ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

हमारे बारे में.

  ' राष्ट्र देवो भव:' अर्थात् राष्ट्र देव तूल्य पूज्य होता है, और 'राष्ट्रे वयं जागृयाम:'  अपने राष्ट्र के आमजनमानस को राष्ट्र के प्रति आस्थावान बनाते हुए राष्ट्र के संस्कृति की रक्षा करने हेतु लोगों में जागृति लाना ही परम कर्तव्य है।

संस्कृति की रक्षा क्यों...?

''भारतस्य प्रतिष्ठा द्वे संस्कृति संस्कृतस्तथा'' अर्थात् विश्व के मानचित्र  पर भारत को प्रतिष्ठित करने वाली दो वस्तु है पहला यहाँ की संस्कृति और दूसरा संस्कृत भाषा, यही  दोनों वस्तुएँ पूरे विश्व को नतमस्तक करने को विवश करता है। संस्कृति का अभिप्राय पारस्परिक भाईचारा जो उपसंस्कृति, लोक-संस्कृति एक दूसरे को जोड़ने का काम करती है, वहीं संस्कृत वह भाषा है, जो विश्व की सभी भाषाओं की जननी है, और भारतीय संस्कृति के सिद्धांत-सूत्र लिपी मानी जाती है। कहा गया है कि जिस देश को कमजोर करना हो तो सर्वप्रथम उस देश का कल्चर(संस्कृति) को समाप्त कर दो, ताकि बगैर युद्ध किये ही वह देश विखंडित हो जायेगा। अर्थात् देश की संस्कृति देश के अखण्डता का प्रतीक है, अत: इसकी रक्षा हरेक भारतीय का कर्तव्य है। संस्कृति की रक्षा तभी संभव है जब संस्कृति पोषक लिपी संस्कृत भाषा अथवा संस्कृत साहित्य की हम रक्षा करेंगे।
 यथा-
संस्कृतं नाम दैवीवाग् अन्वाख्याता महर्षिभि: ।
संस्कृतं च संस्कृतिश्च श्रेयसे समुपास्यताम् ।।

संस्कृत भाषा विश्व की समस्त भाषाओं में प्राचीनतम् तथा सर्वोत्तम भाषा है । संस्कृत भाषा ही भारत की प्राणभूत भाषा है तथा भारत वर्ष को एक सूत्र में बांधती है ।

क्या है ज्योतिष..और भारतीय यह 'अपरा' विद्या पूरे विश्व के लिए क्यों है चुनौती

आजकल तथाकथित ज्योतिषियों की भरमार है, जो ज्योतिष समाधान के नाम पर अनर्गल भ्रम मात्र फैलाने का कार्य कर रहे हैं, इससे न केवल लोगों का ज्योतिष से आस्था समाप्त हो रही है, बल्कि हमारे देश से 'अपरा' विद्या का क्षरण हो रहा है, जो चिन्ता का विषय है।  भारत खण्ड से भारत वर्ष एवं अब भारत वेदों से समृद्ध देश रहा है, जो संस्कृत भाषा में लिपीबद्ध है। वेद अपौरुषेय है जिसके सुगमता पूर्वक प्रचार-प्रसार हेतु बादरायण वेदव्यास जी ने चार भागों में विभाजित किया, जो क्रमश: ऋग, यजु, साम और अथर्व वेद के रुप में विद्यमान है, इन वेदों को समझने के लिए षड्वेदांग का ज्ञान होना नितांत आवश्यक है, जो इस प्रकार है-
 शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दसामिति ।
ज्योतिषामयनं चैव षडंगो वेद उच्यते ॥

शिक्षा (उच्चार शास्त्र), कल्पसूत्र, व्याकरण (शब्द/ व्युत्पत्ति शास्त्र), निरुक्त (कोश), छन्द (वृत्त), और ज्योतिष (समय/खगोल शास्त्र) झ्र ये छे वेदांग कहे गये हैं ।आगे थोड़ी आपको मैं गहराई में ले जाना चाहूँगा कि आखिरकार यह षड्वेदांग क्या हैं आइए इसको जानने का प्रयत्न करते हैं-
 वेद पुरुष के 6 अंग माने गये हैं- कल्प, शिक्षा, छन्द, व्याकरण, निरुक्त तथा ज्योतिष।मुण्डकोपनिषद  में आता है-
'तस्मै स हो वाच। द्वै विद्ये वेदितब्ये इति ह स्म यद्ब्रह्म विद्यौ वदंति परा चैवोपरा च॥
तत्रापरा ॠग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदोऽर्थ वेद: शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दोज्योतिषमिति। अथ परा यथा तदक्षरमधिगम्यते॥'
'अर्थात मनुष्य को जानने योग्य दो विद्याएं हैं-परा और अपरा। उनमें चारों वेदों के शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष- ये सब 'अपरा' विद्या हैं तथा जिससे वह अविनाशी परब्रह्म तत्व से जाना जाता है, वही 'परा' विद्या है।'

आपके जीवन का हर पल स्वर्णिम-पल में बदल सकता है एक ज्योतिषीय समाधान:


भारतीय ज्योतिष वह  'अपरा' विद्या हैं, जो भारत के अलावा अन्य किसी भी देश में अनूपलब्ध है, जो हमारे पूवर्जों द्वारा हमें सुगमता से समृद्ध किया है।  भारत की आर्थिक उपलब्धि से कई अधिक आध्यात्मिक स्तर पर संपूर्ण विश्व ने भारत के आध्यात्म ज्ञान, योग एवं ज्योतिष को सराहा है।
ज्योतिष को आज भी सही रूप में लोगों के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया है। अन्यथा वतर्मान में रहते हुए भविष्य का मार्गदर्शन देने वाला यह ईश्वरीय कृपा का अद्भुत वरदान है। ज्योतिष अगर अपनी सही गणना, ज्ञान एवं संकेतिक ज्ञान का सही समन्वय करें एवं जो व्यक्ति कुंडली का मार्गदर्शन श्रद्धा से प्राप्त करना चाहता है, उसे निश्चित रूप से ज्योतिष रूपी अमृत का सुखद लाभ प्राप्त होता है। ज्योतिष को वेद का नेत्र कहा गया है। समस्त नव ग्रह मानवीय जीवन में अपने कुंडली में राशि बल, स्थान बल, उच्च-नीच स्थिति, उनकी गति अर्थात शक्ति अनुसार शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं। इस  'अपरा' विद्या के माध्यम से अंतरीक्ष में टिमटिमाते असंख्य ताराओं को 108 पुंज रुपी नक्षत्र चरणों में , तथा इन 108 नक्षत्र चरणों को 27 नक्षत्रों में एवं इन 27 नक्षत्रों को 12 राशियों में और इन बारह राशियों को नवग्रहों के प्राकृतिक प्रभावों को एक छोटे से कागज पर जन्मांक चक्र में रेखांकित कर शिशु के भूत,भविष्य एवं वतर्मान का सटीक पूर्वानुमान लगाकर पुख्ता भविष्य कथन करना क्या यह  'अपरा' विद्या  रुपी विज्ञान नहीं है। हमारे ऋषि-महषिर्यों के बताये गये ज्योतिष-सिद्धांतों के आधार पर  मैंने असंख्य कुंडलियों का परिक्षण किया और उस जातक से जानना चाहा कि वास्तव में जो मैंने आपका भविष्य कथन किया है वह सत्य है, तो उन जातकों  (कुंडली धारक) प्रतिक्रिया पूणर्त: सापेक्ष रही। कुछ-कुछ तो भविष्य कथन की ऐसी अनुभव गम्य घटनाएँ सामने आती हैं जिससे मैं भी हतप्रभ हो जात हुँ। कुल मिलाकर ज्योतिष-विद्या आज पूरे विश्व के लिए चुनौतिपूर्ण विज्ञान है, आवश्यकता है योग्य ज्योतिष-शास्त्र  के विद्वानों से ज्योतिष सलाह की। एक ज्योतिषीय सलाह जीवन के हर पल को स्वर्णिम-पल में बदल सकता है। तो मै ग्रहों का भी प्रभाव हमारे जीवन पर रहता है। तद्नुसार  कुंडली द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त करके, सही एवं  सटीक नवग्रह उपाय द्वारा जीवन में सुखद परिवर्तन लाया जा सकता है। वैदिक ज्योतिषिय समाधान के लिए आप संपर्क कर सकते हैं, संपर्क करने की व्यवस्था आपको इस लिंक पर उपलब्ध है---http://www.jyotishkasurya.com

कोई टिप्पणी नहीं: