शिवलिंग की वैज्ञानिकता.......
"" भारत सरकार के नुक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है""
आदि काल से ही मनुष्य शिवलिंग की पूजा करते आ रहे हैं और इस संदर्भ में अलग-अलग मान्यताएं और कथाएं भी प्रचलित हैं। भारतीय सभ्यता के प्राचीन अभिलेखों एवं स्रोतों से भी ज्ञात होता है हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो की खुदाई से पत्थर के बने कई लिंग और योनि मिले हैं। एक मूर्ति ऐसी मिली है जिसके गर्भ से पौधा निकलते हुए दिखाया गया है। शिवलिंग के तीन हिस्से होते हैं। लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं। यह प्रमाण है कि आरंभिक सभ्यता के लोग प्रकृति-पूजक थे। वह मानते थे कि संसार की उत्पत्ति शिवलिंग से हुई थी इसी से शिवलिंग पूजा की परंपरा चल पड़ी। शिवलिंग की पूजा भारत और श्रीलंका तक ही सीमित नहीं थी। बल्कि यूरोपीय देशों से ले कर प्राचीन मेसोपोटामिया तक भी होती थी । अब इस शिवलिंग की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि पर आप लोगों का ध्यानाकर्षण कराना चाहुंगा।
"शिवलिंग का वैज्ञानिक रहस्य.." साईंटीस्ट का रिसर्च........
मैं यहां साफ करना चाहूंगा कि मैं ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, भिलाई से हुं ना कि कोई साईंटीस्ट। किन्तु एक साईंटिस्ट से मुलाकात हमारे कार्यालय में हुई और चर्चा चल पड़ी "शिवलिंग की वैज्ञानिक सत्यता" विषय पर उन्होंने बताया कि-
शिवलिंग की वैज्ञानिकता .... भारत का रेडियोएक्टिविटीमैप उठा लें, तब हैरान हो जायेगें ! भारत सरकार के नुक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है।.. शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लियर रिएक्टर्स ही हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे किए बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले है । क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता। भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है।. शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है। तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी। .ध्यान दें, कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है। जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है। विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।
मित्रों, इसी संदर्भ में आपको बताते चलुं की शिवलिंग की कभी भी पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है हमेशा आधी परिक्रमा की जाती है। स्वामी विवेकानंद ने अन्नत ब्रह्म के प्रतीक के रूप में शिवलिंग को वर्णित किया था। इनके अलावां विश्व के तमाम दार्शनिकों ने "शिव सत्ता" को सहर्ष स्वीकार किया।
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- "ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, सड़क- 26, कोहका मेन रोड, शांतिनगर, भिलाई, जिला-दुर्ग (छ.ग.) 490023
mobile no. 9827198828
(कृपया उपरोक्त आलेख को वगैर अनुमति कहीं अन्यत्र प्रकाशित ना करें, और अनधिकृत तौर पर कहीं अन्यत्र तोड़-मरोड़कर कॉपी-पेस्ट करते हुये पाये जाने पर "ज्योतिष का सूर्य" द्वारा दाण्डिक कार्यवाही की जायेगी)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें