ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

क्या आपको राजनीतिक सफलता मिलेगी..?? इसका उत्तर अब्दुल रहीम खानखाना जी के जुबानी जानिए.........

Jotish Ka Surya

क्या आपको राजनीतिक सफलता मिलेगी..?? 

इसका उत्तर अब्दुल रहीम खानखाना जी के जुबानी जानिए.........


सदा से ही मनुष्य की यह जानने की इच्छा रही है कि उसका भाग्य कब व कैसे उदय होगा? भविष्य कैसा होगा? वर्तमान की स्थिति क्या है? जीवन में सफलता व असफलता कब-कब व किस-किस मात्रा में प्राप्त होगी?
गृहस्थ जीवन, आर्थिक स्थिति, नौकरी या व्यापार, लॉटरी आदि ऐसे भी प्रश्न हैं जिनका हल मनुष्य चाहता है, और इसके लिये वह यहाँ-वहाँ भटकता है। परन्तु इन सभी समस्याओं का हल यदि है तो वह केवल ज्योतिष के पास। ज्योतिषी के पास जाकर मनुष्य दो बातें जानने को विशेष ही उत्सुक रहता है- एक अर्थ व दूसरा भाग्य। मैं यहाँ इन्हीं दो भावों पर अर्थात् नवम एवं द्वितीय भाव पर ही इस लेख को केन्द्रित रखना चाहूँगा।
देश के 13वें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की कुण्डली में मालव्य नामक राजयोग मौजूद है। इसके अलावा इनकी कुण्डली में बुधादित्य योग, ब्रह्म योग जैसे कई शुभ योग मौजूद हैं। आमिर खान, शाहरूख खान, कैटरीना कैफ- ये वो नाम हैं जिनकी कुण्डली में शश नामक राजयोग बना हुआ है।

लोकसभा में विपक्ष के नेता आडवाणी की कुण्डली में विपरीत राज योग है और गुजरात के मुख्यमंत्री की कुण्डली में रूचक नामक राजयोग मौजूद है। अगर आपकी कुण्डली में भी इस प्रकार का कोई राज योग मौजूद है तो आप भी इन कामयाब हस्तियों की तरह सफल व्यक्ति बन सकते हैं।

कैसे बनता है कुण्डली में राजयोग

जैसे ही आपको यह पता लग जाएगा कि आपकी कुंडली में कौन सा राजयोग है, आप उसका अपने जीवन पर प्रभाव जांच सकते हैं। आगे हम विभिन्न राजयोग के बारे में चर्चा करेंगे।

शश राजयोग

शनि जब अपनी राशि यानी मकर या कुंभ में होता है अथवा अपनी उच्च राशि तुला में होता है तब शश नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति धीरे धीरे सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए समाज में यश और प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं।

मालव्य राजयोग

वृष, तुला अथवा मीन राशि में जब शुक्र होता है तब मालव्य नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति सुन्दर और सौभाग्यशाली होता है। प्रसिद्धि इनके साथ-साथ चलती है। ऐसा व्यक्ति जो भी काम करता है उसमें भाग्य पूरा साथ देता है।

रूचक राजयोग

यह राजयोग तब बनता है जब मंगल मकर राशि अथवा अपनी राशि मेष या वृश्चिक में केन्द्र स्थान में होता है। यह योग जिनकी कुण्डली में होता है वह बहुत ही साहसी होते हैं और कभी किसी दबाव में आकर कोई काम नहीं करते हैं। ऐसे व्यक्ति जहां भी होते हैं लोग इन्हें सम्मान देते हैं। यह राजा के समान शानो-शौकत से रहते हैं।

हंस राजयोग

कुण्डली में गुरू जब धनु, मीन अथवा कर्क में राशि में होता है तब हंस नामक राजयोग बनता है। ऐसा व्यक्ति पढ़ने-लिखने में बहुत ही बुद्धिमान होता है। इनकी निर्णय क्षमता अच्छी होती है। राजनीतिक सलाहकार, शिक्षण अथवा प्रबंधन के क्षेत्र में ऐसे लोग बहुत ही कामयाब होते हैं। इनका जीवन वैभवपूर्ण होता है।

भद्र राजयोग

यह योग बुध बनाता है जब वह मिथुन या कन्या राशि में होता है। यह योग जिनकी कुण्डली में होता है वह काफी बुद्धिमान और व्यवहार कुशल होते हैं। अपने व्यवहार और बुद्धि से लोगों से प्रशंसा प्राप्त करते हैं। बुद्धि और चतुराई से ऐसे लोग कार्य क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त करते हैं।
 

भाग्योदय एवं द्वितीय एवं नवम भाव

 
द्वितीय भाव से वह द्रव्य जो पैत्रिक संपत्ति के रूप में प्राप्त होता है, का ज्ञान प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त इस भाव से कुटुम्ब, स्नेही, भाषण कला, सुखभोग, मृत्यु के कारण, प्रारम्भिक शिक्षा आदि का ज्ञान भी प्राप्त किया जाता है। हर उस विद्वान को जो ज्योतिष विषय में रुचि रखता हो, सर्वप्रथम निम्न बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिये -
  •     दूसरे भाव की राशि।
  •     द्वितीय स्वामी व उसकी स्थिति।
  •     दूसरे भाव में स्थित ग्रह।
  •     द्वितीय या द्वितीयेश पर दृष्टि।
  •      कारक, अकारक एवं तटस्थ ग्रह।
  •      विशेष योग।
  •      मैत्री व शत्रुता।

यदि इस स्थान में मेष राशि है तो वह व्यक्ति आर्थिक मामलों में अनिश्चित रहता है। धन जिस प्रकार आता है उसी प्रकार खर्च भी हो जाता है। भाग्योदय विवाह के उपरांत होता है, परन्तु स्त्री से अनबन सदैव रहती है। इनकी प्रवृत्ति प्रदर्शनमय रहती है।
द्वितीय स्थान में वृषभ राशि होने पर अर्थ संचय होता है, पर टिकता नहीं। जीवन में कठिनाइयाँ कभी साथ नहीं छोड़तीं। जीवन में 18, 22, 24, 33, तथा 35वाँ वर्ष सफल कहा जा सकता है।
मिथुन राशि आर्थिक स्थिति को कमजोर बनाती है। जातक की भावुकता अर्थ लाभ में बाधक बनी रहती है। ये जातक व्यापार में सफल रहते हैं तथा छोटे लघु उद्योग, शिक्षा आदि के क्षेत्रों में ही सफलता प्राप्त करते हैं।
कर्क राशि कजूंसी की सूचक है। परिश्रम के अनुपात में जातक को लाभ नहीं मिलता। 20, 26, 27, 33, 34, 36, 45, 53, एवं 54वाँ वर्ष महत्वपूर्ण रहता है।
सिंह राशि द्वितीय भाव में होने पर बाल्यकाल आनन्दमय निकलता है। मध्यआयु में ये धन उड़ा देते हैं या व्यापार आदि में हानि होती है तथा भाग्य हमेशा इन्हें साथ देता है।
कन्या राशि होने पर जातक सम्पन्न नहीं होता। प्रारंभिक काल अर्थ संकट में गुजारते हुये परिश्रम से अर्थोपार्जन करते हैं। गर्म मिजाज व शीघ्र निर्णय हानि करवाता है। इन्हें व्यापार विशेष कर श्रृंगारिक वस्तुओं से लाभ होता है।
तुला राशि होने पर जातक शानो-शौकत में धन अधिक खर्च करता है, व्यापार इन्हें लाभ देता है। ये च्संद बना सकते हैं, पर निभा नहीं सकते। धन अनुचित कार्यों में व्यय होता है पर भाग्य फिर भी साथ देता है।
इस भाव में वृश्चिक राशि हो तो जातक के जीवन को डावांडोल कर देती है। नौकरी इन्हें हितकर नहीं होती। प्रवृत्ति वाणिज्य प्रधान होती है। कुटुम्ब व स्नेही ही इन्हें हानि देते हैं।
धनु राशि दूसरे घर में हो तो जातक लापरवाह होता है। साझेदारी इन्हें हानिकारक होती है। सहयोगी सदैव धोखा देते हैं। जीवन में कई उजार-चढ़ाव आते हैं। 24, 27, 28, 32, से 34, 37, 42, 48, 52, 54 तथा 58वाँ वर्ष उत्तम रहता है।
मकर राशि द्वितीय भाव में होने पर जातक सौभाग्यशाली होते हैं। ये हर योजना में सफल रहते हैं, इन्हें चाहिये कि ये स्वतन्त्र व्यापार करें।
कुंभ राशि होने पर भी जातक सम्पन्न होता है। इनकी आय के स्त्रोत कई होते हैं। पत्रकारिता, लेखन, प्रकाशन, व्यापार, राजनीति के कार्यों में लाभ प्राप्त करते हैं। अधिक विश्वासी इन्हें धोखा देता है, उत्तरार्ध जीवन को बनाता है।
मीन राशि दूसरे भाव में होने पर 22, 24, 28, 32, 33, 34, 37, 42, 48, 52, 54 एवं 55 वाँ वर्ष महत्वपूर्ण होता है। इन्हें अपने मनोभावों व विचारों पर नियंत्रण नहीं होता। ये जातक डॉक्टरी, वैद्यक दवाइयों के विक्रेता बनकर धन प्राप्त कर सकते हैं। यह धन संग्रह करने में सिद्ध हस्त होते हैं।

अब आगे की पक्तियों में द्वितीय भावस्थ ग्रहों का फल स्पष्ट करने का प्रयास करूंगा-
द्वितीय भाव में सूर्य
 घन के संबंध में चिन्तित, पितृअर्जित धन नहीं मिलता, उत्तरार्ध-पूर्वाद्ध से सफल होता है। मध्यकाल में रोग, व्यापारिक कार्यों में सफल होते हैं।
द्वितीय भाव में चंद्र – 
 सुखी, सम्पन्न, वृहद परिवार, स्त्रीपक्ष से सौभाग्यशाली, स्त्रीपक्ष के सम्पर्क से धनोपार्जन। चंद्रमा व्यक्ति को पत्रकार या लेखक बनाता है। पुस्तक व्यवसाय, प्रकाशन या लेखन से भाग्योदय होता है।
द्वितीय भाव में मंगल – 
दूसरे भाव में मंगल कमजोर आर्थिक स्थिति, धन गतिमान, कमजोर विद्या क्षेत्र, वार्तालाप मे पटु बनाता है। ऐसे जातक सेल्समेन बन सकते हैं।
द्वितीय भाव में बुध
 कट्टर धर्म प्रिय, अर्थ संचय में प्रवीण, भाषण कला में दक्ष।
द्वितीय भाव में गुरू
 दूसरे भाव में गुरू हो तो जातक धार्मिक नेता बनता है। कवि, लेखक या धर्मोपदेशक। लेखन कार्य से अर्थाेंपार्जन। सफल वैज्ञानिक हो सकता है। स्त्री पक्ष प्रबल ससुराल से अर्थ लाभ।
द्वितीय भाव में शुक्र
 बड़ा परिवार, काम निकालने में चतुर, अर्थाभाव इन्हें कभी नहीं होता। ऐसे व्यक्ति डॉक्टर, वैद्य, पत्रकार या व्यवसायी होते हैं।
द्वितीय भाव में शनि – 
यह शुभ सूचक नहीं होता। यदि शनि स्वग्रही न हो तो जातक को धनहीन, परेशान व दुःखी करता है। धन के लिये संघर्ष करना पड़ता है। पर शनि स्वग्रही बन द्वितीय स्थानस्थ हो तो जातक का बाल्यकाल दुःख व अभाव में व्यतीत होता है परंतु युवावस्था तथा वृद्धावस्था शुभ सूचक होती है। अर्थ का आभाव नहीं रहता है।
द्वितीय भाव में राहु
 जातक रोगी, स्वभाव से चिड़चिड़ा, कष्टप्रद, छोटे परिवार की स्थिति वाला होता है।
द्वितीय भाव में केतु
 कटुभाषी धोखा देने वाला, दृढ़ निश्चयी। पिता की संपत्ति इन्हें कभी प्राप्त नहीं होती। उत्तरार्द्ध सुन्दर व धन सूचक। यदि सूर्य उच्च का होकर 11 वें भाव में हो तो जातक लखपति बनता है।

कुण्डली के राजयोग

    यदा मुश्तरी कर्कटे वा कमाने, अगर चश्मखोरा पड़े आयुखाने।
    भला ज्योतिषी क्या लिखेगा पढ़ेगा, हुआ बालका बादशाही करेगा।।
उत्तरकालामृत ग्रन्थ में उल्लेखित यह ज्योतिषीय खोज अब्दुल रहीम खानखाना की है जो की मुगल काल के विद्वान थे। सैकड़ो वर्ष के उपरांत आज भी यह खोज सत्य ही प्रतीत होती है। इस ज्योतिषीय योग से स्पष्ट है कि यदि 2, 3, 5, 6, 8, 9 तथा 11, 12 में से किसी स्थान में बृहस्पति की स्थिति हो, और शुक्र 8वें स्थान में हो तो ऐसी ग्रह स्थिति में जन्म लेने वाला जातक चाहे साधारण परिवार में ही क्यों न जन्मा हो, वह राज्याधिकारी ही बनता है। यही कारण है कि कभी-कभी अत्यंत साधारण परिवार के बालकों में भी राजसी लक्षण पायें जाते हैं और वे किसी न किसी दिन राज्य के अधिकारी घोषित किये जाते हैं। विभिन्न योगों के अनुसार ही मनुष्य की चेष्टायें और क्रियायें विकसित होती हैं इस विषय पर विभिन्न शास्त्रों का भी उल्लेख दर्शनीय है। सर्वप्रथम ज्योतिष शास्त्र को लीजिये उसमें राजयोग के लक्षण इस प्रकार बतलाये गये हैं।

    जिस व्यक्ति के पैर की तर्जनी उंगली में तिल का चिन्ह हो वह पुरूष राज्य-वाहन का अधिकारी होता है।
    जिसके हाथ की उंगलियांे के प्रथम पर्व ऊपर की ओर अधिक झुके हों वह जनप्रिय तथा नेतृत्व करने वाला होता है।
    जिसके हाथ मंे चक्र, दण्ड एवं छत्रयुक्त रेखायें हों वह व्यक्ति निसंदेह राजा अथवा राजतुल्य होता है।
    जिसके मस्तिष्क मंे सीधी रेखायें और तिलादि का चिन्ह हो वह राजा के समान ही सुख को प्राप्त करता है और उसमें बैद्धिक कुशलता भी पर्याप्त मात्रा में होती है।

किन्तु वृहज्जातक के अनुसार राजयोग के बारह प्रकार होते हैं-

    तीन ग्रह उच्च के होने पर जातक स्वकुलानुसार राजा होता है। यदि उच्चवर्ती तीन पापग्रह हों तो जातक क्रूर बुद्धि का राजा होता है और शुभ ग्रह होने पर सद्बुद्धि युक्त। उच्चवर्ती पाप-ग्रहों से राजा की समानता करने वाला होता है, किन्तु राजा नहीं होता।
    मंगल, शनि, सूर्य और गुरू चारों अपनी-अपनी उच्च राशियों में हों, और कोई एक ग्रह लग्न में उच्चराशि का हो तो चार प्रकार का राजयोग होता है। चन्द्रमा कर्क लग्न में हो और मंगल, सूर्य तथा शनि और गुरू में से कोई भी दो ग्रह उच्च हों तो, भी राजयोग होता है। जैसे- मेष लग्न में सूर्य, कर्क में गुरू, तुला का शनि और मकर राशि मंे मंगल भी प्रबल राजयोग कारक हैं। कर्क लग्न से दूसरा, तुला से तीसरा, मकर से चौथा जो तीन ग्रह उच्च के हों जैसे मेष में सूर्य, कर्क में गुरू, तुला में शनि तो भी राजयोग माना जाता है।
    शनि कुंभ में, सूर्य मेष में, बुध मिथुन में, सिंह का गुरू और वृश्चिक का मंगल तथा शनि सूर्य और चन्द्रमा में से एक ग्रह लग्न में हो तो भी पांच प्रकार का राजयोग माना जाता है। सूर्य बुध कन्या में हो, तुला का शनि, वृष का चंद्रमा और तुला में शुक्र, मेष में मंगल तथा कर्क में बृहस्पति भी राजयोगप्रद ही मानेजाते हैं। मंगल उच्च का सूर्य और चन्द्र धनु में और लग्न में मंगल के साथ यदि मकर का शनि भी हो तो मनुष्य निश्चित ही राजा होता है। शनि चन्द्रमा के साथ सप्तम में हो और बृहस्पति धनु का हो तथा सूर्य मेष राशि का हो और लग्न में हो तो भी मनुष्य राजा होता है। वृष का चन्द्रमा लग्न में हो और सिंह का सूर्य तथा वृश्चिक का बृहस्पति और कुंभ का शनि हो तो मनुष्य निश्चय ही राजा होता है। मकर का शनि, तीसरा चन्द्रमा, छठा मंगल, नवम् बुध, बारहवां बृहस्पति हो तो मनुष्य अनेक सुंदर गुणों से युक्त राजा होता है।
    धनु का बृहस्पति चंद्रमा युक्त क्र अपने-अपने उच्च में लग्न गत हों तो जातक गुणावान राजा होता है। और मंगल मकर का और बुध शुक्र अपने-अपने उच्च में लग्न गत हों तो जातक गुणावान राजा होता है।
    मंगल शनि पंचम गुरू और शुक्र चतुर्थ तथा कन्या लग्न में बुध हों तो जातक गुणावान राजा होता है।
    मीन का चंद्रमा लग्न में हो, कुंभ का शनि, मकर का मंगल, सिंह का सूर्य जिसके जन्म कुण्डली में हों वह जातक भूमि का पालन करने वाला गुणी राजा होता है।
    मेष का मंगल लग्न में, कर्क का बृहस्पति हो तो जातक शक्तिशाली राजा होता है। कर्क का गुरू लग्न में हो और मेष का मंगल हो तो जातक गुणवान राजा होता है।
    कर्क लग्न में बृहस्पति और ग्याहरवें स्थान में वृष का चंद्रमा शुक्र, बुध और मेष का सूर्य दशम स्थान में होने से जातक पराक्रमी राजा होता है।
    मकर लग्न में शनि, मेष लग्न में मंगल, कर्क का चन्द्र, सिंह का सूर्य, मिथुन का बुध और तुला का शुक्र होने से जातक यशस्वी व भूमिपति होता है।
    कन्या का बुध लग्न में और दशम शुक्र सप्तम् बृहस्पति तथा चन्द्र ो भी जातक राजा होता है। हो और शनि मंगल पंचम हों तो भी जातक राजा होता है। जितने भी राजयोग हैं इनके अन्तर्गत जन्म पाने पर मनुष्य चाहे जिस जाति स्वभाव और वर्ण का क्यों न हो वे राजा ही होता है। फिर राजवंश में जन्म प्राप्त करने वाले जातक तो चक्रवर्ती राजा तक हो सकते हैं। किन्तु अब कुछ इस प्रकार के योगों का वर्णन किया जा रहा है जिनमंे केवल राजा का पुत्र ही राजा होता है तथा अन्य जातियों के लोग राजा तुल्य होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि राजा का पुत्र राजा ही हो उसके लिये निम्नलिखित में से किसी एक का होना नितांत आवश्यक है कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि राजवंश में जन्म पाने वाला जातक भी सामान्य व्यक्ति होता है और सामान्य वंश और स्थिति में जन्म पाने वाला महान हो जाता है उसका यही कारण है।
    यदि त्रिकोण में 3-4 ग्रह बलवान हों तो राजवंशीय राजा होते हैं। जब 5-6-7 भाव में ग्रह उच्च अथवा मूल त्रिकोण में हों तो अन्य वंशीय जातक भी राजा होते हैं। मेष के सूर्य चंद्र लग्नस्थ हों और मंगल मकर का तथा शनि कुंभ का बृहस्पति धनु का हो तो राजवंशीय राजा होता है। यदि शुक्र 2, 7 राशि का चतुर्थ भाव में और नवम स्थान में चंद्रमा हो और सभी ग्रह 3,1,11 भाव में ही हों तो ऐसा जातक राजवंशीय राजा होता है। बलवान बुध लग्न में और बलवान शुक्र तथा बृहस्पति नवम स्थान में हो और शेष ग्रह 4, 2, 3, 6, 10, 11 भाव में ही हों तो ऐसा राजपुत्र धर्मात्मा और धनी-मानी राजा होता है। यदि वृष का चंद्रमा लग्न में हो और मिथुन का बृहस्पति, तुला का शनि और मीन राशि में अन्य रवि, मंगल, बुध तथा शुक्र ग्रह हों तो राजपुत्र अत्यंत धनी होता है। दशम चन्द्रमा, ग्याहरवां शनि, लग्न का गुरू, दूसरा बुध और मंगल, से राजपुत्र राजा ही होेता है। किंतु यदि मंगल शनि लग्न में चतुर्थ चंद्रमा और सप्तम बृहस्पति, नवम, शुक्र, दशम सूर्य, ग्यारहवें बुध हो तो भी यही फल होता है। चतुर्थ में सूर्य और शुक्र होने से राजपुत्र राजा ही होेता है। किंतु यदि मंगल शनि लग्न में चतुर्थ चंद्रमा और सप्तम बृहस्पति, नवम, शुक्र, दशम सूर्य, ग्यारहवें बुध हो तो भी यही फल होता है। एक बात सबसे अधिक ध्यान देने की यह है कि राजयोग का निर्माण करने वाले समस्त ग्रहों में से जो ग्रह दशम तथा लग्न में स्थित हों तो, उनकी अन्तर्दशा में राज्य लाभ होगा जब दोनों स्थानों में ग्रह हों तो उनसे भी अधिक शक्तिशाली राज्य लाभ होगा, उसके अन्तर्दशा में जो लग्न दशम में हों अनेक ग्रह हों तो उनमें जो सर्वाेत्तम बली हो उसके प्रभाव के द्वारा ही राज्य का लाभ हो सकेगा। बलवान ग्रह द्वारा प्राप्त हुआ राज्य भी छिद्र दशा द्वारा समाप्त हो जाता है। यह जन्म कालिक शत्रु या नीच राशिगत ग्रह की अन्तर्दशा छिद्र दशा कहलाती है। जो राज्य को समाप्त करती है अथवा बाधायें उपस्थित करती है।
    यदि बृहस्पति, शुक्र और बुध की राशियां 4, 12, 6, 2, 3, 6 लग्न में हों और सातवां शनि तथा दशम सूर्य हो तो भी मनुष्य धन रहित होकर भी भाग्यवान होता है और अच्छे साधन उसके लिये सदा उपलब्ध होते हैं। यदि केन्द्रगत ग्रह पाप राशि में हों और सौम्य राशियों में पापग्रह होें तो ऐसा मनुष्य चोरों का राजा होता है। इस प्रकार से विभिन्न राजयोगों के होने पर मनुष्य सुख और ऐश्वर्य का भोग करता है।
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक-ज्योतिष का सूर्य, राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,  भिलाई-09827198828

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