ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शनिवार, 24 मार्च 2018

भए प्रकट कृपाला.....

....भए प्रकट कृपाला..

नौमी तिथि मधुमास पुनीता........

प्रभु श्रीराम राष्ट्र के प्राण हैं ! प्रभु श्रीराम हमारी संस्कृति हैं ! प्रभु श्रीराम हमारे आराध्य देव हैं ! उनकी प्राण प्रतिष्ठा रामभक्तों के राज में संभव नही होगी, तो फिर कभी नही हो पाएगी। हिन्दू समाप्त हो जाएगा, हिंदुत्व समाप्त हो जाएगा। श्रीराम हमारे पूर्वज हैं ! इसी कारण से विरोधी शत्रुभाव से हिंदुत्व का, हमारा विरोध करते हैं। प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा से विश्व में "हिंदुत्व"(भारत) बिना किसी युद्ध के सर्वाधिक शक्तिशाली होगा। अभी आपने देखा सहस्त्रों और लक्षावधी के बाद विगत दिनों यूपी के सीएम योगीजी के राज में अयोध्या की धरा धाम पर दीपोत्सव मनाया गया, मैं तो भिलाई में था नहीं तो स्वयं मैं भी वहां उपस्थित होता ! 

नवमी तिथि मधुमास पुनीता,
शुक्ल पक्ष अभिजीत हरि प्रीता!
मध्य दिवस अति शीत न घामा,
पावन काल, लोक विश्रामा!!
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें!!!

आज है रामनवमी का दिवस,
आज के दिन लिया प्रभु ने अवतार,
जैसे संत सुहाने सौम्य हैं रामजी,
वैसा ही सुखमय हो आपका जीवन
रामनवमी की शुभकामनायें!!! और अब 

आईए "भए प्रकट कृपाला..." का स्मरण करते हुए श्रीरामस्तुति: करें ...और संकल्प लें अयोध्या में ही राम मंदिर बनायेंगे, इसके लिये चाहे प्राण ही क्यों ना न्योछावर करना पड़े....जयश्रीराम

★★★★★★★★★★

नमामि भक्त-वत्सलं,

कृपालु-शील-कोमलम्। 

भजामि ते पदाम्बुजं,

अकामिनां स्व-धामदम्।।

निकाम-श्याम-सुन्दरं,

भवाम्बु-नाथ मन्दरम्। 

प्रफुल्ल-कंज-लोचनं,

मदादि-दोष-मोचनम्।।

प्रलम्ब-बाहु-विक्रमं,

प्रभो·प्रमेय-वैभवम्। 

निषंग-चाप-सायकं,

धरं त्रिलोक-नायकम्।।

दिनेश-वंश-मण्डनम्,

महेश-चाप-खण्डनम्। 

मुनीन्द्र-सन्त-रंजनम्,

सुरारि-वृन्द-भंजनम्।।

मनोज-वैरि-वन्दितं,

अजादि-देव-सेवितम्। 

विशुद्ध-बोध-विग्रहं,

समस्त-दूषणापहम्।।

नमामि इन्दिरा-पतिं,

सुखाकरं सतां गतिम्। 

भजे स-शक्ति सानुजं,

शची-पति-प्रियानुजम्।।

त्वदंघ्रि-मूलं ये नरा:,

भजन्ति हीन-मत्सरा:। 

पतन्ति नो भवार्णवे,

वितर्क-वीचि-संकुले।।

विविक्त-वासिन: सदा,

भजन्ति मुक्तये मुदा। 

निरस्य इन्द्रियादिकं,

प्रयान्ति ते गतिं स्वकम्।।

तमेकमद्भुतं प्रभुं,

निरीहमीश्वरं विभुम्। 

जगद्-गुरूं च शाश्वतं,

तुरीयमेव केवलम्।।

भजामि भाव-वल्लभं,

कु-योगिनां सु-दुलर्भम्। 

स्वभक्त-कल्प-पादपं,

समं सु-सेव्यमन्हवम्।।

अनूप-रूप-भूपतिं,

नतोऽहमुर्विजा-पतिम्। 

प्रसीद मे नमामि ते,

पदाब्ज-भक्तिं देहि मे।।

पठन्ति से स्तवं इदं,

नराऽऽदरेण ते पदम्। 

व्रजन्ति नात्र संशयं,

त्वदीय-भक्ति-संयुता:।।

पुण्य भारत भूमि से कथित सेकुलर

दानवों का नाश करो प्रभु श्री

राम,,जी इन्ही राक्षसों ने पहले मूगलों की दलाली की और बाद अंग्रेजों के दलाल अप्रवासी भारतीय जो भारतीय होने का ढ़ोंग रचते हैं ऐसे श्रीराम के देश भारत के द्रोहियों का सर्वनाश हो जिन्होंने जानबूझकर हिन्दु संस्कृति क्षरण किया या होने दिया ऐसे रावणों का वध करो प्रभु श्रीराम ! 'अन्तर्नाद' व्हाट्सएप ग्रुप (9827198828) एवं मायाराम शिक्षण विकास समिति, भिलाई तथा 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका की ओर से *श्रीरामनवमी के पावन अवसर पर* आप सभी को अनेकानेक शुभकामनाएं एवं बधाई 💐💐💐💐💐
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, भिलाई
💐💐💐💐💐💐💐💐💐

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

षष्ठमम् कात्यायनीति च....

कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठवें रूप है| यह अमरकोष में पार्वती के लिए दूसरा नाम है, संस्कृत शब्दकोश में उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हैमावती, इस्वरी इन्हीं के अन्य नाम हैं | शक्तिवाद में उन्हें शक्ति या दुर्गा, जिसमे भद्रकाली और चंडिका भी शामिल है, में भी प्रचलित हैं| यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में उनका उल्लेख प्रथम किया है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थी , जिन्होंने देवी पार्वती द्वारा दी गई सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया | वे शक्ति की आदि रूपा है, जिसका उल्लेख पाणिनि पर पतांजलि के महाभाष्य में किया गया है, जिसे दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में लिखी गयी थी | उनका वर्णन देवी-भागवत पुराण, और मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य में किया गया है जिसे ४०० से ५०० ईसा में लिपिबद्ध किया गया था | बौद्ध और जैन ग्रंथों और कई तांत्रिक ग्रंथों , विशेष रूप से कालिका-पुराण (१० वीं शताब्दी) में उनका उल्लेख है, जिसमें उद्यान या उड़ीसा में देवी कात्यायनी और भगवान जगन्नाथ का स्थान बताया गया है |

परंपरागत रूप से देवी दुर्गा की तरह वे लाल रंग से जुड़ी हुई है | नवरात्रि उत्सव के षष्ठी में उनकी पूजा की जाती है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से माँ के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।                                        चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन | कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ||माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।

कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं।

ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था।

माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।

माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।

'या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।

इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।

विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र-- ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:।
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई

बुधवार, 21 मार्च 2018

पंचमम् स्कंद मातेति......

नवरात्रि महापर्व एवं
सनातन नव वर्ष की
अनंत मंगलकामनाएं,

मां दुर्गा का पंचम रूप
स्कंदमाता के रूप में
जाना जाता है।

भगवान स्कंद कुमार (कार्तिकेय)
की माता होने के कारण दुर्गा जी
के इस पांचवें स्वरूप को स्कंद
माता नाम प्राप्त हुआ है।

भगवान स्कंद जी बालरूप
में माता की गोद में बैठे होते
हैं इस दिन साधक का मन
विशुद्ध चक्र में अवस्थित
होता है।

स्कंद मातृस्वरूपिणी देवी की
चार भुजाएं हैं,ये दाहिनी ऊपरी
भुजा में भगवान स्कंद को गोद
में पकड़े हैं और दाहिनी निचली
भुजा जो ऊपर को उठी है,उसमें
कमल पकडा हुआ है।

मां का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है
और कमल के पुष्प पर
विराजित रहती हैं।

इसी से इन्हें पद्मासना की देवी
और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी
कहा जाता है।

इनका वाहन भी सिंह है।

स्कंदमाता सूर्यमंडल की
अधिष्ठात्री देवी है।

इनकी उपासना करने से साधक
अलौकिक तेज की प्राप्ति करता
है।

यह अलौकिक प्रभामंडल
प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का
निर्वहन करता है।

एकाग्रभाव से मन को पवित्र
करके मां की स्तुति करने से
दु:खों से मुक्ति पाकर मोक्ष
का मार्ग सुलभ होता है।

स्कंदमाता की पूजा विधि-

कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से
जो साधक दुर्गा मां की उपासना
कर रहे हैं उनके लिए दुर्गा पूजा
का यह दिन विशुद्ध चक्र की
साधना का होता है।

इस चक्र का भेदन करने के लिए
साधक को पहले मां की विधि
सहित पूजा करनी चाहिए।

पूजा के लिए कुश अथवा
कंबल के पवित्र आसन पर
बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी
प्रकार से शुरू करना चाहिए
जैसे आपने अब तक के चार
दिनों में किया है फिर इस मंत्र
से देवी की प्रार्थना करनी
चाहिए,
"सिंहासनगता नित्यं
पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी
स्कन्दमाता यशस्विनी।।"

अब पंचोपचार विधि से
देवी स्कंदमाता की पूजा करें-

नवरात्रि की पंचमी तिथि को
कहीं कहीं भक्त जन उद्यंग
ललिता का व्रत भी रखते हैं।

इस व्रत को फलदायक कहा
गया है।

जो भक्त देवी स्कंद माता की
भक्ति-भाव सहित पूजन करते
हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती
है।

देवी की कृपा से भक्त की मुराद
पूरी होती है और घर में सुख,
शांति एवं समृद्धि रहती है।

नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती
पाठ किया जाता हैं।

स्कंदमाता का मंत्र-

सिंहासना गता नित्यं
पद्माश्रि तकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी
स्कंदमाता यशस्विनी।।

या देवी सर्वभूतेषु मां
स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नम:।।

स्कंदमाता का ध्यान-

वंदे वांछित कामार्थे
चंद्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा
स्कंदमाता यशस्वनीम्।।

धवलवर्णा विशुद्ध
चक्रस्थितों पंचम
दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म
करां दक्षिण उरू
पुत्रधराम् भजेम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या
नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि
रत्नकुण्डल धारिणीम्॥

प्रफु्रल्ल वंदना पल्लवांधरा
कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू
त्रिवली नितम्बनीम्॥

स्कंदमाता का कवच-

ऐं बीजालिंका देवी
पदयुग्मघरापरा।
हृदयं पातु सा देवी
कार्तिकेययुता॥

श्री हीं हुं देवी
पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वाग में सदा पातु
स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥

वाणंवपणमृते हुं
फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्नेव
वारुणे नैॠ तेअवतु॥

इन्द्राणां भैरवी
चैवासितांगी च
संहारिणी।
सर्वदा पातु मां
देवी चान्यान्यासु
हि दिक्षु वै॥

वात,पित्त,कफ जैसी बीमारियों
से पीडि़त व्यक्ति को स्कंदमाता
की पूजा करनी चाहिए और
माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद
में रूप में ग्रहण करना चाहिए।

स्कंद माता कथा-

दुर्गा पूजा के पांचवें दिन
देवताओं के सेनापति कुमार
कार्तिकेय की माता की पूजा
होती है।

कुमार कार्तिकेय को ग्रंथों में
सनत-कुमार,स्कंद कुमार के
नाम से पुकारा गया है।

माता इस रूप में पूर्णत: ममता
लुटाती हुई नजर आती हैं।

माता का पांचवां रूप शुभ्र
अर्थात श्वेत है।

जब अत्याचारी दानवों का
अत्याचार बढ़ता है तब माता
संत जनों की रक्षा के लिए सिंह
पर सवार होकर दुष्टों का अंत
करती हैं।

देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं
हैं,माता अपने दो हाथों में कमल
का फूल धारण करती हैं और
एक भुजा में भगवान स्कंद
या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिए
बैठी हैं।

मां का चौथा हाथ भक्तो को
आशीर्वाद देने की मुद्रा मे है।

देवी स्कंद माता ही हिमालय की
पुत्री पार्वती हैं इन्हें ही माहेश्वरी
और गौरी के नाम से जाना
जाता है।

यह पर्वत राज की पुत्री होने
से पार्वती कहलाती हैं,महादेव
की वामिनी यानी पत्नी होने से
माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने
गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के
नाम से पूजी जाती हैं।

माता को अपने पुत्र से अधिक
प्रेम है अत: मां को अपने पुत्र
के नाम के साथ संबोधित किया
जाना अच्छा लगता है।

जो भक्त माता के इस स्वरूप
की पूजा करते है मां उस पर
अपने पुत्र के समान स्नेह
लुटाती हैं।

भोले शंकर को पति रूप में
प्राप्त करने के लिए माता ने
महान व्रत किया उस महादेव
की पूजा भी आदर पूर्वक करें
क्योंकि इनकी पूजा न होने से
देवी की कृपा नहीं मिलती है।

श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी
के साथ ही करनी चाहिए।

आरती के साथ पूजा
का समापन करें।

माता रानी समस्त चराचर प्राणी
एवं सकल विश्व का कल्याण
करें,,,,

सभी स्नेही जन सुख शांति
एवं वैभव से सदा समृद्ध रहें,,,

स्कंदमाता भवानी की कृपा
सदा बरसती रहे,,,,

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,

सदा सर्वदा सुमंगल,,,
हर हर महादेव,
जय भवानी,,,
जय श्री राम,,

मंगलवार, 20 मार्च 2018

कुष्माण्डेति चतुर्थकम्...


!!सुप्रभात !! यथा योग्य मंगल आशीष, प्रणाम, वंदन, अभिनंदन !!

नवरात्र का आ चतुर्थ दिन अर्थात चतुर्थी तिथि है, आज कूष्मांडा देवी की पूजा अर्चना की जाती है | यह सृष्टि की आदिस्वरूपा आदिशक्ति है | इसका निवास सूर्यमंडल के भीतरी भाग में माना जाता है | अतः इनके शरीर की कान्ति भी सूर्य के ही सामान दैदीप्यमान और भास्वर है | मैं ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे 9827198828 बहुत जिम्मेदारी के साथ यह कह सकता हुं कि आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर कुष्माण्डा भगवती को 'अनाहद चक्र' की अधिष्ठात्री हैं ! देवी का चतुर्थ रूप कूष्माण्डा देवी का माना जाता है | कुत्सितः ऊष्मा कूष्मा – त्रिविधतापयुतः संसारः, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्याः स कूष्माण्डा – अर्थात् त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदर में स्थित है वे देवी कूष्माण्डा कहलाती हैं | इस रूप में देवी के आठ हाथ माने जाते हैं | इनके हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमलपुष्प, सुरापात्र, चक्र, जपमाला और गदा दिखाई देते हैं | यह रूप देवी का आह्लादकारी रूप है और माना जाता है कि जब कूष्माण्डा देवी आह्लादित होती हैं तो समस्त प्रकार के दुःख और कष्ट के अन्धकार दूर हो जाते हैं | क्योंकि यह रूप कष्ट से आह्लाद की ओर ले जाने वाला रूप है, अर्थात् विनाश से नवनिर्माण की ओर ले जाने वाल रूप, अतः यही रूप सृष्टि के आरम्भ अथवा पुनर्निर्माण की ओर ले जाने वाला रूप माना जाता है |

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च ।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
स्तुता सुरैः पूर्वमभीष्टसंश्रयात्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता ।
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ।।
!! ऊँ नमश्चण्डिकायै!!
आपका दिन शुभ हो..
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांति नगर, भिलाई, जिला - दुर्ग (छ़ग़) मोबा.नं. 9827198828

सोमवार, 19 मार्च 2018

तृतीयम् चन्द्रघंटेति ...नवरात्र के तीसरे दिन

सनातन नववर्ष एवं पावन
नवरात्रि  महापर्व की अनंत
मंगलकामनाएं....

नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा
के तीसरे स्वरुप मां चंद्रघंटा की
उपासना होती है।

पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघंटेति विश्रुता॥

माँ दुर्गाजी की तीसरी
शक्ति का नाम चंद्रघंटा है।

नवरात्रि उपासना में तीसरे
दिन की पूजा का अत्यधिक
महत्व है और इस दिन इन्हीं
के विग्रह का पूजन किया
जाता है।

इस दिन साधक का मन
'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट
होता है।

मां चंद्रघंटा की कृपा से विविध
प्रकार की ध्वनियां सुनाई देती
हैं इसलिए इन्हें स्वर विज्ञान
की देवी भी कहा जाता है।

अलौकिक वस्तुओं के दर्शन।

माँ चंद्रघंटा की कृपा से
अलौकिक वस्तुओं के दर्शन
होते हैं और विविध प्रकार की
दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं।

इस दिन साधकों को दिव्य
अनुभूति की प्राप्ति होती है
लिहाजा उन्हें सावधान रहना
चाहिए।

माँ का यह स्वरूप परम शांति
दायक और कल्याणकारी है।

इनके मस्तक में घंटे का
आकार का अर्धचंद्र है
इसलिए इन्हें चंद्रघंटा
देवी कहा जाता है।

इनके शरीर का रंग सोने
के समान चमकीला है।

इनकी दस भुजाएं हैं।

इनके दसों भुजाओं में खड्ग
आदि शस्त्र तथा बाण आदि
अस्त्र विभूषित हैं।

इनका वाहन सिंह है।

इनकी मुद्रा युद्ध के लिए
उद्यत रहने की होती है।

मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक
के समस्त पाप और बाधाएँ
खत्म हो जाती हैं।

इनकी आराधना
सर्वफलदायी है।

माँ भक्तों के कष्ट का निवारण
शीघ्र ही कर देती हैं।

इनका उपासक सिंह की तरह
पराक्रमी और निर्भय हो जाता
है।

मां का स्वरूप अत्यंत सौम्यता
एवं शांति से परिपूर्ण रहता है।

इनकी आराधना से वीरता
निर्भयता के साथ ही सौम्यता
एवं विनम्रता का विकास
होकर मुख,नेत्र तथा संपूर्ण
काया में कांति-गुण की वृद्धि
होती है।

स्वर में दिव्य,अलौकिक माधुर्य
का समावेश हो जाता है।

माँ चंद्रघंटा के भक्त और
उपासक जहाँ भी जाते हैं
लोग उन्हें देखकर शांति
और सुख का अनुभव
करते हैं।

हमें निरंतर उनके पवित्र विग्रह
को ध्यान में रखते हुए साधना
की ओर अग्रसर होने का प्रयत्न
करना चाहिए।

उनका ध्यान हमारे इहलोक
और परलोक दोनों के लिए
परम कल्याणकारी और
सद्गति देने वाला है।

प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए
आराधना योग्य यह श्लोक
सरल और स्पष्ट है माँ जगदम्बे
की भक्ति पाने के लिए इसे
कंठस्थ कर नवरात्रि में तीसरे
दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

इस श्लोक का अर्थ है- हे माँ!
सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा
के रूप में प्रसिद्ध अम्बे,आपको
मेरा बार-बार प्रणाम है,या मैं
आपको बारंबार प्रणाम करता
हूँ।

हे माँ, मुझे सब पापों से
मुक्ति प्रदान करें।

इस दिन सांवली रंग की
तेजवान विवाहित महिला
को बुलाकर उनका पूजन
करना चाहिए।

भोजन में दही और हलवा
खिलाएं।

भेंट में कलश और मंदिर
की घंटी भेंट करनी चाहिए।

दुर्गा स्तुति :-

ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके
न मा नयति कश्चन।
ससस्त्यश्चकः सुभद्रिकां
काम्पीलवासिनीम्।।
पत्तने नगरे ग्रामे विपिने
पर्वते गृहे।

नानाजातिकुलेशानीँ
दुर्गामावाहयाम्यहम्।।
या देवि सर्वभूतेषु
मातृरुपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः।।

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं
भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि
परिपूर्णँ तदस्तु मे।।

समस्त चराचर प्राणियोँ एवं
विश्व का कल्याण करो मातु
भवानी !

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,
जयति पुण्य भूमि भारत,

सदा सर्वदा सुमंगल,
हर हर महादेव,
ॐ श्रीजगदम्बायै
दुर्गादेव्यै नमः,
ॐ नमश्चण्डिकाये !
जय भवानी,
जय श्रीराम,,