ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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रविवार, 29 सितंबर 2013

कैसा रहेगा पिता-पुत्र का संबंध, क्यों रहती है अनबन..??

कैसा रहेगा पिता-पुत्र का संबंध, क्यों रहती है अनबन..??

आजकल प्रायः देखा जाता है कि पिता पुत्र में अनबन की स्थिति बनी रहती है और कभी कभी तो ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि पुत्र पैतृक निवास का परित्याग कर अपनी पत्नी के साथ अन्यत्र निवास करने लगता है और ‘क्रौंच’ पर्वत पर निवासरत भगवान शिवपुत्र स्कन्द जैसा आजीवन पैतृक-निवास न जाने का संकल्प ले लेता है। आखिरकार ऐसी स्थिति उत्पन्न करने वाले ग्रहों की क्या भूमिका होती है, आईए इसे फलित ज्योतिष के आधार पर जानने का प्रयास करते हैः-

पिता का पुत्र से स्वाभाविक स्नेह का संबंध होता है तो पुत्र का संबंध पिता के प्रति आदर भाव एवं पिता के सम्मान से होता है। ऎसा नहीं है कि यह संबंध मानव के बनाए हैं कि अमुक का पुत्र अमुक है अपितु यह संबंध अनादिकाल से बने हैं जो धरती पर देखने में आते हैं। हमारे नवग्रह मंडल में भी कुछ ग्रहों में आपस में पिता-पुत्र संबंध हैं जो कि व्यक्ति की जन्मपत्रिका को भी प्रभावित करते हैं। यह पिता-पुत्र सूर्य एवं शनि तथा चंद्रमा एवं बुध हैं।

सूर्य एवं शनि:—

 पौराणिक कथाओं के अनुसार त्वष्टा की पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्यदेव के साथ हुआ था। वैवस्वत मनु, यम और यमी के जन्म के बाद भी वे सूर्य के तेज को सहन नहीं कर सकीं और अपनी छाया को सूर्य देव के पास छो़डकर चली गई। सूर्य ने छाया को अपनी पत्नी समझा और उनसे सावण्र्य, मनु, शनि, तपती तथा भद्रा का जन्म हुआ। जन्म के पश्चात जब शनि ने सूर्य को देखा तो सूर्य को कोढ़ हो गया। सूर्य को जब संज्ञा एवं छाया के भेद का पता चला तो वे संज्ञा के पास चले गए। सूर्य पुत्र शनि का अपने पिता से वैर है। ज्योतिष शास्त्र में फलादेश करते समय भी इस तथ्य का ध्यान रखा जाता है। इनके वैर को इस प्रकार समझा जा सकता है कि सूर्य जहां मेष राशि में उच्चा के होते हैं वहीं शनि मेष में नीच के होते हैं। सूर्य तुला में नीच के होते हैं तो शनि तुला में उच्चा के होते हैं। यदि दोनों एक साथ किसी एक ही राशि में बैठ जाएं तो पिता-पुत्र का परस्पर विरोध रहता है या एक साथ टिकना मुश्किल हो जाता है। सूर्य के परम मित्र चन्द्रमा से शनि का वैर है और शनि की राशि में सूर्य जीवन में कुछ कष्ट अवश्य देते हैं परन्तु जैसे सोना तपकर निखरता है वैसे ही सूर्य-शनि की यह स्थिति भी कष्टों के बाद जीवन में सफलता लाती है।

सूर्य आध्यात्मिक प्रवृत्ति के हैं तथा शनिदेव आध्यात्म के कारक हैं, अत: जन्मपत्रिका में सूर्य एवं शनि की युति व्यक्ति को धर्म एवं आध्यात्म की ओर उन्मुख करती है। कुछ संतों की जन्मपत्रिका में सूर्य-शनि की युति देखी जा सकती है, जिनमें सत्य साँई बाबा एवं मीरा बाई के नाम हैं।

चन्द्र-बुध:—

 पौराणिक कथाओं के अनुसार चन्द्रमा ने अपने गुरू बृहस्पति की भार्या तारा का अपहरण किया। तारा और चन्द्रमा के सम्बन्ध से बुध उत्पन्न हुए। बालक बुध अत्यन्त सुन्दर और कांतिवान थे। अत: चन्द्रमा ने उन्हें अपना पुत्र घोषित किया और उनका जातकर्म संस्कार करना चाहा। तब बृहस्पति ने इसका प्रतिवाद किया। बृहस्पति बुध की कांति से प्रभावित थे और उन्हें अपना पुत्र मानने को तैयार थे। जब चन्द्रमा और बृहस्पति का विवाद बढ़ गया तब ब्रह्मा जी के पूछने पर तारा ने उसे चन्द्रमा का पुत्र होना स्वीकार किया। अत: चन्द्रमा ने बालक का नामकरण संस्कार किया और उसे बुध नाम दिया गया। चन्द्रमा का पुत्र माने जाने के कारण बुध को क्षत्रिय माना जाता है। यदि उन्हें बृहस्पति का पुत्र माना जाता तो उन्हें ब्राह्मण माना जाता। बुध का लालन-पालन चन्द्रमा ने अपनी प्रेयसी पत्नी रोहिणी को सौंपा। इसलिए बुध को "रौहिणेय" भी कहते हैं।

बुध-चन्द्रमा के पुत्र थे और बृहस्पति ने उन्हें पुत्र स्वरूप स्वीकार किया था। अत: चन्द्रमा और बृहस्पति दोनों के गुण बुध में सम्मिलित हैं। चन्द्रमा गन्धर्वो के अधिपति हैं। अत: उनके पुत्र होने के कारण गन्धर्व विद्याओं के प्रणेता हैं। बृहस्पति के प्रभाव के कारण ये बुद्धि के कारक हैं। चन्द्रमा ने छल से तारा का अपहरण किया था, पिता के संस्कारों एवं स्वभाव का प्रभाव पुत्र पर भी निश्चित रूप से किसी न किसी प्रकार से प़डता ही है, अत: बुध का सम्बंध भी छल कपट से जो़डा गया है, मुख्य रूप से सप्तम स्थान स्थित बुध का। जन्मपत्रिका में अकेले बुध ही कई बार व्यक्ति को छल-कपट का आचरण करने पर विवश कर देते हैं।
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-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, संपादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई

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