ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

समलैंगिकता और बृहन्नला

तुम लोग जिस वात्स्यायन कामसूत्र की बात कर कुतर्क देते फिर रहे हो, उसे तो तुम लोगों ने सहज ही स्वीकार कर लिया, साथ में 'वैदिक सभ्यता' को भी स्वीकार कर लेते। एक बड़े पत्रकार ने अपने संपादकीय में 5130 वर्ष पूर्व के धनुर्धारी वीर अर्जुन के 'बृहन्नला' और 'शकुनी' का तर्क दिया है, हे पत्रकार महोदय मुझे इस बात की प्रसन्नता हुई कि कम से कम 'कृष्ण-अर्जुन' के अस्तित्व को आपने स्वीकार किया, किन्तु उपरोक्त दोनों के अन्य जीवन चरित्र के सिद्धांतो के मुताबिक भी भारतीय संविधान में 'वेदोक्त, शास्त्रोक्त विधान' एक्ट को भी लागू कराते तो मैं आपके इस पत्रकारिता को 'श्वान-सूकरी' पत्रकारिता ना बोलता। दिन-रात 'भगवा' को गरियाने वालों, हिन्दुओं को आतंकी सिद्ध करने वालों तुम्हारे अन्दर अचानक बृहन्नला, शकुनि और वात्स्यायन कामसूत्र के प्रति इतना प्रेम कैसे उमड़ पड़ा ? साफ है भारत की युवा पीढ़ी को नष्ट-भ्रष्ट करने की गहरी चाल है जिसको पूरी तरह राजनैतिक हवा तब मिली जब कांग्रेस नेता शशि थरूर ने 2015 में संसद पटल पर 'समलैंगिकता' को अपराध (धारा 377) से बाहर रखे जाने के लिए निजी बिल लेकर आए हालांकि वह बिल गिर गया लेकिन 2005 में गुजरात स्थित राजपिपला के राजकुमार 'मानवेंद्र' से लेकर भारत के कई अन्य हाईकोर्ट में मामलों आने लगे थे, लेकिन संसद में पहली बार इस बिल को शशि थरूर ने लाकर इसे बड़ी राजनैतिक हवा दी। 2016 अगस्त में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आया और 2017 में इसे निजता बताया गया और अब यह 2018 में इस बेवाहयात मानसिक रूप से मुठ्ठी भर 'कामरोगियों' के पक्ष में पर फैसला आ गया। यह एक सुसंस्कृत भारतीय समाज में विष घोलने का काम तो किया ही गया बल्कि कई ऐसे असाध्य रोगों को आयातित करने का आमंत्रण दिया गया, साथ ही हिन्दू संस्कृति, हिन्दुत्व विचारधारा पर कठोर प्रहार किया गया है। अब आप समझ गए होंगे इसके जड़ को। आज 'चौबेजी कहिन' में हमने मुगलों का नाम क्यों जोड़ा क्योंकि की 'मुगल शासक' स्वयं ही 'समलैंगिक' थे, और पिछले दिनों कई पादरी और फादरों द्वारा दुधमुंहे बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौनाचार के अपराध में जेल की हवा खा रहे हैं, हालांकि ईसाई, स्लाम दोनों धर्मों में 'समलैंगिकता' की तिव्र निंदा की गई है, बावजूद 'बाबर प्रेमी' इस समलैंगिकता के पैरोकार हैं। जबकि हालांकि समलैंगिकता के खिलाफ अंग्रेजों ने धारा 377 को 1860 में लागू किया था। 158 साल पुराने इस कानून के द्वारा समलैंगिकता को गैरकानूनी बताया गया है जिसमें 1935 में फिर कुछ परिवर्तन कर दायरे को बढ़ाया गया।