ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 14 मार्च 2018

तिनके का रहस्य..तृन धरि ओट कहति बैदेही...

रामायण मे एक घास के तिनके का भी रहस्य है, जो हर किसी को नहीं मालूम क्योंकि आज तक किसी ने हमारे ग्रंथो को समझने की कोशिश नहीं की,सिर्फ पढ़ा
है, देखा है, और सुना है,आज आप के समक्ष ऐसा ही एक रहस्य बताने जा रहा हूँ,रावण ने जब माँ सीता जी का हरण करके लंका ले गया, तब लंका मे सीता जी वट व्रक्ष के नीचे बैठ कर चिंतन करने लगी,रावण बार बार आकर माँ सीता जी को धमकाता था!

लेकिन माँ सीता जी कुछ नहीं बोलती थी,यहाँ तक की रावण ने श्री राम जी के वेश भूषा मे आकर माँ सीता जी को भी भ्रमित करने की कोशिश की लेकिन फिर भी सफल नहीं हुआ,रावण थक हार कर जब अपने शयन कक्ष मे गया तो मंदोदरी बोली आप ने तो राम का वेश धर कर गया था फिर क्या हुआ,रावण बोला जब मैं राम का रूप लेकर सीता के समक्ष गया तो सीता मुझे नजर ही नहीं आ रही थी !रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था लेकिन जगत जननी माँ को आज तक कोई नहीं समझ सका फिर रावण भी कैसे समझ पाता !

*अन्तर्नाद व्हाट्सएप ग्रुप के आत्मिय साथियों आईए आपको इस तिनके रहस्य का उद्घाटन करता हुं*
-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, भिलाई

तृन धरि ओट कहत बैदेही !
सुमिरी अवधपति परम सनेही !!

रावण एक बार फिर आया और बोला मैं तुमसे सीधे सीधे संवाद करता हूँ लेकिन तुम कैसी नारी हो की मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर घूर कर देखने लगती हो,क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है रावण के इस प्रश्न को सुनकर माँ सीता जी बिलकुल चुप हो गयी,और आँख से आसुओं की धार बह पड़ी

"अब इस प्रश्न का उत्तर समझो" -

जब श्री राम जी का विवाह माँ सीता जी के साथ हुआ,

तब सीता जी का बड़े आदर सत्कार के साथ गृह प्रवेश

भी हुआ बहुत उत्सव मनाया गया,जैसे की एक प्रथा है की नव वधू जब ससुराल आती है तो उस नववधू के हाथ से कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है,ताकि जीवन भर

घर पर मिठास बनी रहे ! इसलिए माँ सीता जी ने उस दिन अपने हाथो से घर पर खीर बनाई और समस्त परिवार राजा दशरथ सहित चारो भ्राता और ऋषि संत भी भोजन पर आमंत्रित थे ,माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया, और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया सभी ने अपनी अपनी पत्तल सम्हाली, सीता जी देख रही थी,ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया,माँ सीता जी ने उस तिनके को देख लिया,लेकिन अब खीर मे हाथ कैसे डालें ये प्रश्न आ गया, माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर जो देखा, तो वो तिनका जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया, सीता जी ने सोचा अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा, लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी का यह चमत्कार को देख रहे थे,फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष मे चले गए और माँ सीता जी को बुलवाया !

फिर राजा दशरथ बोले मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था , आप साक्षात जगत जननी का दूसरा रूप हैं,लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी मत देखना,

इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थी,यही है उस तिनके का रहस्य ! मात सीता जी चाहती तो रावण को जगह पर ही राख़ कर सकती थी लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन की वजह से वो शांत रही ।

- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका शांति नगर, भिलाई, मोबा. नं. 9827198828

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