tag:blogger.com,1999:blog-81794090594915780792024-03-14T10:47:11.279-07:00''ज्योतिष का सूर्य'' ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे (Pandit Vinod Choubey Astrologer) ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.comBlogger802125tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-6892676866211954572019-02-09T05:10:00.001-08:002019-02-09T05:12:22.689-08:00सियासती मकड़जाल में सिसकती आदिवासी परंपराएं, और आदिवासी समुदाय पर चंगाई गिद्धों की कुदृष्टि<div align="left" ><p dir="ltr"><u><b>सियासती</b></u><b> मकड़जाल में सिसकती आदिवासी परंपराएं, और आदिवासी समुदाय पर चंगाई गिद्धों की </b><b><u>कुदृष्टि</u></b><br>
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</div><div align="left" ><p dir="ltr">*<b>ज्योतिष का सूर्य</b>* फरवरी-2019,  के मुखपृष्ठ पर हजारों वर्ष प्राचीन छत्तीसगढ़ के *<b>रामनामी संप्रदाय</b>* के एक गृहस्थ संत के चित्र को स्थान देकर वास्तविक में मैं और मेरा *<b>ज्योतिष का सूर्य</b>* मासिक पत्रिका के समूचा संपादक मंडल के सदस्य गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। हमारे छत्तीसगढ़ की परंपराएं अद्भुत, अकल्पनीय और अविश्वसनीय है, प्रभु श्रीराम का ननिहाल जो है। लेकिन दु:ख भी हो रहा है कि ऐसे रामभक्त आदिवासियों पर ईसाई मिशनरियों की गिद्ध दृष्टि पड़ चुकी है, लगातार इन *<b>रामनानी संप्रदाय के गृहस्थ संतों की बस्तियों में से कुछ लोगों को ईसाई बनाने का अन्दर खाने षड्यंत्र चला रही हैं, और ये मिशनरियों द्वारा इस कार्य को इतनी सफाई से की जाती है कि इसका ना कोई सबूत होता, ना कोई धर्मांतरित करने की टाइमिंग, यहां तक की जो रामनामी संप्रदाय का आदिवासी धर्मांतरित होता है उसे भी बहुत बाद में पता चलता है कि वह अब हिन्दू नहीं बल्कि ईसाई बन चुका है, यह कब हुआ इसका उसको अहसास भी नहीं रहता। उसे तब पता चलता है …...जहां वह पिछले एक वर्ष से रविवार को प्रेयर में शामिल होने या चंगाई सभा में इलाज कराने, अथवा झाड़ फूंक कराने जाया करता था, वहां एक बड़ा सा आयोजन किसी पास्टर द्वारा किया जाता है उसमें कुछ बड़े नेताओं को बुलाया जाता है और धीरे से उसी दिन उस आदिवासी को एक क्रॉस गले लटका दिया जाता है, और उसे अलग से वर्जनाएं किसी समीपवर्ती चर्च के पादरी द्वारा बपिस्तमा के बाद बताया जाता है, और अब जो पहले हिन्दू था वह अब अब ईसाई बन चुका होता है, इसी प्रकार चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब कौशिल्या महतारी, प्रभु श्रीराम का ननिहाल यह पवित्र छत्तीसगढ़ ईसाई बाहुल्य प्रदेश बन जाएगा, और धरी की धरी रह जाएगी सरकार का संस्कृति मंत्रालय की सभी योजनाएं, और हजारों वर्ष प्राचीन छत्तीसगढ़ की आदिवासी समुदाय व उनकी संस्कृति नष्ट हो जाएगी। सियासती मकड़जाल में सिसकती आदिवासी परंपराएं, और आदिवासी समुदाय पर चंगाई गिद्धों की कुदृष्टि  पड़ चुकी है... लेकिन छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी की अस्मिता की बात करने वाली पूर्व की रमन सरकार या वर्तमान की भूपेश सरकार इन रामनानी संप्रदाय के लोगों को ना ही संरक्षित कर रही है ना ही छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को संवर्द्धित कर रही है, जरूरत है इस ओर ध्यान आकृष्ट करने की</b>* ।<br>
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घर बैठे सदस्य बनने के लिए आपको 'Jyotish ka surya' के खाते में स्वयं का पत्राचार का पूरा पता एवं निचे दिये गये धन राशि को Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 प्रेषित करें । वार्षिक सदस्यता शुल्क २२० रू. द्विवार्षिक स.शु.440रू., त्रिवार्षिक स.शु.६४०रू. आजीवन स.शु.२१००रू., मुख्य संरक्षक स.शु.११०००रू., संरक्षक स.शु. ५१००रू.
पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-49541767532283549792019-02-08T01:27:00.001-08:002019-02-08T01:27:32.156-08:00राष्ट्र देवो भव: की परंपरा वाली भारतीय शिक्षा पद्धति या आश्रमी शिक्षा पद्धति बनाम मदरसों की गैर राष्ट्रवादी शिक्षा पद्धति..<p dir="ltr">राष्ट्र देवो भव: की परंपरा वाली भारतीय<b> शिक्षा पद्धति या आश्रमी शिक्षा पद्धति</b> बनाम मदरसों<b> की गैर राष्ट्रवादी शिक्षा पद्धति</b>..</p>
<p dir="ltr">विगत दिनों पू.श्री मोहन भागवत जी द्वारा मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा और कुछ मदरसों में चल रही संदिग्ध गतिविधियों के संदर्भ में उनके द्वारा दिए गए एक वक्तव्य के छोटे से अंश पर मीडिया में खूब चर्चा हुई, कुछ राजनैतिक दलों ने परम्परागत तरीके से आरएसएस पर इसकी आड़ में हमले भी किए। खैर, यह स्वाभाविक है आरएसएस पर हमला करना कोई नई बात नहीं है।<br>
लेकिन जब बात <b>भारतीय शिक्षा पद्धति या आश्रमी शिक्षा पद्धति</b> की करें तो आज के <b>मदरसों की शिक्षा </b><b><u>पद्धति</u></b> से कोई तुलना ही नहीं की जा सकती। भारत में आज भी कई स्थानों पर आश्रमी शिक्षा दी जाती है, उनमें से एक संस्थान है जहां से मैंने स्वयं शिक्षा अर्जित की है, और वह है वाराणसी के अस्सी घाट पर स्थित <b>महर्षि महेश योगी वैदिक आश्रम, उसके बाद मैं श्री नंदलाल बाजोरिया संस्कृत विद्यालय और फिर बाद में रणवीर संस्कृत महाविद्यालय के बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पढा, फिर सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से भी नव्य व्याकरण विषय में पुनः आचार्य किया। मेरे शिक्षा की शुरुआत ही आश्रमी शिक्षा से हुई। इसलिए मुझे ज्ञात है कि - आश्रमी शिक्षा पद्धति में क्या पढ़ाया जाता है। इसलिए हमने स्वयं का उदाहरण देना ही न्यायोचित समझा। आश्रमी शिक्षा पद्धति में जहां "राष्ट्र देवो भव:</b>, <b>राष्ट्राय स्वाहा....... इदं राष्ट्राय इदं न मम</b> पढ़ाया जाता है, वहीं <b>मदरसों में वंदेमातरम् तक बोलने नहीं दिया जाता, भारत का तिरंगा भी नहीं फहराने दिया जाता</b> जबकि इन मदरसों के संचालन हेतु भारतीय सरकार, राज्य सरकारों द्वारा अलग अलग कई मद में शासकीय आर्थिक अनुदान दिया जाता है। वहीं आश्रमी शिक्षण ‌संस्थानों को सरकार द्वारा कोई वित्तीय सहायता नहीं दी जाती, यह संस्थान स्व-वित्तपोषित होती हैं। <b>महामना मदन मोहन मालवीय</b> जी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की शुरुआत भी आश्रमी शिक्षा की तर्ज पर की थी।<br>
भारतीय मूल इतिहास और संस्कृति के छिद्रान्वेषण की पटकथा पहले ही लिख दिया गया था। जब भारत स्वतंत्र होने के बाद भी <b>मैकॉले शिक्षण पद्धति</b> को लागू किया गया।<br>
एक समय (1834) में <b>#थॉमस_बैबिंगटन_मैकॉले</b> जब भारत आया और उसने यहाँ की शिक्षा पद्धति और प्रणाली देखी तो यही कहा कि यदि भारत पर दीर्घकाल तक राज करना है तो इसकी रीढ़ की हड्डी जो इसकी शिक्षा व्यवस्था एवं संस्कार हैं उन्हें तोड़ना होगा।<br>
उसने न सिर्फ वो अंग्रेजी की शिक्षा प्रणाली भारत में लगायी ,जिसमे सब पाश्चात्य अच्छा एवं श्रेष्ठ बताया गया बल्कि भारतियों के दिल में संस्कृति और संस्कारों के प्रति हीन भावना भी भर दी, और विद्यार्थियों से शुल्क वसूल कर के भारतीय विद्यालयों की जड़ भी खोदनी शुरू कर दी।<br>
और आज ये सब कुछ उस मैकाले पद्धति की ही देन है जिसने हमें और हमारी सोच को गुलामी की बेड़ियों में जकड़ रखा है।<br>
खैर एक बार फिर से आप सभी से सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा की ये वक़्त आपका है, सोच आपकी है और आगे फैसला भी आपको ही करनी है। <br>
ये तो मेरी व्यक्तिगत सोच थी जो मैंने आप सभी के सम्मुख रखी। लेकिन आप मौन व्रत तोड़कर, राजनैतिक चश्मे को उतारकर, निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर जरा आप भी सोचिएगा।<br>
जिन <b>शिक्षण संस्थानों में</b> भारतीय ध्वज संहिता का पालन न किया जाता हो, जहां <b>गैर-राष्ट्रवादी</b> शिक्षा देकर जिहादवाद का आगाज़ किया जाता हो, क्या गैर राष्ट्रवादी शिक्षण संस्थाओं को बंद नहीं किया जाना चाहिए, अथवा उनको भारतीय शिक्षा पद्धति से जोड़ा नहीं जाना चाहिए ? ऐसा न किए जाने की वजह से भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान के आतंकी संगठनों द्वारा भारतीय कुछ मदरसों के बच्चों को <b>भारत के खिलाफ बरगलाकर आतंक की दुनिया में नहीं ढकेल रहे हैं</b> ? <br>
आदरणीय श्री भागवत जी ने कोई पहली बार तो यह बयान दिया, उन्होंने कईयों बार भारतीय शिक्षा पद्धति और पाठ्यक्रमों में सुधार एवं कुछ मजहबी शिक्षा के नाम पर  चल रहे मदरसों में जिहादवाद पर अपनी प्रतिक्रिया दी है।<br>
-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- "ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</p>
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<p dir="ltr">आज तक केवल एक ही वैज्ञानिक सूर्य तक पहुंच पाया...वे हैं अंजनी मां के पुत्र हनुमानजी महाराज अर्थात मारुति... हैं।<br>
आध्यात्मिक तौर पर यह पौराणिक केवल सामान्य किसी बंदर का कथा-प्रसंग नहीं है। बल्कि सूर्य गायत्री हैं....उन्हें भजन वाले को वे *बिम्बा* फल के समान होकर उनमें अपना स्थान ग्रहण कर लेते हैं और तेजस्वी वर्चस्वी बना देते हैं।<br>
*...लेकिन इससे छद्म प्रकाश से जीवित सत्ता को परेशानी होती है, सत्ता इंद्र है, वह अपना वर्चस्व टूटता देखती है तो वज्र प्रहार करती है...वज्र ऋषि सत्ता है, उसे कोई सहन नहीं कर सकता....ऋषि सत्ता इंद्र सत्ता के लिए सहज उपलब्ध होती है.....तब केवल वायु अर्थात प्राण का आयाम ही जीवन को सुरक्षित कर सकता है....यह वायु का वेग मां की चीत्कार पर ही रुकता है...मां कुंडलिनी है...वायु के रुकते ही सत्ता का अपराध सामने आ जाता है...तब ब्रह्म गायत्री मूर्च्छा विभेद करती है...उनसे साधन सिद्ध होता है और समस्त देव कवच हो जाते हैं....यह ब्राह्मण का शस्त्र है और यही शास्त्र.।*<br>
उपरोक्त विषय हमने *आध्यात्मिक* संदर्भ में व्यक्त किया। अब उसे व्यावहारिक जीवन में देखा जाए तो हम *एलईडी* बल्व को ही *सूर्य* समझने की भूल कर बैठते हैं, जबकि *"सूर्य" गायत्री* है, *बिम्बाफल* ही *एलईडी बल्व* है।<br>
-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई</p>
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छत्तीसगढ़ के संस्कारधानी भिलाई से प्रकाशित ।<div class="blogger-post-footer">'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के सदस्यता हेतु।
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<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"><b>कर्क लग्न वाले छत्तीसगढ़ राज्य गठन कुण्डली के मुताबिक गोचर में चन्द्रमा छत्तीसगढ़ की धनु राशि से चौथे भाव में भ्रमण कर रहे हैं, वहीं मंगल तीसरे भाव में जो पूर्व के सत्तारूढ़ पार्टी के लिए अति शुभ गोचर है, और छत्तीसगढ़ की कुण्डली में राज्येश मंगल अपनी नीच राशि कर्क राशि के हैं जो जहां एक ओर सत्ताधारी पार्टी भाजपा में आपसी शह-मात में उलझने के बावजूद सत्ता वापसी करेगी वहीं यह मंगल चूंकि गोचर में यानी </b></a><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"><b>16 नवम्बर से 16 दिसम्बर 2018 तक विपक्ष ीी पार्टी कांग्रेस आपस की गुटबाजी से उबर नहीं पाएगी, ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि जबसे धनु राशि में शनि प्रवेश किए हैं तभी से छत्तीसगढ़ कांग्रेस में समय-समय पर कई फूट हुए उसी का एक हिस्सा छत्तीसगढ़ जोगी कांग्रेस है जो छत्तीसगढ़ कांग्रेस (अखिल भारतीय कांग्रेस) और 19 जून 1970 को दोपहर 2 बजकर 48 मिनट पर जन्मे राहुल गांधी की कुण्डली के अनुसार तुला लग्न की कुंडली में गुरु लग्न में हैं और वर्तमान में 14 सितंबर 2018 से दशमेश चंद्रमा की अन्तर्दशा चल रही है जो चंद्र इनको बहुत संतोषजनक सफलता नहीं दे पाएंगे जबकि इसके पूर्व इनको मंगल की अन्तर्दशा ने कई सफलताएं दिया है। अत: राहुल गांधी को (भूपेश बघेल,अध्यक्ष, छत्तीसगढ़) सत्ता वापसी नामुमकिन बना दिया है। अब जरा विंशोत्तरी महादशा की बात की जाए तो अभी वर्तमान में 15/8/2018 से 25/12/2018 तक शुक्र की महादशा में शनि का अन्तर एवं शुक्र का प्रत्यंतर चल रहा है जो भाजपा और मोदी जी के जन्मांक (2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर विस्तृत विश्लेषण हमारे इस यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है जिसका लिंक है </b></a><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"><b>https://youtu.be/XhA6nyVHQxw)</b></a><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"><b> शुक्र ही वह प्रबल ग्रह है जो नरेंद्र मोदी जी को पीएम पद तक पहुंचानेमें सहयोग किया। कुल मिलाकर अभी हालिया राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को संतोषजनक सफलता नहीं मिलती दिख रही है वहीं भाजपा शासित राज्यों में ले देकर सत्ता में वापसी करेगी जबकि कल 20/11/2018 को छत्तीसगढ़ में हो रहे विधानसभा चुनाव में गोचर में ग्रहबल भाजपा को बेहतरीन सफलता देंगे।</b></a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"><b>-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, शांतिनगर, भिलाई-दुर्ग</b></a></p>
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<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"><b>‘आदित्याज्जायते वृष्टिवृष्टरन्नं ततः प्रजाः’। सूर्य से वर्षा, वर्षा से अन्न और अन्न से प्रजा (प्राणी) का जन्म होता है। 🌷🙏 (पूरा आलेख अवश्य पढ़ें और अन्य मित्रों को शेयर करें) 🙏🌷</b></a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"><b>सूर्य षष्ठी व्रत (छठ पूजा) के पावन पर्व पर आप सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🌷🌷 आइए आज 'चौबेजी कहिन' सूर्योपासना के विषय पर आज विस्तृत चर्चा करेंगे। साथियों, पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र होने के कारण ‘काश्यप’ कहलाये। उनका लोकावतरण महर्षि की पत्नी अदिति के गर्भ से हुआ, अतः उनका एक नाम ‘आदित्य’ भी लोकविख्यात एवं प्रसिद्ध हुआ। उपनिषदों में आदित्य को ब्रह्म के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया है। छान्दोग्योपनिषद् ‘आदित्यो ब्रह्म’ कहता है तो तैत्तिरियारण्यक ‘असावादित्यो ब्रह्म’ की उपमा देता है।अथर्ववेद की भी यही मान्यता है। इसके मतानुसार आदित्य ही ब्रह्म का साकार स्वरूप है।</b></a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"><b>ऋग्वेद में सर्वव्यापक ब्रह्म तथा सूर्य में समानता का स्पष्ट रूप से बोध होता है। यजुर्वेद सूर्य और भगवान् में भेद नहीं करता। कपिला तंत्र में सूर्य को ब्रह्मांड के मूलभूत पंचतत्त्वों में से वायु का अधिपति घोषित किया गया है। हठयोग के अंतर्गत श्वास (वायु) को प्राण माना गया है और सूर्य इन प्राणों का मूलाधार है, अतः ‘आदित्यौ वै प्राणः’ कहा गया है। योग साधना में प्रतिपादित मणिपूरक चक्र को ‘सूर्यचक्र’ भी कहते हैं। हमारा नाभिकेन्द्र (सूर्यचक्र) प्राण का उद्गम स्थल ही नहीं बल्कि अचेतन मन के संस्कारों तथा चेतना का संप्रेषण केन्द्र भी है। सूर्यदेव इस चराचर जगत् में प्राणों का प्रबल संचार करते हैं- ‘प्राणः प्रजानामुदयत्येषं सूर्यः’। सूर्य भगवान् को मार्तण्ड भी कहते हैं क्योंकि ये जगत् को अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश से ओतप्रोत कर जीवनदान देते हैं। सूर्यदेव कल्याण के उद्गम स्थान होने के कारण शम्भु कहलाते हैं। भक्तों का दुःख दूर करने अथवा जगत् का संहार करने के कारण इन्हें त्वष्ट भी कहते हैं। किरण को धारण करने वाले सूर्य देव अंशुमान् के नाम से भी जाने जाते हैं। दरअसल सूर्य हम सभी पृथ्वी वासियों के पितृदेव भी हैं जिनको हम जलाञ्जली भी अर्पित करते हैं चाहे वह पितृपक्ष में तर्पण हो या प्रतिदिन अर्घ्य प्रदान करना हो किसी ना किसी बहाने हम सभी सूर्योपासना करते ही हैं। ऋग्वेद के पांच सबसे प्रभावशाली देवताओं में अग्नि, सूर्य आदि प्रमुख हैं।</b></a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"><b>सूर्योपासना भिन्न-भिन्न रूपों में अनादिकाल से भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के विभिन्न भागों में भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक की जाती रही है। अमेरिका के रेड इंण्डिनों द्वारा आबाद क्षेत्रों में सूर्य मंदिर प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। कई प्रकार की सूर्य गाथाएँ हवाई द्वीप, जापान, दक्षिण अमेरिका तथा कैरिबियन द्वीपों में प्रचलित हैं, जो बताती हैं कि सूर्य सबका उपास्य रहा है। चीन के विद्वान् सूर्य को ‘याँग‘ मानते हैं। जापान सूर्य पूजक राष्ट्र है तथा दिनमान का आगमन सर्वप्रथम उसी देश से हुआ माना जाता है। बौद्ध जातकों में सूर्य का प्रसंग वाहन के रूप में स्थान-स्थान पर आया है तथा अजवीथि, नागवीथि और गोवीदि नाम के मार्गों के आधार पर उसकी तीन गतियाँ मानी गयी हैं। इस्लाम में सूर्य को ‘इल्म अहकाम अननजुमे’ का केन्द्र माना गया है। अर्थात् सूर्य इच्छा शक्ति को बढ़ाने वाली चैतन्य सत्ता के प्रतीक हैं। ईसाई धर्म में न्यूटेस्टामेण्ट में सूर्य के धार्मिक महत्त्व का विशद् एवं विस्तृत वर्णन है। सेण्टपाल ने इसीलिए रविवार का दिन पवित्र घोषित कर इस दिन प्रभु की आराधना दान दिये जाने आदि को अत्यन्त फलदायी माना है। ग्रीक और रोमन विद्वानों ने भी इसी दिन को पूजा का दिन स्वीकार किया है।</b></a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"><b>यद्यपि कालचक्र के दुष्प्रभाव से वर्तमान समय में सूर्योपासना की परम्परा का अत्यन्त ह्रास हो गया है, परन्तु फिर भी धर्म प्रधान भारत वर्ष में सनातन धर्मी जनता आज भी किसी न किसी रूप में सूर्य को देवता मानकर उनकी पूजा अभ्यर्थना करती है। इसी क्रम में सूर्यषष्ठी व्रत को मनाया जाता है। बिहार एवं झारखण्ड की जनता इस पावन तिथि को ‘छठपूजा’ के रूप में अत्यन्त श्रद्धा-उत्साह एवं उमंग के साथ मनाती है। वाराणसी एवं पूर्वांचल में इसे ‘डालछठ’ कहा जाता है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन नियम-स्नानादि से निवृत्त होकर फलाहार किया जाता है। पंचमी में दिन भर उपवास करके सायंकाल किसी नदी या सरोवर में स्नान करके अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके पश्चात् अस्वाद भोजन किया जाता है। लेकिन इस पर्व को देश की राजनीति ने अपने कुत्सित प्रभाव से रौंदकर 'बिहारियों का पर्व' बनाकर प्रांतीय-परप्रांतीय का जहर घोलने का काम किया, जो निंदनीय है।-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- "ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका शांतिनगर भिलाई-दुर्ग छत्तीसगढ़ मोबाइल नं. 9827198828 🙏🌷</b></a></p>
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घर बैठे सदस्य बनने के लिए आपको 'Jyotish ka surya' के खाते में स्वयं का पत्राचार का पूरा पता एवं निचे दिये गये धन राशि को Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 प्रेषित करें । वार्षिक सदस्यता शुल्क २२० रू. द्विवार्षिक स.शु.440रू., त्रिवार्षिक स.शु.६४०रू. आजीवन स.शु.२१००रू., मुख्य संरक्षक स.शु.११०००रू., संरक्षक स.शु. ५१००रू.
पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-42192808737619457522018-11-10T18:17:00.001-08:002018-11-10T18:17:19.271-08:00अल्ट्रावॉयलेट किरणों से रक्षा करने वाला विश्व का सबसे लोकप्रिय पर्व है 'छठपूजा'<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">छठ पर्व लोक पर्व नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर मनाए जाने वाला महापर्व है ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य नीच राशि तुला राशि पर होते हैं उस समय पृथ्वी पर सूर्य की नकारात्मक ऊर्जा (अल्ट्रावायलेट किरणों) की अधिकता होती है, अतः उससे पृथ्वी वासियों को बचाने के लिए ृृृ ऋग्वेद में कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को (सूर्यास्त) सायंकालीन एवं सप्तमी तिथि को प्रातः कालीन (सूर्योदय) के समय अर्घ्य प्रदान करने की परम्परा की शुरुआत हुई जो आज 'छठपूजा' के रुप में प्रसिद्ध हुआ। उत्तर भारत में अधिक मान्यता इस व्रत को लेकर है, यह व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति, संतान के दीर्घायु के लिए किया जाता है। यह व्रत यदि किसी कारणवश महिलाएं यह व्रत करने में असमर्थ होती हैं तो पुरुष भी इस व्रत को करते हैं।</a></p>
<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">इस बार इस महापर्व की शुरुआत आज से यानी 11 नवंबर 2018 से नहाय खाय (व्रत संकल्प) से आरंभ होगा।</a><br>
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<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">12 नवंबर 2018 को नहाय खाय (लोहण्डा)</a><br>
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<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">13 नवंबर 2018 को संध्याकालीन सूर्याघ्य</a><br>
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<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">14 नवंबर 2018 को प्रातः कालीन सूर्योदय में अर्घ्य देकर इस व्रत का पारणा किया जाएगा</a><br>
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<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">छठ व्रतियों को इस दौरान स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता है, और संतान की दीर्घायु, सुख समृद्धि सहित मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए स व्रत को किया जाता है। जिनकी मनौती पूरी हो जाती है वे सांध्यकालीन अर्घ्य देकर घाट से घर आने के बाद गन्ना का मण्डप बना कर चतुर्मुखी दीपक वाले कलश में चुडा (पोहा) मिठाई रखकर अपने पितरों को स्मरण करते हुए छठी मईया की गीत गाती हैं। इस व्रत में केला, सेव, अनानास, संतरा, नींबू, मुली, कंद-मूल एवं अनेक प्रकार के ऋतु फल के साथ ठेकुआ चढ़ाया जाता है। उपरोक्त सभी सामग्री को दौरी में जलते हुए दीपक के साथ घाट पर जाते हैं और वहां सूर्य मंत्र का वाचन करते हुए गाय का दुध मिश्रित जल से बांस की सुपेली (सूपा) या पितल के सूपा में सभी प्रकार के ऋतु फल रखकर सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय अर्घ्य प्रदान करना चाहिए।</a><br>
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<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अर्घ्य देने के लिए 13 नवंबर को सायंकाल (सूर्यास्त समय) 5 बजकर 23 मिनट के पूर्व सूर्याघ्य देना चाहिए।</a><br>
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<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">14 नवंबर 2018 को प्रातः कालीन सूर्योदय 6 बजकर 13 मिनट पर होगा अतः इसी समय सूर्याघ्य देना उत्तम रहेगा।</a><br>
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<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अर्घ्य मंत्र:-</a><br>
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<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"> ए ही सूर्य सहस्त्रांशो, तेजोराशे जगत्पते।</a><br>
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<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अनुकम्प्य मां भक्या,गृहार्घ्य दीवाकर: ।।</a><br>
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<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">इसके बाद पारणा किया जाना चाहिए।</a><br>
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<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य'राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई-दुर्ग छत्तीसगढ़।</a><br>
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पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-37860616606047527592018-11-02T22:39:00.001-07:002018-11-02T22:39:13.426-07:005 नवंबर को धनतेरस, कब है मुहूर्त और क्या करना चाहिए ?<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">धनतेरस पर खरीदी के लिए कब है शुभ मुहूर्त ?</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">धनतेरस को अमृतसिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और सोम प्रदोष भी पड़ रहे हैं। सूर्योदय से लेकर रात 8:37 बजे तक हस्त नक्षत्र है। यह चंद्रमा का नक्षत्र होता है। इस अवधि में खाता-बही, सोना-चांदी, गणेश-लक्ष्मी समेत परिवार की जरूरत का सामान खरीदना अत्यधिक शुभप्रद रहेगा। सोमवार रात 11:48 बजे से भद्रा आरंभ होने की वजह से इसके बाद खरीदी नहीं करना चाहिए। धनतेरस को ही धन्वंतरि भगवान हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">आचार्य पण्डित विनोद चौबे, शांतिनगर भिलाई ने बताया कि धनतेरस में दीपदान शाम को 05:14 बजे से 7:50 बजे तक प्रदोषकाल में शुभ रहेगा। प्रवेशद्वार पर अनाज की ढेरी लगाकर और दक्षिण दिशा में तिल के तेल का 1 दीपक जलाना चाहिए, और उत्तर दिशा में 8 तथा पूर्व दिशा में 3 एवं नैऋत्य कोंण में पितरों के लिए 1 दिपक अवश्य जलाएं। साथ ही कुण्डली में मारकेश एवं अरिष्टकारी (रोग) कुयोग की शांति के लिए भगवान धन्वंतरि का विधिवत पूजन करें, धनवंतरि की पूजा का शुभ मुहूर्त है सोमवार रात 8:33 बजे है । पण्डित विनोद चौबे ने बताया की भगवान धनवंतरि को हर, बहेड़ा, केसर, आंवला व हल्दी अर्पित करने से रोग और व्याधि दूर होते हैं,और इन औषधियों का वैद्य से सलाह लेकर सेवन भी करना चाहिए।</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">चौघड़िया मुहूर्त इस प्रकार है:-</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">प्रातः अमृत 06:35:38 - 07:57:58 अमृत</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">प्रातः शुभ 09:20:18 - 10:42:37 शुभ </a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">दोपहर लाभ 2 :49:36 - 4 :11:56 लाभ </a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अपराह्न 4 :11:56 - 5 :34:16 अमृत</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">रात्रि में 10 :27:34 - 11 :45:20 लाभ</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अभिजित मुहूर्त:- 11:42:40 - 12:26:32 इस समय ज़मीन- जायदाद या व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में धनतेरस पूजन उत्तम रहेगा। इसके बाद भद्रा आरंभ हो जायेगा, अतः भद्रा में खरीदारी नहीं करना चाहिए।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">वैसे तो धनतेरस पर सभी राशियों के लोगों द्वारा शुभ मुहूर्त में किसी भी प्रकार की वस्तुओं की खरीददारी 13 गुना लाभकारी होता है परन्तु अलग अलग राशियों के मुताबिक यदि खरीदी की जाय तो और बेहतर होगा।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">मेष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, धनु, मीन राशि वालों को बर्तन, इलेक्ट्रानिक उपकरण और चांदी खरीदना उत्तम रहेगा।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">वृषभ राशि वालों को चांदी के सिक्के या चांदी के बर्तन खरीदना उत्तम रहेगा।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">मिथुन, सिंह, कन्या राशि वालों के लिए- पीला वस्त्र एवं सोना खरीदना उत्तम रहेगा।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">तुला राशि वालों के लिए वाहन अथवा कांस्य धातु के बर्तन खरीदना उत्तम रहेगा।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">मकर राशि वालों को घरेलू सामान जिसका उपयोग भोजन बनाने में होता हो उसे जरूर खरीदना चाहिए।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">कुंभ राशि वालों के गोचर में गुरु को और प्रबल करने के लिए इस धनतेरस पर स्वर्ण </a><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"><u>आभूषण</u></a><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"> या पीले रंग का वस्त्र अवश्य खरीदना चाहिए।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">राहु काल : धनतेरस के दिन राहु काल प्रात: 07:57:54 09:20:08 तक रहेगा अत: यह किसी भी शुभकार्य में वर्जित है।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई-दुर्ग, छत्तीसगढ़ मोबाइल नंबर 9827198828</a></p>
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पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-34098438657571734162018-10-08T04:38:00.001-07:002018-10-08T04:38:15.734-07:00नौका (नाव) पर सवार होकर आ रहीं हैं दुर्गा जी, नवरात्रि में बन रहे हैं कई दुर्लभ संयोग- ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे<div align="left"><p dir="ltr">नौका (नाव) पर सवार होकर आ रहीं हैं दुर्गा जी, नवरात्रि में बन रहे हैं कई दुर्लभ संयोग- ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद <u>चौबे</u><br>
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शारदीय नवरात्र 10 अक्टूबर 2018 बुधवार को चित्रा नक्षत्र में आरंभ हो रहा है जो आगामी 18 अक्टूबर 2018 दिन गुरुवार नवमी तक रहेगा। माताजी का आगमन नाव पर सवार होकर आ रही हैं और उनका प्रस्थान ऐरावत हाथी पर सवार होकर होगा यानी इस वर्ष आर्थिक दृष्टि से व्यापारी एव उद्यमियों के बहुत लाभकारी सिद्ध होगा। इस वर्ष भी यह शारदीय नवरात्र पूरे 9 दिन का रहेगा, जो सभी के लिए सुख एवं समृद्धि भरा रहेगा। तंत्रकल्प में दशमहाविद्याओं की साधना शारदीय नवरात्र में बेहद अनुकूल माना गया है, वहीं मेरुतंत्र और भैरव तंत्र साहित्य में तो नवरात्र के पंचमी, सप्तमी एवं अष्टमी तिथि की बहुत महत्ता बताई गई है। मार्कण्डेय पुराण में शक्ति पूजा के बारे में कहा गया है कि - "शरत्काले या पूजा क्रियते या च वार्षिकी" यानी वर्ष में यदि चार नवरात्रि में आपने शक्ति की उपासना नहीं कर पा रहे हैं तो 'शारदीय नवरात्र" में यह देवी-अनुष्ठान बेहद लाभकारी होता है। तंत्रमहार्णव में 'बगलामुखी' की उपासना करने पर बल दिया गया है क्योंकि यह बगलामुखी पुरश्चरण का विधान जहां शत्रु बाधा से मुक्ति दिलाता है वहीं श्री (लक्ष्मी) की प्राप्ति एवं सामाजिक, राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों पर विजय प्राप्त करने का काम भी करता है।</p>
<div align="left"><p dir="ltr">10 अक्टूबर को प्रतिपदा को कलश स्थापना के साथ इस नवरात्रि का अनुष्ठान आरंभ करना चाहिए।</p></div>
<div align="left"><p dir="ltr">स्थापना मुहूर्त :</p></div>
<div align="left"><p dir="ltr">प्रातः सूर्योदय से 07:27 मिनट तक सर्वोत्तम मुहूर्त है क्योंकि इसके बाद द्वितीया तिथि आरंभ हो जायेगी। यदि किसी कारणवश विलंब होता है तो प्रात: 10 बजकर 11 मिनट तक घट स्थापना कर ही लेना चाहिए ।<br>
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</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">किसकी और कब पूजा की जानी चाहिए.</span><br>
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</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">10 अक्टूबर (बुधवार) 2018 : घट स्थापन एवं माँ शैलपुत्री पूजा, माँ ब्रह्मचारिणी पूजा</span><br>
</p>
</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">11 अक्टूबर (बृहस्पतिवार ) 2018 : माँ चंद्रघंटा पूजा</span><br>
</p>
</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">12 अक्टूबर (शुक्रवार ) 2018 : माँ कुष्मांडा पूजा</span><br>
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</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">13 अक्टूबर (शनिवार) 2018 : माँ स्कंदमाता पूजा </span><br>
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</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">14 अक्टूबरर (रविवार ) 2018 : पंचमी तिथि -सरस्वती आह्वाहन </span><br>
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</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">15 अक्टूबर (सोमवार) 2018 : माँ कात्यायनी पूजा</span><br>
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</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">16 अक्टूबर (मंगलवार ) 2018 : माँ कालरात्रि पूजा </span><br>
</p>
</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">17 अक्टूबर (बुधवार) 2018 : माँ महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी , महा नवमी</span><br>
</p>
</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">18 अक्टूबर (बृहस्पतिवार) 2018 :नवरात्री पारण</span><br>
</p>
</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">19 सितम्बर (शुक्रवार ) 2018 : दुर्गा विसर्जन, विजय दशमी</span><br>
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</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr">राशियों के अनुसार देवी पूजन :<br>
</p>
</div><p dir="ltr"><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">मेष:- लाल कपड़े से दुर्गा जी श्रृंगार करके पूजन करें।</span></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">वृषभ:- मां शैलपुत्री की कपूर एवं केसर से पूजन करें।</span></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">मिथुन:- कुष्मांडा देवी की अपामार्ग से पूजा करें ।</span></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">कर्क :- मां गौरी को मौलसिरी पुष्पों से पूजा करें।</span></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;"> सिंह:- मां अष्टभुजा देवी की उपासना करें, खीर का भोग लगाएं।</span></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">कन्या:- स्कन्द माता देवी का स्वर्ण के साथ पूजन करें।</span></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">तुला:- आपकी राशि से वृहस्पति प्रस्थान कर रहे हैं अत: इस नवरात्रि में आपको कामाख्या पूजा करें।</span></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">वृश्चिक:- सिंह वाहिनी देवी की रोज 11 पान के पत्तों से पूजन एवं भोग लगाएं।</span></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">धनु:- शनि जनित कष्ट दूर करने के लिए आपको देवी के साथ ही कालभैरव स्तोत्र का रोज 11 पाठ करें।</span></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">मकर:- मां कात्यायनी की पूजा करने से आय बढ़ेगी।</span></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">कुम्भ:- आपकी राशि पर शत्रु बाधा समाप्त करने के लिए बगलामुखी साधना करनी चाहिए।</span></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">मीन:- प्रतिदिन सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।</span><br>
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<div align="left"><p dir="ltr">देवी आराधना में दुर्वा, मदार (अकवन) आक पुष्प वर्जित है। अखण्ड ज्योति में घी और तिल का प्रयोग करें। माता जी को दशमद का फुल बहुत प्रिय है। अनार फल तथा केसर युक्त खीर अत्यधिक प्रिय है। बगलामुखी साधना में पीले आसन, पुष्प एवं फलों का ही प्रयोग करना चाहिए।</p></div>
<div align="left"><p dir="ltr">इस बार के नवरात्रि में 10 अक्टूबर से 18 अक्टूबर के बीच में राजयोग, द्विपुष्कर योग, अमृत योग ,सर्वार्थसिद्धि और सिद्धियोग का संयोग भी बन रहा है। इन 9 दिनों में नवरात्रि पूजा-पाठ और खरीदारी अत्यधिक शुभ और फलदायी रहेगी।</p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="color:#333333;">- ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे, शांतिनगर, भिलाई।। मोबाइल नं. 9827198828</span><br>
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<div class="blogger-post-footer">'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के सदस्यता हेतु।
घर बैठे सदस्य बनने के लिए आपको 'Jyotish ka surya' के खाते में स्वयं का पत्राचार का पूरा पता एवं निचे दिये गये धन राशि को Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 प्रेषित करें । वार्षिक सदस्यता शुल्क २२० रू. द्विवार्षिक स.शु.440रू., त्रिवार्षिक स.शु.६४०रू. आजीवन स.शु.२१००रू., मुख्य संरक्षक स.शु.११०००रू., संरक्षक स.शु. ५१००रू.
पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-29685139961493054432018-09-07T19:24:00.001-07:002018-09-07T19:24:03.380-07:00समलैंगिकता और बृहन्नला<div align="left"><p dir="ltr"><br>
<a href="http://ptvinodchobey.blogspot"> चौबेजी कहिन: 'राम' के अस्तित्व को नकारते हुए कोर्ट में हलफनामा दाखिल करने वाले, 'भगवा' को गरियाने वाले और 'हिन्दू' आतंकवाद सिद्ध करने वाले अब अचानक बृहन्नला, </a><a href="http://ptvinodchobey.blogspot"><u>शकुनि</u></a><a href="http://ptvinodchobey.blogspot"> और अर्द्धनारीश्वर को ''समलैंगिकता' से जोड़ने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं, लानत है तुम लोगों पर....😟😟</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">मैक्समूलर के अंधभक्त आज भी मुगलों के प्रभाव में हैं, ये अंग्रेजों से भी निष्कृष्ट पूर्वज बदलने वालों और स्वतंत्र भारत के गुलामी मानसिकता रखने वालों को आखिरकार 'समलैंगिकता' की वैधानिकता मिल ही गई। खूब बजाओ ताला, नाचो और मौज करो राक्षसों।</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">8/9/2018</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">तुम लोग जिस वात्स्यायन कामसूत्र की बात कर कुतर्क देते फिर रहे हो, उसे तो तुम लोगों ने सहज ही स्वीकार कर लिया, साथ में 'वैदिक सभ्यता' को भी स्वीकार कर लेते। एक बड़े पत्रकार ने अपने संपादकीय में 5130 वर्ष पूर्व के धनुर्धारी वीर अर्जुन के 'बृहन्नला' और 'शकुनी' का तर्क दिया है, हे पत्रकार महोदय मुझे इस बात की प्रसन्नता हुई कि कम से कम 'कृष्ण-अर्जुन' के अस्तित्व को आपने स्वीकार किया, किन्तु उपरोक्त दोनों के अन्य जीवन चरित्र के सिद्धांतो के मुताबिक भी भारतीय संविधान में 'वेदोक्त, शास्त्रोक्त विधान' एक्ट को भी लागू कराते तो मैं आपके इस पत्रकारिता को 'श्वान-सूकरी' पत्रकारिता ना बोलता। दिन-रात 'भगवा' को गरियाने वालों, हिन्दुओं को आतंकी सिद्ध करने वालों तुम्हारे अन्दर अचानक बृहन्नला, शकुनि और वात्स्यायन कामसूत्र के प्रति इतना प्रेम कैसे उमड़ पड़ा ? साफ है भारत की युवा पीढ़ी को नष्ट-भ्रष्ट करने की गहरी चाल है जिसको पूरी तरह राजनैतिक हवा तब मिली जब कांग्रेस नेता शशि थरूर ने 2015 में संसद पटल पर 'समलैंगिकता' को अपराध (धारा 377) से बाहर रखे जाने के लिए निजी बिल लेकर आए हालांकि वह बिल गिर गया लेकिन 2005 में गुजरात स्थित राजपिपला के राजकुमार 'मानवेंद्र' से लेकर भारत के कई अन्य हाईकोर्ट में मामलों आने लगे थे, लेकिन संसद में पहली बार इस बिल को शशि थरूर ने लाकर इसे बड़ी राजनैतिक हवा दी। 2016 अगस्त में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आया और 2017 में इसे निजता बताया गया और अब यह 2018 में इस बेवाहयात मानसिक रूप से मुठ्ठी भर 'कामरोगियों' के पक्ष में पर फैसला आ गया। यह एक सुसंस्कृत भारतीय समाज में विष घोलने का काम तो किया ही गया बल्कि कई ऐसे असाध्य रोगों को आयातित करने का आमंत्रण दिया गया, साथ ही हिन्दू संस्कृति, हिन्दुत्व विचारधारा पर कठोर प्रहार किया गया है। अब आप समझ गए होंगे इसके जड़ को। आज 'चौबेजी कहिन' में हमने मुगलों का नाम क्यों जोड़ा क्योंकि की 'मुगल शासक' स्वयं ही 'समलैंगिक' थे, और पिछले दिनों कई पादरी और फादरों द्वारा दुधमुंहे बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौनाचार के अपराध में जेल की हवा खा रहे हैं, हालांकि ईसाई, स्लाम दोनों धर्मों में 'समलैंगिकता' की तिव्र निंदा की गई है, बावजूद 'बाबर प्रेमी' इस समलैंगिकता के पैरोकार हैं। जबकि हालांकि समलैंगिकता के खिलाफ अंग्रेजों ने धारा 377 को 1860 में लागू किया था। 158 साल पुराने इस कानून के द्वारा समलैंगिकता को गैरकानूनी बताया गया है जिसमें 1935 में फिर कुछ परिवर्तन कर दायरे को बढ़ाया गया।</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">- पण्डित विनोद चौबे, संपादक 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई, जिला-स्तर दुर्ग, छत्तीसगढ़</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">(अच्छा लगे तो शेयर जरुर करें 🙏💐)</a><br>
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पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-88470506376595412492018-07-27T18:42:00.001-07:002018-07-27T18:42:27.673-07:00चौबेजी कहिन:- 'हर हर महादेव' के उद्घोष के साथ आज से सावन माह आरंभ। आईए सावन में पड़ने वाली विशेष तिथियां और रुद्राभिषेक हेतु अलग-अलग द्रव्यों के लाभ के बारे में कुछ जानकारियां प्रस्तुत करता हूं 🙏<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">चौबेजी कहिन:- 'हर हर महादेव' के उद्घोष के साथ आज से सावन माह आरंभ। आईए सावन में पड़ने वाली विशेष तिथियां और रुद्राभिषेक हेतु अलग-अलग द्रव्यों के लाभ के बारे में कुछ जानकारियां प्रस्तुत करता हूं 🙏</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">28/7/2018 </a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">आज से सावन का पवित्र माह आरंभ हो गया इस मांह को 'पावस माह' भी कहा जाता है। पौराणिक संदर्भों में वर्णित कथाओं के मुताबिक सनत्कुमारों का प्रसंग मिलता है वहीं मां पार्वती के 'शिव' जी को पति रुप में प्राप्त करने हेतु किए गए कठोर तप इसी सावन माह में किया गया। चूंकि मैं भिलाई के शांतिनगर में निवासरत हूं छत्तीसगढ़ के कई ग्रामीण इलाकों में जाना होता है यहां के लोग पूरे सावन में बाबा बूढादेव की पूजा अर्चना की जाती है, यत्र-तत्र-सर्वत्र शिव आराधना हर हर महादेव के उद्घोष के साथ की जाती है। आईए आपको सावन में पड़ने वाले कुछ विशेष तिथियों और रुद्राभिषेक द्रव्य और उसके लाभ के बारे में आज के "चौबेजी कहिन'' में चर्चा करेंगे 😊🌹</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">28 जुलाई 2018 दिन शनिवार को श्रवण नक्षत्र से आरंभ होकर 26 अगस्त 2018 रविवार तक तीस दिन का सावन माह रहेगा। इस सावन के महीने में चार सोमवार होंगे जो निम्न तिथियां हैं:-</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">1- 30/7/2018 प्रथम सोमवार व्रत</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">2- 6/8/2018 द्वितीय सोमवार व्रत</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">3- 13/8/2018 तृतीय सोमवार व्रत</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">4- 20/8/2018 चतुर्थ सोमवार व्रत</a><br>
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</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">इसके अलावा सावन में वह विशेष तिथियां जो देवाधिदेव महादेव के आराधना के लिए उपयुक्त हैं:-</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">2/8/2018 गुरुवार को मधुश्रावणी व्रत (मिथिला राज्य) एवं श्रावण कृष्ण पक्ष पंचमी व्रत</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">6/8/2018 सोमवार को कामदा एकादशी व्रत</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">9/8/2018 गुरुवार को मास शिवरात्रि एवं प्रदोष व्रत</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">11/8/2018 शनिवार को हरियाली अमावस्या</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">15/8/2018 बुधवार को हस्त नक्षत्र में नागपंचमी एवं भारतीय स्वतंत्रता दिवस 71 तम:</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">17/8/2018 शुक्रवार को श्रावण शुक्ला सप्तमी को कुलदेवता पूजन एवं गोस्वामी तुलसीदास जयंती</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">22/8/2018 बुधवार को पुत्रदा एकादशी व्रत</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">23/8/2018 गुरुवार को ् प्रदोष व्रत</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">25/8/2018 शनिवार को ऋक्उपाकर्म </a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">26/8/2018 रविवार को श्रावणी उपाकर्म, संस्कृत दिवस एवं रक्षाबंधन </a><br>
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</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">किस पदार्थ से रुद्राभिषेक करने से क्या क्या लाभ मिलता है ?</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">श्लोक :-</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।।</a><br>
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</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">जवरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशयः।</a><br>
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</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषतः।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च!!</a><br>
</p>
</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह!</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा।।</a><br>
</p>
</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा।</a><br>
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</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">महलिंगाभिषेकेन सुप्रीतः शंकरो मुदा।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्।</a><br>
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</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अर्थात्</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">1. जल से रुद्राभिषेक करने पर वृष्टि होती है।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">2. कुशा जल से अभिषेक करने पर रोग, दुःख से छुटकारा मिलती है।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">3. दही से अभिषेक करने पर पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">4. गन्ने के रस से अभिषेक करने पर लक्ष्मी प्राप्ति</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">5. मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर धन वृद्धि के लिए। </a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">6. तीर्थ जल से अभिषेकक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">7. इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है ।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">8. गाय के दूग्ध से अभिषेककरने से पुत्र प्राप्ति होती है।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">9. दही से अभिषेक करने से प्रमेह रोग की शान्ति त प्राप्ति होती है।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">10. घी से अभिषेक करने से वंश विस्तार होती है।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">11. सरसों के तेल से अभिषेक करने से रोग तथा शत्रु का नाश होता है।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">12. शुद्ध शहद रुद्राभिषेक करने से पाप नष्ट होता है।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- "ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका शांतिनगर भिलाई दुर्ग छत्तीसगढ़ मोबाइल नं 09827198828</a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">(कृपया इस लेख को कोई कॉपी-पेस्ट ना करें ऐसा करते पाये जाने पर</a><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"> ' ज्योतिष का सूर्य' वैधानिक कार्यवाही करने को बाध्य होगा)</a><br>
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<div class="blogger-post-footer">'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के सदस्यता हेतु।
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पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-83410248370943873482018-07-25T20:38:00.001-07:002018-07-25T20:38:35.607-07:00चौबेजी कहिन:- 21 वीं सदी का अद्भुत खग्रास चंद्रग्रहण 27 जुलाई को। आईए जानते हैं 'चन्द्रग्रहण रहस्य'...🙏 आज 'फेसबुक लाईव' में बतायेंगे राशियों पर 'चन्द्रग्रहण' का शुभाशुभ प्रभाव।<p dir="ltr"><a href="http://Ptvinodchoubey.blogspot.com">चौबेजी कहिन:- 21 वीं सदी का अद्भुत खग्रास चंद्रग्रहण 27 जुलाई को। </a><a href="http://Ptvinodchoubey.blogspot.com">आईए जानते हैं 'चन्द्रग्रहण रहस्य'...🙏 आज 'फेसबुक लाईव' में बतायेंगे राशियों पर 'चन्द्रग्रहण' का शुभाशुभ प्रभाव।</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://Ptvinodchoubey.blogspot.com">26/7/2018</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://Ptvinodchoubey.blogspot.com">खग्रास चंद्रग्रहण 27/28 जुलाई 2018 शुक्रवार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पुर्णिमा को लगेगा। जिसका सूतक 27/7/2018 को दोपहर 2 बजकर 54 मिनट से आरंभ हो जायेगा अत: इसके बाद मंदिरों के पट बंद हो जायेंगे, साथ ही आज गुरु पूर्णिमा होने की वजह से सूतक लगने के पूर्व यानी दोपहर 2 बजकर 54 मिनट के पहले ही गुरुपूजन आदि कार्य संपन्न कर लें, क्योंकि सूतक लगने के बाद किसी भी प्रकार का मांगलिक कार्य या पूजन अर्चन करना या अन्नग्रहण करना वर्जित है।</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://Ptvinodchoubey.blogspot.com">चन्द्रग्रहण रात्रि 27/7/2018 को 11बजकर 54 (PM) मिनट से लेकर 28/7/2018 को रात्रि 03 बजकर 49 मिनट (AM) तक 235 मिनट तक रहेगा जो </a><a href="http://Ptvinodchoubey.blogspot.com">21वीं सदी का सबसे लंबा और पूर्ण चंद्रग्रहण है।</a><br></p>
<p dir="ltr"><a href="http://Ptvinodchoubey.blogspot.com">साथियों नमस्कार 🙏 वैसे तो चंद्र ग्रहण का प्रभाव शुभ नहीं माना जाता। खगोलीय दृष्टि से चंद्र ग्रहण के समय पृथ्वी अपनी धूरी पर भ्रमण करते हुए चंद्रमा व सूर्य के बीच आ जाती है। ऐसी स्थिति में चंद्रमा का पूरा या आधा भाग ढ़क जाता है। इसी को चंद्र ग्रहण कहते हैं। यह चंद्रग्रहण भारत सहित दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, पश्चिम एशिया, आस्ट्रेलिया और यूरोप में देखा जा सकेगा।</a></p>
<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://Ptvinodchoubey.blogspot.com">ज्योतिष के अनुसार अभी वर्तमान में गोचर मकर राशि के केतु और चंद्रमा की प्रधानता रहेगी। राहु से समसप्तक दृष्टि संबंध रहेगा। जो अशुभता का प्रतीक माना जाता है। इसी कारण बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं से रू-ब-रू होना पड़ सकता है। पृथ्वी के पूर्वोत्तर भाग में भूकंप की संभावना है वहीं जिसके जन्मांक में चन्द्र कमजोर है उसे ग्रहण के दौरान घर से बाहर ना निकले ं क्योंकि ऐसे लोगों पर किन्हीं कारणों से डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं इसके अलावा जिन जातकों के जन्मांक में ग्रहण-दोष है उनको ग्रहण के दौरान महापुरुषों के जीवन चरित्र को पढ़ना चाहिए जिनका जीवन बेहद संघर्ष पूर्ण रहा है ताकी उनके जीवन चरित्र से सीख लेकर अवसाद ग्रस्त लोग 'देहविसर्जन' यानी आम भाषा में 'आत्महत्या' की आशंकाओं के प्रबलता से बच सकें। इसके अलावा ग्रहण के दौरान विकिरण के कारण आंखों, रक्तचाप और फुडपायजनिंग आदि रोगों की संभावना बढ़ जाती है अतः ऐसे रोगियों के लिए विशेष तौर पर सावधानी बरतने की आवश्यकता है। कुछ वामपंथी विचारधारा के लोग जो सनातनधर्म के द्रोही हैं और कुछ अन्य धर्मों के लोग जो नक़ल तो सनातन सिद्धांत का ही करते हैं परन्तु वे सनातनधर्म के प्रबल विरोधी भी हैं चूंकि उनकी यह मजबूरी है क्योंकि सनातनधर्म का वह विरोध नहीं करेंगे तो उनके असैद्धांतिक-धर्म का प्रचार कैसे संभव होगा कुछ ऐसे टाईप के लोग 'चन्द्रगहण' को खगोलीय घटना मानते हैं और ग्रहण में शास्त्रसम्मत वर्जनीय तथ्यों को दकियानूसी करार देते हैं, तो उन आसुरी प्रवृत्तियों को यह समझना चाहिए की ं🌹 सनातनधर्म एक प्रमाणिक व सैद्धांतिक धर्म है और इस धर्म ग्रंथों में वर्णित सभी विषय, प्रकल्प सद्य: प्रमाणित दस्तावेज हैं जिनमें कही एक एक बातें हर फ्लोर पर सटीक होती आई हैं तभी तो महाभारत काल में हमारे वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों एवं गणितज्ञों ने त्रिकोणमीति जो भारत की देन है, की सहायता से  5000 साल पहले ही बता दिया था कि महाभारत युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र में पूर्ण सूर्य ग्रहण लगेगा। पूर्ण सूर्य ग्रहण लगने से जब भरी दोपहरी में अंधकार छा जाता है तो पक्षी  भी अपने घोंसलों में लौट आते हैं। यह पिछले सूर्य ग्रहण के समय लोग देख चुके हैं और पूरे विश्व के वैज्ञानिक भी। तो ग्रहण का प्रभाव हर जीव जन्तु, मनुष्य, तथा अन्य ग्रहों पर  पड़ता है। गुरुत्वाकर्षण घटने या बढऩे से धरती पर भूकंप आने की संभावना ग्रहण के 41 दिन पहले या बाद तक रहती है। आज इसी विषय पर 'फेसबुक लाईव' में आपके समक्ष उपस्थित होऊंगा, यदि आपके मन में कोई प्रश्न हो तो आप कमेंट में लिखे, लेकिन मित्रों व्यक्तिगत प्रश्न नहीं होना चाहिए। प्रश्न केवल ग्रहण से जुड़ी है।। अस्तु।।</a><br>
</p>
</div><p dir="ltr"><br>
</p>
<div align="left" ><p dir="ltr"><a href="http://Ptvinodchoubey.blogspot.com">ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ)</a><br>
</p>
</div><p dir="ltr"><br>
<a href="http://Ptvinodchoubey.blogspot.com">दूरभाष क्रमांक -09827198828</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://Ptvinodchoubey.blogspot.com">(कृपया इस लेख को कोई कॉपी-पेस्ट ना करें ऐसा करते पाये जाने पर</a><a href="http://Ptvinodchoubey.blogspot.com"> ' ज्योतिष का सूर्य' वैधानिक कार्यवाही करने को बाध्य होगा)</a><br><br></p>
<div class="blogger-post-footer">'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के सदस्यता हेतु।
घर बैठे सदस्य बनने के लिए आपको 'Jyotish ka surya' के खाते में स्वयं का पत्राचार का पूरा पता एवं निचे दिये गये धन राशि को Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 प्रेषित करें । वार्षिक सदस्यता शुल्क २२० रू. द्विवार्षिक स.शु.440रू., त्रिवार्षिक स.शु.६४०रू. आजीवन स.शु.२१००रू., मुख्य संरक्षक स.शु.११०००रू., संरक्षक स.शु. ५१००रू.
पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-36693984739886944772018-07-23T16:38:00.001-07:002018-07-23T16:38:04.894-07:00गेरुआधारी फर्जी अग्निवेश ...!!<p dir="ltr">गेरुआधारी फर्जी अग्निवेश ...!!</p>
<p dir="ltr">माओवादी और मिशनरीज की<br>
रोटी पर पलता अग्निवेश फर्जी<br>
गेरुआधारी है: वस्तुतः ईसाई है:<br>
वेटिकन का प्यादा है अग्निवेश।</p>
<p dir="ltr">सोनियाँ सरकार में बड़ी दलाली<br>
का काम वही कर सकता था जो<br>
रोमन कैथोलिक ईसाई हो।</p>
<p dir="ltr">आपको पता होना चाहिए<br>
कि सोनियाँ काँग्रेस के<br>
शासनकाल में सबसे बड़े<br>
लायजनर्स में अग्निवेश की<br>
गिनती होती थी।</p>
<p dir="ltr">अग्निवेश सत्ता के गलियारे के<br>
चमकते सितारे थे उन दिनों। </p>
<p dir="ltr">अग्निवेश की कृपा प्राप्त हो<br>
जाने पर सोनियाँ सरकार में<br>
बड़े से बड़ा काम करा लेते<br>
थे लोग।</p>
<p dir="ltr">अग्निवेश का जन्म हुआ<br>
आंध्रप्रदेश में।☺️</p>
<p dir="ltr">पले बढ़े पढ़े छत्तीसगढ़ में<br>
और जीवन भर काम किया<br>
मिशनरीज और माओवाद<br>
के लिए।☺️☺️</p>
<p dir="ltr">विनायक सेन जैसे दुर्दांत<br>
माओवादी को सोनियाँ सरकार<br>
के सहारे फाँसी से बचा लेने<br>
का चमत्कार कर दिखाया था<br>
अग्निवेश ने।</p>
<p dir="ltr">आज तक भी विनायक सेन की<br>
गर्दन फाँसी के फंदे तक न पहुँच<br>
सका।</p>
<p dir="ltr">यह सोनियाँ की शक्ति नहीं<br>
है यह चर्च की शक्ति का<br>
परिणाम है।</p>
<p dir="ltr">अग्निवेश एक संगठन<br>
चलाता है सर्व धर्म संसद।</p>
<p dir="ltr">उस संगठन की जहाँ भी बैठक<br>
होती है वहाँ सर्व धर्म के नाम<br>
पर केवल चर्च का बोलबाला<br>
होता है।</p>
<p dir="ltr">और सनातन धर्म का स्वयंभू<br>
प्रतिनिधि हर बार अग्निवेश ही<br>
होता है।</p>
<p dir="ltr">अर्थात यह सर्व धर्म संसद<br>
केवल चर्च की संसद बनकर<br>
रह गया है।</p>
<p dir="ltr">या यूँ कहें कि चर्च के हितों को<br>
ध्यान में रखकर ही यह संगठन<br>
बनाया गया है।</p>
<p dir="ltr">19 जून 2009 को<br>
G8 सम्मेलन से ठीक<br>
पहले रोम में सर्व धर्म<br>
संसद का आयोजन<br>
हुआ।</p>
<p dir="ltr">आयोजक अग्निवेश थे।</p>
<p dir="ltr">चूँकि इस संगठन के सर्वेसर्वा<br>
अग्निवेश ही हैं।</p>
<p dir="ltr">उस सम्मेलन से तीन दिन<br>
पहले सभी डेलीगेट्स भारी<br>
सुरक्षा व सुविधा के अंतर्गत<br>
भूकंप प्रभावित ला अकीला<br>
शहर में ले जाए गए।</p>
<p dir="ltr">जहाँ वेटिकन के पादरियों द्वारा<br>
मृतकों के लिए सामूहिक प्रेयर<br>
का आयोजन हुआ।</p>
<p dir="ltr">सारी व्यवस्था वेटिकन<br>
ने ही किया था।</p>
<p dir="ltr">प्रेयर का आइडिया अग्निवेश<br>
का ही था।</p>
<p dir="ltr">यदि तुम आर्य समाजी थे<br>
और सनातनी थे तो वहाँ<br>
वैदिक स्वस्तिवाचन व शांति<br>
पाठ भी करवा सकते थे।</p>
<p dir="ltr">किन्तु चर्च का प्रेयर जिसको<br>
आनन्दित करता हो वह वैदिक<br>
शांति पाठ क्यों करेगा ?</p>
<p dir="ltr">सर्व धर्म संसद का उद्घाटन<br>
संध्या 5 बजे रोम के प्रसिद्ध<br>
विला मडामा में हुआ।</p>
<p dir="ltr">उद्घाटनकर्ता था कम्युनिटी <br>
ऑफ सेंट इडिगो का संस्थापक<br>
प्रोफेसर एंड्रिया रिकार्डी।</p>
<p dir="ltr">एंड्रिया रिकार्डी चर्च के सम्बंध<br>
में ही पुस्तकें लिखता रहा है। </p>
<p dir="ltr">इसी लेखन के कारण वह<br>
इतिहासकार कहा जाता है।</p>
<p dir="ltr">चर्च के विश्वस्त लोगों में<br>
से एक वफादार है एंड्रिया<br>
रिकार्डी। </p>
<p dir="ltr">वही व्यक्ति अग्निवेश के सर्व<br>
धर्म संसद का उद्घाटनकर्ता<br>
महापुरुष था।</p>
<p dir="ltr">अग्निवेश के रिश्ते सम्बंधों<br>
को समझने के लिए यह<br>
लिंक महत्वपूर्ण है।</p>
<p dir="ltr">अपने वेटिकन के लिंक के<br>
कारण ही अग्निवेश लगातार<br>
हिन्दू धर्म के विविध तीर्थ,पर्व-<br>
उत्सवों और रीति नीति पर<br>
आक्रमण करता रहा है।</p>
<p dir="ltr">अग्निवेश का माओवाद के<br>
साथ गहरा संबंध भी उसके<br>
हिन्दू विरोधी होने का एक<br>
प्रमुख कारण रहा है।</p>
<p dir="ltr">अग्निवेश झारखंड और<br>
छत्तीसगढ़ के माओवादियों<br>
से बड़े निकट से जुड़ा रहा है।</p>
<p dir="ltr">इन दोनों राज्यों के चर्च और<br>
मिशनरीज से भी अग्निवेश<br>
के बड़े गहरे संबंध रहे हैं।</p>
<p dir="ltr">अग्निवेश इनके लिए अनेकों<br>
बार काम करता हुआ दिखाई<br>
देता है।</p>
<p dir="ltr">अभी की अग्निवेश की झारखंड<br>
यात्रा भी चर्च के लिए ही थी। </p>
<p dir="ltr">अग्निवेश राँची के समीप खूँटी<br>
में वहाँ के सभी मिशनरीज के<br>
प्रमुख लोगों से मिलकर उनको<br>
साहस देने का काम किया। </p>
<p dir="ltr">हीलिंग टच टू मिशनरीज।</p>
<p dir="ltr">बच्चा बेचने वाली घटना में<br>
सिस्टर कोनसिलिया और<br>
सिस्टर मेरिडियन के पकड़े<br>
जाने और अपराध स्वीकार<br>
कर लेने के बाद राज्य सरकार<br>
द्वारा मिशनरीज ऑफ चैरिटी<br>
के ठिकानों पर पड़े छापे के बाद<br>
मिशनरीज की चूलें हिल गई हैं।</p>
<p dir="ltr">भारत का कैथोलिक विशप<br>
थियोडोर मैशकरेनहैस इस<br>
छापे के तुरंत बाद दिल्ली से<br>
दौड़ते हुए राँची पहुँचा था।</p>
<p dir="ltr">किंतु उसके वहाँ जाने<br>
और दलाली के तमाम<br>
प्रयत्न विफल रहे तब<br>
दलाल शिरोमणि अग्निवेश<br>
को थियोडोर मैशकरेनहैस<br>
ने खूंटी भेजा। </p>
<p dir="ltr">पाकुड़ यात्रा लोगों को भ्रमित<br>
करने के लिए आयोजित किया<br>
गया था।</p>
<p dir="ltr">किन्तु कुछ नैजवानों के<br>
आक्रामक रवैये ने सारा<br>
भ्रम निवारण कर दिया।</p>
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पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-63593444597432010132018-07-22T19:07:00.001-07:002018-07-22T19:07:50.083-07:00चौबेजी कहिन:- आज से 4 माह योगनिद्रा में शयन करने चले जायेंगे भगवान विष्णु, 'हरिशयनी' एकादशी का व्रत हमारे ऋषियों द्वारा दी गई 'साइंटिफिक उपहार' है.....🌹🌹🌹🙏🙏🙏<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">चौबेजी कहिन:- आज से 4 माह योगनिद्रा में शयन करने चले जायेंगे भगवान विष्णु, 'हरिशयनी' एकादशी का </a><a href="http://ptvinodchobey.blogspot"><u>व्रत</u></a><a href="http://ptvinodchobey.blogspot"> हमारे ऋषियों द्वारा दी गई 'साइंटिफिक उपहार'</a> <a href="http://ptvinodchobey.blogspot">है.....🌹🌹🌹🙏🙏🙏</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">आज आषाढ़ मास के शुक्ल में पड़ने वाली एकादशी देवशयनी एकादशी है। आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🌺🌹🌺🙏 आज से चातुर्मास प्रारंभ हो गया है। आज से भगवान विष्णु 4 माह के लिए पाताल लोक में योगनिद्रा करने चले जाते हैं। जिसके कारण 4 माह तक किसी भी तरह का शुभ कार्य जैसे यज्ञ, विवाह, व्यापारिक कार्यों का शुभारंभ आदि मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। आइए जानते हैं देवशयनी एकादशी की पूजा विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त को आज 'चौबेजी कहिन'' में जानने का प्रयास करते हैं।</a><br>
</p>
</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त :- </a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">एकादशी तिथि प्रारंभ: 22 जुलाई को सायं 5 बजकर 12 मिनट से।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">एकादशी तिथि समाप्त: 23 जुलाई शाम यानी आज 5 बजकर 58 मिनट तक</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">पारण का समय: 24 जुलाई सुबह 5 बजकर 41 मिनट से 8 बजकर 24 मिनट तक।</a><br>
</p>
</div><p dir="ltr"></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">ज्योतिष के अनुसार सूर्य के मिथुन राशि में आने पर यह एकादशी (पद्मनाभा) आती है। पुराणों में प्राप्त संदर्भों के अनुसार भगवान विष्णु इस दिन से चार मासपर्यन्त (चातुर्मास) पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इसी प्रयोजन से इस दिन को 'देवशयनी' तथा कार्तिकशुक्ल एकादशी (19/11/2018) को प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, वे सभी त्याज्य होते हैं। भविष्य पुराण, पद्म पुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराणके अनुसार हरिशयन को 'योगनिद्रा' कहा गया है। आज हम अपने निवास सड़क -26, शांतिनगर भिलाई-दुर्ग छत्तीसगढ़ में 'हरिशयनी एकादशी व्रतोत्सव' का आयोजन किया है।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">साथियों🌷संस्कृत में धार्मिक साहित्यानुसार 'हरि' शब्द सूर्य, चन्द्रमा, वायु, विष्णु आदि अनेक अर्थो में प्रयुक्त है। साईंटिफ ढंग से देखा जाए तो 🚩हरिशयन🚩 का तात्पर्य इन चार माह में बादल और वर्षा के कारण सूर्य-चन्द्रमा का तेज क्षीण हो जाना उनके शयन का ही द्योतक होता है। इस समय में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शरीरगत शक्ति क्षीण या सो जाती है। आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी खोजा है कि कि चातुर्मास्य में (मुख्यतः वर्षा ऋतु में) विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म रोग जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जल की बहुलता और सूर्य-तेज का भूमि पर अति अल्प प्राप्त होना ही इनका कारण है। अत: सनातनधर्म सद्य: एक प्रमाणित धर्म है जो ना केवल वैज्ञानिक है वरन् व्यावहारिक जीवन को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक है अतएव इस व्रत को हम सभी को इस व्रत को करना चाहिए।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchobey.blogspot">ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ)</a></p></div><p dir="ltr">
<a href="http://ptvinodchobey.blogspot">दूरभाष क्रमांक -09827198828</a></p>
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पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-43860496938822052052018-07-10T22:36:00.001-07:002018-07-10T22:36:48.155-07:00जहां प्रभु श्रीराम ने "
निसिचर हीन करउँ महि " का प्रण किया था वह पावन तीर्थ है 'रामटेक' और यही है वह इकलौता मंदिर जिसके गर्भगृह में रखा गया है भोंसले राजाओं का 'शस्त्र-शस्त्र' (जरुर पढें यह रोचक एवं तथ्यपरक आलेख)🙏<p dir="ltr">चौबेजी कहिन:- जहां प्रभु श्रीराम ने "<br>
निसिचर हीन करउँ महि " का प्रण किया था वह पावन तीर्थ है 'रामटेक' और यही है वह इकलौता मंदिर जिसके गर्भगृह में रखा गया है भोंसले राजाओं का 'शस्त्र-शस्त्र' (जरुर पढें यह रोचक एवं तथ्यपरक आलेख)🙏</p>
<p dir="ltr">11/07/2018<br>
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ प्रण कीन्ह। <br>
सकल मुनिन्ह के आश्रमहि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥ अरण्य काण्ड<br>
भावार्थ श्री रामजी ने भुजा उठाकर प्रण किया कि मैं पृथ्वी को राक्षसों से रहित कर दूँगा। फिर समस्त मुनियों के आश्रमों में जा-जाकर उनको (दर्शन एवं सम्भाषण का) सुख दिया॥9॥<br>
🚩🚩🙏🚩🚩<br>
श्रीरामचरितमानस के तृतीय सोपान अरण्य काण्ड मे प्रभु श्रीराम ने जिस स्थान पर समस्त पृथ्वी को 'निसिचर हीन' करने का संकल्प लिया, वह पवित्र स्थान 'रामटेक' है, जो महाराष्ट्र में स्थित है, इसी स्थान पर कविकुल गुरु महाकवि कालिदास जी ने 'मेघदूत' काव्य का वर्णन किया। मुझे इस पावन भूमि पर कल (10/07/2018) प्रभु श्रीराम का दर्शन एवं महाकवि कालिदास स्मारक का पावन *सौभाग्य* प्राप्त हुआ, जिसका पूरा श्रेय आदरणीय डॉ. नरेन्द्र प्रसाद दीक्षित, पूर्व कुलपति (दुर्ग विश्वविद्यालय, छ.ग.) जी के सान्निध्य को जाता है और इस ऐतिहासिक 'रामटेक यात्रा' को चिरंजीवी बनाने में अहम भूमिका श्री देशदीपक सिंह जी की रही।<br>
विश्व का यह एक इकलौता मंदिर है जहां श्रीराम मंदिर के गर्भगृह में अस्त्र-शास्त्र रखा गया है । 'रामटेक' स्थित भगवान श्रीराम के इस ऐतिहासिक तीर्थ के बारे में जितना कहा जाए वह कम है, दुर्ग विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति रहे डॉ. नरेन्द्र प्रसाद दीक्षित ने बताया की तीसरी शताब्दी में यहां 'वाकाटक नरेशों ' का किला था।<br>
वाकाटक शब्द का प्रयोग प्राचीन भारत के एक राजवंश के लिए किया जाता है जिसने तीसरी सदी के मध्य से छठी सदी तक शासन किया था। स्यात्‌ वकाट नामक मध्यभारत में यह स्थान रहा हो, जहाँ पर शासन करनेवाला वंश वाकाटक कहलाया। अतएव प्रथम राजा को अजंता लेख में "वाकाटक वंशकेतु:" कहा गया है। इस राजवंश का शासन मध्यप्रदेश के अधिक भूभाग तथा प्राचीन बरार (आंध्र प्रदेश) पर विस्तृत था, जिसके सर्वप्रथम शासक विन्ध्यशक्ति का नाम वायुपुराण तथा अजंता के लेख में मिलता है। संभवत: विंध्य पर्वतीय भाग पर शासन करने के कारण प्रथम राजा 'विंध्यशक्ति' की पदवी से विभूषित किया गया। डॉ. दीक्षित कहते हैं यदि बात की जाए काव्यों के रचनाकारों की तो महाकवि कालिदास जी के 'मेघदूत' काव्य में इस पर्वत श्रृंखला को 'रामगिरि' के रुप में प्रतिष्ठित किया तो अन्य काव्यों में जैसे प्राकृत काव्य तथा सुभाषित को "वैदर्भी शैली" का नाम दिया गया है। वाकाटकनरेश वैदिक धर्म के अनुयायी थे, इसीलिए अनेक यज्ञों का विवरण लेखों में मिलता है। कला के क्षेत्र में भी इसका कार्य प्रशंसनीय रहा है। <br>
श्री देशदीपक सिंह जी ने बताया कि 28/9/1925 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना के बाद प.पू. डॉक्टर हेडगेवार जी इस ऐतिहासिक तीर्थ 'रामटेक' आये थे। बार-बार इस पावन भूमि पर डॉक्टर हेडगेवार जी इसलिए आते थे क्योंकि भारत माता के रक्षार्थ मुगलों से कई बार 'भोंसले' राजाओं ने युद्ध किया, आज भी इस मंदिर में 'भोंसले' राजाओं के 'अस्त्र-शस्त्र' इस मंदिर के गर्भगृह में देखें जा सकते हैं। श्री देशदीपक जी ने इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक जुड़ाव के बारे बताया कि- इंडियन एंटी क्वेरी खंड 37 पेज 204 के अनुसार यह लेख 80 पंक्तियों का है परन्तु बहुत सी मिट गई है। लेख के अधिक अंश में रामटेक के तीर्थो का वर्णन है। जिसमें हैहय वंशी राजा ब्रम्हदेव के सम्बन्ध में है जो रायपुर और खल्लारी के लेख में आते है। उसमें रामटेक में लक्ष्मण मंदिर का जिक्र किया गया है।<br>
वनवास के समय राम के 'टिकने का स्थान' या 'पड़ाव' को 'रामटेक' कहा जाता है। कुछ विद्वानों के मत में यह महाकवि कालिदास के 'मेघदूत' में वर्णित रामगिरि है। यहाँ विस्तीर्ण पर्वतीय प्रदेश में अनेक छोट-छोटे सरोवर स्थित हैं, जो शायद 'पूर्वमेघ' में उल्लिखित 'जनकतनया स्नान पुण्योदकेषु' में निर्दिष्ट जलाशय हैं। इस पवित्र तीर्थ में भगवान श्रीराम वनवास काल में राम, लक्ष्मण तथा सीता इस स्थान पर रहे थे। रामचंद्र जी का एक सुंदर मंदिर ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। मंदिर के निकट विशाल वराह की मूर्ति के आकार में कटा हुआ एक शैलखंड स्थित है। रामटेक को 'सिंदूरगिरि' भी कहते हैं। इसके पूर्व की ओर 'सुरनदी' या 'सूर्यनदी' बहती है। इस स्थान पर एक ऊंचा टीला है, जिसे गुप्तकालीन बताया जाता है। चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त ने रामगिरि की यात्रा की थी। इस तथ्य की जानकारी 'रिद्धपुर' के ताम्रपत्र लेख से होती है। प्राचीन जनश्रुति के अनुसार रामचंद्र जी ने शंबूक का वध इसी स्थान पर किया था। रामटेक में जैन मन्दिर भी है। कुछ विद्वानों का मत है कि कालिदास के 'मेघदूत' का रामगिरि यही है।<br>
-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका शांतिनगर भिलाई, दुर्ग, छत्तीसगढ़ मोबाइल नं.9827198828</p>
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पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-55221878092538509482018-07-09T17:09:00.001-07:002018-07-09T17:09:33.688-07:00आजादी के बाद ही देश के ''गद्दारों'' ने जिसे ''शारदा देश'' कहा जाता था उस ''कश्मीर'' को ''आतंक की आग में ढकेल दिया....इन सत्ता के भूखे भेड़ियों ने'' <p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">चौबेजी कहिन:- आजादी के बाद ही देश के ''गद्दारों'' ने जिसे ''शारदा देश'' कहा जाता था उस ''कश्मीर'' को  ''आतंक की आग में ढकेल दिया....इन सत्ता के भूखे भेड़ियों ने'' 😪</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">साथियों इस आलेख में दर्द है, पीड़ा है, शहीद जांबाज सैनिकों का शौर्य है, ऋषियों की पवित्र अमरकथा है और एक सत्तारूढ़ गद्दार के गद्दारी की अमरगाथा है जिसने धारा 370 की धधकती ज्वाला में धरती के स्वर्ग कश्मीर को नर्क बना दिया....🤔</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">'चौबेजी कहिन' में आज के ही दिन... पिछले वर्ष 10/7/2018 को अमरनाथ यात्रियों पर अनंतनाग में गद्दारों के सहयोग से गीदड़ आतंकियों ने हमला किया था जिसमें 7 यात्रियों की जान चली गई थी 😪 उनको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए 🌷🌹उस समय मेरे द्वारा लिखा एक आलेख आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूं....इस लेख को हर उस भारतीय को जरूर पढ़ना चाहिए 🙏 जिनके अन्तर्नाद में 'वंदेमातरम्' सदैव निनादित होता है, जिनका हृदय 'भारत माता के जयघोष से सदैव आह्लादित होता है....🚩🚩🚩🇮🇳🔸🔸🔸🇮🇳</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">अमरनाथ के यात्रियों पर हुये हमले में मारे गये शिव-भक्तों के परिजनों की चीख-पुकार न्यूज चैनलों पर सुनकर हमारी धर्मपत्नी श्रीमती रम्भा चौबे ने नम आंखों और रूंधे कण्ठ से मुझसे प्रश्न किया कि - कश्मीर में केवल आतंकी ही रहते हैं क्या..? वाकई मैं स्वयं को असहज महसूस कर रहा था।</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">मित्रों, मुझे आचार्य अभिनव गुप्त जी का स्मरण आया और मैंने....अपनी धर्मपत्नी श्रीमती रम्भा चौबे जी को विस्तृत व समसामयिक तथा प्रागतैहासिक 'शारदा देश'' यानी 'कश्मीर' की यात्रा कराने चल पड़ा...   कश्मीर जिसे ज्ञान-भूमि यानी  ''शारदा देश'' के नाम से जाना जाता था जो 'कन्नौज प्रांत' से 'कश्मीर' तक अमन चैन व सनातन व संस्कृति की उर्वरा भूमि रही आज उस उर्वरा भूमि को " भारतीय स्वतंत्रता के लिये आजाद, भगत, राजगुरू, सुखदेव तथा रामप्रसाद बिस्मिल सहित असंख्य नवयुवकों ने अपने प्राण की आहूति दी उनका स्मरण तो भारत के इन गद्दारों ने करना तक मुनासीब नहीं समझा और गाहे-बेगाहे इनका स्मरण किया भी तो नाम मात्र का.. क्योंकि स्वतंत्र भारत के गलियों से लेकर उच्च संस्थानों तक अधिकतर संस्थानों का  नामकरण अपने 'नाम' किया...खैर यह तो उनके 'भग्न- मानसिकता' का परिचायक है  इन 'गद्दारों' ने भारतीय इतिहास के साथ ऐसा खिलवाड़ किया की 'अकबर' को महान बताया और 'महाराणा प्रताप' के शौर्य को म्यूट कर दिया गया, </a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">'जम्मू एण्ड कश्मीर' का मुद्दा ऐसा विवादित किया गया की वहां आजादी के बाद अब तक असंख्य भारतीय सैनिक शहीद हुये और आज भी वह स्थिति बनी हुई है...और जब कोई 'रक्तबीज राक्षस लश्कर का आतंकी मारा जाता है तो वही देश के गद्दार नेता धर्म की राजनीति, तुष्टिकरण की राजनीति पर आमादा हो जाते हैं और मीडिया भी प्रायोजित ढंग से बड़ी कव्हरेज दिखाती है ...अरे  सत्ता के भूखे गद्दारों ने उसे 'कश्मीर ' का पवित्र ज्ञान-भूमि को...  रक्त-रंजित इतिहास के रुप में उलट-पुलट कर रखने का कुत्सित प्रयास किया..</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">नफ़रत भरी कथित सेक्यूलरिज्म के पैरोकारों को घड़ियाली आंसू बहाने की बजाय .. अमरनाथ यात्रा के श्रद्धालुओं पर लश्कर आतंकी 'अबु स्माईल ' नामक 'रक्तबीज' राक्षस ने कायराना हमला किया इससे ज्यादा ध्यान उसको छुपाकर रखने वाले गद्दारों की भूमिका अहम है उनका पक्ष लेना बंद करें और  जिसकी वजह से 'अबु स्माईल' वहां तक पहुंचा ! पहले उनका सख्ती से विरोध कर उन्हे करें...!</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">  क्योंकि...  भारतीय सत्ता पर बने रहने की हर कोशीश करने वाले देश के गद्दारों ने कभी '' कन्नौज से कश्मीर के पवित्र ज्ञान-भूमि 'शारदा देश' के  सनातनी-इतिहास के पन्नों को पलट कर देखने की ख़ीदमत नहीं की ... क्योंकि उनके सत्ता-प्राप्ति में रोड़ा बन जाता...और भारत की वैश्विक मंच पर कश्मीर जिसे आध्यात्मिक पवित्र भूमि 'शारदा देश' कहा जाता था उसे ''आतंकी साये के प्रदेश के रुप में बदनाम किया जाना लक्ष्य था! तभी तो वहां से ज्ञान-तपस्वी, मां शारदा के वरद पुत्र कश्मीरी पण्डितो को खदेड़ा गया और आज ''मोदी सरकार के कुशल नेतृत्व पर उंगली उठा रहे हैं''</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">खैर, आईये कश्मीर का आध्यात्मिक पवित्र ज्ञान-भूमि के तपस्वी आचार्य अभिनव गुप्त जी चर्चा करते हैं.(ध्यानपूर्वक श्रीमती रम्भा चौबे जी सुनती हुईं गंभीर मुद्रा में) </a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">..आप श्री अभिनव गुप्त जी को वगैर समझे कश्मीर को नहीं समझ पायेंगे.......तो आईये 950 ईसा पूर्व कश्मीर के पवित्र ज्ञान-भूमि पर जन्मे महान दार्शनिक शेषावतारी श्री अभिनव गुप्त जी के जीवन चरित्र के माध्यम से आपको 'कश्मीर' की यात्रा कराता हुं.</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">मुझे आदरणीय श्री जवाहर लाल कौल जी का एक लेख 'श्रद्धादीप समर्पण'  ने बहुत प्रभावित किया उसके कुछ अंश को उन्हीं के शब्दों में रखना चाहुंगा... भारत की ज्ञान-परंपरा में आचार्य अभिनवगुप्त एवं कश्मीर की स्थिति को एक ‘संगम-तीर्थ’ के रुपक से बताया जा सकता है। जैसे कश्मीर (शारदा देश) संपूर्ण भारत का ‘सर्वज्ञ पीठ’ है, वैसे ही आचार्य अभिनव गुप्त संपूर्ण भारतवर्ष की सभी ज्ञान-विधाओं एवं साधनों की परंपराओं के सर्वोपरि समादृत आचार्य हैं। कश्मीर केवल शैवदर्शन की ही नहीं, अपितु बौद्ध, मीमांसक, नैयायिक, सिद्ध, तांत्रिक, सूफी आदि परंपराओं का भी संगम रहा है।</a><br>
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<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">आचार्य अभिनवगुप्त भी अद्वैत आगम एवं प्रत्यभिज्ञा –दर्शन के प्रतिनिधि आचार्य तो हैं ही, साथ ही उनमें एक से अधिक ज्ञान-विधाओं का भी समाहार है। भारतीय ज्ञान दर्शन में यदि कहीं कोई ग्रंथि है, कोई पूर्व पक्ष और सिद्धांत पक्ष का निष्कर्ष विहीन वाद चला आ रहा है और यदि किसी ऐसे विषय पर आचार्य अभिनवगुप्त ने अपना मत प्रस्तुत किया हो तो वह ‘वाद’ स्वीकार करने योग्य निर्णय को प्राप्त कर लेता है। उदाहरण के लिए साहित्य में उनकी भरतमुनिकृत रस-सूत्र की व्याख्या देखी जा सकती है जिसे ‘अभिव्यक्तिवाद’ के नाम से जाना जाता है। भारतीय ज्ञान एवं साधना की अनेक धाराएं अभिनवगुप्तपादाचार्य के विराट् व्यक्तित्व में आ मिलती है और एक सशक्त धारा के रुप में आगे चल पड़ती है।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">       आचार्य अभिनवगुप्त के पूर्वज अत्रिगुप्त (8वीं शताब्दी) कन्नौज प्रांत के निवासी थे। यह समय राजा यशोवर्मन का था। अभिनवगुप्त कई शास्त्रों के विद्वान थे और शैवशासन पर उनका विशेष अधिकार था। कश्मीर नरेश ललितादित्य ने 740 ई. जब कान्यकुब्ज प्रदेश को जीतकर काश्मीर के अंतर्गत मिला लिया तो उन्होंने अत्रिगुप्त से कश्मीर में चलकर निवास की प्रार्थना की। वितस्ता (झेलम) के तट पर भगवान शितांशुमौलि (शिव) के मंदिर के सम्मुख एक विशाल भवन अत्रिगुप्त के लिये निर्मित कराया गया। इसी यशस्वी कुल में अभिनवगुप्त का जन्म लगभग 200 वर्ष बाद (950 ई.) हुआ। उनके पिता का नाम नरसिंहगुप्त तथा माता का नाम विमला था।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">     भगवान् पतञ्जलि की तरह आचार्य अभिनवगुप्त भी शेषावतार कहे जाते हैं। शेषनाग ज्ञान-संस्कृति के रक्षक हैं। अभिनवगुप्त के टीकाकार आचार्य जयरथ ने उन्हें ‘योगिनीभू’ कहा है। इस रुप में तो वे स्वयं ही शिव के अवतार के रुप में प्रतिष्ठित हैं। आचार्य अभिनवगुप्त के ज्ञान की प्रामाणिकता इस संदर्भ में है कि उन्होंने अपने काल के मूर्धन्य आचार्यों-गुरूओं से ज्ञान की कई विधाओं में शिक्षा-दीक्षा ली थी। उनके पितृवर श्री नरसिंहगुप्त उनके व्याकरण के गुरू थे। इसी प्रकार लक्ष्मणगुप्त प्रत्यभिज्ञाशास्त्र के तथा शंभुनाथ (जालंधर पीठ) उनके कौल-संप्रदाय –साधना के गुरू थे। उन्होंने अपने ग्रंथों में अपने नौ गुरूओं का सादर उल्लेख किया है। भारतवर्ष के किसी एक आचार्य में विविध ज्ञान विधाओं का समाहार मिलना दुर्लभ है। यही स्थिति शारदा क्षेत्र काश्मीर की भी है। इस अकेले क्षेत्र से जितने आचार्य हुए हैं उतने देश के किसी अन्य क्षेत्र से नहीं हुए| जैसी गौरवशाली आचार्य अभिनवगुप्त की गुरु परम्परा रही है वैसी ही उनकी शिष्य परंपरा भी है| उनके प्रमुख शिष्यों में क्षेमराज , क्षेमेन्द्र एवं मधुराजयोगी हैं| यही परंपरा सुभटदत्त (12वीं शताब्ती) जयरथ, शोभाकर-गुप्त महेश्वरानन्द (12वीं शताब्दी), भास्कर कंठ (18वीं शताब्दी) प्रभृति आचार्यों से होती हुई स्वामी लक्ष्मण जू तक आती है |</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">      दुर्भाग्यवश यह विशद एवं अमूल्य ज्ञान राशि इतिहास के घटनाक्रमों में धीरे-धीरे हाशिये पर चली गई | यह केवल कश्मीर के घटनाक्रमों के कारण नहीं हुआ | चौदहवीं शताब्दी के अद्वैत वेदान्त के आचार्य सायण -माधव (माधवाचार्य) ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ 'सर्वदर्शन सङ्ग्रह' में सोलह दार्शनिक परम्पराओं का विनिवेचन शांकर-वेदांत की दृष्टि से किया है| आधुनिक विश्वविद्यालयी पद्धति केवल षड्दर्शन तक ही भारतीय दर्शन का विस्तार मानती है और इन्हे ही आस्तिक दर्शन और नास्तिक दर्शन के द्वन्द्व-युद्ध के रूप में प्रस्तुत करती है|आगमोक्त दार्शनिक परम्पराएँ जिनमें शैव, शाक्त, पंचरात्र आदि हैं, वे कही विस्मृत होते चले गए| आज कश्मीर में कुछ एक कश्मीरी  पंडित परिवारों को छोड़ दें, तो अभिनवगुप्त के नाम से भी लोग अपरिचित हैं| भारत को छोड़ पूरे विश्व में अभिनवगुप्त और काश्मीर दर्शन का अध्यापन आधुनिक काल में होता रहा है लेकिन कश्मीर विश्वविद्यालय में, उनके अपने वास-स्थान में उनकी अपनी उपलब्धियों को संजोनेवाला कोई नहीं है। काश्मीरी आचार्यों के अवदान के बिना भारतीय ज्ञान परंपरा का अध्ययन अपूर्ण और भ्रामक सिद्ध होगा। ऐसे कश्मीर और उनकी ज्ञान परंपरा के प्रति अज्ञान और उदासीनता कहीं से भी श्रेयस्कर नहीं है।...</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">आज कश्मीर को उसकी असल 'कश्मीरी़यत की पूर्व संस्कृति पर छोड़कर वहां से धारा 370 हटा लिया जाय और कश्मीरी पण्डितों को घर-वापसी करा दिया जाय तो'' तो पुन: कश्मीर 'शारदा देश' हो जायेगा और वह ' आध्यात्मिक पवित्र ज्ञान-भूमि की उन्नत सनातन संस्कृति की कृषि भूमि बन जायेगी'। </a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, </a><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com"><u>भिलाई</u></a><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">, दुर्ग (छत्तीसगढ)</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">दूरभाष क्रमांक -09827198828</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">(कृपया इस लेख को कोई कॉपी-पेस्ट ना करें ऐसा करते पाये जाने पर  ' ज्योतिष का सूर्य' वैधानिक कार्यवाही करने को बाध्य होगा)</a></p>
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1/7/2018<br>
साथियों नमस्कार 🙏 आज 'चौबेजी कहिन' में 'डॉक्टर्स डे' <u>पर</u> आपको एक ऐसे डॉक्टर से परिचय कराता हूं जिन्हें 'गरीबों का मसीहा' और 'दूसरा भगवान' का दर्जा देती है भिलाई की जनता । वह शख्सियत हैं डॉ 'गोपीनाथ'🌹</p>
<p dir="ltr">आज 'डॉक्टर दिवस' है, आप सभी को बहुत बहुत बधाई, साथ ही भिलाई निवासी 'ग़रीबों का मसीहा' के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले हम सब के प्रेरणास्रोत आदरणीय डॉ. गोपीनाथ जी <span style="background-color:#D8DFEA;">Gopinath Kandaswamy</span> जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🌺🌹🌺 आपको ईश्वर ऐसी शक्ति प्रदान करते रहें की 'शताधिक वर्षों तक यूं ही गरीबों की सेवा करते रहें' 🙏🙏</p>
<p dir="ltr">वैसे तो डॉक्टर गोपीनाथ जी किसी सरकारी सम्मान के मोहताज नहीं हैं, क्योंकि उनको 'दूसरा भगवान' शब्द से भिलाई की आम जनता बहुत सम्मान देती है 🙏 किन्तु छत्तीसगढ़ सरकार को भी ऐसे डॉक्टरों को अलंकृत करना चाहिए 😊<br>
श्री गोपीनाथ जी ऐसे चिकित्सक हैं जिन्होंने भिलाई के 'लालबहादुर शास्त्री चिकित्सालय' को 'गरीबों की आशा' के रुप में प्रतिष्ठित किया, और आज सेवानिवृत्त होने के बावजूद आज भी गरीबों के चिकित्सा सेवा में लगे हुए हैं, इनको यहां की जनता दूसरे भगवान के सदृश सम्मान देती है 🙏 <br>
वाकई जब भी मैं इस महान शख्सियत डॉ गोपीनाथ जी के बारे में लिखता हूं तो मेरी आंखें नम हो जाती हैं, जीवन में कई घटनाएं ऐसी होती हैं जिसे कभी भूला नहीं जा सकता!🙏<br>
हमारे पिता स्व.श्रीरामजी चौबे जी की तबीयत अचानक खराब हुई उनकी पीड़ा देखकर बेहद परेशान था, आप तो जानते ही हैं परेशान व्यक्ति को मंत्रणाओं की भरमार हो जाती है, मैं चिन्तित था, इसी दौरान मेरा एक डॉक्टर के वेश में एक 'शैतान' के यहां जाना हुआ, उसने कहा कि - अपने पिताजी को कल एडमिट कर दो, कल शाम को ऑपरेशन कर दूंगा मामूली सा 'व्रण' है ऑपरेट कर दूंगा ठीक हो जाएगा ...आप आज 7500/रु.जमा कर दीजिए ! मैंने सोचा जब ऑपरेशन ही कराना है तो एक बार डॉ गोपीनाथ जी से राय ले लेता हूं यह सोचकर डॉ गोपीनाथ जी को फोन किया लेकिन वह फोन रिसीव नहीं कर पाए, मैंने उनके सहयोगी श्री इन्द्रनील श्रीवास्तव <span style="background-color:#D8DFEA;">Indraneel Srivastava</span> जी को फोन किया उन्होंने कहा आप सेक्टर-2 क्लिनिक में आ जाईए डॉ गोपीनाथ जी आ ही रहे हैं, मैं सुपेला से सेक्टर-2 के लिए पिताजी को लेकर चल पड़ा तब तक डॉक्टर साहब का भी फोन आ गया, मैं जब वहां पहुंचा तो डॉ गोपीनाथ जी ने कहा कि- आपके पिताजी को यह सामान्य 'व्रण' नहीं है और ना ही इसका आप वगैर (वायएप्सी) जांच कराये, ऑपरेशन कराईए क्योंकि ऑपरेशन के बाद तेजी से कैंसर बहुत तेज़ी से फैल जायेगा! 😪<br>
मैंने कहा - एक डॉक्टर तो कल ही ऑपरेशन करने का सुझाव दिया है, तब डॉक्टर गोपीनाथ जी मुस्कुराते हुए ऑपरेशन कराने से मना कर दिए! <br>
जांच रिपोर्ट आने के बाद डॉक्टर गोपीनाथ जी के मित्र डॉ आर.पी. सिंह (सेक्टर9) सर्जन एवं डॉ.केकडे द्वारा इलाज हुआ, पिताजी तो बच नहीं पाये क्योंकि उनको प्रोस्टेश कैंसर अन्तिम स्टेज पर था और उनके उम्र के मुताबिक 'कीमो' भी नहीं दे सकते थे, अत: चार माह के बाद उनकी मृत्यु हुई! <br>
साथियों, यदि पिताजीका ऑपरेशन करा दिया होता और डॉ गोपीनाथ जी से मुलाकात नहीं करता तो शायद पिताजी 15 दिन भी जीवित नहीं बच पाते । <br>
हालांकि हमने अपने पिताजी के जांच रिपोर्ट को हमने देश के कई कैंसर हॉस्पिटल के स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को भेजकर हर संभावनाओं को तलाशने की कोशिश की जिसमें कई हमारे शिष्यों ने सहयोग किया ! उस समय निवर्तमान छत्तीसगढ़ सरकार में संसदीय सचिव (गृह,जेल एवं सहकारिता) श्री विजय बघेल <span style="background-color:#D8DFEA;">Vijay Baghel</span> जी ने भी अपने स्तर पर भारत के जाने माने डॉक्टरों की सलाह ली, परन्तु जो सलाह डॉक्टर गोपीनाथ जी ने दी वही सलाह सभी डॉक्टरों ने दी! <br>
डॉ गोपीनाथ जी ने कभी भी 'रोगी' को 'ग्राहक' नहीं समझे जो भी उनसे करते बनता वह नि: स्वार्थ भाव से सही इलाज करते, और सटीक सलाह! सहज, सरल और उनका मिलनसार स्वभाव के धनी व्यक्तित्व डॉ. गोपीनाथ जी को महान शख्सियत बनाते हुए, ग़रीबों का मसीहा बनाता है और हजारों लोगों के लिए 'दूसरा भगवान' भी! तभी तो संयुक्त मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ राज्य बनने तक उनके सेवाकाल में कई सरकार आई और गई परन्तु कोई उनका ट्रांसफर नहीं कर पाया, जरा भी उनके ट्रांसफर की बात सुनाई देती आसपास के रहवासियों ने धरना प्रदर्शन करके डॉ गोपीनाथ जी का ट्रांसफर नहीं होने दिया।</p>
<p dir="ltr"> ऐसा कम ही देखने को मिलता है जब एक सरकारी डॉक्टर के प्रति आम लोगों का जुड़ाव हो! लेकिन दु:ख की बात यह है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने आजतक कोई 'शासकीय सम्मान' नहीं दिया, जबकि इनको 'शासकीय अलंकरण' दिया जाना चाहिए, ताकि इससे प्रेरित होकर छत्तीसगढ़ में 'शताधिक डॉ.गोपीनाथ' बन सकें🙏 ऐसे महापुरुष के बारे में जितना लिखा जाए कम है, आपको पुन: जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🌺🌹🌺🙏<br>
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य'राष्ट्रीय मासिक पत्रिका शांतिनगर भिलाई, 9827198828<br>
</p>
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पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-65889617646388694472018-06-27T05:39:00.001-07:002018-06-27T05:39:38.640-07:00मित्र धर्म...<p dir="ltr"><b>मित्र धर्म</b> 🕉️🕉️</p>
<p dir="ltr">एक बार उद्धव जी ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा  हे "कृष्ण"आप तो महाज्ञानी हैं, भूत, वर्तमान व भविष्य के बारे में सब कुछ जानने वाले हो आपके लिए कुछ भी असम्भव नही,में आपसे मित्र धर्म की परिभाषा जानना चाहता हूँ.उसके गुण धर्म क्या क्या हैं।</p>
<p dir="ltr">भगवान बोले उद्धव सच्चा मित्र वही है जो विपत्ति के समय बिना मांगे ही अपने मित्र की सहायता करे.उद्धव जी ने बीच मे रोकते हुए कहा "हे कृष्ण" अगर ऐसा ही है तो फिर आप तो पांडवों के प्रिय बांधव थे.एक बांधव के रूप में उन्होंने सदा आप पर विश्वास किया किन्तु आपने सच्चे मित्र की जो परिभाषा दी है उसके अनुरूप मित्रता नही निभाई.आप चाहते तो पांडव जुए में जीत सकते थे।</p>
<p dir="ltr">आपने धर्मराज युधिष्ठिर को जुआ खेलने से क्यों नही रोका. ठीक है आपने उन्हें नहीं रोका,लेकिन यदि आप चाहते तो अपनी दिव्य शक्ति के द्वारा पासे को धर्मराज के पक्ष में भी तो कर सकते थे लेकिन आपने भाग्य को धर्मराज के पक्ष में भी नहीं किया। </p>
<p dir="ltr">आप कम से कम उन्हें धन, राज्य और स्वयं को हारने के बाद भी तो रोक सकते थे उसके बाद जब धर्मराज ने अपने भाइयों को दांव पर लगाना शुरू किया, तब तो आप सभाकक्ष में पहुँच सकते थे।</p>
<p dir="ltr">किंतु आपने ये भी नहीं किया.इसके बाद जब दुष्ट दुर्योधन ने पांडवों को भाग्यशाली कहते हुए द्रौपदी को दांव पर लगाने हेतु प्रेरित किया और जीतने पर हारा हुआ सब कुछ वापस कर देने का लालच दिया कम से कम तब तो आप हस्तक्षेप कर ही सकते थे।</p>
<p dir="ltr">लेकिन इसके स्थान पर आपने तब हस्तक्षेप किया जब द्रौपदी लगभग अपनी लाज खो रही थी, तब जाकर आपने द्रोपदी के वस्त्र का चीर बढ़ाकर द्रौपदी की लाज बचाई किंतु ये भी आपने बहुत देरी से किया उसे एक पुरुष घसीटकर भरी सभा में लाता है, और इतने सारे पुरुषों के सामने निर्वस्त्र करने के लिए छोड़ देता है. जब आपने संकट के समय में पांडवों की सहायता की ही नहीं की तो आपको आपदा बांधव (सच्चा मित्र) कैसे कहा जा सकता है. क्या यही धर्म है।</p>
<p dir="ltr">भगवान श्री कृष्ण बोले - हे उद्धव सृष्टि का नियम है कि जो विवेक से कार्य करता है विजय उसी की होती है उस समय दुर्योधन अपनी बुद्धि और विवेक से कार्य ले रहा था किंतु धर्मराज ने तनिक मात्र भी अपनी बुद्धि और विवेक से काम नही लिया इसी कारण पांडवों की हार हुई।</p>
<p dir="ltr">भगवान कहने लगे कि हे उद्धव - दुर्योधन के पास जुआ खेलने के लिए धन तो बहुत था, लेकिन उसे पासों का खेल खेलना नहीं आता था, इसलिए उसने अपने मामा शकुनि से द्यूतक्रीडा करवाई यही तो उसका विवेक था धर्मराज भी तो इसी प्रकार विवेक से कार्य लेते हुए ऐसा सोच सकते थे और अपने चचेरे भाई को पासा देकर उनसे चाल चलवा सकते थे या फिर ये भी तो कह सकते थे कि उनकी तरफ से श्री कृष्ण यानी मैं खेलूंगा।</p>
<p dir="ltr">जरा विचार करो कि अगर शकुनी और मैं खेलते तो कौन जीतता ? पांसे के अंक उसके अनुसार आते या मेरे अनुसार,चलो इसे भी छोड़ो. उन्होंने मुझे खेल में शामिल नहीं किया, इसके लिए तो उन्हें क्षमा भी किया जा सकता है लेकिन उन्होंने विवेक हीनता से एक और बड़ी गलती तब की जब उन्होंने मुझसे प्रार्थना की, कि मैं तब तक सभाकक्ष में न आऊँ, जब तक कि मुझे बुलाया न जाए क्योंकि ये उनका दुर्भाग्य था कि वे मुझसे छुपकर जुआ खेलना चाहते थे।</p>
<p dir="ltr">इस प्रकार उन्होंने मुझे अपनी प्रार्थना से बाँध दिया.मुझे सभाकक्ष में आने की अनुमति नहीं थी इसके बाद भी मैं कक्ष के बाहर बहुत समय तक प्रतीक्षा कर रहा था कि मुझे कब बुलावा आता है।</p>
<p dir="ltr">पांडव जुए में इतने डूब गए कि भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव सब मुझे भूल गए और मुझे बुलाने के स्थान पर केवल अपने भाग्य और दुर्योधन को कोसते रहे.अपने भाई के आदेश पर जब दुशासन द्रोपदी को बाल पकड़कर घसीटता हुआ सभाकक्ष में लाया तब वह अपने सामर्थ्य के अनुसार जूझती रही, तब भी उसने मुझे नहीं पुकारा।</p>
<p dir="ltr">उसकी बुद्धि तब जागृत हुई, जब दुशासन ने उसे निर्वस्त्र करना प्रारंभ किया.जब उसने स्वयं पर निर्भरता छोड़कर 'हरि, हरि, अभयम कृष्णा, अभयम' की गुहार लगाते हुए मुझे पुकारा तो में बिना बिलम्ब किये वहां पहुंचा. हे उद्धव इस स्थिति में तुम्हीं बताओ मेरी गलती कहाँ रही।</p>
<p dir="ltr">उद्धव जी बोले कृष्ण आपका स्पष्टीकरण प्रभावशाली अवश्य है, किन्तु मुझे पूर्ण संतुष्टि नहीं हुई, क्या मैं एक और प्रश्न पूछ सकता हूँ ?</p>
<p dir="ltr">कृष्ण की अनुमति से उद्धव ने पूछा – इसका अर्थ यह हुआ कि आप तभी आओगे, जब आपको बुलाया जाएगा.क्या संकट से घिरे अपने भक्त की मदद करने आप स्वतः नहीं आओगे।</p>
<p dir="ltr">भगवान मुस्कुराये - उद्धव सृष्टि में हर किसी का जीवन उसके स्वयं के कर्मों के प्रतिफल के आधार पर चलता है।</p>
<p dir="ltr">में इसमें प्रत्यक्ष रूप से कोई हस्तक्षेप नही करता। मैं तो केवल एक 'साक्षी' हूँ जो सदैव तुम्हारे साथ रहकर जो हो रहा है उसे देखता रहता हूँ. यही ईश्वर का धर्म है।'भगवान को ताना मारते हुए उद्धव जी बोले "वाह वाह, बहुत अच्छा कृष्ण", तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप हमारे नजदीक खड़े रहकर हमारे सभी कर्मों को देखते रहेंगें हम पाप पर पाप करते जाएंगे और आप हमें रोकने के स्थान पर केवल देखते रहेंगे. आप क्या चाहते हैं कि हम भूल करते करते पाप की गठरी बांधते रहें और उसका फल भोगते रहें।</p>
<p dir="ltr">भगवान बोले – उद्धव, तुम धर्म और मित्रता को समीप से समझो, जब तुम समझकर अनुभव कर लोगे कि मैं तुम्हारे साथ हर क्षण रहता हूँ, तो क्या तुम पाप कर सकोगे ?तुम पाप कर ही नही सकोगे और अनेक बार विचार करोगे की मुझे विधाता देख रहा है किंतु जब तुम मुझे भूल जाते हो और यह समझने लगते हो कि तुम मुझसे छुपकर कुछ भी कर सकते हो, तुम्हे कोई देख नही रहा तब ही तुम संकट में फंसते हो।</p>
<p dir="ltr">धर्मराज का अज्ञान यह था उसने समझा कि वह मुझ से छुपकर जुआ खेल सकता हैअगर उसने यह समझ लिया होता कि मैं प्रत्येक प्राणी मात्र के साथ हर समय उपस्थित रहता हूँ तो क्या वह जुआ खेलते।</p>
<p dir="ltr">और यदि खेलते भी तो जुए के उस खेल का परिणाम कुछ और नहीं होता। भगवान के उत्तर से उद्धव जी अभिभूत हो गये और बोले – प्रभु कितना रहस्य छुपा है आपके दर्शन में। </p>
<p dir="ltr">कितना महान सत्य है ये ! पापकर्म करते समय हम ये कदापि विचार नही करते कि परमात्मा की नज़र सब पर है कोई उनसे छिप नही सकता,और उनकी दृष्टि हमारे प्रत्येक अच्छे बुरे कर्म पर है।</p>
<p dir="ltr">परन्तु इसके विपरीत हम इसी भूल में जीते रहते  हैं कि हमें कोई देख नही रहा।प्रार्थना और पूजा हमारा विश्वास है जैसे ही हम यह विश्वास करना शुरू करते हैं कि भगवान हर क्षण हमें देख रहे हैं, उनके बिना पत्ता तक नहीं हिलता तो परमात्मा भी हमें ऐसा ही आभास करा देते हैं की वे हमारे आस पास ही उपस्तिथ हैं और हमें उनकी उपस्थिति का आभास होने लगता है.हम पाप कर्म केवल तभी करते हैं जब हम भगवान को भूलकर उनसे विमुख हो जाते हैं।</p>
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पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-76293365338386888292018-06-22T17:48:00.001-07:002018-06-22T17:48:43.345-07:00चौबे जी कहिन:- 'भीमसेनी (निर्जला) एकादशी' व्रत इन्द्रियों के विग्रह का महापर्व है। दिनभर अर्गर-बर्गर, इज्जा-पिज़्ज़ा और तैलिय खाद्य पदार्थों का सेवन करने वाले 'वृकोदरों' महिने में तीन दिन व्रत जरुर करो..🙏<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">चौबे जी कहिन:- 'भीमसेनी (निर्जला) एकादशी' व्रत इन्द्रियों के विग्रह का महापर्व है। दिनभर अर्गर-बर्गर, इज्जा-पिज़्ज़ा और तैलिय खाद्य पदार्थों का सेवन करने वाले 'वृकोदरों' महिने में तीन दिन व्रत जरुर करो..🙏</a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">23/6/2018</a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">साथियों नमस्कार🙏यथायोग्य मंगल आशीष🌹 सर्वप्रथम 'भीमसेनी (निर्जला) एकादशी व्रत' है इस पावन पर्व पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🙏</a><br>
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</div><div align="center"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">अग्ने व्रतपते ! व्रतम् अहं चरिष्यामि |यत् शक्यं,तत् मे राध्यताम् |इदम् अहम् अनृतात् सत्यम् उपैमि ।</a><br>
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</div><div align="center"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">अर्थात् हे व्रतपति अग्नि ! मैं व्रत करूँगा ! जो मैं कर सकता हूँ उसको करने की शक्ति मुझे प्रदान करो | इस तरह मैं अनृत से सत्य की जाता हूँ | </a></p>
</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">अब आईए विषय प्रवेश करें😊 भारत वेदभूमि है, देवभूमि है, योगभूमि है, यज्ञभूमि है, त्यागभूमि है, और आध्यात्मिकता से पूर्ण पूरी दुनिया को शांति का पाठ पढ़ाने वाला वैज्ञानिक-ऋषि परम्पराओं की पवित्र भूमि भारत है, हे मां भारती प्रणाम 🙏 एकादशी का अर्थ है ग्यारहवीं अर्थात् - ग्यारह दिन यानी संख्या हुई 11जिसमें 5 कर्मेंद्रियां + 5 ज्ञानेन्द्रियां + 1मन =11अर्थात् कर्म, ज्ञान तथा मन को अपने अधिकार में करने वाला दिन है एकादशी। वर्ष में कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष दोनों मिलकर 24 एकादशियां होती है और पुरुषोत्तम मास होने से कुल 26 एकादशी व्रत किया जाता है, मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी से इस व्रत का आरंभ किया जाता है, इन एकादशियों में आज यानी 'भीमसेनी एकादशी' व्रत है जिसे निर्जला व्रत किया जाता है, महाभारतीय पांच पाण्डवों में 'भीम' ने इस व्रत को किया था, इसलिए 'भीमसेनी' एकादशी व्रत नाम पड़ा । भीम को 'वृक' कहा गया है अर्थात् भोजन अधिक करने वाला या यूं कहें कि वगैर भोजन किसे वह एक दिन भी नहीं रह पाते थे, बावजूद ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को वे निर्जला एकादशी व्रत किया करते थे, अर्थात् आज के इस आधुनिक परिवेश में 'भीम' के बदलते स्वरूप हम सभी तो हैं जो तरह-तरह के पकवान खाने वाले 'वृकोदर' रुपी जीव हैं, जो दिन भर कुछ ना कुछ अर्गर-बर्गर, इज्जा-पिज़्ज़ा आदि आदि तैलिय खाद्य पदार्थ खाते ही रहते हैं, इन्हीं बातों का ध्यान रखते हुए हमारे ऋषि मुनियों ने हर माह में पड़ने वाले तीन दिन एकादशी (2 दिन) एवं पुर्णिमा (1 दिन) इन तीन दिन हर व्यक्ति को इन्द्रिय-निग्रह करने के लिए 'व्रत' रखने का विधान बताया। ताकि चित्त-शुद्धि और उदर विकार से मुक्ति मिल सके! 'व्रत’ शब्द ‘वृ’ धातुसे बना है । भिन्न-भिन्न अर्थ हैं संकल्प, इच्छा, आज्ञापालन, उपासना, प्रतिज्ञा इत्यादि अब आईए आज 'चौबेजी कहिन' में इस विषय को विस्तार से समझने का प्रयास करें, ऐतरेय ब्राह्मणग्रंथमें 'यज्ञात् भवति पर्जन्यः’ ऐसा वचन है अर्थात ‘व्रत’ एक यज्ञ है, इसलिए इससे पर्जन्य, विश्वशांति जैसे लाभ होते हैं । यज्ञ विधि का फल है स्वर्गप्राप्ति, जो मृत्युपश्चात प्राप्त होता है । किन्तु व्रतोंके संदर्भमें ऐसा नहीं है । व्रतोंके फल व्रतकर्ता को इसी जन्म में ही प्राप्त होते हैं । क्योंकि वैदिक यज्ञ कुछ ही लोग कर पाते है; परंतु व्रत कोई भी कर सकता है, इस दृष्टिसे यज्ञकी तुलनामें यह व्रत श्रेष्ठ है ।</a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">पद्मपुराण के 63 वें अध्याय में एक प्रसंग मिलता है-</a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">न किंचिद्विद्यते राजन्सर्वकामप्रदं नृणाम्।।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">एकाशनं दशम्यां च नंदायां निर्जलं व्रतम् ।।१२।।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">पारणं चैव भद्रायां कृत्वा विष्णुसमा नराः।।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">श्रद्धावान्यस्तु कुरुते कामदाया व्रतं शुभम् ।।१३।।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">वांछितं लभते सोऽपि इहलोके परत्र च।।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">पवित्रा पावनी ह्येषा महापातकनाशिनी ।।१४।। उपरोक्त प्रसंग में एकादशी व्रत की महनियता का वर्णन किया गया है। वास्तव में जितने भी व्रत उपवास आदि पुराणों में बताए गए हैं उन सबका अभिप्राय व्यक्तियों को अपने दुर्गुणों पर विजय प्राप्त करके आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर करना ही रहा है ।</a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">🌄23 जून 2018 शनिवार को प्रातः 03:20 से 24 जून 2018 रविवार को प्रातः 03:52 तक एकादशी है । इस व्रत को आज शनिवार को व्रत (उपवास) रखें। गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र से विधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें :</a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">" देवदेव हृषीकेश संसारार्णवतारक ।</a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">उदकुम्भप्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥"</a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com"> अर्थ:- ‘संसारसागर से तारनेवाले हे देवदेव ह्रषीकेश ! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये ।’</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">इस प्रकार व्रत रखते हुए भीमसेनी एकादशी का हर सनातन धर्मावलंबियों को इस व्रत का पूण्लाभ अवश्य लेना चाहिए, पौराणिक साहित्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी कहीं ना कहीं मानव जाति को लाभान्वित करने वाले हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति को हर माह में कम से कम तीन दिन व्रत रखना ही चाहिए, इससे सत्वगुणी व्यक्तित्व प्रादुर्भाव होता है, और सच्चरित्रता का विकास भी। अगले ''चौबेजी कहिन" में 'उपवास' शब्द की व्याख्यात्मक आलेख प्रस्तुत करुंगा।। सनातन धर्म की जय।। भारत माता की जय।। वंदेमातरम् 🚩।। आपका दिन शुभ हो 🙏🌷</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com"> -आचार्य पण्डित विनोद चौबे , संपादक- ' ज्योतिष का सूर्य'राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, हाऊस नं- 1299, सड़क- 26, शांतिनगर भिलाई, ज़िला- दुर्ग (छ.ग.) मोबाइल नं-9827198828</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubeyblogspot.com">आपको यह लेख कैसा लगा 😊?? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें 🙏 कॉपी पेस्ट बहादुर दूरी बनाए रखें 🙏 और जो मित्र इसे शेयर करना चाहते हैं वे शेअर अवश्य करें 🙏 किन्तु लेखक का सम्मान करते हुए 🙏</a><br>
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<div class="blogger-post-footer">'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के सदस्यता हेतु।
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पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-61237660488846239812018-06-17T05:05:00.001-07:002018-06-17T05:05:51.243-07:00चौबेजी कहिन:- 'मातृ-पितृ चरण कमलेभ्यो नमः' का उद्घोष करने वाले भारत में 'फादर्स डे' की अहमियत क्यों...? <p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">चौबेजी कहिन:- 'मातृ-पितृ चरण कमलेभ्यो नमः' का उद्घोष करने वाले भारत में 'फादर्स डे' की अहमियत क्यों...?</a> हे 'इण्डिया' वालों आओ 'भारत' की ओर लौट चलें 🚩🙏🚩</p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">(यह आलेख पांच मिनट का समय निकालकर हर एक भारतीय को जरूर पढ़ना चाहिए 🙏)</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">17/6/2018</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">वैश्विक स्तर पर विशेष दिवस के रूप में अनेक पर्व एवं कार्यक्रम प्रचलित होने लगे हैं, जिनमें से एक ‘पितृ-दिवस’ यानी ‘फादर्स डे’ भी है। दुनिया में यह अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है। भारत, अमेरिका, श्रीलंका, अफ्रीका, पाकिस्तान, बर्मा, बांग्लादेश, जापान, चीन, मलेशिया, इंग्लैण्ड आदि दुनिया के सभी प्रमुख देशों में इसे जून के तीसरे रविवार को मनाते हैं। भारत में पिछले कुछ वर्षों से ‘पितृ-दिवस’ के प्रति रूझान में बड़ी तेजी से बढ़ौतरी दर्ज की जा रही है। ‘फादर्स डे’ मनाने की शुरूआत पश्चिमी वर्जीनिया के फेयरमोंट में 5 जुलाई, 1908 को हुई थी। इसका मूल उद्देश्य 6 दिसम्बर, 1907 को पश्चिम वर्जीनिया के मोनोंगाह की एक खान दुर्घटना में मारे गए 210 पिताओं को सम्मान देना था। ‘फादर्स डे’ के मूल में पश्चिमी वर्जीनिया की एक दर्दनाक खान दुर्घटना मौजूद हो, लेकिन भारत में अपने माता-पिता और गुरु को सम्मान देने और उन्हें भगवान समान समझने के संस्कार एवं नैतिक दायित्व चिरकाल से चलते आ रहे हैं। भारतीय संस्कृति में ‘पितृ-दिवस’ के मायने ही अलग हैं। यहां इस दिवस का मुख्य उद्देश्य अपने पिता द्वारा उनके पालन-पोषण के दौरान किए गए असीम त्याग और उठाए गए अनंत कष्टों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना अथवा स्वर्गीय पिताश्री की स्मृतियों को संजोना है ताकि हम एक श्रेष्ठ एवं आदर्श संतान के नैतिक दायित्वों का भलीभांति पालन कर सकें। इस तरह के सुसंकार भारतीय संस्कृति में कूट-कूटकर भरे हुए हैं। हर रोज 'मातृ-पितृ चरण कमलेभ्यो नमः' का उद्घोष करने वाला 'भारत' वर्ष में 17 दिन पितृपक्ष माता-पिता को समर्पित करने वाले कथित पढ़े-लिखे भारतीयों में नकल करने की आदत बन चुकी है, जिन संकिर्णता भरी अभारतीय संस्कृतियों की उदासीनता तो देखिए जिन्होंने वर्ष का मात्र 2 दिन दिन ही माता-पिता के लिए समर्पित किया एक दिन 'मदर्स डे' और दूसरा 'फादर्स डे' अर्थात् 'पितृ दिवस' के रुप में दिया, उनका हमारे भारतीय समाज के लोग बड़ी तेजी से अनुसरण कर रहे हैं, जो ना केवल हास्यास्पद है बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ियों को पाश्चात्य संस्कृति के दल-दल में ढकेलने का कुत्सित प्रयास है! </a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">'प्रात काल उठि के रघुनाथा !</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">मात-पिता गुरु नावहीं माथा !!</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">संभवतः यदि आप लोग अपने बच्चों को गोस्वामी तुलसीदास जी के इस चौपाई का अनुसरण कराते तो शायद देश में मिशनरियों, गैर मिशनरियों द्वारा संचालित 'वृद्धाश्रम' में जाने की जरूरत नहीं पड़ती ! वक्त है अब से चेत जाओ और 'फादर्स डे' की ओर से 'मातृ-पितृ चरण कमलेभ्यो नमः' की ओर वापस लौट आओ! हमारे पिता स्वर्गीय श्री रामजी चौबे एवं बड़े पिताजी स्व.श्री रमाकांत चौबे एवं माता स्व. माया देवी चौबे तथा बड़ी मां स्व.कलावती देवी चौबे जी आप सभी के श्री चरणों में सादर नमन🙏🌹</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">आज रविवार को अवकाश का दिन है सभी की छुट्टियां रहतीं हैं, इसलिए 'मैं अपने निवास 'भिलाई के शांतिनगर में ही रहता हूं, क्योंकि आज 'ज्योतिष, हस्तरेखा एवं वास्तु' कन्टसल्टिंग क्लांइटों की संख्या अधिक होने से अन्य दिनों की अपेक्षा आज अधिक व्यस्तता होती है, उसी व्यस्तता में हमारे वरिष्ठ एवं मार्गदर्शक श्री कनिरामजी (सहप्रांत प्रचार प्रमुख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ छत्तीसगढ़) रायपुर जी का फोन आया उन्होंने कहा कि- चौबे जी आज 'फादर्स डे' इस विषय पर आप एक प्रेरक आलेख अवश्य लिखें, मैंने कहा जी आदरणीय 🙏 'चौबेजी कहिन' के संस्करण में आपके समक्ष यह आलेख प्रस्तुत करता हूं....🙏 साथियों आज सोशल मीडिया 'फादर्स डे' की 'कंग्रुचुलेशन' से अटा पड़ा है, मुझे लगा 😊 कि आज इस विषय पर आपको अपनी संस्कृति से अवगत कराऊंगा....</a></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">भारतीय संस्कृति और पौराणिक साहित्य में माता-पिता और गुरु को जो सर्वोच्च सम्मान और स्थान दिया गया है, शायद उतना कहीं और किसी सभ्यता व संस्कृति में देखने को नहीं मिलेगा। हिन्दी साहित्य में ‘पिता’ को ‘जनक’, ‘तात’, ‘पितृ’, ‘बाप’, ‘प्रसवी’, ‘पितु’, ‘पालक’, ‘बप्पा’ आदि अनेक पर्यायवाची नामों से जाना जाता है। पौराणिक साहित्य में श्रवण कुमार, अखण्ड ब्रह्चारी भीष्म, मर्यादा पुरुषोत्तम राम आदि अनेक आदर्श चरित्र प्रचुर मात्रा में मिलेंगे, जो एक पिता के प्रति पुत्र के अथाह लगाव एवं समर्पण को सहज बयां करते हैं। वैदिक ग्रन्थों में ‘पिता’ के बारे में स्पष्ट तौर पर उल्लेखित किया गया है कि ‘पाति रक्षति इति पिता’ अर्थात जो रक्षा करता है, ‘पिता’ कहलाता है। यास्काचार्य प्रणीत निरूक्त के अनुसार, ‘पिता पाता वा पालयिता वा’, ‘पिता-गोपिता’ अर्थात ‘पालक’, ‘पोषक’ और ‘रक्षक’ को ‘पिता’ कहते हैं। महाभारत में ‘पिता’ की महिमा का बखान करते हुए कहा गया है:-</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परम तपः।</a></p><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"> पितरि प्रितिमापन्ने सर्वाः प्रीयन्ति देवताः ।।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अर्थात ‘पिता’ ही धर्म है, ‘पिता’ स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तपस्या है। ‘पिता’ के प्रसन्न हो जाने से सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं। इसके साथ ही कहा गया है कि </a>-</p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">‘पितु र्हि वचनं कुर्वन न कन्श्चितनाम हीयते’ </a></p><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अर्थात ‘पिता’ के वचन का पालन करने वाला दीन-हीन नहीं होता। वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड में पिता की सेवा करने व उसकी आज्ञा का पालन करने के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा गया है:-</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"> न तो धर्म चरणं किंचिदस्ति महत्तरम्। </a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">यथा पितरि शुश्रुषा तस्य वा वचनक्रिपा।। </a></p><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अर्थात, पिता की सेवा अथवा, उनकी आज्ञा का पालन करने से बढ़कर कोई धर्माचरण नहीं है। हरिवंश पुराण के विष्णुपर्व में पिता की महत्ता का बखान करते हुए कहा गया है:-</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"> दारूणे च पिता पुत्र नैव दारूणतां व्रजेत। </a></p><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">पुत्रार्थ पदःकष्टाः पितरः प्रान्पुवन्ति हि।। </a></p><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अर्थात, पुत्र क्रूर स्वभाव का हो जाए तो भी पिता उसके प्रति निष्ठुर नहीं हो सकता, क्योंकि पुत्रों के लिए पिताओं को कितनी ही कष्टदायिनी विपत्तियाँ झेलनी पड़ती हैं। महाभारत में युधिष्ठर ने यज्ञ के एक सवाल के जवाब में आकाश से ऊँचा ‘पिता’ को कहा है और यक्ष ने उसे सही माना भी है। इसका अभिप्राय है कि पिता के हृदय-आकाश में अपने पुत्र के लिए जो असीम प्यार होता है, वह अवर्णनीय है। पद्मपुराण में माता-पिता की महत्ता बड़े ही सुनहरी अक्षरों में इस प्रकार अंकित है:-</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"> सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता। </a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">मातरं पितरं तस्मात सर्वयत्रेन पुतयेत्।। </a></p><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">प्रदक्षिणीकृता तेन सप्त द्वीपा वसुंधरा। </a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">जानुनी च करौ यस्य पित्रोः प्रणमतः शिरः। </a></p><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">निपतन्ति पृथ्वियां च सोअक्षयं लभते दिवम्।।</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अर्थात, माता सभी तीर्थों और पिता सभी देवताओं का स्वरूप है। इसलिए सब तरह से माता-पिता का आदर सत्कार करना चाहिए। जो माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सात द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है। माता-पिता को प्रणाम करते समय जिसके हाथ घुटने और मस्तिष्क पृथ्वी पर टिकते हैं, वह अक्षय स्वर्ग को प्राप्त होता है। मनुस्मृति में महर्षि मनु भी पिता की असीम महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं:-</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">उपाध्यान्दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता। </a></p><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">सहस्त्रं तु पितृन माता गौरवेणातिरिच्यते।। </a></p><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अर्थात, दस उपाध्यायों से बढ़कर ‘आचार्य’, सौ आचार्यों से बढ़कर ‘पिता’ और एक हजार पिताओं से बढ़कर ‘माता’ गौरव में अधिक है, यानी बड़ी है। ‘पिता’ के बारे में मनुस्मृति में तो यहां तक कहा गया है: ‘‘पिता मूर्ति: प्रजापतेः’’ अर्थात, पिता पालन करने से प्रजापति यानी राजा व ईश्वर का मूर्तिरूप है। </a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">माता-पिता के ऋण से मुक्त होना असम्भव है। इसीलिए, माता-पिता तथा आचार्य की सेवा-सुश्रुषा ही श्रेष्ठ तप है। लेकिन, विडम्बना का विषय है कि आधुनिक युवा वर्ग अपने पथ से विचलित होकर अपनी प्राचीन भारतीय वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति को निरन्तर भुलाता चला जा रहा है। प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। आज घर-घर में पिता-पुत्रों के बीच आपसी कटुता, वैमनस्ता और झगड़ा देखने को मिलता है। भौतिकवाद आधुनिक युवावर्ग के सिर चढ़कर बोल रहा है। उसके लिए संस्कृति और संस्कारों से बढ़कर सिर्फ निजी स्वार्थपूर्ति और पैसा ही रह गया है। एक ‘पिता’ अपने पुत्र के मुख से सिर्फ प्रेम व आदर के दो शब्द की उम्मीद करता है, लेकिन उसे पुत्र से उपेक्षित, तिरस्कृत और अभद्र आचरण के अलावा कुछ नहीं मिलता है, हद तो तब हो जाती है जब समाचार पत्रों में यह खबरें सुर्खियां बटोरती है कि एक बेटे ने 'मां' अथवा पिता के मरने के बाद तीन महीने तक लाश घर में रख कर अपने मां और पिताजी के पेंसन लेते रहा। निःसन्देह, यह हमारी आधुनिक शिक्षा प़द्धति के अवमूल्यन का ही दुष्परिणाम है। </a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">पौराणिक ग्रन्थ देवीभागवत में स्पष्ट तौर पर लिखा गया है:- </a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">धिक तं सुतं यः पितुरीप्सितार्थ, </a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">क्षमोअपि सन्न प्रतिपादयेद यः। </a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">जातेन किं तेन सुतेन कामं,</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"> पितुर्न चिन्तां हि सतुद्धरेद यः।। </a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अर्थात, उस पुत्र को धिक्कार है, जो समर्थ होते हुए भी पिता के मनोरथ को पूर्ण करने में उद्यत नहीं होता। जो पिता की चिन्ता को दूर नहीं कर सकता, उस पुत्र के जन्म से क्या प्रयोजन है? इसी तरह गरूड़ पुराण में लिखा गया है:- </a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">सर्वसौख्यप्रदः पुत्रः पित्रोः प्रीतिविवद्धर्नः।</a></p><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"> आत्मा वै जायते पुत्र इति वेदेषु निश्चितम्।।</a></p><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"> अर्थात, पुत्र सब सुखों को देने वाला होता है, माता-पिता का आनंदवर्द्धक होता है। वेदों में ठीक ही कहा गया है कि आत्मा ही पुत्र के रूप में जन्म लेती है। आधुनिक युवापीढ़ी के लिए 'फादर्स डे' और 'मदर्स-डे' पर सोशल मीडिया में एक दिन माता-पिता के प्रति प्रेम की दो-चार पांति लिख देने मात्र का स्वांग ना करें बल्कि वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति के अनुरूप वे अपने पिता के प्रति सभी दायित्वों का पालन करने का हरसंभव प्रयास करें। साथ ही महर्षि वेदव्यास जी की यह पंक्ति हमेशा याद रखने की आवश्यकता है कि ‘‘देवतं हि पिता महत्’’ अर्थात ‘पिता’ ही महान देवता है।</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">आचार्य पण्डित विनोद चौबे , संपादक- ' ज्योतिष का सूर्य'राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, हाऊस नं- 1299, सड़क- 26, शांतिनगर भिलाई, ज़िला- दुर्ग (छ.ग.) मोबाइल नं-9827198828</a></p></div><p dir="ltr">
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पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-39147901566639408192018-06-14T18:08:00.001-07:002018-06-14T18:08:57.202-07:00चौबेजी कहिन:- राजा दशरथ रुपी 'जीव' को 'आत्म साक्षात्कार' करना चाहिए 'आत्महत्या' नहीं, निष्ठा और नैमेत्तिक 'आत्ममंथन' करना चाहिए 'आत्महत्या' नहीं, पढ़े-लिखे लोग ही अधिकांश आत्महत्याएं कर रहे हैं, कारण क्या है??<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">चौबेजी कहिन:- राजा दशरथ रुपी 'जीव' को 'आत्म साक्षात्कार' करना चाहिए 'आत्महत्या' नहीं, निष्ठा और नैमेत्तिक 'आत्ममंथन' करना चाहिए 'आत्महत्या' नहीं, </a><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"><u>पढ़े-लिखे</u></a><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com"> लोग ही अधिकांश आत्महत्याएं कर रहे हैं, कारण क्या है??</a></p></div>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">15/6/2018</a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">मित्रों नमस्कार 🙏 आज 'चौबेजी कहिन' में आत्महत्या विषय पर चर्चा करुंगा, आज सर्वहारा समाज में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति, चिन्ताजनक है यह जिस परिवार में होता है उस परिवार की सभी ख्वाहिशें शीशे की तरह चकनाचूर हो जाती हैं! छात्र-छात्राओं, बड़े-बूढे, अवसाद ग्रस्त बड़े ओहदे पर बैठे बड़े अधिकारी सहित अब तो इन्दौर के कथित आध्यात्मिक गुरु भैय्युजी महाराज ने भी आत्महत्या कर हम सबको चौंका दिया ! साथियों आत्महत्या करने के कई कारण हो सकते हैं, परन्तु आजतक जो हमने अनुभव किया है,जिन कारणों से वह व्यक्ति या महिला आत्महत्या करती है, आत्महत्या के बाद कभी उन समस्याओं का हल तो नहीं होता वरन् समस्याएं बढ़ती ही है, मुझे लगता है कि-आत्महत्या करने वाला व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों के प्रति गद्दार होता है, कायर होते हैं, फेमिली-मैनेजमेंट में विफल होते हैं या अपने अपराध को छुपाने के लिए 'अात्महत्या' जैसा महाअपराध कर बैठते हैं, क्योंकि ये अधिकतर आत्महत्या करने वाले पढ़े-लिखे लोग होते हैं ! जरा इन आंकड़ों पर ध्यान दें..</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2014 में 1,31,666 लोगों ने आत्महत्या की। आत्महत्या करने वालों में 80% लोग साक्षर थे, जो देश की राष्ट्रीय साक्षरता दर 74% से अधिक है। 2015,2016,2017 में यह दर बढ़ती ही जा रही है! आपने अनुभव किया होगा कि अधिकांश धर्मपरिवर्तन भी पढ़े-लिखे लोग ही करते हैं, एकाध को छोड़ दें तो कानून के जानकार ही कानून का उलंघन करते हैं, उसी प्रकार क्षणिक आवेश में और क्षणभंगुर मान-सम्मान में अंधे लोगों द्वारा ही हिंसा की जाती है, ठीक उसी तरह अधिकांश आत्महत्याएं पढ़े-लिखे लोग ही करते हैं! यह जानते हुए कि- आत्महत्या करने के बाद 'अंधतमिस्त्र' नामक पीड़ादायक घोर नरक में 60 हजार वर्षों तक यम-यातनाएं सहनी पड़ती है, जैसा कि पराशर संहिता और गरुड़ पुराण में कहा गया है! मैंने भिलाई में भी इसी प्रकार की परिवारों को उजड़ते देखा है आखिर ऐसा क्यों? यह स्थिति केवल भारत की नहीं वरन् भारतेतर देशों में भी 'आत्महत्या एक अभिशाप' बन चुका है कुछ प्रमाण प्रस्तुत कर रहा हूं आपको यह जानकर आश्चर्य होगा ! यूनान के महान दार्शनिक डायोजनीज़ अपने हाथों फाँसी लगा कर मरे थे। और हिटलर का नाम तो आपने सुना ही होगा वह अपनी पिस्तौल से गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। अब आईए साहित्यकारों पर एक नज़र डालते हैं- ‘मृच्छकटिकम्’ के लेखक शूद्रक आग में जल मरे थे। ‘जानकी हरण’ महाकाव्य के रचनाकार सिंहल देश के राजा की मृत्यु का शोक न सह सके और और चिंता में जल मरे। चीनी साहित्यकार लाओत्से ने भी अपनी मौत स्वयं बुलायी थी। लैटिन कवि एम्पेदोक्लीज ने ज्वालामुखी में कूदकर आत्मघात किया था। इसी तरह 'सेल्फीयाना के शौकीन' सेल्फी पोज के चक्कर में कई सनकी बच्चे जानबूझकर मर जाते हैं उसे भी 'आत्महत्या' ही कहा जाता है, एक महासनकी 'लुकेषियस' ने अपने को चिरस्मरणीय बनाने के लिए ऐसा किया था। महाकवि चैटरसन ने दरिद्रता से पीछा छुड़ाने के लिए विषपान कर लिया था। गोर्की ने पेट में पिस्तौल चल कर उसने विदीर्ण कर डाला। आस्ट्रेलियाई साहित्यकार स्टीफेन ज्विग अपने आत्मघात का कारण बताते हुए भैय्युजी महाराज जैसे ही स्टीफेन ज्विग ने एक सुसाइड नोट छोड़ गया था जिसमें लिखा था “अब संघर्षों से टकराने की मेरी शक्ति चुक गई है। अशक्त जीवन का अन्त कर लेना मुझे अधिक अच्छा जँचा।” अर्थात् यह आत्महत्या की वजह अवसाद है जिसका कारण है नकली योगी, नकली ज्ञानीराम बनना है, हमें यदि इससे बचना है तो असली आध्यात्मिकता की ओर जाना होगा ! सर्वप्रथम मैं बड़ी जिम्मेदारी से कह सकता हूं कि गुरु, संत, यती और योगी कभी आत्महत्या नहीं कर सकता! मैंने स्वामी विवेकानंद जी के जीवन चरित्र को पढा वह बेहद कठिनाइयों भरा बाल्यकाल व्यतीत किए और विश्व के 'स्वामी विवेकानंद' बनकर आध्यात्मिक ज्ञान दिया, उसी प्रकार श्री विनायक दामोदर सावरकर जी की जीवनी पढ़ी विषम से विषम परिस्थितियों में भी वह 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' की उपाधि लेना स्वीकार किये ना की 'आत्महत्या' ! अवसाद ग्रस्त लोगों को ऐसे ऐसे कई विराट व्यक्तित्व हमारे भारतीय इतिहास के पन्नों में भरे पड़े हैं उनके जीवन चरित्र को हमें स्वयं और बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए ताकि वह कठिन परिस्थितियों में और मजबूत होकर उभरें ! अब आईए आपको एक गार्हस्थ्य 'योगी' राजा दशरथ के बारे में कुछ बताना चाहूंगा क्योंकि काल परिस्थिति वश कुछ लोगों को दो विवाह करने पड़ते हैं, और पारिवारिक कलह भी झेलने पड़ते हैं जिसका दुष्परिणाम भैय्युजी जैसी शख्सियत को आत्महत्या करके भुगतनी पड़ती है, मैं आज 'चौबेजी कहिन' में तीन पत्नियों के पति दशरथ जी के संदर्भ को रखना चाहता हूं! राजा दशरथ रुपी हम सामान्य 'जीव' की कहानी है उन्होंने देवासुर संग्राम में देवताओं की ओर से युद्ध करके देवताओं को विजयश्री प्राप्त कराया, लेकिन कैकेई के समक्ष हार गए लेकिन वह 'गृहस्थ योगी दशरथ' कभी नहीं हारा, आईए उस 'योगी' के योग की चर्चा करें!</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">योग का पथ कठिन साधना-पथ है. थोड़ी सी असावधानी भी साधक को उसके स्थान से, उसके प्राप्य और प्राप्ति से, भटका सकता है. उसके जीवन में उथल-पुथल मचा सकता है. त्रिगुणरुपी रानियों कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी के प्रति भाव असंतुलन राजा दशरथ को 'शासक दशरथ' के स्थान से च्युतकर 'शासित दशरथ' बना देता है। फलतः अब वृत्तियों द्वारा 'शासित दशरथ' की अभिलाषाएं, आकांक्षाये अधूरी रहतीं है, परिस्थितियाँ विपरीत हो जातीं हैं; शोक - पश्चाताप - दु:ख - अतिशय दु:ख, और अन्त में कष्टदायी मृत्यु. योगपथ में शिथिलता और सहस्रार तक की यात्रा पूरी न कर पाने के कारण 'तत्त्व साक्षात्कार' से भी वंचित होना पड़ता है, और वह 'काल को गले लगा कर पंखे पर झूल जाता है' जो 'आध्यात्मिक योगपथ पर स्वार्थांधता भरी काई से फिसल जाता है, अत: हर दशरथ रुपी 'जीव' को बड़ा ही साफगोई से 'आत्म साक्षात्कार' करना चाहिए आत्महत्या नहीं, आत्ममंथन करना चाहिए आत्महत्या नहीं!</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">- आचार्य पण्डित विनोद चौबे , संपादक- ' ज्योतिष का सूर्य'राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, हाऊस नं- 1299, सड़क- 26, शांतिनगर भिलाई, ज़िला- दुर्ग (छ.ग.) मोबाइल नं-9827198828</a></p></div>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">आपको यह लेख कैसा लगा 😊?? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें 🙏 कॉपी पेस्ट बहादुर दूरी बनाए रखें 🙏 और जो मित्र इसे शेयर करना चाहते हैं वे शेअर अवश्य करें 🙏 किन्तु लेखक का सम्मान करते हुए 🙏</a></p></div><p dir="ltr"><br></p>
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पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-14698901500075152362018-06-06T17:57:00.001-07:002018-06-06T17:57:09.315-07:00चौबेजी कहिन:- निराकार से साकार की ओर चलें और 'पब' की पाश्चात्य संस्कृति से बच्चों को 'प्रात: प्रणाम' की भारतीय संस्कृति की ओर लाने के लिए पौराणिक प्रसंगों से बच्चों को जोड़ें<div align="left"><p dir="ltr">चौबेजी कहिन:- निराकार से साकार की ओर चलें और 'पब' की पाश्चात्य संस्कृति से बच्चों को 'प्रात: प्रणाम' की भारतीय संस्कृति की ओर लाने के लिए पौराणिक प्रसंगों से बच्चों को जोड़ें..<br></p><p dir="ltr"><span style="color:#454743;"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">साथियों मंगल कामनाओं सहित सुप्रभात 🌺🌹😊 आज 'चौबेजी कहिन' में चर्चा करुंगा 'निराकार से साकार की ओर' मै जानता हूं की वेदांत के विद्वान या मूर्ति पूजा विरोधी हमारे इस आलेख से सहमत ना हों परन्तु मेरा उद्देश्य आपको सरलता पूर्वक इस गूढ़ रहस्य से अवगत कराना है, ऐसा नहीं की मैं 'ज्योतिषी' हूं इसलिए आपको मूर्ति पूजा या यज्ञ अनुष्ठान के लिए प्रेरित कर रहा हूं, बल्कि मैं 'एजूकेसन हब' भिलाई में रहता हूं, आजकी सुदूरवर्ती इलाकों से यहां अध्ययन करने यहां नयी पीढ़ी के बच्चे आते हैं जिनसे हमारी मुलाकात होती है, और चर्चा होती है उन बच्चों से तो वे 'इण्टरनेट' पर उपलब्ध 'मूर्तिपूजा' विरोधियों और वामपंथियों द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन कर ईश्वरीय सत्ता से स्वयं को दूर कर 'सनातनी मूर्ति पूजा' के प्रति अनासक्ति प्रकट करते हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि धिरे धिरे वह 'ईश्वर' के तो नहीं हुए लेकिन वे अंजाने में 'ईशु' के जरुर बन जाते हैं और स्वयं को 'लिबरल' कहकर 'सनातनी तनाच्छेदक बनकर एक घातक सिद्ध हो जातें हैं इसका साईड इफेक्ट्स जल्द ही 'प्रात: प्रणाम' की संस्कृति छोड़ 'पब' की पाश्चात्य संस्कृति की ओर रुख कर माता,पिता, भाई, बहन तथा 'राम' के द्रोही बनते जा रहे हैं, क्षमा चाहता हूं मित्रों आज युवाओं को 'साकार से निराकार' जैसा कठिन उपदेश का उपदेश आज की युवा पीढ़ी को मत दो, इनको सर्वप्रथम 'निराकार से साकार' की ओर लाकर 'राम' के प्रति आस्थावान बनाओ ताकि इनके जीवन में 'राम के आदर्शों' का प्रवेश कराया जा सके यह तभी संभव है जब मूर्ति पूजा का प्रतिष्ठित किया जायेगा, और इसी बात को वेद कई प्रसंगों में पाया गया है, लेकिन शुरुआत करुंगा श्रीरामचरितमानस के बालकांड के इस चौपाई से..</a></span><br>
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</div><p dir="ltr"><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। </a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥ </a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">आनन रहित सकल रस भोगी। </a><br>
</p>
</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥ </a><br>
</p>
</div><p dir="ltr"><br>
</p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">भावार्थ- वह (ब्रह्म) बिना ही पैर के चलता है, बिना ही कान के सुनता है, बिना ही हाथ के नाना प्रकार के काम करता है, बिना मुँह (जिह्वा) के ही सारे (छहों) रसों का आनंद लेता है और बिना वाणी के बहुत योग्य वक्ता है। </a><br>
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</div><p dir="ltr"><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">इसका मतलब गोस्वामी तुलसीदास जी भी 'निराकार सत्ता' को स्वीकृति देते हैं परन्तु वह 'नवधा भक्ति' के नौ सोपान का उल्लेख कर 'भक्ति' मार्ग को सुगम व श्रेष्ठ मानते हैं! मैं एक छोटा सा और उदाहरण आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूं- शुक्ल यजुर्वेद में एक मंत्र है जिसमें शिव, इन्द्र आदि देवताओं का साकार रुप में वर्णन है- इस मंत्र को रुद्राष्टाध्यायी के सप्तम अध्याय में भी सम्मिलित किया गया है-</a><br>
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</div><p dir="ltr"><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">''ऊँ उग्रँ लोहि तेन मित्र गूं सौव्रत्येन रुद्रं दौव्रत्येनेन्द्रं प्रक्रिडेनमरुतो बलेनसाद्ध्यान्प्रमुदा। भवस्य कण्ठ्य गूं रुद्रस्यान्त: पार्श्व्यं महादेवस्य यकृच्छर्वस्यवनिष्ठु: पशुपते: पुरीतत्।।”</a><br>
</p>
</div><p dir="ltr"><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">इसका अर्थ है-अपने रक्त को स्वस्थ रखने हेतु उग्रदेव को, सदाचार रूप सुंदर व्रत से मित्रदेव को, दुर्धर्ष व्रत से रुद्र एवं क्रीडा विशेष द्वारा इंद्र को सामर्थ्यविशेष द्वारा मरुतो को, हृदय की प्रसन्नता द्वारा साध्यों को प्रसन्न करता हूँ। अपने कंठस्थित मांस में शिव को, पार्श्व भाग के मांस में रुद्र को एवं यकृत के मांस में महादेव को, स्थूलान्त्र द्वारा शर्व को और हृदयाच्छादित नाड़ी की झिल्लियों से पशुपति को प्रसन्न करता हूँ।”</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">इस प्रकार के कई तथ्य ईश्वरीय सत्ता के साकार स्वरूप का वर्णन करते हैं- ऋग्वेद के प्रथम मंडल के सूक्त संख्या 19 में एक मन्त्र को देखे।</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">“ये शुभ्रा घोरवर्पसः सुक्षत्रासो रिशादसः। मरुद्भिरग्न आ गहि।।</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">“जो शुभ्र तेजो से युक्त तीक्ष्ण,वेधक रूप वाले, श्रेष्ठबल-सम्पन्न और शत्रु का संहार करने वाले है। हे अग्निदेव! आप उन मरुतो के साथ यहाँ पधारें।”</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अब तो आप समझ ही गए होंगे कि- ऐसे असंख्य तथ्यों ने ही मूर्ति पूजा विरोधी नरेंद्र को 'स्वामी विवेकानंद' बनाया जिन्होंने भारत को पूरे विश्व में प्रतिष्ठित किया! हां एक कथित बाबा की भेष में व्यापारी-कलियुगीन-अत्त्पुरुष जिस तरह से वेदांग 'ज्योतिष' एवं की 'पौराणिक' संदर्भों पर गाहे-बगाहे निरर्थक टिप्पणी करता है वह दरअसल वेद का सुविधानुसारी व्याख्या करता है उसके बहकावे में ना आएं खैर, आईए विषय पर वापस चलते हैं, तो वेदों में यह कहा गया है कि- वेदों के गर्भ से ही पुराणों का प्राकट्य हुआ-</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">“ऋच: सामानि च्छंदांसि पुराणं यजुषा सह। उच्छिष्टाञ्जज्ञिरे दिवि देवा दिविश्रित:।।” (अथ. 11|9)</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">इस श्लोक में वैदिक मुनियों नें कहा कि पुराणों का आविर्भाव ऋक्, साम, यजुस् औद छन्द के साथ ही हुआ था।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">“इतिहास पुराणाभ्यां वेदार्थ मुपर्बंहयेत्” (बृहदारण्यकोपनिषद्)</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अन्त में मैं यही कहना चाहूंगा कि आप लोग अपने बच्चों को पौराणिक कथाओं प्रसंगों से भरसक जोड़ने काम करें ताकि वह बच्चा युवा होने बाद भी 'प्रात: प्रणाम' की भारतीय संस्कृति का अवगाहक बने बजाय 'पब' के पाश्चात्य संस्कृति की! वेदों को जानने का प्रथम सीढ़ी है पौराणिक कथाएं, जरा सोचिएगा! यह लेख अच्छा लगे तो शेयर जरुर करें, और हे, दुर्गम राक्षसों कॉपी पेस्ट मत करना नहीं तो तुम्हारा बौद्धिक सर्वनाश करने 'दुर्गा' जी का प्राकट्य हो जायेगा, क्योंकि मार्कण्डेय पुराण का 'दुर्गम' भी कॉपी पेस्टीहा अराजक तत्व था, कभी इस विषय पर भी चर्चा करुंगा, अस्तु!</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य'राष्ट्रीय मासिक पत्रिका शांतिनगर भिलाई-दुर्ग, छत्तीसगढ़ मोबाइल नं- 9827198828</a></p>
<div class="blogger-post-footer">'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के सदस्यता हेतु।
घर बैठे सदस्य बनने के लिए आपको 'Jyotish ka surya' के खाते में स्वयं का पत्राचार का पूरा पता एवं निचे दिये गये धन राशि को Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 प्रेषित करें । वार्षिक सदस्यता शुल्क २२० रू. द्विवार्षिक स.शु.440रू., त्रिवार्षिक स.शु.६४०रू. आजीवन स.शु.२१००रू., मुख्य संरक्षक स.शु.११०००रू., संरक्षक स.शु. ५१००रू.
पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-33388814021700400292018-06-06T17:55:00.001-07:002018-06-06T17:55:45.791-07:00चौबेजी कहिन:- निराकार से साकार की ओर चलें और 'पब' की पाश्चात्य संस्कृति से बच्चों को 'प्रात: प्रणाम' की भारतीय संस्कृति की ओर लाने के लिए पौराणिक प्रसंगों से बच्चों को जोड़ें<div align="left"><p dir="ltr">चौबेजी कहिन:- निराकार से साकार की ओर चलें और 'पब' की पाश्चात्य संस्कृति से बच्चों को 'प्रात: प्रणाम' की भारतीय संस्कृति की ओर लाने के लिए पौराणिक प्रसंगों से बच्चों को जोड़ें..<br></p><p dir="ltr"><span style="color:#454743;"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">साथियों मंगल कामनाओं सहित सुप्रभात 🌺🌹😊 आज 'चौबेजी कहिन' में चर्चा करुंगा 'निराकार से साकार की ओर' मै जानता हूं की वेदांत के विद्वान या मूर्ति पूजा विरोधी हमारे इस आलेख से सहमत ना हों परन्तु मेरा उद्देश्य आपको सरलता पूर्वक इस गूढ़ रहस्य से अवगत कराना है, ऐसा नहीं की मैं 'ज्योतिषी' हूं इसलिए आपको मूर्ति पूजा या यज्ञ अनुष्ठान के लिए प्रेरित कर रहा हूं, बल्कि मैं 'एजूकेसन हब' भिलाई में रहता हूं, आजकी सुदूरवर्ती इलाकों से यहां अध्ययन करने यहां नयी पीढ़ी के बच्चे आते हैं जिनसे हमारी मुलाकात होती है, और चर्चा होती है उन बच्चों से तो वे 'इण्टरनेट' पर उपलब्ध 'मूर्तिपूजा' विरोधियों और वामपंथियों द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन कर ईश्वरीय सत्ता से स्वयं को दूर कर 'सनातनी मूर्ति पूजा' के प्रति अनासक्ति प्रकट करते हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि धिरे धिरे वह 'ईश्वर' के तो नहीं हुए लेकिन वे अंजाने में 'ईशु' के जरुर बन जाते हैं और स्वयं को 'लिबरल' कहकर 'सनातनी तनाच्छेदक बनकर एक घातक सिद्ध हो जातें हैं इसका साईड इफेक्ट्स जल्द ही 'प्रात: प्रणाम' की संस्कृति छोड़ 'पब' की पाश्चात्य संस्कृति की ओर रुख कर माता,पिता, भाई, बहन तथा 'राम' के द्रोही बनते जा रहे हैं, क्षमा चाहता हूं मित्रों आज युवाओं को 'साकार से निराकार' जैसा कठिन उपदेश का उपदेश आज की युवा पीढ़ी को मत दो, इनको सर्वप्रथम 'निराकार से साकार' की ओर लाकर 'राम' के प्रति आस्थावान बनाओ ताकि इनके जीवन में 'राम के आदर्शों' का प्रवेश कराया जा सके यह तभी संभव है जब मूर्ति पूजा का प्रतिष्ठित किया जायेगा, और इसी बात को वेद कई प्रसंगों में पाया गया है, लेकिन शुरुआत करुंगा श्रीरामचरितमानस के बालकांड के इस चौपाई से..</a></span><br>
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<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। </a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥ </a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">आनन रहित सकल रस भोगी। </a><br>
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</div><div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥ </a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">भावार्थ- वह (ब्रह्म) बिना ही पैर के चलता है, बिना ही कान के सुनता है, बिना ही हाथ के नाना प्रकार के काम करता है, बिना मुँह (जिह्वा) के ही सारे (छहों) रसों का आनंद लेता है और बिना वाणी के बहुत योग्य वक्ता है। </a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">इसका मतलब गोस्वामी तुलसीदास जी भी 'निराकार सत्ता' को स्वीकृति देते हैं परन्तु वह 'नवधा भक्ति' के नौ सोपान का उल्लेख कर 'भक्ति' मार्ग को सुगम व श्रेष्ठ मानते हैं! मैं एक छोटा सा और उदाहरण आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूं- शुक्ल यजुर्वेद में एक मंत्र है जिसमें शिव, इन्द्र आदि देवताओं का साकार रुप में वर्णन है- इस मंत्र को रुद्राष्टाध्यायी के सप्तम अध्याय में भी सम्मिलित किया गया है-</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">''ऊँ उग्रँ लोहि तेन मित्र गूं सौव्रत्येन रुद्रं दौव्रत्येनेन्द्रं प्रक्रिडेनमरुतो बलेनसाद्ध्यान्प्रमुदा। भवस्य कण्ठ्य गूं रुद्रस्यान्त: पार्श्व्यं महादेवस्य यकृच्छर्वस्यवनिष्ठु: पशुपते: पुरीतत्।।”</a><br>
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<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">इसका अर्थ है-अपने रक्त को स्वस्थ रखने हेतु उग्रदेव को, सदाचार रूप सुंदर व्रत से मित्रदेव को, दुर्धर्ष व्रत से रुद्र एवं क्रीडा विशेष द्वारा इंद्र को सामर्थ्यविशेष द्वारा मरुतो को, हृदय की प्रसन्नता द्वारा साध्यों को प्रसन्न करता हूँ। अपने कंठस्थित मांस में शिव को, पार्श्व भाग के मांस में रुद्र को एवं यकृत के मांस में महादेव को, स्थूलान्त्र द्वारा शर्व को और हृदयाच्छादित नाड़ी की झिल्लियों से पशुपति को प्रसन्न करता हूँ।”</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">इस प्रकार के कई तथ्य ईश्वरीय सत्ता के साकार स्वरूप का वर्णन करते हैं- ऋग्वेद के प्रथम मंडल के सूक्त संख्या 19 में एक मन्त्र को देखे।</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">“ये शुभ्रा घोरवर्पसः सुक्षत्रासो रिशादसः। मरुद्भिरग्न आ गहि।।</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">“जो शुभ्र तेजो से युक्त तीक्ष्ण,वेधक रूप वाले, श्रेष्ठबल-सम्पन्न और शत्रु का संहार करने वाले है। हे अग्निदेव! आप उन मरुतो के साथ यहाँ पधारें।”</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अब तो आप समझ ही गए होंगे कि- ऐसे असंख्य तथ्यों ने ही मूर्ति पूजा विरोधी नरेंद्र को 'स्वामी विवेकानंद' बनाया जिन्होंने भारत को पूरे विश्व में प्रतिष्ठित किया! हां एक कथित बाबा की भेष में व्यापारी-कलियुगीन-अत्त्पुरुष जिस तरह से वेदांग 'ज्योतिष' एवं की 'पौराणिक' संदर्भों पर गाहे-बगाहे निरर्थक टिप्पणी करता है वह दरअसल वेद का सुविधानुसारी व्याख्या करता है उसके बहकावे में ना आएं खैर, आईए विषय पर वापस चलते हैं, तो वेदों में यह कहा गया है कि- वेदों के गर्भ से ही पुराणों का प्राकट्य हुआ-</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">“ऋच: सामानि च्छंदांसि पुराणं यजुषा सह। उच्छिष्टाञ्जज्ञिरे दिवि देवा दिविश्रित:।।” (अथ. 11|9)</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">इस श्लोक में वैदिक मुनियों नें कहा कि पुराणों का आविर्भाव ऋक्, साम, यजुस् औद छन्द के साथ ही हुआ था।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">“इतिहास पुराणाभ्यां वेदार्थ मुपर्बंहयेत्” (बृहदारण्यकोपनिषद्)</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">अन्त में मैं यही कहना चाहूंगा कि आप लोग अपने बच्चों को पौराणिक कथाओं प्रसंगों से भरसक जोड़ने काम करें ताकि वह बच्चा युवा होने बाद भी 'प्रात: प्रणाम' की भारतीय संस्कृति का अवगाहक बने बजाय 'पब' के पाश्चात्य संस्कृति की! वेदों को जानने का प्रथम सीढ़ी है पौराणिक कथाएं, जरा सोचिएगा! यह लेख अच्छा लगे तो शेयर जरुर करें, और हे, दुर्गम राक्षसों कॉपी पेस्ट मत करना नहीं तो तुम्हारा बौद्धिक सर्वनाश करने 'दुर्गा' जी का प्राकट्य हो जायेगा, क्योंकि मार्कण्डेय पुराण का 'दुर्गम' भी कॉपी पेस्टीहा अराजक तत्व था, कभी इस विषय पर भी चर्चा करुंगा, अस्तु!</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot.com">- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य'राष्ट्रीय मासिक पत्रिका शांतिनगर भिलाई-दुर्ग, छत्तीसगढ़ मोबाइल नं- 9827198828</a></p>
<div class="blogger-post-footer">'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के सदस्यता हेतु।
घर बैठे सदस्य बनने के लिए आपको 'Jyotish ka surya' के खाते में स्वयं का पत्राचार का पूरा पता एवं निचे दिये गये धन राशि को Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 प्रेषित करें । वार्षिक सदस्यता शुल्क २२० रू. द्विवार्षिक स.शु.440रू., त्रिवार्षिक स.शु.६४०रू. आजीवन स.शु.२१००रू., मुख्य संरक्षक स.शु.११०००रू., संरक्षक स.शु. ५१००रू.
पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8179409059491578079.post-77656948803078506912018-06-02T21:54:00.001-07:002018-06-02T21:54:58.419-07:00चौबेजी कहिन:- 'मृत्यु से भयभीत ना हों'
'Must Include in Sunday Study' 'मनन' करने वाले को 'मनुष्य' कहा जाता है, मननशीलता के अभाव में 'मनुष्य' आकृति में 'पशु' है, प्रस्तुत है कठोपनिषद के 'नचिकेता-यमराज' का रोचक प्रसंग<p dir="ltr"><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">चौबेजी कहिन:- 'मृत्यु से भयभीत ना हों'</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">'Must Include in Sunday Study' 'मनन'</a><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot"> करने वाले को 'मनुष्य' कहा जाता है, मननशीलता के अभाव में 'मनुष्य' आकृति में 'पशु' है, प्रस्तुत है </a><u><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">कठोपनिषद</a></u><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot"> के 'नचिकेता-यमराज' का रोचक </a><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot"><u>प्रसंग</u></a><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">!</a></p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">3/6/2018</a><br>
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<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">रविवारीय मंगल प्रभात 🚩🌺🚩 साथियों नमस्कार 🙏 आज 'चौबेजी कहिन' में चर्चा करुंगा 'नचिकेता का रोचक प्रसंग' । जिसे आज 'मस्ट इन्क्लूड इन संडे-स्टडी' में शामिल करें ! कठोपनिषद में 'मृत्यु' को 'आचार्य' कहा गया है, वहीं तैत्तिरीय उपनिषद् में मृत्यु को 'अतिथि' कहा गया है। आपने देखा होगा जब भी आपके घर में कोई अनुष्ठान यज्ञ होता है उसमे यज्ञाचार्य द्वारा चावल के चार अलग-अलग रंगों मे रंगा हुआ चावल के 'अक्षतपुंजो' से 'सर्वतोभद्र मंडल' का निर्माण किया जाता है शायद आपको पता नहीं की उस 'सर्वतोभद्र मंडल' में 'मृत्यु' का देवता के रूप में हर शुभ/मांगलिक कार्यों में पूजन किया जाता है, ऐसा क्यों ? तो आईए इस रहस्य को समझने का प्रयास करें ! सर्वप्रथम हमें 'नचिकेता’ को समझना होगा । इसके लिए हमें कठोपनिषद में प्रवेश करें 🙏</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">महर्षि वाजश्रवा के पौत्र एवं उद्दालक का पुत्र 'नचिकेता' अत्यन्त बुद्धिमान एवं सात्त्विक था। </a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">ॐ अशन् ह वै वाजश्रवस: सर्ववेदसं ददौ।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">तस्य ह नचिकेता नाम पुत्र आस ॥१॥क.व.१!!</a><br>
</p>
</div><p dir="ltr"><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot"> वाजश्रवस्(उद्दालक) ने यज्ञ के फल की कामना रकते हुए (विश्वजित यज्ञ में) अपना सब धन दान दे दिया। उद्दालक का नचिकेता नाम से ख्यात एक पुत्र था।</a><br>
</p>
</div><p dir="ltr"><br>
</p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">तं ह कुमारं सन्तं दक्षिणासु नीयमानसु श्रद्धा आविवेश सोऽमन्यत ॥२॥ </a><br>
</p>
</div><p dir="ltr"><br>
</p>
<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">जिस समय दक्षिणा के लिए गौओं को ले जाया जा रहा था, तब छोटा बालक होते हुए भी उस नचिकेता में श्रद्धाभाव (ज्ञान-चेतना, सात्त्विक-भाव) उत्पन्न हो गया तथा उसने चिन्तन-मनन प्रारंभ कर दिया। </a><br>
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</div><p dir="ltr"><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">'चौबेजी कहिन'के प्रिय पाठकों, हमें मनुष्य योनि बड़े सौभाग्य से प्राप्त हुआ है 'बडे भाग मानुष तन पावा'। हमें प्रकृति ने मनुष्य को चिन्तन मनन की शक्ति दी है, पशु को नहीं। मनन करने से ही वह मनुष्य होता है, अन्यथा मानव की आकृति में वह पशु ही होता है। चिन्तन के द्वारा ही मनुष्य ने ज्ञान-विज्ञान में प्रगति की है तथा चिन्तन के द्वारा ही मनुष्य उचित-अनुचित धर्म-अधर्म, पुण्य-पाप आदि का निर्णय करता है। चिन्तन के द्वारा ही विवेक उत्पन्न होता है तथा वह स्मृति कल्पना आदि का सदुपयोग कर सकता है। चिन्तन को स्वस्थ दिशा देना श्रेष्ठ पुरुष का लक्षण होता है। एक ऐसे ही ऋषि-पुत्र 'नचिकेता' का उपाख्यान है! </a><br>
</p>
</div><p dir="ltr"><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">वैदक-साहित्य में आचार्य को 'मृत्यु' के महत्त्वपूर्ण पद से अलंकृत किया गया है।'आचार्यो मृत्यु:।'आचार्य मानो माता की भांति तीन दिन और तीन रात गर्भ में रखकर नवीन जन्म देता है। 'नचिकेता' का अर्थ 'न जाननेवाला, जिज्ञासु' है तथा यमराज 'यमाचार्य' है, मृत्यु के सदृश आंखे खोलनेवाले गुरु भी हैंं जिनका हम हर यज्ञ/मांगलिक कार्यों में पूजन व आराधना करते हैं!</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">तैत्तिरीय उपनिषद् में 'मृत्यु' को 'अतिथि' के रुप में प्रतिष्ठित किया है !</a><br>
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<div align="left"><p dir="ltr"><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">अतिथिदेवो भव (तै० उप० १.११.२)</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">जहां नचिकेता को यमराज तीन वरदान देता है। कठोपनिषद् के उपाख्यान तथा तैत्तिरीय ब्राह्मण के उपाख्यान में पर्याप्त समानता है। तैत्तिरीय ब्राह्मण के उपाख्यान में यमराज मृत्यु पर विजय के लिए कुछ यज्ञादि का उपाय कहता है, किन्तु कठोपनिषद् कर्मकाण्ड से ऊपर उठकर ब्रह्मज्ञान की महत्ता को प्रतिष्ठित करता है। उपनिषदों में कर्मकाण्ड को ज्ञान की अपेक्षा अत्यन्त निकृष्ट कहा गया है।</a><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">यद्यपि यम-नचिकेता-संवाद ऋग्वेद तथा तै० ब्राह्मण में भी एक कल्पित उपाख्यान के रुप में ही है, कठोपनिषद् के ऋषि ने इसे एक आलंकारिक शैली में प्रस्तुत करके इस काव्यात्मक सौंदर्य का रोचक पुट दे दिया है। कठोपनिषद् जैसे श्रेष्ठ ज्ञान-ग्रन्थ का समारंभ रोचक, हृदयग्राही एवं सुन्दर होना उसके अनुरुप् ही है। मृत्यु के यथार्थ को समझाने के लिए साक्षात् मृत्यु के देवता यमराज को यमाचार्य के रुप में प्रस्तुत करना कठोपनिषद् के प्रणेता का अनुपम नाटकीय कौशल है। यह कल्पनाशक्ति के प्रयाग का भव्य स्वरुप् है।</a><br>
</p>
</div><p dir="ltr"><br>
<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य'राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर भिलाई-दुर्ग, छत्तीसगढ़ मोबाइल नं. 9827198828</a></p>
<p dir="ltr"><a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">(इस लेख को अन्य मित्रों को साझा करें 🙏 किन्तु 'कॉपी-पेस्ट' ना करें)</a><br>
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<a href="http://ptvinodchoubey.blogspot">🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 सनातनधर्म की जय!! जय श्रीराम !! जयतु भारतीय संस्कृति!! वंदेमातरम्!! 🚩🌹🚩🌹🌺🌹🌺🌼</a><br>
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</div><div class="blogger-post-footer">'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के सदस्यता हेतु।
घर बैठे सदस्य बनने के लिए आपको 'Jyotish ka surya' के खाते में स्वयं का पत्राचार का पूरा पता एवं निचे दिये गये धन राशि को Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 प्रेषित करें । वार्षिक सदस्यता शुल्क २२० रू. द्विवार्षिक स.शु.440रू., त्रिवार्षिक स.शु.६४०रू. आजीवन स.शु.२१००रू., मुख्य संरक्षक स.शु.११०००रू., संरक्षक स.शु. ५१००रू.
पताः जीवन ज्योतिष भवन, सड़क-२६, कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)</div>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबेhttp://www.blogger.com/profile/06996128613003215306noreply@blogger.com0