ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शनिवार, 16 जुलाई 2011

श्रावण मास में हरियाली अमावस :हरियाली अमावस्या पर वृक्षारोपण का महत्व

श्रावण मास में हरियाली अमावस :हरियाली अमावस्या पर वृक्षारोपण का महत्व
प्रकृति अपना रूप ऋतुओं के अनुसार बदलती रहती है। ऋतुओं का क्रम एव समन्वय इस प्रकार का है कि हम प्रत्येक ऋतुओं में आनन्द का अनुभव कर सकते है। जैसे ठिठुरती सर्दी के बाद बसंत का आना और अपने नयनाभिराम दृश्यों से जन-जन और हृदय को उल्लासित करना। फिर बसन्त के बाद ग्रीष्म का आगमन होता है सूर्य की तेज रश्मियों से पुष्प मुरझा जाते है। पत्ते गिरने लगते है। ग्रीष्म ऋतु का अंत वर्षा ऋतु के आगमन का संदेश देने लगता है। प्रकृति की उदासीनता दूर होकर सर्वत्र हरियाली छा जाती है और इसी श्रावण मास में हरियाली अमावस हरियाली तीज जैसे त्यौहार मनाये जाते है।
हरियाली अमावस पर पीपल के वृक्ष की पूजा एवं फेरे किये जाते है तथा मालपूए का भोग बनाकर चढ़ाये जाने की परम्परा है। हरियाली अमावस्या पर वृक्षारोपण का अधिक महत्व है। शास्त्रों में कहा गया है कि एक पेड़ दस पुत्रों के समान होता है। पेड़ लगाने के सुख बहुत होते है और पुण्य उससे भी अधिक। क्योंकि यह वसुधैव कुटुम्बकम की भावना पर आधारित होते है। वृक्ष सदा उपकार की खातिर जीते है। इसलिये हम वृक्षों के कृतज्ञ है। वृक्षों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने हेतु परिवार के प्रति व्यक्ति को हरियाली अमावस्या पर एक-एक पौधा रोपण करना चाहिये। पेड़-पौधों का सानिध्य हमारे तनाव को तथा दैनिक उलझनों को कम करता है।
पौधा रोपण हेतु ज्योतिषीय मुहूर्त
पौधा रोपण हेतु ज्योतिष के अनुसार नक्षत्रों का महत्व है। उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपदा, रोहिणी, मृगशिर, रेवती, चित्रा, अनुराधा, मूल, विशाखा, पुष्य, श्रवण, अश्विनी, हस्त इत्यादि नक्षत्रों में किये गये पौधारोपण शुभ फलदायी होते है।
वास्तु के अनुसार घर के समीप शुभ प्रभावकारी वृक्ष  घर के समीप शुभ करने वाले वृक्ष- निम्ब, अशोक, पुन्नाग, शिरीष, बिल्वपत्र, आँकड़ा तथा तुलसी का पौधा आरोग्य वर्धक होता है।
वास्तु के अनुसार घर के समीप अशुभ  प्रभावकारी वृक्ष- पाकर, गूलर, नीम, बहेड़ा, पीपल, कपित्थ, बेर, निर्गुण्डी, इमली, कदम्ब, बेल, खजूर ये सभी घर के समीप अशुभ है। घर में बेर, केला, अनार, पीपल और नींबू लगाने से घर की वृद्धि नहीं होती। घर के पास कांटे वाले, दूध वाले और फल वाले वृक्ष हानिप्रद होते है। घर की आग्नेय दिशा में पीपल, वट, सेमल, गूलर, पाकर के वृक्ष हो तो शरीर में पीड़ा एवं मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।
वृक्षों एवं पौधों का धार्मिक महत्व
हमारी धर्म संस्कृति में वृक्षों को देवता स्वरूप माना गया है। मनु-स्मृति के अनुसार वृक्ष योनि पूर्व जन्मों के कर्मों के फलस्वरूप मानी गयी है। परमात्मा द्वारा वृक्षों का सर्जन परोपकार एवं जनकल्याण के लिए किया गया है।
तुलसी- तुलसी एक बहुश्रुत, उपयोगी वनस्पति है। स्कन्दपुराण एवं पद्मपुराण के उत्तर खण्ड में आता है कि जिस घर में तुलसी होती है वह घर तीर्थ के समान होता है। समस्त वनस्पतियों में सर्वाधिक धार्मिक, आरोग्यदायिनी  एवं शोभायुक्त तुलसी भगवान नारायण को अतिप्रिय है। तुलसी माला से मन्त्र जाप अधिक शुभ फलदायी होते है। तुलसी के समीप किया गया अनुष्ठान अत्यन्त पुण्यदायी एव ंसद्गति प्राप्त कराता है।
बिल्वपत्र- शिवपुराण के अनुसार बिल्व पत्र का महत्व इस प्रकार है। एक बिल्व पत्र रोज चढ़ाने से मनुष्य संसार सागर में गोते नहीं खाता, इस संसार में पुण्यात्मा रूप में सुविख्यात होता है। बिल्व पत्र का पौधा पोषित करने वाले को अनन्त पुण्य फल मिलता है। भगवान शंकर के तीर्थ स्थलों पर बिल्वपत्र का पेड़ लगाने की प्राचीन परम्परा है।
केला- केला, विष्णुपूजन के लिये उत्तम माना गया है। गुरूवार को बृहस्पति पूजन में केला का पूजन अनिवार्य हैं। हल्दी या पीला चन्दन, चने की दाल, गुड़ से पूजा करने पर विद्यार्थियों को विद्या तथा कुँवारी कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है।
पीपल- पीपल के वृक्ष में अनेकों देवताओं का वास माना गया है। पीपल के मूल भाग में जल, दूध चढ़ाने से पितृ तृप्त होते है तथा शनि शान्ति के लिये भी शाम के समय सरसों के तेल का दिया लगाने का विधान है। शनिश्चरी अमावस्या, सोमवती अमावस्या, हरियाली अमावस्या को पीपल पूजन एवं पीपल के फेरे लिये जाते है। पीपल का वृक्ष लगाने एवं सेवा करने से वंशवृद्धि होती है।
बड़- बड़ वृक्ष की पूजा सौभाग्य प्राप्ति के लिये की जाती है। जिस प्रकार सावित्री ने बड़ की पूजा कर यमराज से अपनी पति के जीवित होने का वरदान मांगा था। उसी प्रकार सौभाग्य वती स्त्रियां अपने पति की लम्बी उम्र की कामना हेतु यह व्रत करके बड़ वृक्ष की पूजा एव ंसेवा करती है।
आँवला- आँवले का वृक्ष आरोग्यवर्धक, तेज एवं मेधा प्रदान करने वाला होता है। परिवार की उत्तम स्वास्थ्य की कामना हेतु आँवला नवमी पर इसकी पूजा का विधान है। आँवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण भोजन कराने तथा दान देने का विशेष फल है।
पलाश- वेदों में पलाश को ब्रह्म वृक्ष कहा गया है। पलाश के प्रति श्रद्धाभाव ऋषियों ने इस प्रकार व्यक्त किया-
ब्रह्मवृक्ष पलाशस्तवं श्रद्धां मेधां च देहि मे।
वृक्षाधिपो नमस्तेस्तु त्वं चात्र सन्निधो भव।।
अर्थात् हे पलाशरूपी ब्रह्मवृक्ष! आप समस्त वृक्षों के राजा है आप मुझे श्रद्धा और मेधा प्रदान करें। आपको मेरा नमस्कार है मैं इस वृक्ष में आपका आव्हान करता हूँ, इसमें आप सन्निहित हो जाये।
इस प्रकार वृक्षों का धार्मिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी जुड़ा हुआ है। जहाँ पेड़ों तथा वनों का अभाव है वहाँ वायु प्रदूषित है। वायुमण्डल में ऑक्सीजन अन्य गैसीय तत्वों का अनुपात असंतुलित हो रहा है।
वनों का क्षेत्र कम होने से वर्षा भी अनियमित ढंग से हो रही है। कहीं वृष्टि तो कहीं अनावृष्टि।
वक्षों के विनाश का दुष्परिणाम मानव समुदाय को सीधे तौर पर भुगतना पड़ रहा है।
आज हरियाली अमावस्या पर हम संकल्प ले कि हम अपने-अपने नगर को हरियाला एवं स्वच्छ बनाये ताकि धरती पर जैविक संतुलन भी बना रहे।
आइये जानते है कुछ विशेष कामना सिद्धि हेतु कौन से वृक्ष लगाये-
१. लक्ष्मी प्राप्ति के लिए- तुलसी, आँवला, केल, बिल्वपत्र का वृक्ष लगाये।
२. आरोग्य प्राप्ति के लिए- ब्राह्मी, पलाश, अर्जुन, आँवला, सूरजमुखी, तुलसी लगाये।
३. सौभाग्य प्राप्ति हेतु- अशोक, अर्जुन, नारियल, बड़ (वट) का वृक्ष लगाये।
४.  संतान प्राप्ति हेतु- पीपल, नीम, बिल्व, नागकेशर, गुड़हल, अश्वगन्धा को लगाये।
५. मेधा वृद्धि प्राप्ति हेतु- आँकड़ा, शंखपुष्पी, पलाश, ब्राह्मी, तुलसी लगाये।
६. सुख प्राप्ति के लिए- नीम, कदम्ब, धनी छायादार वृक्ष लगाये।
७. आनन्द प्राप्ति के लिए- हरसिंगार (पारिजात) रातरानी, मोगरा, गुलाब लगाये।

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