विभिन्न संस्कृतियों, पर्वों तथा विभिन्न स्थानीय भाषाओं से समृद्ध इस भारत में यदि अखण्डता का प्रतीक है तो वह है हजारों वर्ष से चली आ रही परम्परागत त्योहारों श्रृंखला, जो एक दूसरे को जोड़ने का काम करता है।
भारतीय विभिन्न संस्कृतियों पर अध्ययन करने वाले रिसर्चरों (शोधकर्ताओं) ने स्वीकार किया है कि विश्व का एक ऐसा अनूठा देश है, जो भारतीय अन्तिम शासक पृथ्वीराज चौहान के बाद लगभग 651 वर्षों तक मुगलों और अंग्रेजों के अधीन रहा, कई युद्ध देखे, कईयों ने तो महामारी और अन्य दैवीय आपदाओं का अनुभव किया , आर्थिक विपन्नता, सनातन धर्म विरोधी कई लुभाने वाली मिशनरियों के अलावा, कई ऐसे मुगल शासकों ने बलात् धर्म परिवर्तन कराया, इसके बावजूद पर्वों के देश भारत की अखण्डता बदस्तूर जारी रही और आगे भी विखण्डन की उम्मीद दूर दूर तक नही है।
ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, भिलाई का कहना है कि वैदेशिक प्रसिद्ध दार्शनिक डॉ. कीथ के दर्शन का अध्ययन करने पर प्रकृतिवाद की चर्चा करते हुये उन्होने कहा कि "भारत आध्यात्मिक भूमि है इसी कारण वहां कभी भी सनातनीय ढाँचे को हानि नहीं पहुंचाया जा सकता" तो इससे यह प्रतीत होता है कि भारतीय पर्व प्रसंग आध्यात्मिकता परकाष्ठा और" अयं निज: परोवेति गणना लघु चेतसाम्" का अलख जगाते है।
आईये इसी क्रम मे दशहरा यानी विजयादशमी के पावन पर्व की चर्चा करते हैं, पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं पर जुल्म ढाह रहे महिषासुर का देवी दुर्गा ने की और सभी देवताओं देवी के क्रोध को शांत करने के लिये एक विशेष प्रकार का जज्ञ किया, इसीलिए नवरात्रि के बाद इसे दुर्गा के नौ शक्ति रूप के विजय-दिवस के रूप में विजया-दशमी के नाम से मनाया जाता है। अथवा एक और कथा के अनुसार महिसासुर के वध के उपरान्त मां अपने धाम को वापस जा रहीं थी, तो यह विजय-यात्रा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
वैसे तो वाल्मिकि रामायण के अनुसार 84 दिन लगातार राम रावण युद्ध चला था। राम के सफल ना होने पर प्रभु श्रीराम को *शक्ति पूजा* करनी पड़ी और फिर बाद में भगवान श्रीराम ने नौ दिनो तक रावण के साथ युद्ध करके दसवें दिन ही रावण का वध किया था, इसलिए इस दिन को भगवान श्रीराम के संदर्भ में भी विजय-दशमी के रूप में मनाते हैं। साथ ही इस दिन रावण का वध हुआ था, जिसके दस सिर थे, इसलिए इस दिन कोदशहरा यानी दस सिर वाले के प्राण हरण होने वाले दिन के रूप में भी मनाया जाता है।
सनातन धर्मावलम्बियों के क्षात्रजनों द्वारा दशहरा यानी विजय-दशमी एक ऐसा त्योहार है जिस दिन क्षत्रिय शस्त्र-पूजा करते हैं जबकि ब्राम्हण उसी दिन शास्त्र-पूजा करते हैं।
पुराने समय में राजा-महाराजा जब किसी दूसरे राज्य पर आक्रमण कर उस पर कब्जा करना चाहते थे, तो वे आक्रमण के लिए इसी दिन का चुनाव करते थे, जबकि ब्राम्हण विद्यार्जन के लिए प्रस्थान करने हेतु इस दिन का चुनाव करते थे।
दशहरा के दिन रावण के वध के बजाय स्वयं के अन्दर व्याप्त रावणत्त्व को मारना चाहिये ना कि चीनी
फटाकों से रावण, रक्तबीज की भाँति देश व भारतीय सर्वहारा समाज को हमेशा चंगुल में ले बतौर ड्रेगन निगलने का प्रयत्न करता रहेगा।
ज्योतिष के अनुसार दशमी तिथि को पूर्णा तिथि एवं प्रकृति में नवीनता लाने वाला विशेष संयोग रहने के कारण विजया दशमी को किसी भी कार्य के शुभारंभ के लिये अबूझ मूहुर्त रहता है। जो बेहद शुभकारक माना गया है।
पण्डित विनोद चौबे जी बताते हैं कि - विजया दशमी को शमी-पत्र का विशेष महत्व है, रावण वही है जो मात्र स्वहित को वरियता दे। ऐसी रावण प्रवृत्ति को समाप्त करने वाला शमी-पत्र है, जो इछ्वाकु वंशीय भगवान राम के वृद्ध प्रपितामह राजा रघु से वर्तन्तु रिषि के शिष्य ने गुरुदक्षिणा चुकाने हेतु शिष्य ने महादानवीर राजा रघु से धन मांगा किन्तु, राजा रघु स्वयं सबकुछ दान कर देने से उनके पास कुछ शेष नहीं रह गया था ।
जिसके कारण वे इन्द्र से गुरू वर्तन्तु के शिष्य को दान देने के लिये धन मांगा। लेकिन इन्द्र के कानों में जूं तक नहीं रेंगा
, तो फिर क्या था। राजा रघु ने इन्द्र पर चढाई कर दिये। भयभीत इन्द्र ने कुबेर से महाराज रघु को धनवर्षा करने को आदेश दिया। कहने का अभिप्राय यह है कि आज के ही दिन दशमी को शमीपत्रों पर ही धनवर्षा हुई थी, इसी कारण ग्रामीण संस्कृति व मान्यताओं मे रावण दहन के बाद शमीपत्र घर ले जाने का विधान है।
---ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, रावण संहिता विशेषज्ञ एवं संपादक -"ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)
भारतीय विभिन्न संस्कृतियों पर अध्ययन करने वाले रिसर्चरों (शोधकर्ताओं) ने स्वीकार किया है कि विश्व का एक ऐसा अनूठा देश है, जो भारतीय अन्तिम शासक पृथ्वीराज चौहान के बाद लगभग 651 वर्षों तक मुगलों और अंग्रेजों के अधीन रहा, कई युद्ध देखे, कईयों ने तो महामारी और अन्य दैवीय आपदाओं का अनुभव किया , आर्थिक विपन्नता, सनातन धर्म विरोधी कई लुभाने वाली मिशनरियों के अलावा, कई ऐसे मुगल शासकों ने बलात् धर्म परिवर्तन कराया, इसके बावजूद पर्वों के देश भारत की अखण्डता बदस्तूर जारी रही और आगे भी विखण्डन की उम्मीद दूर दूर तक नही है।
ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, भिलाई का कहना है कि वैदेशिक प्रसिद्ध दार्शनिक डॉ. कीथ के दर्शन का अध्ययन करने पर प्रकृतिवाद की चर्चा करते हुये उन्होने कहा कि "भारत आध्यात्मिक भूमि है इसी कारण वहां कभी भी सनातनीय ढाँचे को हानि नहीं पहुंचाया जा सकता" तो इससे यह प्रतीत होता है कि भारतीय पर्व प्रसंग आध्यात्मिकता परकाष्ठा और" अयं निज: परोवेति गणना लघु चेतसाम्" का अलख जगाते है।
आईये इसी क्रम मे दशहरा यानी विजयादशमी के पावन पर्व की चर्चा करते हैं, पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं पर जुल्म ढाह रहे महिषासुर का देवी दुर्गा ने की और सभी देवताओं देवी के क्रोध को शांत करने के लिये एक विशेष प्रकार का जज्ञ किया, इसीलिए नवरात्रि के बाद इसे दुर्गा के नौ शक्ति रूप के विजय-दिवस के रूप में विजया-दशमी के नाम से मनाया जाता है। अथवा एक और कथा के अनुसार महिसासुर के वध के उपरान्त मां अपने धाम को वापस जा रहीं थी, तो यह विजय-यात्रा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
वैसे तो वाल्मिकि रामायण के अनुसार 84 दिन लगातार राम रावण युद्ध चला था। राम के सफल ना होने पर प्रभु श्रीराम को *शक्ति पूजा* करनी पड़ी और फिर बाद में भगवान श्रीराम ने नौ दिनो तक रावण के साथ युद्ध करके दसवें दिन ही रावण का वध किया था, इसलिए इस दिन को भगवान श्रीराम के संदर्भ में भी विजय-दशमी के रूप में मनाते हैं। साथ ही इस दिन रावण का वध हुआ था, जिसके दस सिर थे, इसलिए इस दिन कोदशहरा यानी दस सिर वाले के प्राण हरण होने वाले दिन के रूप में भी मनाया जाता है।
सनातन धर्मावलम्बियों के क्षात्रजनों द्वारा दशहरा यानी विजय-दशमी एक ऐसा त्योहार है जिस दिन क्षत्रिय शस्त्र-पूजा करते हैं जबकि ब्राम्हण उसी दिन शास्त्र-पूजा करते हैं।
पुराने समय में राजा-महाराजा जब किसी दूसरे राज्य पर आक्रमण कर उस पर कब्जा करना चाहते थे, तो वे आक्रमण के लिए इसी दिन का चुनाव करते थे, जबकि ब्राम्हण विद्यार्जन के लिए प्रस्थान करने हेतु इस दिन का चुनाव करते थे।
दशहरा के दिन रावण के वध के बजाय स्वयं के अन्दर व्याप्त रावणत्त्व को मारना चाहिये ना कि चीनी
फटाकों से रावण, रक्तबीज की भाँति देश व भारतीय सर्वहारा समाज को हमेशा चंगुल में ले बतौर ड्रेगन निगलने का प्रयत्न करता रहेगा।
ज्योतिष के अनुसार दशमी तिथि को पूर्णा तिथि एवं प्रकृति में नवीनता लाने वाला विशेष संयोग रहने के कारण विजया दशमी को किसी भी कार्य के शुभारंभ के लिये अबूझ मूहुर्त रहता है। जो बेहद शुभकारक माना गया है।
पण्डित विनोद चौबे जी बताते हैं कि - विजया दशमी को शमी-पत्र का विशेष महत्व है, रावण वही है जो मात्र स्वहित को वरियता दे। ऐसी रावण प्रवृत्ति को समाप्त करने वाला शमी-पत्र है, जो इछ्वाकु वंशीय भगवान राम के वृद्ध प्रपितामह राजा रघु से वर्तन्तु रिषि के शिष्य ने गुरुदक्षिणा चुकाने हेतु शिष्य ने महादानवीर राजा रघु से धन मांगा किन्तु, राजा रघु स्वयं सबकुछ दान कर देने से उनके पास कुछ शेष नहीं रह गया था ।
जिसके कारण वे इन्द्र से गुरू वर्तन्तु के शिष्य को दान देने के लिये धन मांगा। लेकिन इन्द्र के कानों में जूं तक नहीं रेंगा
, तो फिर क्या था। राजा रघु ने इन्द्र पर चढाई कर दिये। भयभीत इन्द्र ने कुबेर से महाराज रघु को धनवर्षा करने को आदेश दिया। कहने का अभिप्राय यह है कि आज के ही दिन दशमी को शमीपत्रों पर ही धनवर्षा हुई थी, इसी कारण ग्रामीण संस्कृति व मान्यताओं मे रावण दहन के बाद शमीपत्र घर ले जाने का विधान है।
---ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, रावण संहिता विशेषज्ञ एवं संपादक -"ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)
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