ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

मंगलवार, 30 जुलाई 2013

''धर्म-संस्कृति अलंकरण-2013'' समारोह एवं ''राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन'' में आप सभी आमंत्रित हैं..

आमंत्रण........... आमंत्रण ...............आमंत्रण

''धर्म-संस्कृति अलंकरण-2013'' समारोह एवं ''राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन'' में आप सभी आमंत्रित हैं..





मित्रों यह सम्मान उस व्यक्तित्त्व को दिया जाता है, जिन्होंने भारतीय संस्कृति के रक्षार्थ अतूलनीय कार्य किया है, अथवा इस पुनीत कार्य में अनवरत क्रियाशील है। ऐसे व्यक्तित्त्व की खोज उस महान व्यक्तित्त्व के सर्वतो भावेन धर्म-संस्कृति के रक्षार्थ सतत् गतिशीलता का गहन अध्ययन करने के पश्चात निर्णय लिया जाता है। इस वर्ष भारतीय संस्कृति के अवगाहक युवाओं के प्रेरणा स्रोत धर्म-संस्कृति के पोषक, धर्म धुरीन आद. श्री प्रेम शुक्ल (का.संपादक सामना )जी, मुंबई, महाराष्ट्र, भारत, को 25 अगस्त 2013 को भिलाई में धर्म-संस्कृति अलंकरण-2013  से सम्मानित किया जायेगा।
कार्यक्रम स्थानः कला मंदिर, सिविक सेंटर, भिलाई
समयः प्रातः 10 बजे से 11 बजे तक (धर्म संस्कृति अलंकरण)
                     11 बजे से ऱात्रि 08 बजे तक (राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन)
आयोजकः ज्योतिष का सूर्य राष्ट्रीय मासिक पत्रिका एवं मायाराम शिक्षण विकास समिति, भिलाई।
संपर्कः ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे -9827198828, मिथलेश ठाकुर(पत्रकार)- 9827160789, रमेश सोनी-9630819481।
नोटः राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन के प्रतिभागी देश के सभी ज्योतिष गणक महानुभावों जिनका रजिस्ट्रेशन फार्म हमें प्राप्त हो गया है उन्हें 10 अगस्त तक बाई पोस्ट अथवा ईमेल से आपको पास भेज दिया जायेगा।

बुधवार, 24 जुलाई 2013

सावन में करें शिव आराधना...शिव शिवेति शिवेति वा

सावन में करें शिव आराधना...शिव शिवेति शिवेति वा

भगवान शंकर कल्याणकारी हैं। उनकी पूजा,अराधना समस्त मनोरथ को पूर्ण करती है। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान सदाशिव का विभिन्न प्रकार से पूजन करने से विशिष्ठ लाभ की प्राप्ति होती हैं। यजुर्वेद में बताये गये विधि से रुद्राभिषेक करना अत्यंत लाभप्रद माना गया हैं। लेकिन जो व्यक्ति इस पूर्ण विधि-विधान से पूजन को करने में असमर्थ हैं अथवा इस विधान से परिचित नहीं हैं वे लोग केवल भगवान सदाशिव के षडाक्षरी मंत्र-- ॐ नम:शिवाय का जप करते हुए रुद्राभिषेक तथा शिव-पूजन कर सकते हैं, जो बिलकुल ही आसान है।

श्रावण माह पर्यन्त प्रतिदिन शिव-आराधना व अभिषेक करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। अधिकांश शिव भक्त इस दिन शिवजी का अभिषेक करते हैं। लेकिन बहुत कम ऐसे लोग है जो जानते हैं कि शिव का अभिषेक क्यों करते हैं?

अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है स्नान करना या कराना। रुद्राभिषेक का मतलब है भगवान रुद्र का अभिषेक यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान भगवान मृत्युंजय शिव को कराया जाता है। अभिषेक को आजकल रुद्राभिषेक के रुप में ही ज्यादातर जाना जाता है। अभिषेक के कई प्रकार तथा रुप होते हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। अलंकार प्रियो कृष्णः जलधारा प्रियो शिवः अर्थात् शास्त्रों में भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना जाता है। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में किया गया है।
रुद्राष्टाध्यायी में अन्य मंत्रों के साथ इस मंत्र का भी उल्लेख मिलता है। शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि- सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।
हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है। साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं। किसी खास मनोरथ की पूर्ति के लिये तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से रुद्राभिषेक की जाती है। जो इस प्रकार नीचे दिये गये हैं-

रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ इस प्रकार हैं-
• जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।
• असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।
• भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें।
• लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।
• धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।
• तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
• इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है ।
• पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें।
• रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।
• ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।
• सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।
• प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जाती है।
• शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।
• सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है।
• शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है।
• पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।
• गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।
• पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें।
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, संपादक, ''ज्योतिष का सूर्य''  राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई-9827198828

शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

भारतीय संस्कृति, संस्कृत और हिन्दी साहित्य की अवहेलना ही हमारे देश को मटियामेट कर देगी...

भारतीय संस्कृति, संस्कृत  और हिन्दी साहित्य की अवहेलना ही हमारे देश को मटियामेट कर देगी...


 प्रिय मित्रों, आप लोगों ने सुन्दरकाण्ड का पाथ अवश्य किया और सुना होगा साथ ही उसमें वर्णित चौपाई, छन्द, सोरठा और शेलोकों को मनन भी किये होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। इस काण्ड (सोपान) में श्री हनुमान जी के लंका गमन की पूरी कथा है, जो पूर्णतः आध्यात्मिक तो है ही लेकिन कुशल रणनीतिकार का प्रयोगशाला भी जहाँ हनुमानजी ने अपने नीतियों का भरपूर प्रयोग किया, जैसे प्रथम लंका में पुष्प वाटिका का विध्वंश करना अर्थात् वहाँ की आसुरी संस्कृति को सुवासित, पल्लवित करने वाले उस वाटिका का ही नास कर दिया। और दूसरा  आर्थिक क्षति पहुँचाना अर्थात् स्वर्णमयी लंका को उलट-पुलट कर जलाकर खाक् करना,आदि अर्थात् लंका पर विजय पताका फहराना था प्रभु श्रीराम को लेकिन उनके सफलता में प्रभु श्री हनुमानजी का विशेष योगदान था।
प्रिय मित्रों अपने देश के लोग भले ही सुन्दरकाण्ड को केवल पूजा अर्चना का माध्यम  मात्र  मानते हों परन्तु यह न केवल पूजा पाठ का माध्यम बल्कि इसमें राष्ट्र नीति भी छुपी है किन्तु हमारे देश के सत्ताधारी राजनेता केवल पाश्चात्य नीतियों पर अपनी निगाहें गड़ाये बैठे रहते हैं, नकी भारतीय संस्कृत साहित्य अथवा हिन्दी साहित्य के नीतियों पर। जो अत्यन्त दुःखद है।
 वहीं दूसरी ओर गहराई से चिन्तन किया जाये तो भारतीय धर्मग्रन्थों में वर्णित सभी नीतियों का अक्षरशः पालन आस-पड़ोस देश  के राजनेता कर रहे हैं और बार-बार अनदरुनी तौर पर भारत को पटखनी दे रहे हैं।
जैसे_ माना कि भारत की पुष्प वाटिका कश्मिर है , जिस पर चीन के प्रश्रय से प्रभुत्वशाली बना पाकिस्तान अपनी नज़र गड़ाये हुए हैं, और आये दिन सीज फायर कर रहा है। वहीं दूसरी ओर चीन ने हर बार भारत को पटखनी देते हुए अपने देश के प्रोडक्ट को अथवा सभी चायनीज वस्तुओं को भारत के मार्केट में उतार कर तकरीबन हर साल 100 करोड़ से भी अधिक रुपया भारत से वसूल कर रहा है। अर्थात् भारतीय समाज को अन्दर से खोखला बना रहा है गौर करने की बात यह भी है कि न केवल चायनीज वस्तुएं चीन की प्रभु सत्ता को विस्तारीत कर रहा है बल्कि भारत के नवजवानों को बेरोजगार और तमाम नये-नये रोगों से प्रभावित भी कर रहा है। और हमारे देश के राजनेता केवल फाईलों में नीतियाँ बनाने तक ही सीमट कर रह गये हैं। और बहुत हास्यास्पद बात तो हो जाती है जब फ्री में अनाज देने की परिकल्पना पाले देश का नेतृत्व  वोट बटोरने में माहिर खिलाड़ी अपने देश की जनता को पंगु बना रही है।  क्या इसे हम विकास की संज्ञा देंगे। बाते तो और भी बहुत हैं परन्तु कुल मिलाकर आज देश की दुर्दशा केवल तथाकथित प्रगतिशीलता, भारतीय संस्कृति की अवहेलना और पाश्चात्य संस्कृति को देश के नौजवानों पर थोपने की परिकल्पना तथा नीतियों को लेकर असहिष्णुता नीश्चित ही देश को गर्त में डालने का काम कर रही है।
यदि आज भी सुन्दरकाण्ड के नीतियों का परिपालन हमारे देश का नेतृत्व करे तो शायद यह दुर्गति नहीं होगी। दुर्गति के बारे में अधिक समझाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि, हमारे देश के नौजवानों के शिर काट लिये जाते हैं, हमारे देश की सीमा में बार बार चीन द्वारा घुसपैठ, पाकिस्तान का बार-बार सीजफायर आदि प्रत्यक्ष प्रमाण है। आवश्यकता है ......राष्ट्र देवो भवः।।       ।। राष्ट्रे वयं जागृयामः।। अर्थ- राष्ट्र ही देवता है यानी ईश्वर है। उस राष्ट्र रुपी ईश्वर के प्रति लोगों की आस्था को जगाना मेरा परम कर्तव्य है। बाकि सरकार और देश की जनता की मर्जी।-
पं.विनोद चौबे, संपादक, ज्योतिष का सूर्य, राष्टर्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई।09827198828