ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

रहस्यमय और अदभुत स्फटिक श्री यंत्र


रहस्यमय और अदभुत स्फटिक श्री यंत्र

भगवती महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति का सबसे प्रभावी उपाय है श्री यंत्र की विधिवत साधना. यह एक ऐसा विधान है जो अभूतपूर्व सफलता प्रदायक है. जब किसी भी अन्य उपाय से भगवती की प्रसन्नता प्राप्त न हो पा रही हो तो यह साधना विधान प्रयोग करना चाहिए. श्री यंत्र के बारे में कहा गया है कि.
चतु: षष्टया तंत्रै सकल मति संधाय भुवनम ।
स्थितस्तत्सिद्धि प्रसव परतंत्रै: पशुपति: ।
पुनस्त्वनिर्बन्धादखिल पुरूषार्थैक घटना ।
स्वतंत्रं ते तंत्रं क्षितितलमवातीतरदिदम ।

देवाधिदेव भगवान महादेव शिव ने इस सकल भुवन को 64 तंत्रो से भर दिया और फिर अपने दिव्य तापसी तेज से समस्त पुरूषार्थों को प्रदान करने में सक्षम श्री तंत्र को इस धरा पर प्रतिष्ठित किया. आशय यह कि श्री विद्या से संबंधित तंत्र ब्रह्?माण्ड का सर्वश्रेष्ठ तंत्र है जिसकी साधना ऐसे योग्य साधकों और शिष्यों को प्राप्त होती है जो समस्त तंत्र साधनाओं को आत्मसात कर चुके हों. इस साधना को प्रदान करने के लिए कहा गया है कि :-
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नत:, पिता पुत्रो न दातव्यं गोपनीयं महत्वत: ...
इस विद्या को सप्रयास गोपनीय रखना चाहिये, यह इतनी गोपनीय विद्या है कि इसे पिता को पुत्र से भी छुपाकर रखना चाहिये
तंत्र के क्षेत्र में श्री विद्या को निर्विवाद रूप से सर्वश्रेष्ठ तथा सबसे गोपनीय माना जाता है. श्री विद्या की साधना का सबसे प्रमुख साधन है श्री यंत्र... इसकी विशिष्टता का अनुमान इसी बात से लगाया जाता है कि सनातन धर्म के पुनरूद्धारक, भगवान शिव का अवतार माने जाने वाले, जगद्गुरू आदि शंकराचार्य ने जिन चार पीठों की स्थापना की, उनमें उन्होने पूरी प्रामाणिकता के साथ श्री यंत्र की स्थापना की. जिसके परिणाम के रूप में आज भी चारों पीठ हर दृष्टि से,
श्री यंत्र खरीदते समय सावधानियां :
श्रीयंत्र को खरीदते समय विशेष रूप से यंत्र में बने कोंणों पर देना चाहिए, यदि यत्र्ंा का कोई भी कोंण खण्डित या अपूर्ण आकार में नहीं होना चाहिए ,  श्रीयंत्र के ऐसे टेढ़े-मेढ़े आकृति के होने से विपरीत फल भी देता है, क्योंकि तंत्र में त्रिकोण को अत्यंत महत्व दिया गया है. मुख्य रूप से दो प्रकार के त्रिकोणों का प्रयोग यंत्रों के निर्माण में किया जाता है. पहला अधोमुखी तथा दूसरा उर्ध्वमुखी. एक पुरूष रूपी शिव का प्रतीक है तथा दूसरा स्त्री रूपी शक्ति का प्रतीक होता है. इन दोनों त्रिकोणों के विविध संयोजनों से यंत्रों का निर्माण होता है.।
इन नौ त्रिकोणों के संयोग से निर्मित इस यंत्र के मध्य में स्थित त्रिकोण के अंदर इस यंत्र का हृदय भाग होता है जिसमें बिंदु प्रतीक के रूप में महाविद्या श्री त्रिपुरसुंदरी का वास होता है. इन नवत्रिकोणों को शरीर के नवद्वारों का प्रतीक है. इन नवत्रिकोणों को वृत्त के अंदर निर्मित किया जाता है. वृत्त के बाहर पहले अष्ट(आठ) दल वाला कमल होता है जो अष्ट सिद्धियों का प्रतीक है. पुन: वृत्त जो ब्रह्माण्ड का प्रतीक है के बाद षोडश (सोलह) दल वाला कमल होता है जो जीवन की संपूर्णता माने जाने वाले षोडश कलाओं का प्रतीक हैं. इसके बाहर चार द्वारों से युक्त आवरण होता है।
श्री यंत्र से होने वाले लाभ :
श्री यंत्र प्रमुख रूप से ऐश्वर्य तथा समृद्धि प्रदान करने वाली महाविद्या त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी का सिद्ध यंत्र है. यह यंत्र सही अर्थों में यंत्रराज है. इस यंत्र को स्थापित करने का तात्पर्य श्री को अपने संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ आमंत्रित करना होता है. कहा गया है कि :-
श्री सुंदरी साधन तत्पराणाम् , भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव....
अर्थात जो साधक श्री यंत्र के माध्यम से त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी की साधना के लिए प्रयासरत होता है, उसके एक हाथ में सभी प्रकार के भोग होते हैं, तथा दूसरे हाथ में पूर्ण मोक्ष होता है. आशय यह कि श्री यंत्र का साधक समस्त प्रकार के भोगों का उपभोग करता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है. इस प्रकार यह एकमात्र ऐसी साधना है जो एक साथ भोग तथा मोक्ष दोनों ही प्रदान करती है, इसलिए प्रत्येक साधक इस साधना को प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है.
इस अद्भुत यंत्र से अनेक लाभ हैं, इनमें प्रमुख हैं
 1. श्री यंत्र के स्थापन मात्र से भगवती लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है.
 2. कार्यस्थल पर इसका नित्य पूजन व्यापार में विकास देता है.
3. घर पर इसका नित्य पूजन करने से संपूर्ण दांपत्य सुख प्राप्त होता है.
4. पूरे विधि विधान से इसका पूजन यदि प्रत्येक दीपावली की रात्रि को संपन्न कर लिया जाय तो उस घर में साल भर किसी प्रकार की कमी नही होती है.
5. श्री यंत्र पर ध्यान लगाने से मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है. उच्च यौगिक दशा में यह सहस्रार चक्र के भेदन में सहायक माना गया है.
6. यह विविध वास्तु दोषों के निराकरण के लिए श्रेष्ठतम उपाय है.
स्फटिक श्रीयंत्र-
   स्फटिक का बना हुआ श्री यंत्र अतिशीघ्र सफलता प्रदान करता है. इस यंत्र की निर्मलता के समान ही साधक का जीवन भी सभी प्रकार की मलिनताओं से परे हो जाता है.
    स्वर्ण श्रीयंत्र-
    स्वर्ण से निर्मित यंत्र संपूर्ण ऐश्वर्य को प्रदान करने में सक्षम माना गया है. इस यंत्र को तिजोरी में रखना चाहिए तथा ऐसी व्यवस्था रखनी चाहिये कि उसे कोई अन्य व्यक्ति स्पर्श न कर सके.
मणि श्रीयंत्र-
    ये यंत्र कामना के अनुसार बनाये जाते हैं तथा दुर्लभ होते हैं।
रजत (चांदी)श्रीयंत्र-
    ये यंत्र व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की उत्तरी दीवाल पर लगाए जाने चाहिये. इनको इस प्रकार से फ्रेम में मढवाकर लगवाना चाहिए जिससे इसको कोई सीधे स्पर्श न कर सके।
ताम्र श्रीयंत्र-
 ताम्र र्निमित यंत्र का प्रयोग विशेष पूजन अनुष्ठान तथा हवनादि के निमित्त किया जाता है. इस प्रकार के यंत्र को पर्स में रखने से अनावश्यक खर्च में कमी होती है तथा आय के नए माध्यमों का आभास होता है।
-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे महाराज  ,098287198828

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