ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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सोमवार, 19 नवंबर 2018

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में किसको मिलेगी सत्ता ?

 छत्तीसगढ़ में भाजपा को सत्ता वापसी की राह आसान कर रहे हैं ये तीन ग्रह चंद्र, बुध और शुक्र वहीं कांग्रेस के लिए सबसे बड़े बाधक हैं न्यायाधीश 'शनि' ग्रह 🌷

कर्क लग्न वाले छत्तीसगढ़ राज्य गठन कुण्डली के मुताबिक गोचर में चन्द्रमा छत्तीसगढ़ की धनु राशि से चौथे भाव में भ्रमण कर रहे हैं, वहीं मंगल तीसरे भाव में जो पूर्व के सत्तारूढ़ पार्टी के लिए अति शुभ गोचर है, और छत्तीसगढ़ की कुण्डली में राज्येश मंगल अपनी नीच राशि कर्क राशि के हैं जो जहां एक ओर सत्ताधारी पार्टी भाजपा में आपसी शह-मात में उलझने के बावजूद सत्ता वापसी करेगी वहीं यह मंगल चूंकि गोचर में यानी 16 नवम्बर से 16 दिसम्बर 2018 तक विपक्ष ीी पार्टी कांग्रेस आपस की गुटबाजी से उबर नहीं पाएगी, ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि जबसे धनु राशि में शनि प्रवेश किए हैं तभी से छत्तीसगढ़ कांग्रेस में समय-समय पर कई फूट हुए उसी का एक हिस्सा छत्तीसगढ़ जोगी कांग्रेस है जो छत्तीसगढ़ कांग्रेस (अखिल भारतीय कांग्रेस) और 19 जून 1970 को दोपहर 2 बजकर 48 मिनट पर जन्मे राहुल गांधी की कुण्डली के अनुसार तुला लग्न की कुंडली में गुरु लग्न में हैं और वर्तमान में 14 सितंबर 2018 से दशमेश चंद्रमा की अन्तर्दशा चल रही है जो चंद्र इनको बहुत संतोषजनक सफलता नहीं दे पाएंगे जबकि इसके पूर्व इनको मंगल की अन्तर्दशा ने कई सफलताएं दिया है। अत: राहुल गांधी को (भूपेश बघेल,अध्यक्ष, छत्तीसगढ़) सत्ता वापसी नामुमकिन बना दिया है। अब जरा विंशोत्तरी महादशा की बात की जाए तो अभी वर्तमान में 15/8/2018 से 25/12/2018 तक शुक्र की महादशा में शनि का अन्तर एवं शुक्र का प्रत्यंतर चल रहा है जो भाजपा और मोदी जी के जन्मांक (2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर विस्तृत विश्लेषण हमारे इस यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है जिसका लिंक है https://youtu.be/XhA6nyVHQxw) शुक्र ही वह प्रबल ग्रह है जो नरेंद्र मोदी जी को पीएम पद तक पहुंचानेमें सहयोग किया। कुल मिलाकर अभी हालिया राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को संतोषजनक सफलता नहीं मिलती दिख रही है वहीं भाजपा शासित राज्यों में ले देकर सत्ता में वापसी करेगी जबकि कल 20/11/2018 को छत्तीसगढ़ में हो रहे विधानसभा चुनाव में गोचर में ग्रहबल भाजपा को बेहतरीन सफलता देंगे।

-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, शांतिनगर, भिलाई-दुर्ग

सोमवार, 12 नवंबर 2018

विश्वव्यापी सूर्योपासना का महापर्व 'छठ पूजा'

चौबेजी कहिन:- क्याें है विश्वव्यापी सूर्योपासना का महापर्व 'छठ पूजा' ।
‘आदित्याज्जायते  वृष्टिवृष्टरन्नं ततः प्रजाः’। सूर्य से वर्षा, वर्षा से अन्न और अन्न से प्रजा (प्राणी) का जन्म होता है। 🌷🙏 (पूरा आलेख अवश्य पढ़ें और अन्य मित्रों को शेयर करें) 🙏🌷
सूर्य षष्ठी व्रत (छठ पूजा) के पावन पर्व पर आप सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🌷🌷 आइए आज 'चौबेजी कहिन' सूर्योपासना के विषय पर आज विस्तृत चर्चा करेंगे। साथियों, पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र होने के कारण ‘काश्यप’ कहलाये। उनका लोकावतरण महर्षि की पत्नी अदिति के गर्भ से हुआ, अतः उनका एक नाम ‘आदित्य’ भी लोकविख्यात एवं प्रसिद्ध हुआ। उपनिषदों में आदित्य को ब्रह्म के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया है। छान्दोग्योपनिषद् ‘आदित्यो ब्रह्म’ कहता है तो तैत्तिरियारण्यक ‘असावादित्यो ब्रह्म’ की उपमा देता है।अथर्ववेद की भी यही मान्यता है। इसके मतानुसार आदित्य ही ब्रह्म का साकार स्वरूप है।

ऋग्वेद में सर्वव्यापक ब्रह्म तथा सूर्य में समानता का स्पष्ट रूप से बोध होता है। यजुर्वेद सूर्य और भगवान् में भेद नहीं करता। कपिला तंत्र में सूर्य को ब्रह्मांड के मूलभूत पंचतत्त्वों में से वायु का अधिपति घोषित किया गया है। हठयोग के अंतर्गत श्वास (वायु) को प्राण माना गया है और सूर्य इन प्राणों का मूलाधार है, अतः ‘आदित्यौ वै प्राणः’ कहा गया है। योग साधना में प्रतिपादित मणिपूरक चक्र को ‘सूर्यचक्र’ भी कहते हैं। हमारा नाभिकेन्द्र (सूर्यचक्र) प्राण का उद्गम स्थल ही नहीं बल्कि अचेतन मन के संस्कारों तथा चेतना का संप्रेषण केन्द्र भी है। सूर्यदेव इस चराचर जगत् में प्राणों का प्रबल संचार करते हैं- ‘प्राणः प्रजानामुदयत्येषं सूर्यः’। सूर्य भगवान् को मार्तण्ड भी कहते हैं क्योंकि ये जगत् को अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश से ओतप्रोत कर जीवनदान देते हैं। सूर्यदेव कल्याण के उद्गम स्थान होने के कारण शम्भु कहलाते हैं। भक्तों का दुःख दूर करने अथवा जगत् का संहार करने के कारण इन्हें त्वष्ट भी कहते हैं। किरण को धारण करने वाले सूर्य देव अंशुमान् के नाम से भी जाने जाते हैं। दरअसल सूर्य हम सभी पृथ्वी वासियों के पितृदेव भी हैं जिनको हम जलाञ्जली भी अर्पित करते हैं चाहे वह पितृपक्ष में तर्पण हो या प्रतिदिन अर्घ्य प्रदान करना हो किसी ना किसी बहाने हम सभी सूर्योपासना करते ही हैं। ऋग्वेद के पांच सबसे प्रभावशाली देवताओं में अग्नि, सूर्य  आदि प्रमुख हैं।
सूर्योपासना भिन्न-भिन्न रूपों में अनादिकाल से भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के विभिन्न भागों में भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक की जाती रही है। अमेरिका के रेड इंण्डिनों द्वारा आबाद क्षेत्रों में सूर्य मंदिर प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। कई प्रकार की सूर्य गाथाएँ हवाई द्वीप, जापान, दक्षिण अमेरिका तथा कैरिबियन द्वीपों में प्रचलित हैं, जो बताती हैं कि सूर्य सबका उपास्य रहा है। चीन के विद्वान् सूर्य को ‘याँग‘ मानते हैं। जापान सूर्य पूजक राष्ट्र है तथा दिनमान का आगमन सर्वप्रथम उसी देश से हुआ माना जाता है। बौद्ध जातकों में सूर्य का प्रसंग वाहन के रूप में स्थान-स्थान पर आया है तथा अजवीथि, नागवीथि और गोवीदि नाम के मार्गों के आधार पर उसकी तीन गतियाँ मानी गयी हैं। इस्लाम में सूर्य को ‘इल्म अहकाम अननजुमे’ का केन्द्र माना गया है। अर्थात् सूर्य इच्छा शक्ति को बढ़ाने वाली चैतन्य सत्ता के प्रतीक हैं। ईसाई धर्म में न्यूटेस्टामेण्ट में सूर्य के धार्मिक महत्त्व का विशद् एवं विस्तृत वर्णन है। सेण्टपाल ने इसीलिए रविवार का दिन पवित्र घोषित कर इस दिन प्रभु की आराधना दान दिये जाने आदि को अत्यन्त फलदायी माना है। ग्रीक और रोमन विद्वानों ने भी इसी दिन को पूजा का दिन स्वीकार किया है।

यद्यपि कालचक्र के दुष्प्रभाव से वर्तमान समय में सूर्योपासना की परम्परा का अत्यन्त ह्रास हो गया है, परन्तु फिर भी धर्म प्रधान भारत वर्ष में सनातन धर्मी जनता आज भी किसी न किसी रूप में सूर्य को देवता मानकर उनकी पूजा अभ्यर्थना करती है। इसी क्रम में सूर्यषष्ठी व्रत को मनाया जाता है। बिहार एवं झारखण्ड की जनता इस पावन तिथि को ‘छठपूजा’ के रूप में अत्यन्त श्रद्धा-उत्साह एवं उमंग के साथ मनाती है। वाराणसी एवं पूर्वांचल में इसे ‘डालछठ’ कहा जाता है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन नियम-स्नानादि से निवृत्त होकर फलाहार किया जाता है। पंचमी में दिन भर उपवास करके सायंकाल किसी नदी या सरोवर में स्नान करके अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके पश्चात् अस्वाद भोजन किया जाता है। लेकिन इस पर्व को देश की राजनीति ने अपने कुत्सित प्रभाव से रौंदकर 'बिहारियों का पर्व' बनाकर प्रांतीय-परप्रांतीय का जहर घोलने का काम किया, जो निंदनीय है।-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- "ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका शांतिनगर भिलाई-दुर्ग छत्तीसगढ़ मोबाइल नं. 9827198828 🙏🌷

शनिवार, 10 नवंबर 2018

अल्ट्रावॉयलेट किरणों से रक्षा करने वाला विश्व का सबसे लोकप्रिय पर्व है 'छठपूजा'

छठ पर्व लोक पर्व नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर मनाए जाने वाला महापर्व है ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य नीच राशि तुला राशि पर होते हैं उस समय पृथ्वी पर सूर्य की नकारात्मक ऊर्जा (अल्ट्रावायलेट किरणों) की अधिकता होती है, अतः उससे पृथ्वी वासियों को बचाने के लिए ृृृ ऋग्वेद में कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को (सूर्यास्त) सायंकालीन एवं सप्तमी तिथि को प्रातः कालीन (सूर्योदय) के समय अर्घ्य प्रदान करने की परम्परा की शुरुआत हुई जो आज 'छठपूजा' के रुप में प्रसिद्ध हुआ। उत्तर भारत में अधिक मान्यता इस व्रत को लेकर है, यह व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति, संतान के दीर्घायु के लिए किया जाता है। यह व्रत यदि किसी कारणवश महिलाएं यह व्रत करने में असमर्थ होती हैं तो पुरुष भी इस व्रत को करते हैं।




छठ व्रतियों को इस दौरान स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता है, और संतान की दीर्घायु, सुख समृद्धि सहित मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए स व्रत को किया जाता है। जिनकी मनौती पूरी हो जाती है वे सांध्यकालीन अर्घ्य देकर घाट से घर आने के बाद गन्ना का मण्डप बना कर चतुर्मुखी दीपक वाले कलश में चुडा (पोहा) मिठाई रखकर अपने पितरों को स्मरण करते हुए छठी मईया की गीत गाती हैं। इस व्रत में केला, सेव, अनानास, संतरा, नींबू, मुली, कंद-मूल एवं अनेक प्रकार के ऋतु फल के साथ ठेकुआ चढ़ाया जाता है। उपरोक्त सभी सामग्री को दौरी में जलते हुए दीपक के साथ घाट पर जाते हैं और वहां सूर्य मंत्र का वाचन करते हुए गाय का दुध मिश्रित जल से बांस की सुपेली (सूपा) या पितल के सूपा में सभी प्रकार के ऋतु फल रखकर सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय अर्घ्य प्रदान करना चाहिए।









शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

5 नवंबर को धनतेरस, कब है मुहूर्त और क्या करना चाहिए ?

धनतेरस पर खरीदी के लिए कब है शुभ मुहूर्त ?
धनतेरस को अमृतसिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और सोम प्रदोष भी पड़ रहे हैं। सूर्योदय से लेकर रात 8:37 बजे तक हस्त नक्षत्र है। यह चंद्रमा का नक्षत्र होता है। इस अवधि में खाता-बही, सोना-चांदी, गणेश-लक्ष्मी समेत परिवार की जरूरत का सामान खरीदना अत्यधिक शुभप्रद रहेगा। सोमवार रात 11:48 बजे से भद्रा आरंभ होने की वजह से इसके बाद खरीदी नहीं करना चाहिए। धनतेरस को ही धन्वंतरि भगवान हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।
आचार्य पण्डित विनोद चौबे, शांतिनगर भिलाई ने बताया कि धनतेरस में दीपदान शाम को 05:14 बजे से 7:50 बजे तक प्रदोषकाल में शुभ रहेगा। प्रवेशद्वार पर अनाज की ढेरी लगाकर और दक्षिण दिशा में तिल के तेल का 1 दीपक जलाना चाहिए, और उत्तर दिशा में 8 तथा पूर्व दिशा में 3 एवं नैऋत्य कोंण में पितरों के लिए 1 दिपक अवश्य जलाएं। साथ ही कुण्डली में मारकेश एवं अरिष्टकारी (रोग) कुयोग की शांति के लिए भगवान धन्वंतरि का विधिवत पूजन करें, धनवंतरि की पूजा का शुभ मुहूर्त है सोमवार रात 8:33 बजे है । पण्डित विनोद चौबे ने बताया की भगवान धनवंतरि को हर, बहेड़ा, केसर, आंवला व हल्दी अर्पित करने से रोग और व्याधि दूर होते हैं,और इन औषधियों का वैद्य से सलाह लेकर सेवन भी करना चाहिए।

चौघड़िया मुहूर्त इस प्रकार है:-
प्रातः अमृत  06:35:38 -   07:57:58 अमृत
प्रातः  शुभ  09:20:18 -   10:42:37 शुभ
दोपहर लाभ  2 :49:36 -   4 :11:56 लाभ
अपराह्न 4 :11:56 -   5 :34:16 अमृत
रात्रि में  10 :27:34 -   11 :45:20 लाभ
अभिजित मुहूर्त:-  11:42:40 - 12:26:32 इस समय ज़मीन- जायदाद या व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में धनतेरस पूजन उत्तम रहेगा। इसके बाद भद्रा आरंभ हो जायेगा, अतः भद्रा में खरीदारी नहीं करना चाहिए।
वैसे तो धनतेरस पर सभी राशियों के लोगों द्वारा शुभ मुहूर्त में किसी भी प्रकार की वस्तुओं की खरीददारी 13 गुना लाभकारी होता है परन्तु अलग अलग राशियों के मुताबिक यदि खरीदी की जाय तो और बेहतर होगा।
मेष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, धनु, मीन राशि वालों को बर्तन, इलेक्ट्रानिक उपकरण और चांदी खरीदना उत्तम रहेगा।
वृषभ राशि वालों को चांदी के सिक्के या चांदी के बर्तन खरीदना उत्तम रहेगा।
मिथुन, सिंह, कन्या राशि वालों के लिए- पीला वस्त्र एवं सोना खरीदना उत्तम रहेगा।
तुला राशि वालों के लिए वाहन अथवा कांस्य धातु के बर्तन खरीदना उत्तम रहेगा।
मकर राशि वालों को घरेलू सामान जिसका उपयोग भोजन बनाने में होता हो उसे जरूर खरीदना चाहिए।
कुंभ राशि वालों के गोचर में गुरु को और प्रबल करने के लिए इस धनतेरस पर स्वर्ण आभूषण या पीले रंग का वस्त्र अवश्य खरीदना चाहिए।
राहु काल : धनतेरस के दिन राहु काल प्रात:   07:57:54  09:20:08 तक रहेगा अत: यह किसी भी शुभकार्य में वर्जित है।
-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई-दुर्ग, छत्तीसगढ़ मोबाइल नंबर 9827198828

सोमवार, 8 अक्तूबर 2018

नौका (नाव) पर सवार होकर आ रहीं हैं दुर्गा जी, नवरात्रि में बन रहे हैं कई दुर्लभ संयोग- ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

नौका (नाव) पर सवार होकर आ रहीं हैं दुर्गा जी, नवरात्रि में बन रहे हैं कई दुर्लभ संयोग- ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे


शारदीय नवरात्र 10 अक्टूबर 2018 बुधवार को चित्रा नक्षत्र में आरंभ हो रहा है जो आगामी 18 अक्टूबर 2018 दिन गुरुवार नवमी तक रहेगा। माताजी का आगमन नाव पर सवार होकर आ रही हैं और उनका प्रस्थान ऐरावत हाथी पर सवार होकर होगा यानी इस वर्ष आर्थिक दृष्टि से व्यापारी एव उद्यमियों के बहुत लाभकारी सिद्ध होगा। इस वर्ष भी यह  शारदीय नवरात्र पूरे 9 दिन का रहेगा, जो सभी के लिए सुख एवं समृद्धि भरा रहेगा। तंत्रकल्प में दशमहाविद्याओं की साधना शारदीय नवरात्र में बेहद अनुकूल माना गया है, वहीं मेरुतंत्र और भैरव तंत्र साहित्य में तो नवरात्र के पंचमी, सप्तमी एवं अष्टमी तिथि की बहुत महत्ता बताई गई है। मार्कण्डेय पुराण में शक्ति पूजा के बारे में कहा गया है कि - "शरत्काले या पूजा क्रियते या च वार्षिकी" यानी वर्ष में यदि चार नवरात्रि में आपने शक्ति की उपासना नहीं कर पा रहे हैं तो 'शारदीय नवरात्र" में यह देवी-अनुष्ठान बेहद लाभकारी होता है। तंत्रमहार्णव में 'बगलामुखी' की उपासना करने पर बल दिया गया है क्योंकि यह बगलामुखी पुरश्चरण का विधान जहां शत्रु बाधा से मुक्ति दिलाता है वहीं श्री (लक्ष्मी) की प्राप्ति एवं सामाजिक, राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों पर विजय प्राप्त करने का काम भी करता है।

10 अक्टूबर को प्रतिपदा को कलश स्थापना के साथ इस नवरात्रि का अनुष्ठान आरंभ करना चाहिए।

स्थापना मुहूर्त :

प्रातः सूर्योदय से 07:27 मिनट तक सर्वोत्तम मुहूर्त है क्योंकि इसके बाद द्वितीया तिथि आरंभ हो जायेगी। यदि किसी कारणवश विलंब होता है तो प्रात: 10 बजकर 11 मिनट तक घट स्थापना कर ही लेना चाहिए ।

किसकी और कब पूजा की जानी चाहिए.

10 अक्टूबर  (बुधवार) 2018  : घट स्थापन एवं  माँ शैलपुत्री पूजा,  माँ ब्रह्मचारिणी पूजा

11 अक्टूबर (बृहस्पतिवार ) 2018 :  माँ चंद्रघंटा पूजा

12 अक्टूबर (शुक्रवार ) 2018 :  माँ कुष्मांडा पूजा

13 अक्टूबर (शनिवार) 2018 :  माँ स्कंदमाता पूजा 

14 अक्टूबरर (रविवार ) 2018 : पंचमी तिथि -सरस्वती आह्वाहन 

15 अक्टूबर (सोमवार) 2018 :  माँ कात्यायनी पूजा

16 अक्टूबर (मंगलवार ) 2018 :  माँ कालरात्रि पूजा 

17 अक्टूबर (बुधवार) 2018 : माँ महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी , महा नवमी

18 अक्टूबर (बृहस्पतिवार) 2018 :नवरात्री पारण

19 सितम्बर (शुक्रवार ) 2018 :  दुर्गा विसर्जन, विजय दशमी

राशियों के अनुसार देवी पूजन :


मेष:- लाल कपड़े से दुर्गा जी श्रृंगार करके पूजन करें।

वृषभ:- मां शैलपुत्री की कपूर एवं केसर से पूजन करें।

मिथुन:- कुष्मांडा देवी की अपामार्ग से पूजा करें ।

कर्क :- मां गौरी को मौलसिरी पुष्पों से पूजा करें।

 सिंह:- मां अष्टभुजा देवी की उपासना करें, खीर का भोग लगाएं।

कन्या:- स्कन्द माता देवी का स्वर्ण के साथ पूजन करें।

तुला:- आपकी राशि से वृहस्पति प्रस्थान कर रहे हैं अत: इस नवरात्रि में आपको कामाख्या पूजा करें।

वृश्चिक:- सिंह वाहिनी देवी की रोज 11 पान के पत्तों से पूजन एवं भोग लगाएं।

धनु:- शनि जनित कष्ट दूर करने के लिए आपको देवी के साथ ही कालभैरव स्तोत्र का रोज 11 पाठ करें।

मकर:- मां कात्यायनी की पूजा करने से आय बढ़ेगी।

कुम्भ:- आपकी राशि पर शत्रु बाधा समाप्त करने के लिए बगलामुखी साधना करनी चाहिए।

मीन:- प्रतिदिन सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।

देवी आराधना में दुर्वा, मदार (अकवन) आक पुष्प वर्जित है। अखण्ड ज्योति में घी और तिल का प्रयोग करें। माता जी को दशमद का फुल बहुत प्रिय है। अनार फल तथा केसर युक्त खीर अत्यधिक प्रिय है। बगलामुखी साधना में पीले आसन, पुष्प एवं फलों का ही प्रयोग करना चाहिए।

इस बार के नवरात्रि में 10 अक्टूबर से 18 अक्टूबर के बीच में राजयोग, द्विपुष्कर योग, अमृत योग ,सर्वार्थसिद्धि और सिद्धियोग का संयोग भी बन रहा है। इन 9 दिनों में नवरात्रि पूजा-पाठ और खरीदारी अत्यधिक शुभ और फलदायी रहेगी।

- ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे, शांतिनगर, भिलाई।। मोबाइल नं. 9827198828


शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

समलैंगिकता और बृहन्नला

तुम लोग जिस वात्स्यायन कामसूत्र की बात कर कुतर्क देते फिर रहे हो, उसे तो तुम लोगों ने सहज ही स्वीकार कर लिया, साथ में 'वैदिक सभ्यता' को भी स्वीकार कर लेते। एक बड़े पत्रकार ने अपने संपादकीय में 5130 वर्ष पूर्व के धनुर्धारी वीर अर्जुन के 'बृहन्नला' और 'शकुनी' का तर्क दिया है, हे पत्रकार महोदय मुझे इस बात की प्रसन्नता हुई कि कम से कम 'कृष्ण-अर्जुन' के अस्तित्व को आपने स्वीकार किया, किन्तु उपरोक्त दोनों के अन्य जीवन चरित्र के सिद्धांतो के मुताबिक भी भारतीय संविधान में 'वेदोक्त, शास्त्रोक्त विधान' एक्ट को भी लागू कराते तो मैं आपके इस पत्रकारिता को 'श्वान-सूकरी' पत्रकारिता ना बोलता। दिन-रात 'भगवा' को गरियाने वालों, हिन्दुओं को आतंकी सिद्ध करने वालों तुम्हारे अन्दर अचानक बृहन्नला, शकुनि और वात्स्यायन कामसूत्र के प्रति इतना प्रेम कैसे उमड़ पड़ा ? साफ है भारत की युवा पीढ़ी को नष्ट-भ्रष्ट करने की गहरी चाल है जिसको पूरी तरह राजनैतिक हवा तब मिली जब कांग्रेस नेता शशि थरूर ने 2015 में संसद पटल पर 'समलैंगिकता' को अपराध (धारा 377) से बाहर रखे जाने के लिए निजी बिल लेकर आए हालांकि वह बिल गिर गया लेकिन 2005 में गुजरात स्थित राजपिपला के राजकुमार 'मानवेंद्र' से लेकर भारत के कई अन्य हाईकोर्ट में मामलों आने लगे थे, लेकिन संसद में पहली बार इस बिल को शशि थरूर ने लाकर इसे बड़ी राजनैतिक हवा दी। 2016 अगस्त में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आया और 2017 में इसे निजता बताया गया और अब यह 2018 में इस बेवाहयात मानसिक रूप से मुठ्ठी भर 'कामरोगियों' के पक्ष में पर फैसला आ गया। यह एक सुसंस्कृत भारतीय समाज में विष घोलने का काम तो किया ही गया बल्कि कई ऐसे असाध्य रोगों को आयातित करने का आमंत्रण दिया गया, साथ ही हिन्दू संस्कृति, हिन्दुत्व विचारधारा पर कठोर प्रहार किया गया है। अब आप समझ गए होंगे इसके जड़ को। आज 'चौबेजी कहिन' में हमने मुगलों का नाम क्यों जोड़ा क्योंकि की 'मुगल शासक' स्वयं ही 'समलैंगिक' थे, और पिछले दिनों कई पादरी और फादरों द्वारा दुधमुंहे बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौनाचार के अपराध में जेल की हवा खा रहे हैं, हालांकि ईसाई, स्लाम दोनों धर्मों में 'समलैंगिकता' की तिव्र निंदा की गई है, बावजूद 'बाबर प्रेमी' इस समलैंगिकता के पैरोकार हैं। जबकि हालांकि समलैंगिकता के खिलाफ अंग्रेजों ने धारा 377 को 1860 में लागू किया था। 158 साल पुराने इस कानून के द्वारा समलैंगिकता को गैरकानूनी बताया गया है जिसमें 1935 में फिर कुछ परिवर्तन कर दायरे को बढ़ाया गया।




शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

चौबेजी कहिन:- 'हर हर महादेव' के उद्घोष के साथ आज से सावन माह आरंभ। आईए सावन में पड़ने वाली विशेष तिथियां और रुद्राभिषेक हेतु अलग-अलग द्रव्यों के लाभ के बारे में कुछ जानकारियां प्रस्तुत करता हूं 🙏

आज से सावन का पवित्र माह आरंभ हो गया इस मांह को 'पावस माह' भी कहा जाता है। पौराणिक संदर्भों में वर्णित कथाओं के मुताबिक सनत्कुमारों का प्रसंग मिलता है वहीं मां पार्वती के 'शिव' जी को पति रुप में प्राप्त करने हेतु किए गए कठोर तप इसी सावन माह में किया गया। चूंकि मैं भिलाई के शांतिनगर में निवासरत हूं छत्तीसगढ़ के कई ग्रामीण इलाकों में जाना होता है यहां के लोग पूरे सावन में बाबा बूढादेव की पूजा अर्चना की जाती है, यत्र-तत्र-सर्वत्र शिव आराधना हर हर महादेव के उद्घोष के साथ की जाती है। आईए आपको सावन में पड़ने वाले कुछ विशेष तिथियों और रुद्राभिषेक द्रव्य और उसके लाभ के बारे में आज के "चौबेजी कहिन'' में चर्चा करेंगे 😊🌹





शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा।

बुधवार, 25 जुलाई 2018

चौबेजी कहिन:- 21 वीं सदी का अद्भुत खग्रास चंद्रग्रहण 27 जुलाई को। आईए जानते हैं 'चन्द्रग्रहण रहस्य'...🙏 आज 'फेसबुक लाईव' में बतायेंगे राशियों पर 'चन्द्रग्रहण' का शुभाशुभ प्रभाव।

चौबेजी कहिन:- 21 वीं सदी का अद्भुत खग्रास चंद्रग्रहण 27 जुलाई को। आईए जानते हैं 'चन्द्रग्रहण रहस्य'...🙏 आज 'फेसबुक लाईव' में बतायेंगे राशियों पर 'चन्द्रग्रहण' का शुभाशुभ प्रभाव।

26/7/2018

खग्रास चंद्रग्रहण 27/28 जुलाई 2018 शुक्रवार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पुर्णिमा को लगेगा। जिसका सूतक 27/7/2018 को दोपहर 2 बजकर 54 मिनट से आरंभ हो जायेगा अत: इसके बाद मंदिरों के पट बंद हो जायेंगे, साथ ही आज गुरु पूर्णिमा होने की वजह से सूतक लगने के पूर्व यानी दोपहर 2 बजकर 54 मिनट के पहले ही गुरुपूजन आदि कार्य संपन्न कर लें, क्योंकि सूतक लगने के बाद किसी भी प्रकार का मांगलिक कार्य या पूजन अर्चन करना या अन्नग्रहण करना वर्जित है।

चन्द्रग्रहण रात्रि 27/7/2018 को 11बजकर 54 (PM) मिनट से लेकर 28/7/2018 को रात्रि 03 बजकर 49 मिनट (AM) तक 235 मिनट तक रहेगा जो 21वीं सदी का सबसे लंबा और पूर्ण चंद्रग्रहण है।

साथियों नमस्कार 🙏 वैसे तो चंद्र ग्रहण का प्रभाव शुभ नहीं माना जाता। खगोलीय दृष्टि से चंद्र ग्रहण के समय पृथ्वी अपनी धूरी पर भ्रमण करते हुए चंद्रमा व सूर्य के बीच आ जाती है। ऐसी स्थिति में चंद्रमा का पूरा या आधा भाग ढ़क जाता है। इसी को चंद्र ग्रहण कहते हैं। यह चंद्रग्रहण भारत सहित दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, पश्चिम एशिया, आस्ट्रेलिया और यूरोप में देखा जा सकेगा।

ज्योतिष के अनुसार अभी वर्तमान में गोचर मकर राशि के केतु और चंद्रमा की प्रधानता रहेगी। राहु से समसप्तक दृष्टि संबंध रहेगा। जो अशुभता का प्रतीक माना जाता है। इसी कारण बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं से रू-ब-रू होना पड़ सकता है। पृथ्वी के पूर्वोत्तर भाग में भूकंप की संभावना है वहीं जिसके जन्मांक में चन्द्र कमजोर है उसे ग्रहण के दौरान घर से बाहर ना निकले ं क्योंकि ऐसे लोगों पर किन्हीं कारणों से डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं इसके अलावा जिन जातकों के जन्मांक में ग्रहण-दोष है उनको ग्रहण के दौरान महापुरुषों के जीवन चरित्र को पढ़ना चाहिए जिनका जीवन बेहद संघर्ष पूर्ण रहा है ताकी उनके जीवन चरित्र से सीख लेकर अवसाद ग्रस्त लोग 'देहविसर्जन' यानी आम भाषा में 'आत्महत्या' की आशंकाओं के प्रबलता से बच सकें। इसके अलावा ग्रहण के दौरान विकिरण के कारण आंखों, रक्तचाप और फुडपायजनिंग आदि रोगों की संभावना बढ़ जाती है अतः ऐसे रोगियों के लिए विशेष तौर पर सावधानी बरतने की आवश्यकता है। कुछ वामपंथी विचारधारा के लोग जो सनातनधर्म के द्रोही हैं और कुछ अन्य धर्मों के लोग जो नक़ल तो सनातन सिद्धांत का ही करते हैं परन्तु वे सनातनधर्म के प्रबल विरोधी भी हैं चूंकि उनकी यह मजबूरी है क्योंकि सनातनधर्म का वह विरोध नहीं करेंगे तो उनके असैद्धांतिक-धर्म का प्रचार कैसे संभव होगा कुछ ऐसे टाईप के लोग 'चन्द्रगहण' को खगोलीय घटना मानते हैं और ग्रहण में शास्त्रसम्मत वर्जनीय तथ्यों को दकियानूसी करार देते हैं, तो उन आसुरी प्रवृत्तियों को यह समझना चाहिए की ं🌹 सनातनधर्म एक प्रमाणिक व सैद्धांतिक धर्म है और इस धर्म ग्रंथों में वर्णित सभी विषय, प्रकल्प सद्य: प्रमाणित दस्तावेज हैं जिनमें कही एक एक बातें हर फ्लोर पर सटीक होती आई हैं तभी तो महाभारत काल में हमारे वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों एवं गणितज्ञों ने त्रिकोणमीति जो भारत की देन है, की सहायता से  5000 साल पहले ही बता दिया था कि महाभारत युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र में पूर्ण सूर्य ग्रहण लगेगा। पूर्ण सूर्य ग्रहण लगने से जब भरी दोपहरी में अंधकार छा जाता है तो पक्षी  भी अपने घोंसलों में लौट आते हैं। यह पिछले सूर्य ग्रहण के समय लोग देख चुके हैं और पूरे विश्व के वैज्ञानिक भी। तो ग्रहण का प्रभाव हर जीव जन्तु, मनुष्य, तथा अन्य ग्रहों पर  पड़ता है। गुरुत्वाकर्षण घटने या बढऩे से धरती पर भूकंप आने की संभावना ग्रहण के 41 दिन पहले या बाद तक रहती है। आज इसी विषय पर 'फेसबुक लाईव' में आपके समक्ष उपस्थित होऊंगा, यदि आपके मन में कोई प्रश्न हो तो आप कमेंट में लिखे, लेकिन मित्रों व्यक्तिगत प्रश्न नहीं होना चाहिए। प्रश्न केवल ग्रहण से जुड़ी है।। अस्तु।।



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(कृपया इस लेख को कोई कॉपी-पेस्ट ना करें ऐसा करते पाये जाने पर ' ज्योतिष का सूर्य' वैधानिक कार्यवाही करने को बाध्य होगा)