नव ग्रहों के आराध्य भगवान् गणेश-
आपकी कुंडली में चाहे जो भी ग्रह अस्त हो या नीच का हो या फिर आप किसी ग्रह दशा से पीड़ित हों, भगवान गणेश के पूजन मात्र से नवग्रहों के अशुभ प्रभाव दूर हो जाते हैं। शास्त्रों में गणेश को ज्योतिष गुरू भी निरुपित किया गया है। गणेश उत्सव में, जब हर घर में गणपति विराजमान है, तो इससे बेहतर समय और क्या होगा अपने रूठे ग्रहों को मनाने का...नवग्रहों के आराध्यभगवान गणेशगणेश उत्सव के इस जयकारे भरे माहौल में अच्छा होगा यदि प्रथम पूज्य भगवान गणेश और और उनकी पूजा से ग्रह को शुभ बनाने के बारे में चर्चा हो। ज्योतिष के तकरीबन सभी शास्त्रों में ग्रह पीड़ा दूर करने के लिए भगवान गणेश कि पूजा-अर्चना करने से समस्त ग्रहो के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं और शुभ फल प्राप्त होते हैं।ग्रह स्वामी गणेशभगवान गणेश सूर्य तेज के समान तेजस्वी हैं। गणेशजी का पूजन-अर्चन करने से सूर्य के प्रतिकूल प्रभाव का शमन होकर व्यक्ति के तेज-मान-सम्मान में वृद्धि होती हैं, उसका यश चारों आर बढ़ता है। भगवान गणेश चंद्र के समान शांति एवं शीतलता के प्रतीक हैं। गणेशजी का पूजन-अर्चन करने से चंद्र के प्रतिकूल प्रभाव का नाश होकर व्यक्ति को मानसिक शांति प्राप्त होती हैं। चंद्र माता का कारक ग्रह भी है इसलिए गणेशजी के पूजन से मातृसुख में वृद्धि होती हैं। भगवान गणेश मंगल के समान शक्तिशाली एवं बलशाली हैं। गणेशजी का पूजन-अर्चन करने से मंगल के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं और व्यक्ति के शक्ति-बल में वृद्धि होती हैं। गणेशजी के पूजन से ऋण मुक्ति भी शास्त्रों में लिखी है। गणेशजी बुद्धि और विवेक के अधिपति स्वामी ग्रह बुध के भी अधिपति देव हैं। गणेशजी का पूजन-अर्चन करने से बृहस्पति (गुरू) से संबंधित पीड़ा दूर होती हैं और व्यक्ति में आध्यात्मिक ज्ञान का विकास होता हैं।भौतिकता के स्वामीभगवान गणेश धन, ऐश्वर्य एवं संतान प्रदान करने वाले शुक्र के भी अधिपति हैं। गणेशजी का पूजन करने से शुक्र के अशुभ प्रभाव का शमन होता हैं और व्यक्ति को समस्त भौतिक सुख-साधनों के साथ उत्तम सौंदर्य भी प्राप्त होता है। भगवान गणेश शिव के पुत्र हैं और शिव शनि के गुरू, इसलिए गणेशजी के पूजन से शनि संबंधित पीड़ा भी दूर हो जाती है। भगवान गणेश हाथी के मुख और पुरुष शरीर युक्त होने से राहू व केतू के भी अधिपति देव हैं। गणेशजी का पूजन करने से राहू व केतू से संबंधित पीड़ा दूर होती हैं।
नवग्रह बनता हैगणेश पूजन में सबसे पहले नवग्रह बनाया जाता है, इसके पीछे भी यही कारण है कि श्रीगणेश नवग्रहों के स्वामी हैं। विघ्नहर्ता के स्मरण मात्र से नवग्रहों की शांति हो जाती है। बस पूर्ण श्रद्धा और विश्वास की जरूरत है। गणेश उत्सव के इस पावन मौके पर गणेश वंदना कर अपने जीवन को सुखमय बनाइए।चतुर्थी के चंद्रदर्शन काहल भी गणेशभाद्रपद मास के, शुक्ल पक्ष के, चंद्रमा के दर्शन करने वाले पर चोरी का कलंक लगता है। श्रीकृष्ण भी इससे प्रभावित हुए और उन पर कलंक लगा। लेकिन भूलवश चतुर्थी का चांद देख लें, तो उसका निदान भी विघ्नेश्वर के पास है। श्रीगणेश का बारह नामों से पूजन करने से इस कलंक से रक्षा हो जाती है।राहु की दशा से तारने वाले गणेशकिसी व्यक्ति की कुंडली में यदि बुध अथवा राहु की दशा/अन्तर्दशा से पीÞडा हो तो श्रीगणेशजी का पूजन उसके निदान हेतु बताया जाता है। ‘ॐ गं गणपतये नम:’ के जाप के साथ 108 दूर्वा तृण (दूर्वा घास) उनके चरणों में अर्पित करने से बुध और राहु की दशा/अंतर्दशा पीड़ा से शांति मिलती है। ये दोनों ही ग्रह व्यक्ति की कुंडली में यदि दुर्बल स्थिति में हों, तो घोर मानसिक पीड़ा देते हैं तथा बाधाएं उत्पन्न करते हैं।राहु की दशाराहु की दशा प्राय: व्यक्ति को घोर विभ्रम की अवस्था में डाल देती है। बुध की दशा/अंतर्दशा में विशेष रूप से यदि गुरू से संबंधित हो तो ‘लेखनी की त्रुटि’ के कारण मानसिक परेशानियां आती हैं। ऐसे में पुन:श्रीगणेशजी की पूजा ही बाधाओं से मुक्ति तथा शांति दिलाती है।
आपकी कुंडली में चाहे जो भी ग्रह अस्त हो या नीच का हो या फिर आप किसी ग्रह दशा से पीड़ित हों, भगवान गणेश के पूजन मात्र से नवग्रहों के अशुभ प्रभाव दूर हो जाते हैं। शास्त्रों में गणेश को ज्योतिष गुरू भी निरुपित किया गया है। गणेश उत्सव में, जब हर घर में गणपति विराजमान है, तो इससे बेहतर समय और क्या होगा अपने रूठे ग्रहों को मनाने का...नवग्रहों के आराध्यभगवान गणेशगणेश उत्सव के इस जयकारे भरे माहौल में अच्छा होगा यदि प्रथम पूज्य भगवान गणेश और और उनकी पूजा से ग्रह को शुभ बनाने के बारे में चर्चा हो। ज्योतिष के तकरीबन सभी शास्त्रों में ग्रह पीड़ा दूर करने के लिए भगवान गणेश कि पूजा-अर्चना करने से समस्त ग्रहो के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं और शुभ फल प्राप्त होते हैं।ग्रह स्वामी गणेशभगवान गणेश सूर्य तेज के समान तेजस्वी हैं। गणेशजी का पूजन-अर्चन करने से सूर्य के प्रतिकूल प्रभाव का शमन होकर व्यक्ति के तेज-मान-सम्मान में वृद्धि होती हैं, उसका यश चारों आर बढ़ता है। भगवान गणेश चंद्र के समान शांति एवं शीतलता के प्रतीक हैं। गणेशजी का पूजन-अर्चन करने से चंद्र के प्रतिकूल प्रभाव का नाश होकर व्यक्ति को मानसिक शांति प्राप्त होती हैं। चंद्र माता का कारक ग्रह भी है इसलिए गणेशजी के पूजन से मातृसुख में वृद्धि होती हैं। भगवान गणेश मंगल के समान शक्तिशाली एवं बलशाली हैं। गणेशजी का पूजन-अर्चन करने से मंगल के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं और व्यक्ति के शक्ति-बल में वृद्धि होती हैं। गणेशजी के पूजन से ऋण मुक्ति भी शास्त्रों में लिखी है। गणेशजी बुद्धि और विवेक के अधिपति स्वामी ग्रह बुध के भी अधिपति देव हैं। गणेशजी का पूजन-अर्चन करने से बृहस्पति (गुरू) से संबंधित पीड़ा दूर होती हैं और व्यक्ति में आध्यात्मिक ज्ञान का विकास होता हैं।भौतिकता के स्वामीभगवान गणेश धन, ऐश्वर्य एवं संतान प्रदान करने वाले शुक्र के भी अधिपति हैं। गणेशजी का पूजन करने से शुक्र के अशुभ प्रभाव का शमन होता हैं और व्यक्ति को समस्त भौतिक सुख-साधनों के साथ उत्तम सौंदर्य भी प्राप्त होता है। भगवान गणेश शिव के पुत्र हैं और शिव शनि के गुरू, इसलिए गणेशजी के पूजन से शनि संबंधित पीड़ा भी दूर हो जाती है। भगवान गणेश हाथी के मुख और पुरुष शरीर युक्त होने से राहू व केतू के भी अधिपति देव हैं। गणेशजी का पूजन करने से राहू व केतू से संबंधित पीड़ा दूर होती हैं।
नवग्रह बनता हैगणेश पूजन में सबसे पहले नवग्रह बनाया जाता है, इसके पीछे भी यही कारण है कि श्रीगणेश नवग्रहों के स्वामी हैं। विघ्नहर्ता के स्मरण मात्र से नवग्रहों की शांति हो जाती है। बस पूर्ण श्रद्धा और विश्वास की जरूरत है। गणेश उत्सव के इस पावन मौके पर गणेश वंदना कर अपने जीवन को सुखमय बनाइए।चतुर्थी के चंद्रदर्शन काहल भी गणेशभाद्रपद मास के, शुक्ल पक्ष के, चंद्रमा के दर्शन करने वाले पर चोरी का कलंक लगता है। श्रीकृष्ण भी इससे प्रभावित हुए और उन पर कलंक लगा। लेकिन भूलवश चतुर्थी का चांद देख लें, तो उसका निदान भी विघ्नेश्वर के पास है। श्रीगणेश का बारह नामों से पूजन करने से इस कलंक से रक्षा हो जाती है।राहु की दशा से तारने वाले गणेशकिसी व्यक्ति की कुंडली में यदि बुध अथवा राहु की दशा/अन्तर्दशा से पीÞडा हो तो श्रीगणेशजी का पूजन उसके निदान हेतु बताया जाता है। ‘ॐ गं गणपतये नम:’ के जाप के साथ 108 दूर्वा तृण (दूर्वा घास) उनके चरणों में अर्पित करने से बुध और राहु की दशा/अंतर्दशा पीड़ा से शांति मिलती है। ये दोनों ही ग्रह व्यक्ति की कुंडली में यदि दुर्बल स्थिति में हों, तो घोर मानसिक पीड़ा देते हैं तथा बाधाएं उत्पन्न करते हैं।राहु की दशाराहु की दशा प्राय: व्यक्ति को घोर विभ्रम की अवस्था में डाल देती है। बुध की दशा/अंतर्दशा में विशेष रूप से यदि गुरू से संबंधित हो तो ‘लेखनी की त्रुटि’ के कारण मानसिक परेशानियां आती हैं। ऐसे में पुन:श्रीगणेशजी की पूजा ही बाधाओं से मुक्ति तथा शांति दिलाती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें