हिन्दी मेरी पहचान है...सम्पादकीय
भाषा न केवल अभिव्यक्ति का एक माध्यम है बल्कि वह चिंतन को भी प्रभावित करती है। उसके साथ उसके बोलने वालों की संस्कृति और संस्कार भी जुडे होते हैं। भाषा केवल मस्तिष्क को झकझोरनेवाली ही नहीं, वरन हृदय को छूनेवाली भी होती है और यह ताकत अपनी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा में विशेष रूप से होती है।
हमारे देश में अनेक भाषाएं हैं और सबकी अपनी-अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपराएं हैं। लेकिन इसके बावजूद हमारा अतीत एक है, अतीत के हमारे अनुभव एक हैं तथा हमारा चिंतन एक है। राष्ट्रीय स्वाभिमान और स्वतंत्रता की लडाई में पूरे भारत ने एकजुट होकर भाग लिया था। अंग्रेजी दासता का अनुभव पूरे भारत को एक जैसा है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक का संपूर्ण भारत हमेशा एक जैसे विचारों और भावनाओं से आंदोलित रहा है। सभ्यता और संस्कृति के आरंभिक काल से ही इस एक से चिंतन ने पूरे देश में एक सी संवेदनाओं को जन्म दिया है। तभी तो उत्तर भारत में रचित वेदों के भाव ज्यों के त्यों दक्षिण में रचित तिरुक्कुरल के भावों से मिल जाते हैं। नरसी मेहता, नामदेव, संत तुकाराम, एकनाथ, कबीर, सूर, मीरा, तुलसी, गुरुनानक, शंकरदेव, चैतन्य महाप्रभु आदि संतों की शिक्षाएँ स्थानविभेद होने पर भी भाव साम्य रखती हैं। इसीलिए हमें एक ऐसी भाषा की आवश्यकता है, जो हमारे इस ऐक्य को एक भाषा में व्यक्त कर सके। अपनी विशिष्ट ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के कारण हिंदी ही वह भाषा हो सकती है।
किसी भी संप्रभु व लोकतांत्रिक देश की एक राष्ट्र मुद्रा, एक राष्ट्रगान, एक राष्ट्रध्वज व एक राष्ट्र्रभाषा होती है। भारत अनेक भाषाभाषी लोगों का देश है और सभी की अपनी-अपनी समृद्ध संस्कृति व परम्पराएं हैं। अत: संवैधानिक रूप से देश की भाषाओं को राष्ट्रीय भाषाओं का सम्मान प्राप्त है। इन सबके बीच सम्पर्क और सामंजस्य स्थापित करने हेतु हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया। हिंदी को सम्पर्क राजभाषा घोषित करने का सीधा और सरल सा कारण यह था कि देश में इस भाषा को बोलने और समझने वाले सबसे अधिक थे। आज देश के दो तिहाई राज्यों में सत्रह बोलियों के रूप में हिंदी का विस्तार है। हिंदी भारत में सबसे अधिक बोली व समझी जाने वाली तथा विश्व में सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली व समझी जानेवाली तीसरी बड़ी भाषा है। इसे दुनिया भर में एक अरब से अधिक लोग जानते, पढ़ते, समझते और बोलते हैं।
स्वतंत्र भारत की बागडोर संभालने वाले नेताओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे गृहमंत्री पी चिंदबरम ने राजभाषा विभाग द्वारा हिन्दी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में किसी सार्वजनिक मंच पर लोगों को पहली बार हिन्दी में सम्बोधित किया। माना जाता है कि तमिल भाषी चिदंबरम को हिन्दी बोलने में कठिनाई होती है। परंतु हिन्दी के उत्थान के लिहाज से देखा जाये तो इस प्रकार के अंग्रेजियत के पुजारी नेताओं पर शर्म आती है। जो हिन्दी के उत्थान की बात करते हों लेकिन उन्हे हिन्दी बोलना नहीं आता है। आस्ट्रेलिया से पढ़ाई कर स्वदेश लौटे महात्मा गांधी की मुलाकात गोपालकृष्ण गोखले जी से हुई और उन्होने गोपालकृष्ण गोखले जी को अपना आदर्श और गुरू मानते हुए। देश के आजादी की लड़ाई में सम्मिलित हो गए लेकिन उन्होने कभी अंग्रेजी में सम्बोधन नहीं किया बल्कि ब्रिटिश अधिकारियों से उनकी बात अंग्रेजी में ही होती थी।
हिंदी के मामले में ढुलमुल नीति अपनाते हुए उपनिवेशवादी मानसिकता रखने वाले अंग्रेजीपरस्त राजनेताओं की पश्चिमी जीवनशैली व सोच के दबाव में 10 वर्षों के लिए अंग्रेजी को हिंदी की स्थानापन्न भाषा घोषित कर दिया गया। परिणाम यह हुआ कि हिंदी को एकमेव राजभाषा बनाने का मुद्दा भाषावादी व प्रांतवादी राजनीति में उलझ गया और चौसठ वर्ष बीत जाने पर भी हिंदी अपना गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं कर पाई।
किसी भी भाषा का विकास उसको व्यवहार में लाने से होता है। भाषा को व्यवहार में लाने का काम जनता करती है। अत: हिंदी को सही अर्थों में राजभाषा बनाने का कार्य सरकार, विश्वविद्यालयों, लेखकों, पत्रकारों व चंद हिंदी प्रेमी बुद्धिजीवियों से अधिक हम सबका है। राष्ट्रीय गौरव व अस्मिता का मुद्दा मानकर हिंदी के लिए जनमानस में आंदोलन का भाव आना चाहिए।
प्रिय पाठकों , शुभ नवरात्रि एवं दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि आप सहित मित्रों के साथ हिन्दू, हिन्दी और भारतीय संस्कृति पर बतौर आंदोलित मन: स्थिति के साथ सदैव इस दिशा में प्रयास जारी रखें। ताकि अपने भारतीय संस्कृति के साथ राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त हिन्दी की रक्षा हो सके।
जय हिन्द.. जय भारत...
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