ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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मंगलवार, 26 जुलाई 2011

मंगल ने बदली राशि

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मंगल ने बदली राशि 26/7/2011

मंगल ने सोमवार शाम 6 बजे से राशि परिवर्तन किया और मिथुन राशि में आ गया है। मंगल के परिवर्तन का असर मंगलवार से आप पर पड़ेगा। सभी राशि वालों पर इसका असर 9 सितंबर तक रहेगा। 9 सितंबर को मंगल राशि बदल कर कर्क राशि में आ जाएगा। मंगल के इस राशि परिवर्तन से मंगल और शनि की एक दूसरे पर नजर पड़ेगी। जानिए मंगल शनि का ये संबंध आपकी राशि के लिए कैसा रहेगा।

मेष- मेष राशि के स्वामी मंगल का मिथुन राशि में आने से इस राशि वालों को अचानक सफलता मिलने के योग बनेंगे। अपनी वाणी और चतुराई से सबको प्रभावित करेंगे। मेहनत और पूरुषार्थ से धन लाभ होने के योग बनेंगे।

वृष- वृष राशि वालों के लिए मंगल अशुभ फल देने वाला रहेगा। इस राशि वालों को वाणी पर संयम रखना आवश्यक है नही तो वाणी से शत्रु बनेंगे। वृष राशि वाले सावधान रहें अचानक धन हानि होने के योग बन रहे हैं।

मिथुन- इस राशि वालों के लिए मंगल का राशि बदलना रोग बढ़ाने वाला रहेगा। मिथुन राशि वालों को गले के रोग हो सकते हैं। अनावश्यक गुस्सा आने लगेगा। मानसिक तनाव बढ़ सकता है।

कर्क- इस राशि वालों के लिए मंगल का राशि बदलना शुभ फल देने वाला रहेगा। इस राशि वालों के महत्वपूर्ण कार्य पूरे होंगे। धन लाभ के योग भी बनेंगे।

सिंह- सिंह राशि वालों के लिए भी मंगल का राशि बदलना शुभ फल देने वाला रहेगा। इस राशि वालों को नए उत्तरदायित्व मिलेंगे। इस राशि वाले व्यवसायियों को धन लाभ होने के योग बनेंगे।

कन्या- कन्या राशि वालों के लिए मिथुन राशि का मंगल श्रेष्ठ धन लाभ के योग बनाने वाला रहेगा। इस राशि वालों के रूके  हुए कार्य मेहनत से पूरे होंगे। आय के स्त्रोत मिलेंगे। वाहन, मशिनरी के क्रय- विक्रय से लाभ होगा।

तुला- तुला राशि के अविवाहितों को विवाह प्रस्ताव प्राप्त होंगे। पेतृक व्यवसाय और बाहरी स्थानों से लाभ के योग बनेंगे। नए व्यवसायिक संबंध बनेंगे।

वृश्चिक- मंगल की इस राशि वालों के लिए मंगल का मिथुन राशि में प्रवेश करना अशुभ रहेगा। इस राशि के लोग कोई महत्वपूर्ण निर्णय न लें। इस समय में दुर्घटना और धन हानि के योग भी बनेंगे।

धनु- इस राशि वालों के लिए मंगल शुभ फल देने वाला रहेगा। धनु राशि वालों की आकर्षण शक्ति बढ़ेगी। पार्टनरशिप से लाभ होगा। रोजमर्रा के कार्यों से लाभ मिलेगा।

मकर- शनि की इस राशि वालों को मंगल के राशि परिवर्तन से इस राशि वालों को धन लाभ होगा। मकर राशि वालों को मान सम्मान पद प्रतिष्ठा और मान सम्मान मिलेगा। इस राशि वालोंं के प्रमोशन के पूरे योग बन रहे हैं।

कुंभ- कुंभ राशि वालों को मंगल के प्रभाव से शुभ फल मिलेंगे। कुंभ राशि वालों को अचानक धन लाभ होने के योग बनेंगे। इस राशि वालों को संतान पक्ष से हानि हो सकती है।

मीन- मीन राशि के भूमि प्रॉपर्टी से संबंधित लोगों के लिए ये समय अच्छा रहेगा। इस राशि वालों कोव्यर्थ विवाद का  सामना करना पड़ सकता है।

खरीफ फसलों की खेती को किसानों को 850 करोड़ का ऋण

खरीफ फसलों की खेती को किसानों को 850 करोड़ का ऋण

रायपुर। छत्तीसगढ़ में खरीफ फसलों की खेती के लिए किसानों को लगभग 850 करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया गया है।
आधिकारिक सूत्रों ने सोमवार को यहा बताया कि खरीफ फसलों की खेती के लिए छत्तीसगढ़ के किसानों को लगभग 850 करोड़ रुपये का कृषि ऋण वितरित किया जा चुका है। पिछले साल खरीफ मौसम में इसी अवधि में 558 करोड़ रुपये का ऋण किसानों को दिया गया था। इस प्रकार चालू खरीफ मौसम में अब तक वितरित अल्पकालीन कृषि ऋण राशि पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 292 करोड़ रुपये अधिक है।
छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी बैंक के अधिकारियों ने आज यहा बताया कि राज्य की एक हजार 333 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के माध्यम से राज्य के किसान सिर्फ तीन प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर खेती के लिए खाद और बीज के साथ-साथ नगद राशि भी ऋण के रूप में ले रहे हैं।
उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी बैंक ने खरीफ मौसम के लिए एक अप्रैल 2011 से ऋण बाटने का कार्य प्रारंभ किया है। राज्य शासन द्वारा चालू खरीफ वर्ष में किसानों को एक हजार पाच सौ करोड़ रुपये का ऋण बाटने का लक्ष्य है। इस लक्ष्य के मुकाबले इस माह की 23 तारीख तक 849 करोड़ 90 लाख रुपये का ऋण वितरण किया गया है। राज्य के किसानों को यह ऋण 60 प्रतिशत नगद और 40 प्रतिशत वस्तु [खाद-बीज] आदि के रूप में किसान क्रेडिट काडरें पर दिया जा रहा है।
अधिकारियों ने बताया कि इस योजना के अन्तर्गत रायपुर जिले के किसानों ने सर्वाधिक 183 करोड़ 21 लाख रुपये के ऋण लिए हैं। दूसरे क्त्रम पर दुर्ग जिले के किसानों ने 180 करोड़ 39 लाख रुपये और तीसरे क्त्रम पर राजनादगाव जिले के किसानों ने 80 करोड़ 81 लाख रुपये का ऋण लिए हैं।

 

रविवार, 24 जुलाई 2011

सावन सोमवार 25 / 7 / 2011 को (द्वितीय)

सावन सोमवार 25 / 7 / 2011 को (द्वितीय)

प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल का जन्म

प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल का जन्म
भारतीय संसद की 12वी तथा प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल का जन्म महाराष्ट्र के जलगांव जिले के नदगांव मे 19 दिसम्बर 1934 में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा जलगांव के आर.आर. विद्यालय में हुई थी, बाद में आपने जलगांव कालेज से इकॉनोमिक्स एवं राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल की। भारतीय लोकतन्त्र के सर्वोच्च पद पर पहुंचने का गौरव आपको हासिल हुआ। आज हम इनकी कुन्डली का सम्यक अध्ययन करके यह जानने की कोशिश करेंगे कि ज्योतिष में वह कौन-कौन से राजयोग हैं, जब कोई व्यक्ति अपने जीवन में पूर्ण राजयोग का फल भोगता है। भारत के सर्वोच्च सम्माननीय पद पर आसीन होने के लिये कौन से योग होते हैं।
श्रीमती पाटिल का आगे का समय कैसा है? आइये हम इनकी कुन्डली का ज्योतिषीय विश्लेषण करते है।
इनका जन्म मीन लग्न में हुआ था, लग्नेश गुरू अष्ट्म भाव में गया है, परन्तु गुरू नवमांश कुन्डली मे पंचम में स्थित होकर सभी दोषों को नष्ट कर रहा है। नवमांश कुन्डली में दशम भाव का राहु एक सफल राजनीतिज्ञ बनाता है। पंचम भाव का गुरू जातिका को तेज बुद्धिवाली, समझदार एवं उच्च शिक्षा प्रदान करता है, जैसा कि राष्ट्रुपति श्रीमती प्रतिभापाटिल जी की कुन्डली से यथार्थ है। बुध की नवम भाव में स्थिति जातिका को वकालत की तरफ भी प्रेरित करती है, जिसके कारण श्रीमती प्रतिभा जी ने  वकालत की डिग्री हासिल की तथा अपने कॅरियर की शुरूआत भी जलगांव जिले के न्यायालय मे बतौर वकील के रूप में की। आपकी कुन्डली में चन्द्रमा उच्च राशि में तृतीय स्थान में स्थित है, जिसके कारण आप एक साहसी महिला है, जो अपने लक्ष्य को बिना हासिल किये चुप नहीं बैठ सकती। आपका खेल कूदों के प्रति भी रुझान है।
वर्तमान में आपकी कुन्डली के अनुसार बुध ग्रह की महादशा चल रही है, जोकि सन् 2000 में शुरू हुई थी एवं सन् 2017 तक जारी रहेगी, क्योंकि बुध इनकी कुन्डली में नवम भाव मे स्थित है और नवमांश कुन्डली मे भी बुध मित्र क्षेत्री है। अतः इनकी बुध महादशा का समय उल्लेखनीय है, सन् 2007 मे सुर्य की अन्तर्दशा मे भारत गणराज्य की प्रथम महिला राष्ट्र्पति के रूप मे शपथ ग्रहण करके गौरव प्राप्त किया। इस समय राहु का अन्तर चल रहा है। राहु जन्म कुन्डली के 11वें भाव में बैठा है। वैसे तो 11वें भाव का राहु अच्छा परिणाम दिलाता है, परन्तु राहु का वर्तमान में 10वें भाव से गोचर ठीक नहीं होता है। अतः आपको अपने बचे हुये राष्ट्रपति कार्यकाल में कुछ विशेष चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। राहु के अन्तर में इनका बचा हुआ कार्यकाल चुनौतियो से भरा होने के कारण महत्वपूर्ण हो सकता है। आने वाले दो वर्षो में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। साथ ही इस वर्ष अप्रैल से अगस्त के मध्य आपका कोई विशेष निर्णय आपको ख्याति दिला सकता है। भारतीय राजनीति इस समय एक बुरे दौर से गुजर रही है, जनता का विश्वास सरकार के ऊपर से उठता ही जा रहा है, ऐसे समय में राष्ट्रपति की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाती है। आपकी कोई टिप्पणी या अभिभाषण जनता में राष्ट्रपति पद की गरिमा का एहसास करायेगा। 
अक्तूबर से नवम्ब्र के मध्य स्वास्थ्य नरम रह सकता है। अतः सावधानी बरतनी चाहिये। चन्द्रमा के प्रत्यन्तर में अप्रेल 2012 से जुलाई 2012 के मध्य कोई विशेष सम्माननीय पुरुस्कार मिल सकता है। आपका राष्ट्रपति का कार्यकाल शान्तिपूर्ण व्यतीत होगा। जुलाई 2012 मे मंगल का प्रत्यंतर चलेगा, इसके कारण द्वितीय कार्यकाल मिलने की सम्भावना असम्भव ही नजर आती है। उपर्युक्त सभी सम्भावनायें ग्रहो के गोचर तथा दशा-महादशाओं के आधार पर नजर आती है। बाकी सब हरि इच्छा पर निर्भर है।

शिव परिवार में क्या छुपा है रहस्य .....?

शिव परिवार में क्या छुपा है रहस्य .....?
शिव परिवार एकता में सदस्यों के गुणों को हम क्यों न जीवन में उतार लें.
मानो तो भगवान, न मानो तो पत्थर। बात मानने पर है। हम जो कुछ भी मानते हैं, अपनी सुविधा के अनुसार.। यह हम पर है कि हम किसी में बुराइयां खोजकर उससे घृणा करते रहें या फिर उसकी अच्छाइयों से प्रेरणा लेते रहें। हम चाहें, तो शंकर जी को मूर्ति मानकर पूजेंया फिर उनके गुणों को जीवन में उतार लें। भगवान शंकर ही नहीं, उनका पूरा परिवार आज के प्रतियोगितात्मकयुग में काफी प्रेरणा प्रदान कर सकता है। उनसे एक आम इंसान घर चलाने का हुनर सीख सकता है, तो एक सीईओ कंपनी चलाने के टिप्स भी ले सकता है।
भगवान शंकर के परिवार में जितनी विभिन्नता है, उतनी ही एकता भी। ठीक वैसे ही, जैसे किसी घर में अलग-अलग स्वभाव के सदस्य होते हैं या फिर किसी कंपनी में विभिन्न प्रकार के लोग कार्य करते हैं। परिवार के मुखिया भगवान शिव भोले नाथ के रूप में जाने जाते हैं। उनके शरीर, पहनावे में किसी प्रकार का आकर्षण नहीं है। किंतु माता पार्वती, दोनों पुत्र, शिव गण और उनके भक्त उन्हें स्वामी मानते हैं। यानी बाहरी रूप और सौंदर्य से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं आंतरिक गुण। आम दिनों में ध्यान में खोए रहने वाले शिव, मुखिया को ज्यादा विचारमग्न रहने का संदेश देते हैं। उनकी ध्यानावस्था में शिव परिवार का हर सदस्य अपने कर्म में लीन रहता है। माता पार्वती से लेकर श्रीगणेश और नन्दी बैल तक। जैसे कंपनी का सीईओकंपनी के विकास के बारे में चिंतन करे और कर्मचारी अपनी ड्यूटी कंपनी के कार्य करने में लगाएं। शिव ने विषधर सर्प के साथ समुद्र मंथन से निकला विष भी अपने गले में सहेजा है। कुटिल प्रकृति वाले लोगों को अपनी संगति में रखकर उन्हें शंातरखने का गुण उनसे सीखा जा सकता है। संयुक्त परिवार के मुखिया के लिए भी परिवार की भलाई के लिए विष जैसी कडवी बातों को अपने भीतर दबाकर रखना जरूरी हो जाता है।
पार्वती जी पारंपरिक भारतीय पत्‍‌नी की तरह पति की सेवा में तत्पर हैं। लेकिन वे स्त्री के महत्व को भी बता रही हैं। शिव की शक्ति वे स्वयं हैं। बिना उनके शिव अधूरे हैं और शिव का अर्ध नारीश्वररूप उनके अटूट रिश्ते का परिचायक है।
बुद्धि के देवता गणेश अपने से बेहद छोटी काया वाले चूहे की सवारी करते हैं। यह इस बात का संकेत है कि यदि आपमें बुद्धि है, तो कमजोर समझे जाने वाले व्यक्ति से बडा काम करवा सकते हैं। गृहस्वामी अपने परिवार के लोगों की और कंपनी का अधिकारी अपने स्टाफ के लोगों की क्षमताओं को अपने बुद्धि कौशल से बढा सकता है।
भगवान शंकर के परिवार में भांति-भांति के लोग हैं। स्वयं भोले बाबा बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन आवश्यकता पडने पर वे तांडव भी करते हैं। माता पार्वती शंातस्वभाव की हैं। भोले बाबा के गले में विषैले सर्प लटकते हैं, तो वहीं भोला-भाला नदी बैल भी है। पुत्र गणेश और कार्तिकेय भी भिन्न स्वभाव के हैं। गणेश जी का वाहन चूहा दिखने में खूबसूरत नहीं है, वहीं कार्तिकेय का वाहन पक्षियों का राजा मोर है। इतनी विभिन्नताओं के बावजूद ये सब एक ही परिवार का हिस्सा हैं। सभी लोग एक सूत्र में बंधकर रहते हैं। भारतीय संस्कृति के वसुधैव कुटुंबकमका संदेश इसमें निहित है। हर घर, परिवार, प्रांत और देश को शिव परिवार से संयुक्त रहने और खामोशी से अपने कर्तव्य पालन की सीख लेने की जरूरत है।
वर्तमान अंतरराष्ट्रीय माहौल में यह बात और भी प्रासंगिक हो जाती है। भगवान शंकर के परिवार में ऐसे पशु हैं, जिनमें सोचने-समझने की शक्ति नहीं है। इसके बावजूद सभी प्रेम से एक साथ रहते हैं। क्या हम मनुष्यों में इतनी भी समझ नहीं है कि जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा के भेद भुलाकर एकता के सूत्र में बंधे रहें?

छत्तीसगढ़ में एसपीओ बनेंगे अब आरक्षक

 छत्तीसगढ़ में एसपीओ बनेंगे अब आरक्षक
छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य में विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) को नियमित पुलिस में शामिल होने का रास्ता साफ कर दिया है। सरकार ने शुक्रवार को पुलिस की नियुक्तियों में स्थानीय युवकों की योग्यता में विशेष छूट देने का फैसला किया।
सर्वोच्च न्यायालय ने गत पांच जुलाई के अपने एक आदेश में राज्य सरकार को नक्सलियों से लड़ने वाले एसपीओ से हथियार वापस लेने के लिए कहा था। न्यायालय ने कहा था कि एसपीओ सामूहिक रूप से मानवाधिकारों का उल्लंघन करते है और उन्हे हथियार देना असंवैधानिक है।
न्यायायल के इस फैसले के बाद राज्य सरकार ने एसपीओ से हथियार वापस ले लिए थे। वहीं, हथियार वापस लिए जाने पर एसपीओ ने आशंका जताई थी कि वे नक्सलियों का निशाना बन सकते है लेकिन अब कांस्टेबल के रूप में अपनी नियुक्ति के सिलसिले में सरकार के इस फैसले से वे काफी उत्साहित है।
राजधानी रायपुर से करीब 450 किलोमीटर बीजापुर के कोतवाली पुलिस स्टेशन में वर्ष 2006 की शुरुआत से एसपीओ के रूप में तैनात महेद्र साकनी ने कहा, ''ईश्वर को बहुत-बहुत धन्यवाद, मेरे हथियार मुझे वापस मिल जाएंगे। हमें वापस सेवा में शामिल करने के सरकार के इस फैसले मैं बहुत खुश हूं।''
ज्ञात हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने नक्सलियों के खिलाफ जनजातीय लोगों को हथियार देकर उनकी नियुक्ति एसपीओ के रूप में करने पर राज्य सरकार की जमकर खिंचाई की थी और सरकार से कहा था कि इस पर तुरंत रोक लगनी चाहिए।
कोतवाली पुलिस स्टेशन पर एसपीओ के रूप में तैनात चेतन दुरगम ने कहा, ''इससे बस्तर क्षेत्र के युवाओं के बीच यह संदेश जाएगा कि सरकार नक्सलियों से निपटने के प्रति गम्भीर है।''
एसपीओ को नियमित पुलिस में शामिल करने का फैसला मुख्यमंत्री रमन सिंह की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की एक बैठक में लिया गया। बैठक में निर्णय लिया गया कि बस्तर इलाके में होने वाली कांस्टेबलों की भर्ती में स्थानीय लोगों की शैक्षणिक एवं शारीरिक योग्यता और उम्र में छूट दी जाएगी।
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने करीब 5000 जनजातीय युवाओं की नियुक्ति एसपीओ के रूप में की है।

भारत में घोटालेबाजों से राजनीति भी शर्मा गयी है

भारत में घोटालेबाजों से राजनीति भी शर्मा गयी है
देश में एक के बाद एक घोटालों के पर्दाफाश  होने का सिलसिला जारी है। जिसको देखकर अब राजनीति  भी शर्मा गई है, ताजा घोटाले उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में सामने आए हैं। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत केंद्र से भेजे गए धन का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हुआ। इस योजना में घोटाले के कारण दो मुख्य चिकित्सा अधिकारियों की हत्या हुई और एक उप मुख्य चिकित्साधिकारी की रहस्यमय परिस्थितियों में जेल के अंदर मौत हो गई। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में पिछले पांच-छह वर्षों से घोटाला हो रहा था और इसके चलते करीब तीन हजार करोड़ रुपये की धनराशि इधर-उधर हो गई।
कर्नाटक में भी अवैध खनन के रूप में पिछले कई वर्षो से घोटाला किया जा रहा था। लोकायुक्त की रपट के अनुसार इस घोटाले में मुख्यमंत्री येद्दयुरप्पा और उनके परिजन तथा बेल्लारी बंधुओं के नाम से चर्चित दो मंत्री भी शामिल थे। अवैध खनन को संरक्षण देने के कारण 1800 करोड़ रुपये की राजस्व क्षति का अनुमान लगाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के घोटालों की पूरी परतें खुलना अभी बाकी हैं। यह आश्चर्यजनक है कि हमारे देश में घोटालों का खुलासा आमतौर पर तब होता है जब करोड़ों-अरबों रुपये के वारे-न्यारे हो चुके होते हैं। यह भी एक तथ्य है कि घोटाले उजागर होने के बाद उनकी जांच में लंबा समय लगता है। इसके बाद संबंधित मामले न्यायपालिका में लटके रहते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के घोटालों के मामले में भी ऐसा हो। ध्यान रहे कि जब ऐसा होता है तो घोटाले के लिए दोषी लोगों को दंडित करना और कठिन हो जाता है।
2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन और राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान हुए घोटाले यही बयान करते हैं कि समय रहते गड़बडि़यों को रोका नहीं जा सका। हालांकि दोनों मामलों में अनेक स्तरों पर यह बात उठी थी कि घोटाला हो रहा है, लेकिन कोई भी उसे रोकने में समर्थ नहीं साबित हुआ। इसका सीधा मतलब है कि हमारे देश में ऐसी व्यवस्था का निर्माण नहीं हो सका है जो घोटाला होने ही न दे अथवा प्रारंभिक स्तर पर ही उसे रोक दे। इसी तरह यह भी स्पष्ट है कि जटिल जांच और कानूनी प्रक्रिया के कारण घोटाले के दोषी लोगों को सजा देना भी मुश्किल है और यह तो जगजाहिर ही है कि घोटाले के कारण सार्वजनिक कोष को होने वाली क्षति की भरपाई कभी नहीं हो पाती। देश में जिस तरह रह-रहकर घोटाले होते रहते हैं उसी तरह सरकारी तंत्र की ओर से अकर्मण्यता का प्रदर्शन भी होता रहता है। बात चाहे खस्ताहाल सड़कों की हो अथवा लगातार बढ़ती अवैध झुग्गी-बस्तियों की या फिर सरकारी जमीन पर होने वाले अतिक्रमण की-ये सारे काम सरकारी तंत्र की आंखों के सामने होते हैं।
यह भी एक यथार्थ है कि केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से चलाई जाने वाली जन कल्याणकारी योजनाओं में अनियमितताएं होती रहती हैं और कोई उन्हें रोकने के लिए तब तक सजग-सक्रिय नहीं होता जब तक कोई बड़ा घोटाला सामने नहीं आ जाता। बावजूद इसके योजनाओं को सही तरीके से लागू करने वाली व्यवस्था का निर्माण नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि अनेक घोटाले तब सामने आते हैं जब सरकारी खातों का ऑडिट होता है। सरकारी खातों के ऑडिट से घोटाला तो पकड़ में आ जाता है, लेकिन सरकारी पैसा हजम करने वाले आमतौर पर बच निकलते हैं। यह ठीक है कि इधर घोटालों में शामिल कुछ नेताओं, नौकरशाहों और कॉरपोरेट जगत के अधिकारियों को जेल भेजा गया है, लेकिन यह कहना कठिन है कि आगे से ऐसे घोटाले नहीं होंगे। ज्यादातर घोटालों में नेताओं का हाथ नजर आता है, फिर भी वे ऐसा कोई तंत्र बनाने के लिए तैयार नहीं दिखते जिससे घोटाले होने ही न पाएं।
कर्नाटक में अवैध खनन में अपने मुख्यमंत्री येद्दयुरप्पा  के शामिल होने के आरोपों के बाद भाजपा की परेशानी बढ़ गई है। देश की निगाहें भाजपा नेतृत्व पर हैं। अभी तक भाजपा घपलों-घोटालों को लेकर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर रही थी। अब उसके सामने यह साबित करने की चुनौती है कि वह अपने नेताओं के भ्रष्टाचार के मामलों को सहन करने के लिए तैयार नहीं। फिलहाल भाजपा कर्नाटक के मुख्यमंत्री का बचाव करती दिख रही है, लेकिन चौतरफा दबाव को देखते हुए भाजपा नेतृत्व को घुटने टेकने पड़ सकते हैं। भाजपा को इसका अहसास होना चाहिए कि येद्दयुरप्पा की तरफदारी उसके लिए महंगी पड़ सकती है। भाजपा को यह स्मरण रखना चाहिए कि केंद्र सरकार राष्ट्रमंडल खेलों, 2जी स्पेक्ट्रम और आदर्श सोसाइटी से जुड़े घोटालों में जिस तरह पानी सिर से ऊपर गुजरने के बाद हरकत में आई उससे उसकी देश भर में किरकिरी हुई। खुद भाजपा यह कहती रही है कि विपक्ष, आम जनता और न्यायपालिका के दबाव में केंद्र सरकार ने इन घोटालों के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की। आखिर ऐसा कहने वाली भाजपा येद्दयुरप्पा के खिलाफ स्वेच्छा से कोई कार्रवाई करने के लिए तैयार क्यों नहीं दिखती? भाजपा इसकी अनदेखी नहीं कर सकती कि लोकायुक्त ने येद्दयुरप्पा और उनके मंत्रियों पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। इसके अतिरिक्त विवादास्पद भूमि आवंटन के एक मामले में अदालत ने येद्दयुरप्पा और उनके परिजनों को राहत देने से इंकार कर दिया है। इन स्थितियों में येद्दयुरप्पा के लिए यही उचित है कि जब तक उन्हें आरोप मुक्त न किया जाए तब तक के लिए वह मुख्यमंत्री पद छोड़ दें। यदि वह ऐसा नहीं करते तो भाजपा नेतृत्व को उन्हें इसके लिए बाध्य करना चाहिए।
एक सप्ताह बाद संसद का मानसून सत्र शुरू  होने जा रहा है। संसद के इस सत्र में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण  स्वास्थ्य मिशन में हुई एक तरह की लूट के साथ-साथ कर्नाटक में अवैध खनन का मामला अवश्य उछलेगा। यह अच्छा नहीं होगा यदि सत्तापक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का आरोप लगाकर संसद का समय बर्बाद करेंगे। बेहतर हो कि वे इस पर कोई सार्थक बहस शुरू करें कि हर किस्म के घोटालों पर रोक कैसे लगे? संसद के मानसून सत्र में घोटालों के साथ-साथ महंगाई और लोकपाल विधेयक संबंधी मुद्दे केंद्र सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर सकते हैं। चूंकि भाजपा खुद भ्रष्टाचार के आरोपों से घिर गई है इसलिए सत्तापक्ष-विपक्ष में तकरार की संभावना कम हो जाती है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं होना चाहिए कि घोटालों को रोकने के निर्णायक कदम न उठाए जाएं।
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गुरुवार, 21 जुलाई 2011

दशमेश उच्च ही कराता है विदेश यात्रा

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ज्योतिष का सूर्य 
दशम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तो उस जातक को हमेशा कुछ न कुछ आपदा घेरे रहती है। व्यापार हो तो उतार-चढ़ाव देखना ही पड़ता है। नौकरीपेशा है तो बार-बार स्थानांतरण या अधिकारियों से नहीं बनती। पिता से वैमनस्यता रखने वाला छल-कपट से पूर्ण होता है। दशमेश का अष्टम में होना पूर्व जन्म के पाप कर्मों का फल ही मिलता है। यदि इस भाव में दशमेश उच्च का हो तो उस जातक को गुप्त धन या अकस्मात धन मिलता है। नौकरी में हो तो रिश्वत लेकर धनी बनता है। ऐसे जातकों की कमाई पाप में नष्ट हो जाती है। दशम भाव का स्वामी यदि नवम धर्म, भाग्य भाव में हो तो उस जातक को पिता का भरपूर सहयोग मिलता है। व्यापार में हो तो सदैव उन्नति पाता रहता है। नौकरीपेशा हो तो वह अपने अधिकारियों का प्रिय व सदैव उन्नति पाता है। राजनीति में हो तो उत्तम राजयोग बनता है एवं मंत्री तक बन जाता है। उस जातक को परिवार वालों का निरंतर सहयोग मिलता रहता है। दशमेश की शुभ स्थिति धर्मात्मा, परोपकारी, यशस्वी बना देती है। उस जातक को उत्तम व गुणी संतान का सुख मिलता है। राज्यकृपा सदैव बनी रहती है। स्वराशि स्वदशमेश हो तो वह जातक अत्यंत भाग्यशाली होगा व नवम भाव के स्वामी का रत्न पहनने से और अधिक लाभ पाएगा। दशमेश यदि नीच राशि का हो तो उसे अनेक कष्टों का भी सामना करना पड़ता है। यथा व्यापाार में हानि, पिता से कष्ट, नौकरी में बाधा राज्य से कष्ट मिलता है। परिवार में भी दुःखी रहता है। दशम भाव का स्वामी यदि दशम भाव में हो तो उस जातक को अनेक सुख मिलते है। ऐसा जातक माता, नाना, मामा से लाभ पाता है। ऐसा जातक पिता का भक्त होकर उनकी प्रत्येक बात का पालन करने वाला आज्ञाकारी पुत्र होता है। राज्य से सम्मान भी पाता है। वहीं सर्विस में है तो उच्च पद भी मिलता है। ऐसा जातक सफल राजनीतिज्ञ, प्रशासनिक क्षमता से भरपूर होता है। समाज में व अन्य जनों से प्रशंसित होता है।
दशमेश गुरु स्वराशिस्थ हो तो वह जातक प्रोफेसर, शिक्षा विभाग या बैंक आदि क्षेत्र में सफलता पाता है। शुक्र हो तो सौंदर्य प्रसाधनों, इंजीनियर, कला के क्षेत्र में उत्तम स्थिति पाता है। सफल कलाकारों की कुंडली में दशम स्थान में ही शुक्र रहा है। दशम में मंगल अपनी ही राशि का हो तो ऐसा जातक शूरवीर, साहसी, पराक्रम, पुलसि या सेना में प्रमुख पदों पर पहुंच जाता है। बुध हो कर दशमेश हो तो ऐसा जातक गुणी, ज्ञानवान, व्यापारी होता है। सूर्य हो तो प्रशासनिक कार्य में सफल होता है। चंद्र हो तो सफेद वस्तुओं के व्यापार में सफल होगा। शनि हो तो लोहे के व्यापार में या तेल के व्यापार में सफल होगा। दशम भाव का स्वामी यदि एकादश भाव में स्वराशि हो तो वह जातक अपने कर्म द्वारा व्यापार से लाभ पाने वाला होता है। पिता से धन लाभ मिलता है। ऐसा जातक तेल के व्यापार में भी सफल होता है। यह सिर्फ मेष लग्न में नहीं होगा। दशमेश यदि नीच का हो तो उस जातक को व्यापार में हानि, पिता का न होना एवं और स्वयं वह भी काफी परेशान रहता है। आर्थिक लाभ नहीं होता। जब तक उसकी संतान मददगार नहीं होगी वह सफल नहीं होगा। दशम भाव का स्वामी यदि द्वादश भाव में हो तो उस जातक को दूर देश में जाकर व्यापार आदि से लाभ होता है। ऐसे जातक पिता से दूर रहकर ही सुखी रहता है। दशम भाव का स्वामी यदि नीच का हो तो उसे बाहरी व्यक्ति से धोखा व हानि सहन करनी पड़ती है। दशमेश उच्च का हो तो वह जातक निश्चित तौर पर विदेश में या फिर जन्म स्थान से दूर रहकर लाभार्जन करने वाला होता है। एक से अनेक बार विदेश यात्रा करता है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें- 
पंडित विनोद चौबे महाराज-09827198828

सोमवार, 18 जुलाई 2011

शिव लिंग के प्रकार एवं महत्त्व (सम्पूर्ण)

    शिव लिंग  के प्रकार एवं महत्त्व (सम्पूर्ण)
SHIVALING  KE PRAKAR EVAM MAHATTW:


                     - ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे महाराज ,  भिलाई (छ.ग.)



      2. मिश्री(चिनी) से बने शिव लिंग कि पूजा से रोगो का नाश होकर सभी प्रकार से सुखप्रद होती हैं।
      3. सोंढ, मिर्च, पीपल के चूर्ण में नमक मिलाकर बने शिवलिंग कि पूजा से वशीकरण और अभिचार कर्म के लिये किया जाता हैं।
      4. फूलों से बने शिव लिंग कि पूजा से भूमि-भवन कि प्राप्ति होती हैं।
      5. जौं, गेहुं, चावल तीनो का एक समान भाग में मिश्रण कर आटे के बने शिवलिंग कि पूजा से परिवार में सुख समृद्धि एवं संतान का लाभ होकर रोग से रक्षा होती हैं।
      6. किसी भी फल को शिवलिंग के समान रखकर उसकी पूजा करने से फलवाटिका में अधिक उत्तम फल होता हैं।
      7. यज्ञ कि भस्म से बने शिव लिंग कि पूजा से अभीष्ट सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
      8. यदि बाँस के अंकुर को शिवलिंग के समान काटकर पूजा करने से वंश वृद्धि होती है।
      9. दही को कपडे में बांधकर निचोड़ देने के पश्चात उससे जो शिवलिंग बनता हैं उसका पूजन करने से समस्त सुख एवं धन कि प्राप्ति होती हैं।
      10. गुड़ से बने शिवलिंग में अन्न चिपकाकर शिवलिंग बनाकर पूजा करने से कृषि उत्पादन में वृद्धि होती हैं।
     11.  आंवले से बने शिवलिंग का रुद्राभिषेक करने से मुक्ति प्राप्त होती हैं।
      12. कपूर से बने शिवलिंग का पूजन करने से आध्यात्मिक उन्नती प्रदत एवं मुक्ति प्रदत होता हैं।
      13. यदि दुर्वा को शिवलिंग के आकार में गूंथकर उसकी पूजा करने से अकाल-मृत्यु का भय दूर हो जाता हैं।
      14. स्फटिक के शिवलिंग का पूजन करने से व्यक्ति कि सभी अभीष्ट कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं।
      15. मोती के बने शिवलिंग का पूजन स्त्री के सौभाग्य में वृद्धि करता हैं।
      16. स्वर्ण निर्मित शिवलिंग का पूजन करने से समस्त सुख-समृद्धि कि वृद्धि होती हैं।
      17. चांदी के बने शिवलिंग का पूजन करने से धन-धान्य बढ़ाता हैं।
      18. पीपल कि लकडी से बना शिवलिंग दरिद्रता का निवारण करता हैं।
      19. लहसुनिया से बना शिवलिंग शत्रुओं का नाश कर विजय प्रदत होता हैं।
20. बिबर के मिट्टी के बने शिवलिंग का पूजन विषैले प्राणियों से रक्षा करता  है।
21. पारद शिवलिंग का अभिषेक सर्वोत्कृष्ट माना गया है।
        
-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे महाराज ,  भिलाई (छ.ग.)

सावन में जानिए महादेव शिव और लिंग का गूढ़ रहस्य ?

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सावन में जानिए महादेव शिव और लिंग का गूढ़ रहस्य ?

                                         -ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे महाराज, भिलाई (छ.ग.)-09827198828


फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की महानिशा यानी आधी रात के वक्त भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे, ऐसा ईशान संहिता में बताया गया है। इसीलिए सामान्य जनों के द्वारा पूजनीय रूप में भगवान् शिव के प्राकट्य समय यानी आधी रात में जब चौदस हो उसी दिन यह व्रत किया जाता है।
शिवलिंग क्या है रहस्य ?
वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड का अक्स ही लिंग है। इसीलिए इसका आदि और अन्त भी साधारण जनों की क्या बिसात, देवताओं के लिए भी अज्ञात, अनन्त या नेति-नेति है। सौरमण्डल के ग्रहों के घूमने की कक्षा ही शिव तन पर लिपटे सांप हैं। मुण्डकोपनिषद के कथनानुसार सूरज, चांद और अग्नि ही आपके तीन नेत्र हैं। बादलों के झुरमुट जटाएं, आकाश जल ही सिर पर स्थित गंगा और सारा ब्रह्माण्ड ही आपका शरीर है। शिव कभी गर्मी के आसमान (शून्य) की तरह कर्पूर गौर या चांदी की तरह दमकते, कभी सर्दी के आसमान की तरह नीले और कभी बरसाती आसमान की तरह मटमैले होने से राख भभूत लिपटे तन वाले हैं। यानी शिव सीधे-सीधे ब्रह्माण्ड या अनन्त प्रकृति की ही साक्षात् मूर्ति हैं। मानवीकरण में वायु प्राण, दस दिशाएं पंचमुख महादेव के दस कान, हृदय सारा विश्व, सूर्य नाभि या केन्द्र और अमृत यानी जल युक्त कमण्डलु हाथ में रहता है।
ये देवाधिदेव महादेव क्यों कहे जाते हैं?
बड़ा या महान बनने के लिए त्याग, तपस्या, धीरज, उदारता और सहनशक्ति की दरकार होती है। विष को अपने भीतर ही सहेजकर आश्रितों के लिए अमृत देने वाले होने से और विरोधों, विषमताओं को भी सन्तुलित रखते हुए एक परिवार, एक यूनिट बनाए रखने से आप महादेव हैं। आपके समीप पार्वती का शेर, आपका बैल, शरीर के सांप, कुमार कार्तिकेय का मोर, गणेश का मूषक, विष की अग्नि और गंगा का जल, कभी पिनाकी धनुर्धर वीर तो कभी नरमुण्डधर कपाली, कहीं अर्धनारीश्वर तो कहीं महाकाली के पैरों में लुण्ठित, कभी मृड यानि सर्वधनी तो कभी दिगम्बर, निर्माणदेव भव और संहारदेव रुद्र, कभी भूतनाथ कभी विश्वनाथ आदि सब विरोधी बातों का जिनके प्रताप से एक जगह पावन संगम होता हो, वे ही तो देवों के देव महादेव हो सकते हैं।
बाबा को क्यों चढ़ता है बेलपत्र, भांग, धतूरा
शब्द रूप में ओंकार होने से ‘अ’ यानी सत्वगुण या निर्माण रचना या सृष्टि, ‘उ’ रूप में स्थित रजोगुण या पालन करना और ‘म’ यानी तमोगुण रूप में संहार, समापन या उपसंहार करके फिर नूतन निर्माण का सूत्रपात करने जैसे जेनरेशन, ऑपरेशन और डिस्ट्रक्शन (गॉड), या सृष्टि स्थिति संहार की एक साथ समन्वित शक्ति सम्पन्नता के प्रतीक रूप में तीन दलों वाले, त्रिगुणाकार बेलपत्र और विष के प्रतिनिधि रूप में भांग धतूरा आदि अर्पण किया जाता है।
लिंग क्या है आध्यात्मिक रहस्य  है?
इस शब्द का अर्थ चिह्न, निशानी या प्रतीक है। शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है।
शिवलिंग मन्दिरों में बाहर क्यों?
जनसाधारण के देवता होने से, सबके लिए सदा गम्य या पंहुच में रहे, ऐसा मानकर ही इनका यह स्थान तय किया गया है। ये अकेले देव हैं जो गर्भगृह में भक्तों को दूर से ही दर्शन देते हैं। इन्हें तो बच्चों-बूढ़े-जवान जो भी जाए छूकर, गले मिलकर या फिर पैरों में पड़कर अपना दुखड़ा सुना हल्के हो सकते हैं। भोग लगाने अर्पण करने के लिए कुछ न हो तो पत्ता-फूल, या अंजलि भर जल चढ़ाकर भी खुश किया जा सकता है।
जल क्यों चढ़ता है?
रचना या निर्माण का पहला पग बोना, सींचना या उड़ेलना हैं। बीज बोने के लिए गर्मी का ताप और जल की नमी की एक साथ जरूरत होती है। अत: आदिदेव शिव पर जीवन की आदिमूर्ति या पहली रचना, जल चढ़ाना ही नहीं लगातार अभिषेक करना अधिक महवपूर्ण होता जाता है। सृष्टि स्थिति संहार लगातार, बार-बार होते ही रहना प्रकृति का नियम है। अभिषेक का बहता जल चलती, जीती-जागती दुनिया का प्रतीक है।
शनि को शिवपुत्र क्यों कहते हैं?
संस्कृत शब्द शनि का अर्थ जीवन या जल और अशनि का अर्थ आसमानी बिजली या आग है। शनि की पूजा के वैदिक मन्त्र में वास्तव में गैस, द्रव और ठोस रूप में जल की तीनों अवस्थाओं की अनुकूलता की ही प्रार्थना है। खुद मूल रूप में जल होने से शनि का मानवीकरण पुराणों में शिवपुत्र या शिवदास के रूप में किया गया है। इसीलिए कहा जाता है कि शिव और शनि दोनों ही खुश हों तो निहाल करें और नाराज हों तो बेहाल करते हैं।
लेकिन शनि तो सूर्यपुत्र है
सूर्य जीवन का आधार, सृष्टि स्थिति का मूल, वर्षा का कारण होने से पुराणों में खुद शिव या विष्णु का रूप माना गया है। निर्देश है कि शिव या विष्णु की पूजा सूर्यपूजा के बिना अधूरी है। खुद सूर्य जलकारक दायक पोषक होने और शनि स्वयं जलरूप रहने से इस बात में कोई विरोध नहीं हैं।
रात की चार पूजाओं में विशेष
रात्रि में चारों पहरों की पूजा में अभिषेक जल में पहले पहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घी और चौथे में शहद को मुख्यतया शामिल करना चाहिए।

जमकर बरसेंगे बादल

Durg Bhilai
जमकर बरसेंगे बादल
Bhaskar News Wednesday, June 17, 2009 06:58 [IST]  

भिलाई. मौसम विज्ञानियों का कहना है कि मानसून के लिए अभी और सब्र करना होगा। उनके मुताबिक 23-24 जून तक मानसून आने की संभावना है। सितारें भी यही कह रहे हैं। ज्योतिषियों के मुताबिक 22 जून तक मानसून आएगा। छत्तीसगढ़ में इस बार अच्छी बारिश भी होगी।
आषाढ़ के महीने में भी सूरज इतरा रहा है और पारा 43-44 डिग्री से नीचे नहीं उतर रहा है। रूठे मानसून ने हर किसी को हलाकान कर रखा है। किसान परेशान हैं कि कब झमाझम बारिश हो और वे हल लेकर खेतों की ओर निकल पड़ें। शहरी जनता, अफसरों और बाबुओं की भी दिली इच्छा है कि ऐसी घाटाएं उमड़े कि बाग में मयूर नाच उठे और मन का मयूर भी। वे सूरज की तपिश और उमस से परेशान हैं।
कुछ दिन पहले घाटाएं उमड़ीं, गरजीं, बरसीं और गायब भी हो गई। स्थानीय प्रभाव से कभी-कभार हो रही इस बारिश से न ही मिट्टी की सोंधी महक आ रही है और न ही लोगों का मन भर रहा है। सभी चाहते हैं कि ऐसी बारिश हो कि बस तन-मन भीग जाए। नदी-नाले बह निकलें और धरती भी तृप्त हो जाए।
जीवन ज्योतिष केंद्र शांतिनगर के संचालक पंडित विनोद चौबे ने बताया कि 22 जून को तड़के 3 बजकर 45 मिनट पर वृषभ लग्न में सूर्य आद्रा नक्षत्र में प्रवेश करेगा। उस समय चंद्र नक्षत्र मृगशिरा नामक नक्षत्र रहेगा और लन्गस्थ जलतत्व प्रधान चंद्रमा के ऊपर वायु तत्व शनि का प्रभाव पड़ेगा। ऐसे में आंधी, तूफान व बवंडर के साथ मानसून दस्तक देगा। 5 जुलाई तक इसी तरह तेज हवाओं के साथ बारिश होती रहेगी।
इस समय आद्रा प्रवेश के समय सूर्य गज (हाथी) पर सवार रहेगा। इसकी नाड़ी जलतत्व होगी। यह बारिश के लिए बहुत ही अच्छा योग है। शास्त्रों में कहा गया है कि ‘गजा रूढ़ो वत्सरश्च सुभिक्षम च प्रजा सुखम, वर्षा काले सुवृष्टि च सुखिन: सर्वजंतव:’ अर्थात गज पर सवार होकर सूर्य का आद्रा नक्षत्र में प्रवेश करने पर पूरे वर्षाकाल में अच्छी बारिश होती है।
इससे प्रजा व सभी जीव-जंतु सुखी रहते हैं। श्री चौबे ने बताया कि 5 जुलाई के बाद झमाझम बारिश होगी क्योंकि 2 जुलाई को पूर्व दिशा में सूर्य अस्त हो रहा है और 5 जुलाई को पुनर्वसु नक्षत्र पर सूर्य का प्रवेश होगा। शास्त्रों में भी कहा गया है कि ‘उदयास्त गत शुक्रो बुद्घश्च वृष्टिकारक:’ । उन्होंने बताया कि इस दौरान छत्तीसगढ़ में अच्छी बारिश होगी, लेकिन समुद्र तटीय क्षेत्रों में आंधी व बवंडर के कारण यह अनिष्ट कारक हो सकता है।
पं. उमेश जानी का कहना है कि आषाढ़ मानसून का प्रतीक है। ऐसी लोकगीत भी प्रचलित है कि ‘आषाढ़ उचारम, मेष मल्हारम, पनि बहारम, शूलधारम, दातूदंडकारम, मयूरप्रकारम वर्षा वर्षिधारम’ अर्थात आषाढ़ में मेघ ऊंचे आसमान पर छा जाते हैं। यह देखकर मयूर झूमने लगता है। मूसलाधार बारिश होती है। आषाढ़ महीना सोमवार यानी चंद्रवार से शुरू हुआ है।
उदित लन्ग तुला और लन्गेश छठवां के कारण इसलिए बारिश का अच्छा योग है। दस दिन के भीतर झमाझम बारिश होगी। 24 जून को आषाढ़ी दूज रथ यात्रा के दिन पुनर्वसु और पुष्य नक्षत्र आधा-आधा है। इसके बाद अगले दिन गुरुवार को पुष्यामृत योग है, जो बारिश के लिए उत्तम है।
पंडित दानेश्वर शर्मा बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में यह कहावत काफी लोकप्रिय है कि ‘नीर मंडल दूर पानी, दूर मंडल नीर पानी’। इसी तरह ‘ चिरई धुर्रा खेले, त पानी गिरही’ अर्थात चिड़िया जब धूल में स्नान करते दिखे तो समझ लेना चाहिए कि अब बारिश होगी।
अटक गया मानसून : कृषि मौसम विज्ञान विभाग रायपुर के विभागाध्यक्ष एसआर पटेल ने भारत मौसम विज्ञान विभाग के हवाले से बताया है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून में विगत आठ-दस दिन से कोई विशेष परिवर्तन नहीं दिख रहा है।

रविवार, 17 जुलाई 2011

रूद्राक्ष की महिमा एवं धारण ( एक सम्पूर्ण अध्ययन)

रूद्राक्ष की महिमा एवं धारण ( एक सम्पूर्ण अध्ययन)------------ ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे महाराज 09827198828
भगवान शिव से ही रूद्राक्ष की उत्पत्ति हुयी है लेकिन यह कम लोग जानते हैं कि भगवान शिव के अश्रुपात् से ही  रुद्राक्ष की उत्पति हुयी है। इस  सम्बन्ध में कहा गया है कि एक बार भगवान आशुतोष शंकर जी ने देवताओं एवं मनुष्यो के हित के लिए असुर त्रिपुरासुर का वध करना चाहा और एक सौ वर्षों तक तपस्या को तथा अघोरास्त्र  का चिंतन किया। भगवान के मनोहर नेत्रों से अश्रु (आंसू) गिरे उन्ही अश्रुओं से रुद्राक्ष के महान वृक्षो की उत्पति हुई|
शिवपुराण, लिंगपुराण, एवं सकन्द्पुराण आदि में इस का विशेष रूप से वर्णन मिलता है।
रुद्राक्ष का स्पर्श, दर्शन, उस पर जप करने से, उस की माला को धारण करने से समस्त पापो का और विघ्नों का नाश होता है ऐसा महादेव का वरदान है, परन्तु धारण की उचित विधि और भावना शुद्ध होनी चाहिए|
भोग और मोक्ष की इच्छा रखने वाले चारो वर्णों के लोगों को विशेष कर शिव भगतो को शिव पार्वती की प्रार्थना और प्रसंता के लिए रुद्राक्ष जरुर धारण करना चाहिए|
आमलकी अर्थात आंवले के फल के सामान रुद्राक्ष समस्त अरिष्टो का नाश करने वाला होता है|
बेर के सामान छोटा दिखने वाला रुद्राक्ष सुख और सौभाग्य कीं वृध्दी करने वाला होता है|
रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करने से अनंत गुना फल मिलता है|
जिस माला में अपने आप धागा पिरोया जाने योग्य छेद हो वह उत्तम होता है,प्रयत्न कर के धागा पिरोया जाये तो वह माध्यम श्रेणी का रुद्राक्ष होता है|
रुद्राक्ष धारण करने का शुभ महूर्त- मेष  संक्रांति ,पूर्णिमा,अक्षय त्रितय,दीपावली,चेत्र शुकल प्रतिपदा,अयन परिवर्तन काल ग्रहण काल,गुरु पुष्य ,रवि पुष्य,द्वि और त्रिपुष्कर योग में रुद्राक्ष धारण करने से समस्त पापों के शमन के अलावा शत्रुओं का नाश होता है| ज्ञात हो कि देश के शिर्ष पद  बैठने वाली इंदिरा गांधी भी धारण की थीं। जो नेपाल नरेश के द्वार उनको उपहार स्वरूप प्राप्त हुआ  था।
रुद्राक्ष धारण करने की विधि-यदि किसी कारण वश रुद्राक्ष विशेष मंत्रो से धारण न कर सके तो सरल विधि से लाल धागे में पिरो कर गंगा जल से स्नान करा कर “ का जाप कर के चन्दन विल्व पत्र लाल पुष्प ,धुप ,दीप नैवेद्य ,दिखा कर “ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धिमिही तन्नो रुद्र:प्रचोदयात्” से अभिमंत्रित कर के धारण करें और यथा शक्ति दान ब्राहमण को देवें।


एक मुखी रुद्राक्ष-
स्वरुप-एक मुखी रुद्राक्ष शिव का स्वरुप है|
लाभ-एक मुखी रुद्राक्ष ब्रहम हत्या आदि पापो को दूर करने वाला है|
मंत्र -एक मुखी रुद्राक्ष को “ॐ ह्रीं नमः “मंत्र का जाप कर के धारण करे|
दो मुखी रुद्राक्ष
स्वरुप-दो मुखी रुद्राक्ष देवता स्वरुप है,पापो को दूर करने वाला और अर्धनारीश्वर स्वरुप है|
लाभ-दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने से अर्धनारीश्वर प्रस न्न होते है|
मंत्र -दो मुखी रुद्राक्ष को “ॐ नमः “का जाप कर के धारण करे|
तीन मुखी रुद्राक्ष
स्वरुप- तीन मुखी रुद्राक्ष अग्नि स्वरुप है|
लाभ-तीन मुखी रुद्राक्ष हत्या आदि पापो को दूर करने में समर्थ है,शौर्य और ऐश्वर्या को बढाने वाला है|
मंत्र -तीन मुखी रुद्राक्ष को “ॐ क्लीं नमः” का जाप कर के धारण करे|
चतुर्मुखी रुद्राक्ष
स्वरुप- चतुर्मुखी रुद्राक्ष साक्षात् ब्रह्म जी का स्वरुप है,
लाभ-चतुर्मुखी रुद्राक्ष के स्पर्श और दर्शन मात्र से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, की प्राप्ति होती है|
मंत्र -चतुर्मुखी रुद्राक्ष को “ॐ ह्रीं नमः” मन्त्र का जाप कर के धारण करे|
पञ्च मुखी रुद्राक्ष
स्वरुप- पञ्च मुखी रुद्राक्ष पञ्च देवो(विष्णु,शिव,गणेश,सूर्य और देवी)का स्वरुप है|
लाभ- “पञ्च वक्त्रं तु रुद्राक्ष पञ्च ब्रह्म स्वरूपम” इस के धारण मात्र से नर हत्या का पाप मुक्त हो जाता है,इस को धारण करने से काल अग्नि स्वरुप अगम्य पाप दूर होते है|
मंत्र -पञ्च मुखी रुद्राक्ष को “ॐ ह्रीं नमः “मंत्र का जाप कर के धारण करे|
छह मुखी रुद्राक्ष
स्वरुप-छह मुखी रुद्राक्ष साक्षात् कार्तिकेय स्वरुप है|
लाभ-छह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से श्री और आरोग्य की प्राप्ति होती है|
मंत्र- छह मुखी रुद्राक्ष को “ॐ ह्रीं नमः”मंत्र का जाप कर के धारण करे|”
सप्त मुखी रुद्राक्ष
स्वरुप- सप्त मुखी रुद्राक्ष साक्षात् कामदेव स्वरुप है|
लाभ-सप्त मुखी रुद्राक्ष अत्यंत भाग्य शाली और स्वर्ण चोरो आदि पापो को दूर करता है|
अष्ट मुखी रुद्राक्ष
स्वरुप- यह रुद्राक्ष साक्षात् साक्षी विनायक देव है|
लाभ-इस के धारण करने से पञ्च पातको का नाश होता है|
इस को “ॐ हम् नमः” मंत्र का जाप कर के धारण करने से परम पद की प्राप्ति होती है!
नवमुखी रुद्राक्ष
इसे भैरव और कपिल मुनि का प्रतीक माना गया है| नौ रूप धारण करने वाली भगवती दुर्गा इस की अधीश्तात्री मानी गई है|
जो मनुष्य भगवती परायण हो कर अपनी बाई हाथ अथवा भुजा पर इस को धारण करता है, उस पर नव शक्तिया प्रसन्न होती है|
वह शिव के सामान बलि हो जाता है इसे”ॐ ह्रीं हुं नमः”का जाप कर के धारण करना चाहये|
दश मुखी रुद्राक्ष
दश मुखी रुद्राक्ष साक्षात् भगवान जनादन है|
इस के धारण करने से ग्रह, पिशाच,बेताल,ब्रम्ह राक्षस,और नाग आदि का भय दूर होता है|
इसे मंत्र”ॐ ह्रीं नमः”का जाप कर के धारण करना चाहिए|
एकादश मुखी रुद्राक्ष
एकादश मुखी रुद्राक्ष एकादश रुदर स्वरुप है|
शिखा पर धारण करने से पुण्य फल,श्रेष्ठ यज्ञो के फल की प्राप्ति होती है|
एकादश मुखी रुद्राक्ष को “ॐ ह्रीं हम् नमः का जाप कर के धारण करने से साधक सर्वत्र विजय होता है|

द्वादश मुखी रुद्राक्ष
द्वादश मुखी रुद्राक्ष महा विष्णु का स्वरुप है|
इस रुद्राक्ष को “ॐ क्रों क्षों रों नमः”का जाप कर के धारण करने से साधक साक्षात् विष्णु जी को मही धारण करता है|
इसे कान में धारण करने से द्वादश आदित्य भी प्रस्सन होते है|
तेरह मुखी रुद्राक्ष
तेरह मुखी रुद्राक्ष काम देश स्वरुप है|
इस रुद्राक्ष को धारण करने से समस्त कामनाओ की इच्छा भोगो की प्राप्ति होती है|
इसे “ॐ ह्रीं हुम् नमः का जाप कर के धारण करना चाहये|
चौदह मुखी रुद्राक्ष
चौदह मुखी रुद्राक्ष अक्षि से उत्पन हुआ है,यह भगवान का नेत्र स्वरुप है|



















इस रुद्राक्ष को “ॐ नमः शिवाय” का जाप कर के धारण करना चाहिए|इस को धारण करने से साधक शिव तुल्य हो कर सब व्यधियो और रोगों को हर लेता है और आरोग्य प्रदान करता है|
( पाठकों से अनुरोध है कि उपर दिये मंत्रों के बारे विधीवत जानकारी ले लें रूद्राक्ष के बारे शुद्धी-अशुद्धी की जांच परख किया गया रूद्राक्ष विशेष मंत्रों से सिद्ध कर  हमारे यहां मंगाया जा सकता है)
पताः ज्योतिष का सूर्य, जीवन ज्योतिष भवन कोहका मेन रोड शांतिनगर भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)- 09827198828

अकाल मृत्यु का भय नाश करतें हैं महामृत्युञ्जय

अकाल मृत्यु का भय नाश करतें हैं महामृत्युञ्जय                                                                                                        -ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे महाराज18/7/2011को सावन का प्रथम सोमवार है धनिष्ठा नक्षत्र/ शतभिषा नक्षत्र दोनों का संयोग जो ग्रहों के द्वारा पिड़ीत आम जन मानस को मुक्ती आसानी से मिल सकती है। सोमवार के व्रत में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं। सोमवार, सोलह सोमवार और सौम्य प्रदोष। इस व्रत को सावन माह में आरंभ करना शुभ माना जाता है।
सावन में शिवशंकर की पूजा :
 सावन के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है।
क्यों किया जाता है ? महादेव का अभिषेक :- महादेव का अभिषेक करने के पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने के बाद जब महादेव इस विष का पान करते हैं तो वह मूर्चि्छत हो जाते हैं। उनकी दशा देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं और उन्हें होश में लाने के लिए निकट में जो चीजें उपलब्ध होती हैं, उनसे महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर तमाम उन चीजों से महादेव का अभिषेक किया जाता है।
'मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये'
इसके पश्चात निम्न मंत्र से ध्यान करें-
'ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥
ध्यान के पश्चात 'ऊँ नम: शिवाय' से शिवजी का तथा 'ऊँ नम: शिवायै' के अलावा जन साधारण को महामृत्युञ्जय मंत्र का जप करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है । अत: शिव-पार्वती जी का षोडशोपचार पूजन कर राशियों के अनुसार दिये मंत्र से अलग-अलग प्रकार से पुष्प अर्पित करें।

राशियों के अनुसार क्या चढ़ावें भगवान शिव को:
 भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और समीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 88 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है।
मेष:-ऊँ ह्रौं जूं स:, इस त्र्यक्षरी महामृत्युछञ्जय मंत्र बोलते हुए 11 बेलपत्र चढ़ावें। वृषभ: ऊँ शशीशेषराय नम: इस मंत्र से 84 शमीपत्र चढ़ावें। मिथुन: ऊँ महा कालेश्वराय नम: (बेलपत्र 51)। कर्क: ऊँ त्र्यम्बकाय नम: (नील कमल 61)। सिंह: ऊँ व्योमाय पाय्र्याय नम: (मंदार पुष्प 108) कन्या: ऊँ नम: कैलाश वासिने नंदिकेश्वराय नम:(शमी पत्र 41)तुला: ऊँ शशिमौलिने नम: (बेलपत्र 81) वृश्चिक:
ऊँ महाकालेश्वराय नम: ( नील कमल 11 फूल) धनु:  ऊँ  कपालिक भैरवाय नम: (जंवाफूल कनेर108) मकर : ऊँ भव्याय मयोभवाय नम: (गन्ना रस और बेल पत्र 108)कुम्भ: ऊँ कृत्सनाय नम: (शमी पत्र 108) मीन: पिंङगलाय नम: (बेलपत्र में पीला चंदन से राम नाम लिख कर 108)
सावन सोमवार व्रत नियमित रूप से करने पर भगवान शिव तथा देवी पार्वती की अनुकम्पा बनी रहती है।
जीवन धन-धान्य से भर जाता है।
सभी अनिष्टों का भगवान शिव हरण कर भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं।

शनिवार, 16 जुलाई 2011

श्रावण मास में हरियाली अमावस :हरियाली अमावस्या पर वृक्षारोपण का महत्व

श्रावण मास में हरियाली अमावस :हरियाली अमावस्या पर वृक्षारोपण का महत्व
प्रकृति अपना रूप ऋतुओं के अनुसार बदलती रहती है। ऋतुओं का क्रम एव समन्वय इस प्रकार का है कि हम प्रत्येक ऋतुओं में आनन्द का अनुभव कर सकते है। जैसे ठिठुरती सर्दी के बाद बसंत का आना और अपने नयनाभिराम दृश्यों से जन-जन और हृदय को उल्लासित करना। फिर बसन्त के बाद ग्रीष्म का आगमन होता है सूर्य की तेज रश्मियों से पुष्प मुरझा जाते है। पत्ते गिरने लगते है। ग्रीष्म ऋतु का अंत वर्षा ऋतु के आगमन का संदेश देने लगता है। प्रकृति की उदासीनता दूर होकर सर्वत्र हरियाली छा जाती है और इसी श्रावण मास में हरियाली अमावस हरियाली तीज जैसे त्यौहार मनाये जाते है।
हरियाली अमावस पर पीपल के वृक्ष की पूजा एवं फेरे किये जाते है तथा मालपूए का भोग बनाकर चढ़ाये जाने की परम्परा है। हरियाली अमावस्या पर वृक्षारोपण का अधिक महत्व है। शास्त्रों में कहा गया है कि एक पेड़ दस पुत्रों के समान होता है। पेड़ लगाने के सुख बहुत होते है और पुण्य उससे भी अधिक। क्योंकि यह वसुधैव कुटुम्बकम की भावना पर आधारित होते है। वृक्ष सदा उपकार की खातिर जीते है। इसलिये हम वृक्षों के कृतज्ञ है। वृक्षों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने हेतु परिवार के प्रति व्यक्ति को हरियाली अमावस्या पर एक-एक पौधा रोपण करना चाहिये। पेड़-पौधों का सानिध्य हमारे तनाव को तथा दैनिक उलझनों को कम करता है।
पौधा रोपण हेतु ज्योतिषीय मुहूर्त
पौधा रोपण हेतु ज्योतिष के अनुसार नक्षत्रों का महत्व है। उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपदा, रोहिणी, मृगशिर, रेवती, चित्रा, अनुराधा, मूल, विशाखा, पुष्य, श्रवण, अश्विनी, हस्त इत्यादि नक्षत्रों में किये गये पौधारोपण शुभ फलदायी होते है।
वास्तु के अनुसार घर के समीप शुभ प्रभावकारी वृक्ष  घर के समीप शुभ करने वाले वृक्ष- निम्ब, अशोक, पुन्नाग, शिरीष, बिल्वपत्र, आँकड़ा तथा तुलसी का पौधा आरोग्य वर्धक होता है।
वास्तु के अनुसार घर के समीप अशुभ  प्रभावकारी वृक्ष- पाकर, गूलर, नीम, बहेड़ा, पीपल, कपित्थ, बेर, निर्गुण्डी, इमली, कदम्ब, बेल, खजूर ये सभी घर के समीप अशुभ है। घर में बेर, केला, अनार, पीपल और नींबू लगाने से घर की वृद्धि नहीं होती। घर के पास कांटे वाले, दूध वाले और फल वाले वृक्ष हानिप्रद होते है। घर की आग्नेय दिशा में पीपल, वट, सेमल, गूलर, पाकर के वृक्ष हो तो शरीर में पीड़ा एवं मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।
वृक्षों एवं पौधों का धार्मिक महत्व
हमारी धर्म संस्कृति में वृक्षों को देवता स्वरूप माना गया है। मनु-स्मृति के अनुसार वृक्ष योनि पूर्व जन्मों के कर्मों के फलस्वरूप मानी गयी है। परमात्मा द्वारा वृक्षों का सर्जन परोपकार एवं जनकल्याण के लिए किया गया है।
तुलसी- तुलसी एक बहुश्रुत, उपयोगी वनस्पति है। स्कन्दपुराण एवं पद्मपुराण के उत्तर खण्ड में आता है कि जिस घर में तुलसी होती है वह घर तीर्थ के समान होता है। समस्त वनस्पतियों में सर्वाधिक धार्मिक, आरोग्यदायिनी  एवं शोभायुक्त तुलसी भगवान नारायण को अतिप्रिय है। तुलसी माला से मन्त्र जाप अधिक शुभ फलदायी होते है। तुलसी के समीप किया गया अनुष्ठान अत्यन्त पुण्यदायी एव ंसद्गति प्राप्त कराता है।
बिल्वपत्र- शिवपुराण के अनुसार बिल्व पत्र का महत्व इस प्रकार है। एक बिल्व पत्र रोज चढ़ाने से मनुष्य संसार सागर में गोते नहीं खाता, इस संसार में पुण्यात्मा रूप में सुविख्यात होता है। बिल्व पत्र का पौधा पोषित करने वाले को अनन्त पुण्य फल मिलता है। भगवान शंकर के तीर्थ स्थलों पर बिल्वपत्र का पेड़ लगाने की प्राचीन परम्परा है।
केला- केला, विष्णुपूजन के लिये उत्तम माना गया है। गुरूवार को बृहस्पति पूजन में केला का पूजन अनिवार्य हैं। हल्दी या पीला चन्दन, चने की दाल, गुड़ से पूजा करने पर विद्यार्थियों को विद्या तथा कुँवारी कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है।
पीपल- पीपल के वृक्ष में अनेकों देवताओं का वास माना गया है। पीपल के मूल भाग में जल, दूध चढ़ाने से पितृ तृप्त होते है तथा शनि शान्ति के लिये भी शाम के समय सरसों के तेल का दिया लगाने का विधान है। शनिश्चरी अमावस्या, सोमवती अमावस्या, हरियाली अमावस्या को पीपल पूजन एवं पीपल के फेरे लिये जाते है। पीपल का वृक्ष लगाने एवं सेवा करने से वंशवृद्धि होती है।
बड़- बड़ वृक्ष की पूजा सौभाग्य प्राप्ति के लिये की जाती है। जिस प्रकार सावित्री ने बड़ की पूजा कर यमराज से अपनी पति के जीवित होने का वरदान मांगा था। उसी प्रकार सौभाग्य वती स्त्रियां अपने पति की लम्बी उम्र की कामना हेतु यह व्रत करके बड़ वृक्ष की पूजा एव ंसेवा करती है।
आँवला- आँवले का वृक्ष आरोग्यवर्धक, तेज एवं मेधा प्रदान करने वाला होता है। परिवार की उत्तम स्वास्थ्य की कामना हेतु आँवला नवमी पर इसकी पूजा का विधान है। आँवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण भोजन कराने तथा दान देने का विशेष फल है।
पलाश- वेदों में पलाश को ब्रह्म वृक्ष कहा गया है। पलाश के प्रति श्रद्धाभाव ऋषियों ने इस प्रकार व्यक्त किया-
ब्रह्मवृक्ष पलाशस्तवं श्रद्धां मेधां च देहि मे।
वृक्षाधिपो नमस्तेस्तु त्वं चात्र सन्निधो भव।।
अर्थात् हे पलाशरूपी ब्रह्मवृक्ष! आप समस्त वृक्षों के राजा है आप मुझे श्रद्धा और मेधा प्रदान करें। आपको मेरा नमस्कार है मैं इस वृक्ष में आपका आव्हान करता हूँ, इसमें आप सन्निहित हो जाये।
इस प्रकार वृक्षों का धार्मिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी जुड़ा हुआ है। जहाँ पेड़ों तथा वनों का अभाव है वहाँ वायु प्रदूषित है। वायुमण्डल में ऑक्सीजन अन्य गैसीय तत्वों का अनुपात असंतुलित हो रहा है।
वनों का क्षेत्र कम होने से वर्षा भी अनियमित ढंग से हो रही है। कहीं वृष्टि तो कहीं अनावृष्टि।
वक्षों के विनाश का दुष्परिणाम मानव समुदाय को सीधे तौर पर भुगतना पड़ रहा है।
आज हरियाली अमावस्या पर हम संकल्प ले कि हम अपने-अपने नगर को हरियाला एवं स्वच्छ बनाये ताकि धरती पर जैविक संतुलन भी बना रहे।
आइये जानते है कुछ विशेष कामना सिद्धि हेतु कौन से वृक्ष लगाये-
१. लक्ष्मी प्राप्ति के लिए- तुलसी, आँवला, केल, बिल्वपत्र का वृक्ष लगाये।
२. आरोग्य प्राप्ति के लिए- ब्राह्मी, पलाश, अर्जुन, आँवला, सूरजमुखी, तुलसी लगाये।
३. सौभाग्य प्राप्ति हेतु- अशोक, अर्जुन, नारियल, बड़ (वट) का वृक्ष लगाये।
४.  संतान प्राप्ति हेतु- पीपल, नीम, बिल्व, नागकेशर, गुड़हल, अश्वगन्धा को लगाये।
५. मेधा वृद्धि प्राप्ति हेतु- आँकड़ा, शंखपुष्पी, पलाश, ब्राह्मी, तुलसी लगाये।
६. सुख प्राप्ति के लिए- नीम, कदम्ब, धनी छायादार वृक्ष लगाये।
७. आनन्द प्राप्ति के लिए- हरसिंगार (पारिजात) रातरानी, मोगरा, गुलाब लगाये।

भिलाई नगर निगम : गरीबों की जमीन पर करोड़पतियों का कब्जा

गरीबों की जमीन पर करोड़पतियों का कब्जाहृषीकेश त्रिपाठी
(पत्रकार)
शारदापारा आवासीय योजना को शुरू में ही रईसों की नजर लग गई। इस संदर्भ में उच्च न्यायालय के डबल बैंच के समक्ष भिलाई नगर निगम नें रीट दायर किया। करोड़ों की जमीन जो गरीबों के आवास के लिए आबंटित की गई, उसे करोड़पतियों ने हथिया लिया। भिलाई नगर निगम नें इस हड़पी गई जमीन को वापस निगम के अंतर्गत लाने का बीड़ा उठाया है।
विघटित विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा) भिलाई द्वारा आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगों के लिए 1977 शारदापारा आवासीय योजना शुरू की गयी। इस योजना का मूल उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर जैसे लोग जनिके पास स्वयं का आवास नहीं थे, उन्हें आवास निर्माण हेतु भूमि देना था।
हितग्राहियों के लिए 450 वर्ग फुट भूखण्ड की कुल किमत मात्र सात सौ रू.निर्धरित की गयी । इसके अन्र्तगत 100 रू. पंजीयन शुल्क रखा गया एवं शेष राशि के लिए 12.50 रू.मासिक किश्त 60रू. समान किश्तों में लिया जाने का प्रावधान किया गया था। समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित कर  प्रथम आया प्रथम पाया के आधार पर आवंटन किया गया।
योजना के अंतर्गत पाँच वर्ष के अन्दर कंट्रोल शीट के अनुसार भवन निर्माण की शर्त रखी गयी थी।
पंजीयन के आठ वर्षों के बाद भी जब भूमि पर भवन निर्माण नहीं हुआ तो वर्ष 1985 से 1988 के मध्य कई बार आम सूचना के द्वारा तथा व्यक्तिगत रूप से भी हितग्राहियों को भवन निर्माण करने  की सूचना दी गयी।
नियम एवं शर्तों के उल्लंघन के कारण अर्थात आबंटित भूमि पर भवन निर्माण हितग्राहियों द्वारा न करने के कारण साडा ने 25 फरवरी 1992 में योजना के अंतर्गत किए गए आबंटन को निरस्त करने का निर्णय लिया। पुन: योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए समाचार पत्रों के माध्यम से सूचना प्रकाशित कर भवन निर्माण करने का संकल्प 22 जुलाई 1995 को साडा की बैठक में लिया गया। दिसंबर 1995 में साडा द्वारा हितग्राहियों को पुन: एक वर्ष का समय दिया गया। इसके पश्चात 20 मई 2004 को भिलाई नगर निगम द्वारा सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया कि यदि हितग्राहियों द्वारा नियम पालन नहीं हो पा रहा है तो आबंटन निरस्त किया जाए तथा जिन हितग्राहियों द्वारा आवास की मांग की जाती है उसे शासन की अन्य आवासीय योजना से लाभान्वित किया जाए। इसी बैठक में शारदापारा आवासीय योजना की भूमि पर कब्जा न होने देने के लिए शासन को कुछ योजनाएँ भेजने की स्वीकृति दी गई जिसमें मुख्य रूप से बैकुंठ धाम के उत्तर में सरोवर एवं सरोवर स्थल के पूर्व में पुष्पवाटिका योजना, बैकुंठधाम खेल परिसर एवं मुख्यमंत्री स्वावलंबन तथा महिला समृद्धि योजना भी शामिल हैं।
सरोवर योजना को मूर्त रूप देने की अनुमानित लागत 605.24 लाख रूपये है। छत्तीसगढ़ शासन रायपुर द्वारा 14 लाख की स्वीकृति योजना हेतु प्रदाय प्रथम दो चरण के लिए 74.04 लाख रूपये की निविदा को 31 जुलाई 2004 को जारी किया गया। इसी बीच 29 जुलाई 2004 को हितग्राही राजेन्द्र शर्मा एवं अन्य 4 लोगों द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका प्रस्तुत की गई, जिसे 10 मार्च 2011 में राजेन्द्र कुमार शर्मा एवं अन्य विरूद्ध छ.ग. शासन तथा रामसिया गुप्ता व अन्य विरूद्ध छ.ग. शासन में याचिका स्वीकार की गई।
भिलाई नगर निगम ने इसके विरूद्ध 29 अप्रैल को उच्च न्यायालय के डबल बैंच के समझ रिट  दायर किया जिसकी सुनवाई लंबित है।

शिक्षे! तुम्हारा नाश हो, तुम नौकरी के हित में बनीं।।

शिक्षे! तुम्हारा नाश हो, तुम नौकरी के हित में बनीं।।
                                                                             डॉ. सुचित्रा शर्मा  सहायक प्राध्यापक,शासकीय   महाविद्यालय वैशाली नगर
शक्षा प्रत्येक समाज के चिंतन की सर्वोच्च प्राथमिकता है। समाज के सृजन और पालक के रूप में उसका संबंध भूत, वर्तमान और भविष्य के साथ त्रिआयामी है। हम गतिशील समाज के अंग हैं और परिवर्तन को नकार नहीं सकते, यह एक स्वाभाुिवक और नैतिक प्रक्रिया हो गई है जिसके अंतर्गत हम केवल यह कह सकते हैं कि आगामी कल आज से सर्वथा भिन्न होगा तथा कल तक जो भी समाज के लिए सार्थक व उपयोगी था, आवश्यक नहीं कि आज भी वैसा ही हो। इस दृष्टिकोण से शिक्षा विकासात्मक प्रक्रिया है। इसके समयबद्ध नियोजन से ही शिक्षा की गुणात्मक और परिमाणात्मक स्वरूपों में सही तालमेल बिठाया जा सकेगा।
शिक्षा प्रत्येक समाज के चिंतन की सर्वोच्च प्राथमिकता है। समाज के सृजन और पालक के रूप में उसका संबंध भूत, वर्तमान और भविष्य के साथ त्रिआयामी है। हम गतिशील समाज के अंग हैं और परिवर्तन को नकार नहीं सकते, यह एक स्वाभाुिवक और नैतिक प्रक्रिया हो गई है जिसके अंतर्गत हम केवल यह कह सकते हैं कि आगामी कल आज से सर्वथा भिन्न होगा तथा कल तक जो भी समाज के लिए सार्थक व उपयोगी था, आवश्यक नहीं कि आज भी वैसा ही हो। इस दृष्टिकोण से शिक्षा विकासात्मक प्रक्रिया है। इसके समयबद्ध नियोजन से ही शिक्षा की गुणात्मक और परिमाणात्मक स्वरूपों में सही तालमेल बिठाया जा सकेगा।
शिक्षा क्या है सभी जानते हैं परंतु इसके केवल औपचारिक अर्थ को समझ लेना काफी नहीं। सुकरात ने जीवन का मुख्य उददेश्य ज्ञान प्राप्त करना बताया, प्लेटो ने अच्छी आदतों के विकास को शिक्षा माना है जबकि अरस्तु ने चित्त की प्रसन्नता को शिक्षा का उद्देश्य माना है, बल्कि उन्होंने तो कहा कि बच्चा अपने अनुभव के आधार पर ही शिक्षा ग्रहण करता है। डान ड्यूई ने कहा कि शिक्षा का अर्थ है व्यक्ति में अंतर्निहित उन सभी योग्यताओं का विकास करना जिनसे वह अपने चारों ओर के परिवेश को अपने अनुसार मोड़ सके तथा अपनी योग्यताओं को चहुँदिशा विकसित कर सके। महात्मा गांधी, टैगोर, विवेकानंद सभी चिंतकों ने जीवन के सर्वांगीण विकास को शिक्षा मान अपनी व्याख्या की।
मानव जीवन को बदलने की संजीवनी
अत: शिक्षा अर्थात् मानव जीवन को बदलने वाली संजीवनी, जो मानव को समाज की मुख्य धारा से जोडऩे की ताकत देती है, यूं कहें कि यह एक ऐसा अस्त्र है जो हमारे जीवन से अज्ञानतारूपी अंधकार का नाश कर दिमाग को जागृत करता है। एक समय था जब शिक्षा के केन्द्र गुरूकुल हुआ करते थे, जहां रह कर बच्चा ज्ञान प्राप्त कर जीवन के लिए तैयार होता था। ऐसा नहीं कि हर बच्चा गुरू के आश्रम में प्रवेश पा जाये। गुरू द्वारा ली गई परीक्षा में पास होने पर ही वह उनसे विद्या ग्रहण करने का अधिकारी होता था। यह परीक्षा होती थी विद्यार्थी जीवन के लिए आवश्यक गुण जैसे त्याग, सहनशीलता, संयम, आत्म नियंत्रण, लगन की। इनमें सफल होने पर ही वह गुरू द्वारा प्रदत्त धर्म, लोक व्यवहार, शास्त्र व शास्त्रगत व्यवहार तथा प्रकृति के स्वरूप की सीख दक्षता हासिल कर जीवन के अगले पड़ाव की ओर उन्मुख होता था। संस्कार द्वारा गुरूकुल में प्रवेश और संस्कार द्वारा ही दीक्षित कहलाता था। कहने का तात्पर्य है कि विधिवत् शिक्षा सीधे न हासिल कर मानसिक व शारीरिक सक्षमता के बाद ही शिक्षित होता था। वह वास्तव में विद्या अर्जन थी जो उसे विधिवत ज्ञान के साथ जीवन के लिए आवश्यक गुणों से परिपूर्ण बनाती थी। वह विद्यार्थी कहलाता था परंतु आज वह शिक्षार्थी कहलाता है क्योंकि शिक्षा का अर्थ और लक्ष्य समय के साथ बदलते चले गया।   
कथनी और करनी के बीच अंतर की कहानी
वर्तमान युग है उदारीकरण, वैश्वीकरण एवं निजीकरण का। इन त्रिप्रक्रियाओं ने सारी व्यवस्था को न केवल प्रभावित किया है बल्कि तमाम परिभाषाओं को बदल दिया है। हम जानते हैं कि विकास के आधारों में शिक्षा एक बहुत आवश्यक तत्व है, इसी पर सम्पूर्ण सामाजिक विकास टिका हुआ है। जनसंख्या का शिक्षित होना ही विकास को पोषित करता है, क्योंकि किसी भी देश की शिक्षा की स्थिति का सीधा संबंध उस देश की राष्ट्रीय और सांस्कृतिक चेतना से होता है। अत: शिक्षा एक ऐसा साधन है जो समय-सापेक्ष, देश-सापेक्ष और प्रगति-सापेक्ष है। हर युग में शिक्षा के मायने अलग-अलग रहे। यही नहीं आज तो हर देश में इसका अर्त अलग है। भारत में शिक्षा की कहानी-कथनी और करनी, कामना और कर्म, प्रयास और परिणामों के बीच अंतर की कहानी है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अनुच्छेद 1.9 में लिखा है कि-शिक्षा इस समय भारत में चौराहे पर खड़ी है। न नैतिक विस्तार और न ही सुधार की वर्तमान गति और प्रकृति स्थिति के अपेक्षाओं के अनुरूप है। यह जान कर आश्चर्य होता है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र व दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश के पास शिक्षा की स्थिति विचारणीय है। ऐसा कोई शिक्षण संस्थान नहीं है जिसकी गिनती विश्व स्तर पर आंकी जा सके। यहीं पर शिक्षा में गुणवत्ता और परिमाण का अंतर स्पष्ट दिखाई देता है।
समिति व सिफारिश से दो राहे पर खड़ी शिक्षा
प्राचीन काल की शिक्षा पद्धति जितनी बुनियादी थी, आज की आधुनिक शिक्षा प्रणाली विभिन्नताओं को सिमेटे हुए है। कितने सरकारी प्रयास हुए और हो रहे हैं, समितियों या सिफारिशों ने शिक्षा के उद्देश्य को कहीं दोराहे पे ला खड़ा कर दिया है जिससे आम आदमी का नैतिक चरित्र व राष्ट्रीय चरित्र एक दूसरे से बिल्कुल अलग दिखता है। आजादी के बाद से शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के लिए बने पंद्रह से ज्यादा कमीशन और समितियां। हजारों पेज के प्रतिवेदन, जिनका केन्द्रीय बिन्दु था सुधार कैसे हो? दिल्ली विश्वविद्यालय में भाषा विज्ञान के पूर्व प्रोफेसर रमाकांत अग्निहोत्री के अनुसार-भारत की शिक्षा प्रणाली में ऐसा लचीलापन और जीवन की विविधता नहीं है, जड़ता है। जोजिस पटरी पर आ गया, जीवन पर्यन्त वहीं रहेगा।
दरअसल विकास के लिए लगने वाली अनिवार्य सीढ़ी में शिक्षा एक ऐसा तत्व है जिसमें हमारा देश कई गुना पिछड़ा हुआ है। विदेशों में शिक्षा में क्रांतिकारी परिवर्तनों के कारण भारतीय विद्वता का मूल्यांकन कम आंका जाता है। विकास के तमाम दावों के बावजूद हम क्यों फिसड्डी और नकलची हैं? हमारी शिक्षा व्यवस्था मूल उद्देश्यों से क्यों अलग है, इसका लक्ष्य वास्तव में क्या होना चाहिये, जैसे यक्ष प्रश्नों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। आंकड़े कुछ कहते हैं, विकास प्रक्रियाएं शिक्षा के क्षेत्र में जमीनी तौर पर अपना वर्चस्व नहीं कायम कर पायीं।
दिन ब दिन पनपता रहा निजी स्कूलों का कारोबार
कुछ कारणों पर विचार करें, हमारी शिक्षा व्यवस्था परीक्षा केन्द्रित व नौकरी केन्द्रित है, कमीशन पर कमीशन बिठाने के बाद भी इस व्यवस्था को हम अपने राष्ट्र के अनुकूल नहीं बना पाये। राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियां समीचीन हैं :-
शिक्षे! तुम्हारा नाश हो, तुम नौकरी के हित में बनीं।।
किन्तु आज तो नौकरी पाने के उद्देश्य में भी हमारी शिक्षा सहायक नहीं हो रही। शहर की बात न भी करें तो गांव में शिक्षा व्यवस्था कितनी बदहाल है, उससे निजी स्कूलों की अवधारणा का कारोबार पनपा अर्थात सरकारी तंत्र के बजाय निजी तंत्र में फैली। अवलोकन से एक बात और सामने आयी कि निम्न-मध्यम वर्गीय तथा श्रमिक वर्ग के बच्चे शालाओं का सामना करने के लिए यथेष्ट रूप से तैयार नहीं होते क्योंकि शालाओं से मिलने वाला अनुभव उनके घर के अनुभवों से बिल्कुल विपरीत होता था। इसीलिए उन्हें शाला से कम से कम अर्हताओं के साथ निकाला जाता है। वे कम से कम वांछनीय नौकरियां पाते हैं और श्रमिक वर्गीय ही बने रहते हैं। टालकॉट पारसन्स (समाजशास्त्री) ने अपने अध्ययन में पाया कि इसी शालेयकरण की प्रक्रिया के कारण कुछ छात्रों की पहचान शैक्षणिक असफलता के रूप में की गई। विल्सन व ब्रायन ने अपने अध्ययन में पाया कि विद्यार्थियों ने महसूस किया कि जो विषय वे पढ़ते हैं, श्रमिक बाजार में भविष्य के साथ, उसका कोई संबंध नहीं है। वहीं दूसरी ओर मध्यम वर्गीय और उच्च वर्गीय छात्र अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाये रखते हुए थोड़ी सी मेहनत से सफलता प्राप्त कर लेते हैं।
विषमता से दूर सामाजिक सरोकार से जोडऩा जरूरी
अत: यह स्पष्ट है कि शिक्षा तबी अपने आयामों को छू पायेगी जब वह इन विषमताओं से परे हो, सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हो। व्यक्तिगत स्वार्थ से बाहर जाकर राष्ट्रीय हित से जुड़े, वरना राष्ट्रीय विकास के हमारे सभी स्वप्न आकाश कुसुम की तरह रहेंगे। कहने को हमारे देश में लोकतंत्र है, किन्तु हमारी शैक्षिक विचारधाराएं निरूत्तर व्यक्तिपरक होती जा रही हैं। नई सोच, नई बातों का होना लाजिमी है परंतु ऐसा न हो कि हमारी परम्पराओं की जड़ें खोखली होती जायें।
भारत में शिक्षा का भावी रूप भले ही पेचीदा हो, राष्ट्रीय चेतना व सांस्कृतिक प्रसार में नकारात्मक होती जा रही है किन्तु यही अवसर है आत्मावलोकन और दिशा परिवर्तन का। अपने शैक्षिक पिरामिड की बुनियाद को सुदृढ़ बना ही हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल होंगे। शिक्षा के सभी स्तरों प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा पर सुदृढ़ नियोजन, समय-समय पर पुनरावलोकन व विश्लेषण, राष्ट्रीय शिक्षा नीति का समाज व परम्पराओं से संबंध, मूल्य शिक्षा, परीक्षा में परिवर्तन, शिक्षकों की स्थिति व आवश्यकता का विश्लेषण आदि ऐसे कई तत्वों पर पुनर्चर्चा करें तो शिक्षा समाज से जुड़ेगी। शिक्षा, शिक्षार्थी और अभिभावक का त्रिकोण सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था को प्रदूषित होने से बचा पायेगा।

छत्तीसगढ़ में किसानों को...लगातार हो रहा है खाद-बीज का वितरण

छत्तीसगढ़ में किसानों को...
लगातार हो रहा है खाद-बीज का वितरण

छत्तीसगढ़ में किसानों को खरीफ फसलों की बोआई के लिए खाद-बीज का वितरण लगातार तेजी से जारी है। राज्य सरकार द्वारा प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से अब तक पांच लाख 15 हजार क्विंटल प्रमाणित बीज और चार लाख 34 हजार 359 मीटरिक टन उर्वरकों का वितरण किया जा चुका है। प्रदेश में किसानों ने अब तक 22 लाख हेक्टेयर में धान, मक्का, अरहर, उड़द, सोयाबीन, तिल सहित खरीफ की अन्य फसलों की बोआई भी पूरी कर ली है।
कृषि विभाग के अधिकारियों ने आज यहां बताया कि खरीफ फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए राज्य सरकार द्वारा किसानों को सहकारी समितियों के माध्यम से प्रमाणित और उन्नत बीज तथा आवश्यक रासायनिक उर्वरक उपलब्ध कराया जा रहा है। चालू खरीफ मौसम में राज्य शासन के कृषि विभाग द्वारा प्रदेश के किसानों को पांच लाख 22 हजार 812 क्विंटल प्रमाणित बीज वितरण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जिसके विरूध्द बीज निगम, शासकीय कृषि प्रक्षेत्रों और कृषि विश्वविद्यालय के भण्डार गृहों में पांच लाख 57 हजार 495 क्विंटल प्रमाणित बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित कर ली गयी है। यह भण्डारण वितरण के लक्ष्य से सात प्रतिशत अधिक है। उन्होंने बताया कि 11 जुलाई तक प्रदेश के किसानों को खरीफ फसलों की बोआई के लिए पांच लाख 15 हजार क्विंटलप्रमाणित बीजों का वितरण भी कर दिया गया है। जिसमें चार लाख 33 हजार क्विंटल धान, 73 हजार 130 क्विंटल सोयाबीन, तीन हजार 901 क्विंटल अरहर और एक हजार 144 क्विंटल मक्का के बीज शामिल है। किसानों को साढ़े तीन हजार क्विंटल बीज खरीफ की अन्य फसलों के भी वितरित किए गए है। पिछले साल खरीफ में किसानों को इसी अवधि तक वितरित किए गए बीजों की तुलना में यह वितरण तीस प्रतिशत अधिक है। अधिकारियों ने बताया कि चालू खरीफ में किसानों को उन्नत और प्रमाणित बीजों के दो लाख 72 हजार मिनीकिट भी नि:शुल्क प्रदान किए जा रहे है। जिसमें से अब तक किसानों को एक लाख सात हजार 172 बीज मिनीकिट वितरित कर दिया गया है। इसमें 61 हजार 519 अरहर बीज मिनीकिट, 17 हजार 825 सोयाबीन बीज मिनीकिट, सात हजार 378 धान बीज मिनीकिट और 18 हजार 175 बीज मिनीकिट किसानों को खरीफ की अन्य फसलों के बोआई के लिए उपलब्ध कराया गया है।
अधिकारियों ने बताया कि खरीफ फसलों की पैदावार में वृध्दि के लिए किसानों को सहकारी समितियों के माध्यम से आवश्यक रासायनिक उर्वरक भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। किसानों द्वारा अब तक चार लाख 34 हजार 359 मीटरिक टन विभिन्न रासायनिक खाद का उठाव सहकारी समितियों से कर लिया गया है। इसमें दो लाख 90 हजार 744 मीटरिक टन उर्वरक सहकारिता के माध्यम से और एक लाख 43 हजार 615 मीटरिक टन उर्वरक निजी क्षेत्रों के माध्यम से उपलब्ध कराया गया है। उन्होंने बताया कि प्रदेश की प्राथमिक सहकारी समितियों में अब तक दो लाख 43 हजार 242 मीटरिक टन यूरिया, 80 हजार 545 मीटरिक टन सिंगल सुपर फास्फेट और 40 हजार 773 मीटरिक टन पोटाश खाद का भण्डारण् किया जा चुका है। इसी तरह एक लाख पांच हजार 69 मीटरिक टन डी.ए.पी. और 73 हजार 27 मीटरिक टन एन.पी.के. खाद का भण्डारण किया जा चुका है। जिसमें से किसानों ने एक लाख 95 हजार 830 मीटरिक टन यूरिया, 62 हजार 414 मीटरिक टन सिंगल सुपर फास्फेट और 31 हजार 728 मीटरिक टन पोटाश का उठाव कर लिया है। किसानों को सहकारी समितियों से 92 हजार 177 मीटरिक टन डी.ए.पी और 52 हजार 38 मीटरिक टन एन.पी.के. खाद का वितरण भी खरीफ फसलों में उपयोग के लिए किया जा चुका है। अधिकारियों ने बताया कि प्रदेश में किसानों ने अभी तक 22 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बोआई भी पूरी कर ली है। इममें 18 लाख 63 हजार हेक्टेयर में धान और एक लाख 31 हजार हेक्टेयर में सोयाबीन सहित 44 हजार हेक्टेयर में खरीफ की अन्य फसलों की बोआई की जा चुकी है। किसानों ने इस वर्ष खरीफ के लिए निर्धारित लक्ष्य के लगभग आधे क्षेत्र में बोनी पूरी कर ली है।

छग के इकलौते कांग्रेसी सांसद महंत बने कृषि राज्य मंत्री

छग के इकलौते कांग्रेसी सांसद महंत बने कृषि राज्य मंत्री
पिछले 7 वर्षों बाद यह केन्द्रीय मंत्री का पद 36 गढ़ राज्य को प्राप्त हुआ है। जहाँ एक तरफ कांग्रेस के आलाकमान ने छत्तीसगढ़ प्रदेश के कार्यकर्ताओं में जोश भरा है वहीं दूसरी तरफ राज्य की कांग्रेस गुटबाजी में एक नया त्रिकोणीय अलग-थलग नेतृत्व को भी नकारा नहीं जा सकता है। ज्ञात हो कि कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया के करीबी अजीत जोगी के अलावा राजनीति के चाणक्य विद्याचरण शुक्ल को भी आला कमान ने इस मंत्रिमंडल के विस्तार में भी तरजीह नहीं दी। ऐसे में चुनावी विश्लेषकों का दावा है कि, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कदम छ.ग. राज्य में कांग्रेस कोई नया कीर्तिमान स्थापित नहीं कर पायेगा । जिसका लाभ स्पष्ट रूप से सत्ताधारी विपक्षी पार्टी को राज्य में ज्यों का त्यों बने रहने की संभावना है। ऐसे में देखना यह है कि 2014 मिशन में कांग्रेस छ.ग. में क्या जादू दिखा पाती है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चौंकाने वाला बयान देते हुए कहा कि मंगलवार को किया गया मंत्रिपरिषद का फेरबदल 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले का अंतिम परिवर्तन है। लेकिन गठजोड़ धर्म का पालन करते हुए द्रमुक के लिए दो स्थान रिक्त रखे गए हैं।
राष्ट्रपति भवन में 11 मंत्रियों के शपथ लेने के बाद संवाददाताओं से बातचीत के दौरान सिंह ने कहा कि आज मंत्रिपरिषद में किये गए फेरबदल में राज्यों के बीच आवश्यक संतुलन, कार्यकुशलता और सरकार में निरंतरता को ध्यान में रखा गया है।
सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि जहां तक मेरा संबंध है, चुनाव से पहले यानी 2014 का यह आखिरी फेरबदल है। जहां तक संभव था इस कसरत को व्यापक किया गया है।
इस फेरबदल से कुछ मंत्रियों के नाखुश होने के मद्देनजर आने आने वाले दिनों में समस्याओं का सामना करने की आशंका के बारे में उन्होंने कहा कि मंत्रालयों का पुन: वितरण होने पर समस्याओं का उभरना स्वाभाविक है। हमने देश के सर्वोच्च हितों को ध्यान में रखा है।
लोकसभा चुनावों से पूर्व अंतिम फेरबदल बताए जाने के साथ ही प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि दो मंत्री पद द्रमुक के लिए रिक्त रखे गए हैं। उन्होंने कहा कि यह हमारे गठबंधन धर्म का हिस्सा है। मुझे उम्मीद है कि उनकी ओर से जल्द ही फैसला किया जाएगा।
राहुल गांधी को अभी भी मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं किए जाने का कारण पूछे जाने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि मैंने उनसे मंत्रिमंडल में शामिल होने का कई बार आग्रह किया, लेकिन उन्होंने कहा कि संगठन में उनकी जिम्मेदारियां हैं। विवादों में घिरे रहने वाले जयराम रमेश को पदोन्नति के साथ पर्यावरण मंत्रालय से ग्रामीण विकास मंत्रालय सौंपे जाने के संबंध में प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें और बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। उनके अनुभवों का इस मंत्रालय में बेहतर इस्तेमाल किया जाएगा।
 छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के एकमात्र लोकसभा सदस्य चरण दास महंत केंद्रीय मंत्रिमंडल में कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्यमंत्री बनाए गए हैं।

'ज्योतिष का सूर्य' का यह २४ वाँ अंक


सुधी पाठकों,
'ज्योतिष का सूर्य' का यह २४ वाँ अंक आपके हाथों में है। पिछले 13 अगस्त 2009 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री मा. डॉ. रमनसिंह के द्वारा इस पत्रिका का विमोचन मुख्यमंत्री निवास रायपुर में हुआ था। तब से आज तक लगातार यह पत्रिका सतत्  राष्ट्र चेतना एवं भारतीय संस्कृति के साथ-साथ भारतीय प्राच्य विद्याओं सहित मर्मस्पर्शी, पठनीय पाठ्य सामग्री को आप तक पहुंचाने का प्रयास करते आ रहा हूँ। आपके मार्गदर्शन के अनुसार हमने बीच-बीच में पाठ्य सामग्रियों को संयोजित कर प्रकाशित करने का प्रयत्न किया, उसी का परिणाम है कि आज केवल छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि सीमावर्ती राज्य, मध्यप्रदेश एवं दिल्ली से भी अलग-अलग संस्करण प्रारंभ करना पड़ा। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है। कि 'ज्योतिष का सूर्य' के प्रति आप लोगों का कितना प्रेम और राष्ट्रीय चेतना का एक मंच परिवार के प्रति कितना लगाव है।
मुझे अत्यंत हर्ष हो रहा है कि निरंतर सुधी पाठकों का सहयोग पत्र व्यवहार के द्वारा हमें प्राप्त होता रहा है। विशेष रूप से मैं मा. मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह जी (छ.ग. शासन) एवं मुख्य संरक्षक श्री विजय बघेल जी (संसदीय सचिव, छ.ग. शासन, गृह, जेल एवं  सहकारिता) के सहयोग के अलावा संपादक मण्डल में लगातार अपने लेख एवं पाठ्य सामग्रीयों के रूप में प्रमुख स्तंभकार के.के. झा (वरिष्ठ पत्रकार) संतोष मिश्र (पत्रकार), ऋषिकेश त्रिपाठी (पत्रकार) एवं  डॉ. महेशचन्द्र शर्मा, डॉ. संतोष राय, डॉ. सुचित्रा शर्मा सहित तमाम शिक्षाविद एवं देश के जानेमाने प्राच्य विद्या पर रिसर्च करने वाले वैदिक विद्वानों का मैं आभार प्रकट करता हूँ जिन्होने परोक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप से सहयोग कर इस मंजिल तक पहुंचाने में अपना विशेष योगदान दिया। साथ ही हमारे प्रमुख सलाहकार एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री रविन्द्र सिंह ठाकुर ने जो अपने नेतृत्व में पत्रिका को आम जनमानस के हृदय पटल पर रेखांकित किया है मैं उनको सादर धन्यवाद देता हूँ।
आशा है, इसी प्रकार हमारे नियमित सुधी पाठकों का प्रेम बना रहेगा और आगामी शत-संवत्सर उक्त मासिक पत्रिका अनवरत गतिमान रहेगी।
पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णम्  एवाव शिष्यते।।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

काल सर्प योग के प्रमुख 12 प्रकार, कारण एवं निवारण (एक विश्लेषण)

काल सर्प योग


के प्रमुख 12


प्रकार, कारण एवं


निवारण

      
(एक विश्लेषण)










                                                
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे

 महाराज



कालसर्प योग मुख्यत: बारह प्रकार के माने गये हैं। आगे सभी भेदों को उदाहरण कुंडली प्रस्तुत करते हुए समझाने का प्रयास किया गया है -

अनन्त कालसर्प योग

जब जन्मकुंडली में राहु लग्न में व केतु सप्तम में हो और उस बीच सारे ग्रह हों तो अनन्त नामक कालसर्प योग बनता है। ऐसे जातकों के व्यक्तित्व निर्माण में कठिन परिश्रम की जरूरत पड़ती है। उसके विद्यार्जन व व्यवसाय के काम बहुत सामान्य ढंग से चलते हैं और इन क्षेत्रों में थोड़ा भी आगे बढ़ने के लिए जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है। मानसिक पीड़ा कभी-कभी उसे घर- गृहस्थी छोड़कर वैरागी जीवन अपनाने के लिए भी उकसाया करती हैं।
लाटरी, शेयर व सूद के व्यवसाय में ऐसे जातकों की विशेष रुचि रहती हैं किंतु उसमें भी इन्हें ज्यादा हानि ही होती है। शारीरिक रूप से उसे अनेक व्याधियों का सामना करना पड़ता है। उसकी आर्थिक स्थिति बहुत ही डावाडोल रहती है। फलस्वरूप उसकी मानसिक व्यग्रता उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घोलने लगती है। जातक को माता-पिता के स्नेह व संपत्ति से भी वंचित रहना पड़ता है। उसके निकट संबंधी भी नुकसान पहुंचाने से बाज नहीं आते। कई प्रकार के षडयंत्रों व मुकदमों में फंसे ऐसे जातक की सामाजिक प्रतिष्ठा भी घटती रहती है। उसे बार-बार अपमानित होना पड़ता है। लेकिन प्रतिकूलताओं के बावजूद जातक के जीवन में एक ऐसा समय अवश्य आता है जब चमत्कारिक ढंग से उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। वह चमत्कार किसी कोशिश से नहीं, अचानक घटित होता है। सम्पूर्ण समस्याओं के बाद भी जरुरत पड़ने पर किसी चिज की इन्हें कमी नहीं रहती है। यह किसी का बुरा नहीं करते हैं। जो जातक इस योग से ज्यादा परेशानी महसूस करते हैं। उन्हें निम्नलिखित उपाय कर लाभ उठाना चाहिए।
अनुकूलन के उपाय -
  1. प्रतिदिन इक्कीस माला 'ॐ नम: शिवाय' मंत्र का जाप करें। रोजाना भगवान शिव का जलाभिषेक करें।
  2. कालसर्पदोष निवारक यंत्र घर में स्थापित करके सरसों के तेल का दिपक जला कर नियमित पूजन करें।
  3. नाग के जोड़े चांदी के बनवाकर उन्हें तांबे के लौटे में रख बहते पानी में एक बार प्रवाहित कर दें।
  4. प्रतिदिन स्नानोपरांत नवनागस्तोत्र का पाठ करें।

कुलिक कालसर्प योग

राहु दूसरे घर में हो और केतु अष्टम स्थान में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा। जातक को अपयश का भी भागी बनना पड़ता है। इस योग की वजह से जातक की पढ़ाई-लिखाई सामान्य गति से चलती है और उसका वैवाहिक जीवन भी सामान्य रहता है। परंतु आर्थिक परेशानियों की वजह से उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घुल जाता है। मित्रों द्वारा धोखा, संतान सुख में बाध और व्यवसाय में संघर्ष कभी उसका पीछा नहीं छोड़ते। जातक का स्वभाव भी विकृत हो जाता है। मानसिक असंतुलन और शारीरिक व्याधियां झेलते-झेलते वह समय से पहले ही बूढ़ा हो जाता है। उसके उत्साह व पराक्रम में निरंतर गिरावट आती जाती है। उसका कठिन परिश्रमी स्वभाव उसे सफलता के शिखर पर भी पहुंचा देता है। परंतु इस फल को वह पूर्णतय: सुखपूर्वक भोग नहीं पाता है। ऐसे जातकों को इस योग की वजह से होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपायों का अवलंबन लेना चाहिए।
अनुकूलन के उपाय -
  1. विद्यार्थीजन सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जाप करें और विधिवत उपासना करें।
  2. देवदारु, सरसों तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक स्नान करें।
  3. शुभ मुहूर्त में बहते पानी में कोयला तीन बार प्रवाहित करें।
  4. हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें।
  5. श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
  6. शनिवार औ मंगलवार का व्रत रखें और शनि मंदिर में जाकर भगवान शनिदेव कर पूजन करें व तैलाभिषेक करें, इससे तुरंत कार्य सफलता प्राप्त होती है।
  7. राहु की दशा आने पर प्रतिदिन एक माला राहु मंत्र का जाप करें और जब जाप की संख्या 18 हजार हो जाये तो राहु की मुख्य समिध दुर्वा से पूर्णाहुति हवन कराएं और किसी गरीब को उड़द व नीले वस्त्र का दान करें।

वासुकी कालसर्प योग

राहु तीसरे घर में और केतु नवम स्थान में और इस बीच सारे ग्रह ग्रसित हों तो वासुकी नामक कालसर्प योग बनता है। वह भाई-बहनों से भी परेशान रहता है। अन्य पारिवारिक सदस्यों से भी आपसी खींचतान बनी रहती है। रिश्तेदार एवं मित्रगण उसे प्राय: धोखा देते रहते हैं। घर में सुख-शांति का अभाव रहता है। जातक को समय-समय पर व्याधि ग्रसित करती रहती हैं जिसमें अधिक धन खर्च हो जाने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति भी असामान्य हो जाती है। अर्थोपार्जन के लिए जातक को विशेष संघर्ष करना पड़ता है, फिर भी उसमें सफलता संदिग्ध रहती है। चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण उसका जीवन मानसिक रूप से उद्विग्न रहता है। इस योग के कारण जातक को कानूनी मामलों में विशेष रूप से नुकसान उठाना पड़ता है। राज्यपक्ष से प्रतिकूलता रहती है। जातक को नौकरी या व्यवसाय आदि के क्षेत्र में निलम्बन या नुकसान उठाना पड़ता है। यदि जातक अपने जन्म स्थान से दूर जाकर कार्य करें तो अधिक सफलता मिलती है। लेकिन सब कुछ होने के बाद भी जातक अपने जीवन में बहुत सफलता प्राप्त करता है। विलम्ब से उत्तम भाग्य का निर्माण भी होता है और शुभ कार्य सम्पादन हेतु उसे कई अवसर प्राप्त होते हैं।
अनुकूलन के उपाय -
  1. नवनाग स्तोत्र का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
  2. प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रमें उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्र जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
  3. महामृत्युंजय मंत्रका जाप प्रतिदिन 11 माला रोज करें, जब तक राहु केतु की दशा-अंर्तदशा रहे और हर शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें और मंगलवार को हनुमान जी को चौला चढ़ायें।
  4. किसी शुभ मुहूर्त में नाग पाश यंत्रको अभिमंत्रित कर धरण करें।


शंखपाल कालसर्प योग

राहु चौथे स्थान में और केतु दशम स्थान में हो इसके बीच सारे ग्रह हो तो शंखपाल नामक कालसर्प योग बनता है। इससे घर-द्वार, जमीन-जायदाद व चल- अचल संपत्ति संबंधी थोड़ी बहुत कठिनाइयां आती हैं और उससे जातक को कभी-कभी बेवजह चिंता घेर लेती है तथा विद्या प्राप्ति में भी उसे आंशिक रूप से तकलीफ उठानी पड़ती है। जातक को माता से कोई, न कोई किसी न किसी समय आंशिक रूप में तकलीफ मिलती है। सवारी एवं नौकरों की वजह से भी कोई न कोई कष्ट होता ही रहता है। इसमें उन्हें कुछ नुकसान भी उठाना पड़ता है। जातक का वैवाहिक जीवन सामान्य होते हुए भी वह कभी-कभी तनावग्रस्त हो जाता है। चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण जातक समय-समय पर मानसिक संतुलन खोया रहता है। कार्य के क्षेत्र में भी अनेक विघ्न आते हैं। पर वे सब विघ्न कालान्तर में स्वत: नष्ट हो जाते हैं। बहुत सारे कामों को एक साथ करने के कारण जातक का कोई भी काम प्राय: पूरा नहीं हो पाता है। इस योग के प्रभाव से जातक का आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है, जिस कारण आर्थिक संकट भी उपस्थित हो जाता है। लेकिन इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी जातक को व्यवसाय, नौकरी तथा राजनीति के क्षेत्र में बहुत सफलताएं प्राप्त होती हैं एवं उसे सामाजिक पद प्रतिष्ठा भी मिलती है।
यदि उपरोक्त परेशानी महसूस करते हैं तो निम्नलिखित उपाय करें। अवश्य लाभ मिलेगा।
अनुकूलन के उपाय -
  1. शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चाँदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धतु से निर्मित नाग चिपका दें।
  2. शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को जल में तीन बार प्रवाहित करें।
  3. 86 शनिवार का व्रत करें और राहु, केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। और हनुमान जी को मंगलवार को चौला चढ़ायें और शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें।
  4. किसी शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल अपने ऊपर से सात बार उतारकर सात बुधवार को गंगा या यमुना जी में प्रवाहित करें।
  5. सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
  6. शुभ मुहूर्त में सर्वतोभद्रमण्डल यंत्र को पूजित कर धरण करें।
  7. नित्य प्रति हनुमान चालीसा पढ़ें और भोजनालय में बैठकर भोजन करें।
  8. हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिंदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं।
  9. काल सर्प दोष निवारण यंत्रघर में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करें और शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुंह देख एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दें और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दे दें अथवा पीपल की जड़ में चढ़ा दें।
  10. सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्तू उनके बिलों पर डालें।
  11. किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें

पद्म कालसर्प योग

राहु पंचम व केतु एकादश भाव में तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है। इसके कारण जातक के विद्याध्ययन में कुछ व्यवधान उपस्थित होता है। परंतु कालान्तर में वह व्यवधान समाप्त हो जाता है। उन्हें संतान प्राय: विलंब से प्राप्त होती है, या संतान होने में आंशिक रूप से व्यवधन उपस्थित होता है। जातक को संतान की प्राय: चिंता बनी रहती है। जातक का स्वास्थ्य कभी-कभी असामान्य हो जाता है। इस योग के कारण दाम्पत्य जीवन सामान्य होते हुए भी कभी-कभी अधिक तनावपूर्ण हो जाता है। परिवार में जातक को अपयश मिलने का भी भय बना रहता है। जातक के मित्रगण स्वार्थी होते हैं और वे सब उसका पतन कराने में सहायक होते हैं। जातक को तनावग्रस्त जीवन व्यतीत करना पड़ता है। इस योग के प्रभाव से जातक के गुप्त शत्रु भी होते हैं। वे सब उसे नुकसान पहुंचाते हैं। उसके लाभ मार्ग में भी आंशिक बाध उत्पन्न होती रहती है एवं चिंता के कारण जातक का जीवन संघर्षमय बना रहता है। जातक द्वारा अर्जित सम्पत्ति को प्राय: दूसरे लोग हड़प लेते हैं। जातक को व्याधियां भी घेर लेती हैं। इलाज में अधिक धन खर्च हो जाने के कारण आर्थिक संकट उपस्थित हो जाता है। जातक वृध्दावस्था को लेकर अधिक चिंतित रहता है एवं कभी-कभी उसके मन में संन्यास ग्रहण करने की भावना भी जागृत हो जाती है। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी एक समय ऐसा आता है कि यह जातक आर्थिक दृष्टि से बहुत मजबूत होता है, समाज में मान-सम्मान मिलता है और कारोबार भी ठीक रहता है यदि यह जातक अपना चाल-चलन ठीक रखें, मध्यपान न करें और अपने मित्रकी सम्पत्ति को न हड़पे तो उपरोक्त कालसर्प प्रतिकूल प्रभाव लागू नहीं होते हैं।
अनुकूलन के उपाय -
  1. शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चाँदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धतु से मिर्मित नाग चिपका दें।
  2. शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से व्रत प्रारंभ कर 18 शनिवारों तक व्रत करें और काला वस्त्रधारण कर 18 या 3 ाला राहु के बीज मंत्र का जाप करें। फिर एक बर्तन में जल दुर्वा और कुशा लेकर पीपल की जड़ में चढ़ाएं। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही वस्तुएं दान भी करें। रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें। नाग पंचमी का व्रत भी अवश्य करें।
  3. नित्य प्रति हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें और हर शनिवार को लाल कपड़े में आठ मुट्ठी भिंगोया चना व ग्यारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और उन केलों को बंदरों को खिला दें और प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बूंदी के लड्डु का भोग लगाएं और हनुमान जी की प्रतिमा पर चमेली के तेल में घुला सिंदूर चढ़ाएं और साथ ही श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें। ऐसा करने से वासुकी काल सर्प योग के समस्त दोषों की शांति हो जाती है।
  4. श्रावण के महीने में प्रतिदिन स्नानोपरांत 11 माला 'ॐ नम: शिवाय' मंत्र का जप करने के उपरांत शिवजी को बेलपत्रव गाय का दूध तथा गंगाजल चढ़ाएं तथा सोमवार का व्रत करें।


महापद्म कालसर्प योग

राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक शत्रु विजेता होता है, विदेशों से व्यापार में लाभ कमाता है लेकिन बाहर ज्यादा रहने के कारण उसके घर में शांति का अभाव रहता है। इस योग के जातक को एक ही चिज मिल सकती है धन या सुख। इस योग के कारण जातक यात्रा बहुत करता है उसे यात्राओं में सफलता भी मिलती है परन्तु कई बार अपनो द्वारा धेखा खाने के कारण उनके मन में निराशा की भावना जागृत हो उठती है एवं वह अपने मन में शत्रुता पालकर रखने वाला भी होता है। जातक का चरित्र भी बहुत संदेहास्पद हो जाता है। उसके धर्म की हानि होती है। वह समय-समय पर बुरा स्वप्न देखता है। उसकी वृध्दावस्था कष्टप्रद होती है। इतना सब कुछ होने के बाद भी जातक के जीवन में एक अच्छा समय आता है और वह एक अच्छा दलील देने वाला वकील अथवा तथा राजनीति के क्षेत्र में सफलता पाने वाला नेता होता है।
अनुकूलन के उपाय -
  1. श्रावणमास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
  2. शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शनिवार व्रत आरंभ करना चाहिए। यह व्रत 18 बार करें। काला वस्त्रधरण करके 18 या 3 राहु बीज मंत्र की माला जपें। तदन्तर एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी समयानुसार रेवड़ी, भुग्गा, तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही दान में भी दें। रात को घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ के पास रख दें।
  3. इलाहाबाद (प्रयाग) में संगम पर नाग-नागिन की विधिवत पूजन कर दूध के साथ संगम में प्रवाहित करें एवं तीर्थराज प्रयाग में संगम स्थान में तर्पण श्राध्द भी एक बार अवश्य करें।
  4. मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।


तक्षक कालसर्प योग

केतु लग्न में और राहु सप्तम स्थान में हो तो तक्षक नामक कालसर्प योग बनता है। कालसर्प योग की शास्त्रीय परिभाषा में इस प्रकार का अनुदित योग परिगणित नहीं है। लेकिन व्यवहार में इस प्रकार के योग का भी संबंधित जातकों पर अशुभ प्रभाव पड़ता देखा जाता है। तक्षक नामक कालसर्प योग से पीड़ित जातकों को पैतृक संपत्ति का सुख नहीं मिल पाता। या तो उसे पैतृक संपत्ति मिलती ही नहीं और मिलती है तो वह उसे किसी अन्य को दान दे देता है अथवा बर्बाद कर देता है। ऐसे जातक प्रेम प्रसंग में भी असफल होते देखे जाते हैं। गुप्त प्रसंगों में भी उन्हें धेखा खाना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सामान्य रहते हुए भी कभी-कभी संबंध इतना तनावपूर्ण हो जाता है कि अलगाव की नौबत आ जाती है। जातक को अपने घर के अन्य सदस्यों की भी यथेष्ट सहानुभूति नहीं मिल पाती। साझेदारी में उसे नुकसान होता है तथा समय-समय पर उसे शत्रु षडयंत्रों का शिकार बनना पड़ता है। जुए, सट्टे व लाटरी की प्रवृत्ति उस पर हावी रहती है जिससे वह बर्बादी के कगार पर पहुंच जाता है। संतानहीनता अथवा संतान से मिलने वाली पीड़ा उसे निरंतर क्लेश देती रहती है। उसे गुप्तरोग की पीड़ा भी झेलनी पड़ती है। किसी को दिया हुआ धन भी उसे समय पर वापस नहीं मिलता। यदि यह जातक अपने जीवन में एक बात करें कि अपना भलाई न सोच कर ओरों का भी हित सोचना शुरु कर दें साथ ही अपने मान-सम्मान के दूसरों को नीचा दिखाना छोड़ दें तो उपरोक्त समस्याएं नहीं आती।
अनुकूलन के उपाय -
  1. कालसर्प दोष निवारण यंत्र घर में स्थापित करके, इसका नियमित पूजन करें।
  2. सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
  3. देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को उबालकर एक बार स्नान करें।
  4. शुभ मुहूर्त में बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित करें और उसके बाद लगातार पांच मंगलवार को व्रत रखते हुए हनुमान जी की प्रतिमा में चमेली में घुला सिंदूर अर्पित करें और बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद वितरित करें। अंतिम मंगलवार को सवा पांव सिंदूर सवा हाथ लाल वस्त्र और सवा किलो बताशा तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद बांटे।


कर्कोटक कालसर्प योग

केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग बनता है। जैसा कि हम इस बात को पहले भी स्पष्ट कर चुके हैं, ऐसे जातकों के भाग्योदय में इस योग की वजह से कुछ रुकावटें अवश्य आती हैं। नौकरी मिलने व पदोन्नति होने में भी कठिनाइयां आती हैं। कभी-कभी तो उन्हें बड़े ओहदे से छोटे ओहदे पर काम करने का भी दंड भुगतना पड़ता है। पैतृक संपत्ति से भी ऐसे जातकों को मनोनुकूल लाभ नहीं मिल पाता। व्यापार में भी समय-समय पर क्षति होती रहती है। कोई भी काम बढ़िया से चल नहीं पाता। कठिन परिश्रम के बावजूद उन्हें पूरा लाभ नहीं मिलता। मित्रों से धोखा मिलता है तथा शारीरिक रोग व मानसिक परेशानियों से व्यथित जातक को अपने कुटुंब व रिश्तेदारों के बीच भी सम्मान नहीं मिलता। चिड़चिड़ा स्वभाव व मुंहफट बोली से उसे कई झगड़ों में फंसना पड़ता है। उसका उधार दिया पैसा भी डूब जाता है। शत्रु षडयंत्र व अकाल मृत्यु का जातक को बराबर भय बना रहता है। उक्त परेशानियों से बचने के लिए जातक निम्न उपाय कर सकते हैं।
अनुकूलन के उपाय -
  1. हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिंदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं।
  2. काल सर्प दोष निवारण यंत्र घर में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करें और शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुंह देख एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दें और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दे दें अथवा पीपल की जड़ में चढ़ा दें।
  3. सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्तू उनके बिलों पर डालें।
  4. अपने सोने वाले कमरे में लाल रंग के पर्दे, चादर व तकियों का प्रयोग करें।
  5. किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें।


शंखचूड़ कालसर्प योग

केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में शंखचूड़ नामक कालसप्र योग बनता है। इस योग से पीड़ित जातकों का भाग्योदय होने में अनेक प्रकार की अड़चने आती रहती हैं। व्यावसायिक प्रगति, नौकरी में प्रोन्नति तथा पढ़ाई - लिखाई में वांछित सफलता मिलने में जातकों को कई प्रकार के विघ्नों का सामना करना पड़ता है। इसके पीछे कारण वह स्वयं होता है क्योंकि वह अपनो का भी हिस्सा छिनना चाहता है। अपने जीवन में धर्म से खिलवाड़ करता है। इसके साथ ही उसका अपना अत्याधिक आत्मविश्वास के कारण यह सारी समस्या उसे झेलनी पड़ती है। अधिक सोच के कारण शारीरिक व्याधियां भी उसका पीछा नहीं छोड़ती। इन सब कारणों के कारण सरकारी महकमों व मुकदमेंबाजी में भी उसका धन खर्च होता रहता है। उसे पिता का सुख तो बहुत कम मिलता ही है, वह ननिहाल व बहनोइयों से भी छला जाता है। उसके मित्र भी धेखाबाजी करने से बाज नहीं आते। उसका वैवाहिक जीवन आपसी वैमनस्यता की भेंट चढ़ जाता है। उसे हर बात के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है। उसे समाज में यथेष्ट मान-सम्मान भी नहीं मिलता। उक्त परेशानियों से बचने के लिए उसे अपना को अपनाना पड़ेगा, अपनो से प्यार करना होगा, धर्म की राह पर चलना होगा एवं मुंह में राम बगल में छूरी की भावना को त्यागना हाोग तो जीवन में बहुत कम कठीनाइयों का सामना करना पड़ेगा। तब भी कठिनाईयां आति हैं तो निम्नलिखित उपाय बड़े लाभप्रद सिध्द होते हैं।
अनुकूलन के उपाय -
  1. इस काल सर्प योग की परेशानियों से बचने के लिए संबंधित जातक को किसी महीने के पहले शनिवार से शनिवार का व्रत इस योग की शांति का संकल्प लेकर प्रारंभ करना चाहिए और उसे लगातार 86 शनिवारों का व्रत रखना चाहिए। व्रत के दौरान जातक काला वस्त्र धारण करें श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें, राहु बीज मंत्र की तीन माला जाप करें। जाप के उपरांत एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, रेवड़ी, तिलकूट आदि मीठे पदार्थों का उपयोग करें। उपयोग के पहले इन्हीं वस्तुओं का दान भी करें तथा रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें।
  2. महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें।
  3. चांदी या अष्टधतु का नाग बनवाकर उसकी अंगूठी हाथ की मध्यमा उंगली में धरण करें। किसी शुभ मुहुर्त में अपने मकान के मुख्य दरवाजे पर चाँदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धतु से निर्मित नाग चिपका दें।


घातक कालसर्प योग

केतु चतुर्थ तथा राहु दशम स्थान में हो तो घातक कालसर्प योग बनाते हैं। इस योग में उत्पन्न जातक यदि माँ की सेवा करे तो उत्तम घर व सुख की प्राप्ति होता है। जातक हमेशा जीवन पर्यन्त सुख के लिए प्रयत्नशील रहता है उसके पास कितना ही सुख आ जाये उसका जी नहीं भरता है। उसे पिता का भी विछोह झेलना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहता। व्यवसाय के क्षेत्रमें उसे अप्रत्याशित समस्याओं का मुकाबला करना पड़ता है। परन्तु व्यवसाय व धन की कोई कमी नहीं होती है। नौकरी पेशा वाले जातकों को सस्पेंड, डिस्चार्ज या डिमोशन के खतरों से रूबरू होना पड़ता है। साझेदारी के काम में भी मनमुटाव व घाटा उसे क्लेश पहुंचाते रहते हैं। सरकारी पदाधिकारी भी उससे खुश नहीं रहते और मित्रभी धेखा देते रहते हैं। यदि यह जातक रिश्वतखोरी व दो नम्बर के काम से बाहर आ जाएं तो जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा उसे जरूर मिलती है साथ ही राजनैतिक क्षेत्र में बहुत सफलता प्राप्त करता है। उक्त परेशानियों से बचने के लिए जातक निम्नलिखित उपाय कर लाभ उठा सकते हैं।
अनुकूलन के उपाय -
  1. नित्य प्रति हनुमान चालीसा का पाठ करें व प्रत्येक मंगलवार का व्रत रखें और हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर घुलाकर चढ़ाएं तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं।
  2. एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें।
  3. शनिवार का व्रत रखें, श्री शनिदेव का तैलाभिषेक व पूजन करें और लहसुनियां, सुवर्ण, लोहा, तिल, सप्तधन्य, तेल, काला वस्त्र, छिलके समेत सूखा नारियल, कंबल आदि का समय-समय पर दान करें।
  4. सोमवार के दिन व्रत रखें, भगवान शिव के मंदिर में चांदी के नाग की पूजा कर अपने पितरों का स्मरण करें और उस नाग को बहते जल में श्रध्दापूर्वक विसर्जित कर दें।

विषधर कालसर्प योग

केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं। जातक को ज्ञानार्जन करने में आंशिक व्यवधन उपस्थित होता है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने में थोड़ी बहुत बाध आती है एवं स्मरण शकित का प्राय: ह्रास होता है। जातक को नाना-नानी, दादा-दादी से लाभ की संभावना होते हुए भी आंशिक नुकसान उठाना पड़ता है। चाचा, चचेरे भाइयों से कभी-कभी मतान्तर या झगड़ा-झंझट भी हो जाता है। बड़े भाई से विवाद होने की प्रबल संभावना रहती है। इस योग के कारण जातक अपने जन्म स्थान से बहुत दूर निवास करता है या फिर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करता रहता है। लेकिन कालान्तर में जातक के जीवन में स्थायित्व भी आता है। लाभ मार्ग में थोड़ा बहुत व्यवधान उपस्थित होता रहता है। वह व्यक्ति कभी-कभी बहुत चिंतातुर हो जाता है। धन सम्पत्ति को लेकर कभी बदनामी की स्थिति भी पैदा हो जाती है या कुछ संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। उसे सर्वत्रलाभ दिखलाई देता है पर लाभ मिलता नहीं। संतान पक्ष से थोड़ी-बहुत परेशानी घेरे रहती है। जातक को कई प्रकार की शारीरिक व्याधियों से भी कष्ट उठाना पड़ता है। उसके जीवन का अंत प्राय: रहस्यमय ढंग से होता है। उपरोक्त परेशानी होने पर निम्नलिखित उपाय करें।
अनुकूलन के उपाय -
  1. श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
  2. सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी या समुद्र में नागदेवता का विसर्जन करें।
  3. सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।
  4. प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर - 'ॐ हर हर महादेव' कहते हुए अभिषेक करें। ऐसा हर रोज श्रावण के महिने में करें।
  5. सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।


शेषनाग कालसर्प योग

केतु छठे और राहु बारहवे भाव में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो शेषनाग कालसर्प योग बनता है।
शास्त्रोक्त परिभाषा के दायरे में यह योग परिगणित नहीं है किंतु व्यवहार में लोग इस योग संबंधी बाधओं से पीड़ित अवश्य देखे जाते हैं। इस योग से पीड़ित जातकों की मनोकामनाएं हमेशा विलंब से ही पूरी होती हैं। ऐसे जातकों को अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए अपने जन्मस्थान से दूर जाना पड़ता है और शत्रु षडयंत्रों से उसे हमेशा वाद-विवाद व मुकदमे बाजी में फंसे रहना पड़ता है। उनके सिर पर बदनामी की कटार हमेशा लटकी रहती है। शारीरिक व मानसिक व्याधियों से अक्सर उसे व्यथित होना पड़ता है और मानसिक उद्विग्नता की वजह से वह ऐसी अनाप-शनाप हरकतें करता है कि लोग उसे आश्चर्य की दृष्टि से देखने लगते हैं। लोगों की नजर में उसका जीवन बहुत रहस्यमय बना रहता है। उसके काम करने का ढंग भी निराला होता है। वह खर्च भी आमदनी से अधिक किया करता है। फलस्वरूप वह हमेशा लोगों का देनदार बना रहता है और कर्ज उतारने के लिए उसे जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। उसके जीवन में एक बार अच्छा समय भी आता है जब उसे समाज में प्रतिष्ठित स्थान मिलता है और मरणोपरांत उसे विशेष ख्याति प्राप्त होती है। इस योग की बाधओं से त्राण पाने के लिए यदि निम्नलिखित उपाय किये जायें तो जातक को बहुत लाभ मिलता है।
अनुकूलन के उपाय -
  1. किसी शुभ मुहूर्त में 'ॐ नम: शिवाय' की 11 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्र आदि सामग्रियां श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प विधिवत पूजन के उपरांत शिवलिंग पर समर्पित करें।
  2. हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा पर लाल वस्त्र सहित सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।
  3. किसी शुभ मुहूर्त में मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान करें।
  4. सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाने के बाद ही कोई काम प्रारंभ करें।
  5. काल सर्प दोष निवारण यंत्रघर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें और भोजनालय में ही बैठकर भोजन करें अन्य कमरों में नहीं।
  6. किसी शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्र अभिमंत्रित कर धरण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
  7. शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधतु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धतु निर्मित नाग चिपका दें तथा एक बार देवदारु, सरसों तथा लोहवान इन तीनों को उबाल कर स्नान करें।
सामान्यतः कालसर्प योग को घातक माना जाता है लेकिन सच्चाई यह है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में यह योग हो वह जीवन में एक के बाद एक सफलता की सीढियां चढ़ते हुए सर्वोच्च शिखर तक पहुंच सकता है।


विश्वभर के कई जाने माने राष्ट्राध्यक्ष, उद्योगपति तथा अन्य नामी-गिरामी हस्तियां कालसर्प योग के बावजूद जीवन में ऐसी उपलब्धियां प्राप्त कर चुके हैं जो सम्बद्ध क्षेत्रों के अन्य प्रभावी लोगों के लिए महज सपने ही बनकर रह जाती हैं।


कालसर्प योग सामान्यतः ग्रहों की उस स्थिति को कहते हैं जब जन्म कुन्डली में सारे ग्रह, राहु और केतु के मध्य फंस जाते हैं। राहु सर्प का मुख है और केतु सर्प की पूंछ हैं। आजकल जनमानस इस योग से भयाक्रांत हैं। जन्मकुन्डली में इस योग के होने से पता चलता है कि जातक ने पिछले अनेक जन्मों में असंख्य पाप कर्म किए हैं।


वैसे तो कालसर्प योग काल, समय, के गर्भ में छिपी किसी घटना के होने का संकेत मात्र देता हैं। इस योग वाले जातक विषम परिस्थतियों में भी कठिनाईयों का सामना करते हुए उच्च पद पर आसीन होते हैं तथा उन्हें अचानक धनलाभ होता है। ऐसे जातक श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त करते हैं। यदि योग की तीव्रता हो तो व्यक्ति दर-दर का भिखारी भी बन जाता है। कठिन परिश्रम के बाद भी उसको उसका फल नहीं मिला और अंत में वह दुंर्मृत्यु को प्राप्त होता है।


संतान अवरोध अथवा संतान की असमय मृत्यु, विवाह में अनावश्यक विलम्ब, घर में हर समय अनबन, व्यापार में घाटा, धनप्राप्ति में बाधा उन्नति में अवरोध, व्यर्थ का भ्रमण, झूठे दोषारोपण, झूठे मुकदमे एवं मानसिक अशांति आदि इसके लक्षण हैं। पूर्व जन्मों में किए गए पाप इस जन्म में व्याधियों के रुप में प्रकट होते हैं।


वैसे तो कालसर्प योग अत्यंत घातक और अनिष्टकारी योग है किन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि इस योग से पीड़ित जातक अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में असफलता और अक्षमता के ही शिकार होते हैं।


जन्म कुन्डली में विद्यमान अन्य शुभ ग्रह योग भी जातक को पूर्णरुप से प्रभावित करते हैं। ऐसे जातक न केवल जीवन में अनेक उपलब्धियां और सफलताएं प्राप्त करते हैं बल्कि वे राष्ट्राध्यक्ष, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, सेनाध्यक्ष, अभिनेता, वैज्ञानिक तथा उच्चकोटि के धार्मिक नेता बनते हैं या अन्य उच्चतम पद प्राप्त करते हैं।


यह बात भी निश्चित है कि महानतम उपलब्धियां और सफलताएं प्राप्त करने के बावजूद उन्हें भी कालसर्प योग के अनुसार फल भुगतने पड़ते हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन, प्रसिद्ध उद्योग पति हेनरी फोर्ड, फिल्म अभिनेता राजकपूर, अशोक कुमार, पूर्व राष्ट्रपति एवं प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम, इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन, मुगल बादशाह अकबर और जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर की कुंडलियों में कालसर्प योग था।


एक पूर्व राष्ट्रपति और एक पूर्व प्रधानमंत्री समेत विभिन्न क्षेत्रों की कई चोटी की हस्तियां भी कालसर्प योग के बावजूद इतनी ऊंचाइयों तक पहुंच गई।


कालसर्प योग के दुष्प्रभावों से बचने के लिए अपनाएं यह उपाय –


- सर्वप्रथम अपना आचरण शुद्ध करें।


- प्रतिदिन माता, पिता तथा गुरुजनों के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।


- किसी विद्वान ब्राह्मण से कालसर्प योग निवृत्ति के लिए पूजन कराएं। यदि पूर्वजन्म कृत दोष अति उग्र है तो यह विधि 3 से 5 बार कराएं।


- पंचमी के व्रत करें तथा नव नाग स्तोत्र का पाठ करें।


- शिवोपासना करें तथा प्रतिवर्ष रद्राभिषेक कराएं।


- वट वृक्ष की प्रतिदिन 108 परिक्रमा करें।


- शिवलिंग पर ताम्बे का सर्व चढ़ाए तथा नाग-नागिन के जोडे़ को गंगा में प्रवाहित करें।


- सर्प सूक्त का नित्य पाठ करें।


- नागबलि एवं नारायण बलि कर्म कराएं।


- प्रत्येक अमावस्या पर पितृ पूजन एवं तर्पण करें।


- राहु के बीज मन्त्रों का सवा लाख जाप करें।


- गायत्री मन्त्र अथवा नाग गायत्री का पांच लाख जाप कराएं।


- रसोई की पहली रोटियां गाय, कौआ तथा कुत्ते को खिलाकर ही स्वयं भोजन करें।


- घर की चौखट पर मांगलिक चिन्ह अंकित करें।


- सफेद चन्दन का प्रतिदिन तिलक लगाएं तथा सफेद चंदन की लकड़ी धारण करें।


- नागों की बहिन मनसा देवी की पूजा करें।


- आस्तिक ऋषि का निरन्तर स्मरण करते रहे।