ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

अश्व पर सवार होकर आयेंगी माँ दुर्गा - ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे

 अश्व पर सवार होकर आयेंगी माँ दुर्गा

शारदीय
नवरात्रि इस वर्ष सायं काल 05: 38 बजे के पूर्व ही कलश स्थापन इत्यादि पूजन अर्चन करना आवश्यक होगा क्योंकि इसके बाद द्वितीय तिथि आरंभ हो जायेगी। दिनांक 5 अक्टूबर 2013 दिन शनिवार से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। माँ शक्ति का घोड़े पर सवार होकर आयेंगी जिसका फल छत्रभंग योग  होगा। शनि अपनी उच्च की राशि तुला में एवं उनका साथ दे रहे हैं राहु, बुध और ये तीनो ग्रह पंचमस्थ होने के साथ ही नीच राशि में मंगल स्थित रहेंगे। शारदीय नवरात्र में ऐसा दुर्लभ संयोग 147 वर्ष बाद बना है जो पुन:148 वें वर्ष (अर्थात् 2161) में निर्मित होगा। इसी दिन स्नान-दान की अमावस्या भी मनाई जायेगी। जबकि पितृ अमावस्या (पितृ विसर्जन) 14 अक्टूबर शुक्रवार को ही मनायी जायेगी।

घोड़े पर सवार होकर आयेगी माँ दुगार्:

काशी विश्वनाथ हृषिकेश पंचांग (काशी) के अनुसार माँ शक्ति  घोड़े पर सवार होकर आयेंगी जिसका फल छत्रभंग योग  होगा, अत: केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार दोनों ही राजा की भूमिका में होते हैं, अत: छत्तीसगढ़ में इसका कुप्रभाव इसलिए नहीं होगा क्योंकि यहाँ विधान सभा का चुनाव स्वभावत: नवंबर-दिसंबर में होना तय है किन्तु केन्द्र सरकार के मुखिया या गठबंधन सरकार यूपीए-2 को पदच्युत होना तय है क्योंति माँ शक्ति के घोड़े की सवारी छत्रभंग योग लेकर आ रहीं हैं ।

ज्योति कलश स्थापना का मुहूतर्:

(प्रात: 08:53 से 10:22 तक राहु काल, दोप.01:19 से 02:48 तक गुलिक काल, अपराह्न 04:17 से 05:46 तक यमघंट काल उपरोक्त तीनों अवधि में ज्योति कलश की स्थापना वर्जित है)
प्रात:07:24 से 08:53 तक शुभ (चौघडिय़ा)
11:51 से 01:19 तक चर  (चौघडिय़ा)
दोप. 01:19 से 248 तक लाभ (चौघडिय़ा)
दोप. 02:48 से 04:17 तक अमृत (चौघडिय़ा)
अभिजित मुहूतर्: 11:32 से 12:26 तक
(इसके बाद सायंकाल 5: 38 से द्वितीया तिथि के आरंभ होने से कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त नहीं है।)


राशियों के अनुसार नवरात्रि में विशेष पूजनः


मेष- इस राशि के लोगों को स्कंदमाता की विशेष उपासना करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करें। स्कंदमाता करुणामयी हैं, जो वात्सल्यता का भाव रखती हैं।

वृषभ- वृषभ राशि के लोगों को महागौरी स्वरूप की उपासना से विशेष फल प्राप्त होते हैं। ललिता सहस्र नाम का पाठ करें। जन-कल्याणकारी है। अविवाहित कन्याओं को आराधना से उत्तम वर की प्राप्ति होती है।

मिथुन- इस राशि के लोगों को देवी यंत्र स्थापित कर ब्रह्मचारिणी की उपासना करनी चाहिए। साथ ही तारा कवच का रोज पाठ करें। मां ब्रह्मचारिणी ज्ञान प्रदाता व विद्या के अवरोध दूर करती हैं।

कर्क- कर्क राशि के लोगों को शैलपुत्री की पूजा-उपासना करनी चाहिए। लक्ष्मी सहस्रनाम का पाठ करें। भगवती की वरद मुद्रा अभय दान प्रदान करती हैं।

सिंह- सिंह राशि के लिए मां कूष्मांडा की साधना विशेष फल करने वाली है। दुर्गा मंत्रों का जप करें। ऐसा माना जाता है कि देवी मां के हास्य मात्र से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। देवी बलि प्रिया हैं, अत: साधक नवरात्र की चतुर्थी को आसुरी प्रवृत्तियों यानी बुराइयों का बलिदान देवी चरणों में निवेदित करते हैं।

कन्या- इस राशि के लोगों को मां ब्रह्मचारिणी का पूजन करना चाहिए। लक्ष्मी मंत्रों का साविधि जप करें। ज्ञान प्रदान करती हुई विद्या मार्ग के अवरोधों को दूर करती हैं। विद्यार्थियों हेतु देवी की साधना फलदाई है।

तुला- तुला राशि के लोगों को  महागौरी की पूजा-आराधना से विशेष फल प्राप्त होते हैं। काली चालीसा या सप्तशती के प्रथम चरित्र का पाठ करें। जन-कल्याणकारी हैं। अविवाहित कन्याओं को आराधना से उत्तम वर की प्राप्ति होती है।

वृश्चिक- वृश्चिक राशि के लोगों को स्कंदमाता की उपासना श्रेष्ठ फल प्रदान करती है। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। वात्सल्य भाव रखती हैं।

धनु- इस राशि वाले मां चंद्रघंटा की उपासना करें। संबंधित मंत्रों का यथाविधि अनुष्ठान करें। घंटा प्रतीक है उस ब्रह्मनाद का, जो साधक के भय एवं विघ्नों को अपनी ध्वनि से समूल नष्ट कर देता है।

मकर- मकर राशि के जातकों के लिए कालरात्रि की पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। नर्वाण मंत्र का जप करें। अंधकार में भक्तों का मार्गदर्शन और प्राकृतिक प्रकोप, अग्निकांड आदि का शमन करती हैं। शत्रु संहारक है।

कुंभ- कुंभ राशि वाले व्यक्तियों के लिए कालरात्रि की उपासना लाभदायक है। देवी कवच का पाठ करें। अंधकार में भक्तों का मार्गदर्शन और प्राकृतिक प्रकोपों का शमन करती हैं।

मीन- मीन राशि के लोगों को मां चंद्रघंटा की उपासना करनी चाहिए। हरिद्रा (हल्दी) की माला से यथासंभव बगलामुखी मंत्र का जप करें। घंटा उस ब्रह्मनाद का प्रतीक है, जो साधक के भय एवं विघ्नों को अपनी ध्वनि से समूल नष्ट कर देता है।


कौन-कौन हैं नवदुर्गा और उनका संक्षिप्त परिचय.


1. शैलपुत्री, 2. ब्रह्मचारिणी, 3. चंद्रघंटा, 4. कूष्मांडा, 5. स्कंदमाता, 6. कात्यायनी, 7. कालरात्री, 8. महागौरी और 9. सिद्धिदात्री।
 नवरात्रि में दुर्गा के नौ रूपों की आराधना व पूजा करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह पर्व असत्य पर सत्य की विजय की याद है। श्रीराम ने भी रावण पर विजय प्राप्त करने से पूर्व माता दुर्गे की पूजा की थी। उनकी विजय प्राप्ति के बाद से सतयुग से यह पूजा सार्वजनिक तौर से की जाने लगी, जो आज अपने भव्य रूप में है और मंडपों व दुर्गा मंदिरों से लेकर घर में भी कलश स्थापना कर की जाती है। नौ दिनों तक होने वाली इस पूजा में प्रत्येक दिन दुर्गा के एक स्वरूप की पूजा होती है। जिसके लिए दुर्गा सप्तशती में नौ देवियों के बारे कहा गया है,
प्रथमम् शैलपुत्री च द्वितीयम् ब्रम्हचारिणी।
तृतीयम् चंद्रघंटेति कुष्मांडेति चतुर्थकम् ।
पंचमम् स्कंद मातेति षष्ठम् कत्यायणिति।
च सप्तमम् कालरात्रिति महागौरीति च अष्टमम्।
नवम सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता:।
सभी देवियों का अपना वाहन व अलग स्वरूप है मान्यता के अनुसार अलग-अलग रूपों की पूजा करने से भिन्न-भिन्न प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं। इस अवसर पर दुर्गा सप्तशती का पाठ नौ दिनों तक किया जाता है।

- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, शांतिनगर, भिलाई, 9827198828

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