ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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गुरुवार, 29 सितंबर 2011

जय माँ बमलेश्वरी

जय माँ बमलेश्वरी
जय माँ बमलेश्वरी
तोला सुमरंव बारम्बार हो,
मोर देवी भवानी, जय होवय तोर,
मोर माता भवानी,जय होवय तोर।
तोर लीला अपरंपार हो,
जय मां बम्लेश्वरी जय होवय तोर,
टीप पहाड़ म तोर मंदिरवा,
दिखय चारों ओर।
मोर माता भवानी जय होवय तोर।

शेर चिता ह तोर सवारी
घूमय, जंगल जंगल मोर हो,
देवी भवानी जय होवय तोर।
नाक म नथनी पहिरे
पांव म पायल घुँघरू
हाथ म लाली चूरी सोहय
ओढ़े लाल के चुनरी हो,
मोर माता भवानी, जय होवय तोर।

तोर होवय जय जयकार हो,
मोर मां बमलेश्वरी जय होवय तोर
लइका सियान, सब तरसंय
तोर दरस बर हो मोर माता भवानी,
दीन, दुखियारी के दुख हरस,
देवय पुत्र-वरदान हो,
तोर दुवारी ले कोई खाली नइ जावय
बढ़य धन भंडार हो,
मोर माता भवानी, जय होवय तोर।
जय मां बमलेसरी मइया जय होवय तोर।

चइत नवमी म मेला भरथे
जलावय घी के जोत हो,
मोर माता भवानी, जय होवय तोर।
मनवांछित फल पाये हो,
अन्न-धन भंडार बढ़ावय हो,
मोर जय मां बमलेश्वरी जय होवय तोर।
तोर मंदिर म कोई भेदभाव नइये।
पहुंचय लाखों लोग हो।
मोर माता भवानी, जय होवय तोर।
मोर जय मां बमलेश्वरी जय होवय तोर।

-डॉ. जे. आर. सोनी ला उधार मांगे हौं भैय्या ...बड़ सुघ्घर लागीस मोला

जहां पांडवों ने की थी शास्त्रों की पूजा

जहां पांडवों ने की थी शास्त्रों की पूजा
 करनाल में  नीलोखेडी का पूजम गांव महाभारत की यादें समेटे हुए है। यह वह ऐतिहासिक गांव है जहां महाभारत युद्ध से पहले पांडवों ने कौरवों पर विजय हासिल करने के लिए शस्त्रों की पूजा की थी। इसी पूजा से ही इस स्थान का नामकरण पूजम हुआ।

महाभारत काल की स्मृतियों से जुडा होने के कारण गांव के मंदिर में स्थापित शिवलिंग के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। यहां पर प्राचीन तालाब ने आधुनिक रूप ले लिया है। ग्रामीणों का कहना है कि इस गांव की धरती पर कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों का युद्ध शुरू होने से पहले पांडवों ने शस्त्रों की पूजा की थी। गांव के बाहर एक शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ। बाद में इसको उखाडने की कोशिश की गई तो यह टस से मस नहीं हुआ। ग्रामीणों का कहना है कि प्राचीनकाल में यहां कुम्हार मिट्टी लेने आया करते थे। एक दिन मिट्टी निकालते समय यहां शिवलिंग निकला। किसी ने कस्सी व कुल्हाडी से शिवलिंग को काटने का प्रयास किया किंतु विफल रहा। इन औजारों के लगने के निशान आज भी शिवलिंग पर दिखाई देते हैं।
लोगों के अनुसार इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण ने चरण रखे थे। इस स्थान पर कई वर्ष पूर्व बाबा राम गिर आकर रहने लगे। बाबा राम गिर सर्दियों में तालाब में पूजा करते थे और गर्मियों में अपने चारों ओर धुना लगाकर तपस्या करते थे। बाद में ग्रामीणों ने इस स्थान पर मंदिर बनवाया। मंदिर के साथ ही महाभारत कालीन प्राचीन तालाब है। तालाब का जीर्णोद्धार करके इसे आधुनिक रूप दिया गया है। बाबा राम गिर की याद में अप्रैल महीने में तथा शिवरात्रि पर्व पर यहां विशाल मेला लगता है। मंदिर के महंत बाबा पवन गिर का कहना है कि दूर-दराज के क्षेत्रों से लोग यहां मन्नत मांगने आते हैं। मेले में काफी भीड लगती है।

मां सीता ने मुंगेर में किया था छठ

 मां सीता ने मुंगेर में किया था छठ
ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरणमें कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। इससे यह स्थल अध्यात्मिक आस्था से जुडी है। सीता चरण में आज भी दो पश्चिम एवं पूरब मुख में माता सीता के पदचिन्हअंकित हैं।
जाने-माने इतिहासकार डा. ग्रियेसन ने इस पदचिन्ह एवं जनकपुर में स्थित पदचिन्ह का भी मिलान किया था। जिसमें दोनों पदचिन्ह एक समान मिले। इसके बाद तो इसकी और महत्ता बढ गयी। छठ पूजा के दिन में यहां श्रद्धालुओं की भीड उमडती है। बीच गंगा में अवस्थित इस मंदिर को अगर प्रशासन संवार दें तो देश के मानचित्र पर सीता चरण का नाम होगा।
पौराणिक कथाओं के अनुसार 14वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्ययज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुगदलऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुगदलऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता माता स्वयं यहां आये और इसके पूजा पाठ के बारे में बताया गया।

मुगदलऋषि ने मां सीता को गंगा छिडक कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। जिस स्थान पर माता सीता ने पूरब और पश्चिम मुख होकर अराधना की। उस स्थान पर आज भी माता सीता के पैरों के निशान हैं। उसके बाद से यह स्थल सीता चरणके नाम से जाने जाने लगा। यह स्थल गंगा के मध्य पहाडी पर स्थित है। बाद में इसे राम बाबा नामक धर्मप्रेमी ने मंदिर का रूप दिया। गंगा में पानी नहीं रहने के बाद मंदिर पर आसानी से लोग पूजा करने जाते हैं, लेकिन बाढ के दिनों में यह मंदिर गंगा के बीच में हो जाता है।
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे , भिलाई -०९827198828

शक्ति आराधना के कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र

शक्ति आराधना के  कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र
मित्रों आज देवि के कुछ मनोकामना परक  सिद्ध मंत्रों को आपके सामने रखने जा रहा हुं, मुझे विश्वास है कि आप लोगो के लिए काफी लाभ दायी सिद्ध होगा।

बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥

अर्थ :- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

सब प्रकार के कल्याण के लिये

सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये ˜यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ :- नारायणी! तुम सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।

दारिद्र्यदु:खादिनाश के लिये

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।

दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥

अर्थ :- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दु:ख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दया‌र्द्र रहता हो।

समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये

विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति :॥

अर्थ :- देवि! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे एवं परा वाणी हो।

रक्षा पाने के लिये

शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥

अर्थ :- देवि! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें।

शक्ति प्राप्ति के लिये

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ :- तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।

प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये

प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥

अर्थ :- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीया परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो।

विविध उपद्रवों से बचने के लिये

रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्॥

अर्थ :- जहाँ राक्षस, जहाँ भयंकर विषवाले सर्प, जहाँ शत्रु, जहाँ लुटेरों की सेना और जहाँ दावानल हो, वहाँ तथा समुद्र के बीच में भी साथ रहकर तुम विश्व की रक्षा करती हो।

बाधा शान्ति के लिये

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥

अर्थ :- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।

सर्वविध अभ्युदय के लिये

ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्ग:।
धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥

अर्थ :- सदा अभ्युदय प्रदान करनेवाली आप जिन पर प्रसन्न रहती हैं, वे ही देश में सम्मानित हैं, उन्हीं को धन और यश की प्राप्ति होती है, उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री, पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं।

सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति के लिये

पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

अर्थ :- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्‍‌नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।

आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

अर्थ :- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

महामारी नाश के लिये

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

अर्थ :- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।

रोग नाश के लिये

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥

अर्थ :- देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाञ्िछत सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।

विपत्ति नाश के लिये

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ :- शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।

पाप नाश के लिये

हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥

अर्थ :- देवि! जो अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके दैत्यों के तेज नष्ट किये देता है, वह तुम्हारा घण्टा हमलोगों की पापों से उसी प्रकार रक्षा करे, जैसे माता अपने पुत्रों की बुरे कर्मो से रक्षा करती है।

भय नाश के लिये

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।
पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ :- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है।

विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये

करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।

अर्थ :- वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले।

विश्व की रक्षा के लिये

या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी: पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥

अर्थ :- जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये।

विश्व के अभ्युदय के लिये

विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति विश्वाश्रया ये त्वयि भक्ति नम्रा:॥

अर्थ :- विश्वेश्वरि! तुम विश्व का पालन करती हो। विश्वरूपा हो, इसलिये सम्पूर्ण विश्व को धारण करती हो। तुम भगवान् विश्वनाथ की भी वन्दनीया हो। जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारे सामने मस्तक झुकाते हैं, वे सम्पूर्ण विश्व को आश्रय देनेवाले होते हैं।

विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥

अर्थ :- शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो।

विश्व के पाप-ताप निवारण के लिये

देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥

अर्थ :- देवि! प्रसन्न होओ। जैसे इस समय असुरों का वध करके तुमने शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओं के भय से बचाओ। सम्पूर्ण जगत् का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बडे-बडे उपद्रवों को शीघ्र दूर करो।

विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये

यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तु मलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥

अर्थ :- जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान् शेषनाग, ब्रह्माजी तथा महादेवजी भी समर्थ नहीं हैं, वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें।

सामूहिक कल्याण के लिये

देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूर्त्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥

अर्थ :- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हमलोगों का कल्याण करें।
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे ,भिलाई-०९८२७१९८८२८

नमस्तस्यै,नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:

 नमस्तस्यै,नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:
कोई भी वस्तु भगवती को समर्पित करने से पूर्व ॐभू र्भुव:स्व: ॐऐं ह्रींक्लींचामुण्डायैविच्चे।इस मंत्र का उच्चारण अवश्य करें।
नवरात्रके प्रथम दिन प्रात:काल उठकर नित्य क्रिया संपन्न कर अर्चना का संकल्प लेना चाहिए। मां अष्टभुजीदुर्गा की अर्चना के समय शुद्ध आसन पर बैठकर आचमन, पवित्री धारण, शरीर शुद्धि आसन शुद्धि, पूजन सामग्री, रक्षादीपप्रज्वालन, स्वस्ति वाचन, पूजा संकल्प तदङ्गभूतश्रीगणेश नवग्रह एवं भगवती गौरी का स्मरण पूर्वक पूजन करना चाहिए। कलश पूजन के बाद अन्य देवों नवग्रह आदि का पूजन करने के बाद प्रधान देव भगवती की अर्चना संपन्न करनी चाहिए। प्रतिष्ठापित दुर्गा मूर्ति में आह्वान एवं विसर्जन नहीं होता। इनमें ध्यान करके ही पूजा की जाती है।
हाथ में अक्षत लेकर भगवती दुर्गा का ध्यान करें।
ध्यान
विद्युद्दामसमप्रभांमृगपतिस्कन्धस्थितांभीषणाम्।कन्याभि:करवाल खेट विलसद्धस्ताभिरासेविताम्।।हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिषांश्चापं गुणंतर्जनीम्।बिभ्राणामनलात्मिकांशशिधरांदुर्गा त्रिनेत्रांभजे।।
ॐभू र्भुव:स्व: ॐऐं ह्रींक्लींचामुण्डायैविच्चे।ध्यानार्थेपुष्पं समर्पयामि।ध्यान करके मां दुर्गा के चरणों में अक्षत समर्पित करें।
आसन-
आसनानार्थेपुष्पाणिसमर्पयामि।
आसन के लिए फूल चढाएं-
पाद्य
ॐअश्वपूर्वोरथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियंदेवीमुपह्वयेश्रीर्मादेवींजुषाताम्।।
पादयो:पाद्यंसमर्पयामि।जल चढाएं-
अ‌र्घ्य
हस्तयोर‌र्घ्यसमर्पयामि। अ‌र्घ्यसमर्पित करें।
आचमन-
स्नानीयं जलंसमर्पयामि। स्नानान्ते आचमनीयंजलंचसमर्पयामि।स्नानीयऔर आचमनीय जल चढाएं।
पय:स्नान-
ॐपय: पृथिव्यांपयओषधीषुपयोदिव्यन्तरिक्षेपयोधा:।पयस्वती:प्रदिश:संतु मह्यम्।।पय: स्नानंसमर्पयामि।पय: स्नानान्तेआचमनीयं जलंसमर्पयामि।दूध से स्नान कराएं, पुन:शुद्ध जल से स्नान कराएं और आचमन के लिए जल चढाएं।
दधिस्नान-
दधिस्नानं समर्पयामि,दधि स्नानान्तेआचमनीयंजलं समर्पयामि।दही से स्नान कराने के बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।
घृत स्नान-
घृतस्नानं समर्पयामि,घृतस्नानान्ते आचमनीयंजलंसमर्पयामि।घृत से स्नान कराकर पुन:आचमन के लिए जल चढाएं।
मधु स्नान-
मधुस्नानंसमर्पयामि, मधुस्नानान्ते आचमनीयंजलं समर्पयामि। मधु से स्नान कराकर आचमन के लिए जल समर्पित करें।
शर्करा स्नान-
शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करास्नानान्तेशुद्धोदकस्नानान्तेआचमनीयं जलं समर्पयामि।शर्करा से स्नान कराकर आचमन के लिए जल चढाएं।
पञ्चमृतस्नान
पञ्चमृतस्नानं समर्पयामि, पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि, शुद्धोदकस्नानान्तेआचमनीयंजलं समर्पयामि। पञ्चमृत से स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल चढाएं।
गन्धोदकस्नान-
गन्धोदकस्नानंसमर्पयामि,गन्धोदकस्नानान्तेआचमनीयंसमर्पयामि।गन्धोदकसे स्नान कराकर आचमन के लिए जल चढाएं।
शुद्धोदकस्नान-
शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि।शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।
वस्त्र-
वस्त्रंसमर्पयामि,वस्त्रान्तेआचमनीयंजलंसमर्पयामि।
उपवस्त्र-
उपवस्त्रंसमर्पयामि,उपवस्त्रान्ते आचमनीयंजलंसमर्पयामि। उपवस्त्रचढाएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।
यज्ञोपवीत-
यज्ञोपवीतंपरपमंपवित्रंप्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्यंप्रतिमुञ्चशुभ्रंयज्ञांपवीतंबलमस्तुतेज:।। यज्ञोपवीतं समर्पयामि।यज्ञोपवीत समर्पित करें।
गंध-अर्पण
गन्धानुलेपनंसमर्पयामि।-चंदनउपलेपित करें।
सुगंधित द्रव्य-
सुगंधित द्रव्यंसमर्पयामि।सुगंधित द्रव्य चढाएं।
अक्षत-
अक्षतान्समर्पयामि।अक्षत चढाएं।
पुष्पमाला-पुष्पमालां समर्पयामि।
पुष्पमाला चढाएं।
बिल्व पत्र-बिल्वपत्राणि समर्पयामि।बिल्व पत्र समर्पित करें।
नाना परिमलद्रव्य-नानापरिमल द्रव्याणिसमर्पयामि।
विविध परिमल द्रव्य चढाएं
धूप-धूपंमाघ्रापयामि।-धूप अर्पित करें।
दीप-दीपं दर्शयामि।
दीप दिखलाएं और हाथ धो लें।
नैवेद्य-नैवेद्यं निवेदायामि।नैवेद्यान्तेध्यानम्
ध्यानान्तेआचमनीयंजलंसमर्पयामि।नैवेद्य निवेदित करे, तदनंतर भगवान का ध्यान करके आचमन के लिए जल चढाएं।
ऋतुफल-ॐया: फलिनीर्याअफलाअपुष्पाश्चपुष्पिणी:
बृहस्पति प्रर्सूतास्तानो<न् द्धह्मद्गद्घ="द्वड्डद्बद्यह्लश्र:मुञ्चन्त्व">मुञ्चन्त्व्हस:।।
ऋतुफलानिसमर्पयामि।
ऋतुफलसमर्पित करें।
ताम्बूल पुंगीफल-
मुखवासार्थेसपुंगीफलंताम्बूलपत्रंसमर्पयामि।पान और सुपारी चढाएं।
दक्षिणा-
कृताया:पूजाया:साद्रुण्यार्थेद्रव्यदक्षिणां समर्पयामि।द्रव्य दक्षिणा समर्पित करें।
आरती-
कर्पूरार्तिक्यंदीपंदर्शयामि।
कपूर से भगवती की आरती करें।
इसके बाद पुष्पांजलि अर्पित कर क्षमा प्रार्थना करें।

सोमवार, 26 सितंबर 2011

शारदीय नवरात्र में घटस्थापना मुहूर्त

शारदीय नवरात्र में घटस्थापना मुहूर्त
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, भिलाई-09827198828
शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना का पर्व नवरात्रि इस बार आठ दिन का होगा। नवरात्रि पर्व 28 सितंबर से शुरू होकर 5 अक्टूबर को समाप्त होगा। इस बार तृतीया तिथि क्षय हो रही है। द्वितीया व तृतीया तिथि एक ही दिन रहेगी। मां जगदंबा के भक्तों को 29 सितंबर को देवी ब्रह्मचारिणी और चंद्रघंटा की आराधना एक ही दिन करना होगा। यह संयोग सात साल बाद आ रहा है, जो दो साल लगातार रहेगा। 2012 में चतुर्थी तिथि का क्षय होने से नवरात्रि आठ दिनों की होगी।
28 सितम्बर, बुधवार के दिन हस्त नक्षत्र 16.21 तक है।
तत्पश्चात् चित्रा प्रारम्भ होगा, जो घटस्थापना में वर्जित माना जाता है।
बुधवार होने के कारण अभिजित भी वर्जित है।
इसलिए इस दिन घटस्थापना सूर्योदय के पश्चात द्विस्वभाव लग्न कन्या में ही करना श्रेष्ठ है।
घटस्थापना मुहूर्त प्रात: सुबह 6.22 बजे 7.50 बजे तक रहेगा।
 इसके अलावा सूर्योदय से 9.20 बजे तक लाभ और अमृत चौघडिया तथा सुबह 10.49 से दोपहर 12 बजे तक शुभ के चौघडिए में भी घट स्थापना की जा सकती है।
ज्योतिष के अनुसार नवरात्र स्थापना समय सुबह होता है। लेकिन यदि इस दौरान चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग आ जाता है तो वह शुभ नहीं रहता है।
इस बार मां दुर्गा का आगमन नौका पर व गमन मनुष्य के कंधे पर होगा, जो अति शुभ हैपुराण व अन्य धार्मिक ग्रंथों में भगवती के आगमन व प्रस्थान के लिए वाहन की चर्चा है. उन्होंने बताया कि माता का आगमन जनजीवन के लिए हर प्रकार की सिद्धि देने वाला है.
भगवती रविवार व सोमवार को गज (हाथी) पर, शनिवार व मंगलवार को तुरंग (घोड़ा) पर, गुरुवार व शुक्रवार को डोला पर और बुधवार को नौका पर आती हैं. प्रस्थान के संबंध में कहा गया है कि रविवार व सोमवार को महिष (भैसा) पर, शनिवार और मंगलवार को चरणायुद्ध वाहन पर, बुधवार व शुक्रवार को गज (हाथी) पर एवं गुरुवार को नर वाहन पर प्रस्थान करती हैं.

रविवार, 25 सितंबर 2011

अमर सिंह की तिहाड़ यात्रा

अमर सिंह की तिहाड़ यात्रा
-पं. विनोद चौबे


नोट के बदले वोट' मामले में पूर्व सपा नेता अमर सिंह के जेल जाने के बाद अब सवालों का तूफान कांग्रेस की तरफ मुड़ गया है। अमर की गिरफ्तारी से यह साफ हो गया है कि 2008 में मनमोहन सरकार बचाने के लिए बहुमत जुटाने की कवायद साफ सुथरी नहीं थी। यदि अमर सिंह ने वास्तविकता उगल दी तो सत्ताधारी कांग्रेस का क्या हश्र होगा...? इसको विपक्ष भुनाने में तनिक भी देर नहीं लगायेगा, जिसका प्रभाव उ.प्र.के विधान सभा चुनाव पर पड़ेगा। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक जब से अमर सिंह तिहाड़ गयें हैं तभी से कांग्रेस 'नोट के बदले वोट' मामले को लेकर भारी पशोपेश में पड़ी है।
कांग्रेस के आकाओं की नजर अब सोनिया जी के देश लौटने पर टिकी हुयी है। उधर उ.प्र. के विधान सभा चुनाव को देखते हुए। कांग्रेस कोई नया खुलासा करते हुए अमर सिंह को कांग्रेस में शामिल कर मुंह न खोलने के एवज में उ.प्र. की कमान भी दिया जा सकता है। ताकि अमर सिंह उ.प्र.के सवर्णों का वोट कांग्रेस के पाले में डालने का काम करें वहीं दूसरी तरफ मुलायम सिंह को भी नुकसान पहुंचाने की मंशा अमर सिंह का भी पूरा हो सके। हॉलाकि कांग्रेस के तरफ से ऐसा न होने दावा किया जा रहा है, लेकिन अब देखना यह है कि अमर सिंह की चुप्पी क्या गुल खिलाती है..? मुंह खोलते हैं तो क्या फिर घर वापसी भी सम्भव है..? कुल मिलाकर कांग्रेस यह जरूर सोच रही होगी कि...अमर सिंह।़।़।़ प्लीज मुंह मत खोलना।

सरकार मनमोहन सिंह की बची। सरकार बचाने का इशारा मुलायम सिंह ने किया। लेकिन आज न तो कांग्रेस का हाथ है और न ही मुलायम सिंह का साथ। फिर भी अमर सिंह खामोश रहे और खामोशी से तिहाड़ जेल पहुंच गये। यह फितरत अमर सिंह की कभी रही नहीं। तो फिर वह कौन सी मजबूरी है जिसे अमर सिंह ओढ़े हुये हैं। क्योंकि वामपंथियों के समर्थन वापस लेने के बाद संकट में आयी सरकार को बचाने की पहल अगर 10 जनपथ से शुरु हुई थी तो सीधी शिरकत मनमोहन सिंह ने खुद की थी। और तभी मनमोहन सिंह का अमर प्रेम खुलकर दिखा था। याद कीजिये 2008 में जुलाई के पहले हफ्ते में मनमोहन सिंह के घर 7 रेसकोर्स का दरवाजा पहली बार मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह के लिये खुला था। तब प्रधानमंत्री ने सभी सहयोगियो को भोजन पर बुलाया था। और जिस टेबल पर अमर सिंह और मुलायम सिंह बैठे थे उसी टेबल तक चलकर खुद मनमोहन सिंह गये और साथ बैठकर गुफ्तगु के बीच जायके का मजा भी लिया था। उस वक्त यह सवाल सबसे बड़ा था कि सोनिया गांधी ने एक वक्त जब मुलायम-अमर सिह के लिये अपने दरवाजे बंद कर दिये तो फिर कांग्रेस में क्या किसी की हिम्मत होगी जो अमर सिंह के लिये दरवाजे खोले। लेकिन संकट सरकार पर था और लोकसभा में बहुमत का खेल मनमोहन सिंह सरकार को बचाने के लिये ही खेला जाना था तो फिर अमर सिंह के लिये दरवाजा भी 7 रेसकोर्स का ही खुला।
बडा सवाल यहीं से शुरु होता है कि आखिर अदालत की फटकार के बाद सीबीआई ने जब तेजी दिखायी तो सरकार बचाने वाले किरदार तो जेल चले गये। जिन्होंने सरकार बचाने के लिये खरीद-फरोख्त के इस खेल को पकड़ा वह भी जेल चले गये। लेकिन सरकार का कोई खिलाड़ी जेल क्यों नहीं गया और सीबीआई ने सत्ता के दायरे में हाथ क्यों नहीं डाला। यह सवाल इसलिये बड़ा है क्योकि अमर सिंह के आगे का रास्ता उस दौर में लालकृष्ण आडवाणी के राजनीतिक सचिव रहे सुधीन्द्र कुलकर्णी तक भी जाता है और अमर सिंह कुछ बोले तो कटघरे में सरकार और कांग्रेस के वैसे चेहरे भी खड़े होते दिखते हैं, जिन पर सोनिया गांधी को नाज़ है।
तो क्या अमर सिंह की खामोशी आने वाले वक्त में अपनी सियासी जमीन बनाने के लिये राजनीतिक सौदेबाजी का दायरा बड़ा कर रही है। या फिर अमर सिंह जेल से किसी राजनीतिक तूफान के संकेत देकर अपना खेल सत्ता -विपक्ष दोनो तरफ खेलने की तैयारी में हैं। चूंकि अमर सिंह की सियासी बिसात उत्तर प्रदेश के चुनाव से भी जुड़ी है और साथ ही इस दौर में सीबीडीटी और प्रवर्तन निदेशालय की जांच के घेरे में आयी उनकी फर्जी कंपनियो के फर्जी कमाई से भी जुड़ी है। कैश फार वोट की जांच करते करते सीबीआई ने अमर सिंह के उस मर्म को ही पकड़ा, जहां सियासी ताकत के जरीये अपने परिवार और दोस्तो की कमाई के लिये फर्जी कंपनी बनायी तो कमाई से सियासत में अपनी ताकत का अहसास कराते रहे। जिस पंकजा आर्टस नाम की कंपनी की सफेद जिप्सी में ही तीन करोड़ रुपया ले जाया गया, वह पंकजा आर्टस कंपनी में अमर सिंह और उनकी पत्नी की हिस्सदारी है। सीबीडीटी की रिपोर्ट बताती है कि अमर सिंह करीब 45 कंपनियो से किसी ना किसी रुप में जुड़े हैं, जिनके खिलाफ जांच चल रही है।
इन सभी कंपनियों पर सत्ता की प्यार भरी निगाहें तब तक रहीं जब तक अमर सिंह सत्ता में रहे या फिर सत्ता से सौदेबाजी करने की हैसियत में रहे। और सौदेबाजी के इसी दायरे ने उन्हे पावर सर्किट के तौर पर स्थापित भी किया और संकट के दौर में हर किसी के लिये संकट मोचक भी बने। इसलिये जब जब अमर सिंह जांच के दायरे में इससे पहले आये उन्होने सत्ता को भी लपेटा और विपक्ष को भी। बीमारी में मित्र अरुण जेटली के देखने आने को भी इस तरह याद किया जैसे बीजेपी से उनका करीबी नाता है और सरकार बचाने के दौर में काग्रेस के सबसे ताकतवर अहमद पटेल को भी मित्र कहकर यह संकेत देने से नहीं चूके कि उनकी सियासी बिसात पर राजनीतिक सौदेबाजी ही प्यादा भी है और राजा भी। क्योंकि अमर सिंह की शह देने में ही सामने वाले की मात होती और वही से अमर सिंह का आगे का रास्ता खुलता। और यही बिसात हमेशा अमर सिंह को भी बचाती रही। लेकिन पहली बार सौदेबाजी का दायरा बडा होने के बावजूद अमर सिंह का अपना संकट दोहरा है क्योंकि सरकार के सामने भ्रष्ट्राचार पर नकेल कसने की चुनौती है। और देश ने अन्ना आंदोलन के जरीये सत्ता को अपनी ताकत का एहसास करा भी दिया है। इसलिेए अब सवाल यह है कि अमर सिंह के तिहाड जेल जाने के बाद सरकार कितने दिन तक खामोशी ओढे रह सकती है । बीजेपी सिर्फ सरकार पर वार कर अपने सांसदो को व्हीसल ब्लोअर का तमगा देते हुये गिरफ्तारी के तार सुधीन्द्र तक पहुंचने से रोक पाती है। समाजवादी पार्टी अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिये सौदेबाजी का दोष काग्रेस या सरकार पर मढ़ कर अमर प्रेम जताती रहती है जिससे यूपी चुनाव में भ्रष्ट होने के दाग उस पर न लगे। या फिर सभी एक साथ खड़े होकर अमरसिंह की बिसात पर प्यादा बनकर सियासी सौदेबाजी में सबकुछ छुपाने में भिड़ते हैं। और संसदीय लोकतंत्र यह सोच कर ठहाके लगाने को तैयार है कि जिस स्टैडिंग कमेटी के पास भ्रष्टाचार पर नकेल कसने वाला जनलोकपाल बिल पडा है छह दिन पहले तक उसी स्टैडिंग कमेटी के सदस्य के तौर पर अमर सिंह भी थे।
यह अलग बात है कि संसद के भीतर अपराध करने के आरोप में फिलहाल अमर सिंह तिहाड जेल में हैं। इसी आधार पर विपक्ष ने कांग्रेस को घेरना और प्रधानमंत्री से जवाब मांगना शुरू कर दिया, क्योंकि अमर सिंह कांग्रेस सरकार बचाने की कोशिशों के सूत्रधार थे। जबकि कोर्ट और कानून का हवाला देकर कांग्रेस अपना पल्ला झाडऩे में लग गई है।
क्या था मामला:
तीन वर्ष पहले अमेरिका के साथ नाभिकीय करार पर मचे राजनीतिक उफान और वामदलों की समर्थन वापसी के बाद अमर सिंह ने न सिर्फ सरकार को बचाने में बल्कि करार को अंजाम तक पहुंचाने में भी मदद की थी। उसी अहम पड़ाव पर सरकार को सांसदों के वोट की जरूरत हुई थी और विपक्ष के कई सदस्य सरकार के साथ खड़े थे।
अमर सिंह की भूमिका इसलिए भी अहम मानी जाती है क्योंकि सपा के शुरुआती विरोध के बाद उन्होंने ही पार्टी का रुख बदलवाया था।
नोट के बदले वोट प्रकरण सीधे तौर पर भले ही सरकार के विश्वास प्रस्ताव से जुड़ा हो, इसकी पूरी पृष्ठभूमि परमाणु करार से जुड़ी थी।
दरअसल इसी करार के विरोध में वामदलों ने समर्थन वापस लेकर सरकार को अल्पमत में ला दिया था। दबाव में आई सरकार 22 जुलाई 2008 को लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी। संप्रग सरकार 5 वोट के मामूली अंतर से बची थी। सरकार के पक्ष में 268 वोट पड़े थे जिसमें सपा के भी 37 वोट शामिल थे। जबकि विरोध में 263 वोट पड़े थे।
मतदान का रोचक पहलू यह था कि विपक्ष के कई सांसद सरकार के साथ खड़े थे, लेकिन वोटिंग की इस जीत से पहले भाजपा के अशोक अर्गल, फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर भगौरा ने लोकसभा के अंदर कथित तौर पर रिश्वत में दिए गए रुपये दिखाकर सनसनी फैला दी थी।
तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने पुलिस को इस मामले की जांच के लिए कहा था। बाद में राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप के बीच कुछ अन्य लोगों के साथ साथ अमर सिंह का भी नाम आया
वहीं कुछ महीने पहले हुए विकिलीक्स खुलासे में कहा गया कि कांग्रेस नेता के एक सहयोगी नचिकेता कपूर ने अमेरिकी दूतावास के एक अधिकारी को बताया था कि सरकार बचाने के लिए कुछ सांसदों को रिश्वत दे दी गई है।
इधर, जनवरी 2009 से शुरू हुई पुलिस जांच में तब तेजी आई जब अप्रैल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने लताड़ लगाया था। उसके बाद कभी अमर सिंह जुड़े रहे संजीव सक्सेना और भाजपा के कार्यकर्ता सुहैल हिंदुस्तानी को गिरफ्तार किया गया था। अमर सिंह के रूप में पहली बड़ी गिरफ्तारी हुई है।
(समाचार लिखने तक अमर सिंह तिहाड़ जेल में थे)

दुर्गा सप्तशती महायज्ञ

vinod choubey

नवरात्र में श्री दुर्गा सप्तशती महायज्ञ
भगवती शक्ति एक होकर भी लोक कल्याण के लिए अनेक रूपों को धारण करती है। श्ेवतांबर उपनिषद के अनुसार यही आद्या शक्ति त्रिशक्ति अर्थात महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती के रूप में प्रकट होती है। इस प्रकार पराशक्ति त्रिशक्ति, नवदुर्गा, दश महाविद्या और ऐसे ही अनंत नामों से परम पूज्य है।
श्री दुर्गा सप्तशती नारायणावतार श्री व्यासजी द्वारा रचित महा पुराणों में मार्कण्डेयपुराण से ली गयी है। इसम सात सौ पद्यों का समावेश होने के कारण इसे सप्तशती का नाम दिया गया है। तंत्र शास्त्रों में इसका सर्वाधिक महत्व प्रतिपादित है और तांत्रिक प्रक्रियाओं का इसके पाठ में बहुधा उपयोग होता आया है। पूरे दुर्गा सप्तशती में 360 शक्तियों का वर्णन है। इस पुस्तक में तेरह अध्याय हैं। शास्त्रों के अनुसार शक्ति पूजन के साथ भैरव पूजन भी अनिवार्य माना गया है। अत: अष्टोत्तरशतनाम रूप बटुक भैरव की नामावली का पाठ भी दुर्गासप्तशती के अंगों में जोड़ दिया जाता है। इसका प्रयोग तीन प्रकार से होता है।
1.     नवार्ण मंत्र के जप से पहले 'भैरवजी के मूल मंत्रÓ का 108 बार जप।
2.     प्रत्येक चरित्र के आद्यान्त में 1-1 पाठ।
3. प्रत्येक उवाचमंत्र के आस-पास संपुट देकर पाठ।
नैवेद्य का प्रयोग अपनी कामनापूर्ति हेतु दैनिक पूजा में नित्य किया जा सकता है। यदि मां दुर्गाजी की प्रतिमा कांसे की हो तो विशेष फलदायिनी होती है।
श्री दुर्गासप्तशती का अनुष्ठान कैसे करें।
1. कलश स्थापना
2. गौरी गणेश पूजन
3. नवग्रह पूजन
4. षोडश मातृकाओं का पूजन
5. कुल देवी का पूजन
6. मां दुर्गा जी का पूजन निम्न प्रकार से करें।
आवाहन : आवाहनार्थे पुष्पांजली सर्मपयामि।
आसन : आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
पाद : पाद्यर्यो: पाद्यं समर्पयामि।
अघ्र्यम्: हस्तयो: अघ्र्यम् स्नान: ।
आचमन: आचमन समर्पयामि।
स्नान: स्नानादि जलं समर्पयामि।
स्नानांग: आचमन: स्नानन्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि।
दुग्ध स्नान: दुग्ध स्नान समर्पयामि।
दहि स्नान: दधि स्नानं समर्पयामि।
घृत स्नान: घृतस्नानं समर्पयामि।
शहद स्नान: मधु स्नानं सर्मपयामि।
शर्करा स्नान: शर्करा स्नानं समर्पयामि।
पंचामृत स्नान: पंचामृत स्नानं समर्पयामि।
गन्धोदक स्नान: गन्धोदक स्नानं समर्पयामि
शुद्धोदक स्नान: शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि
वस्त्र: वस्त्रं समर्पयामि
सौभाग्य सूत्र: सौभाग्य सूत्रं समर्पयामि
चंदन: चंदनं समर्पयामि
हरिद्रा: हरिद्रा समर्पयामि
कुंकुम: कुंकुम समर्पयामि
आभूषण: आभूषणम् समर्पयामि
पुष्प एवं पुष्प माला: पुष्प एवं पुष्पमाला समर्पयामि
फल: फलं समर्पयामि
भोग (मेवा): भोगं समर्पयामि
मिष्ठान: मिष्ठानं समर्पयामि
धूप: धूपं समर्पयामि।
दीप: दीपं दर्शयामि।
नैवेद्य: नैवेद्यं निवेदयामि।
ताम्बूल: ताम्बूलं समर्पयामि।
भैरवजी का पूजन करें इसके बाद कवच, अर्गला, कीलक का पाठ करें। यदि हो सके तो देव्यऽथर्वशीर्ष, दुर्गा की बत्तीस नामवली एवं कुंजिकस्तोत्र का पाठ करें।
नवार्ण मंत्र: 'ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चैÓ का जप एक माला करें एवं रात्रि सूक्त का पाठ करने के बाद श्री दुर्गा सप्तशती का प्रथम अध्याय से पाठ शुरू कर तेरह अध्याय का पाठ करें। पाठ करने के बाद देवी सूक्त एवं नर्वाण जप एवं देवी रहस्य का पाठ करें। इसके बाद क्षमा प्रार्थना फिर आरती करें। पाठ प्रारंभ करने से पहले संकल्प अवश्य हो। पाठ किस प्रयोजन के लिए कर रहे हैं यह विनियोग में स्पष्ट करें।
दुर्गासप्तशती के पाठ में ध्यान देने योग्य कुछ बातें
1. दुर्गा सप्तशती के किसी भी चरित्र का आधा पाठ ना करें एवं न कोई वाक्य छोड़े।
2. पाठ को मन ही मन में करना निषेध माना गया है। अत: मंद स्वर में समान रूप से पाठ करें।
3. पाठ केवल पुस्तक से करें यदि कंठस्थ हो तो बिना पुस्तक के भी कर सकते हैं।
4. पुस्तक को चौकी पर रख कर पाठ करें। हाथ में ले कर पाठ करने से आधा फल प्राप्त होता है।
5. पाठ के समाप्त होने पर बालाओं व ब्राह्मण को भोजन करवाएं।
अभिचार कर्म में नर्वाण मंत्र का प्रयोग
1. मारण : ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै देवदत्त रं रं खे खे मारय मारय रं रं शीघ्र भस्मी कुरू कुरू स्वाहा।
2. मोहन : क्लीं क्लीं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्तं क्लीं क्लीं मोहन कुरू कुरू क्लीं क्लीं स्वाहा॥
3. स्तम्भन : ऊँ ठं ठं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्तं ह्रीं वाचं मुखं पदं स्तम्भय ह्रीं जिहवां कीलय कीलय ह्रीं बुद्धि विनाशय -विनाशय ह्रीं। ठं ठं स्वाहा ॥
4. आकर्षण : ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदतं यं यं शीघ्रमार्कषय आकर्षय स्वाहा॥
5. उच्चाटन : ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्त फट् उच्चाटन कुरू स्वाहा।
6. वशीकरण : ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्तं वषट् में वश्य कुरू स्वाहा।
नोट : मंत्र में जहां देवदत्तं शब्द आया है वहां संबंधित व्यक्ति का नाम लेना चाहिए।


श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ से कैसे करें मनोकामना पूर्ति..
अध्याय        फल
प्रथम अध्याय    हर प्रकार की चिंता को समाप्त करने के लिए
द्वितीय अध्याय    शत्रु पीड़ा, मुकदमा आदि में विजय के लिए
तृतीय अध्याय    शत्रु दमन
चतुर्थ अध्याय    देवी दर्शन प्राप्त करने के लिए
पंचम अध्याय    देवी भक्ति प्राप्त करने के लिए
षष्ठम अध्याय    दु:ख, भय, व्यापार बाधा निवारण हेतु.
सप्तम अध्याय    मनोवांछित फल प्राप्ति हेतु.
अष्टम अध्याय    वशीकरण एवं मित्रता में प्रगाढ़ता के लिए.
नवम अध्याय    सन्तान प्राप्ति और उन्नति सहित हर प्रकार की कामना पूर्ति हेतु.
दशम अध्याय     राज सत्ता व राजसुख के लिए.
एकादश अध्याय व्यापार उन्नति के लिए.
द्वादश अध्याय    यश और लोकप्रियता के लिए.
त्रयोदश अध्याय    पुन: राज्यस्थापन एवं सत्ता सुख के लिए
तिथियों पर आधारित दुर्गापाठ का फल
1. पूर्णिमा के दिन पाठ व देवी पूजन से सिद्धियों की प्राप्ति होती है.
2. शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को पाठ करने से सुख-समृद्धि घर आती है.
3. शुक्ल पक्ष की अष्टमी और नवमी को पाठ करने से राजयोग और राजसुख की प्राप्ति.
4. शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तथा नवमीं को पाठ करने से भक्ति एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है.
5. शुक्ल पक्ष की षष्ठी से लेकर आगामी नित्य 9 दिनों तक पाठ करने मात्र से अष्ट सिद्धि और 9 निधियों की प्राप्ति होती है.
6. शुक्ल पक्ष की अष्टमी से अगले माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर्यंत लगातार एक माह पाठ करने से भूत-प्रेत आदि दोष समाप्त.श्री दुर्गा सप्तशती के साप्ताहिक दिनों के अनुसार पाठ का फल
1. रविवार : इस दिन पाठ करने से 9 पाठ के बराबर फल प्राप्त होता है.
2. सोमवार : इस दिन पाठ करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है.
3. मंगलवार : इस दिन पाठ करने से 108 पाठ का फल प्राप्त होता है.
4. बुधवार : इस दिन पाठ करने से 1 लाख दुर्गा पाठ का फल प्राप्त होता है.
5. बृहस्पतिवार : इस दिन पाठ करने से सवा लाख दुर्गा पाठ का फल प्राप्त होता है.
6. शुक्रवार : इस दिन पाठ करने से दो लाख दुर्गा पाठ करने का फल प्राप्त होता है.
7. शनिवार : इस दिन पाठ करने से अनंत गुना दुर्गा पाठ का फल प्राप्त होता है.नवरात्र में नैवेद्य से कामना पूर्ति
दिवस      नैवेद्य        कामना पूर्ति
प्रथम    गाय का घी    रोगों का शमन
द्वितीया    शक्कर / गुड़    दीर्घायु के लिए
चतुर्थी    खीर / मालपुआ    नेतृत्व एवं आत्म विश्वास के लिए
पंचमी    केला    व्यापार वृद्धि हेतु
षष्ठी    शहद    दिव्याकर्षण हेतु
सप्तमी    छुआरा / गुड़    गृहबाधा शांति हेतु
अष्टमी    नारियल    गृह कलह शांति हेतु
नवमी    काला तिल    रोग एवं प्रेतादि दोष शमन के लिए
नोट : अनार का फल, खीर, अखरोट, नारियल, पान सुपारी और गुड़हल पुष्प प्रतिदिन चढ़ाना चाहिए। माताजी को दुर्वा चढ़ाना बिल्कुल वर्जित है।

मंगलवार, 20 सितंबर 2011

सफलता के लिए बेहतर सोच होना चाहिए -

सफलता के लिए बेहतर सोच होना चाहिए -
डॉ. संतोष राय
डॉ.संतोष राय

प्रोफेशनल कैरियर एण्ड कम्प्यूटर्स १९६, जोनल मार्केट, सेक्टर-10, भिलाई.
किसी भी जीत या किसी भी सफलता की शुरूआत एक बेहतर सोच से होती है। किसी ने कहा कि अभिषेक कितना अच्छा पेन्टर है। कितनी खूबसूरत पेन्टिंग बनाता है। उसके हाथो में जादू है। इसका दूसरा पहलू उस पेन्टर के खूबसूरत दिमाग में खूबसूरत सोच है। तभी हाथ खुबसूरत चित्र को कोरे कागज पर उतारने में सफल हो पाता है। दिमाग ही (सोच ही) वह आधार है जहां से सफलता की शुरूआत होती है। ज्यादातर लोग सायकल को स्टैंड पर खड़ा करके बहुत तेजी से चलाते हुए मंजिल तक जाने की सोच रखते है। परन्तु सायकल तो स्टैंड पर खड़ी है और केवल पिछला पहिया ही चल रहा है। ऐसे में वह अपनी मंजिल तक कैसे पहुंच पायेगा। उसके लिए दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ बेहतर सोच होना आवश्यक है।
आज का युवा देश का भविष्य है। और औद्योगिक एवं प्रबन्धकीय युग में ''स्मार्ट युवाओं की मांग है। विषय का ज्ञान तो आवश्यक है। परंतु स्मार्ट होना भी जरूरी है । ''स्मार्ट,, बनने का तात्पर्य यह है कि हम अपनी संस्कृति व माता पिता को भूल जायें। अगर आप बेहतर करने की ख्वाहिश रखते हो तो कड़ी मेहनत के साथ-साथ एक बेहतर सोच भी आवश्यक है।
माता पिता (पालक) को भी एक ही सुझाव है। अगर बच्चा कुछ सोच या करने की चाह रखता है तो उसे प्रोत्साहित करें, निगेटिव सोच कार्य को नकारात्मक कर देगी, अगर आपका बच्चा सी.ए.  करना चाहता है या आईसीडब्लूए या सी.एस. या आईआईटी या पीएमटी या एआईईईई या कोई भी कोर्स करना चाहता है तो आप उसके साथ बैठकर उसके निर्णय में एक बेहतर सुझाव दीजिए न कि आप उसे यह कहें कि देख तू कर पायेगा कि नहीं, मेरा पैसा तो नहीं बर्बाद करेगा, तेरे से कुछ होगा नहीं, पढऩे लिखने में मन लगता नहीं चले हो.... ।
ऐसी निगेटिव सोच के साथ शुरआत निगेटिव ही होगी, नुकसान की सोच पहले होगी तो नुकसान तो होगा ही. मैने अपनी पर्सनाल्टी डेवलपमेंट की कार्यशाला में कुछ छात्र-छात्राओं पर रिसर्च किया तो पाया कि छात्रों और उनके माता पिता के बीच में होने वाले संवाद काफी सीमित हैं। ज्यादातर बातें (माता-पिता और पुत्र-पुत्री के बीच) आज के व्यस्ततम समय की बातचीत
1. बेटे चलो जाओ पढ़ाई करो।
2. अभी तक यहीं बैठा है।
3. पढ़ाई कैसी चल रही है।
4. टी. वी. देखना बन्द करो।
5. बाद में पछताओगे।
6. और नम्बर लाना है।
7. गाड़ी तेज मत चलाया करो।
8. तुम्हारी बहुत दोस्ती हो गयी है।
उन कुछ गिने चुने संवादों से पूरी दिनचर्या को समझते हुए बच्चे के साथ बैठे और उन्हे इन्ही बातों को बेहतर अंदाज में समझाते (परन्तु समझाने वो संवाद कुछ लम्बे न हों वरन संक्षिप्त एवं प्रभावी हों)
जैसे :- गाड़ी तेज मत चलायाकर बेटा कुछ भी गलत होगा तो तेरे पापा एवं मम्मी तेरे बगैर रह नहीं पाएंगे। बच्चे के इम्पार्टेंस एवं उपयोगिता को बतायें।

हिंदी दिवस औपचारिकता या आवश्यकता

हिंदी दिवस औपचारिकता या आवश्यकता 
-हृषिकेश त्रिपाठी,भिलाई  
नयी भारतीय सभ्यता का प्रतीक बनती ''इंगलिश अब तेजी से अपने पैर अत्याधुनिक यंत्रो मोबाइल,इंटरनेट आदि के माध्यम से पसारते जा रही है।
इंटरनेट पर अब लैटिन के साथ-साथ देवनागरी लिपि में खोज करना सुगम हो गया है। इस बात सक कुछ हिंन्दी प्रेमियों को यह प्रसन्नता अवश्य हुई होगी कि अब शायद हिंदी के पढऩे लिखने, वालो की तादात बढ़ेगी। हिंदी को लेकर उछलकूद, (धींगामुश्ती) बस 14 सितंबर के बाद पख्वाड़े भर ही दिखती है। फिर सब कुछ टांय-टांय फिस्स क्योंकि लोगो ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी दिवस जो घोषित कर दिया है। तो इतनी कवायद तो जरूर है ना?
    वैसे लगता है कि हमें अंग्रेजी नही आती और हिंदी आती है इसीलिए पठन-पाठन एवं लेखन का कार्य हिंदी में किया जाना उचित लगता है, नही तो जिन्हें थोड़ी बहुत भी अंग्रेजी आती है वे दो-चार शेक्सपियर ओर चेतनभगत तक के बीच के लेखकों का नाम व उनकी ख्यातिलब्ध रचनाओं का नाम लेकर ही अपनी परिपक्वता दर्शाने का प्रयास करते हैं। व्यवासीयकरण के इस दौर में जहां उच्च वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग, के बच्चों के अभिभावक एक अदद नौकरी पाने के लिए बच्चों के अंदर अंग्रेजी कम और अंग्रेजियत ज्यादा ठँूस रहे हैं, वहाँ यह आशा करना ही निरर्थक है कि भविष्य में हिंदी का प्रचार -प्रसार बढ़ेगा ।
अभी-अभी कुछ दिनो पूर्व यहां सरकारी विद्यालय एवं महाविद्यालयों के प्रति कम होता रूझान और निजी विद्यालयों व महाविद्यालयों के प्रति बढ़ती लिप्सा हिंदी के प्रति उपेक्षा को दर्शाती प्रतीत होती है। ट्रेन,बस,घर अथवा निजी कार्यालय में हिंदी अखबार,पत्रिका लेकर पढऩा ''आउट ऑफ  फैशनÓÓ और अंगेजी एवं पत्रिका को उलटते-पुलटते रहना 'फैशनेबलÓ माना जाने लगा है। महानगरों में अब हिंदी भाषा-भाषी चलन मे अब ऐसे उपेक्षित हैं जैसे अंगेजो के जमाने में भारतीय। भले ही राजभाषा कही जाने वाली हिंदी के लिए गूगल का देवनागरी करण हो जाए किंतु जब तक हिंदी को आदत में शुमार नही किया जाएगा तब तक इसका चलन में आना कठिन हैं। ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हिंदी भी लुप्त प्राय भाषाओं की श्रेणी मे परिलक्षित होने लगेगी।
हिंदी पढऩे एवं लिखने वालों की संख्या में कमी और इंगलिश पढऩे वालों की जनसंख्या में होती वृद्धि इंगित कर रही है कि कैसे लोगो का पाश्चात्यीकरण हो रहा है, और पड़ोसी के समक्ष अपने 3 वर्ष के बच्चे से अंग्रेजी में कविता सुनवाने का दम भरने वाले लोग किस मार्ग पर जा रहें हैं।
आज आवश्यकता इस बात की नहीं है कि हिंदी-दिवस और पखवाड़े मनाए जाएँ बल्कि आवश्यकता इस बात की है कि हिंदी को सामान्य समाज की आदत में शामिल किया जाय। क्षेत्रवाद,क्षेत्रीयभाषा एवं जातिवाद के नाम पर हो रहे हिंदी भाषा पर कुठाराघातों को रोका जाय। निम्न तबके के लोगों की, जो मजबूरी में हिंदी विद्यालयों अथवा महाविद्यालयों  में पढ़ते हों इंटरनेट की सुविधा सस्ती उपलब्ध कराई जाय ताकि आने वाले दिनों में हिंदी की व्यापकता का दम उन्हें भी स्वयं में दिखे। हिंदी भाषा के लिए मात्र एक दिन हिंदी दिवस मनाकर  पूर्ण करना, कहाँ तक उचित है?

हिंदी दिवस औपचारिकता या आवश्यकता

हिंदी दिवस औपचारिकता या आवश्यकता 
-हृषिकेश त्रिपाठी,भिलाई  
नयी भारतीय सभ्यता का प्रतीक बनती ''इंगलिश अब तेजी से अपने पैर अत्याधुनिक यंत्रो मोबाइल,इंटरनेट आदि के माध्यम से पसारते जा रही है।
इंटरनेट पर अब लैटिन के साथ-साथ देवनागरी लिपि में खोज करना सुगम हो गया है। इस बात सक कुछ हिंन्दी प्रेमियों को यह प्रसन्नता अवश्य हुई होगी कि अब शायद हिंदी के पढऩे लिखने, वालो की तादात बढ़ेगी। हिंदी को लेकर उछलकूद, (धींगामुश्ती) बस 14 सितंबर के बाद पख्वाड़े भर ही दिखती है। फिर सब कुछ टांय-टांय फिस्स क्योंकि लोगो ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी दिवस जो घोषित कर दिया है। तो इतनी कवायद तो जरूर है ना?
    वैसे लगता है कि हमें अंग्रेजी नही आती और हिंदी आती है इसीलिए पठन-पाठन एवं लेखन का कार्य हिंदी में किया जाना उचित लगता है, नही तो जिन्हें थोड़ी बहुत भी अंग्रेजी आती है वे दो-चार शेक्सपियर ओर चेतनभगत तक के बीच के लेखकों का नाम व उनकी ख्यातिलब्ध रचनाओं का नाम लेकर ही अपनी परिपक्वता दर्शाने का प्रयास करते हैं। व्यवासीयकरण के इस दौर में जहां उच्च वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग, के बच्चों के अभिभावक एक अदद नौकरी पाने के लिए बच्चों के अंदर अंग्रेजी कम और अंग्रेजियत ज्यादा ठँूस रहे हैं, वहाँ यह आशा करना ही निरर्थक है कि भविष्य में हिंदी का प्रचार -प्रसार बढ़ेगा ।
अभी-अभी कुछ दिनो पूर्व यहां सरकारी विद्यालय एवं महाविद्यालयों के प्रति कम होता रूझान और निजी विद्यालयों व महाविद्यालयों के प्रति बढ़ती लिप्सा हिंदी के प्रति उपेक्षा को दर्शाती प्रतीत होती है। ट्रेन,बस,घर अथवा निजी कार्यालय में हिंदी अखबार,पत्रिका लेकर पढऩा ''आउट ऑफ  फैशनÓÓ और अंगेजी एवं पत्रिका को उलटते-पुलटते रहना 'फैशनेबलÓ माना जाने लगा है। महानगरों में अब हिंदी भाषा-भाषी चलन मे अब ऐसे उपेक्षित हैं जैसे अंगेजो के जमाने में भारतीय। भले ही राजभाषा कही जाने वाली हिंदी के लिए गूगल का देवनागरी करण हो जाए किंतु जब तक हिंदी को आदत में शुमार नही किया जाएगा तब तक इसका चलन में आना कठिन हैं। ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हिंदी भी लुप्त प्राय भाषाओं की श्रेणी मे परिलक्षित होने लगेगी।
हिंदी पढऩे एवं लिखने वालों की संख्या में कमी और इंगलिश पढऩे वालों की जनसंख्या में होती वृद्धि इंगित कर रही है कि कैसे लोगो का पाश्चात्यीकरण हो रहा है, और पड़ोसी के समक्ष अपने 3 वर्ष के बच्चे से अंग्रेजी में कविता सुनवाने का दम भरने वाले लोग किस मार्ग पर जा रहें हैं।
आज आवश्यकता इस बात की नहीं है कि हिंदी-दिवस और पखवाड़े मनाए जाएँ बल्कि आवश्यकता इस बात की है कि हिंदी को सामान्य समाज की आदत में शामिल किया जाय। क्षेत्रवाद,क्षेत्रीयभाषा एवं जातिवाद के नाम पर हो रहे हिंदी भाषा पर कुठाराघातों को रोका जाय। निम्न तबके के लोगों की, जो मजबूरी में हिंदी विद्यालयों अथवा महाविद्यालयों  में पढ़ते हों इंटरनेट की सुविधा सस्ती उपलब्ध कराई जाय ताकि आने वाले दिनों में हिंदी की व्यापकता का दम उन्हें भी स्वयं में दिखे। हिंदी भाषा के लिए मात्र एक दिन हिंदी दिवस मनाकर  पूर्ण करना, कहाँ तक उचित है?

बढ़ता छत्तीसगढ़...

मानसून सत्र: 2011
बढ़ता छत्तीसगढ़...
छत्तीसगढ़ विधानसभा में लगभग पांच घण्टे 23 मिनट की लम्बी चर्चा के बाद वर्तमान वित्तीय वर्ष 2011-12 के लिए राज्य सरकार के एक हजार 653 करोड़ 30 लाख रूपए का प्रथम अनुपूरक अनुमान ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने यह प्रथम अनुपूरक बजट पेश किया था।
उन्होंने इस पर सदन में हुई चर्चा का जवाब देते हुए सदस्यों को बताया कि आज पारित किए गए प्रथम अनुपूरक अनुमानों को मिलाकर राज्य सरकार के इस वर्ष के मुख्य बजट का आकार 32 हजार 477 करोड़ रूपए से बढ़कर 34 हजार 131 करोड़ 07 लाख रूपए तक पहुंच गया है। प्रथम अनुपूरक में आयोजना व्यय 863 करोड़ 77 लाख रूपए और आयोजनेत्तर व्यय 789 करोड़ 53 लाख रूपए है। इसी तरह प्रथम अनुपूरक के लिए प्रावधानित व्यय में पूंजीगत व्यय 989 करोड़ 68 लाख रूपए और राजस्व व्यय 663 करोड़ 63 लाख रूपए है। मुख्यमंत्री ने प्रथम अनुपूरक पर पक्ष और विपक्ष के सदस्यों की चर्चा का जवाब देते हुए सदन में कहा कि राज्य सरकार सम्पूर्ण पारदर्शिता और जनप्रतिनिधियों के सहयोग और उनकी विश्वसनीयता के साथ एक बेहतर कार्य संस्कृति के जरिए राज्य के विकास के लिए वचनबध्द है। डॉ. सिंह ने कहा कि हम सब जनप्रतिनिधि अपने सार्वजनिक जीवन में आम जनता के बीच काम करते हैं और जनता के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैें। राज्य सरकार अपनी सार्वजनिक सेवाओं में आम जनता की संतुष्टि को अपना प्रमुख लक्ष्य मानकर विधानसभा में लोकसेवा गारंटी विधेयक भी लाने जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि बस्तर अंचल में छत्तीसगढ़ सहायक सशस्त्र पुलिस बल में वहां के स्थानीय युवाओं की भर्ती के लिए सात हजार पद स्वीकृत किए गए हैं। इन पदों के लिए चयनित युवाओं को हर महीने छह हजार 900 रूपए का वेतन मिलेगा, जिस पर 58 करोड़ रूपए का वार्षिक व्यय होगा।
डॉ. रमन सिंह ने कहा कि बारहवें वित्त आयोग की अवधि में बेहतर वित्तीय प्रबंधन के मामले में छत्तीसगढ़ ने राष्ट्रीय स्तर पर एक लम्बी छलांग लगाई है। विकासात्मक व्यय और सामाजिक क्षेत्र के कार्यो में किए जाने वाले खर्च में छत्तीसगढ़ ने प्रति व्यक्ति व्यय की दृष्टि से नया कीर्तिमान बनाया है। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2009-10 में छत्तीसगढ़ का विकासात्मक व्यय कुल व्यय के प्रतिशत के रूप में 76.53 प्रतिशत रहा है, जो देश के पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश को छोड़कर सामान्य श्रेणी के राज्यों में सर्वाधिक है। उन्होंने कहा कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की वर्ष 2009-10 की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं में राज्य का प्रति व्यक्ति आर्थिक व्यय तथा सामाजिक क्षेत्र का व्यय राष्ट्रीय औसत की तुलना में काफी अधिक है। इस अवधि में छत्तीसगढ़ ने प्रति व्यक्ति आर्थिक व्यय औसतन 1858 रूपए व्यय किया है, जबकि राष्ट्रीय औसत 1468 रूपए रहा।
सामाजिक क्षेत्र में राज्य का व्यय राष्ट्रीय औसत से अधिक
इसी तरह सामाजिक क्षेत्र में छत्तीसगढ़ ने इस दौरान प्रति व्यक्ति तीन हजार 371 रूपए खर्च किया, जबकि राष्ट्रीय औसत प्रति व्यक्ति दो हजार 718 रूपए था। मुख्यमंत्री ने कहा कि बारहवें वित्त आयोग की अवधि में राज्य का वित्तीय प्रबंधन काफी बेहतर रहा। राज्य द्वारा अधिसूचित किए गए राजकोषीय उत्तरदायित्व तथा बजट प्रबंधन अधिनियम (स्नक्रक्चरू ्रष्टञ्ज) के द्वारा यह तय किया गया था कि राजस्व शून्य तथा वित्तीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद का तीन प्रतिशत की सीमा में रखा जाएगा, इस लक्ष्य को प्राप्त किया गया है। अब तेरहवें वित्त आयोग की अनुशंसा अनुसार वर्ष 2010-11 से 2014-15 तक राजस्व घाटा, वित्तीय घाटा एवं दायित्वों की सीमाएं वर्ष वार छत्तीसगढ़ राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंध (संशोधन) अध्यादेश, 2011 द्वारा तय की गयी है एवं इस अध्यादेश को विधेयक बनाने की कार्यवाही सदन के समक्ष विचाराधीन है। अभी तक की वित्तीय उपलब्धियों के आधार पर हम पूर्णत: आशान्वित है कि बारहवें वित्त आयोग की अवधि में समान तेरहवें वित्त आयोग की अवधि में भी राज्य का वित्तीय प्रबंधन सुदृढ़ रहेगा।
राजस्व प्राप्ति में उल्लेखनीय सुधार
डॉ. रमन सिंह ने सदन में कहा कि राज्य सरकार की कर राजस्व प्राप्ति में भी उत्तरोत्तर सुधार आया है। कर राजस्व में वर्ष 2009-10 की तुलना में वर्ष 2010-11 में 26 प्रतिशत की वृध्दि हुई है। उन्होंने सदस्यों को बताया कि राज्य के बजट में उत्तरोत्तर वृध्दि हो रही है। वर्ष 2001-02 में राज्य का कुल बजट 7294.77 करोड़ रूपए था, जो बढ़कर वर्ष 2011-12 में 32477.77 करोड़ रूपए हो गया है। वर्ष 2001-02 में आयोजना व्यय 1518.80 करोड़ रूपए एवं आयोजनेत्तर व्यय 3952.69 करोड़ रूपए (28:72 के अनुपात में) था, जो कि बढ़कर वर्ष 2010-11 में आयोजना व्यय 11576.44 करोड़ रूपए एवं आयोजनेत्तर व्यय 11299.71 करोड़ रूपए (51:49 के अनुपात में) हो गया।
अनुपूरक में किसानों के हित में प्रावधान
मुख्यमंत्री ने सदन को बताया कि इस वर्ष के प्रथम अनुपूरक में सिंचाई सुविधाओं के लिए कुल 234 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है। इस राशि में लघु सिंचाई योजनाओं हेतु 90 करोड़ रूपए, एनीकट व स्टापडेम हेतु 79 करोड़ रूपए, लघु सिंचाई योजनाओं के मरम्मत, पुनरोध्दार एवं पुर्ननवीकरण हेतु 60 करोड़ रूपए तथा बाढ़ नियंत्रण योजनाओं हेतु 5 करोड़ रूपए का प्रावधान है। उच्च गुणवत्ता के बीज उत्पादन कार्यक्रम के लिए 3 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान, उर्वरक व्यवसाय हेतु 10 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान और प्राथमिक सहकारी समितियों को आर्थिक सहायता हेतु 1.07 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान प्रथम अनुपूरक में किया गया है। उन्होंने सदस्यों को बताया कि इसमें सहकारी शक्कर कारखानों के सुदृढ़ीकरण हेतु 19 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान गया है। इस राशि में सहकारी शक्कर कारखाना, बालोद को परिवहन अनुदान हेतु रूपए 2.00 करोड़, भोरमदेव सहकारी शक्कर कारखाना, कवर्धा को पेराई क्षमता वृध्दि हेतु रूपए 2.00 करोड़, सहकारी शक्कर कारखाना बालोद को गन्ना पेराई हेतु कार्यशील पूंजी हेतु ऋण 12.00 करोड़ रूपए एवं सहकारी शक्कर कारखाना, अम्बिकार को गन्ना पेराई हेतु कार्यशील पूंजी के रूप में ऋण 3.00 करोड़ रूपए दिए जाएंगे। मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि भवन विहीन 27 पशु चिकित्सालय एवं 188 पशु औषधालयों के भवन निर्माण एवं जिला बीजापुर, कबीरधार एवं जांजगीर-चांपा में पशुरोग अन्वेषण प्रयोगशाला हेतु 13.29 करोड़ का अतिरिक्त प्रावधान इस अनुपूरक में किया गया है। इसके अलावा इसमें पशु नस्ल सुधार कार्यक्रम हेतु 5.21 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान भी रखा गया है।
डॉ. रमन सिंह ने सदन को यह भी बताया कि प्रथम अनुपूरक में आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास के लिए प्रावधान- प्रथम अनुपूरक में प्रदेश के विशेष पिछड़े आदिवासी समूहों के कल्याण के लिए 13 करोड़ 36 लाख रूपए का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है। आवासीय विद्यालय समिति के लिए नौ करोड़ 80 लाख रूपए का प्रावधान रखा गया है। मुख्यमंत्री ने सदन को बताया कि छत्तीसगढ़ के महान समाज सुधारक गुरू बाबा घासीदास की जन्म स्थली और तपोभूमि गिरौदपुरी में राज्य शासन द्वारा कुतुबमीनार से भी ऊंचे जैतखाम का निर्माण कराया जा रहा है। इसके लिए इस वर्ष के प्रथम अनुपूरक में निर्माण कार्यो को पूर्ण करने के लिए 19 करोड़ 25 लाख रूपए का प्रावधान किया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस विशाल जैतखाम का निर्माण दिसम्बर माह तक पूर्ण करने का लक्ष्य है। उन्होंने सदन को बताया कि प्रथम अनुपूरक में अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों की पोस्ट मेट्रिक छात्रवृत्ति के लिए 28 करोड़ 84 लाख रूपए का प्रावधान किया गया है। आदिवासी छात्रावासों में एक हजार और आश्रम शालाओं में भी एक हजार सीटों की वृध्दि की जा रही है और शिष्यवृत्ति के लिए नौ करोड़ 30 लाख रूपए का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री ने सदन को प्रथम अनुपूरक में विभिन्न विभागों में किए गए बजट प्रावधानों की जानकारी दी, जो इस प्रकार है। शिक्षा के लिये प्रावधान:- प्रदेश की 12,396 प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक शालाओं में अहाता निर्माण हेतु 20 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान। 18 हाई स्कूलों को हायर सेकेण्ड्री स्कूलों में उन्नयन हेतु 4.00 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान। 1000 पूर्व माध्यमिक एवं 360 प्राथमिक शालाओं के निर्माण हेतु 20.61 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान। जगदलपुर में एन.सी.सी. की बालिका बटालियन के गठन हेतु 30.00 लाख रूपए का अतिरिक्त प्रावधान। नक्सल प्रभावित जिलों में 7 आई.टी.आई. एवं 14 स्किल डेवलपमेंट सेंटर की स्थापना हेतु 46.00 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान (7 जिलें राजनांदगांव, बस्तर, बीजापुर, दक्षिण बस्तर, सरगुजा, उत्तर बस्तर एवं नारायणपुर, मशीन उपकरण हेतु 14.40 करोड़, भवन निर्माण हेतु 31.60 करोड़, कुल 46.00 करोड़) स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए प्रावधान:- रीजनल केंसर सेंटर में जीनियर एक्सीलरेटर की स्थापना हेतु 3 करोड़ रूपए तथा सी.टी. स्कैन एवं एम.आर.आई. मशीन हेतु 12 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान। सिम्स बिलासपुर एवं चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर से स्नातकोत्तर सीटों की वृध्दि हेतु 18.12 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान। 164 उप स्वास्थ्य केन्द्रों में भवन निर्माण हेतु 37.40 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान।
पुलिस विभाग के लिए प्रावधान
राज्य में सहायक सशस्त्र पुलिस बल गठन करने का निर्णय लिया गया है। नक्सल प्राभावित क्षेत्रों की 75 थाना चौंकियों के भवन निर्माण हेतु 8.75 करोड़ रूपए का प्रावधान। विशेष अधोसंरचना विकास योजना अंतर्गत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में निर्माण कर्यों हेतु 15.02 करोड़ रूपए का प्रावधन किया गया है। छत्तीसगढ़ पुलिस हाऊसिंग कार्पोरेशन के गठन हेतु एक करोड़ रूपए का प्रावधान। अपराध पीडि़तों की क्षतिपूर्ति के लिए भुगतान हेतु एक करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। पंचायत, ग्रामीण विकास एवं समाज कल्याण के लिए प्रावधान:- राष्ट्रीय वृध्दावस्था पेंशन एवं समाजिक सुरक्षा पेंशन हेतु 90.68 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान। पंचायत सचिवों के लिए 600 आवास निर्माण हेतु 18 करोड़ रूपए का प्रावधान। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनान्तर्गत सड़कों के संधारण हेतु 27 करोड़ रूपए का प्रावधान (मुख्य बजट 2011-12 में प्रावधान रूपए 50 करोड़ तेरहवे वित्त आयोग के अंतर्गत प्राप्त राशि रूपए 69 करोड़ प्रथम अनुपूरक में 27 करोड़ रूपए इस प्रकार इस वर्ष उपलब्ध राशि 50.00 + 69.00 + 27.00 करोड़ त्र 146 करोड़) विधायकों से संबंधित प्रावधान:- विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र विकास योजना अंतर्गत प्रति विधायक 50 लाख रूपए में वृध्दि कर 1.00 करोड़ रूपए किया गया है। इसके लिए 45.50 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है। माननीय विधायकों की जनसम्पर्क निधि 2 लाख प्रति विधानसभा क्षेत्र में वृध्दिकर 4 लाख रूपए की गई है। इसके लिए 1.84 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।

छत्तीसगढ़ में संस्कृत को चाहिए संजीवनी

छत्तीसगढ़  में संस्कृत को चाहिए संजीवनी  
छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामंडलम के अध्यक्ष डॉ. गणेश कौशिक के मुताबिक राज्य में संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन को बेहतर बनाने के अलावा रोजगारपरक बनाये जाने पर ज्यादा जोर दिया जायेगा, जो आगामी शिक्षा सत्र से राज्य में कम से कम 100 नए संस्कृत विद्यालय प्रारंभ करने की योजना है, राज्य के लिए बेहद आवश्यक था। प्रदेश में मरणासन्न शय्या पर कराहती संस्कृत-भाषा के लिए संजीवनी का काम करेगी,जरूरत है इस दिशा में कठोर कदम उठाने की।
छत्तीसगढ़ मे संस्कृत के शताधिक विद्यालयों का खोला जाना स्वागतेय है, किन्तु आम जनमानस को संस्कृत के प्रति आकर्षित करना अत्यंत कठिन है। आज कोई भी छात्र का अभिभावक बच्चे को स्कूल व विद्यालय भेजने से पहले सम्भावनाओं को तलाशता है..? अतएव इस शिक्षा के विस्तार के साथ-साथ सम्भावनाओं और रोजगारपरक बनाने पर बल देना बेहद जरूरी होगा । प्रदेश सरकार द्वारा की जा रहीं शिक्षा कर्मियों के नियुक्तियों में संस्कृत के अध्यापकों के लिए सुरक्षित करना, पीएमटी, इंजीनियरिंग, शासकीय राजस्व आदि सभी क्षेत्रों में रोजगार मुहैया कराने,  जैसा ठोस कदम उठाना होगा। संस्कृत किसी वर्ग विशेष का शिक्षा नहीं बल्कि चहुँमुखी रोजगार शिक्षा के रूप में स्वयमेव आम जनमानस को अपनी तरफ आकर्षित करे।
क्योंकि यदि केन्द्रीय शिक्षा नीति पर बात की जाय तो पिछले कुछ दिनों पूर्व  त्रिभाषा फार्मूले की राष्ट्रीय भाषा नीति का उल्लंघन करते हुए सीबीएसई ने हाल ही में 9वीं-10वीं कक्षा के स्कूली पाठ्यक्रम के बाबत जो नया आदेश जारी किया है. उससे सन् 1992 में संसद द्वारा स्वीकृत राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर प्रश्नचिह्न तो लगता ही है, संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल संस्कृत भाषा के मौलिक अधिकारों पर भी कुठाराघात हुआ है. वर्षों से चले आ रहे पुराने सीबीएसई पाठ्यक्रम के अनुसार तृतीय भाषा या फिर अतिरिक्त छठे विषय के रूप में संस्कृत भाषा को पढ़ा जा सकता था किन्तु बोर्ड द्वारा जारी नई द्विभाषा नीति के लागू होने तथा अतिरिक्त छठे विषय के प्रावधान को हटा देने की वजह से स्कूलों में संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन की बची-खुची संभावना भी पूरी तरह से समाप्त हो गई है. सीबीएसई के इस नए फैसले से पब्लिक स्कूलों ने अब संस्कृत की पढ़ाई बंद करके उसके स्थान पर जर्मन और फ्रेंच भाषाओं को पढ़ाना शुरू कर दिया है इस कारण हजारों संस्कृत छात्रों-अध्यापकों का भविष्य खतरे में पड़ गया है.
संस्कृत के साथ हो रहे इस अन्याय को देखते हुए इसके संगठनों में गम्भीर प्रतिक्रिया हुई है. 'दिल्ली संस्कृत अकादमी' द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोर्ड द्वारा जारी संस्कृत विरोधी शिक्षा नीति की घोर निंदा की गई थी.
'संस्कृत कमीशन' तथा ' यूजीसी'  की सिफारिश के अनुसार संस्कृत भाषा और साहित्य की वर्तमान संदर्भ में उपयोगिता को चरितार्थ करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रम में भाषा का माध्यम चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता दी जानी चाहिए. किंतु सीबीएसई ने 'संस्कृत कमीशन' और 'यूजीसी' की इन सिफारिशों को दरकिनार करते हुए अपने तुगलकी फरमान द्वारा 9वीं-10 वीं कक्षा के प्रारम्भिक स्तर पर ही संस्कृत विषय का चयन करने वाले छात्रों के लिए संस्कृत भाषा का माध्यम अनिवार्य कर दिया ताकि छात्र इस भाषा को कठिन मानकर फ्रेंच या जर्मन पढ़ सकें. बोर्ड द्वारा अपनाई गए इस संविधान विरुद्ध भाषाई दुराग्रह का मुख्य कारण है संस्कृत को जन-सामान्य से दूर रखना और इसके राष्ट्रव्यापी प्रचार-प्रसार पर अंकुश लगाना ही साबित हुआ .
दरअसल, सीबीएसई का पुराना इतिहास रहा है कि वह  कभी मातृभाषा या कभी क्लासिकल भाषा बताकर संस्कृत को स्कूली पाठ्यक्रम से बाहर रखने की रणनीति बनाता आया है. सन् 1986 में जब सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति की बुनियाद रखी गई तब भी बोर्ड ने स्कूली पाठ्यक्रम से संस्कृत विषय को ही समाप्त कर दिया और लम्बे संघर्ष तथा सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से संस्कृत की पुन: बहाली हो सकी.
4 अक्टूबर 1994 को सर्वोच्च न्यायालय ने स्कूली पाठ्यक्रम में संस्कृत भाषा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि किसी देश की सीमा के साथ उसकी संस्कृति की रक्षा भी मुख्य राष्ट्रीय दायित्व होता है. हम भारतवासियों के लिए संस्कृत का अध्ययन देश की सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के लिए किया जाता है. यदि शैक्षिक पाठ्यक्रम से संस्कृत को हतोत्साहित किया जाएगा तो हमारी संस्कृति की धारा ही सूख जाएगी. इन्हीं टिप्पणियों के साथ न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह तथा न्यायमूर्ति बी. एल. हनसेरिया ने सीबीएसई को स्कूली पाठ्यक्रम में संस्कृत को एक वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ाने का आदेश जारी किया. अदालत ने पाठ्यक्रम निर्माताओं को इस तथ्य से भी अवगत कराया कि संविधान की आठवीं अनुसूची में संस्कृत को इसलिए शामिल किया गया ताकि देश की संस्कृति को अभिव्यक्ति प्रदान करने वाली हिन्दी शब्दावली के विकास में मुख्य रूप से संस्कृत से सहयोग लिया जा सके.
संस्कृत कमीशन की रिपोर्ट हो या सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सभी ने स्कूली पाठ्यक्रम में एक वैकल्पिक विषय के रूप में संस्कृत को पढ़ाए जाने की जरूरत इसलिए समझी ताकि इस भाषा के शिक्षण से छात्रों को अपने देश की सांस्कृतिक परम्पराओं का ज्ञान हो सके. संस्कृत पाठ्यक्रम से सम्बन्धित सन् 1988 की यूजीसी की रिपोर्ट के अनुसार स्कूली स्तर पर संस्कृत शिक्षा के तीन उद्देश्य बताए गए हैं-चरित्र निर्माण, बौद्धिक योग्यताओं का समुचित विकास तथा राष्ट्रीय धरोहर का संरक्षण. पर चिंता का विषय है कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलन के राष्ट्रीय संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करने वाली संस्कृत भाषा आज संकट के दौर से गुजर रही है.
अभी कुछ वर्ष पूर्व अमेरिकी प्राच्यविद्या मनीषी प्रोफेसर सैल्डन पोलॉक जब केरल स्थित संस्कृत कालेज में व्याख्यान देने आए थे तो उन्होने भी चिंता व्यक्त की कि, जिस संस्कृत विद्या को अमेरिका आदि विभिन्न देशों में गहरी रुचि लेकर पढ़ाया जाता है वही संस्कृत अपने ही देश में अस्तित्व को बचाने के दौर से गुजर रही है. यदि भारत में संस्कृत को मर जाने दिया गया तो यह विश्व की एक बहुत बड़ी सांस्कृतिक धरोहर की हत्या होगी. सैल्डन पोलॉक के अनुसार ब्रिटिशकालीन उपनिवेशवादी शिक्षानीति जो अंग्रेजी के वर्चस्व को स्थापित करने के लिए सदैव प्रयासरत रहती है, संस्कृत शिक्षा को भारत में हतोत्साहित करती आई है.
गांधी जी ने 'संस्कृति को दबाने वाली अंग्रेजी भाषा को अंग्रेजों की तरह ही यहां से निकाल बाहर करने' के आग्रह से राष्ट्रीय शिक्षा पद्धति में संस्कृत शिक्षा पर विशेष बल दिया था.
संस्कृत पिछले दस हजार वर्षों के भारतीय ज्ञान-विज्ञान की संवाहिका 'हैरिटेज' भाषा भी है. इसलिए भारतीय संसद द्वारा स्वीकृत 'संस्कृत कमीशन' की रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा व्यवस्था में संस्कृत को राष्ट्रीय अस्मिता के संरक्षण की दृष्टि से भी विशेष प्रोत्साहन दिया जाना जरूरी है.ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार ने संस्कृत शिक्षा के प्रति गंभीर होकर संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अंतर्गत आगामी सत्र तक 100 संस्कृत विद्यालयों के खोले जाने व बोर्ड के अध्यक्ष गणेश कौशिक के अनुसार संस्कृत शिक्षा को रोजगार परक बनाने की पहल अत्यंत प्रशंसनीय है। लेकिन देखना यह है कि, राज्य सरकार द्वारा किया गया यह पहल क्या रंग लाता है।
- पं. विनोद चौबे (पत्रिका के संपादक)

रविवार, 18 सितंबर 2011

सफलता की शुरूआत एक बेहतर सोच से होती है।

जीतने की सोचोगे तो जीत ही मिलेगी  सदा हारने की सोचोगे तो हार जाओगे तुम ... -डॉ. संतोष राय
प्रोफेशनल कैरियर एण्ड कम्प्यूटर्स
१९६, जोनल मार्केट, सेक्टर-10, भिलाई.

हर सफल व्यक्ति के पास दो हाथ दो पैर और एक खूबसूरत दिमाग होता है। वह उनका उपयोग कैसे करता है यह महत्त्वपूर्ण है।

किसी भी जीत या किसी भी सफलता की शुरूआत एक बेहतर सोच से होती है। किसी ने कहा कि अभिषेक कितना अच्छा पेन्टर है। कितनी खूबसूरत पेन्टिंग बनाता है। उसके हाथो में जादू है। इसका दूसरा पहलू उस पेन्टर के खूबसूरत दिमाग में खूबसूरत सोच है। तभी हाथ खुबसूरत चित्र को कोरे कागज पर उतारने में सफल हो पाता है। दिमाग ही (सोच ही) वह आधार है जहां से सफलता की शुरूआत होती है। ज्यादातर लोग सायकल को स्टैंड पर खड़ा करके बहुत तेजी से चलाते हुए मंजिल तक जाने की सोच रखते है। परन्तु सायकल तो स्टैंड पर खड़ी है और केवल पिछला पहिया ही चल रहा है। ऐसे में वह अपनी मंजिल तक कैसे पहुंच पायेगा। उसके लिए दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ बेहतर सोच होना आवश्यक है।
आज का युवा देश का भविष्य है। और औद्योगिक एवं प्रबन्धकीय युग में ''स्मार्टÓÓयुवाओं की मांग है। विषय का ज्ञान तो आवश्यक है। परंतु स्मार्ट होना भी जरूरी है । ''स्मार्ट,, बनने का तात्पर्य यह है कि हम अपनी संस्कृति व माता पिता को भूल जायें। अगर आप बेहतर करने की ख्वाहिश रखते हो तो कड़ी मेहनत के साथ-साथ एक बेहतर सोच भी आवश्यक है।
माता पिता (पालक) को भी एक ही सुझाव है। अगर बच्चा कुछ सोच या करने की चाह रखता है तो उसे प्रोत्साहित करें, निगेटिव सोच कार्य को नकारात्मक कर देगी, अगर आपका बच्चा सी.ए.  करना चाहता है या आईसीडब्लूए या सी.एस. या आईआईटी या पीएमटी या एआईईईई या कोई भी कोर्स करना चाहता है तो आप उसके साथ बैठकर उसके निर्णय में एक बेहतर सुझाव दीजिए न कि आप उसे यह कहें कि देख तू कर पायेगा कि नहीं, मेरा पैसा तो नहीं बर्बाद करेगा, तेरे से कुछ होगा नहीं, पढऩे लिखने में मन लगता नहीं चले हो.... ।
ऐसी निगेटिव सोच के साथ शुरआत निगेटिव ही होगी, नुकसान की सोच पहले होगी तो नुकसान तो होगा ही. मैने अपनी पर्सनाल्टी डेवलपमेंट की कार्यशाला में कुछ छात्र-छात्राओं पर रिसर्च किया तो पाया कि छात्रों और उनके माता पिता के बीच में होने वाले संवाद काफी सीमित हैं। ज्यादातर बातें (माता-पिता और पुत्र-पुत्री के बीच) आज के व्यस्ततम समय की बातचीत
1. बेटे चलो जाओ पढ़ाई करो।
2. अभी तक यहीं बैठा है।
3. पढ़ाई कैसी चल रही है।
4. टी. वी. देखना बन्द करो।
5. बाद में पछताओगे।
6. और नम्बर लाना है।
7. गाड़ी तेज मत चलाया करो।
8. तुम्हारी बहुत दोस्ती हो गयी है।
उन कुछ गिने चुने संवादों से पूरी दिनचर्या को समझते हुए बच्चे के साथ बैठे और उन्हे इन्ही बातों को बेहतर अंदाज में समझाते (परन्तु समझाने वो संवाद कुछ लम्बे न हों वरन संक्षिप्त एवं प्रभावी हों)
जैसे :- गाड़ी तेज मत चलायाकर बेटा कुछ भी गलत होगा तो तेरे पापा एवं मम्मी तेरे बगैर रह नहीं पाएंगे। बच्चे के इम्पार्टेंस एवं उपयोगिता को बतायें।

प्रायवेट स्कूलों की मनमानी

प्रायवेट स्कूलों की मनमानी
एक ओर जहां सीसीई सिस्टम ने लोगों को चिंता में डाल दिया है वहीं दुर्ग जिले में प्रायवेट स्कूलों की मनमानी और फीस बढ़ोत्तरी जैसे कई मामलों में अंकुश लगाने में प्रशासनिक सुस्ती से पालक वर्ग खासा नाराज दिखाई दे रहा है। शहरी क्षेत्रों में एक प्रकार से निजी स्कूलों ने पालकों को लूटने में कहीं से कोई कसर बाकी नहीं रखी है। स्कूलों में ही कापी-किताब, ड्रेस, जूते-मोजे, टाई, स्कूल बैग सभी कुछ बिकने लगा है, पालकों पर बाध्यता है कि वे स्कूल की निश्चित दुकान से ही अपने बच्चों के लिये सामान खरीदें अगर उन्हें उस स्कूल में बच्चे को पढ़ाना है। हर वर्ष बिल्डिंग फंड, डोनेशन, कॉशन मनी व केपिटेशन फीस के नाम पर पालकों की जेब खाली की जा रही है। ज्ञान केन्द्रों पर अब खुले तौर पर व्यवसाय किया जाने लगा है। दुर्ग जिले में इसके विरोध में लगातार चलाये जा रहे आंदोलन के बाद जैसे-तैसे प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर शिकंजा कसने की कार्रवाई बलवती होती दिखाई पड़ी थी लेकिन इस संबंध में कलेक्टर का निर्देश भी अब महज कागजी बन कर उपहास का कारण बन गया है।
प्रतियोगी परीक्षा में को- स्कॉलिस्टिक नगण्य...
पं. रविशंकर शुल्क विश्वविद्यालय रायपुर के एक वरिष्ठ प्रोफेसर से जब मैंने चर्चा कि तो उन्होंने कहा कि सामान्यत: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में अगर किसी क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रयोग हुआ है तो वह है शिक्षा-प्रणाली। गैर-सरकारी और एनजीओ द्वारा किए गए कार्य और प्राप्त आंकड़ों के आधार एवं सरकारी महकमे के चंद चापलूस शिक्षाविदें और अधिकारियों की सांठ-गांठ से हमेशा शिक्षा पद्धतियों व नीतियों में परिवर्तन किया जाता रहा है। शासन द्वारा यह पहल आम बच्चों को ध्यान में रख कर की जाती है लेकिन जब आप अखिल भारतीय स्तर पर रोजगार के लिये सिविल सर्विस परीक्षा, बैंक, वैज्ञानिक अनुसंधान, डॉक्टर, इंजीनियरिंग की परीक्षा की ओर ध्यान देते हैं तो इसमें वहीं बच्चे सफल होते हैं जो विषय ज्ञान (स्कॉलिस्टिक एरिया) रखते हैं। यहां को-स्कॉलिस्टिक एरिया नगण्य है।


  हर माल एक रूपये में ...
की तर्ज पर सीसीई प्रणाली
च्च्आज भले ही स्कूली छात्र-छात्राओं व अभिभावकों द्वारा केन्द्र सरकार की नवीनतम शिक्षा प्रणाली ष्टशठ्ठह्लद्बठ्ठह्वशह्वह्य & ष्टशद्वश्चह्म्द्गद्धद्गह्यद्ब1द्ग श्व1ड्डद्यह्वड्डह्लद्बशठ्ठ स्4ह्यह्लद्गद्व (सीसीई सिस्टम) का विरोध न किया गया हो लेकिन आने वाले समय में यही वर्ग भारतीय शिक्षा-प्रणाली के इतिहास में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की तरह वर्तमान मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल का नाम काले अक्षर में लिखेगा। जब विषय के मूल ज्ञान के अभाव में यही वर्ग बेरोजगारी की अनंत कतार में अपने भविष्य का आंकलन करेगा तब तक काफी देर हो चुकी होगी।ज्ज्
कपिल सिब्बल या उनके संरक्षण की चादर तले छिपे कई शिक्षाविद् भले आज लाल किला या इंडिया गेट पर चढ़ कर डंके की चोट पर इस बात का दावा करें कि उनकी सरकार शिक्षा के क्षेत्र में आमूल परिवर्तन करने कटिबद्ध है लेकिन सच्चाई यही है कि नई सीसीई शिक्षा प्रणाली एक ओर जहां आने वाले वर्षों में मूर्ख मानव संसाधन का एक विशाल जमघट खड़ा करने पर आमादा है वहीं सरकारी से गैर-सरकारी और निजी विद्यालयों में काम करने वाले शिक्षक-शिक्षिकाओं को छात्र-छात्राओं व पालकों के सामने आईने के सामने खड़ा कर दिया है। हालांकि वर्तमान सीसीई सिस्टम ने दसवीं के परिक्षा परिणाम में अनुत्तीर्ण हुए या अपेक्षा से कम अंक पाने वाले छात्र-छात्राओं द्वारा की जाने वाली खुदकुशी की घटनाओं  को प्रत्यक्ष रूप से कम किया है लेकिन ये परिणाम  सिर्फ  तात्कालीन हैं, इसके दूरगामी परिणाम तब काफी खतरनाक  रूख  दिखायेंगे जब  हाथ में डिग्री लेकर सड़कों पर नौकरी या रोजगार की तलाश में  यह वर्ग  दर-दर भटकेगा क्योंकि उस समय एक विशाल समूह के पास विषय के मूल ज्ञान का पर्याप्त अभाव होगा।
सीसीई सिस्टम की सबसे बड़ी च्च्खामीज्ज्
सीसीई सिस्टम की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसने छात्र-छात्राओं  द्वारा परीक्षा में  प्राप्त अंकों  को गुप्त रखा है, उसे  ग्रेड में दर्शाया है ताकि परिक्षा परिणाम के तुरंत बाद (ऐसे समय ही छात्र-छात्रा खुदकुशी की ओर अग्रसर होते हैं) उन्हें अपने अंकों  का पता  न  चले, साथ ही कमजोर  छात्र-छात्राओं  को  परीक्षा उत्तीर्ण करने  हेतु  न्यूनतम अंक (30 से 40) ग्रेड  प्राप्त  करने के लिये तीन अवसर तो दिए गए हैं परंतु स्कूलों को यह भी निर्देश है कि किसी भी हालत में संबंधित बच्चे को उस वर्ग में अनुत्तीर्ण घोषित न किया जाये।
स्कॉलिस्टिक एरिया ए- में कुल नौ ग्रेड बनाये गये हैं :- ए-1 (91 से 100, ग्रेड पाइंट-10), ए-2 (81 से 90, ग्रेड पाइंट-9), बी-1 (71 से 80, ग्रेड पाइंट-8), बी-2 (61 से 70, ग्रेड पाइंट-7), सी-1 (51 से 60, ग्रेड पाइंट-6), सी-2 (41 से 50, ग्रेड पाइंट-5), डी (33 से 40, ग्रेड पाइंट-4), ई-1 (21 से 32) एवं ई-2 (00 से 20) जो मूलत: पांच ग्रेड ए+, ए, बी+, बी एवं सी ग्रेड के रूप में क्रियान्वित हुए हैं जबकि को-स्कॉलिस्टिक एरिया में तीन एरिया - लाईफ स्किल्स (ए+, ए और बी ग्रेड), एडिट्यूट एण्ड वैल्यू (ए+, ए, बी ग्रेड) और एक्टिविटी एण्ड क्लब (ए+, ए और बी ग्रेड) क्रियान्वित किये गये हैं।
कैसे जगायेंगे
च्च्अव्वल रहने की भावनाज्ज्
दुर्भाग्य यह है कि केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) अपनी स्थापना के 48 वर्षों बाद से जिस तरह इस नई प्रणाली को क्रियान्वित किया है वह भले अभिभावकों को देखने व सुनने में आकर्षित करता रहा हो लेकिन इसके क्रियान्वयन में अभिभावकों व बच्चों को जिस तरह से अंधकार में रखा गया वह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही है। नई सीसीई प्रणाली ने जहां शिक्षक-शिक्षिकाओं को ओव्हर बर्डन किया है वहीं छात्र-छात्राओं को को-स्कोलास्टिक एरिया की ओर उन्मुख कर उन्हें विषय के मूल ज्ञान से किनारे कर दिया है। इतना ही नहीं, बच्चों के मन में यह बैठ गया है कि शिक्षक उन्हें किसी भी हालत में अनुत्तीर्ण घोषित नहीं कर सकता और न ही दण्डित कर सकता है (चाहे स्कूल में उनका कैसा भी व्यवहार क्यों न हो), सिवाय इसके कि वे (शिक्षक-शिक्षिकाएं) उनकी डायरी में उनके अभिभावक के नाम एक नोट लिख दें कि उनका बच्चा स्कूली वातावरण को विषाक्त कर रहा है।
पप्पू पास हो कर भी किस काम का....?
अगर कोई बच्चा डी ग्रेड लाता है, यानि उसके अंक 33-40 प्रतिशत के बीच हैं तो उसे अगले वर्ग में भेजना ही पड़ेगा। इतना ही नहीं ई-1 या ई-2 ग्रेड पाने वाले (00 से 32 अंक) बच्चों को इस प्रणाली के अनुरूप तीन अवसर  दिए जायेंगे ताकि वह डी ग्रेड प्राप्त कर अगले वर्ग में दाखिला ले सकें,  परंतु किसी भी हालत में  उस विद्यार्थी को शिक्षक अनुत्तीर्ण घोषित नहीं करेंगे। इस प्रणाली में स्कोलास्टिक एवं को-स्कोलास्टिक एरिया के तहत प्रत्येक स्कूल या शिक्षकों को 100 प्रतिशत में से 60 प्रतिशत अंक देने का प्रावधान है। अब अगर बच्चे को गणित या विज्ञान में या अंग्रेजी में मात्र 5 से 10 अंक मिले और प्रदत्त अधिकार के अधीन शिक्षक उसे उन एरिया में प्राप्त अंक को जोड़ कर और औसत अंक के आधार पर उत्तीर्ण घोषित कर देंगे तो ऐसे में बच्चा पास हो कर भी किस काम का....?
कार्यशैली से बढ़ी नाराजगी
-जारी है आंदोलन
गौरतलब हो कि डीईओ टीम के निरीक्षण के बाद जब कलेक्टर ने जनसुनवाई के लिए संयुक्त कलेक्टर पी तिर्की और डिप्टी कलेक्टर जीवन सिंह राजपूत को जिम्मेदारी सौंपी तो पैरेंट्स में आस जगी थी। पैरेंट्स ने तो राहत की उम्मीद पाल ली लेकिन जिला प्रशासन ही सुस्त होता चला गया। जनसुनवाई की रिपोर्ट कलेक्टर के टेबल पर देर से पहुंची। फाइल पर उन्होंने निर्णय लेकर डीईओ को कार्रवाई के निर्देश दे दिए। निर्देश की कापी डीईओ कार्यालय में दब गई। दोषी निजी स्कूल निश्चिंत हो गए। जिम्मेदार अधिकारी बताते हंै कि कलेक्टर के निर्देश के बाद तीन अधिकारियों की बैठक हुई जिसमें तकरीबन आधे घंटे तक मंत्रणा के बाद सीधे कहा गया कि कुछ मत करो। कागजी कार्रवाई वैसे ही रहने दो, मौखिक बात सुनो। हालांकि बैठक में मौजूद एक अधिकारी इससे सहमत नहीं थे। बाद में उन्होंने दूसरे अधिकारी से चर्चा भी की पर अपने बड़े अफसर के सामने जुबान खोलने हिम्मत नहीं जुटा पाए। इस तरह कलेक्टर का कागजी निर्देश बिसरा दिया गया। 4 जुलाई व 23 अगस्त को लोक शिक्षण विभाग संचालनालय व मंत्रालय से प्रायवेट स्कूलों के संबंध में आदेश जारी कर बिल्डिंग फंड, डोनेशन, कॉशन मनी व केपिटेशन फीस पर तत्काल रोक लगाने कहा गया था  लेकिन यह आदेश भी डीईओ ने ताक पर रख दिया।
कलेक्टर की कड़ी हिदायत के बाद भी प्रायवेट स्कूलों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया। गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में आये निर्देश कि निजी विद्यालय भी सूचना के अधिकार के दायरे में आयेंगे, के बाद जिले के निजी स्कूलों में खासी खलबली देखी जा रही है। कांग्रेस के युवा नेता सीजू एंथोनी लम्बे समय से निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ संघर्ष करते रहे हैं। श्री एंथोनी ने ज्योतिष का सूर्य  से चर्चा में कहा कि उनका संघर्ष अभी रूका नहीं है। जिलाधीश की पहल के बाद इस मामले में लोगों के बीच आश जगी थी कि शिक्षा के व्यावसायीकरण पर अब लगाम लग सकेगी लेकिन निर्देश के बाद भी अमल में लाने वाले अधिकारी ढिलाई बरत रहे हैं। श्री एंथोनी ने कहा कि- कुछ दिन इंतजार किया जा रहा है अगर इसके बाद भी हालात जस के तस रहे तो क्षेत्र की जनता के साथ उग्र आंदोलन करने विवश होंगे जिसके लिये सीधे तौर पर जिला प्रशासन जिम्मेदार होगा ।
संतोष मिश्रा
पत्रकार, भिलाई
- संतोष मिश्रा

2009 से निरंतर २६ वां अंक '' ज्योतिष का सूर्य ''

2009 से निरंतर २६ वां अंक '' ज्योतिष का सूर्य '' इस बार दीपावली विशेषांक के रूप में नये साज-सज्जा के साथ दिल्ली, छत्तीसगढ़, झारखंड, उ.प्र, एवं मध्य प्रदेश के १००४ अधिकृत बुकस्टॉलों पर उपलब्ध। यह आवरण पृष्ठ प्रस्तुत है..
हिन्दी मेरी पहचान है...सम्पादकीय
भाषा न केवल अभिव्यक्ति का एक माध्यम है बल्कि वह चिंतन को भी प्रभावित करती है। उसके साथ उसके बोलने वालों की संस्कृति और संस्कार भी जुडे होते हैं। भाषा केवल मस्तिष्क को झकझोरनेवाली ही नहीं, वरन हृदय को छूनेवाली भी होती है और यह ताकत अपनी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा में विशेष रूप से होती है।
हमारे देश में अनेक भाषाएं हैं और सबकी अपनी-अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपराएं हैं। लेकिन इसके बावजूद हमारा अतीत एक है, अतीत के हमारे अनुभव एक हैं तथा हमारा चिंतन एक है। राष्ट्रीय स्वाभिमान और स्वतंत्रता की लडाई में पूरे भारत ने एकजुट होकर भाग लिया था। अंग्रेजी दासता का अनुभव पूरे भारत को एक जैसा है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक का संपूर्ण भारत हमेशा एक जैसे विचारों और भावनाओं से आंदोलित रहा है। सभ्यता और संस्कृति के आरंभिक काल से ही इस एक से चिंतन ने पूरे देश में एक सी संवेदनाओं को जन्म दिया है। तभी तो उत्तर भारत में रचित वेदों के भाव ज्यों के त्यों दक्षिण में रचित तिरुक्कुरल के भावों से मिल जाते हैं। नरसी मेहता, नामदेव, संत तुकाराम, एकनाथ, कबीर, सूर, मीरा, तुलसी, गुरुनानक, शंकरदेव, चैतन्य महाप्रभु आदि संतों की शिक्षाएँ स्थानविभेद होने पर भी भाव साम्य रखती हैं। इसीलिए हमें एक ऐसी भाषा की आवश्यकता है, जो हमारे इस ऐक्य को एक भाषा में व्यक्त कर सके। अपनी विशिष्ट ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के कारण हिंदी ही वह भाषा हो सकती है।
किसी भी संप्रभु व लोकतांत्रिक देश की एक राष्ट्र मुद्रा, एक राष्ट्रगान, एक राष्ट्रध्वज व एक राष्ट्र्रभाषा होती है। भारत अनेक भाषाभाषी लोगों का देश है और सभी की अपनी-अपनी समृद्ध संस्कृति व परम्पराएं हैं। अत: संवैधानिक रूप से देश की भाषाओं को राष्ट्रीय भाषाओं का सम्मान प्राप्त है। इन सबके बीच सम्पर्क और सामंजस्य स्थापित करने हेतु हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया। हिंदी को सम्पर्क राजभाषा घोषित करने का सीधा और सरल सा कारण यह था कि देश में इस भाषा को बोलने और समझने वाले सबसे अधिक थे। आज देश के दो तिहाई राज्यों में सत्रह बोलियों के रूप में हिंदी का विस्तार है। हिंदी भारत में सबसे अधिक बोली व समझी जाने वाली तथा विश्व में सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली व समझी जानेवाली तीसरी बड़ी भाषा है। इसे दुनिया भर में एक अरब से अधिक लोग जानते, पढ़ते, समझते और बोलते हैं।
स्वतंत्र भारत की बागडोर संभालने वाले नेताओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे गृहमंत्री पी चिंदबरम ने राजभाषा विभाग द्वारा हिन्दी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में  किसी सार्वजनिक मंच पर लोगों को पहली बार हिन्दी में सम्बोधित किया। माना जाता है  कि तमिल भाषी चिदंबरम को हिन्दी बोलने में कठिनाई होती है। परंतु हिन्दी के उत्थान के लिहाज से देखा जाये तो इस प्रकार के अंग्रेजियत के पुजारी नेताओं पर शर्म आती है। जो हिन्दी के उत्थान की बात करते हों लेकिन उन्हे हिन्दी बोलना नहीं आता है। आस्ट्रेलिया से पढ़ाई कर स्वदेश लौटे महात्मा गांधी  की मुलाकात गोपालकृष्ण गोखले जी से हुई और उन्होने गोपालकृष्ण गोखले जी को अपना आदर्श और गुरू मानते हुए। देश के आजादी की लड़ाई में सम्मिलित हो गए लेकिन उन्होने कभी अंग्रेजी में सम्बोधन नहीं किया बल्कि ब्रिटिश अधिकारियों से उनकी बात अंग्रेजी में ही होती थी।
हिंदी के मामले में ढुलमुल नीति अपनाते हुए उपनिवेशवादी मानसिकता रखने वाले अंग्रेजीपरस्त राजनेताओं की पश्चिमी जीवनशैली व सोच के दबाव में 10 वर्षों के लिए अंग्रेजी को हिंदी की स्थानापन्न भाषा घोषित कर दिया गया। परिणाम यह हुआ कि हिंदी को एकमेव राजभाषा बनाने का मुद्दा भाषावादी व प्रांतवादी राजनीति में उलझ गया और चौसठ वर्ष बीत जाने पर भी हिंदी अपना गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं कर पाई।
किसी भी भाषा का विकास उसको व्यवहार में लाने से होता है। भाषा को व्यवहार में लाने का काम जनता करती है। अत: हिंदी को सही अर्थों में राजभाषा बनाने का कार्य सरकार, विश्वविद्यालयों, लेखकों, पत्रकारों व चंद हिंदी प्रेमी बुद्धिजीवियों से अधिक हम सबका है। राष्ट्रीय गौरव व अस्मिता का मुद्दा मानकर हिंदी के लिए जनमानस में आंदोलन का भाव आना चाहिए।
प्रिय पाठकों , शुभ नवरात्रि एवं दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि आप सहित मित्रों के साथ हिन्दू, हिन्दी और भारतीय संस्कृति पर बतौर आंदोलित मन: स्थिति के साथ सदैव इस दिशा में प्रयास जारी रखें। ताकि अपने भारतीय संस्कृति के साथ राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त हिन्दी की रक्षा हो सके।
जय हिन्द.. जय भारत...

बुधवार, 14 सितंबर 2011

पी. चिदंबरम के हिन्दी बोल उनके लिए घातक

 पी. चिदंबरम के हिन्दी बोल उनके लिए घातक
आखिरकार पी. चिदंबरम को हिन्दी बोलना ही पड़ा महामहिम राष्ट्रपति जी के सामने क्योकि इन्हीं महाशय को कार्यक्रम की अध्यक्षता करना पड़ गया ।
शर्म आती ऐसे हिन्दुस्तान के राजनेताओं पर जिनको हिन्दी बिल्कुल भी बोलने नहीं आता। ऐसे में ये हिन्दुस्तान के संस्कृति और भाषा का क्या रक्षा करेंगे...उनके हिन्दी बोलने की बहादूरी पर महामहिम ने सरहना भी कीं।यदि इस शर्मनाक वाकया को विदेशी लोग देख रहे होंगे वे भारत के इस हिन्दी का क्या महत्त्व देंगे..चाहें जो हो लेकिन हिन्दी का श्राप इन महाशय के उपर तो अगले चुनाव में जरूर पड़ेगा...जिसका हूंकार एक बार फिर अन्ना ने भर दी है।

रविवार, 11 सितंबर 2011


शनि का साढेसाती तथा ढैय्या का फल (२०११)
                                            ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे महाराज

15 नवम्बर 2011 तक शनि कन्या राशि में रहेंगे, कन्या राशि के शनि का साढेसाती तथा ढैय्या का फल -
सिंह राशि पर साढेसाती समाप्ति की ओर है अर्थात उतरती है । यह समय व्यापार धनधान्य मान सम्मान सुखसम्पदा के लिये लाभदायी रहेगा।
कन्या   राशि पर साढेसाती भोग की है। शारीरिक कष्ट रक्त पित्त विकार स्त्री व सन्तान को कष्ट व्यापार में हानि राजभय तथा नाना प्रकार के कष्ट।
तुला राशि पर साढेसाती चढती हुई है। सुखसम्पति मिलेगी स्त्री सुख प्राप्त होगा कार्य तथा व्यवसाय में प्रगति होगी घर में मंगल कार्य होंगे।
कुम्भ राशि पर ढैय्या का प्रभाव रहेगा यह इस राशि के लिये लाभकारी रहेगी सुखसम्पति मिलेगी स्त्री सुख प्राप्त होगा कार्य तथा व्यवसाय में प्रगति होगी घर में मंगल कार्य होंगे।
मिथुन राशि के लिये ढैय्या हानिकारक शारीरिक कष्ट रक्त पित्त विकार स्त्री व सन्तान को कष्ट व्यापार में हानि राजभय तथा नाना प्रकार के कष्ट।
15 नवम्बर 2011 को शनि तुला में 10 बजकर 12 मिनट पर प्रवेश  करेंगे।
तुला राशि गत शनि का फल इस प्रकार रहेगा -
कन्या राशि पर साढेसाती अपने अन्तिम चरण में होगी। सुखसम्पति मिलेगी स्त्री सुख प्राप्त होगा कार्य तथा व्यवसाय में प्रगति होगी घर में मंगल कार्य होंगे। स्वास्थ ठीक रहेगा।
तुला राशि पर साढेसाती हृदय में होगी। सुखसम्पति मिलेगी स्त्री सुख प्राप्त होगा कार्य तथा व्यवसाय में प्रगति होगी। राजपक्ष से लाभ होगा,  घरेलू झंझट कर सकती है परेशान |
वृश्चिक राशि पर साढेसाती चढती हुई है। शारीरिक कष्ट रक्त पित्त विकार स्त्री व सन्तान को कष्ट व्यापार में हानि राजभय तथा नाना प्रकार के कष्ट।
कर्क राशि पर ढैय्या का प्रभाव रहेगा। शारीरिक कष्ट रक्त पित्त विकार स्त्री व सन्तान को कष्ट व्यापार में हानि राजभय तथा नाना प्रकार के कष्ट।  घर मे कलह।
मीन राशि पर भी ढैय्या का प्रभाव रहेगा। जीवन रहेगा संघर्षमय,  शारीरिक कष्ट रक्त पित्त विकार स्त्री व सन्तान को कष्ट व्यापार में हानि राजभय तथा नाना प्रकार के कष्ट।

 शनि का प्रभाव कम करने के उपाय -

शनि की साढेसाती तथा ढैय्या के प्रभाव को कम करने के हमारे ग्रन्थो में अनेक उपचार बतलाये गये हैं। जिनके प्रयोग से इसके कुप्रभाव से वचा जा सकता है। ये उपचार इस प्रकार हैं -

  1. शनि के वैदिक या बीज मंत्र का 23000 की संख्या में जाप करें।

  2. शनिवार के दिन हनुमान जी की आराधना, चालीसा का पाठ, सुन्दर काण्ड का पाठ करें।

  3. शनिवार के दिन तैलदान, शनि स्तोत्र का पाठ करें।

  4. नीलम रत्न धारण करना भी लाभकारी होता है परन्तु पहले किसी ज्योतिषी का परामर्श अवश्य ले लें।

  5. शनि का बीज मंत्र - ऊँ प्रां प्रीं पौं स: शनये नम:।

  6. शनि का वैदिक मंत्र - ऊँ शन्नौ देवीरभिष्टयऽआपोभवन्तु पीतये। शंय्योरभिस्रवन्तु न:।

  7. शनि का तांत्रिक मंत्र - ऊँ शं शनैश्चराय नम:।

  8. शनि शान्ति के लिये दान-वस्तु - लोहा, तिल, तैल, कृष्णवस्त्र, उडद, नीलम, कुथली,।

शनिवार, 10 सितंबर 2011

अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा (सम्पूर्ण)

अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा (सम्पूर्ण)
राशियों के अनुसार कैसे करें पूजन
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता है। धन,यश व बल की कामना को लेकर मनाया जाने वाला अनंत चतुर्दशी का पर्व भगवान अनन्त को सादर समर्पित है जो भगवान विष्णु का स्वरुप माने जाते हैं और अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्त सूत्र बांधा जाता है।
इस व्रत में अलोना (नमक रहित) व्रत रखा जाता है। इसमें उदयव्यापिनी तिथी ली जाती है, पूर्णिमा का समायोग होने से इसका फल और बढ़ जाता है। यदि माध्यह्यान तक चतुर्दशी रहे तो और भी अच्छा है। भगवान की साक्षात या कुशा से बनाई हुई सात कणों वाली शेष स्वरुप अनन्त की मूर्ति स्थापित करें। कहा जाता है कि जब पाण्डव जुए में अपना सारा राज-पाट हार कर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्त सूत्र धारण किया। अनन्त चतुर्दशी-व्रत के प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हो गए।

व्रत एवं पुजा विधान मंत्र :

राशिफल: अनंत व्रत करने से मिलता है धन, बल, यश!
स्नान के बाद व्रत के लिए यह संकल्प करें-

‘ममाखिलपापक्षयपूर्वकशुभफलवृद्धये श्रीमदनन्तप्रीतिकामनया अनन्तव्रतमहं करिष्ये।’
शास्त्रों में यद्यपि व्रत का संकल्प एवं पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान हैं। तथापि ऐसा संभव न हो तो निवास व पूजा स्थान को स्वच्छ और सुशोभित करें। वहां कलश स्थापित कर उसकी पूजा करें। तत्पश्चात कलश पर शेषशायी भगवान्‌ विष्णु की मुर्ति रखें और मुर्ति के सम्मुख चौदह ग्रन्थि युक्त अनन्त सूत्र (कच्चे सूत का डोरा) रखें। इसके बाद ‘ॐ अनन्ताय नमः’ इस नाम मन्त्र से भगवान विष्णु सहित अनन्त सूत्र का षोडशोपचार पूर्वक गंध, अक्षत, धूप दीप, नैवेद्ध आदि से पूजन करें। "पुरुष सुक्त" व "विष्णु सहस्त्रनाम" का पाठ भी लाभकारी सिद्ध होता है। इसके बाद उस पूजित अनन्त सूत्र को यह मन्त्र पढ़कर पुरुष दाहिने और स्त्री बायें हाथ में बांध ले। यह डोरा अनन्त फल देने वाला और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला होता है।

अनन्त संसार महासमुद्रे मग्नान्‌ समभ्युद्धर वासुदेव।

अनन्तरुपे विनियोजितात्मा ह्यनन्तरुपाय नमो नमस्ते॥

अनन्तसूत्र बांधने के बाद ब्राह्मण को नैवेध (भोग) तथा ब्रह्मण भोज करा कर स्वयं प्रसाद ग्रहण करना चाहिए और भगवान नारायण का ध्यान करते रहना चाहिए। पूजा के अनन्तर परिवारजनों के साथ इस व्रत की कथा सुननी चाहिए।

कथा का सार-

सत्ययुग में सुमन्तु नाम के एक मुनि थे। उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्य मुनि से किया। कौण्डिन्य मुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं। शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्त सूत्र बांध लिया। इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्त सूत्र पर पड़ी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्य ने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्तसूत्र को जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड़ दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया। इस जघन्य कर्म व अपराध का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्य ऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनन्तदेव का पता पूछते जाते थे। बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्य मुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज अनन्त देव का दर्शन कराया।

भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्त सूत्र का तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्य मुनि ने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मो का फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है। मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है। अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है। कौण्डिन्य मुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया।

मेषःव्यय को नियंत्रित करें, मौज-मस्ती में खर्च बढ़ेगा।

क्या करें-मां लक्ष्मी को दूध से निर्मित नैवेद्य का भोग लगाएं।

क्या न करें-निवेश से बचें।

वृषभःविदेश प्रवास होगा जिससे व्यापारिक लाभ भी मिलेगा।

क्या करें-कूर्म पृष्ठ पर बने श्रीयंत्र या महालक्ष्मी यंत्र को घर के पूजा स्थल में स्थापित करें।

क्या न करें-यात्रा करने से बचें।

मिथुनःव्यापार वृद्धि व पारिवारिक सौहार्द हेतु किया गया परिश्रम सार्थक होगा।

क्या करें-श्री सुक्त का पाठ करें।

क्या न करें-धन का व्यय ना करें।

कर्कःसमय अनुकूल है विदेश से अच्छा समाचार प्राप्त कर सकेंगे।

क्या करें-हरे रंग का रुमाल अपने पास रखें।

क्या न करें-वाणी पर नियंत्रण न खोएं।

सिंहःसंतान के जिद्दी स्वभाव से आज संतान के भविष्य की चिंता रहेगी।

क्या करें-गाय को सरसों का तेल लगी रोटी खिलाएं।

क्या न करें-बड़ों का दिल ना दुखाएं।

कन्याःआज आपको अचानक आर्थिक लाभ का योग बनेगा।

क्या करें-वट वृक्ष के पत्ते पर कुमकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर साबुत चावल व एक सुपारी रखकर मां लक्ष्मी के मंदिर में चढ़ाएं।

क्या न करें-घर आये व्यक्ति को खाली हाथ ना जाने दें।

तुलाः आज प्रयास करने से आप अपना रुका हुआ धन वापस प्राप्त कर सकते हैं।

क्या करें-धनदा यंत्र घर में स्थापित कर दर्शन करें तो आशातीत लाभ होगा।

क्या न करें-धैर्य ना खोएं।

वृश्चिकःराजनैतिक दिशा में किए जा रहे प्रयास सफल सिद्ध होंगे।

क्या करें-भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर या मूर्ति के सम्मुख ॐ क्लीं कृष्णाय नम: का एक माला जाप तुलसी की माला से करें।

क्या न करें-वाहन तेज न चलाएं।

धनुः क्रोध को नियंत्रित करें, भाई या पड़ोसी से वैचारिक मतभेद हो सकते हैं।

क्या करें-चांदी का चंद्र यंत्र तथा मंगल यंत्र बनवाकर घर के मंदिर में स्थापित करें।

क्या न करें-किसी को पैसे उधार ना दें।

मकरः धार्मिक प्रवृत्ति में वृद्धि होगी। रुके कार्य सिद्ध होंगे।

क्या करें-ऋण्हर्ता मंगल स्तोत्र का पाठ करें।

क्या न करें-क्रोध ना करें।

कुम्भःससुराल पक्ष से लाभ होगा। व्यापारिक चिंता दूर होगी।

क्या करें-पक्षियों को गुड़ के साथ सतनाजा डालें।

क्या न करें-भाई से विवाद न करें।

मीनःकार्य का दबाव अधिक होगा, व्यर्थ की भागदौड़ रहेगी।

क्या करें-मछलियों को मिश्रीयुक्त उबले चावल दें।

क्या न करें-तनाव ना लें।