ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 21 मार्च 2018

पंचमम् स्कंद मातेति......

नवरात्रि महापर्व एवं
सनातन नव वर्ष की
अनंत मंगलकामनाएं,

मां दुर्गा का पंचम रूप
स्कंदमाता के रूप में
जाना जाता है।

भगवान स्कंद कुमार (कार्तिकेय)
की माता होने के कारण दुर्गा जी
के इस पांचवें स्वरूप को स्कंद
माता नाम प्राप्त हुआ है।

भगवान स्कंद जी बालरूप
में माता की गोद में बैठे होते
हैं इस दिन साधक का मन
विशुद्ध चक्र में अवस्थित
होता है।

स्कंद मातृस्वरूपिणी देवी की
चार भुजाएं हैं,ये दाहिनी ऊपरी
भुजा में भगवान स्कंद को गोद
में पकड़े हैं और दाहिनी निचली
भुजा जो ऊपर को उठी है,उसमें
कमल पकडा हुआ है।

मां का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है
और कमल के पुष्प पर
विराजित रहती हैं।

इसी से इन्हें पद्मासना की देवी
और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी
कहा जाता है।

इनका वाहन भी सिंह है।

स्कंदमाता सूर्यमंडल की
अधिष्ठात्री देवी है।

इनकी उपासना करने से साधक
अलौकिक तेज की प्राप्ति करता
है।

यह अलौकिक प्रभामंडल
प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का
निर्वहन करता है।

एकाग्रभाव से मन को पवित्र
करके मां की स्तुति करने से
दु:खों से मुक्ति पाकर मोक्ष
का मार्ग सुलभ होता है।

स्कंदमाता की पूजा विधि-

कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से
जो साधक दुर्गा मां की उपासना
कर रहे हैं उनके लिए दुर्गा पूजा
का यह दिन विशुद्ध चक्र की
साधना का होता है।

इस चक्र का भेदन करने के लिए
साधक को पहले मां की विधि
सहित पूजा करनी चाहिए।

पूजा के लिए कुश अथवा
कंबल के पवित्र आसन पर
बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी
प्रकार से शुरू करना चाहिए
जैसे आपने अब तक के चार
दिनों में किया है फिर इस मंत्र
से देवी की प्रार्थना करनी
चाहिए,
"सिंहासनगता नित्यं
पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी
स्कन्दमाता यशस्विनी।।"

अब पंचोपचार विधि से
देवी स्कंदमाता की पूजा करें-

नवरात्रि की पंचमी तिथि को
कहीं कहीं भक्त जन उद्यंग
ललिता का व्रत भी रखते हैं।

इस व्रत को फलदायक कहा
गया है।

जो भक्त देवी स्कंद माता की
भक्ति-भाव सहित पूजन करते
हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती
है।

देवी की कृपा से भक्त की मुराद
पूरी होती है और घर में सुख,
शांति एवं समृद्धि रहती है।

नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती
पाठ किया जाता हैं।

स्कंदमाता का मंत्र-

सिंहासना गता नित्यं
पद्माश्रि तकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी
स्कंदमाता यशस्विनी।।

या देवी सर्वभूतेषु मां
स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नम:।।

स्कंदमाता का ध्यान-

वंदे वांछित कामार्थे
चंद्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा
स्कंदमाता यशस्वनीम्।।

धवलवर्णा विशुद्ध
चक्रस्थितों पंचम
दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म
करां दक्षिण उरू
पुत्रधराम् भजेम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या
नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि
रत्नकुण्डल धारिणीम्॥

प्रफु्रल्ल वंदना पल्लवांधरा
कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू
त्रिवली नितम्बनीम्॥

स्कंदमाता का कवच-

ऐं बीजालिंका देवी
पदयुग्मघरापरा।
हृदयं पातु सा देवी
कार्तिकेययुता॥

श्री हीं हुं देवी
पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वाग में सदा पातु
स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥

वाणंवपणमृते हुं
फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्नेव
वारुणे नैॠ तेअवतु॥

इन्द्राणां भैरवी
चैवासितांगी च
संहारिणी।
सर्वदा पातु मां
देवी चान्यान्यासु
हि दिक्षु वै॥

वात,पित्त,कफ जैसी बीमारियों
से पीडि़त व्यक्ति को स्कंदमाता
की पूजा करनी चाहिए और
माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद
में रूप में ग्रहण करना चाहिए।

स्कंद माता कथा-

दुर्गा पूजा के पांचवें दिन
देवताओं के सेनापति कुमार
कार्तिकेय की माता की पूजा
होती है।

कुमार कार्तिकेय को ग्रंथों में
सनत-कुमार,स्कंद कुमार के
नाम से पुकारा गया है।

माता इस रूप में पूर्णत: ममता
लुटाती हुई नजर आती हैं।

माता का पांचवां रूप शुभ्र
अर्थात श्वेत है।

जब अत्याचारी दानवों का
अत्याचार बढ़ता है तब माता
संत जनों की रक्षा के लिए सिंह
पर सवार होकर दुष्टों का अंत
करती हैं।

देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं
हैं,माता अपने दो हाथों में कमल
का फूल धारण करती हैं और
एक भुजा में भगवान स्कंद
या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिए
बैठी हैं।

मां का चौथा हाथ भक्तो को
आशीर्वाद देने की मुद्रा मे है।

देवी स्कंद माता ही हिमालय की
पुत्री पार्वती हैं इन्हें ही माहेश्वरी
और गौरी के नाम से जाना
जाता है।

यह पर्वत राज की पुत्री होने
से पार्वती कहलाती हैं,महादेव
की वामिनी यानी पत्नी होने से
माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने
गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के
नाम से पूजी जाती हैं।

माता को अपने पुत्र से अधिक
प्रेम है अत: मां को अपने पुत्र
के नाम के साथ संबोधित किया
जाना अच्छा लगता है।

जो भक्त माता के इस स्वरूप
की पूजा करते है मां उस पर
अपने पुत्र के समान स्नेह
लुटाती हैं।

भोले शंकर को पति रूप में
प्राप्त करने के लिए माता ने
महान व्रत किया उस महादेव
की पूजा भी आदर पूर्वक करें
क्योंकि इनकी पूजा न होने से
देवी की कृपा नहीं मिलती है।

श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी
के साथ ही करनी चाहिए।

आरती के साथ पूजा
का समापन करें।

माता रानी समस्त चराचर प्राणी
एवं सकल विश्व का कल्याण
करें,,,,

सभी स्नेही जन सुख शांति
एवं वैभव से सदा समृद्ध रहें,,,

स्कंदमाता भवानी की कृपा
सदा बरसती रहे,,,,

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,

सदा सर्वदा सुमंगल,,,
हर हर महादेव,
जय भवानी,,,
जय श्री राम,,

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