जहां पांडवों ने की थी शास्त्रों की पूजा
करनाल में नीलोखेडी का पूजम गांव महाभारत की यादें समेटे हुए है। यह वह ऐतिहासिक गांव है जहां महाभारत युद्ध से पहले पांडवों ने कौरवों पर विजय हासिल करने के लिए शस्त्रों की पूजा की थी। इसी पूजा से ही इस स्थान का नामकरण पूजम हुआ।
महाभारत काल की स्मृतियों से जुडा होने के कारण गांव के मंदिर में स्थापित शिवलिंग के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। यहां पर प्राचीन तालाब ने आधुनिक रूप ले लिया है। ग्रामीणों का कहना है कि इस गांव की धरती पर कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों का युद्ध शुरू होने से पहले पांडवों ने शस्त्रों की पूजा की थी। गांव के बाहर एक शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ। बाद में इसको उखाडने की कोशिश की गई तो यह टस से मस नहीं हुआ। ग्रामीणों का कहना है कि प्राचीनकाल में यहां कुम्हार मिट्टी लेने आया करते थे। एक दिन मिट्टी निकालते समय यहां शिवलिंग निकला। किसी ने कस्सी व कुल्हाडी से शिवलिंग को काटने का प्रयास किया किंतु विफल रहा। इन औजारों के लगने के निशान आज भी शिवलिंग पर दिखाई देते हैं।
लोगों के अनुसार इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण ने चरण रखे थे। इस स्थान पर कई वर्ष पूर्व बाबा राम गिर आकर रहने लगे। बाबा राम गिर सर्दियों में तालाब में पूजा करते थे और गर्मियों में अपने चारों ओर धुना लगाकर तपस्या करते थे। बाद में ग्रामीणों ने इस स्थान पर मंदिर बनवाया। मंदिर के साथ ही महाभारत कालीन प्राचीन तालाब है। तालाब का जीर्णोद्धार करके इसे आधुनिक रूप दिया गया है। बाबा राम गिर की याद में अप्रैल महीने में तथा शिवरात्रि पर्व पर यहां विशाल मेला लगता है। मंदिर के महंत बाबा पवन गिर का कहना है कि दूर-दराज के क्षेत्रों से लोग यहां मन्नत मांगने आते हैं। मेले में काफी भीड लगती है।
करनाल में नीलोखेडी का पूजम गांव महाभारत की यादें समेटे हुए है। यह वह ऐतिहासिक गांव है जहां महाभारत युद्ध से पहले पांडवों ने कौरवों पर विजय हासिल करने के लिए शस्त्रों की पूजा की थी। इसी पूजा से ही इस स्थान का नामकरण पूजम हुआ।
महाभारत काल की स्मृतियों से जुडा होने के कारण गांव के मंदिर में स्थापित शिवलिंग के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। यहां पर प्राचीन तालाब ने आधुनिक रूप ले लिया है। ग्रामीणों का कहना है कि इस गांव की धरती पर कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों का युद्ध शुरू होने से पहले पांडवों ने शस्त्रों की पूजा की थी। गांव के बाहर एक शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ। बाद में इसको उखाडने की कोशिश की गई तो यह टस से मस नहीं हुआ। ग्रामीणों का कहना है कि प्राचीनकाल में यहां कुम्हार मिट्टी लेने आया करते थे। एक दिन मिट्टी निकालते समय यहां शिवलिंग निकला। किसी ने कस्सी व कुल्हाडी से शिवलिंग को काटने का प्रयास किया किंतु विफल रहा। इन औजारों के लगने के निशान आज भी शिवलिंग पर दिखाई देते हैं।
लोगों के अनुसार इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण ने चरण रखे थे। इस स्थान पर कई वर्ष पूर्व बाबा राम गिर आकर रहने लगे। बाबा राम गिर सर्दियों में तालाब में पूजा करते थे और गर्मियों में अपने चारों ओर धुना लगाकर तपस्या करते थे। बाद में ग्रामीणों ने इस स्थान पर मंदिर बनवाया। मंदिर के साथ ही महाभारत कालीन प्राचीन तालाब है। तालाब का जीर्णोद्धार करके इसे आधुनिक रूप दिया गया है। बाबा राम गिर की याद में अप्रैल महीने में तथा शिवरात्रि पर्व पर यहां विशाल मेला लगता है। मंदिर के महंत बाबा पवन गिर का कहना है कि दूर-दराज के क्षेत्रों से लोग यहां मन्नत मांगने आते हैं। मेले में काफी भीड लगती है।
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