छत्तीसगढ़ में एसपीओ बनेंगे अब आरक्षक
छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य में विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) को नियमित पुलिस में शामिल होने का रास्ता साफ कर दिया है। सरकार ने शुक्रवार को पुलिस की नियुक्तियों में स्थानीय युवकों की योग्यता में विशेष छूट देने का फैसला किया। सर्वोच्च न्यायालय ने गत पांच जुलाई के अपने एक आदेश में राज्य सरकार को नक्सलियों से लड़ने वाले एसपीओ से हथियार वापस लेने के लिए कहा था। न्यायालय ने कहा था कि एसपीओ सामूहिक रूप से मानवाधिकारों का उल्लंघन करते है और उन्हे हथियार देना असंवैधानिक है।
न्यायायल के इस फैसले के बाद राज्य सरकार ने एसपीओ से हथियार वापस ले लिए थे। वहीं, हथियार वापस लिए जाने पर एसपीओ ने आशंका जताई थी कि वे नक्सलियों का निशाना बन सकते है लेकिन अब कांस्टेबल के रूप में अपनी नियुक्ति के सिलसिले में सरकार के इस फैसले से वे काफी उत्साहित है।
राजधानी रायपुर से करीब 450 किलोमीटर बीजापुर के कोतवाली पुलिस स्टेशन में वर्ष 2006 की शुरुआत से एसपीओ के रूप में तैनात महेद्र साकनी ने कहा, ''ईश्वर को बहुत-बहुत धन्यवाद, मेरे हथियार मुझे वापस मिल जाएंगे। हमें वापस सेवा में शामिल करने के सरकार के इस फैसले मैं बहुत खुश हूं।''
ज्ञात हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने नक्सलियों के खिलाफ जनजातीय लोगों को हथियार देकर उनकी नियुक्ति एसपीओ के रूप में करने पर राज्य सरकार की जमकर खिंचाई की थी और सरकार से कहा था कि इस पर तुरंत रोक लगनी चाहिए।
कोतवाली पुलिस स्टेशन पर एसपीओ के रूप में तैनात चेतन दुरगम ने कहा, ''इससे बस्तर क्षेत्र के युवाओं के बीच यह संदेश जाएगा कि सरकार नक्सलियों से निपटने के प्रति गम्भीर है।''
एसपीओ को नियमित पुलिस में शामिल करने का फैसला मुख्यमंत्री रमन सिंह की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की एक बैठक में लिया गया। बैठक में निर्णय लिया गया कि बस्तर इलाके में होने वाली कांस्टेबलों की भर्ती में स्थानीय लोगों की शैक्षणिक एवं शारीरिक योग्यता और उम्र में छूट दी जाएगी।
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने करीब 5000 जनजातीय युवाओं की नियुक्ति एसपीओ के रूप में की है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें