मे प्रत्येक शब्द की उत्पत्ति के पीछे एकविज्ञान है, जिसे शब्द व्युत्पत्ति कहते हैं। जैसे-"पत्नात त्रायते सा पत्नी" वैदिक व्याकरण मे शब्दउत्पत्ति का आधार ध्वनि विज्ञान (नादविज्ञान) है, ध्वनि उत्पत्ति, उद्गम, आवृत्ति, ऊर्जाआदि के आधार पर ध्वनि परिवर्तन से समानार्थी वनए शब्दों की उत्पत्ति होती है, जैसे सरित(नदी)शब्द की उत्पत्ति हरित शब्द से हुई है। "हरितो नरह्यॉ"( अथर्ववेद 20.30.4) की व्याख्या मे निघंटु मेस्पष्ट है "सरितों हरितो भवन्ति"॥ वैदिक व्याकरणके संदर्भ में निघंटु का निर्देश (नियम) है कि "स" कईस्थानों पर "ह" ध्वनि में परिवर्तित हो जाता है। इसप्रकार अन्य स्थानों मे भी "स" को "ह" व "ह" को"स" लिखा गया है। . सरस्वती को हरस्वती- "तंममर्तुदुच्छुना हरस्वती" (ऋग. 2।23।6), श्री कोह्री- "ह्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यौ" आदि-आदि॥इसी प्रकार हिन्दू शब्द वैदिक सिंधु शब्द कीउत्पत्ति है क्योंकि सिंधु शब्द से हिंदुओं का सम्बोधनविदेशी आरंभ नहीं है जैसा कि इतिहास मे बताने काप्रयास होता है वरन वैदिक सम्बोधन है। "नेतासिंधूनाम" (ऋग 7.5.2), "सिन्धोर्गभोसिविद्दुताम् पुष्पम्"(अथर्व 19.44.5) फारसी मे हिन्दूशब्द का अर्थ काफिर चोर कालान्तर में किया गयाहै, ऐसा नहीं कि हिन्दू फारसी का मूल शब्द इसीभाव में है। फारसी में "स" के स्थान पर "ह" प्रचलन मेंआ गया, संभवतः संस्कृत व्याकरण के उपरोक्त नियमने फारसी में नियमित स्थान बना लिया होगा!


'हिन्दू' शब्द का अन्य भाषाविज्ञानियों ने अनर्थ किया......

रमेशजी, यदि इसी संदर्भ को आज के आधुनिक भाषा विज्ञानियों की मानें तो...भाषाविज्ञान जानने वाले लोग जानते हैं कि"इंडो-यूरोपियन"परिवार की सभी भाषाओं कीउत्पत्ति संस्कृत से ही मानी जाती है अथवा संस्कृतके किसी पूर्व प्रारूप से! वास्तव में फारसी में हिन्दूका भ्रष्ट अर्थ घृणा के आधार पर काफी बाद मेंकिया गया जो वैमनस्यता वश इस प्रकार किये गये अवर्थ से 'हिंदुत्व' पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा वरन यह तकरीबन ५ से ६ हजार वर्ष से पुरानी "हिंदू- संस्कृति" होने का गौरव भी प्राप्त हुआ जिसे कईयों बार मिटाने के बहुत प्रयास हुये किन्तु  सभी को विफलता ही हाथ लगी..!
इस विषय पर जब और गहन अध्ययन करने की तिव्र इच्छा हुई तो मैं इसके लिये 'काशी हिंदू विश्वविद्यालय'  के ग्रंथालय में  गया तो वहां भारतीय संस्कृत साहित्य के सभी विषयों को स्पर्श करने वाले श्री माधवाचार्य जी का एक ग्रंथ मिला जिसमें आर्य धर्मेतर लेखकों द्वारा 'हिदुत्व' पर किये गये वैचारिक व लेखनी प्रहार के बारे में विशद वर्णन मिला इस ग्रंथ में हिन्दुत्व  या सनातनी कई सिद्धांतो का अपने ढंग से अर्थ का अनर्थ कर अपने फॉलोवरों के समक्ष रखा गया.......यहूदियों के लिए कुरान में कईजगह काफिर, दोज़ख़ी जैसे शब्द प्रयुक्त हुए हैं।फारसी मे हिन्दू शब्द का ऐसा ही अर्थ "गयास-उल-लुगत" शब्दकोश के रचनाकार मौलाना गयासुद्दीनकी देन है। इसी तरह राम और देव जैसे संस्कृत शब्दोंका अन्य शब्दकोशों मे एकदम उल्टा अर्थ लिखा है।राम का अर्थ कई स्थानों पर चोर भी किया गयाहै। क्या हमारे लिए राम के अर्थ बदल जाएंगे?

चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तान्त मे.....

हिन्दूशब्द मुसलमानों की अपमानपूर्ण देन है कहना नितांतअनभिज्ञता है, यह शब्द मुसलमान धर्म के आने से बहुतपहले से ही सम्मानपूर्ण तरीके से हमारे लिए प्रयोग होता रहा है। मुसलमानों से काफी समय पूर्व भारत आने वाले चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तान्त मे भारत के लिए हिंदुस्थान शब्द प्रयोगकिया है। प्राचीन शब्दकोशों जैसे रामकोश,मेदिनीकोश, अद्भुतकोष, शब्दकल्पद्रुम मे भी हिन्दूशब्द प्राप्त होता है,- "हिन्दुहिन्दूश्चहिंदव:" (मेदिनी कोश) प्राचीन ग्रन्थ बृहस्पति आगममें हिन्दू शब्द को व्यापक अर्थ में हिमालय व इन्दुसागर (हिन्द महासागर) के परिक्षेत्र से परिभाषितकिया गया है- 
हिमालयात् समारंभ्य 

यावत् इन्दुसरोवरम्। 
तद्देव निर्मितम् देशम् 
हिंदुस्थानम् प्रचक्षते॥
अर्थात, उत्तर में हिमालय से आरम्भ कर के दक्षिण में इन्दु सागर (हिन्द महासागर) तक का जो क्षेत्र है उसदेव निर्मित देश को हिंदुस्थान कहते हैं। . वास्तव में आर्य शब्द हिन्दू जाति का विशेषण है (जिसका अर्थश्रेष्ठ होता है) और वेदों पुराणों में इसी अर्थ मे प्रयुक्त हुआ है, हिन्दू वीरों वीरांगनाओं ने भी स्वयंको आर्य-पुत्र या आर्य-पत्नी कह के संबोधित कियाहै आर्य नहीं। क्योंकि स्वयं के लिए विशेषण या सम्मान सूचक शब्द का प्रयोग भारतीय परंपरा नहीं रही है।

हिन्दू शब्द ही अधिक समीचीन व संगत है। इससे भीअधिक महत्वपूर्ण है कि आज आर्य या हिन्दू शब्द की बहस के अनौचित्य को समझना क्योंकि आज हमें पढ़ाया जाने वाला मैकाले सोच का भ्रष्ट इतिहास भारतीय गौरव को शर्मसार करने के लिए प्रयासरत है॥ इस संकीर्ण प्रयास के प्रतिरोध में आज यह लेखसमर्पित है। आज हिन्दू शब्द ही सम्पूर्ण विश्व में हमारी पहचान है, हमारे ज्ञान गौरव प्राचीनताऔर हमारी अमर संस्कृति की पहचान है...,

 "अतः गर्व है की हम हिन्दू हैं" 

(इस लेख का आधार भारतीय धर्मग्रन्थ व स्व. माधवाचार्य जी की पुस्तक '' क्यों '' द्वारा प्रदत्त जानकारी पर आधारीत है तथा जैसा की हमने अध्ययन किया गुरुमुख से.... उसी को शब्दशः रमेश जी को बताया )
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक - ' ज्योतिष का सूर्य ' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, हाऊस नं. १२९९, सड़क- २६, कोहका मेन रोड, शांतिनगर, भिलाई, जिला- दुर्ग (छ.ग.)
मोबाईल.नं.9827198828
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Pandit Vinod Choubey

शनिवार, 20 मई 2017

राशिनुसार रत्न धारण करने से मिलती है कमजोर ग्रहों को शक्ति


राशिनुसार रत्न धारण करने से मिलती है कमजोर ग्रहों को शक्ति
मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना,
कुण्डे कुण्डे नवं पय।
जातौ जातौ नवाचारा,
नवा वाणी मुखे मुखे।।
अर्थात् प्रत्येक मनुष्य के सोचने का ढंग अलग-अलग होता है; प्रत्येक जलाशय के जल में भी अन्तर होता है। प्रत्येक जाति का रहन-सहन भिन्न-भिन्न होता है; और प्रत्येक व्यक्ति के मुख से बात प्रकट करने का ढंग भी अलग-अलग होता है।
उपरोक्त श्लोक के अनुसार राशि रत्न धारण करने हेतु ज्योतिषीयों में काफी विभीन्नता देखी जाती है, और यदि कुण्डली के सम्यक अध्ययन के बाद ही  इन रत्नों का निर्धारण किया जाना चाहिये!
'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के संपादक पण्डित विनोद चौबे बताते हैं कि रत्नों का चयन जितना महत्वपूर्ण है उससे भी महत्वपूर्ण रत्नों को सिद्ध व प्राणप्रतिष्ठित करना है! कभी कभी तो महंगे रत्नों को धारण करने के बावजूद काम नहीं करते उसके प्रमुख तीन कारण है- 










१- जन्मांक का सम्यक विचार कर ठीक ठीक राशि रत्नो का चयन न कर पाना !
२- दूसरा राशि रत्नों का ठीक -ठीक परीक्षण कर उसके शुद्ध अशुद्ध को सुनिश्चित न कर पाना! क्योंकि आजकल राशि रत्नों के लैब टेस्टींग रिपोर्ट भी दुकानदारों तथा लैब टेस्टींग करने वालों के आपसी सांठ-गांठ पर नकली  'टेस्टींग कार्ड' बनाये जा रहे हैं....!
३- कुण्डली के सम्यक तौर पर
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार राशिचक्र की सभी राशियों को ग्रहों की चाल प्रभावित करती है। हर राशि किसी न किसी ग्रह से संचालित भी होती है यानि प्रत्येक राशि का एक स्वामी ग्रह होता है। जब कुंडली में ग्रह कमजोर हों तो जातक के जीवन में उसे अपेक्षाकृत परिणाम नहीं मिलते। अक्सर देखा जाता है कि लोग बड़े परेशान रहते हैं कि लाख कोशिशों के बावजूद उनके बने बनाये काम ऐन मंजिल के नजदीक पंहुच कर बिगड़ जाते हैं। ज्योतिषाचार्य इसका एक कारण ग्रहों का सही दशा में न होना, ग्रहों का साथ न मिलना और जातक की कुंडलीनुसार ग्रहों का कमजोर होना मानते हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या कमजोर ग्रहों को मजबूत किया जा सकता है? इसका उत्तर यही है कि समस्या है तो समाधान भी है। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि जैसे राशि के स्वामी ग्रह होते हैं वैसे ही प्रत्येक ग्रह के कुछ रत्न भी हैं जिन्हें पहनने या कहें धारण करने से उक्त ग्रह को बल मिलता है। दरअसल ये रत्न धारण करते ही जातक की नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक होने लगती है और हालातों में सुधार होने लगता है। अब सवाल यह कि किस राशि के जातक को कौनसा रत्न धारण करना चाहिये? तो आइये जानते हैं सभी बारह राशियों के बारे में कि किस राशि के लिये कौनसा रत्न शुभ है।

ज्योतिष शास्त्र में रत्नों का बेहद महत्व है। ये ऐसी वस्तु है जिन्हें काफी शक्तिशाली माना गया है।  लग्न, चतुर्थ, पंचम, नवम्, दशम, द्वितीय ये शुभ भाव है। यदि इनसे सम्बन्धित ग्रह जन्मकुण्डली में स्वग्रही अथवा मित्र-राशि या उच्च राशिगत अपने भाव अथवा राशि से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम् अथवा दशम् हो तो संबंधित राशि का रत्न नि:संकोच धारण कर लाभान्वित हो सकते हैं। जैसे- मेष व वृश्चिक लग्न के लिए मूंगा शुभ है। माणिक्य व मोती भी इनको शुभ फल देते हैं। जबकि वृषभ व तुला लग्न के लिए हीरा रत्न शुभ है। इनको पन्ना व नीलम भी शुभ प्रभाव देते हैं। इसी तरह से मिथुन व कन्या राशि के लिए पन्ना, नीलम व हीरा फलदायी है। कर्क लग्न के लिए मोती कारक रत्न है। सिंह लग्न के लिए माणिक्य के साथ पुखराज व मूंगा विशेष प्रभावी है। धनु व मीन लग्न के लिए पुखराज शुभ है। मकर व कुंभ के लिए नीलम और पन्ना श्रेष्ठ है।

मेष - एस्ट्रोगुरू पण्डित विनोद चौबे (Mob.No.9827198828) के अनुसार मेष राशि का स्वामी ग्रह मंगल है मेष जातक काफी ऊर्जावान होते हैं और बड़ी से बड़ी चुनौति को स्वीकार करने के लिये तैयार रहते हैं। इनके लिये मूंगा धारण करना काफी हितकर होता है। यह रक्त संबंधी समस्याओं एवं वित्तीय बाधाओं को दूर करने में काफी कारगर होता है।
वृषभ - वृष राशि का स्वामी शुक्र होता है यदि जातक की राशि में शुक्र कमजोर चल रहा हो तो उसके लिये हीरा, ओपल या जरकन पहनना शुभ रहता है। इनके कारण जातक का बौद्धिक विकास होता है और आपसी संबंधों में मधुरता कायम होती है। रिश्तों की कमजोर डोरी को ये रत्न प्रेम का अटूट धागा बना देते हैं।

मिथुन - मिथुन राशि वाले जातक पन्ना पहन सकते हैं। इससे उनकी बुद्धि और विवेक का स्तर बढ़ता है और जातक में संयम बनाये रखने की प्रवृति भी विकसित होती है। चूंकि मिथुन राशि का स्वामी ग्रह बुद्ध होता है इसलिये पन्ना धारण करने से कमजोर बुद्ध भी मजबूत होता है और परिणाम सकारात्मक मिलते हैं।
कर्क - चंद्रमा द्वारा संचालित कर्क जातकों के लिये मोती बहुत ही लाभकारी रहता है। यह इनके स्वभाव में निहित चंचलता को नियंत्रित कर मन में स्थिरता लाता है और नकारात्मक विचारों को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
सिंह - सिंह राशि के जातक सूर्य द्वारा संचालित होते हैं ये काफी ऊर्जावान और निर्भीक स्वभाव के होते हैं। लेकिन यदि कुंडली में सूर्य कमजोर हो तो अपेक्षात्मक परिणाम नहीं मिलते ऐसे में सिंह जातकों के लिये माणिक पहनना समस्याओं के समाधान में अहम भूमिका निभा सकता है। माणिक धारण करने से आत्मबल, आत्मविश्वास और आतंरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
कन्या - चूंकि कन्या राशि के जातक भी बुद्ध द्वारा संचालित होते हैं इसलिये इस राशि के जातकों के लिये भी पन्ना धारण करना हितकर हो सकता है। यदि जातक का मन विद्या ग्रहण करने में नहीं लगता या फिर जातक को किसी विषय-वस्तु-विचार-क्रियादि में ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत आती है तो पन्ना धारण करने से उसे इस समस्या से निजात मिल सकती है। इसके अलावा पन्ना धारण करने से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा के संचार से भी अन्य परेशानियां दूर हो सकती हैं।

तुला - शुक्र ग्रह को तुला राशि का स्वामी माना जाता है अत: तुला राशि वाले जातक भी यदि हीरा, ओपल या जरकन पहने तो इन्हें अवश्य लाभ मिलता है। इसके धारण करने से जातक की बुद्धि का विकास तो है व विद्या ग्रहण करने में आ रही परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। प्रेम संबंधों में स्थिरता के लिये भी जातक इन्हें धारण कर सकते हैं।
वृश्चिक - चूंकि वृश्चिक राशि का स्वामी भी मंगल ग्रह है इसलिये मूंगा पहनना वृश्चिक जातकों के लिये फायदेमंद रहता है। रक्त संबंधी दिक्कतें तो दूर होती ही हैं साथ ही संपत्ती और धन से जुड़े मामलों के लिये भी यह शुभ माना जाता है। क्रोध पर नियंत्रण करने में भी यह काफी सहायक रहता है। जातक की रचनात्मकता को सकारात्मक दिशा में प्रयोग करने की प्रेरणा भी मिलने लगती है।
धनु - इनका राशि स्वामी बृहस्पति है जिसकी मजबूती के लिये धनु जातक पुखराज पहन सकते हैं। पुखराज धनु जातकों में ज्ञान और बुद्धि के विकास के साथ-साथ वित्त और रिश्तों संबंधी स्थिरता को लाता है। अन्य कार्यों में इसके धारण करने से सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।
मकर - मकर जातकों को अपने राशि स्वामी शनि को प्रसन्न रखने के लिये नीलम पहनना चाहिये। इससे व्यक्ति अपने क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करता है और उच्च पदों तक पहुंचता है। यदि जातक व्यवसायी है तो अपने व्यवसाय में वृद्धि के लिये भी नीलम धारण करना शुभ माना जाता है।
कुंभ - कुंभ जातक भी शनि द्वारा संचालित होते हैं। इन्हें भी तरक्की हासिल करने के लिये नीलम धारण करना चाहिये। नीलम शनि के प्रकोप से तो बचायेगा ही साथ ही सकारात्मक परिणाम दिलाने में भी यह असरदार होता है।
मीन - बृहस्पति द्वारा संचालित मीन जातकों को भी पुखराज पहनना चाहिये। यह आपको अनिश्चितता के भय से मुक्ति दिलाने में मददगार हो सकता है। इसे धारण करने के बाद आप अपने अंदर सकारात्मक परिवर्तनों को महसूस कर सकेंगें।


नोट: कई बार जातक बिना विचार विमर्श और ज्योतिषाचार्यों से परामर्श किये ही रत्न धारण कर लेते हैं। इससे आपके राशिफल पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकते हैं। कई बार यह आपकी सेहत के लिये भी हानिकारक हो सकता है। सटीक एवं सकारात्मक परिणामों के लिये किसी भी रत्न को अपनी कुंडली दिखाकर, दशा-महादशा आदि का अध्ययन करवा कर ज्योतिषीय परामर्श के बाद ही शुक्ल पक्ष में निर्धारित वार एवं होरा में विधिपूर्वक धारण करना चाहिये।

ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- "ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, सड़क-26, शांतिनगर भिलाई, जिला-दुर्ग (छ.ग.) मोबाईल नं- 09827198828
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