ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

भारतीय संस्कृति ही सत्यं है। भारत ही शिवं है, शिव-पार्वती परिवार ही सुंदरम है.....

भारतीय संस्कृति ही सत्यं है। भारत ही शिवं है,

शिव-पार्वती परिवार ही सुंदरम है.....


पं. विनोद चौबे, 09827198828, Bhilai (C.g.)

प्रिय पाठकों,
विगत दिनों एक सवाल के जवाब में छ.ग. के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा था कि- जिस देश के लोगों को भारत ने कपड़ा पहनना सिखाया, उन लोगों द्वारा हमारी देश की संस्कृति पर सवाल उठाया जाना हास्यस्पद है। इस बयान से मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का विश्वपटल पर बतौर मुखर वक्ता के रूप में स्थापित करने का काम किया। ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि विश्व की अति प्राचीन संस्कृति भारत की संस्कृति है, जो उसी तथाकथित अमेरिका के सिकागो धर्म सम्मेलन में गीता का पाठ पढ़ाने वाले स्वामी विवेकानन्द ने वासांसि जिर्णानि यथा विहाय का जीवन-सत्य-दर्शन सूत्र दिया था। अर्थात् वस्त्र का उपयोग गीता निर्माण से भी आकलन किया जाय तो तकरबीन 6000-7000 वर्ष पुरानी तो है ही।
इस लिहा•ा से तो कम से कम भारत के गंगा-जमुनी संस्कृति में पाश्चात्य संस्कृति का दंश देने वाले अथवा केन्द्र सरकार द्वारा तथाकथित तौर पर प्रगतिशिलता का पाठ पढ़ाकर अमेरिका के दबाव में भारतीय असंख्य हिन्दू जनमानस पर चोट पहुँचाते हुए सेतु समुद्रम परियोजना के तहत सदा-सदा के लिए आदर्श के प्रतीक भगवान राम के सेतु को तोडऩे पर अमादा है, क्या इसे भारतीय संस्कृति के अंतर्गत एक अच्छे भ्रातृ-प्रेम, रामराज्य- नीति सहित समाज में संजीवनी का काम करने वाली उन तमाम प्रेरक कथाओं में से एकता का प्रतीक एवं आज के एक लाख अढ़तीस हजार वर्ष पूर्व की नल-नील का वैज्ञानिकता से लवरेज इंजीनियरिंग दक्षता अर्थात् रामसेतु को केवल किताबों तक ही सिमटाकर दफन कर देना चाहती है।
 मित्रों आगामी महाशिवरात्री का महा पर्व आने वाला है जो 10 मार्च को मनाया जायेगा। आईए भगवान शिव के विलक्षण परिवार से अपने जीवन में उनके कुछ आदर्शों को उतारने का प्रयत्न करें। इस अंक को भगवान शिव पर आधारीत कुछ दुर्लभ जानाकरियों को आपके समक्ष प्रस्तुत करने का मेरा यही लक्ष्य है ताकि आप इस शिव परिवार एवं उनसे जुड़े दर्शन को समझ सकें।
आदर्श परिवार की जब भी कल्पना की जाती है, तो हमारे सामने शिव-परिवार का सुंदर चित्र प्रकट हो जाता है, त्याग, समर्पण, एकता, अनुशासन एवं प्रेम के गुणों से ओत-प्रोत। शिव-पार्वती भारतीय दर्शन का पर्याय हैं। सिंधु घाटी-सभ्यता से प्राप्त पशुपतिनाथ एवं मातृदेवी की मूर्तियां इसी बात का प्रमाण हैं। शिव-पार्वती आदर्श दांपत्य जीवन का भी आदर्श उदाहरण हैं। साहित्य, नृत्य, संगीत, लौकिक-जीवन, सभी में तो आशुतोष एवं शिवा मौजूद हैं।
प्राचीन मुद्राओं (सिक्कों) में भी शिव-पार्वती का अंकन मिलता है। हर्षवर्धन के सिक्कों पर शिव-पार्वती का अंकन है, तो यौधेयवंश की मुद्राओं पर कार्तिकेय का। विदेशी शक-पल्लव एवं कुषाण शासकों की मुद्राओं पर भी शिव-पार्वती का अंकन है। यानी, शिव-पार्वती सभी के अराध्य हैं। उनकी अराधना भी सरल, सहज-सुगम है। तभी, शिवालय के गर्भग्रह में सब प्रवेश कर सकते हैं, जबकि शेष मंदिरों के गर्भग्रहों में केवल पुजारी ही प्रवेश करते हैं। शिवपूजा के लिए दुर्लभ चीजों की आवश्यकता नहीं होती। सरलता से प्राप्त सामग्री से शिव का पूजन संभव है। शिव को जल व नाद अत्यंत प्रिय हैं। इसलिए शिव की अराधना जलाभिषेक के साथ स्वरों के नाद के माध्यम से की जाती है। ध्रुपद गायन में शिव-भक्ति नाद के जरिए ही की जाती है। शिव को नटराज भी कहा जाता है, क्योंकि शिव नृत्य के जन्मदाता हैं। उन्हें नटेश्वर भी कहते हैं। तंजौर की नटराज की कांस्य प्रतिमा सत्यं शिवं सुंदरम की अवधारणा का साक्षात रूप है।
शिव भी पार्वती को सम्मान देते हैं। गणेश एवं कार्तिकेय जैसे आज्ञाकारी पुत्र उनके परिवार में हैं। शेर, वृषभ (नंदी), मोर, मूषक व सर्प इंगित करते हैं कि विभिन्न स्वभाव वाले लोग भी परिवार में एक साथ मैत्री व प्यार से रह सकते हैं। शिव-पार्वती की पूजा संपूर्ण देश में की जाती है। शिव-पार्वती समभाव, प्रेम, त्याग के उदाहरण हैं। भारतीय धार्मिक जीवन पर दृष्टि डालें, तो शिव-पार्वती ही एकमात्र ऐसे देवी-देवता हैं, जिनका युगलपूजन किया जाता है। कुल मिलाकर भारतीय संस्कृति ही सत्यं है। भारत ही शिवं है, शिव-पार्वती परिवार ही सुंदरम है...।































छत्तीसगढ़ के संस्कारधानी भिलाई से प्रकाशित ।

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

सदा बसन्तम् हृदयारविन्द्रे भवम भवामि सहितं नमामि....

सदा बसन्तम् हृदयारविन्द्रे भवम भवामि सहितं नमामि....
बसन्त पंचमी के पावन पर्व पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ....।
भारत  अपनी  प्राकृतिक  शोभा  के  लिये  विश्व  विख्यात  है।  इसे  ऋतुओं  का  देश  कहा  जाता  है।ऋतु-  परिवर्तन   का   जो  सुन्दर  क्रम  हमारे  देश  में  है,  वह  अन्यत्र  दुर्लभ  है।बसन्त  ऋतु  की  शोभा  सबसे  निराली  है।  बसन्त  ऋतु  को  ऋतुराज  कहते  हैं क्योंकि  यह  ऋतु  सबसे  सुहावनी,  अद्भुत,  आकर्षक  और  मन  में  उमंग  भर  देने  वाली है।  सचमुच  बसन्त  की  बासन्ती  दुनिया  की  शोभा  ही  निराली  होती  है।  यह  ऋतु  प्रकृति  के  लिये  वरदान  बनकर  आती  है। प्रकृति  में  सर्वत्र  यौवन  के  दर्शन  होते  हैं।  सारा  वातावरण  सुवासित  हो  उठता  है। चम्पा,  माधवी,गुलाब,  चमेली आदि  की  सुन्दरता  मन  को  मोह  लेती  है। कोयल  की  ध्वनि  कानों  में  मिश्री  घोलती  है।  बसन्त  का  आगमन  मनुष्य  जगत  में  भी विशेष  उल्लास  एवं  उमंगों  का  संचार  करता  है।  कवि  एवं  कलाकार  इस  ऋतु से  विशेष  प्रभावित  होते  हैं।  उनकी  कल्पना  सजग  हो  उठती  है।  इस  ऋतु  एक  बड़ी  विशेषता  यह  है  कि  इन  दिनों  शरीर  में  नए  रक्त  का  संचार  होता  है।आहार- विहार  अगर  ठीक  रखा  जाए तो  स्वास्थ्य  की  उन्नति  होती  है। इस  ऋतु में  मीठी  और  तली  वस्तुएं  कम  ख़ानी  चसहिये। चटनी, कांजी, खटाई  आदि का  उपयोग  लाभदायक  है। इस  ऋतु  को  मधु  ऋतु  भी  कहा  गया  है। भगवान  श्रीकृष्ण  ने  गीता  में  कहा  है  कि  मैं  ऋतुओं  में  बसन्त  हूँ।   यह  ऋतु  केवल  प्राकृतिक  आन्नद  का  ही  स्रोत  नहीं  बल्कि  सामाजिक  आन्नद  का  भी  स्रोत  है।
‘बसन्त  भ्रमणं पथ्यम्’  अर्थात्  बसन्त  में  भ्रमण  करना  पथ्य  है।

पुरतःपश्य वसन्तः

प्रणय कामिनि कोमलहृदये,पुरतःपश्य वसन्तः,।
हा हतभाग्ये नववयशीले,निकषा चास्ति न कान्तः।।1
वहति समीरो मंदं मंदं,नीत्वा सौरभ खाद्यम्।
अतिकुलमाला मत्ता विपिने,जनयति गुंजा वाद्यम्।।
कोकिल कूजति रसालविटपे,मा भव भ्राता भ्रान्तः ।।2
धरा सज्जिता तस्याःवदने,दिव्या पीत शाटिका,
खगकुल कलरब गुंजित मधुरा,भव्या सुमन वाटिका।।
गगनं स्वच्छं धरा समृद्धा,भानुः प्रीत्या शान्तः।।3
गंगा नीरं पीत्वा तीरे,स्मृत्वा हर हर गंगे।
भाले भस्म कण्ठे माला,निवसन् साधु संगे।।
सरित् व¬रायाः कृपा प्रसादात्,शिष्टः कोपि न प्रान्तः4
प्रणयकामिनि कोमलहृदये,पुरतःपश्य वसन्तः।
हा हतभाग्ये नव वयशीले,निकषा चास्ति न कान्तः 
द्वारा - समर्थ श्री (संस्‍कृतगंगा फेसबुकवर्गे)