मां सीता ने मुंगेर में किया था छठ
ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरणमें कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। इससे यह स्थल अध्यात्मिक आस्था से जुडी है। सीता चरण में आज भी दो पश्चिम एवं पूरब मुख में माता सीता के पदचिन्हअंकित हैं।
जाने-माने इतिहासकार डा. ग्रियेसन ने इस पदचिन्ह एवं जनकपुर में स्थित पदचिन्ह का भी मिलान किया था। जिसमें दोनों पदचिन्ह एक समान मिले। इसके बाद तो इसकी और महत्ता बढ गयी। छठ पूजा के दिन में यहां श्रद्धालुओं की भीड उमडती है। बीच गंगा में अवस्थित इस मंदिर को अगर प्रशासन संवार दें तो देश के मानचित्र पर सीता चरण का नाम होगा।
पौराणिक कथाओं के अनुसार 14वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्ययज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुगदलऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुगदलऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता माता स्वयं यहां आये और इसके पूजा पाठ के बारे में बताया गया।
मुगदलऋषि ने मां सीता को गंगा छिडक कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। जिस स्थान पर माता सीता ने पूरब और पश्चिम मुख होकर अराधना की। उस स्थान पर आज भी माता सीता के पैरों के निशान हैं। उसके बाद से यह स्थल सीता चरणके नाम से जाने जाने लगा। यह स्थल गंगा के मध्य पहाडी पर स्थित है। बाद में इसे राम बाबा नामक धर्मप्रेमी ने मंदिर का रूप दिया। गंगा में पानी नहीं रहने के बाद मंदिर पर आसानी से लोग पूजा करने जाते हैं, लेकिन बाढ के दिनों में यह मंदिर गंगा के बीच में हो जाता है।
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे , भिलाई -०९827198828
ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरणमें कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। इससे यह स्थल अध्यात्मिक आस्था से जुडी है। सीता चरण में आज भी दो पश्चिम एवं पूरब मुख में माता सीता के पदचिन्हअंकित हैं।
जाने-माने इतिहासकार डा. ग्रियेसन ने इस पदचिन्ह एवं जनकपुर में स्थित पदचिन्ह का भी मिलान किया था। जिसमें दोनों पदचिन्ह एक समान मिले। इसके बाद तो इसकी और महत्ता बढ गयी। छठ पूजा के दिन में यहां श्रद्धालुओं की भीड उमडती है। बीच गंगा में अवस्थित इस मंदिर को अगर प्रशासन संवार दें तो देश के मानचित्र पर सीता चरण का नाम होगा।
पौराणिक कथाओं के अनुसार 14वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्ययज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुगदलऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुगदलऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता माता स्वयं यहां आये और इसके पूजा पाठ के बारे में बताया गया।
मुगदलऋषि ने मां सीता को गंगा छिडक कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। जिस स्थान पर माता सीता ने पूरब और पश्चिम मुख होकर अराधना की। उस स्थान पर आज भी माता सीता के पैरों के निशान हैं। उसके बाद से यह स्थल सीता चरणके नाम से जाने जाने लगा। यह स्थल गंगा के मध्य पहाडी पर स्थित है। बाद में इसे राम बाबा नामक धर्मप्रेमी ने मंदिर का रूप दिया। गंगा में पानी नहीं रहने के बाद मंदिर पर आसानी से लोग पूजा करने जाते हैं, लेकिन बाढ के दिनों में यह मंदिर गंगा के बीच में हो जाता है।
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