अक्षय तृतीया
"न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्।
न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गङग्या समम्।।
" वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। वैशाख मास की विशिष्टता इसमें प़डने वाली अक्षय तृतीय के कारण अक्षुण्ण हो जाती है। भारतवर्ष संस्कृति प्रधान देश है। हिन्दू संस्कृति में व्रत और त्यौहारों का विशेष महत्व है। व्रत और त्यौहार नयी प्रेरणा एवं संस्कृति का सवंहन करते हैं। इससे मानवीय मूल्यों की वृद्धि बनी रहती है और संस्कृति का निरन्तर परिपोषण तथा सरंक्षण होता रहता है। भारतीय मनीषियों ने व्रत-पर्वो का आयोजन कर व्यक्ति और समाज को पथभ्रष्ट होने से बचाया है।
भारतीय काल गणना के अनुसार चार स्वयंसिद्ध अभिजित् मुहूर्त है -
1. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुडी पडवा)।
2. आखातीज (अक्षय तृतीया)।
3. दशहरा।
4. दीपावली के पूर्व की प्रदोष तिथि। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को "अक्षय तृतीया" या "आखा तृतीया" अथवा "आखातीज" भी कहते हैं। "अक्षय" का शब्दिक अर्थ है - जिसका कभी नाश (क्षय) न हो अथवा जो स्थायी रहे। स्थायी वहीं रह सकता है जो सर्वदा सत्य है। सत्य केवल परमात्मा है जो अक्षय, अखण्ड और सर्वव्यापक है। यह अक्षय तृतीया तिथि "ईश्वर तिथि" है। इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था इसलिए इनकी जयंतियां भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है। परशुरामजी की गिनती चिंरजीवी महात्माओं में की जाती है। अत: यह तिथि "चिरंजीवी तिथि" भी कहलाती है। चारों युगों - सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग में से त्रेतायुग का आरंभ इसी आखातीज से हुआ है जिससे इस तिथि को युग के आरंभ की तिथि "युर्गाद तिथि" भी कहते हैं।
भारतीय परिवेश में अक्षय तृतीया का महत्व:
1. बद्रीनारायण - दर्शन तिथि : इस तिथि को चारों धामों में से उल्लेखनीय एक धाम भगवान श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं। दर्शनार्थियों एवं भक्तों की अपार भी़ड रहती है। भक्तों के द्वारा इस दिन किए हुए पुण्य कर्म, त्याग, दान, दक्षिणा, जप-तप, होम-हवन, गंगा-स्नान आदि कार्य अक्षय की गिनती में आ जाते हैं। भगवान भक्तों का प्रसाद प्रेम से ग्रहण करते हैं।
2. वृंदावन में श्रीबिहारी जी के दर्शन : अक्षय तृतीया को ही वृंदावन में श्रीबिहारीजी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक बार ही होते हैं। देश के कौने-कौन से श्रद्धालु भक्त जन चरण दर्शन के लिए वृंदावन पधारते हैं।
3. आत्म-विश्लेषण तथा आत्म निरीक्षण तिथि: यह दिन हमें स्वयं को टटोलने के लिए आत्मान्वेषण, आत्मविवेचन और अवलोकन की प्रेरणा देने वाला है। यह दिन "निज मनु मुकुरू सुधारि" का दिन है। क्षय के कार्यो के स्थान पर अक्षय कार्य करने का दिन है। इस दिन हमें देखना-समझना होगा कि भौतिक रूप से दिखाई देने वाला यह स्थूल शरीर, संसार और संसार की समस्त वस्तुएं क्षय धर्मा है, अक्षय धर्मा नहीं है। क्षय धर्मा वस्तुएं - असद्भावना, असद्विचार, अहंकार, स्वार्थ, काम, क्रोध तथा लोभ पैदा करती है जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में आसुरीवृत्ति कहा है जबकि अक्षय धर्मा सकारात्मक चिंतन-मनन हमें दैवी संपदा की ओर ले जाता है। इससे हमें त्याग, परोपरकार, मैत्री, करूणा और प्रेम पाकर परम शांति पाते हैं अर्थात् व्यक्ति को दिव्य गुणों की प्राçप्त होती है। इस दृष्टि से यह तिथि हमें जीवन मूल्यों का वरण करने का संदेश देती है - "सत्यमेव जयते" की ओर अग्रसर करती है।
4. नवान्न का पर्व : वैशाख शुक्ल तृतीया को मनाया जाने वाला यह व्रत बहुश्रुत और बहुमान्य है। बुन्देलखण्ड में यह व्रत अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक ब़डी धूमधाम से मनाया जाता है। कुमारी कन्याएं अपने भाई, पिता, बाबा तथा गाँव-घर के, कुटुम्ब के लोगों को सगुन बांटती है औरा गीत गाती है। इस तिथि को सुख-समृद्धि और सफलता की कामना से व्रतोत्सव के साथ ही अस्त्र, शस्त्र, वस्त्र, आभूषण आदि बनवायें, खरीदें और धारण किए जाते हैं। नई भूमि का क्रय, भवन, संस्था आदि का प्रवेश इस तिथि को शुभ फलदायी माना जाता है।
5. परशुराम जयंती : इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था, इसीलिए इनकी जयंतियां भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है। श्री परशुरामजी प्रदोष काल में प्रकट हुए थे इसलिए यदि द्वितीया को मध्याह्न से पहले तृतीया आ जाए तो उस दिन "अक्षय तृतीया", "नर-नारायण जयंती", "हयग्रीव जयंती" सभी संपन्न की जाती है। इसे "परशुराम तीज" भी कहते हैं। अक्षय तृतीया ब़डी पवित्र और सुख सौभाग्य देने वाली तिथि है।
6. सामाजिक पर्व के रूप में अक्षय तृतीया : आखा तीज का दिन सामाजिक पर्व का दिन है। इस दिन कोई दूसरा मुहूर्त न देखकर स्वयंसिद्ध अभिजित् शुभ मुहूर्त के कारण विवाहोत्सव आदि मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं।
7. कृषि उत्पादन के संबंध में अक्षय तृतीया : किसानों में यह लोक विश्वास है कि यदि इस तिथि को चंद्रमा के अस्त होते समय रोहिणी आगे होगी तो फसल के लिए अच्छा होगा और यदि पीछे होगी तो उपज अच्छी नहीं होगी। अक्षय तृतीया में तृतीया तिथि, सोमवार और रोहिणी नक्षत्र तीनों का सुयोग बहुत श्रेष्ठ माना जाता है। इस संबंध में भड्डरी की कहावतें भी लोक में प्रचलित है।
दान के पर्व के रूप में : अक्षय तृतीया वाले दिन दिया गया दान अक्षय पुण्य के रूप में संचित होता है। इस दिन अपनी सामथ्र्य के अनुसार अधिक से अधिक दान-पुण्य करना चाहिए। इस तिथि पर ईख के रस से बने पदार्थ, दही, चावल, दूध से बने व्यंजन, खरबूज, लड्डू का भोग लगाकर दान करने का भी विधान है। अक्षय ग्रंथ गीता : गीता स्वयं एक अक्षय अमरनिधि ग्रंथ है जिसका पठन-पाठन, मनन एवं स्वाध्याय करके हम जीवन की पूर्णता को पा सकते हैं, जीवन की सार्थकता को समझ सकते हैं और अक्षय तत्व को प्राप्त कर सकते हैं। अक्षय तिथि के समान हमारा संकल्प दृढ़, श्रद्धापूर्व और हमारी निष्ठा अटूट होनी चाहिए। तभी हमें व्रतोपवासों का समग्र आध्यात्मिक फल प्राप्त हो सकता है।
न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गङग्या समम्।।
" वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। वैशाख मास की विशिष्टता इसमें प़डने वाली अक्षय तृतीय के कारण अक्षुण्ण हो जाती है। भारतवर्ष संस्कृति प्रधान देश है। हिन्दू संस्कृति में व्रत और त्यौहारों का विशेष महत्व है। व्रत और त्यौहार नयी प्रेरणा एवं संस्कृति का सवंहन करते हैं। इससे मानवीय मूल्यों की वृद्धि बनी रहती है और संस्कृति का निरन्तर परिपोषण तथा सरंक्षण होता रहता है। भारतीय मनीषियों ने व्रत-पर्वो का आयोजन कर व्यक्ति और समाज को पथभ्रष्ट होने से बचाया है।
भारतीय काल गणना के अनुसार चार स्वयंसिद्ध अभिजित् मुहूर्त है -
1. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुडी पडवा)।
2. आखातीज (अक्षय तृतीया)।
3. दशहरा।
4. दीपावली के पूर्व की प्रदोष तिथि। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को "अक्षय तृतीया" या "आखा तृतीया" अथवा "आखातीज" भी कहते हैं। "अक्षय" का शब्दिक अर्थ है - जिसका कभी नाश (क्षय) न हो अथवा जो स्थायी रहे। स्थायी वहीं रह सकता है जो सर्वदा सत्य है। सत्य केवल परमात्मा है जो अक्षय, अखण्ड और सर्वव्यापक है। यह अक्षय तृतीया तिथि "ईश्वर तिथि" है। इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था इसलिए इनकी जयंतियां भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है। परशुरामजी की गिनती चिंरजीवी महात्माओं में की जाती है। अत: यह तिथि "चिरंजीवी तिथि" भी कहलाती है। चारों युगों - सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग में से त्रेतायुग का आरंभ इसी आखातीज से हुआ है जिससे इस तिथि को युग के आरंभ की तिथि "युर्गाद तिथि" भी कहते हैं।
भारतीय परिवेश में अक्षय तृतीया का महत्व:
1. बद्रीनारायण - दर्शन तिथि : इस तिथि को चारों धामों में से उल्लेखनीय एक धाम भगवान श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं। दर्शनार्थियों एवं भक्तों की अपार भी़ड रहती है। भक्तों के द्वारा इस दिन किए हुए पुण्य कर्म, त्याग, दान, दक्षिणा, जप-तप, होम-हवन, गंगा-स्नान आदि कार्य अक्षय की गिनती में आ जाते हैं। भगवान भक्तों का प्रसाद प्रेम से ग्रहण करते हैं।
2. वृंदावन में श्रीबिहारी जी के दर्शन : अक्षय तृतीया को ही वृंदावन में श्रीबिहारीजी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक बार ही होते हैं। देश के कौने-कौन से श्रद्धालु भक्त जन चरण दर्शन के लिए वृंदावन पधारते हैं।
3. आत्म-विश्लेषण तथा आत्म निरीक्षण तिथि: यह दिन हमें स्वयं को टटोलने के लिए आत्मान्वेषण, आत्मविवेचन और अवलोकन की प्रेरणा देने वाला है। यह दिन "निज मनु मुकुरू सुधारि" का दिन है। क्षय के कार्यो के स्थान पर अक्षय कार्य करने का दिन है। इस दिन हमें देखना-समझना होगा कि भौतिक रूप से दिखाई देने वाला यह स्थूल शरीर, संसार और संसार की समस्त वस्तुएं क्षय धर्मा है, अक्षय धर्मा नहीं है। क्षय धर्मा वस्तुएं - असद्भावना, असद्विचार, अहंकार, स्वार्थ, काम, क्रोध तथा लोभ पैदा करती है जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में आसुरीवृत्ति कहा है जबकि अक्षय धर्मा सकारात्मक चिंतन-मनन हमें दैवी संपदा की ओर ले जाता है। इससे हमें त्याग, परोपरकार, मैत्री, करूणा और प्रेम पाकर परम शांति पाते हैं अर्थात् व्यक्ति को दिव्य गुणों की प्राçप्त होती है। इस दृष्टि से यह तिथि हमें जीवन मूल्यों का वरण करने का संदेश देती है - "सत्यमेव जयते" की ओर अग्रसर करती है।
4. नवान्न का पर्व : वैशाख शुक्ल तृतीया को मनाया जाने वाला यह व्रत बहुश्रुत और बहुमान्य है। बुन्देलखण्ड में यह व्रत अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक ब़डी धूमधाम से मनाया जाता है। कुमारी कन्याएं अपने भाई, पिता, बाबा तथा गाँव-घर के, कुटुम्ब के लोगों को सगुन बांटती है औरा गीत गाती है। इस तिथि को सुख-समृद्धि और सफलता की कामना से व्रतोत्सव के साथ ही अस्त्र, शस्त्र, वस्त्र, आभूषण आदि बनवायें, खरीदें और धारण किए जाते हैं। नई भूमि का क्रय, भवन, संस्था आदि का प्रवेश इस तिथि को शुभ फलदायी माना जाता है।
5. परशुराम जयंती : इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था, इसीलिए इनकी जयंतियां भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है। श्री परशुरामजी प्रदोष काल में प्रकट हुए थे इसलिए यदि द्वितीया को मध्याह्न से पहले तृतीया आ जाए तो उस दिन "अक्षय तृतीया", "नर-नारायण जयंती", "हयग्रीव जयंती" सभी संपन्न की जाती है। इसे "परशुराम तीज" भी कहते हैं। अक्षय तृतीया ब़डी पवित्र और सुख सौभाग्य देने वाली तिथि है।
6. सामाजिक पर्व के रूप में अक्षय तृतीया : आखा तीज का दिन सामाजिक पर्व का दिन है। इस दिन कोई दूसरा मुहूर्त न देखकर स्वयंसिद्ध अभिजित् शुभ मुहूर्त के कारण विवाहोत्सव आदि मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं।
7. कृषि उत्पादन के संबंध में अक्षय तृतीया : किसानों में यह लोक विश्वास है कि यदि इस तिथि को चंद्रमा के अस्त होते समय रोहिणी आगे होगी तो फसल के लिए अच्छा होगा और यदि पीछे होगी तो उपज अच्छी नहीं होगी। अक्षय तृतीया में तृतीया तिथि, सोमवार और रोहिणी नक्षत्र तीनों का सुयोग बहुत श्रेष्ठ माना जाता है। इस संबंध में भड्डरी की कहावतें भी लोक में प्रचलित है।
दान के पर्व के रूप में : अक्षय तृतीया वाले दिन दिया गया दान अक्षय पुण्य के रूप में संचित होता है। इस दिन अपनी सामथ्र्य के अनुसार अधिक से अधिक दान-पुण्य करना चाहिए। इस तिथि पर ईख के रस से बने पदार्थ, दही, चावल, दूध से बने व्यंजन, खरबूज, लड्डू का भोग लगाकर दान करने का भी विधान है। अक्षय ग्रंथ गीता : गीता स्वयं एक अक्षय अमरनिधि ग्रंथ है जिसका पठन-पाठन, मनन एवं स्वाध्याय करके हम जीवन की पूर्णता को पा सकते हैं, जीवन की सार्थकता को समझ सकते हैं और अक्षय तत्व को प्राप्त कर सकते हैं। अक्षय तिथि के समान हमारा संकल्प दृढ़, श्रद्धापूर्व और हमारी निष्ठा अटूट होनी चाहिए। तभी हमें व्रतोपवासों का समग्र आध्यात्मिक फल प्राप्त हो सकता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें