गुरुपुष्य योग एवं बगलामुखी जयन्ती का दुर्लभ संयोग
बगलामुखी, जप, अनुष्ठान के लिए 724 वर्षों बाद बना है दुर्लभ संयोग
श्री कुल की देवी बगलामुखी जहां ऐश्वर्य धन समृद्धि प्रदान करने वाली होती हैं वहीं दस महाविद्या में प्रमुख बगलामुखी देवी विशेष रुप से शत्रुओं का शमन कर व्यक्ति को विजय का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
माँ बगलामुखी की साधना वैसे तो प्रतिदिन करनी चाहिए चूंकि बगला साधना बेहद कठिन होता है अत: व्यक्ति को वर्ष में एक बार बगलामुखी जयन्ती के अवसर पर तो रकरनी ही चाहिए। इससे ना केवल शत्रु बाधा समाप्त होती है बल्कि रुके हुए कार्य, वरिष्ठ अधिकारियों से मनमुटाव, राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा में बार बार विफल होना, व्यवसाय, प्रोजेक्ट आदि लंबित कार्यों में आ रहीं बाधाओं से मुक्ति मिलती है और वह व्यक्ति अजात शत्रु के रुप में अपने आपको समाज में स्थापित करता है। मेरा यह अनुभव रहा है कि माँ बगलामुखी की साधना करने से व्यक्ति का समाज में मान सम्मान तो बढ़ता ही है साथ ही जनाधार में भारी वृद्धि होता है।
पिछले 724 वर्षों के बाद यह पहला मौका है जब बगलामुखी जयन्ती के 24 घंटे (2 दिन) पूर्व गुरुपुष्य योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। गुरुपुष्य योग स्वयंसिद्धा योग माना जाता है इस योग में आरंभ किये गये कोई भी कार्र्य व साधना विशेष फलप्रद साबित होता है। अत: गुरुपुष्य योग में मां बगलामुखी की साधना आरंभ करना चाहिए तथा 14 मई को बगलामुखी जयंती (अष्टमी) की आधी रात (निशाकाल) में बगलामुखी मंत्र से अनुष्ठान करते हुए रविवार 15 मई को प्रात: काल पंचदिवसीय महाअनुष्ठान की पूर्णाहूति कराकर कन्या भोज, ब्राह्मण तथा गौ को भोग अर्पित करना चाहिए।
उरोक्त विधि से किया गया बगलामुखी महायज्ञ साधना विशेष फलदायीी साबित होगा। इस वर्ष हमारे यहाँ इस दुर्लभ संयोग में विशेष महाअनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है पिछले वर्ष जिन साधकों ने भाग लिया था वे पुन: 9 मई 2016 तक पुन: रजिस्ट्रेशन करा सकते है, साथ ही नये साधकों के अनुरोध है वे अपना, नाम, गोत्र तथा कामना आदि का उल्लेख करते हुए हमें ई-मेल करें। ई-मेल आईडी है-
अब आईेए मां बगलामुखी के बारे बारे में आंशिक चर्चा करें.....वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी जन्मोत्सव है इस वर्ष 2016 में यह जयन्ती 14 मई, को मनाई जाएगी. इस दिन व्रत एवं पूजा उपासना कि जाती है साधक को माता बगलामुखी की निमित्त पूजा अर्चना एवं व्रत करना चाहिए. बगलामुखी जयंती पर्व देश भर में हर्षोउल्लास व धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर जगह-जगह अनुष्ठान के साथ भजन संध्या एवं विश्व कल्याणार्थ महायज्ञ का आयोजन किया जाता है तथा महोत्सव के दिन शत्रु नाशिनी बगलामुखी माता का विशेष पूजन किया जाता है और रातभर भगवती जागरण होता है.
मां के पूजन में पीले रंग का विशेष महत्त्व है---
माँ बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए.
देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं. संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है. बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है.
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून परिपिडयन्तीम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पितांबराढ्यां द्विभुजन्नमामि।।
बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं. देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं. देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है.
ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- ज्योतिष का सूर्य राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई।