ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शनिवार, 31 मार्च 2012

९अप्रैल से 1५अप्रैल 2012 तक साप्ताहिक राशिफल

९अप्रैल से 1५अप्रैल 2012 तक साप्ताहिक राशिफल
 मेष:
आपके लिए ख़ुशी की बात यह है कि आप अविश्वसनीय रूप से अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। गणेशजी की भविष्यवाणी है कि इस अवधि के दौरान सफलता आपकी होगी। आपकी प्रगति परिवार के साथ खुशियां मनाने का अच्छा कारण होगी। जीवनसाथी और बच्चों के साथ संबंध आपको खुशी देगा।
वृषभ:
इस सप्ताह बढ़ता खर्च भी चिंता का एक और कारण हो सकता है। लेकिन व्यवसाय विस्तार की योजना को रोकने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि नई परियोजनाओं से आपकी वित्तीय स्थिति में सुधार होगा। यदि आप व्यावसायिक हैं तो आपको आकर्षक नौकरी मिल सकती है। गणेशजी कहते हैं आगे बढ़ें। मुश्किलें आ सकती हैं लेकिन उम्मीद न छोड़ें। गणेशजी कहते हैं यह समय भी जल्द ही बीत जाएगा।
मिथुन:
इन सप्ताह के दिनों आप, कार्य के अतिरिक्त आपके स्वास्थ्य पर भी आप ध्यान दें। आप को इस बात का एहसास नहीं होगा लेकिन आप अपने आप को थका देंगें। गणेश जी की सलाह है कि यदि स्वास्थ्य की छोटी सी ही समस्या हो लेकिन आप डाक्टर के पास अवश्य जाएं और बड़ी बीमारी होने से बचें।
कर्क:
घरेलू क्षेत्र में आपके प्रियजनों से आपके विवाद हो सकते हैं। जहां तक संबंधों का सवाल है यह आपके लिए अनुकूल समय नहीं है या ने कि आप अपने संबंध में या विवाह के क्षेत्र में असफल हो सकते हैं। चिन्ता न करें, हनुमानजी के आशीर्वाद आपके साथ है। यह समय चला जाएगा और आपका जीवन सहज हो जाएगा। मानसिक शांति के लिए ध्यान करें।
सिंह:
आप अपने संबंधों में या व्यावसायिक सांझेदारियों में सावधान रहें। तनावपूर्ण परिस्थतियों से या वार्तालाप से बच कर रहें जो कि आपको उदास कर दें। इसके अतिरक्त, किसी भी प्रकार के कानूनी कागज़़ात पर दस्तखत करने से पहले उसे अच्छी तरह से पढ़ लें। इस सप्ताह सिंह राशि के जातकों के लिए इस अवधि में प्रगति देख रहे हैं। किन्तु शर्तें लागू होती है।
कन्या:
 बदलते ग्रह गोचर से पारिवारीक संबंध विच्छेद को कटु स्वरूप में न होने दें। बहुत ही तीव्र गति से परिवर्तन होंगें कि आप उनके अनुकूल नहीं हो पाएंगें। उन्नति व विकास की गति की तरफ जाएं और शीघ्र ही आप यह जान महसूस करेंगें कि कइ परिस्थतियां आपके अनुकूल हुई है। इस सकारात्मक समय का लाभ उठाएं।
तुला:
आपके अच्छे कार्य से प्रभावित होकर आपके वरिष्ठ अधिकारी आपकी सराहना करेंगें। आपके व्यावसायिक उपलब्धियों के बारे में आपको कुछ अच्छी खबर मिलेगी! कार्य के अतिरिक्त, आपके दिमाग में वित्तीय और कानूनी मामले होंगें। स्वास्थ्य खराब होने से बचने के लिए आप अपने लिए और विश्राम के लिए कुछ समय निकालें।
वृश्चिक:
इस सप्ताह आपको शत्रु/रोग पक्ष से विशेष सावधानी बरतना होगा क्योंकि यह आपके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। आप अपने प्रियजनों के साथ रह कर अपने ध्यान को कुछ समय के लिए इसमें से हटा लें। इस समय आपको जिस प्यार और सहारे की आवश्यकता है वह इनसे मित्रों से मिल जाएगी। नये कार्यों की शुरूआत हो सकती है।
धनु:
इस सप्ताह आप बहुत धन अर्जित करेंगें और वित्तीय तौर पर सुरक्षित हो जाएंगें। आपको एक समझदार साथी, बहुत प्यार करने वाला परिवार और एक फलता फूलता व्यापार होगा। आपके सामने एक शानदार सप्ताह है। नए कार्य की नींव रखेंगे।
आधिकारिक तौर पर आपके लंबित कार्य बनेंगे, जो बहु प्रतिक्षीत है।
मकर:
 घर में मांगलिक कार्य एवं धार्मिक अनुष्ठानों और सामाजिक अवसरों आपको अत्यन्त व्यस्त रखेंगें। जिससे आपकी प्रतिष्ठा और सामाजिक सम्मान में बढ़ौत्तरी होगी। अति प्रचिन मित्र से मिलन होगा। रूका धन प्राप्त हो सकता है। पश्चिम दिशा की यात्रा होगी। नए मेहमान का आगमन हो सकता है।
कुंभ:
इस सप्ताह आपकी वित्तीय स्थिति कठिनाईयों भरी हो सकती है, अत: अपव्यय पर काबू रखें। व्यापारीक एवं सामाजिक तौर पर बहुत सारी चुनौतियां आपको थका सकती हैं, कृपया हिम्मत रखते हुए बौद्धिक क्षमता का परिचय देना होगा। माता-पिता व बड़े बुजूर्गों का सलाह लें। श्री हनुमानजी का ध्यान करने से आपको राहत मिलेगी।
मीन:
आगामी रणनीति आपकी सफल होगी। प्रतिस्पद्र्धात्मक शत्रुओं का दमन होगा। किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व से मिलन होगा। आस्था जगेगी। धार्मिक यात्राओं का दौर जारी रहेगा। काम के प्रति सजग रहें, उच्चाधिकारीयों की गाज गिर सकती है। पुत्र का किर्तिमान कार्य से प्रशन्नता होगी।

-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, '' ज्योतिष का सूर्य '' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-26, कोहका मेन रोड, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग(छ.ग.)

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२अप्रैल से ८ अप्रैल 2012 तक साप्ताहिक राशिफल

२अप्रैल से ८ अप्रैल 2012 तक

मेष
काम के मामले में आप बहुत अच्छे जा रहे हैं। लेकिन, आप व्यक्तिगत, व्यावसायिक और आर्थिक रूप से और बढऩा चाहते हैं। यहां दूरदर्शिता और ध्यान जीवन में उच्च लक्ष्य बनाने में मदद करेंगे। शुरू करने के साथ ही आप दूर और व्यापक यात्रा पर जा सकते हैं और नए अवसर आपके रास्ते में आएंगे। यदि जरूरत हो, तो आप अपना व्यावसायिक कौशल साबित करने के लिए काम से संबंधित अनुसंधान या विश्लेषण ले सकते हैं।
वृषभ

इस सप्ताह कुछ बदलने की संभावना नहीं है क्योंकि आप एक बार फिर जिम्मेदारियों में फंस सकते हैं। और इस समय, घरेलू मामले सबसे आगे आएंगे। परिवार के किसी करीबी सदस्य का स्वास्थ्य खऱाब होने से आप चिंतित हो सकते हैं। इसके अलावा, गणेशजी दुर्घटना या अस्पताल में भर्ती होने की आशंका भी व्यक्त करते हैं।
मिथुन
अब आप अपने अपरिहार्य कार्य को पूरे ज़ोश से करेंगें। इस पूर सप्ताह आप अपने व्यावसायिक लक्ष्यों और अपनी वित्तीय नीतियों को संशोधित करेंगें। इसके साथ ही साथ आप अपने कार्य को उत्कृष्टतम तरीके से निष्पादित करने के कारण आपको पुरस्कृत किया जाएगा और आप इसका उत्सव मनाएंगें।
कर्क
 इस अवधि के दौरान आप शान्त और धैर्यवान बने रहें। आपके घरेलू क्षेत्र में और व्यावसायकि क्षेत्र में ऐसी कुछ परिस्थितियां होगी जो आपको निराश और उदास कर सकती है। कार्य के क्षेत्र में आपको अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ सकता है। अपने वरिष्ठ अधिकारियों से विवाद न छेड़ें।
सिंह

अभी पिछले कुछ समय से बहुत सारे परिवर्तन हो रहे हैं। हालांकि शुरू-शुरू में आप इसके बारे में हिचकिचाहट अनुभव कर रहे थे लेकिन इस सप्ताह आप यह महसूस करेंगें कि ये कइ तरीके से आपके हित में हैं। वयक्तिक और व्यावसायिक लाभ होगा। इस अवधि के दौरान आप आद्यात्मिकता में भी रूची लेंगें।
कन्या:
आपके व्यवसायिक और वैकल्पिक क्षेत्र में परिवर्तन को देख रहे हैं। स्थान परिवर्तन, पदोन्नति और नया काम आपके पक्ष में है। व्यापार क्षेत्र में, आप उस संबंध में से बाहर निकलना चाहेंगें जो कि आपके लिए बोझिल हो रहा है और यह ऐसा करने के लिए सही समय है।
तुला :
आप अपनी महात्वाकांक्षाओं बड़े बड़े स्वप्नों को पूरा करने के लिए कार्यरत रहेंगे। प्रबंधनकारी और विश्लेषणात्मक कुशलताओं का उपयोग करते हुए आप संशोधन और विकास, योजना और कार्यान्वयन से संबंधित गतिविधियों में इस सप्ताह काफी व्यस्त होंगें। आप बैठकों, सम्मेलनों, नये ग्राहकों और सहकर्मियों में व्यस्त होंगें और लाभदायक सौदें करेंगें।
वृश्चिक
आप अपने स्वप्नों की पूर्ति में अनवरत लगे रहना उचित है। आपकी राह में आने वाले सभी अवसरों का भरपूर लाभ उठावें। आप अपने व्यापार के निर्माण के लिए नये और कुशल व्यक्तियों को आमंत्रित करेंगें। यह छोटा सा अभियान आपको एक बहुत बड़े व्यापार की ओर ले जाएगा। किन्तु बीच बीच में कुछ तनाव और चिन्ताओं के समय आएंगें।
धनु
आप अपने संबंध को अगले स्तर तक ले जाएंगें। आप अपनी मुग्धावस्था से परे हो चुके हैं और अब आप अपने संबंध को एक बंधन में बांधना चाहेंगें। जो लोग अपने संबंध में प्रतिबद्घ है वे आनन्ददायी क्षणों को बिताएंगें। संबंध में स्वतंत्रता और पारदर्शिता इस संबंध के बंधन को और अधिक मजबूत बनाएंगें। जहां तक आपके व्यापार का संबंध है आप बहुत अच्छा करेंगें।
मकर
पिछले सप्ताह का दौर ज़ारी रहेगा और आपकी सारी क्रियायें परिवार-केंद्रीत होगी। तथापि, आपके जीवन के दूसरे पहलूओं में बहुत कुछ घट रहा है जिससे आप असंमजस की स्थिति में आ जाएंगें। आपको और अधिक समय काम करना पड़ेगा जबकि वित्त से संबंधित मामलों को निपटाना पड़ेगा।
कुंभ

इस सप्ताह आपके धैर्य और आपकी इच्छाशक्ति की परीक्षा होगी। कुछ अनहोनी घटनाएं आपकी मानसिक शांति को भंग करेंगी। आपको विचलित देखकर आपके मित्र और आपके परिवारजन आपके तनाव को दूर करने का प्रयत्न करेंगें। सामाजिक समारोहों में भाग लेने से , विचारों का आदान-प्रदान करने से, छुटटियों पर जाने से आपको नवपल्ल्वित कर देंगें।
मीन
इस समय के दौरान उत्कृष्ट कार्य होने से आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। इस सप्ताह आप जिस चीज को भी हाथ धरेंगें वे सफल होगी! गोचरीय ग्रहों का आप पर आर्शीवाद बरसा रहा है। कार्यालयीन दौरें और यात्राएं, बैठकें और सम्मेलनों, साक्षात्कारों और सहयोगों -ये कुछ ऐसी गतिविधियां हैं जो आपको व्यस्त रखेगी। मीडिय़ा से संबद्घ व्यक्ति इस सप्ताह विशेष ध्यान का केन्द्र बनेंगें।

-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, '' ज्योतिष का सूर्य '' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-26, कोहका मेन रोड, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग(छ.ग.)
मोबा.नं.09827198828, jyotishkasurya@gmail.com  

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

ज्योतिष में रोग निर्धारण

ज्योतिष में रोग निर्धारण
रोग स्थान की जानकारी प्राप्त करने के योग्य होने के लिए यह समझना आवश्यक है कि शरीर के विभिन्न अंग जन्मपत्री में किस प्रकार से निरुपित हैं. दुर्भाग्य से शास्त्रीय ग्रन्थ  इस दिशा में अल्प सूचनाएं ही प्रदान करते हैं. सामान्यत: वास्तविक प्रयोग किए जाएं तो वे सूचनाएं आगे शोध के लिए प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है. इस अध्याय में उन विशेष मूल नियमों को बताया गया है जो रोग का स्थान निश्चित करने में सहायक हों तथा अगले अध्याय में दिए गए नियमों के साथ रोग की प्रकृति निश्चित करने में भी निर्णायक हो.
कालपुरुष विचार |

कालपुरुष शब्द का प्रयोग प्राय: ज्योतिष में होता है. समस्त भचक्र को आवृत करते हुए एक अलौकिक मानव की कल्पना की गई है. जिसे कालपुरुष कहा गया है. भचक्र की विभिन्न राशियां जिस अंग पर पड़ती है. वह राशि उसी अंग का प्रतिनिधित्व करती है.

वामन पुराण में भचक्र की विभिन्न राशियां भगवान शिव के शरीर को किस प्रकार इंगित करती है, उसके विषय में बताया गया है. भगवान शिव का शरीर वहां कालपुरुष का प्रतिनिधित्व करता है. अधिकांश ज्योतिष ग्रन्थ मुख्य रूप से थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ वामन पुराण में बताए गए वर्णन से सहमत है.
कालपुरुष के शारीरिक अंग |

मेष - सिर

वृषभ - चेहरा

मिथुन - कंधे, गर्दन तथा स्तनमध्य

कर्क - ह्रदय

सिंह - पेट

कन्या - नाभि क्षेत्र (कमर और आंते)

तुला - निचला उदर

वृश्चिक - बाहरी जननांग

धनु - जांघे

मकर - दोनों घुटने

कुम्भ - टांगें

मीन- पैर

यह देखा जा सकता है कि थोड़ा विवाद इन मुख्य भागों में है. मुख्य अंतर यह है कि वराहमिहिर के अनुसार ह्रदय का क्षेत्र कालपुरुष के चौथे भाव पर पड़ता है जो कर्क राशि है, जबकि वामनपुराण के अनुसार यह कालपुरुष के पांचवें भाव पर पड़ता है, यहाँ सिंह राशि है. वराहमिहिर का राशि विभाग आसान है.
चिकित्सा जगत में भावों के कारक तत्व |

चिकित्सा ज्योतिष के प्रसंग में कुंडली के भावों के कारकत्व का विचार करना अब संगत होगा. यह ध्यान देना चाहिए कि शरीर का दायां भाग कुंडली के प्रथम से सप्तम भाव तक तथा बायां भाग सप्तम से प्रथम भाव तक के भावों से प्रदर्शित होता है.

प्रथम भाव : सिर, मस्तिष्क, सामान्यता: शरीर, बाल, रूप, त्वचा, निद्रा, रोग से छुटकारा, आयु, बुढापा तथा कार्य करने की योग्यता.

द्वितीय भाव : चेहरा, आँखें (दायी आंख), दांत, जिव्हा, मुख, मुख के भीतरी भाग, नाक, वाणी, नाखून, मन की स्थिरता.

तृतीय भाव : कान (दायाँ कान),  गला, गर्दन, कंधे, भुजाएं, श्वसन प्रणाली, भोजन नलिका, हंसिया, अंगुष्ठ से प्रथम अंगुली तक का भाग, स्वप्न, मानसिक अस्थिरता, शारीरिक स्वस्थता तथा विकास.

चतुर्थ भाव : छाती (वक्ष स्थल ), फेफड़े, ह्रदय (एक मतानुसार), स्तन, वक्ष स्थल की रक्त वाहिनियाँ, डायफ्राम.

पंचम भाव : ह्रदय, उपरी उदर तथा उसके अवयव जैसे अमाशय, यकृत, पित्त की थैली, तिल्ली, अग्नाशय, पक्वाशय, मन, विचार, गर्भावस्था, नाभि.

छठा भाव : छोटी आंत,  आन्त्रपेशी, अपेंडिक्स, बड़ी आंत का कुछ भाग, गुर्दा, ऊपरी मूत्र प्रणाली , व्याधि, अस्वस्थता, घाव, मानसिक पीड़ा, पागलपन, कफ जनित रोग, क्षयरोग, गिल्टियाँ, छाले वाले रोग, नेत्र रोग, विष, अमाशयी नासूर.

सप्तम भाव : बड़ी आंत तथा मलाशय, निचला मूत्र क्षेत्र, गर्भाशय, अंडाश,  मूत्रनली.

अष्टम भाव : बाहरी जननांग, पेरिनियम, गुदा द्वार, चेहरे के कष्ट, दीर्घकालिक या असाध्य रोग, आयु, तीव्र मानसिक वेदना.

नवम भाव : कूल्हा, जांघ की रक्त वाहिनियाँ, पोषण.

दशम भाव : घुटने , घुटने के जोड़ का पिछ्ला रिक्त भाग.

एकादश भाव: टांगें , बायाँ कान, वैकल्पिक रोग स्थान, आरोग्य प्राप्ति.

द्वादश भाव : पैर, बांयी आंख, निद्रा में बाधा, मानसिक असंतुलन, शारीरिक  व्याधियां, अस्पताल में भर्ती  होना, दोषपूर्ण अंग, मृत्यु.
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ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे


बुधवार, 28 मार्च 2012

संस्कृत बनेगी नासा की भाषा

Monday, March 26, 2012

संस्कृत बनेगी नासा की भाषा


संस्कृत बनेगी नासा की भाषा
 देवभाषा संस्कृत की गूंज कुछ साल बाद अंतरिक्ष में सुनाई दे सकती है। इसके वैज्ञानिक पहलू का मुरीद हुआ अमेरिका नासा की भाषा बनाने की कसरत में जुटा है। इस प्रोजेक्ट पर भारतीय संस्कृत विद्वानों के इन्कार के बाद अमेरिका अपनी नई पीढ़ी को इस भाषा में पारंगत करने में जुट गया है। गत दिनों आगरा दौरे पर आए अरविंद फाउंडेशन (इंडियन कल्चर) पांडिचेरी के निदेशक संपदानंद मिश्रा ने जागरण से बातचीत में यह रहस्योद्घाटन किया। उन्होंने बताया कि नासा के वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने 1985 में भारत से संस्कृत के एक हजार प्रकांड विद्वानों को बुलाया था। उन्हें नासा में नौकरी का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने बताया कि संस्कृत ऐसी प्राकृतिक भाषा है, जिसमें सूत्र के रूप में कंप्यूटर के जरिए कोई भी संदेश कम से कम शब्दों में भेजा जा सकता है। विदेशी उपयोग में अपनी भाषा की मदद देने से उन विद्वानों ने इन्कार कर दिया था। इसके बाद कई अन्य वैज्ञानिक पहलू समझते हुए अमेरिका ने वहां नर्सरी क्लास से ही बच्चों को संस्कृत की शिक्षा शुरू कर दी है। नासा के मिशन संस्कृत की पुष्टि उसकी वेबसाइट भी करती है। उसमें स्पष्ट लिखा है कि 20 साल से नासा संस्कृत पर काफी पैसा और मेहनत कर चुकी है। साथ ही इसके कंप्यूटर प्रयोग के लिए सर्वश्रेष्ठ भाषा का भी उल्लेख है। स्पीच थैरेपी भी : वैज्ञानिकों का मानना है कि संस्कृत पढ़ने से गणित और विज्ञान की शिक्षा में आसानी होती है, क्योंकि इसके पढ़ने से मन में एकाग्रता आती है। वर्णमाला भी वैज्ञानिक है। इसके उच्चारण मात्र से ही गले का स्वर स्पष्ट होता है। रचनात्मक और कल्पना शक्ति को बढ़ावा मिलता है। स्मरण शक्ति के लिए भी संस्कृत काफी कारगर है। मिश्रा ने बताया कि कॉल सेंटर में कार्य करने वाले युवक-युवती भी संस्कृत का उच्चारण करके अपनी वाणी को शुद्ध कर रहे हैं। न्यूज रीडर, फिल्म और थिएटर के आर्टिस्ट के लिए यह एक उपचार साबित हो रहा है। अमेरिका में संस्कृत को स्पीच थेरेपी के रूप में स्वीकृति मिल चुकी है।
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=20&edition=2012-03-26&pageno=2

मंगलवार, 27 मार्च 2012

अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया

"न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्।
न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गङग्या समम्।।
" वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। वैशाख मास की विशिष्टता इसमें प़डने वाली अक्षय तृतीय के कारण अक्षुण्ण हो जाती है। भारतवर्ष संस्कृति प्रधान देश है। हिन्दू संस्कृति में व्रत और त्यौहारों का विशेष महत्व है। व्रत और त्यौहार नयी प्रेरणा एवं संस्कृति का सवंहन करते हैं। इससे मानवीय मूल्यों की वृद्धि बनी रहती है और संस्कृति का निरन्तर परिपोषण तथा सरंक्षण होता रहता है। भारतीय मनीषियों ने व्रत-पर्वो का आयोजन कर व्यक्ति और समाज को पथभ्रष्ट होने से बचाया है।
भारतीय काल गणना के अनुसार चार स्वयंसिद्ध अभिजित् मुहूर्त है -
1. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुडी पडवा)।
2. आखातीज (अक्षय तृतीया)।
3. दशहरा।
4. दीपावली के पूर्व की प्रदोष तिथि। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को "अक्षय तृतीया" या "आखा तृतीया" अथवा "आखातीज" भी कहते हैं। "अक्षय" का शब्दिक अर्थ है - जिसका कभी नाश (क्षय) न हो अथवा जो स्थायी रहे। स्थायी वहीं रह सकता है जो सर्वदा सत्य है। सत्य केवल परमात्मा है जो अक्षय, अखण्ड और सर्वव्यापक है। यह अक्षय तृतीया तिथि "ईश्वर तिथि" है। इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था इसलिए इनकी जयंतियां भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है। परशुरामजी की गिनती चिंरजीवी महात्माओं में की जाती है। अत: यह तिथि "चिरंजीवी तिथि" भी कहलाती है। चारों युगों - सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग में से त्रेतायुग का आरंभ इसी आखातीज से हुआ है जिससे इस तिथि को युग के आरंभ की तिथि "युर्गाद तिथि" भी कहते हैं।
भारतीय परिवेश में अक्षय तृतीया का महत्व:
1. बद्रीनारायण - दर्शन तिथि : इस तिथि को चारों धामों में से उल्लेखनीय एक धाम भगवान श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं। दर्शनार्थियों एवं भक्तों की अपार भी़ड रहती है। भक्तों के द्वारा इस दिन किए हुए पुण्य कर्म, त्याग, दान, दक्षिणा, जप-तप, होम-हवन, गंगा-स्नान आदि कार्य अक्षय की गिनती में आ जाते हैं। भगवान भक्तों का प्रसाद प्रेम से ग्रहण करते हैं।
2. वृंदावन में श्रीबिहारी जी के दर्शन : अक्षय तृतीया को ही वृंदावन में श्रीबिहारीजी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक बार ही होते हैं। देश के कौने-कौन से श्रद्धालु भक्त जन चरण दर्शन के लिए वृंदावन पधारते हैं।
3. आत्म-विश्लेषण तथा आत्म निरीक्षण तिथि: यह दिन हमें स्वयं को टटोलने के लिए आत्मान्वेषण, आत्मविवेचन और अवलोकन की प्रेरणा देने वाला है। यह दिन "निज मनु मुकुरू सुधारि" का दिन है। क्षय के कार्यो के स्थान पर अक्षय कार्य करने का दिन है। इस दिन हमें देखना-समझना होगा कि भौतिक रूप से दिखाई देने वाला यह स्थूल शरीर, संसार और संसार की समस्त वस्तुएं क्षय धर्मा है, अक्षय धर्मा नहीं है। क्षय धर्मा वस्तुएं - असद्भावना, असद्विचार, अहंकार, स्वार्थ, काम, क्रोध तथा लोभ पैदा करती है जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में आसुरीवृत्ति कहा है जबकि अक्षय धर्मा सकारात्मक चिंतन-मनन हमें दैवी संपदा की ओर ले जाता है। इससे हमें त्याग, परोपरकार, मैत्री, करूणा और प्रेम पाकर परम शांति पाते हैं अर्थात् व्यक्ति को दिव्य गुणों की प्राçप्त होती है। इस दृष्टि से यह तिथि हमें जीवन मूल्यों का वरण करने का संदेश देती है - "सत्यमेव जयते" की ओर अग्रसर करती है।
4. नवान्न का पर्व : वैशाख शुक्ल तृतीया को मनाया जाने वाला यह व्रत बहुश्रुत और बहुमान्य है। बुन्देलखण्ड में यह व्रत अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक ब़डी धूमधाम से मनाया जाता है। कुमारी कन्याएं अपने भाई, पिता, बाबा तथा गाँव-घर के, कुटुम्ब के लोगों को सगुन बांटती है औरा गीत गाती है। इस तिथि को सुख-समृद्धि और सफलता की कामना से व्रतोत्सव के साथ ही अस्त्र, शस्त्र, वस्त्र, आभूषण आदि बनवायें, खरीदें और धारण किए जाते हैं। नई भूमि का क्रय, भवन, संस्था आदि का प्रवेश इस तिथि को शुभ फलदायी माना जाता है।
5. परशुराम जयंती : इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था, इसीलिए इनकी जयंतियां भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है। श्री परशुरामजी प्रदोष काल में प्रकट हुए थे इसलिए यदि द्वितीया को मध्याह्न से पहले तृतीया आ जाए तो उस दिन "अक्षय तृतीया", "नर-नारायण जयंती", "हयग्रीव जयंती" सभी संपन्न की जाती है। इसे "परशुराम तीज" भी कहते हैं। अक्षय तृतीया ब़डी पवित्र और सुख सौभाग्य देने वाली तिथि है।
6. सामाजिक पर्व के रूप में अक्षय तृतीया : आखा तीज का दिन सामाजिक पर्व का दिन है। इस दिन कोई दूसरा मुहूर्त न देखकर स्वयंसिद्ध अभिजित् शुभ मुहूर्त के कारण विवाहोत्सव आदि मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं।
7. कृषि उत्पादन के संबंध में अक्षय तृतीया : किसानों में यह लोक विश्वास है कि यदि इस तिथि को चंद्रमा के अस्त होते समय रोहिणी आगे होगी तो फसल के लिए अच्छा होगा और यदि पीछे होगी तो उपज अच्छी नहीं होगी। अक्षय तृतीया में तृतीया तिथि, सोमवार और रोहिणी नक्षत्र तीनों का सुयोग बहुत श्रेष्ठ माना जाता है। इस संबंध में भड्डरी की कहावतें भी लोक में प्रचलित है।
दान के पर्व के रूप में : अक्षय तृतीया वाले दिन दिया गया दान अक्षय पुण्य के रूप में संचित होता है। इस दिन अपनी सामथ्र्य के अनुसार अधिक से अधिक दान-पुण्य करना चाहिए। इस तिथि पर ईख के रस से बने पदार्थ, दही, चावल, दूध से बने व्यंजन, खरबूज, लड्डू का भोग लगाकर दान करने का भी विधान है। अक्षय ग्रंथ गीता : गीता स्वयं एक अक्षय अमरनिधि ग्रंथ है जिसका पठन-पाठन, मनन एवं स्वाध्याय करके हम जीवन की पूर्णता को पा सकते हैं, जीवन की सार्थकता को समझ सकते हैं और अक्षय तत्व को प्राप्त कर सकते हैं। अक्षय तिथि के समान हमारा संकल्प दृढ़, श्रद्धापूर्व और हमारी निष्ठा अटूट होनी चाहिए। तभी हमें व्रतोपवासों का समग्र आध्यात्मिक फल प्राप्त हो सकता है।

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

सुनना हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है

सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं

सुनना हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। सुनाने से कहीं ज्यादा सुनने का महत्व है। सुनने का महत्व, जानने के लिये हो - यह जरूरी नहीं। जानने के लिये तो देखना-सुनना है ही। सुनने के लिये भी सुनना है।
जीवन की आपाधापी में सुनना कम हो गया है। तनाव और व्यग्रता ने सुनाना बढ़ा दिया है।
धैर्य पूर्वक सुनना प्रबन्धन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। दिन भर में अनेक लोग आपके पास आते हैं। सुनने के लिये नहीं आते। सुनाने के लिये आते हैं। सुन लेना सेफ्टी वाल्व सा होता है। मेरे पास आने वाले भी आशा ले कर आते हैं‍। किसी को न सुना तो वह नाते-रिश्तेदारी खोजता है सामीप्य जताने के लिये। वह न होने पर आधा किलो मिठाई का डिब्बा ठेलते हुये सुनाने की कोशिश करता है। कुछ लोग फिर भी नहीं सुनते तो क्रोध या भ्रष्टाचार का सहारा लेता है सुनाने वाला।सुमिरनी
सुनने के लिये एकाग्रता महत्वपूर्ण है और एकाग्रता के लिये यह यन्त्र मुझे बड़े काम का लगता है।»
जीवन की आपाधापी में सुनना कम हो गया है। तनाव और व्यग्रता ने सुनाना बढ़ा दिया है।

फिर मुझे याद आता है - उत्तरकाण्ड का प्रसंग। राम सवेरे सरयू में स्नान करते हैं। उसके बाद राज-सभा में बैठते हैं। साथ में विप्र और सज्जन लोग हैं। वशिष्ठ मुनि प्रवचन करते हैं। वेद पुराण बखानते हैं। राम सब जानते हैं। पर फिर भी सुनते हैं:

    प्रातकाल सरऊ करि मज्जन। बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन।।
    बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं।।

तुलसी बाबा ने यह राम की महिमा बताने के लिये कहा है; पर प्रबंधन का भी यह महत्वपूर्ण सूत्र है। कोई सुना रहा है तो आपको धैर्य पूर्वक सुनना चाहिये। सुनना कुशल प्रबंधक होने का एक अनिवार्य अंग है।

सुनो तो!

सुनने की कुंजियां:

    Ear सुनना केवल शब्द का सुनना नहीं है। व्यक्ति के हाव-भाव, अपेक्षायें, भय, ’वह क्या नहीं कहना चाह रहे’ आदि को जानना - यह सब समग्र रूप से सुनने का अंग है।
    सुनने में छोटे-छोटे सिगनल ग्रहण करने के लिये अपने एण्टीना को जाग्रत रखें।
    सुनने वाले में सुनाने वाले की अपेक्षा कम योग्यता हो तो ग्रहण करने में कठिनाई हो सकती है। अत: बेहतर सुनक १ बनने के लिये अपनी योग्यतायें सतत विकसित करनी चाहियें।
    मानव के प्रति आदर और सुनने की प्रक्रिया के धनात्मक परिणाम के प्रति आशान्वित रहें। व्यग्र न हों।
    सुनने की प्रक्रिया में सुनाने वाले के प्रति आदर और सह-अनुभूति अनिवार्य तत्व है। आप तिरस्कार भाव से नहीं सुन सकते।
    सुनते समय अपनी प्रतिक्रिया के प्रति नहीं; सुनने के प्रति ही जागरूक रहें। पूरा सुनने के बाद ही अपना रिस्पॉन्स तय करें।

मैँ कोई बहुत बढ़िया सुनक नहीं हूं। पर पिछले कुछ दिनों से अभ्यास कर रहा हूं। यह ऊपर जो लिखा है, उसी प्रॉसेस में रेण्डम सोच का अंग है।
१. सुनक यानी सुनने वाला/श्रोता - मुझे शब्द गढ़ने के लिये न कोसें! श्रोता में तो प्रवचन ग्रहण करने का भाव आता है, सुनने वाले का नहीं।
(मानसिक हलचल) से साभार यू आर एल .http://halchal.gyandutt.com/2007/12/blog-post.हटमल) 

बुधवार, 21 मार्च 2012

हिन्दू और हिन्दू नववर्ष 2069

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हिन्दू और हिन्दू नववर्ष 2069

हिन्दू शब्द की उत्पत्ति सिन्धु शब्द से हुई। सिन्ध नदी के आसपास के क्षेत्र को सिन्धु कहाँ गया। कालांतर में सिन्धु घाटी की सभ्यता का विस्तार हुआ । यह सिन्धु शब्द ईरानी शब्द में बदलकर हिन्दु हो गया। हिन्दु से हिन्द बन गया । ईरानी में 'स' का 'ह' हो जाता है। यह शब्द सिन्दु से रूपांतरित होकर हिन्दु व हिन्दु से हिन्दू बन गया। ईरानी में 'सप्त' का 'हफ्त' और सप्ताह का हफ्ता व सिन्धु का हिन्दु शब्द बनता है। हिन्दु शब्द भारत का सूचक हो गया है। भारत हिन्दुस्तान कहा जाने लगा। यूनानी में इंदिका या अंग्रजी में इण्डिया का विकसित रूप है। हिन्दी शब्द का सबसे पहले प्रयोग जफ़रनामा पुस्तक में 1424 ई. में किया गया । आर्यों के आसपास चहँुओर बसे होने के कारण इसे आर्यावत्र्त कहा गया। आर्य का अर्थ सभ्य, शतुन्तला व दुष्यंत के पुत्र भरत के कारण इसे भारतवर्ष कहा गया। भारत के साथ जुड़े शब्द वर्ष का अर्थ सन् नहीं बल्कि भू-खण्ड है। भारत वर्ष याने भारत का भूखण्ड । हिन्दुस्तान नामकरण मुगलों के द्वारा किया गया था।

हिन्दुत्व क्या है?

    विद्वानों ने हिंन्दुत्व को धर्म नहीं, एक जीवन पद्धति  या दर्शन कहा है। केरी ब्राउन ने इसे हिन्दुओं की विचारधारा कहा है। डॉ. राधाकृष्णन ने कहा है ''हिन्दुत्व उन लोगों का समुदाय है, जो सत्य को पाने के लिए दृढ़ता के साथ प्रयत्नशील हैं इस हिन्दुत्व में मूर्ति पूजा, अवतार मान्यता, पुनर्जीवन, स्वर्ग-नर्क की धारणा, कृतज्ञता, कृपा, क्षमा, दया, अहिंसा, परोपकार, माता,पिता, गुरू सेवा, संयम,इंद्रिय निग्रह, मन ,वचन ,कर्म की शुद्धता, परिवारवाद माता-पिता की कल्पना एवं पूजा, स्त्रियों के प्रति आदर, परधर्म का आदर मुख्य रूप से शामिल हैं। शून्य का आविष्कार व विश्व को दाशमिक प्रणाली देने का कार्य आर्यभट्ट जैसे हिन्दुओं ने किया। ई.पू.700 में हिन्दुओं का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला में स्थापित हुआ। संस्कृत को यूरोपीय भाषाओं की जननी माना गया है। महर्षि चरक ने 2500 वर्षों पूर्व आयुर्वेद पद्धति का सूत्रपात किया नौका परिवहन हिन्दुस्तान में 6000 वर्षो पूर्व शुरू हुआ। भास्कराचार्य ने एक वर्ष (365.2587 5484 दिन)में पृथ्वी के द्वारा सूर्य की एक परिक्रमा पूर्ण होना माना। इस कालावधि को 1 वर्ष की संज्ञा दी गयी। 2600 वर्ष पूर्व सुक्रत ने शल्य क्रिया का कार्य किया। ये सभी विषय वस्तुएँ हिन्दुत्व व हिन्दुस्तान के सनातन होने की साक्षी हैं।

हिन्दु घर की अनिवार्य वस्तुएँ :

पुराने समय में 'ऊँ' का जाप, गीता, रामायण ,शंख दीप प्रज्जवलन दो वक्त की आरती ,रूद्राक्ष ,मोरपंख,तुलसी,कदलीवृक्ष,गोमाता ,नारियल,शिवलिंग, त्रिशूल/ कमण्डलु,गंगाजल, गोबर लेपन, घर में मंदिर (पूला स्थल) हिन्दू परिवार के लिए आवश्यक माना जाता था।

वर्तमान परिदृश्य और भारतीय परिवार :

भारत के तमाम परिवार, वर्तमान में पूर्वी संस्कृति को भूलकर पश्चिमी संस्कृति के रंग में रंगते जा रहे हैं। आज भारतीय परिवारों में तुलसी, गाय, माता-पिता (अलगाव के कारण) गोबर लेपन (टाइल्स के कारण) सुबह-शाम आरती, ऊपरोक्त सभी अनिवार्य वस्तुओं की कमी हो गयी है। अब वे हैप्पी बर्थ डे, हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी वेलेण्टाइन डे की रट लगाए हुए हैं। माता, मॉम (मोम)हो गयीं, पिता डैड (मृत) हो गये। 'जीÓलगाना भूलते जा रहे हैं। आप ऐसा कर लो। (शुद्ध: आप ऐसा कर लीजिए) जैसे वाक्य प्रचलित हो गये हैं। क्या यह सभ्यता की निशानी है? कि हम एक वाक्य भी शुद्ध नहीं बोल सकते। आाज अभिमान , आदर से बड़ा हो गया हैं । नयी पीढ़ी को सीख लेकर आदर सूचक वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए। टीवी की अप-संस्कृति ने षडय़ंत्र रचना,बाप- बेटे का,सास -बहु का झगड़ा, ननद -भौजाई का मन मुटाव ही ज्यादा परोसा है। नैतिकता खत्म सी हो गयी है। हिन्दू नववर्ष हमें इस पर चिन्तन करने के लिए प्रेरित करता है।

हिन्दू नववर्ष कब ? क्यों ? कैसे?

चैत्र मास की प्रतिप्रदा (शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि)से हिन्दू नववर्ष का आरंभ होता है।आज हम 1 जनवरी को ही नया वर्ष मान बैठे हैं। इस दिन बाजे -गाजे धूम धड़ाके , आतिशबाजी, ग्रीटिंग कार्ड,  की प्रथा चल पड़ी है। तात्पर्य यह है कि हम वास्तविक भारतीय नववर्ष को भूलकर विदेशी नववर्ष में खुश रहने लगे हैं । यानी बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना।

टैक्स /बजट वाले लोग 1 अप्रैल से नया सत्र (वर्ष) मानते हैं जबकि एक अप्रैल मूर्ख दिवस होता है। चैत्र प्रतिपदा से रामनवमी की शुरूआत हो जाती है। हिन्दू नववर्ष की शुरूआत चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नव संवत्सर के रूप में होती है। इसे बहुत ही पवित्र तिथि मानी गयी है। यह भी मान्य विचार है कि इसी निथि से प्रजावत्सल सृष्टिकत्र्ता भगवान ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरंभ किया था।

चैत्र मासि जगद् ब्रहा्रा ससर्ज प्रथमेऽह्नि।

शुक्ल पक्षे समग्रेतु सदा सूर्योदये सति।।

इसी तिथि को प्रजापालक भगवान श्री हरि विष्णु के आदि अवतार मत्स्य रूप का आविर्भाव  माना जाता है। युगों के प्रथम क्रम पर आने वाले सतयुग का आरंभ इसी तिथि से हुआ। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसी दिन सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने शकों पर विजय श्री प्राप्त की थी। इस विजयगाथा की याद को चिरस्थायी बनने के लिए महाराज विक्रमादित्य ने इस तिथि का चयन विक्रम सम्वत् की शुरूआत के लिए किया । आगामी विक्रम संवत् 2069 है। इससे पूर्व हिन्दुओं के पास साल की गिनती का साधन नही था। महाराज विक्रमादित्य अपनी न्याय प्रियता के लिए पूरे विश्व में विख्यात हैं। प्रतिपदा के दिन ही भगवान श्री राम का राज्याभिषेक हुआ। इसी तरह द्वापर में धर्मराज युधिष्ठिर व वर्तमान युग में छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक चैत्र प्रतिपदा के दिन ही हुआ। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म हिन्दू नववर्ष के आरंभ के दिन 1889 में हुआ था। इसी तिथि को धर्मगुरू झूलेलाल के जन्म  दिन के रूप में मनाते हैं। राजा विक्रमादित्य के शासनकाल में ही चीनी यात्री फाह्यान का भारत आगमन हुआ था।  वैसे तो प्रत्येक माह का पहला पक्ष कृष्ण पक्ष ही होता है। चैत्र मास का पहला पक्ष भी कृष्ण होता है फिर नये सम्वत की शुरूआत शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि (15 दिनों के बाद) क्यों ? इसके  उत्तर में इस लेख के ऊपर में बहुत से कारण गिनाये गए हैं। एक कारण की संभावना इस तर्क से भी बनती है। तात्कालीन पंडितों /ज्योतिषियों ने महाराज विक्रमादित्य को उक्त कारणों के अलावा यह भी बताया/ सुझाया होगा कि महाराज कृष्ण पक्ष अंधेरा का पक्ष है। अंधेरा शब्द ही अपने आप में अप्रिय, भयानक, दुष्कार्य,छलकपट, अपयश का द्योतक है। ये सभी दुष्कृत्य या तो अंधेरे में होते हैं या अंधेरे में रखकर किया जाता है। हमारा इष्ट तो सूर्य हैं । सूर्य यानी प्रकाश, प्रकाश अर्थात् ज्ञान। अंधेरा कल्मषता लेकर आता है, यह कालिमा किसी को पसंद नहीं है। रात्रि के अंधकार में सभी चीजें धूमिल हो जाती हैं। सिर्फ काले रंग का साम्राज्य रह जाता है। प्रकाश के अभााव में सब काला ही काला दिखाई देता है। सभी का पृथक अस्तित्व तब दिखता है जब हम प्रकाश करते हैं या सूर्योदय होता है। अत: इससे बचना सब के लिए शुभमंगल होगा । इस प्रकार सम्वत् की शुरूआत कृष्ण पक्ष को छोड़कर शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि से की गयी। हालाकी उपरोक्त बातें ज्योतिषीय सिद्धांत से सम्बन्धित नहीं हैं, यह व्यावहारीक परिदृश्यों पर आधारित मेरा आकलन मात्र है। ज्योतिषीय एवं खगोलशास्त्र में इस विषय पर गूढ़ संविधान-सूत्र हैं, जिसे यहाँ समझा पाना आसान नहीं है।

    हिन्दू नववर्ष का यह पर्व ऐसा है जब मनुष्यों और प्रकृति के बीच सुखद सामंजस्य स्थापित होता है। पूरी पृथ्वी में नयी ऊर्जा , नव चेतन, नवीन प्राण संचार होता है क्योंकि यह प्रकृति व ब्रह्माजी के सृष्टिकर्म की वर्षगाँठ होती है। सम्पूर्ण मानव जीवन हर्ष से रोमांचित व आनन्द से आह्लादित हो जाता है। हिन्दू नववर्ष का यह उत्सव हमें वर्षभर चेतना व आनंद से परिपूरित रखता है। आज पाश्चात्य- संस्कृति के चकाचौंध में हम इस महत्वपूर्ण दिन की उपेक्षा करते जा रहे हैं, जो सृष्टिकत्र्ता ब्रह्माजी के प्रति अपराध है। नयी पीढ़ी इस दिन को  अनदेखा नही  कर सकती। सभी धर्मावलम्बी जनों को आदर और श्रद्धा पूर्वक मनाना चाहिए।

आईए हम मन से नहीं अपितु आत्मा से   संकल्प लें (जिसका कोई विकल्प न हो वही संकल्प है) कि चैत्र प्रतिपदा को सृष्टि दिवस के रूप में उत्साह पूर्वक मनाएँगे । इसे आचरण मे उतारकर अन्य भारतीय जनमानस को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करेंगे।

जय जय जय हिन्दू नववर्ष ।

देदे हमें सर्व सुख -हर्ष।।    

पौराणिकता तुम्हारा आधार।

जिस पर अवलम्बित जीवन- संसार।।

-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, '' ज्योतिष का सूर्य '' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-26, कोहका मेन रोड, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग(छ.ग.)
मोबा.नं.09827198828, jyotishkasurya@gmail.com  

25 मार्च से 1 अप्रैल 2012 तक राशिफल

25 मार्च से 1 अप्रैल 2012 तक राशिफल
मेष :  कारोबार में गति सामान्य रहेगी. राजनीतिक माहौल मे आपका रुतवा बढ सकता है. विरोधी आपके सामने चारों खाने चित्त होंगे. हां, बेकार के कानूनी पचड़ों में पडऩे से बचें. कुछ विशेष व्यापारी वर्ग से आपको लाभ हो सकता है.
वृष: परिवारजनों के सहयोग से जीवन में खुशियां आएंगी. धन के अपव्यय से बचें. बाहर घूमने का कार्यक्रम बन सकता है. शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों की पढ़ाई में रुचि बढ़ेगी. प्रेम संबंध मजबूत होगी. व्यापार में लाभ एवम उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे.
मिथुन: अच्छा वक्त आने को है. शुभ संदेश जीवन में खुशियों की बौछार लेकर आएंगे. इस अच्छे समय का पूरा फायदा उठाएं. कमाई के नए साधन मिलेंगे. परिवार में सुख-शांति रहेगी. मन प्रसन्न रहेगा .व्यापारियों के लिए नए अवसर खुलेंगे.
कर्क: सेवार्थ कुछ समय बिताइए, लाभ होगा. छोटी-मोटी बीमारियों को छोड़ दें तो आमतौर पर स्वास्थ्य ठीक रहेगा. आर्थिक पक्ष भी सामान्य ही रहेगा. प्रेम-प्रसंगों में व्यर्थ के वाद-विवाद से बचें.
सिंह:  मेहनत रंग लाने लगी है, लेकिन अति महत्वाकांक्षी बनने से बचें. रणनीति बनाकर ही आगे बढ़ें. सेहत ठीकठाक रहेगी. वाहन चलाते हुए अतिरिक्त सावधानी बरतें. पारिवारीक कलह से बचने का प्रयत्न करें, कहा गया है-जहां सुमती तंह सम्पति नाना।
कन्या: मजबूत इच्छाशक्ति के बिना आप कामयाबी नहीं पा सकेंगे. आपकी मेहनत की सराहना तो होगी, लेकिन साथ ही शत्रुओं का आपके प्रति वैमनस्य भी बढ़ेगा. समय प्रबंधन से आप कई रुके हुए काम कर सकते हैं, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
तुला: कारोबार की दृष्टि से समय अनुकूल है. नए सौदे लाभकारी होंगे. ट्रांसपोर्ट से जुड़े व्यवसायियों के लिए विशेष तौर पर समय अच्छा है. धन आपके पास आएगा, लेकिन रुकेगा नहीं. किसी भी तरह के विवाद से दूर रहें.
वृश्चिक: आपके काम को सराहा तो जाएगा, लेकिन उसके लिए आपको धैर्य रखना होगा. सेहत सामान्यं रहेगी. बॉस के साथ संबंधों में सुधार होगा. शत्रु शांत रहेंगे. संतान की ओर से सुखद समाचार मिलेगा. विद्यार्थियों के लिए समयानुकूल है.
धनु:  बनते काम बिगड़ेगें सफलता मुश्किल होगी. मुकदमेबाजी में ना फंसें, अपने क्रोध पर काबू रखें. किसी भी तरह के विवाद से दूर रहने में ही भलाई है.  स्थिति में सुधार होगा. आय के नए स्रोत खुलेंगे.
मकर:  सत्पुरुषों के संग से लाभ होगा. रुका हुआ धन मिल सकता है. विद्यार्थी वर्ग को फायदा होगा. शत्रु आप पर हावी होने के प्रयास में हैं, सावधान रहें. व्यर्थ की बातों में समय खर्च न करें.
कुम्भ:  हालात बदलने वाले हैं. कोई शुभ समाचार मिल सकता है. रुका हुआ धन आएगा. कानूनी पेंच आपको थोड़ा परेशान कर सकते हैं. नकारात्मक लोगों से दूर रहें. विद्यार्थियों को परीक्षा में सफलता मिलेगी.
मीन: बॉस से किसी तरह का विवाद हो सकता है, आपका अडिय़ल रवैया हालात बिगाड़ सकता है. नौकरी में परेशानी रहेगी. आर्थिक रूप से परेशान रह सकते हैं. जीवनसाथी का रवैया आपको परेशानी में डाल सकता है.
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, '' ज्योतिष का सूर्य '' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-26, कोहका मेन रोड, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग(छ.ग.)
मोबा.नं.09827198828, jyotishkasurya@gmail.com  


छत्तीसगढ़ के जाने-माने सुप्रसिद्ध साहित्यकार--गिरीश पंकज

। गिरीश पंकज - यथानामो ततो गुण: ।। (नाम विश्लेषण)

गीयते गीत-गजलम् री-रच्यते व्यंग ललीत साहित्यम्।

श आर्यभूमे: शस्यते सद्भावनाम् प्रणेतुम् पंकजलोचनम्।।1।।

पंकजाञ्जायते पंक:,पंक्ति-पावन: पंकजासन: प्रसादात।

छत्तीसगढ़ प्रदेशम् प्रथम पंक्ति-बद्ध: भारत मातृभूमे:।।2।।

अर्थ: गि- गीत-गजल का गायन, री- व्यंग ललीत साहित्यों की रचना करने वाले, श-आर्य भू-भाग पर प्रतिष्ठीत, सद्भावना के प्रेरक एवं प्रणेता पंकज पर पंकजलोचन की कृपा बनी रहे।।1।।

जिस प्रकार किचड़ से विकसीत कमल पुष्प स्वयं के साथ दूसरों को शोभित करने वाले पंक: अर्थात ब्रह्मण कुल में जन्म लेकर छत्तीसगढ़ को प्रथम पंक्ति में खड़ा करने वाले पंकज पर पंकजासन भगवान ब्रह्मा की आशिर्बाद बना रहे और भारत भूमि में अग्र पंक्ति बद्ध करते रहें।।2।।

-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे

नाम     -     गिरीश पंकज
पिता     -     श्री कृष्ण प्रसाद उपाध्याय, गांधी वादी
माता     -     स्व.श्रीमती सावित्री देवी
जन्म     -      1 जनवरी, 1957
 शिक्षा     -    एमए (हिंदी), बी. जे. (प्रावीण्य सूची में प्रथम),
        डिप्लोमा इन फोक आर्ट।
प्रकाशन :
दस व्यंग्य संग्रह-  ट्यूशन शरणम् गच्छामि, भ्रष्टाचार विकास प्राधिकरण, ईमानदारों की तलाश, मंत्री को जुकाम, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएं, नेताजी बाथरूम में, मूर्ति की एडवांस बुकिंग, हिट होने के फारमूले, चमचे सलामत रहें, एवं सम्मान फिक्सिंग।
चार उपन्यास - मिठलबरा की आत्मकथा, माफिया (दोनों पुरस्कृत), पॉलीवुड की अप्सरा, एक गाय की आत्मकथा। नवसाक्षरों के लिए तेरह पुस्तकें, बच्चों के लिए चार पुस्तकें। 2 गज़ल संग्रह आँखों का मधुमास,यादों में रहता है कोई . एवं एक हास्य चालीसा।
अनुवाद - कुछ रचनाओं का तमिल, तेलुगु,उडिय़ा, उर्दू, कन्नड, मलयालम, अँगरेजी, नेपाली, सिंधी, मराठी, पंजाबी, छत्तीसगढ़ी आदि में अनुवाद।
सम्मान-पुरस्कार :
त्रिनिडाड (वेस्ट इंडीज) में हिंदी सेवा श्री सम्मान, लखनऊ का व्यंग्य का बहुचर्चित अट्टïहास युवा सम्मान। तीस से ज्यादा संस्थाओं द्वारा सम्मान-पुरस्कार।
विदेश प्रवास:अमरीका, ब्रिटेन, त्रिनिडाड एंड टुबैगो, थाईलैंड, मारीशस, श्रीलंका, नेपाल, बहरीन, मस्कट, दुबई एवं दक्षिण अफीका। अमरीका के लोकप्रिय रेडियो चैनल सलाम नमस्ते से सीधा काव्य प्रसारण। श्रेष्ठ ब्लॉगर-विचारक के रूप में तीन सम्मान भी।
विशेष: व्यंग्य रचनाओं पर अब तक दस छात्रों द्वारा लघु शोधकार्य। व्यंग्य साहित्य पर कर्नाटक के शिक्षक श्री नागराज एवं जबलपुर दुुर्गावती वि. वि. से हिंदी व्यंग्य के विकास में गिरीश पंकज का योगदान विषय पर रुचि अर्जुनवार नामक छात्रा द्वारा पी-एच. डी उपाधि के लिए शोधकार्य। गोंदिया के एक छात्र द्वारा व्यंग्य साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन विषय पर शोधकार्य प्रस्तावित। डॉ. सुधीर शर्मा द्वारा संपादित सहित्यिक पत्रिका साहित्य वैभव, रायपुर द्वारा पचास के गिरीश नामक बृहद् विशेषांक प्रकाशित।
सम्प्रति: संपादक-प्रकाशक सद्भावना दर्पण। सदस्य, साहित्य अकादेमी नई दिल्ली एवं सदस्य हिंदी परामर्श मंडल। प्रांतीय अध्यक्ष-छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, मंत्री प्रदेश सर्वोदय मंडल। अनेक सामाजिक संस्थाओं से संबद्ध।


गि रीश पंकज साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया का जाना- पहचाना  नाम है। केंद्रीय साहित्य अकादेमी के सदस्य हैं। उनका नाम तो पढ़ता-सुनता रहता था लेकिन पिछले दिनों उनसे मुलाकात हुई, तो इस व्यक्तित्व को निकट से देखने-सुनने का अवसर मिला। फिर तो सिलसिला-सा बन गया। मुलाकातें कम हुईं मगर दूरभाष के जरिए बातचीत होती रही। गिरीश पंकज स्वतंत्र पत्रकारिता और लेखन कर रहे हैं। अपनी खुद्दारी के साथ जीवन जीने वाले लोग अब दुर्लभ हैं। मुझे लगा कि इनके बारे में कुछ लिखा जाना चाहिए। गिरीश पंकज तीस सालों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं और साहित्य में भी। उनकी लेखकीय सक्रियता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि आज उनकी लगभग पैंतीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें दस व्यंग्य संग्रह और चार उपन्यास हैं। दो उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार हैं। इस साल उनकी और चार-पाँच पुस्तकें प्रकाशित होने वाली हैं।
गिरीश पंकज मूलत: व्यंग्यकार हैं लेकिन साहित्य की अन्य विधाओं में भी वे निरंतर लिखते रहते हैं। जैसे वे बाल कविताएँ भी लिखते हैं, गीत-गजलें भी । कहानियाँ भी लिखते हैं, और उपन्यास भी। वे अब तक छह उपन्यास लिख चुके हैं। चार प्रकाशित हैं और दो प्रकाशनाधीन। उनके दस व्यंग्य संग्रह हैं। कर्नाटक, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के तीन लोग उनके व्यंग्य साहित्य पर पी-एच. डी कर रहे हैं। इसके पहले सात लोग उनकी विभिन्न कृतियों पर लघु शोध कार्य भी कर चुके हैं। ब्लॉग लेखन के कारण गिरीश पंकज का दायरा अब वैश्विक हो चुका है। उनकी रचनाओं को चाहने वालों की संख्या बढ़ी है। महाराष्ट्र की एक युवती ने उनकी रचनाएँ पढ़ कर उन पर शोधकार्य करने की इच्छा जाहिर की। अभी हाल ही में गोंदिया के एक छात्र गिरीश पंकज के व्यंग्य साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन विषय पर पी-एच. डी का प्रस्ताव ले कर आया। युवक ने नेट में सर्च करने पर पाया कि उनकी अनेक कविताएँ भी ब्लॉग के माध्यम से भी उपलब्ध हैं, तो युवक ने कहा कि आपकी व्यंग्य रचनाओं के साथ-साथ आपकी कविताओं पर भी शोध किया जा सकता है। गिरीश पंकज की पत्रकारिता और साहित्य में समान रुचि है। लेकिन साहित्य का पलड़ा बारी है। उन्हें साहित्यकार के रूप में पहचाने जाने पर ज्यादा संतोष होता है। वे एक संस्समरण सुनाते हैं कि तीन साल पहले जब मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कुछ लोगों के बीच यह कहा कि गिरीश पंकज वैसे संपादक नहीं हैं, ये साहित्यकार हैं, तो मुझे यह सुन कर बेहद खुशी हुई। प्रदेश का मुखिया अगर एक छोटे-से व्यक्ति को एक साहित्यकार के रूप में पहचानता है, इसे सौभाग्य ही मानता हूँ, वरना आजकल कौन शीर्ष नेता किसी रचनाकार के लिए इस तरह की टिप्पणी करता है। गिरीश पंकज उन बिरले लोगों में हैं, जिन्होंने पत्रकारिता और साहित्य दोनों क्षेत्रों में अपनी उपलब्धियों का झंडा गाड़ा है। उन्होंने पत्रकारिता की परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर टॉप किया था। सर्वश्रेष्ठ खोजी पत्रकारिता के लिए के.पी.नारायण पत्रकारिता सम्मान(भिलाई), रामेश्वर गुरू पत्रकारिता सम्मान(भोपाल), राजी स्मृति सम्मान (नई दिल्ली) आदि दस सम्मान इस बात का प्रमाण है। और साहित्य लेखन के लिए अट्टहास सम्मान (लखनऊ), लीलारानी स्मृति सम्मान(मोगा, पंजाब), साहित्य मार्तंड (श्री डूंगरगढ़, बीकानेर), स्वामी सहजानंजद सरस्वती सम्मान (दिल्ली),मावजी चावड़ा बाल साहित्य सम्मान(रायगढ़), अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन सम्मान (ट्रिनिडाड. वेस्टइंडीज), चेतना साहित्य सम्मान (रायपुर)करवट सम्मान (भोपाल)आदि अनेक सम्मान उनके खाते में दर्ज हैं। इन तमाम सम्मानों के बारे में गिरीश कहते हैं कि मुझे खुशी इस बात की है कि किसी भी सम्मान के जोड़-तोड़ नहीं करनी पड़ी, वरना आजकल तो लोग आयोजकों के पीछे ही पड़ जाते हैं।

आप ब्राह्मण कुल में जन्म लिये किन्तु उपनाम 'उपाध्यायÓ लिखना क्यों बंद किए..इसके पिछे क्या राज है?
चौबे जी, जो आपने सवाल मुझसे किया है, इस रहस्य को बहुत लोग जानने को बेताब रहते हैं। छात्र जीवन में जयप्रकाश नारायण आंदोलन (1974-75) अपने चर्म पर था उस समय जेपी जी की मनसा थी कि- जातिबंधन छोड़ो और 'वसुधैव कुटुम्बकमÓ के मार्ग पर चलो ताकि भारत से भेद-भाव खत्म हो सके। इन्हीं विचारों से अभिप्रेरीत होकर मैंने कुछ साथीयों के साथ यह संकल्प लिए अब हम लोग भी उपनाम(जातिसूचक) नहीं प्रदर्शित करेंगे। उसी समय से मैने अपना उपनाम 'उपाध्यायÓ लिखना बंद कर दिया। हालाकि इसके पूर्व लोहिया जी भी 'जातिबंधन छोड़ोÓ का नारा बुलंद किये थे। जो बाद मेें जेपी जी ने आगे बढ़ाया।
आपके द्वारा रचित 'एक गाय की आत्मकथा' उपन्यास का बेसब्री से इंतजार कर रहे पाठकों को कब तक समर्पित करेंगे..और इस उपन्यास के पिछे आपकी क्या मनसा थी..?
हां, मेरे साहित्य क्षेत्र के इस जीवन काल  का महत्त्वपूर्ण व बेहतर सृजन है'एक गाय की आत्मकथा'। पाठकों का इंतजार जल्द ही समाप्त होगा  'एक गाय की आत्मकथा' उपन्यास के पिछे हमारी मनसा थी की- कुछ नृसंश गोवंश हत्यारों को छोड़ प्राय: हर भारतीय गाय को माँ मानते हैं, मगर उसकी बदहाली किसी से छिपी नहीं है। मैं नास्तिक किस्म का हूँ, मगर गाय के सवाल पर आस्तिक हो जाता हूँ। गाय ने हम पर कितने उपकार किए हैं। माँ का दूध हम तीन साल तक ही पीते हैं, मगर गाय का दूध जीवन भर पीते हैं। अपने शरीर को बलिष्ठ बनाने के लिए गाय का दूध सहायक बनता है, मगर गाय को खिलाते हैं घास.. निकालते हैं दूध। बूढ़ी हो जाए, काम की न रहे तो उसे कसाई के हाथों सौंप देते हैं। यह हमारे समाज के दोहरे चरित्र को दर्शाता है। इस बेजुबान गाय का भला क्या दोष जो हम इसे दोहन कर अन्त में कसाई की भेंट चढ़ा देते हैं...यही विचार मेंरे अन्तरात्मा में बार-बार कौंधती रही और मैंने एक वृहद उपन्यास लिख डाला। यह उपन्यास सर्वप्रिय प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हो रहा है। इसमें अनेक पौराणिक कथाएँ हैं, और कुछ काल्पनिक घटनाओं के सहारे मैंने यह बताने की कोशिश की है कि गो सेवा की आड़ में क्या खेल चल रहा है। एक मुस्लिम पात्र गो सेवा में लगा रहता है। साम्प्रदायिक सद्भावना का भी मैंने पूरा ख्याल रखा है।
आज सतही साहित्यकारों की बजाय चाटूकारों का बोल-बोला है इस बदलते परिवेश में साहित्य वर्तमान साहित्य की दशा-दिशा क्या है..?
चौबे जी, (गंभीर मुद्रा में लंबी श्वांसें लेते हुए) सहित्य मतलब हित के साथ चलने वाला, लेकिन अब साहित्य समाज का अहित करने पर तुला है। नई धारा के लोग अपनी प्रगतिशीलता या यथार्थवादिता की रौ में साहित्य को अश्लील बना रहे हैं। नैतिक मूल्य हाशिये पर हैं। परम्परा और संस्कृति का कोई मूल्य नहीं रहा। हमारा साहित्य पाश्चात्य साहित्य से ज्यादा प्रभावित हो रहा है। जबकि हमारी परम्परा में इतना अधिक श्रेष्ठ है कि हमें कहीं बाहर निहारने की ही जरूरत नहीं। स्त्री विमर्श के नाम पर जो फूहड़ता नजर आ रही है, वह किसी से छिपी नहीं। क्या वस्त्र उतारना ही मुक्ति है? शालीनता स्त्री का गहना है, क्या उसे उतार कर कोई स्त्री गरिमा प्राप्त कर सकती है? साहित्य लोकमंगल के लिए हैं। वह समाज को बेहतर बनाए, रसातल में न ले जाएं। मेरी कोशिश रहती है कि मैं अपने व्यंग्य या कहानियों के माध्यम से समाज में जागरण की विनम्र कोशिश करूँ। न कि चंद रूपयों और पुरस्कारों के लालच में नेताओं और पुरस्कार वितरण करने वाली संस्थाओं की चाटूकारिता करना चाहिए।
आपकी लोकप्रियता जितना किताबी है उससे अधिक एक सक्रिय ब्लागर के रूप में भी है..प्रशंसकों की बढ़ती संख्या इस बात की गवाह है..इंटर्नेट पर की बोर्ड के सिपाही के रूप में आपकी पहचान बन रही है..इस संदर्भ में आपका क्या कहना है...?
मेरा ऐसा मानना है कि नेट एक नया संचार का माध्यम है। और यह ज्यादा लोकतांत्रिक है। यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई पहरा नहीं है। यह और बात है कि कुछ लोग इस माध्यम का गलत इस्तेमाल भी कर रहे हैं। अश्लील साहित्य, साम्प्रदायिक विचार या नफऱत फैलाने वाले चिंतनों की यहाँ भी भरमार दीखती है। यह गलत प्रवृत्ति है। नेट जैसे वैश्विक माध्यम का इस्तेमाल हम मानवीय भावनाओं के प्रसार के लिए करें, तो बेहतर होगा। इस माध्यम से  जुड़ कर लेखक-पत्रकार अपने विचार दूर-दूर तक पहुँचा सकते हैं। कुछ वैचारिक लोग यह काम कर ही रहे हैं। मैं भी उन लेखकों के बीच में अपने आपको खड़ा पाकर काफी गौरवान्वित होता हुं..और देश-विदेश के हमारे  नियमित ब्लाग पाठकों ने सराहा है यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है।
आपका प्रारंभिक जीवन पत्रकारिता रही है  आज भी आप एक मासिक पत्रिका 'सद्भावना दर्पणÓका संपादन व प्रकाशन कर रहे हैं..आज पत्रकारिता मिशन नहीं वरन बाजारवाद की पर्याय बनकर अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है..? इस संदर्भ में आपके क्या विचार हैं..?
पत्रकारिता के बदलते स्वरूप को ले कर मैं भी चिंतित हूँ। साहित्य और पत्रकारिता का आपस में गहरा संबंध हुआ करता था। पत्रकारिता मिशन हुआ करता था। उसका अपना मूल्य हुआ करता था। लेकिन बाजारवाद के नये दौर में अब मूल्यों का क्षरण हो रहा है। अख़बार एक उत्पाद की तरह हो गए हैं। जैसे कोई साबुन, जूता, मोबाइल या कुछ और। उत्पाद है तो उसे बेचने की कोशिश भी होगी। फिर माल बेचने के लिए एक सुंदरी भी चाहिए। कुछ अश्लीलता भी परोसी जाएगी। आज हालत यह है कि अनेक अखबारों में अश्लील विज्ञापन  नजर आने लगे  हैं। उन अखबारों में भी जिनके मालिक-संपादक लेखों-अग्रलेखों और सार्वजनिक मंचों पर नैतिकता की बात करते पाए जाते हैं। संपादक नामक इकाई खत्म होती जा रही है। प्रबंधन का दखल बढ़ रहा है। वह पत्रकारिता को अपने बंधन में रखना चाहता है। यही कारण है कि पत्रकारिता में अब नैतिकता की बात बेमानी है। हिंदी भाषा भ्रष्ट हो रही है। बेवजह अंग्रेजी के शब्दों का उपयोग किया जाने लगा है। कुछ हिंदी अखबारों में अंग्रेजी के पन्ने में भी  नजर आने लगे हैं। इसका असर यह हुआ कस्बाई पत्रकारिता को भी हिंग्लिश का रोग लग गया है।
'मिठलबरा की आत्मकथाÓ के बाद आपने मीडिया पर एक व्यंग रचना लिखी  है। जो प्रकाशनाधीन है। इस उपन्यास में आखिरकार आप कौन सा तड़का लगाएं हैं..?
बदलते हुए पत्रकारीय मूल्यों पर प्रहार करने वाला यह मेरा नया व्यंग्य उपन्यास 'ओम मीडियाय नम:Ó है जो शीघ्र प्रकाशित होगा। इस उपन्यास की अद्योपांत भाषा व्यंग्यमय है। इसमें नये दौर की पत्रकारिता के अश्लील चरित्र को बेनकाब करने वाली अनेक कथाएँ भी हैं। इसके पहले भी उपन्यास 'मिठलबरा की आत्मकथाÓ में भी कुछ ऐसा ही था जो प्रकाशित हो चुका है। इस उपन्यास का तेलुगु अनुवाद हाल ही में प्रकाशित हुआ है। मिठलबरा का उडिय़ा में भी अनुवाद हो चुका है। मेरीअनेक कृतियों के भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। उनकी कृति शैतान सिंह का तमिल में अनुवाद हुआ और इसकी ग्यारह हजार प्रतियाँ तमिलनाडु के गाँवों तक पहुँची। जो छत्तीसगढ़ और मेरे लिए सौभाग्य का विषय  हैं, हमारी कृतियों के अन्य कई भाषाओं में पढ़े जाने से प्रदेश की ख्यति बढ़ी है।
साहित्य के क्षेत्र में सक्रियता :
छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार समित के  अध्यक्ष भी है. गांधी, विनोबा, लोहिया और जेपी जैसे चिंतको के अनुगामी  पंकज प्रदेश सर्वोदय मंडल के मंत्री भी है. गिरीश पंकज के चिंतन और रचनात्मक सक्रियता को देख कर प्रसन्नता होती है कि छत्तीसगढ़ में रहते हुए उन्होंने अखिल भारतीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान बनाई है। ब्लॉग और फेसबुक के अलावां और भी जनसंचार के माध्यम से अब वे देश और विदेशी पाठकों की संख्या में भारी इ•ााफा हुआ है। पाठकों का प्रेम और पाठकों की लंबी फेहरीश्त ही हमारे जीवन की सम्पत्ति है।

अब चला-चली के बेला में एक मनोरम पा्रकृतिक दृश्य छोड़ जाता हुँ..
आपके लिए नहीं सिर्फ आपके ही लिए..

नव पलाश पलाश वनं पुर:
स्फु ट पराग परागत पंकजम्,
मृदु लतांत लतांत मलोकयत
स सुरभिं-सुरभिं सुमनो भरै:।

अर्थात : वृक्षों पर आ रहे हैं नए-नए पात। पूरा पलाश का जंगल सुरभिं-सुरभिं सुगंधित है, तालाब कमल पुष्पों से आच्छादित है। रंगत बदल गई है दिग् दिगंत की,अर्थात ऋ तु आ गई है बसंत की। इन्हीं पक्तियों के साथ गिरीश जी को बसन्त ऋतु की भाव-भंगिमा, इन्द्रधनुषी रंगों से सराबोर ढ़ेर सारी शुभकामनाएं...
--------नोटः यह ''ज्योतिष का सूर्य''राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के फरवरी-2012 के अंक में प्रकाशित हो चुका है। ----

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

१८ से 24 मार्च 2012 तक का साप्ताहिक राशिफल

१८ से 24 मार्च 2012 तक का साप्ताहिक राशिफल

मेष- आपके कार्य इस सप्ताह सफ लतापूर्वक आगे बढ़ेंगे। आस-पड़ोस से मित्रता बनाये रखना लाभदायी रहेगा। माता-पिता का सुख प्राप्त होगा। यात्राएं होती रहेंगी। व्यापारियों को आकस्मिक धन लाभ होगा। स्त्री वर्ग के लिए सप्ताह शुभ है।

वृषभ- यह सप्ताह आपके लिए लाभदायक है। वाणी पर नियंत्रण रखें और अनैतिक कार्यों में परिणत मित्रों से बचें। परिवार में शांति बनी रहेगी। काम के सिलसिले में स्त्रियों को यात्रा करनी पड़ सकती है। स्वास्थ्य में सुधार होगा।

मिथुन- यह सप्ताह आपके लिए अच्छा रहेगा। नये व्पार की शुरूआत हो सरकती है, कृपया आगामी नवरात्र के पंचमी को आरंभ करें ज्यादा बेहतर रहेगा। वैसे भी सप्ताह का उत्तरार्ध लाभदायी है। आपके कार्यों का इस सप्ताह आपके वरिष्ठ मुआयना कर सकते हैं। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। यात्राएं होंगी।

कर्क- यह सप्ताह आपकी हर प्रकार की उन्नति में सहायक रहेगा। सप्ताह के मध्यांतर में आपकी कार्यप्रणाली अच्छी बनी रहेगी। सप्ताह के उत्तरार्ध में आर्थिक प्रगति होगी। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। यात्राएं होंगी। माता-पिता की सेवा करें, नौकरी मिलने के योग हैं।

सिंह- इस सप्ताह बड़ी उपलब्धि मिलने के योग हैं, जिसके लिए आपको बधाईयां प्राप्त होंगी। आर्थिक स्थिति में सुधार के मार्ग प्रशस्त होंगे। स्त्रियां कार्य में सफलता पायेंगी। सप्ताह के उत्तरार्ध में स्वास्थ्य में सुधार होगा।

कन्या- यह सप्ताह आपके लिए शुभ है। शिक्षा में अभिरूचि  बढ़ेगी और अच्छे अंक मिलने के योग हैं परन्तु भगवान हनुमान जी की साधना करना होगा।सप्ताह के उत्तरार्ध समय तक आपके रुके हुए कार्य पूर्ण होते रहेंगे। कला क्षेत्र से संबंधित व्यिक्त मान-सम्मान पायेंगे। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। यात्रा होगी।

तुला- शंकाओ में न रहें इस सप्ताह आपकी गलतफ हमियां दूर हो जायेंगी। इस सप्ताह आपके सगे-संबंधी आपको सहयोग करेंगे। कार्य प्रणाली सुगम बनी रहने से मन प्रफ ुल्लित रहेगा। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। कृपणता छोड़ दानादिक में ध्यान दें। गाय को गुड़ और रोटी खिलावें। सफलता ही सफलता मिलेगी।

वृश्चिक- यह सप्ताह आपके लिए अच्छा रहेगा। निकट प्रतिस्पर्धात्मक प्रतिद्वंदियों को पछाड़ देंगे। उन्नति होगी तथा वरिष्ठों से सम्मान मिलेगा। शत्रुओं पर पैनी निगाहें बनाए रखें। नौकरीपेशा लोगों की पदोन्नति का योग है। विद्यार्थी वर्ग के लिए सप्ताह शुभ है।

धनु- यह सप्ताह आपको लंबी यात्रा करनी पड़ सकती है। इस सप्ताह आपकी राशि में आये बदलाव से आपके विचारों में सकारात्मकता आयेगी। संपादक मान-सम्मान और प्रतिष्ठा पायेंगे। यात्राओं का योग है। पत्नि का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। प्रसन्नता का माहौल रहेगा।

मकर- यह सप्ताह आपके लिए लाभदायक है किन्तु उच्चाधिकारीयों से तालमेल बनाना आवश्यक है क्योकि आपके उपर अधिकारी की मनसा कुछ विपरीतार्थक न•ार आ रही है। शुभ समय में नये कार्य की शुरुआत करें। निवेशकों के लिए सप्ताह शुभ है। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। यात्राएं होंगी।

कुंभ- यह सप्ताह आपके लिए शुभदायक है। आपके द्वारा अच्छे कार्य करने से समाज में आपकी परिवार में प्रतिष्ठा बढ़ेगी। छात्रों को बेहतरीन सफलता मिलने के आसार हैं। सौंदर्य-जगत से जुड़ी महिलाएं पुरस्कार पायेंगी। स्वास्थ्य में सुधार होगा। यात्राएं होंगी।

मीन- यह सप्ताह आपके लिए फ ायदेमंद रहेगा। शुभ कार्यों के संपन्न होने से आपको सुकून मिलेगा। जहाँ एक तरफ घर में मांगलिक वातावरण रहेगा वहीं दूसरी तरफ विद्यार्थी वर्ग को स्कूल-कॉलेज में प्रवेश प्राप्त होगा। सप्ताह के उत्तरार्ध में विवाह के संबंध में बातें होंगी। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। यात्राओं का योग है।
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, '' ज्योतिष का सूर्य '' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-26, कोहका मेन रोड, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग(छ.ग.)
मोबा.नं.09827198828, jyotishkasurya@gmail.com  



स्वागत है नवसम्वत्

स्वागत है नवसम्वत्
 ज्योतिष के अनुसार राजा और मंत्री दोनों के पद शुक्र को मिलने का ऐसा संयोग एक सदी पहले तक देखने को नहीं मिला।16 साल बाद संवत 2086 में वापस शुक्र को राजा व मंत्री के पद पर रहने का अवसर मिलेगा। हालांकि राजा और मंत्री  इन दोनों पदों पर एक ग्रह के आसीन रहने का अवसर तो कई बार आया,मगर शुक्र को यह अवसर एक सदी बाद मिला।
23 मार्च 2012 ई. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा शुक्रवार को आरंभ हो रहा है जो च्विश्वावसुज्नाम से जाना जायेगा। यह अठाईसवें महायुग का 39 वाँ सम्वत्सर है, जिसमें 5113 कलिगताब्द होकर 426887 भोग्य कलिकाल शेष है। इसमें भयानक रोगों, अन्न जल की कमी, राजनेताओं, नौकरशाहों में भ्रष्टाचार कर कालेधन का संचय की प्रवृत्ती बढ़ेगी। राष्ट्रीय धन के दोहन विषयक मुद्दे उभरेंगे।यह संवत्सर प्रजा में आध्यात्मिक रुचि व आस्था बढ़ाने वाला साबित होगा। वहीं लोगों में सत्ता के प्रति रोष रहेगा। धातुओं में तेजी, आर्थिक स्थिति में मजबूती और सुख-शांति देने वाला रहेगा। नए संवत् में रोहिणी का वास पर्वत पर होने से कहीं-कहीं वर्षा में कमी के संकेत मिलेंगे, तो समय का वास कुंभकार के पास होने से भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी होगी। समय का वाहन मेंढक होने से अच्छी वर्षा के संकेत हैं।
यह रहेगा मंत्रिमंडल
राजा : शुक्र, मंत्री : शुक्र, सश्येश: चंद्रमा, मेघेश, फलेश व दुर्गेश : गुरु, रसेश : मंगल, धनेश व नीरसेश : सूर्य, धान्येश : शनि आदि होंगे। आगे भी ऐसा संयोग बनेगा संवत 2071 : चंद्रमा, संवत 2078 : मंगल, संवत 2082 : सूर्य, संवत 2084 : बुध, संवत 2086 : शुक्र।
क्या कहती है हिन्दू नववर्ष की कुन्डली ...?
विक्रमाब्द 2069 का आरम्भ 22 मार्च 2012ई. वृहस्पतिवार समय-08:06 बजे कन्या लग्न में हो रहा है। वर्ष का संचालन शुक्र ग्रह के अधीन होगा। फलत: असुर गुरू शुक्र के प्रभावी-स्त्रियों, म्लेच्छ, अल्प संख्यक, तथा अन्त्यजों का प्रभाव शुमार पर होगा। वृहस्पति, शुक्र दोनों के अष्टम भावस्थ होने के कारण नक्सलवाद, घरेलु हिंसा और रेल एवं यान दुर्घटनाएं बढ़ेंगी। साम्प्रदायिक दंगे होने से भी नकारा नहीं जा सकता है। खण्ड-वर्षा, दैवीय उत्पातजन्य समस्याओं से जनता व कृषक दोनों तबाह रहेंगे। छत्तीसगढ़, झारखंड, जम्मू कश्मिर, पंजाब, गुजरात, हिमांचल प्रदेश, काफी उपद्रव ग्रस्त होने की अधिक सम्भावना है। म्लेच्छ-प्रजाति के नृशंस नरभक्षी आतंकवादियों के निशाने पर देश के 5 महानगर रहेंग।
भाजपा के शिर्षस्थ किसी एक राजनेता का निधन हो सकता है, जिसकी पूर्ति शायद ही कोई शख्स कर सके। इस सदमें से जहां एक तरफ देश का नेतृत्व को उबरने व सम्भलने में काफी वक्त लगेगा वहीं साहित्य-जगत को भी काफी हानि पहुंचेगी।
कांग्रेस के दक्षिणी नेतृत्व के लिए भी कुछ अच्छे संदेश नहीं हैं। अत: अभी से कांग्रेस को अपने नेतृत्व में काफी बदलाव लाना चाहिए।
च्प्राच्यां छत्रभंगमुपद्रव:ज् से यह प्रतीत हो रहा है कि विनाशकारी हथियारों के संग्रह की होड़ को लेकर खाड़ी देशों में परस्पर में युद्ध की स्थिति बन रही है। अणु-बमों के संधान से पृथ्वी एक बड़े हिस्से को नुकासन पहुँच सकता है।
वैसे तो कमोबेश अभी वर्तमान में हो रहे विधान सभा चुनावों में उत्तर प्रदेश का परिणाम कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है लेकिन कांग्रेस के युवराज राहुलजी के लिए  लाभप्रद नहीं होगा, क्योंकि पार्टी का प्रदर्शन संतोषप्रद नहीं रहेगा, जो राहुल गांधी के पराजय के रूप में देखा जायेगा। संप्रग-2 की मुश्किले बढ़ेंगी। अखिलेश यादव का राजनितिक भाग्य खिलेगा अर्थात विजय होना तय है, और मुख्यमंत्री भी।
संभावित खगोलीय घटनाएँ :
इस वर्ष सूर्य और शुक्र का अद्भुत विलक्षण योग निर्मीत हो रहा है। 6 जून को वक्रि शुक्र सूर्य बिम्ब के उपर से गुजरेगा जो आकाश में सुन्दर न•ाारा के रूप में दिखेगा। इसके पहले यह आकाशीय नज़ारा 1761, 1769, 1874, 1882, 2004 में शुक्र का अतिक्रमण हुआ था। प्राय: ऐसा संयोग 100 वर्ष में 7 से 9 बार होता है। इस खगोलीय दृश्य को भारत के कोलकाता, मुम्बई और दिल्ली में प्रात: 05:३० बजे दूरबीन से अथवा वैज्ञानिकीय यंत्रों के माध्यम से देखा जा सकता है।
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे - '' ज्योतिष का सूर्य '' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-26, कोहका मेन रोड, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग(छ.ग.)
मोबा.नं.09827198828, jyotishkasurya@gmail.com

क्रिकेट का भगवान

Sachin Tendulakar
यह वही नन्हा सा बच्चा है जो विश्व में क्रिकेट का भगवान हुआ और इतना लम्बा सफ़र तय कर लिया कि कोई पहुँचने के लिए ईश्वर की सापेक्ष दुर्धर्ष तप करनी होगी....जय हो सचिन...नमन उस माँ और पिता जिसने ऐसे लाडले को जन्म दिया ....जो भारत को पूरे विश्व का सिरमौर बना दिया ..इस लिए फक्ऱ से कहना लाज़मी होगा.....वन्दे मातरम!! वन्दे मातरम!! वन्दे मातरम!! वन्दे मातरम!! वन्दे मातरम!!
माँ भारती के लाडले सचिन को ढ़ेर सारी शुभकामनाएं...ईश्वर करें आप एक और शतकों का महाशतक लगाने में कामयाब हों..............

बधाई हो बधाई!!! बधाई हो बधाई!!! बधाई हो बधाई!!! बधाई हो बधाई!!! बधाई हो बधाई!!! बधाई हो बधाई!!! बधाई हो बधाई!!!बधाई हो बधाई!!! बधाई हो बधाई!!! बधाई हो बधाई!!! बधाई हो बधाई!!! बधाई हो बधाई!!!

गुरुवार, 15 मार्च 2012

साहित्य प्रेमियों के लिए पराग कण है ..''कुछ भी उल्लेखनीय नहीं''

साहित्य प्रेमियों के लिए पराग कण है ..''कुछ भी उल्लेखनीय नहीं''

कुछ भी उल्लेखनीय नहीं के उद्धरण जो शायद आपको जरूर पसन्द आयेगा। ''अपने समय, परिवेश, देश और भोगे जा रहे समय पर कोई तटस्थ कैसे रह सकता है..बहुत से दुःख जो खुद नहीं भोगे गये, उन्हें किसी और ने भोगा होगा, संकट जो मुझ पर नहीं आए, किसी और पर आए होंगे। मौतें, विभीषिकाएं, गरीबी, बेरोजगारी जैसे दुःखों से मेरा नहीं पर तमाम लोगों से सामना होता है। अब सवाल यह उठता है कि दूसरों के दर्द अपने कब लगने लगते हैं....?..दूसरों के लिए आवाज़ देने में सुख क्यों आने लगते हैं....?.मेरे लिखे हुए मैं, पूरी विनम्रता के साथ सही परदुःखकारता मौजूद है''-संजय द्विवेदी -उपरोक्त पुस्तक ''कुछ भी उल्लेखनीय नहीं '' की भूमिका में श्री 'संजय द्विवेदी' जी द्वारा लिखे गए भूमिका के कुछ अंश । मित्रों वास्तव में इस पुस्तक में द्विवेदी जी ने समाज के हर वर्ग के उस दर्द और कराह को लोगों के सामने रखा है जो तथाकथित उन्नतिशील भारत के असलियत को बयां करती है। मुझे विश्वास है कि आप सभी सुहृद जनों को अवश्य पसन्द आयेगा। भारत सहित अन्य देशों में उम्दा साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमीयों के हर उस अनछुए पहलुओं एवं मर्मस्पर्शी वेदना के मर्म स्थान को अमृतमय और ज्ञान की गर्माहट से तप्त भूमि की वर्षाऋतु मे सोंधापन की सोंधी सुगन्ध भ्रमरों तितलियों के लिए पराग कण का प्राशन करना चाहते हैं, उनके इन सभी चाहों को पूरी करती यह संजय जी की कृती कुछ भी उल्लेखनीय नहीं के लिए उनको सहृदय धन्यवाद। - ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2012/03/blog-post_15.html

साहित्य प्रेमियों के लिए पराग कण है ..''कुछ भी उल्लेखनीय नहीं''

साहित्य प्रेमियों के लिए पराग कण है ..''कुछ भी उल्लेखनीय नहीं''
कुछ भी उल्लेखनीय नहीं  के उद्धरण जो शायद आपको जरूर पसन्द आयेगा।
''अपने समय, परिवेश, देश और भोगे जा रहे समय पर कोई तटस्थ कैसे रह सकता है..बहुत से दुःख जो खुद नहीं भोगे गये, उन्हें किसी और ने भोगा होगा, संकट जो मुझ पर नहीं आए, किसी और पर आए होंगे। मौतें, विभीषिकाएं, गरीबी, बेरोजगारी जैसे दुःखों से मेरा नहीं पर तमाम लोगों से सामना होता है। अब सवाल यह उठता है कि दूसरों के दर्द अपने कब लगने लगते हैं....?..दूसरों के लिए आवाज़ देने में सुख क्यों आने लगते हैं....?.मेरे लिखे हुए मैं, पूरी विनम्रता के साथ सही परदुःखकारता मौजूद है''-संजय द्विवेदी
 -उपरोक्त पुस्तक ''कुछ भी उल्लेखनीय नहीं '' की भूमिका में श्री 'संजय द्विवेदी' जी द्वारा लिखे गए भूमिका के कुछ अंश । मित्रों वास्तव में इस पुस्तक में द्विवेदी जी ने समाज के हर वर्ग के उस दर्द और कराह को लोगों के सामने रखा है जो तथाकथित उन्नतिशील  भारत के असलियत को बयां करती है। मुझे विश्वास है कि आप सभी सुहृद जनों को अवश्य पसन्द आयेगा। भारत सहित अन्य देशों में उम्दा साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमीयों  के हर उस अनछुए पहलुओं एवं मर्मस्पर्शी वेदना के मर्म स्थान को अमृतमय और ज्ञान की गर्माहट से तप्त भूमि की वर्षाऋतु मे सोंधापन की सोंधी सुगन्ध भ्रमरों तितलियों के लिए पराग कण का प्राशन करना चाहते हैं, उनके इन सभी चाहों को पूरी करती यह संजय जी की कृती कुछ भी उल्लेखनीय नहीं के लिए उनको सहृदय धन्यवाद।
- ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2012/03/blog-post_15.html

''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक, का यह लगातार 32 वें अंक का आवरण चित्र

आद.मित्रों एवं वरिष्ठ जनों और देश के सभी सुधी पाठकों, ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक, का यह लगातार 32 वें अंक का आवरण चित्र है, जो पाँच राज्यों के चुनाव एवं हिन्दू नववर्ष पर केन्द्रीत यह मासिक पत्रिका आपके हाथों में है, मुझे विश्वास है कि आप सभी सुहृद जनों को अवश्य पसन्द आयेगा।

रविवार, 11 मार्च 2012

कुछ भी उल्लेखनीय नहीं..

मित्रों, आज पत्रकारिता के बदलते परिवेश से जुड़े रोचकतापूर्ण प्रतिभा निखारने के यूक्तियों का दुर्लभ संग्रह भाई संजय द्विवेदी (''ज्योतिष का सूर्य'' के सलाहकार संपादक एवं अध्यक्षः जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय)जी द्वारा की गयी है, उम्मीद है इस पुस्तक की काफी मांग बढ़ेगी, ऐसे विलक्षण प्रयास के लिए ''ज्योतिष का सूर्य'' परिवार के तरफ से अशेष शुभकामनाओं के साथ ...सहृदय धन्यवाद
-पं.विनोद चौबे





कुछ भी उल्लेखनीय नहीं..के लिए सम्पर्क करें.09827198828

बुधवार, 7 मार्च 2012

शुभम् भवतु कल्याणम् आरोग्यम् सुख सम्पदाम्। अस्मिन् वासन्तिके होली दक्षिणेश्वरः पातुमाम्।।.

मित्रों, 
नमस्कार.....आप सभी ब्लाग एवं फेसबुक के आत्मीय साथीयों आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को 'ज्योतिष का सूर्य ' मासिका पत्रिका परिवार की और से परम पावन उल्लासमयी रंग बिरंगी होली की हार्दिक शुभकामनाये...

शुभम् भवतु कल्याणम् आरोग्यम् सुख सम्पदाम्।
अस्मिन् वासन्तिके होली दक्षिणेश्वरः पातुमाम्।।.

                                                              @@@............संदेश.............@@@
आप सभी को होली की बहुत – बहुत शुभकामना , इस होली में कृपया पानी को बचाने का संकल्प ले ताकि आपकी अगली पीढी भी होली खेल सके औए आपकी खुशी का दुःख उनको ना भुगतना पड़े . क्योकि पानी की कमी अब व्यापक पैमाने पे महसूस की जाने लगी है , और हम ये नहीं सोचते कि हमने कितनी बार बेकार में पानी को यूं ही बर्बाद कर दिया है .जितनी मात्रा में पानी को हम बहार निकालते है क्या वह उतनी मात्रा में पुन: जमीन के अन्दर जाती है ? नहीं ना ! तो बस अब अपनी सकारात्मक सोच का सही उपयोग करना ही होगा ताकि हम अपने आने वाली पीढी को तीसरे विश्व युद्ध की तपिश से बचा ले. एक बार फिर आप सभी को होली की बहुत ...बहुत.....शुभकामनाये...
 -ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

मंगलवार, 6 मार्च 2012

होलहार मन के राशिफल


बुरा झन मानौ होली ए...

होलहार मन के राशिफल
- ज्योतिषाचार्य डॉ. स्नेहिल भंगपिया
गली नं. 144, मकान नं. 420, अल्लरपुर

नोट : भविष्यफल ल लिखत समय 80 चुटकी 90 ताल वाले माखुर, 1008 घोंटा वाले भांग, 1036 गुडग़ुड़ा वाले हुक्का, 101 ग्राम चेपटी द्रव के सेवन करके अड़बड़ सावधानी बरते गे हे ताकि येखर मानता बने राहय। फेर भी कोनो परकार के भोरहा बर ज्योतिषी अऊ परकासक ह जिम्मेदार नइ हे। बुरा झन मानौ होली ए...।

रंगों का त्योहार होली एक ऐसा त्योहार है, जिसमें

ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे 
रंगों का त्योहार होली
 
 प्रिय मित्रों , 
 नमस्कार आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनायें.  होली रंगों का त्यौहार आप सभी को सापेक्ष रंगीन बनावें और आपकी हर कामनाएं पूर्ण हो, इन्हीं शुभेच्छाओं के साथ आईए चर्चा करते हैं होली विशेष पर .... रंगों का त्योहार होली एक ऐसा त्योहार है, जिसमें छोटे-बड़े, महिलाएं-पुरुष सभी अलग-अलग रंगों से सराबोर होते हैं। हंसना, हंसाना, ठिठोली और शरारत करना सभी कुछ शामिल है। हर रंग का विशेष महत्त्व है और अलग-अलग मतलब। इस होली पर ऐसा कौन सा रंग प्रयोग करें जो आपके व्यवसाय, नौकरी एवं व्यापार के लिए लाभदायक हो। जी हां, यह भी संभव है रंगों का चयन अपने आय स्रोत के अनुकूल करने से आप अपने लाभ को बढ़ा सकते हैं तथा मान-प्रतिष्ठा भी अर्जित कर सकते हैं। किसे कैसा रंग चुनना है? आइए देखते हैं:
लाल रंग:
 लाल रंग भूमि पुत्र मंगल का रंग है। भूमि से संबंधित कार्य करने वाले बिल्डर्स, प्रापर्टी डिलर्स, कॉलोनाइजर्स, इंजीनियर्स, बिल्डिंग मटेरियल का व्यवसाय करने वाले एवं प्रशासनिक अधिकारियों को लाल रंग से ही होली का उत्सव मनाना चाहिए तथा गरीबों को भोजन कराने से अप्रत्याशित लाभ होगा। सभी कामनाएं पूर्ण होंगी।
मित्र रंग: गुलाबी, केशरिया, महरुन।
हरा:
हरा रंग बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। व्यापार में वृद्धि, शिक्षक, अभिभाषक, विद्यार्थियों, जज को सफलता हेतु एवं लेखक, पत्रकार, पटकथा, लेखक को भी होली हेतु इस रंग का प्रयोग करना, लाभ एवं सफलता दिलाएगा। कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर इंजीनियर भी हरा रंग का प्रयोग कर सकते हैं।
मित्र रंग: नीला, पीला, आसमानी।
पीला:
पीला रंग गुरु का प्रतिनिधित्व करता है। गुरु सोना, चांदी, अन्न व्यापार आर्थिक पक्ष को प्रभावित करता है। अनाज व्यापारी, सोना, चांदी व्यापारी शेयर का धंधा करने वाले से इस वर्ष अपनी स्थिति मजबूत करेंगे। अपने अन्य साथियों से आप दोगुनी अच्छी स्थिति में रहेंगे। सम्मानित होंगे।
मित्र रंग: लाल, हरा, जामुनी।
नीला:
नीला रंग शनि ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। अभिनेता, रंगमंच, कम्प्यूटर व्यवसायी, प्लास्टिक, आइलपेंट, स्क्रेप, लौहा व्यवसायी एवं राजनीतिज्ञ लोग होली उत्सव नीले रंग से मनाएं। इससे इस वर्ष वह नई ऊंचाइयां एवं नवीन पद को प्राप्त करेंगे। आर्थिक एवं सामाजिक लाभ होगा।
मनोकामना पूर्ति रंगों से :
1. शीघ्र विवाह हेतु पीले रंग से होली मनाएं।
2. कोर्ट केस में विजय हेतु लाल, पीले रंग का उपयोग करें।
3. कार्पोरेट कर्मचारी पीले तथा हरे रंग से होली मनाएं।
4. विदेश यात्रा की कामना वाले नीले एवं ब्राउन रंग से होली का उत्सव मनाएं।
5. प्रमोशन हेतु लाल रंग का उपयोग करें।
6.गृहिणियों के लिए लाल रंग ही उत्तम है।
7. छात्रों/छात्राओं के लिए हरा अथवा हल्का गुलाबी रंग उत्तम है।
राशि के अनुसार किस रंग से खेलें होली?
धर्म में भी रंगों की मौजूदगी का खास उद्देश्य है। रंगों के विज्ञान को समझकर ही हमारे ऋ षि-मुनियों ने धर्म में रंगों का समावेश किया। पूजा के स्थान पर रांगोली बनाना कलाधर्मिता के साथ रंगों के मनोविज्ञान को भी प्रदर्शित करता है। कुंकुम, हल्दी, अबीर, गुलाल, मेहंदी के रूप में पांच रंग तो हर पूजा में शामिल हैं। धर्म ध्वजाओं के रंग, तिलक के रंग, भगवान के वस्त्रों के रंग भी विशिष्ठ रखे जाते हैं। ताकि धर्म-कर्म के समय हम उन रंगों से प्रेरित हो सकें, हमारे अंदर उन रंगों के गुण आ सकें।            
सूर्य की किरणों में सात रंग हैं। जिन्हें वेदों में सात रश्मियां कहा गया है- सप्तरश्मिरधमत् तमांसि। -ऋ ग्वेद 4-50-4अर्थात- सूर्य की सात रश्मियां हैं। सूर्य की इन रश्मियों के सात रंग हैं- बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल। इन्हें तीन भागों में बांटा गया है- गहरा, मध्यम और हल्का। इस प्रकार सात गुणित तीन से 21 प्रकार की किरणें हो जाती हैं। अथर्ववेद में कहा गया है- ये त्रिषप्ता:परियन्ति विश्वा रुपाणि बिभ्रत:। अथर्ववेद  अर्थात यह 21 प्रकार की किरणें संसार में सभी दिशाओं में फैली हुई हैं तथा इनसे ही सभी रंग-रूप बनते हैं। वेदों के अनुसार संसार में दिखाई देने वाले सभी रंग सूर्य की किरणों के कारण ही दिखाई देते हैं। सूर्य किरणों से मिलने वाली रंगों की ऊर्जा हमारे शरीर को मिले इसके लिए ही सूर्य को अघ्र्य देने का धार्मिक विधान है।
 ज्योतिषिय दृष्टिकोण से कौन सा रंग किस राशि के लिए सुख-समृद्धि देने वाला है यह भी पता लगाया जा सकता है। इस होली पर कौन सा रंग अपनाएं जो वर्ष भर हमें ऊर्जावान रखें तथा आर्थिक रूप से लाभदायक हो, इसकी जानकारी इस प्रकार है-
मेष-वृश्चिक:
 मेष-वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल है। मंगल का रंग लाल है और उनका पूजन भी लाल सामग्री से ही होता है। अत: मेष-वृश्चिक राशि वाले लोगों को लाल रंग से होली खेलना अति लाभदायक होगा, इससे उनको मान-सम्मान मिलेगा तथा क्रोध पर नियंत्रण होगा। भूमि से लाभ मिलेगा, ऋ णों से मुक्ति मिलेगी। विवाह में बाधा नहीं आएगी।
वृषभ-तुला:
 वृषभ-तुला राशि के स्वामी शुक्र है। शुक्र ज्योर्तिमंडल में सफेद चमकीले ग्रह के रूप में विद्यमान है। वृषभ-तुला राशि वाले जातक होली पर सफेद वस्त्र पहनें तथा होली खेलने में पीले एवं आसमानी रंग का प्रयोग करें। इससे वैभव की प्राप्ति होगी। विलासिता पूर्ण जीवन का आनंद उठा सकेंगे। मित्र, परिजन सभी आपको सम्मान देंगे। सुखपूर्वक समय गुजारेंगे।
मिथुन-कन्या:
इन दोनों राशियों के स्वामी बुध है। बुध बुद्धि एवं वाणी से संबंधित माने जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार बुध हरे रंग का प्रतिनिधि ग्रह है। मिथुन-कन्या राशि वाले जातक होली पर सुबह गाय को हरा चारा खिलाएं। हरे रंग से होली का उत्सव मनाए। इसके प्रभाव से वे व्यापार एवं नौकरी में सम्मानजनक उपलब्धि अर्जित करेंगे। मान-सम्मान की प्राप्ति एवं संतान भी प्रगति करेगी। संतानहीन को संतान की प्राप्ति होगी।
कर्क:
राशि के स्वामी चंद्रमा हैं। चंद्रमा मन एवं धन से संबंधित ग्रह है। जो पूर्ण सफेद है। कर्क राशि के लोगों को सफेद आक के फूलों से भगवान शिव का पूजन कर पीले, केसरिया एवं हरे रंग से होली खेलना चाहिए। जो उनके लिए धन प्रदाता एवं सुख में वृद्धि करने वाला होग। हरा रंग शांति प्रदान करेगा। संतान का सुख मिलेगा तथा समाज में सम्मान भी मिलेगा।
सिंह:
सिंह राशि के स्वामी सूर्य है। जो सारे ग्रहों के भी स्वामी है। लाल, पीला, महरुन एवं नारंगी सूर्य से संबंधित रंग है। सिंह राशि वाले जातकों को होली के दिन प्रात: सूर्य को लाल गुलाब मिश्रित जल से अध्र्य देकर लाल रंग से होली खेलना चाहिए। इससे वे अत्यधिक ऊर्जा की प्राप्ति करेंगे। शरीर में शक्ति का संचार होगा। बुद्धि प्रखर होगी। उच्च पद पर आसीन होंगे।
धनु-मीन:
धनु एवं मीन राशि के स्वामी गुरु है। गुरु धर्म शुद्ध आचरण, सात्विक प्रवृत्ति एवं अत्यधिक धन प्रदाता ग्रह है। धनु-मीन राशि के जातकों को होली के दिन प्रात: भगवान शंकर का पीली हल्दी की गांठों से पूजन करना चाहिए तथा गरीबों को भोजन कराना चाहिए। होली हेतु इन्हें पीले रंग का उपयोग लाभकारी होगा जो उन्हें धन, मान-सम्मान एवं सफलता दिलाएगा।
मकर-कुंभ:
मकर एवं कुंभ राशि के स्वामी शनि है। शनि न्यायप्रिय एवं मंद गति का ग्रह है। जिनका रंग नीला है। शनि सात्विक एवं धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्तियों को कभी कष्ट नहीं देते हैं। मकर एवं कुंभ राशि के जातकों को होली में नीले, सफेद, काले, ब्राउन रंगों का उपयोग लाभदायक होगा। होली के दिन असहाय को मदद करें एवं काले कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं। ऐसा करने वाला रंक भी राजा बन जाता है तथा अपनी 21 पीढिय़ों तक सुख भोगता है।
सम्पादक , ''ज्योतिष का सूर्य '' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे ०९८२७१९८८२८, भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा . न.०९८२७१९८८२८ (उपरोक्त आलेख उक्त पत्रिका में प्रकाशित हो चूका है कृपया किसी को कापी करना दंडनीय आपराध है)-आदेश ''संपादक मंडल'' ज्योतिष का सूर्य

रविवार, 4 मार्च 2012

होली में रंगों का महत्त्व

ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे, भिलाई
 संस्कृत में ''रंग'' का अर्थ नाचना, गाना होता है, अर्थात् उत्सव मनाना। हजारों वर्ष पूर्व ''रंग'' का निर्माण मजीठ अथवा मजीष्ठा की जड़ एवं बक्कल की छाल, पीपल, गूलर और पाकड़ जैसे वृक्षों पर लगने वाली लाख की कृमियों से लाल रंग एवं सिन्दूर और हल्दी से चूर्ण स्वरूप पीले रंग का निर्माण किया जाता था। उन्हीं प्राकृतिक रंगों से वासन्तिक महापर्व होली का उत्सव मनाया जाता रहा, जिसका स्थान अब रासायनिक पदर्थों से निर्मीत तथातथित रंगों ने ले लिया है। वह भी रंगों के चूर्णवत(पाउडर) नहीं बल्कि विधीवत पानी में घोलकर लोगों पर उड़ेला जाना अब आमजनमानस के स्वभाव में आ गया है, जो कि सर्वथा न्यायसंगत नहीं है, क्योंकि आज पानी की विभीषिका ने लगभग सारी दुनिया को अपने आगोश में ले लिया है जिससे भारत भी वंचित नहीं है।
भारतीय धर्मशास्त्रों में मनीषियों द्वारा इस महापर्व को मनाए जाने के पिछे मनसा यह थी की शिशिर ऋतु के शीत से कफ-विकार चर्मोत्कर्ष अवस्था मे हो जाती है, जिसे समाप्त करने के लिए उपरोक्त कहे गये वृक्षों के लाख की कृमियों से उत्पादित प्राकृति रंग-चूर्ण(अबीर-गुलाल) को परस्पर में तिलक स्वरूप अथवा उन्हीं चूर्णों को धुरेड्डी के रूप में उड़ाया जाय तो आस-पास में मौजूद जनमानस के अन्तस्थों में यह कण जाकर उनके कफ-विकार को बर्हिगमित करेंगे। इसी संदर्भ में चरक संहिता के सूत्र-स्थानों में कहा गया है-

वसन्ते निचित:श्लेष्मा दिनकृद्भाभिरीरित:।
कायाग्निं बधते रोगांस्तत: प्रकुरूते बहून्।।
तस्मैद्वसन्ते कर्माणि वमनादीनि कारयेत्।।

उपरोक्त बातों से यह स्पष्ट होता है कि अबीर-गुलाल(औषधी-चूर्ण) से उत्सवादिक च्च्रंगज्ज्अर्थात नाचना, गाना ही शुद्ध होली है। और तिलक स्वरूप धारण करना क्यों आवश्यक है तो इस संदर्भ भारतीय मनीषियों ने तो बहुत तर्क दिये हैं परन्तु पाश्चात्य विद्वान भी इस बारे में अपना अभिमत कुछ इस प्रकार देते हैं..इसके पीछे आध्यात्मिक महत्व है। दरअसल, हमारे शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो अपार शक्ति के भंडार हैं। इन्हें चक्र कहा जाता है। माथे के बीच में जहां तिलक लगाते हैं, वहां आज्ञाचक्र होता है।-रोबिटो, फ्रीमोंट (कैलिफोर्निया)। आध्यात्म में आज्ञा-चक्र को त्रिकूट स्थान को कहा गया है, उस स्थान पर ढ़ाक के पत्ते से नि:सृ किया गया द्रव पदार्थ अथवा कण को तिलक स्वरूप लगाने से वसन्त की मादकता समाप्त हो जाती है और पुन: आज्ञा-चक्र जागृत हो अपने साधना में कार्यरत हो जाती है । अत: इस प्रकार सूखी होली अथवा औषधीय-चूर्ण(अबीर-गुलाल) से ही रंगोत्सव मनाये जाने के लिए शास्त्र भी दिशानिर्देशित करते हैं जिसका एकमात्र कारण अथवा उनका लक्ष्य था शिशीर ऋतु के जमें कफ को वमित कराना अतएव भारतीय हर उत्सवों के पिछे वैज्ञानिकीय रहस्य छुपा रहता है जरूरत है उन धर्म-संविधान सूत्रों पर चलने की। 

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

नवमम् सिद्धीदात्री च (माँ के 9 रूप और साधना)


मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप शैलपुत्री
मां दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्रीके रूप में जानी जाती हैं। पर्वतराजहिमालय के यहां जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्रीकहा गया। भगवती का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। इस स्वरूप का पूजन आज के दिन किया जाएगा। किसी एकांत स्थान पर मृत्तिका से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं और उस पर कलश स्थापित करें। कलश पर मूर्ति स्थापित करें। कलश के पीछे स्वास्तिकऔर उसके युग्म पा‌र्श्व में त्रिशूल बनाएं।

ध्यान:-
वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्॥
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥

स्तोत्र:-
प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्।
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

कवच:-
ओमकार:में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥
श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।
हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥
फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।
शैलपुत्रीके पूजन से मूलाधार चक्र जागृत होता है, जिससे अनेक प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।
मां दुर्गा का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी
मां दुर्गा अपने द्वितीय स्वरूप में ब्रह्मचारिणी के रूप में जानी जाती हैं।
दधानाकरपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलम्
देवी प्रसीदतुमयिब्रह्म ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या, तप का आचरण करने वाली भगवती, जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया, वेदस्तत्वंतपो ब्रह्म, वेद, तत्व और ताप [ब्रह्म] अर्थ है ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है, इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डल रहता है।

ध्यान:-
वन्दे वांच्छितलाभायचन्द्रर्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्॥
पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्॥

स्तोत्र:-
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
नवचक्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।
कवच:-
त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।
अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरी॥
षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥
भगवती दुर्गाचंद्रघण्टा का ध्यान, स्तोत्र और कवच का पाठ करने से मणिपुर चक्र जाग्रत हो जाता है। जिससे सांसारिक परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है।
मां दुर्गा का तृतीय स्वरूपब्रह्मचारिणी
मां दुर्गा अपने तृतीय स्वरूप में चन्द्रघंटाके नाम से जानी जाती हैं।
पिण्डजप्रवरारूढाचण्डकोपास्यकैर्युता।
प्रसादं तनुते महं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
भगवती दुर्गा अपनी तीसरे स्वरूप में चन्द्रघंटानाम से जानी जाती हैं। नवरात्र के तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन किया जाता है। इनका रूप परम शांतिदायकऔर कल्याणकारी है, इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है इसी कारण से इन्हें चन्द्रघंटादेवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला हैं, इनके दस हाथ हैं, इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र, बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है, इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उदधृत रहने की होती है इनके घंटे सी भयानक चंडध्वनिसे अत्याचारी दानव, दैत्य, राक्षस सदैव प्रकम्पित रहते हैं।
ध्यान:-
वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम्।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्॥
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्॥
स्तोत्र:-
आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्ति: शुभा पराम्।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
कवच:-
रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धारं बिना होमं।
स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।
न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥

भगवती दुर्गाचंद्रघण्टा का ध्यान, स्तोत्र और कवच का पाठ करने से मणिपुर चक्र जाग्रत हो जाता है। जिससे सांसारिक परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है।
मां दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप
मां दुर्गा अपने चतुर्थ स्वरूप में कूष्माण्डाके नाम से जानी जाती है।
सुरासम्पूर्णकलशंरुधिप्लूतमेव च।
दधाना हस्तपदमाभयां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
भगवती दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। अत: यही सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति हैं। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था ही नहीं। इनकी आठ भुजाएं हैं। अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डल, धनुष बाण, कमल, पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा कुम्हडे को कहते हैं। बलियों में कुम्हडे की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी यह कूष्माण्डा कही जाती हैं।
ध्यान:-वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिण रत्‍‌नकुण्डल मण्डिताम्।
प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्।
कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥
स्त्रोत:-दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्।
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दु:ख शोक निवारिणाम्।
परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
कवच:-हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा।
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु॥

भगवती कूष्माण्डा का ध्यान, स्त्रोत, कवच का पाठ करने से अनाहत चक्र जाग्रत हो जाता है, जिससे समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।
मां दुर्गा का पांचवां स्वरूप स्कन्दमाता

मां दुर्गा अपने पांचवें स्वरूपमें स्कन्दमाता के नाम से जानी जाती है।
सिंहासनगतानित्यंपद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तुसदा देवी स्कन्दमातायशस्विनीम्॥
भगवती दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाताके रूप में जाना जाता है। स्कन्द कुमार अर्थात् काíतकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कन्दमाताकहते हैं। इनका वाहन मयूर है। मंगलवार के दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थितहोता है। इनके विग्रह में भगवान स्कन्दजीबाल रूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं। स्कन्द मातुस्वरूपणीदेवी की चार भुजाएं हैं। ये दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द्रको गोद में पकडे हुए हैं और दाहिने तरफ की नीचे वाली भुजा वरमुद्रामें तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर उठी हुई है, इसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णत:शुभ है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण से इन्हें पद्मासनादेवी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है।
ध्यान:-वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजास्कन्धमातायशस्वनीम्॥
धवलवर्णाविशुद्ध चक्रस्थितांपंचम दुर्गा त्रिनेत्राम।
अभय पदमयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधरामभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानाकृदुहज्ञसयानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिणिरत्नकुण्डलधारिणीम।।
प्रभुल्लवंदनापल्लवाधरांकांत कपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांजारूत्रिवलींनितम्बनीम्॥
स्तोत्र:-नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥
शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्‍‌नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपाíचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्।
सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥
मुमुक्षुभिíवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्।
नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।
सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्।
सुधाíमककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥
शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्।
तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥
सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्।
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥
प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्।
स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥
इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्।
पुन:पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुराíचताम॥
जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥
कवच:-ऐं बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयंपातुसा देवी कातिकययुता॥
श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा।
सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासितांगीचसंहारिणी।
सर्वदापातुमां देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवै॥

भगवती स्कन्दमाताका ध्यान स्तोत्र व कवच का पाठ करने से विशुद्ध चक्र जागृत होता है। इससे मनुष्य की समस्त इच्छाओं की पूíत होती है। परम शांति व सुख का अनुभव होने लगता है।

मां दुर्गा का छठा स्वरूप कात्यायनी

मां दुर्गा अपने छठे स्वरूप में कात्यायनी के नाम से जानी जाती है। चन्द्रहासोज्वलकराशार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभ दधादेवी दानवघातिनी॥
भगवती दुर्गा के छठेंरूप का नाम कात्यायनी है। महíष कात्यायन के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन उन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य एवं दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला, और भास्वर है। इनकी चार भुजाएं हैं। माता जी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रामें है तथा नीचे वाला वरमुद्रामें, बाई तरफ के ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।

ध्यान:-वन्दे वांछित मनोरथार्थचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम।
वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामि॥
पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्।।
प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्।
कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्॥

स्तोत्र:-कंचनाभां कराभयंपदमधरामुकुटोज्वलां।
स्मेरमुखीशिवपत्नीकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।
सिंहास्थितांपदमहस्तांकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
परमदंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति,परमभक्ति्कात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्वहर्ती,विश्वप्रीता।
विश्वाचितां,विश्वातीताकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥
कांकारहíषणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥
कां कारिणी कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै क:ठ:छ:स्वाहारूपणी॥

कवच:-
कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।
ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य संदरी॥
कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥

भगवती कात्यायनी का ध्यान, स्तोत्र और कवच के जाप करने से आज्ञाचक्र जाग्रत होता है। इससे रोग, शोक, संताप, भय से मुक्ति मिलती है।

मां दुर्गा का सातवां स्वरूप कालरात्रि

मां दुर्गा अपने सातवें स्वरूप में कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। एकवेणीजपाकर्णपुरानाना खरास्थिता।
लम्बोष्ठीकíणकाकर्णीतैलाभ्यशरीरिणी॥
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनर्मूध्वजाकृष्णांकालरात्रिभर्यगरी॥
मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हे। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है, सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र है, ये तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के सदृश्यगोल है, इनसे विद्युत के समान चमकीलीकिरणें नि:सृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वांसप्रश्वांससे अग्नि की भंयकरज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रासे सभी को वर प्रदान करती है। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रामें है बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे हाथ में खड्ग है। मां का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली है। इसी कारण इनका नाम शुभकरीभी है अत:इनसे किसी प्रकार भक्तों को भयभीत होने अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।

ध्यान:-करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।
कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघो‌र्ध्वकराम्बुजाम्।
अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।
घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।
एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥

स्तोत्र:-हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती।
कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥
कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघन्ीकुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥
क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।
कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥

कवच:-ॐ क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि।
ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणी॥
रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम
कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।
वíजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि।
तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥

भगवती कालरात्रि का ध्यान,कवच,स्तोत्र का जाप करने से भानु चक्र जाग्रत होता है, इनकी कृपा से अग्नि भय, आकाश भय, भूत पिशाच, स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं, यह माता भक्तों को अभय प्रदान करने वाली है।

मां दुर्गा का आठवां स्वरूप महागौरी

मां दुर्गा अपने आठवें स्वरूप में महागौरीके नाम से जानी जाती है। ॐनमोभगवती महागौरीवृषारूढेश्रींहीं क्लींहूं फट् स्वाहा।
भगवती महागौरीवृषभ के पीठ पर विराजमान हैं, जिनके मस्तक पर चन्द्र का मुकुट है। मणिकान्तिमणि के समान कान्ति वाली अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण किए हुए हैं, जिनके कानों में रत्नजडितकुण्डल झिलमिलाते हैं, ऐसी भगवती महागौरीहैं।


ध्यान:-वन्दे वांछित कामार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्॥
पुणेन्दुनिभांगौरी सोमवक्रस्थिातांअष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम।
वराभीतिकरांत्रिशूल ढमरूधरांमहागौरींभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानामृदुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, कार, केयूर, किंकिणिरत्न कुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांत कपोलांचैवोक्यमोहनीम्।
कमनीयांलावण्यांमृणालांचंदन गन्ध लिप्ताम्॥
स्तोत्र:-सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाघप्रिया अघा महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगलात्वंहितापत्रयप्रणमाम्यहम्।
वरदाचैतन्यमयीमहागौरीप्रणमाम्यहम्॥

कवच:-ओंकार: पातुशीर्षोमां, हीं बीजंमां हृदयो।
क्लींबीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णो,हूं, बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों।
कपोल चिबुकोफट् पातुस्वाहा मां सर्ववदनो॥
भगवती महागौरीका ध्यान स्तोत्र और कवच का पाठ करने से सोमचक्र जाग्रत होता है, जिससे चले आ रहे संकट से मुक्ति होती है, पारिवारिक दायित्व की पूíत होती है वह आíथक समृद्धि होती है।

मां दुर्गा का नौवां स्वरूप सिद्धिदात्री


मां दुर्गा अपने नौवें स्वरूप में सिद्धिदात्रीके नाम से जानी जाती है। आदि शक्ति भगवती का नवम् रूप सिद्धिदात्रीहै, जिनकी चार भुजाएं हैं। उनका आसन कमल है। दाहिने और नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है, यह भगवती का स्वरूप है, इस स्वरूप की ही हम आराधना करते हैं।

ध्यान:-वन्दे वंाछितमनरोरार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
कमलस्थिताचतुर्भुजासिद्धि यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णानिर्वाणचक्रस्थितानवम् दुर्गा त्रिनेत्राम।
शंख, चक्र, गदा पदमधरा सिद्धिदात्रीभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानांसुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, हार केयूर, किंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनापल्लवाधराकांत कपोलापीनपयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांक्षीणकटिंनिम्ननाभिंनितम्बनीम्॥

स्तोत्र:-कंचनाभा शंखचक्रगदामधरामुकुटोज्वलां।
स्मेरमुखीशिवपत्नीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।
नलिनस्थितांपलिनाक्षींसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
परमानंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति,परमभक्तिसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
विश्वकतींविश्वभर्तीविश्वहतींविश्वप्रीता।
विश्वíचताविश्वतीतासिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारणीभक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्रीनमोअस्तुते।।
धर्माथकामप्रदायिनीमहामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनीसिद्धिदात्रीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

कवच:-ओंकार: पातुशीर्षोमां, ऐं बीजंमां हृदयो।
हीं बीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णोश्रींबीजंपातुक्लींबीजंमां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुकोहसौ:पातुजगत्प्रसूत्यैमां सर्व वदनो॥

भगवती सिद्धिदात्रीका ध्यान, स्तोत्र, कवच का पाठ करने से निर्वाण चक्र जाग्रत होता है जिससे ऋद्धि, सिद्धि की प्राप्ति होती है। कार्यो में चले आ रहे व्यवधान समाप्त हो जाते हैं। कामनाओं की पूíत होती है।


दुर्गतिनाशिनी विंध्यवासिनी

भगवती विंध्यवासिनी आद्या महाशक्ति हैं। विंध्याचलसदा से उनका निवास-स्थान रहा है। जगदम्बा की नित्य उपस्थिति ने विंध्यगिरिको जाग्रत शक्तिपीठ बना दिया है। महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर देवी की स्तुति करते हुए कहते हैं- विन्ध्येचैवनग-श्रेष्ठे तवस्थानंहि शाश्वतम्।हे माता! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचलपर आप सदैव विराजमान रहती हैं। पद्मपुराणमें विंध्याचल-निवासिनीइन महाशक्ति को विंध्यवासिनी के नाम से संबंधित किया गया है- विन्ध्येविन्ध्याधिवासिनी।
श्रीमद्देवीभागवतके दशम स्कन्ध में कथा आती है, सृष्टिकत्र्ता ब्रह्माजीने जब सबसे पहले अपने मन से स्वायम्भुवमनु और शतरूपाको उत्पन्न किया। तब विवाह करने के उपरान्त स्वायम्भुवमनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ वर्षो तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया। वर देने के बाद महादेवी विंध्याचलपर्वत पर चली गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही विंध्यवासिनी की पूजा होती रही है। सृष्टि का विस्तार उनके ही शुभाशीषसे हुआ।
त्रेतायुगमें भगवान श्रीरामचन्द्र सीताजीके साथ विंध्याचलआए थे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वर महादेव से इस शक्तिपीठ की माहात्म्य और बढ गया है। द्वापरयुगमें मथुरा के राजा कंस ने जब अपने बहन-बहनोई देवकी-वसुदेव को कारागार में डाल दिया और वह उनकी सन्तानों का वध करने लगा। तब वसुदेवजीके कुल-पुरोहित गर्ग ऋषि ने कंस के वध एवं श्रीकृष्णावतारहेतु विंध्याचलमें लक्षचण्डीका अनुष्ठान करके देवी को प्रसन्न किया। जिसके फलस्वरूप वे नन्दरायजीके यहाँ अवतरित हुई।
मार्कण्डेयपुराणके अन्तर्गत वर्णित दुर्गासप्तशती(देवी-माहात्म्य) के ग्यारहवें अध्याय में देवताओं के अनुरोध पर भगवती उन्हें आश्वस्त करते हुए कहती हैं, देवताओं वैवस्वतमन्वन्तर के अट्ठाइसवेंयुग में शुम्भऔर निशुम्भनाम के दो महादैत्यउत्पन्न होंगे। तब मैं नन्दगोपके घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण हो विन्ध्याचल में जाकर रहूँगी और उक्त दोनों असुरों का नाश करूँगी।
लक्ष्मीतन्त्र नामक ग्रन्थ में भी देवी का यह उपर्युक्त वचन शब्दश:मिलता है। ब्रज में नन्द गोप के यहाँ उत्पन्न महालक्ष्मीकी अंश-भूता कन्या को नन्दा नाम दिया गया। मूर्तिरहस्य में ऋषि कहते हैं- नन्दा नाम की नन्द के यहाँ उत्पन्न होने वाली देवी की यदि भक्तिपूर्वकस्तुति और पूजा की जाए तो वे तीनों लोकों को उपासक के आधीन कर देती हैं।
श्रीमद्भागवत महापुराणके श्रीकृष्ण-जन्माख्यान में यह वर्णित है कि देवकी के आठवें गर्भ से आविर्भूत श्रीकृष्ण को वसुदेवजीने कंस के भय से रातोंरात यमुनाजीके पार गोकुल में नन्दजीके घर पहुँचा दिया तथा वहाँ यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं भगवान की शक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा ले आए। आठवीं संतान के जन्म का समाचार सुन कर कंस कारागार में पहुँचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर जैसे ही पटक कर मारना चाहा, वैसे ही वह कन्या कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुँच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित किया। कंस के वध की भविष्यवाणी करके भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई।
मन्त्रशास्त्रके सुप्रसिद्ध ग्रंथ शारदातिलक में विंध्यवासिनी का वनदुर्गा के नाम से यह ध्यान बताया गया है-
सौवर्णाम्बुजमध्यगांत्रिनयनांसौदामिनीसन्निभां
चक्रंशंखवराभयानिदधतीमिन्दो:कलां बिभ्रतीम्।
ग्रैवेयाङ्गदहार-कुण्डल-धरामारवण्ड-लाद्यै:स्तुतां
ध्यायेद्विन्ध्यनिवासिनींशशिमुखीं पा‌र्श्वस्थपञ्चाननाम्॥
जो देवी स्वर्ण-कमल के आसन पर विराजमान हैं, तीन नेत्रों वाली हैं, विद्युत के सदृश कान्ति वाली हैं, चार भुजाओं में शंख, चक्र, वर और अभय मुद्रा धारण किए हुए हैं, मस्तक पर सोलह कलाओं से परिपूर्ण चन्द्र सुशोभित है, गले में सुन्दर हार, बांहों में बाजूबन्द, कानों में कुण्डल धारण किए इन देवी की इन्द्रादिसभी देवता स्तुति करते हैं। विंध्याचलपर निवास करने वाली, चंद्रमा के समान सुंदर मुखवालीइन विंध्यवासिनी के समीप सदाशिवविराजितहैं।
सम्भवत:पूर्वकाल में विंध्य-क्षेत्रमें घना जंगल होने के कारण ही भगवती विन्ध्यवासिनीका वनदुर्गा नाम पडा। वन को संस्कृत में अरण्य कहा जाता है। इसी कारण ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी विंध्यवासिनी-महापूजा की पावन तिथि होने से अरण्यषष्ठी के नाम से विख्यात हो गई है।