ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

गुरुवार, 28 मार्च 2013

जो अब ''भाई'' से ''मुन्ना'' बन चुका है

































जो अब ''भाई'' से ''मुन्ना'' बन चुका है

सुधी पाठकों,
हिन्दू नववर्ष 2070 (वि.सं.) की ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ, यह तो तयशुदा है कि पूरे विश्व में तकरीबन एक वर्ष में 70 बार नववर्ष मनाया जाता है परन्तु, डेढ़ अरब वर्ष पूर्व जो हमारे हिन्दू धर्म शास्त्रों के मुताबिक नववर्ष को सर्वोत्कृष्ट एवं प्राचीनतम् तथा अन्य नववर्षों के एक निश्चित अवधि से काफी भिन्न है, साथ ही कुछ गणक-सिद्धांत चुनौतिपूर्ण है, जो आज भी अपनी सर्वोच्च सत्ता बनाये रक्खा है। आपके हाथों में जो यह अंक है इसमें सविशद् इस विषय पर चर्चा की गई है, मुझे विश्वास है कि आप सभी अवश्य अच्छा लगेगा। अब आईए चर्चा करते हैं आज के चल रहे राजनीतिक उठा-पटक की।
अभी सुनील नरगिस दत्त के पुत्र संजय दत्त के माफीनामा को लेकर चल रहा सियासी चहलकदमी कोई आम आदमी की बात नहीं करता केवल बाते हो रहीं हैं, एक चर्चित आदमी 'मुन्नाभाई' की, जो अब ''भाई'' से ''मुन्ना'' बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के सिलसिले में भगोड़े टाइगर मेनन के भाई अब्दुल्ला रज्जाक मेनन की फांसी की सजा को बरकरार रखकर उक्त षड्यंत्र के साजिशकर्ताओं से सख्ती से निपटने की पहल की है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फांसी पाए 10 मुजरिमों की सजा को उम्रकैद में बदलने का फैसला भी किया है। इससे उन तत्त्वों को सबक मिल पाएगा, जो मुंबई ब्लास्ट की साजिश रचने के बाद अदालत से किसी तरह की रियायत की उम्मीद कर रहे थे। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी रेखांकित किया है कि टाइगर मेनन की तरह याकूब की भूमिका भी मुख्य साजिशकर्ता की रही थी। याकूब और टाइगर मेनन ने न केवल अन्य साजिशकर्ताओं को ट्रेनिंग दी थी, बल्कि वे औरों की मदद से अपनी साजिश को अंजाम देते थे। 12 मार्च, 1993 को मुंबई में 12 जगह हुए धमाकों में 257 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 713 लोग घायल हुए थे। इससे एक बात तो देश की आर्थिक राजधानी मुंबई न केवल दहल गई थी, उसे पाकिस्तान की शह पर चलाए जा रहे षड्यंत्र के एक खतरनाक घटनाक्रम के तौर पर देखा गया था। इसके पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ होने के सबूत मिले थे।
आज तक ऐसे कई साक्ष्य सामने आ चुके हैं, जिनमें मुंबई बम धमाकों तथा आतंकवाद के अन्य मामलों में पाकिस्तान की संलिप्तता साबित होती रही, लेकिन फिर भी पाकिस्तान है कि मानता नहीं।
हैरानी की बात यह है कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी पाकिस्तान खुद पाकिस्तान को आतंकवाद का शिकार होने की दुहाई देता है। याकूब द्वारा मुंबई बम धमाकों का षड्यंत्र रचने, साजिशकर्ताओं को धन व ट्रेनिंग मुहैया करवाने जैसी विध्वंसक भूमिका को वह कैसे छिपा सकता है? अभी धमाकों में शामिल फरार आरोपियों में दाऊद इब्राहिम, अनीश इब्राहिम और टाइगर मेनन का पकड़ में आना शेष है, उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए। अगर पाकिस्तान आतंकवाद पर काबू पाने के प्रति वास्तव में गंभीर है तो उसे भारत के खिलाफ साजिश रचते रहने के बजाए उसे सहयोग देना होगा। अन्यथा उसका नापाक चेहरा अब तक कई बार बेनकाब हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह सच और जाहिर हो गया है। इसी मौके पर सुप्रीम कोर्ट ने संजय दत्त को एके-47 जैसे हथियार मिलने पर सीटीएसटी कोर्ट द्वारा 2007 में सुनाई गई छह साल की सजा को घटाकर पांच वर्ष कर एक बार फिर न्यायपालिका की सर्वोच्चता को रेखांकित किया है। हालांकि संजय दत्त के पास सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बैंच में पुनर्विचार याचिका दायर करने का विकल्प मौजूद है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से यह पुन: साबित हुआ है कि कानून की नजर में सभी बराबर हैं। -पंडित विनोद चौबे

शुक्रवार, 8 मार्च 2013

हमारे धर्मग्रंथों में नारी का सम्मान दिया उतना अन्यत्र नहीं

हमारे धर्मग्रंथों में नारी का सम्मान दिया उतना अन्यत्र नहीं.............

 
मित्रों, नमस्कार आज बात हो रही नारी सम्मान की, तो जितना सम्मान हमारे धर्मग्रंथों में नारी का सम्मान दिया उतना अन्यत्र नहीं मिलता, लेकिन शास्त्रों के अध्ययन और उनका मनन तथा चरितार्थ करने वालों की संख्या कम है अथवा न के बराबर है, जिस दिन समग्र विश्व नारी का एक साथ सम्मान करना आरंभ कर दे , मानो उसी दिन महिला दिवस है, अन्यथा बात करना बेमानी होगा। आईए नारियों के सम्मान में शास्त्रों का क्या मत है जानने का प्रयास करते हैं..यथा-

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।५६।।
[यत्र तु नार्यः पूज्यन्ते तत्र देवताः रमन्ते, यत्र तु एताः न पूज्यन्ते तत्र सर्वाः क्रियाः अफलाः (भवन्ति) ।]
जहां स्त्रीजाति का आदर-सम्मान होता है, उनकी आवश्यकताओं-अपेक्षाओं की पूर्ति होती है, उस स्थान, समाज, तथा परिवार पर देवतागण प्रसन्न रहते हैं । जहां ऐसा नहीं होता और उनके प्रति तिरस्कारमय व्यवहार किया जाता है, वहां देवकृपा नहीं रहती है और वहां संपन्न किये गये कार्य सफल नहीं होते हैं ।

शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।।५७।।
[यत्र जामयः शोचन्ति तत् कुलम् आशु विनश्यति, यत्र तु एताः न शोचन्ति तत् हि सर्वदा वर्धते ।]
जिस कुल में पारिवारिक स्त्रियां दुर्व्यवहार के कारण शोक-संतप्त रहती हैं उस कुल का शीघ्र ही विनाश हो जाता है, उसकी अवनति होने लगती है । इसके विपरीत जहां ऐसा नहीं होता है और स्त्रियां प्रसन्नचित्त रहती हैं, वह कुल प्रगति करता है । (परिवार की पुत्रियों, बधुओं, नवविवाहिताओं आदि जैसे निकट संबंधिनियों को ‘जामि’ कहा गया है ।)

जामयो यानि गेहानि शपन्त्यप्रतिपूजिताः ।
तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः ।।५८।।
[अप्रतिपूजिताः जामयः यानि गेहानि शपन्ति, तानि कृत्या आहतानि इव समन्ततः विनश्यन्ति ।]
जिन घरों में पारिवारिक स्त्रियां निरादर-तिरस्कार के कारण असंतुष्ट रहते हुए शाप देती हैं, यानी परिवार की अवनति के भाव उनके मन में उपजते हैं, वे घर कृत्याओं के द्वारा सभी प्रकार से बरबाद किये गये-से हो जाते हैं । (कृत्या उस अदृश्य शक्ति की द्योतक है जो जादू-टोने जैसी क्रियाओं के किये जाने पर लक्षित व्यक्ति या परिवार को हानि पहुंचाती है ।)

तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशनैः ।
भूतिकामैर्नरैर्नित्यं सत्कारेषूत्सवेषु च ।।५९।।
[तस्मात् भूतिकामैः नरैः एताः (जामयः) नित्यं सत्कारेषु उत्सवेषु च भूषणात् आच्छादन-अशनैः सदा पूज्याः ।]
अतः ऐश्वर्य एवं उन्नति चाहने वाले व्यक्तियों को चाहिए कि वे पारिवारिक संस्कार-कार्यों एवं विभिन्न उत्सवों के अवसरों पर पारिवार की स्त्रियों को आभूषण, वस्त्र तथा सुस्वादु भोजन आदि प्रदान करके आदर-सम्मान व्यक्त करें ।
-- ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे

गुरुवार, 7 मार्च 2013

.................इसलिए मैं शुक्रगुजार हुँ।

मित्रों आज देश के सुप्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र हरि भूमि में हस्तरेखा पर आधारित मेरा आर्टिकल छपा है..उचित स्थान देने पर मैं ..स्थानीय संपादक श्री आलोक तिवारी Alok Tiwari जी एवं श्री निलेश त्रिपाठीNilesh Tripathi सहित सभी हरिभूमि परिवार को धन्यवाद ज्ञापित करता हुँ...। ज्ञात हो कि जबसे यह अखबार छत्तीसगढ़ में प्रारंभ हुआ तभी से मेरे संबंध इस समाचार पत्र से है, सर्व प्रथम हमारी भविष्यवाणी 2002 में प्रकाशित हुआ था '' हिलने वाली है कुर्सी जोगी की '' यह शिर्षक था और सत्य भी हुआ और साथ ही हमारी अहमियत भी बढ़ी, इसलिए मैं शुक्रगुजार हुँ।

ब्राह्मण के कर्त्तव्य.....विप्र प्रसादात् मम नाम रामम्।।

ब्राह्मण के कर्त्तव्य.....विप्र प्रसादात् मम नाम रामम्।।


विप्र प्रसादात् धरणी धरोहम्। विप्र प्रसादात कमला वरोहम्।
विप्र प्रसादात् जिताजितोहम्। विप्र प्रसादात् मम नाम रामम्।।

ब्राह्मण ( विप्र, द्विज, द्विजोत्तम, भूसुर ) हिन्दू समाज की एक जाति है | ब्राह्मण को विद्वान, सभ्य और शिष्ट माना जाता है। एतिहासिक रूप से हिन्दू समाज में, व्यवसाय-आधारित चार वर्ण होते हैं। ब्राह्मण ( आध्यात्मिकता के लिए उत्तरदायी ), क्षत्रिय (धर्म रक्षक), वैश्य (व्यापारी व कॄषक वर्ग) तथा शूद्र ( शिल्पी, श्रमिक समाज ) । व्यक्ति की विशेषता, आचरण एवं स्वभाव से उसकी जाति निर्धारित होती थी । विद्वान, शिक्षक, पंडित, बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक तथा ज्ञान-अन्वेषी ब्राह्मणों की श्रेणी में आते थे |
यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म ( अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान ) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है - "ईश्वर ज्ञाता" | किन्तु हिन्दू समाज में एतिहासिक स्थिति यह रही है कि पारंपरिक पुजारी तथा पंडित ही ब्राह्मण होते हैं ।
किन्तु आजकल बहुत सारे ब्राह्मण धर्म-निरपेक्ष व्यवसाय करते हैं और उनकी धार्मिक परंपराएं उनके जीवन से लुप्त होती जा रही हैं | यद्यपि भारतीय जनसंख्या में ब्राह्मणों का प्रतिशत कम है, तथापि धर्म, संस्कॄति, कला, शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान तथा उद्यम के क्षेत्र में इनका योगदान अपरिमित है |
ब्राह्मण समाज का इतिहास प्राचीन भारत के वैदिक धर्म से आरंभ होता है| "मनु-स्मॄति" के अनुसार आर्यवर्त वैदिक लोगों की भूमि है | ब्राह्मण व्यवहार का मुख्य स्रोत वेद हैं | ब्राह्मणों के सभी सम्प्रदाय वेदों से प्रेरणा लेते हैं | पारंपरिक तौर पर यह विश्वास है कि वेद अपौरुषेय ( किसी मानव/देवता ने नहीं लिखे ) तथा अनादि हैं, बल्कि अनादि सत्य का प्राकट्य है जिनकी वैधता शाश्वत है | वेदों को श्रुति माना जाता है ( श्रवण हेतु , जो मौखिक परंपरा का द्योतक है ) |

धार्मिक व सांस्कॄतिक रीतियों एवम् व्यवहार में विवधताओं के कारण और विभिन्न वैदिक विद्यालयों के उनके संबन्ध के चलते, ब्राह्मण समाज विभिन्न उपजातियों में विभाजित है | सूत्र काल में, लगभग १००० ई.पू से २०० ई.पू ,वैदिक अंगीकरण के आधार पर, ब्राह्मण विभिन्न शाखाओं में बटने लगे | प्रतिष्ठित विद्वानों के नेतॄत्व में, एक ही वेद की विभिन्न नामों की पृथक-पृथक शाखाएं बनने लगीं | इन प्रतिष्ठित ऋषियों की शिक्षाओं को सूत्र कहा जाता है | प्रत्येक वेद का अपना सूत्र है | सामाजिक, नैतिक तथा शास्त्रानुकूल नियमों वाले सूत्रों को धर्म सूत्र कहते हैं , आनुष्ठानिक वालों को श्रौत सूत्र तथा घरेलू विधिशास्त्रों की व्याख्या करने वालों को गॄह् सूत्र कहा जाता है | सूत्र सामान्यतया पद्य या मिश्रित गद्य-पद्य में लिखे हुए हैं |

ब्राह्मण शास्त्रज्ञों में प्रमुख हैं अग्निरस , अपस्तम्भ , अत्रि , बॄहस्पति , बौधायन , दक्ष , गौतम , वत्स,हरित , कात्यायन , लिखित , मनु , पाराशर , समवर्त , शंख , शत्तप , ऊषानस , वशिष्ठ , विष्णु , व्यास , यज्ञवल्क्य तथा यम | ये इक्कीस ऋषि स्मॄतियों के रचयिता थे | स्मॄतियां में सबसे प्राचीन हैं अपस्तम्भ , बौधायन , गौतम तथा वशिष्ठ |

ब्राह्मण का स्वभाव
शमोदमस्तपः शौचम् क्षांतिरार्जवमेव च |
ज्ञानम् विज्ञानमास्तिक्यम् ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||
चित्त पर नियन्त्रण, इन्द्रियों पर नियन्त्रण, शुचिता, धैर्य, सरलता, एकाग्रता तथा ज्ञान-विज्ञान में विश्वास | वस्तुतः ब्राह्मण को जन्म से शूद्र कहा है । यहाँ ब्राह्मण को क्रियासे बताया है । ब्रह्म का ज्ञान जरुरी है । केवल ब्राहमण के यहाँ पैदा होने से वह नाममात्र का ब्राहमण होता है व शूद्र के समान ब्राहमणयोग्य कृत्यों से वंचित होता है, उपनयन-संस्कार के बाद ही पूरी तरह ब्राहमण बन कर ब्राहमणयोग्य कृत्यों का अधिकारी होता है।

ब्राह्मण के कर्त्तव्य
निम्न श्लोकानुसार एक ब्राह्मण के छह कर्त्तव्य इस प्रकार हैं
अध्यापनम् अध्ययनम् यज्ञम् यज्ञानम् तथा | ,
दानम् प्रतिग्रहम् चैव ब्राह्मणानामकल्पयात ||
शिक्षण, अध्ययन, यज्ञ करना , यज्ञ कराना , दान लेना ब्राह्मण के कर्त्तव्य हैं |
(संकलन) - ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे

मंगलवार, 5 मार्च 2013

समाजसेवा में महिलाओं का योगदान अविस्मरणीय

8 मार्च महिला दिवस पर विशेष....

समाजसेवा में महिलाओं का योगदान अविस्मरणीय

० महिला समूहों के माध्यम से कुटीर उद्योगों का कर रही हैं संचालन
डा. सूर्यकांत मिश्रा
डा. सूर्यकांत मिश्रा,  जूनी हटरी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
महिलाओं को पुरूषों से कमतर आंकना हमारी प्रवृत्ति में शामिल सदियों पुरानी मानसिकता रही है। विकास में महिलाओं का योगदान स्वतंत्रता से पूर्व से देखा जा सकता है। जब भारत वर्ष की सरजमीं को अंग्रेजों के मुक्त कराने में रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी पूरी जवानी झोंक दी। इतना ही नहीं बचपन की शरारतें और उछलकूद भी उस विरांगना की जीवनी में क्रांतिकारी विचारों के रूप में लिखी जा चुकी है। सन्ï 1950 के दशक में एक महिला के गाये अंग्रेजी गीत 'एनीथिंग यू कैन डू, आई कैन डू बेटरÓ आज भी हमारे कानों में गंूज रहे है। उस गीत के एक एक शब्द का महत्व आज मैं प्रासंगिक लग रहा है, जब अनेक महिलाएं बैंकिंग क्षेत्र से लेकर प्रबंधन टेक्नोलॉजी, आईटी विज्ञान, रक्षा सेवाओं आदि में अपनी प्रभावी उपस्थिति के साथ स्थापित हो चुकी है। ये ऐसे क्षेत्र है, जिन्हें एक जमानें में पुरूषों के अधिकार क्षेत्र में रखा गया था। वर्तमान समय में शायद ही ऐसा कोई उद्योग होगा जहां महिलाओं ने अपना योगदान न दिया हो। 20वीं सदी के बीतते समय से लेकर अब 21वीं सदी में महिलाओं ने कुशल उद्यमी से लेकर सफल चिकित्सक, इंजीनियर और अंतरिक्ष यात्री तक अपना महत्व सिद्घ करते हुए विमान संचालन की कमान भी संभाल ली है। सरकारी चुनने के मामले में हमनें पश्चिमी देशों की तुलना में भारतीय महिलाओं को शुरू से वोटिंग का अधिकार दिया है। जिसे हम उनका सम्मान न कहते हुए राजनैतिक गलियारे में लगभग पुरूषों के सामान और साक्षरता से दूर रहने पर बहलाकर वोट प्राप्त करने से जोड़ते हुए देख सकते है। कहीं न कहीं स्वार्थ की राजनीति ने महिलाओं को इस एक मामले में पुरूषों के बराबर हक दिया है।
अब महिलाओं की अपेक्षा हमारे आर्थिक तंत्र से लेकर विकास की अर्थ व्यवस्था को भी प्रभावित कर सकती है। हमें जानकर हैरान नहीं होना चाहिये कि आज भारतवर्ष में सक्षम महिलाओं की कमी नहीं। आंकड़े बताते है कि वर्तमान समय में हमारे देश में पूरी दुनिया की तुलना में सबसे अधिक प्रोफेशनल महिलाएं अपना योगदान कर रही है। भारत वर्ष में अमेरिका से भी अधिक डाक्टर, सर्जन, वैज्ञानिक और प्रोफेसर्स मौजूद है, जो शिक्षा जगत से लेकर नवीन भारत के सृजन में आगे खड़ी दिखाई पड़ रही है। शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र को छोड़ भी दिया जाये तो सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी महिलाओं की सकारात्मक भूमिका से इंकार नहंी किया जा सकता है। विगत दो दशकों में महिलाओं ने महिला समूहों का गठन कर ग्राम्य विकास में जो विकास कार्य किये है, वे वास्तव में महिलाओं द्वारा विकास की उस नाव को खेने के बराबर कही जा सकती है, जो एक सफल नाविक के अभाव में भंवर में फंसी हुयी थी। गांवों में स्कूल स्थापना से लेकर लघु और कुटीर उद्योगों में निरक्षर महिलाओं को आगे लाते हुए न केवल उनकी क्षमताओं का उपयोग किया गया है, वरन उन्हें साक्षर कर शोषण भी मुक्ति दिलायी गयी है। यह जानकार भी लोगों को आश्चर्य होगा कि 'फोब्र्सÓ की हालिया रिपोर्ट के अनुसार विश्व की सबसे अधिक शक्तिशाली महिलाओं में शीर्ष पर जमीं दो महिलाएं भारतीय ही है। जिनमें सत्तासीन यूपीए गठबंधन की कांग्रेस नत्री श्रीमती सोनिया गांधी और पेप्सिको की अध्यक्ष तथा मुख्य कार्यकारी इंदिरा नूयी शामिल है। इनके अलावा हमें किरण मजूमदार शॉ का नाम भी नहीं भुलना चाहिये, जिन्होंने ब्रिवरी के अपने प्रशिक्षण को विश्वस्तरीय अरबों डॉलर वाले बायो टेक्नोलॉजी कार्पोरेट में तब्दील कर दिखाया है। इतना ही नहीं देश में वैज्ञानिक उद्यमशीलता की शुरूआत का श्रेय भी किरण मजूमदार शॉ को ही जाता है।
हमारे देश की दो 'बुकर अवार्डÓ विजेता महिलाओं अरूंधती रॉय और किरण देसायी को भी हमें महिला दिवस के परिपे्रेक्ष्य में स्मरणीय मानना होगा। मीरा नॉयर और दीपा मेहता जैसी रंग मंच की कुशल अदाकारा भी हमारे बीच है। जिन्होंने फिल्मकारों के बीच अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाबी हासिल की है। देखा जाये तो जमीनी स्तर पर दस लाख से अधिक महिलाएं ग्राम प्रमुख के तौर पर चुनी जा चुकी है, जो लगभग 322 करोड़ महिला मतदाता के सपनों को साकार करने प्रयासरत है। विगत कुछ वर्षों से हमारे देश में महिलाओं ने सफलता के जिन द्वारों पर दस्तक दी है, उनसे बालिका और युवती शिक्षा के अनेक अवसर स्वमेव खुल चुके है। शिक्षा के अधिकाधिक विस्तार और प्रचार प्रसार के साथ ही युवतियां अपने लक्ष्यों की आकांक्षा के प्रति सचेत होते हुए तेजी से बढ़ चली है। आधुनिक युवतियों के लिए अब विद्यालयीन और महाविद्यालयीन शिक्षा न्यूनतम मांग बच चुकी है। मात्र एक गृहिणी के तौर पर खाना बनाने, सिलाई और बच्चों के परवरिश से ही संतुष्टï होकर न रहने वाली आज की महिलाएं अपनी प्रतिभा और लक्ष्य के प्रति जागरूक होकर उसे पूर्णत: निखारना चाहती है। ऊंचाई की ओर बढ़ रही देश की अर्थव्यवस्था ने रोजगार के अनेक अवसर खोले है। नये क्षेत्रों ने महिलाओं को उनकी क्षमता के अनुसार विकल्प प्रदान किये है, ताकि वह नई चुनौतियां स्वीकारें और पुरानी परंपराओं का त्याग करें।
महिला हर क्षेत्र में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर विकास में योगदान कर रही है। बावजूद इसके शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं स्वतंत्रता के छह दशक बीत जाने के बाद भी दोयम दर्जे की नागरिकता ही पा सकी है। हमारे देश राष्टï्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि आजादी के बाद देश में महिलाओं की काफी विकास हुआ है, लेकिन लैंगिक असमानता के आंकड़े हमें अभी भी चौंका रहे है। चंद महिलाओं की उपलब्धियों पर स्वयं अपनी पीट थपथपाने वाले हमारे देश को इस बात को भी स्वीकार करना होगा कि आज भी हमारे देश की महिलाएं उपेक्षित ही नहीं वरन भेदभाव के विष भरे घूंट को पी रही है। दफ्तरों में यौन शोषण के आंकड़े भी कम नहीं है। एक सर्वे के आंकड़े बताते है कि देश में महिलाओं को पुरूषों के साथ बराबरी करते हुए उनके सामान अवसर नहीं दिये जा रहे है। पदोन्नति के मामले में वे पीछे ही रही है। ऐसी महिलाएं जिन्हें नौकरी तो मिल गयी है, उन्हें भी शीर्ष पदों की प्राप्ति नहीं हो पा रही है। उपलब्ध आंकड़े बताते है कि महज 4 प्रतिशत महिलाएं ही शीर्ष पदों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा पा रही है। इसी प्रकार समान कार्य समान वेतन की नीति भी सिर्फ दस्तावेजी भाषा बनकर रही है। श्रम मंत्रालय से प्राप्त आंकड़े इस संबंध में बताते है कि कृषि क्षेत्र में स्त्री और पुरूषों को मिलने वाली मजदूरी में लगभग 27.6 प्रतिशत का अंतर है। सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह है कि झाडू लगाने जैसे अकुशल कार्य में लगे स्त्री-पुरूष श्रमिकों में भी वेतन को लेकर असंगति है जो स्पष्टï भेदभाव का सूचक है।
प्रशासनीक स्तर पर महिला-पुरूषों की भागीदारी के संबंध में 'यूनीसेफ'' द्वारा किये गये एक सर्वे रिपोर्ट के आंकड़े सुनिश्चितता की बात करते हुए कहते है कि महिलाएं नागरिक प्रशासन ने सहभागिता के मामले में पुरूषों से कमतर नहंी आंकी जानी चाहिये। इतना ही नहीं महिलाओं के सहयोग से ही बच्चों के जीवन को बेहतर मार्ग मिल पाता है यह भी सत्य स्वीकार किया जाना चाहिये कि महिलाओं के प्रतिनिधित्व से ही कार्यालयों में सौहाद्र का वातावरण निर्मित हो पा रहा है। विभिन्न देशों की संसद में महिलाओं की भागीदारी के संबंध में भी हमारा देश अन्य देशों की तुलना में काफी पीछे है। जहां पुरूषों के 92 प्रतिशत की तुलना में महिलाओं को प्रतिशत मात्र 8 है। अंतिम रूप से हमें देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के कथन को ध्यान में रखना चाहिये जिसमें उन्होंने कहा था कि 'जब महिलायें आगे बढ़ती है, तो परिवार आगे बढ़ता है, समाज आगे बढ़ता है और राष्टï्र भी प्रगति की ओर अग्रसर होता है।''



                                          प्रस्तुतकर्ता
                                       (डा. सूर्यकांत मिश्रा)
                                   जूनी हटरी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)

मेरा जीवन, मेरी जि़म्मेदारी.. (अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस) - डॉ0 मोना माखीजा


मेरा जीवन, मेरी जि़म्मेदारी.. (अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस)  - डॉ0 मोना माखीजा 


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को विश्वभर में मनाया जाता है। इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएँ देशए जात.पातए भाषाए राजनीतिकए सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। महिला दिवस पर स्त्री की प्रेमए स्नेह व मातृत्व के साथ ही शक्तिसंपन्न स्त्री की मूर्ति सामने आती है। इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है और काफ़ी हद तक अपने अधिकारों के लिए लडऩा सीख लिया है। आज के समय में स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक.दूसरे की दुश्मन नहींए सहयोगी हैं।

डॉ0 मोना माखीजा 


    नारी तुम केवल श्रद्धा होए विश्वास रजत नग पग तल में।

    पीयूष स्रोत सी बहा करोए जीवन के सुंदर समतल में।।
                                                                    
अंतर्राश्ट्रीय महिला दिवस पर आप सभी को बधाई! मैं इस दिवस पर महिलाओं के मानसिक-स्वास्थ्य की बात करना चाहती हूं। आइये नजर डाले मानसिक-स्वास्थ्य सम्बंधी षोध परिणामों पर.........


  • - न्यूरोटिसिज़म यानी नकारात्मक भावों का ज्यादा अनुभव करने की प्रवृति, पुरूशों की तुलना में महिलाओं में लगभग दुगनी होती है। इसी वजह से महिलाएं ज्यादा तनाव में रहती हैं, गुस्सा, चिंता, अपराध भाव इत्यादि को महिलाएं ज्यादा अनुभव करती हैं।

  •  इटिंग डिसआर्डर यानी बहुत अधिक या बहुत कम खाने सम्बंधी मनोरोग मुख्यतः किषोर अवस्था की लड़कियों में ही पाया जाता है।
  • - वल्र्ड हेल्थ आर्गेंनाइजेषन के ताजा सर्वे के अनुसार भारत में मेजर डिपर्रेषन और चिंता विकृति (हर समय चिंतित रहना) जैसे गंभीर मनोरोग पुरूशों की अपेक्षा महिलाओं में 50 प्रतिषत अधिक होते हैं।
  • - सोषल फोबिया या अन्य विषिश्ट फोबिया, जैसे उंची जगह या अंधेरे से डर के मामलों में यदि पुरूशों की संख्या तीन या चार है, तो महिलाओं की संख्या आठ है।
  • - डबलू0एच0ओ0 द्वारा 15 देषों में सर्वे कराया गया और प्राप्त परिणाम हैरान करने वाले थे। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में मनावैज्ञानिक समस्याओं के लिए पंजीकृत संख्या, पुरूशों की तुलना में महिलाओं की दुगनी थी।

हाथ की लकीरों से जानें व्यवसाय की स्थिति

 हाथ की लकीरों से जानें व्यवसाय की स्थिति



-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, शांतिनगर, भिलाई
भारतीय शास्त्रों में प्रमुख रुप से ज्योतिष शास्त्र भी है ज्योतिषाम् चक्षु: कहा गया अर्थात वेदपुरुष का नेत्र कहा गया है, जिनके अलग-अलग विधा हैं जिनमें प्रमुख रुप से सिद्धांत एवं फलित बाद में भारतीय मनिषियों ने हस्तसञ्जीवनी (यह एक हस्त रेखा शास्त्र में प्रयुक्त किये जाने वाले ग्रंथों में से एक प्रमुख ग्रंथ है) के माध्यम से हस्तरेखा द्वारा जातक के भूत, भविष्य और वर्तमान को बताने वाला एक शास्त्र निरुपीत किया, वास्तवीक में यह भारतीय हस्त रेखा सामुद्रीक शास्त्र है, किन्तु बाद मे चलकर यूनानी विद्वान कीरो ने इसको विकसीत किया, जो वास्तवीक में गहन चिन्तनशील ज्योतिषी के द्वारा यदि भिन्न-भिन्न जानकारियाँ हस्तरेखा के माध्यम से ली जाय तो निश्चित ही सटीक भविष्यफल साबीत होगी।

आज कईयों के पास अपना जन्म तिथि, समय की सही जानकारी नहीं रहती और वे बार-बार किसी भी क्षेत्रों में निवेश कर व्यवसाय करते हैं परन्तु उन्हें असफलता ही हाथ लगती है, ऐसे में उनको किसी विज्ञ हस्तरेखा विशेषज्ञ के पास जाकर एक सुनिश्चित व्यावसायिक क्षेत्र का चयन कर लेना चाहिए। क्योंकि व्यवसाय और कारोबार करने वालों के लिए समय और भाग्य महत्वपूर्ण माना जाता है। किसी व्यक्ति के जीवन में व्यवसाय की स्थिति कैसी रहेगी, यह जानने के लिए जन्म कुंडली के अलावा हस्त रेखाओं का अध्ययन भी किया जाता है। कहते हैं कि हाथों की लकीरों का अध्ययन सही तरीके से हो जाए तो आने वाली कई समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। यदि हाथ में भाग्य रेखा सामान्य से अधिक मोटी होकर मस्तिष्क रेखा पर रुक जाए, जीवन रेखा सीधी हो, हृदय रेखा में द्वीप का चिन्ह हो और हाथ में एक से अधिक राहु रेखाएं हों तो जातक के व्यवसाय में उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं। नौकरी पेशा जातक को नौकरी से •ाी हाथ धोना पड़ सकता है। इसके साथ-साथ यदि हाथ में विभिन्न ग्रह भी कमजोर या दोषपूर्ण हों तो जातक के व्यवसाय में घाटा होता है। मोटा पैसा अटकने की आशंका बढ़ जाती है। प्राय: आपने देखा होगा कि मनुष्य के हाथ में जन्मजात अथवा 25 वर्ष के बाद काला तल दिखने लगता है, जो स्थान के अनुसार शुभाशुभ फल देने में  अहम भूमिका का निर्वहन करता है।

काले तिल का मतलब हानिप्रद और लाभप्रद भी:


भाग्य रेखा के ऊपर काला तिल, धब्बा और द्वीप के अलावा जीवन रेखा पर स्पष्ट जाल व अंगुलियों में टेढ़ापन नजर आता हो तो व्यवसाय में धन और समय खर्च होने की तुलना में लाभ का प्रतिशत कम ही होता है। यदि जातक भागीदारी के रूप में कोई व्यवसाय कर रहा हो तो उसे आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ता है। यदि भाग्य रेखा मोटी होने के साथ-साथ टूट कर आगे बढ़ रही हो, शनि, मंगल और बुध ग्रह कमजोर या खराब हो, शनि क्षेत्र पर सीढ़ीनुमा रचना बनी हो या शनि पर्वत अत्यधिक कटा-फटा और जालयुक्त हो तब भी जातक को अपेक्षा के अनुरूप व्यवसाय में लाभ नहीं मिल पाता है। जातक का मन अस्थिर होने से वह बदल-बदल कर व्यवसाय की योजना बनाता रहता है। किन्तु ध्यान रहे कि यदि रेखाएं निर्दोष हैं तभी उन्नतिकारक मानी जाती हैं, अथवा उन्नति प्रदान करतीं हैं।

निर्दोष रेखाएं देती हैं उन्नति

व्यवसाय की स्थिति उस समय और भी खराब हो जाती है जब ह्रदय रेखा टूट कर मस्तिष्क रेखा में मिल जाए, भाग्य रेखा पतली और दोष पूर्ण हो, हाथ के मध्य में भाग्य रेखा, जीवन रेखा या ह्रदय रेखा पर काला तिल हो। ऐसी स्थिति में व्यवसाय में आर्थिक क्षति, मानसिक कष्ट और व्यवसाय में अनावश्यक रुकावटों का सामना करना पड़ता है। जिन हाथों में •ााग्य रेखा, जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा के साथ-साथ शनि, बुध एवं मंगल पर्वत निर्दोष हों तो वे जातक व्यवसाय में ला•ा और उन्नति कर पाते हैं।

हालॉकि मनुष्य के पाप और पुण्य कर्मों के आधार पर रेखाओं में समय-समय पर परिवर्तन देखने को मिलते रहते हैं, अत: हर छ: माह में सूक्ष्म हस्तरेखा का किसी विशेषज्ञ से वाचन कराते रहना चाहिए। साथ ही पुण्य कर्मों में संलिप्तता होनी चाहिए।

सोमवार, 4 मार्च 2013

ऊंटों के विवाह में, गधे गीत गाते हैं....??

ऊंटों के विवाह में, गधे गीत गाते हैं....??

मित्रों, सुप्रभातम्...आज के सन्दर्भ-चिन्तन में मैं बस इतना कहना चाहूँगा कि- आप जिस रंग के ग्लास लगे चश्मे से संसार को देखेंगे, वैसा ही आपको संसार दिखेगा, अर्थात् देश की राजनीतिक हालात अथवा उस पार्टी के कार्यकर्ताओं को उसी निगाह से हर व्यक्ति को देखने व समझने की नासमझी करते हैं..हालॉकि हर कोई उनके जैसा नहीं होता। विशेष तौर पर बात जब भारतीय संस्कृति और भाईचारे की होती हो और उसको लेकर राजनीति होने लगे तो हमारे जैसे लोग भला क्या तर्क दे पायेंगे...इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है..
उष्ट्राणां विवाहेषु , गीतं गायन्ति गर्दभाः । परस्परं प्रशंसन्ति , अहो रूपं अहो ध्वनिः ।।

ऊंटों के विवाह में, गधे गीत गाते हैं । एक दूसरे की बढाई करते हैं, वाह क्या सुंदरता है, वाह क्या गाना है ॥

क्या विद्योत्तमा की जरुरत है मनमोहन सरकार को.....???


ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे

क्या विद्योत्तमा की जरुरत है मनमोहन सरकार को.....???

तकरीबन डेढ़ लाख वर्ष पूर्व प्रभु श्रीराम जी द्वारा प्रदत्त उपहार सुनामी से बचाने वाला अमोघ अस्त्र ''रामसेतु''....उस पर भी श्री मनमोहन सरकार की वक्र दृष्टि....से कालिदास जी के उस वाकये को याद दिलाती है...जिस समय जिस डाल पर बैठे थे उसी डाल को काट रहे थे।, अन्ततः उन्हें साजिश के तहत विद्योत्तमा के समक्ष प्रस्तुत किया गया और वे ही एक दिन संस्कृत साहित्य के प्रख्यात कवि कालिदास हुए.....लेकिन विद्योत्तमा कहाँ से लायेंगे मनमोहन जी...यह यक्ष प्रश्न है..? और नहीं मिली विद्योत्तमा तो भारत को सुनामी के आगोश में डूबो देने का जख्म सदा सदा के लिये भारतीयों को देकर चले जायेंगे.....। -ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे

'शिवधाम' बना छत्तीसगढ़ प्रदेश

10 मार्च महाशिवरात्रि पर विशेष....

'शिवधाम' बना छत्तीसगढ़ प्रदेश

० राजनांदगांव में 108 फीट ऊंचा शिवलिंग श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र


Dr.S.K.Mishra
छत्तीसगढ़ प्रदेश एक ओर जहां वनाच्छादित क्षेत्र होने से सुंदर एवं प्राकृतिक वातावरण के साथ विशेष महत्व रखता है, वहीं दूसरी ओर धार्मिक आस्था भी प्रदेश के नागरिकों में कूट-कूटकर भरी हुई है। पूरा प्रदेश विशेष रूप से शिवभक्ति से ओतप्रोत दिखाई पड़ता है। कलचुरी राजाओं की रियासत भी शिवभक्ति से भरी पड़ी है। भोरमदेव में स्थापित सैकड़ों शिवलिंग इस बात को पुष्ट करते देखे जा सकते है। कल्याणकर्ता आदि देव भगवान शंकर की पूजा अर्चना भी बड़ी सहज होने से भक्तों की संख्या सबसे ज्यादा है। यह कहना भी गलत न होगा कि छत्तीसगढ़ ही नहीं वरन पूरे देश में भगवान शंकर ही भक्तजनों के आदि देव बने हुये है। राजाओं के शासनकाल से लेकर अब तक बसे-बसाये जाने वाले छोटे-बड़े कस्बों से लेकर शहरों तक के विकास में रिहायशी तालाबों और नदी तटों पर भगवान शिव के मंदिरों की स्थापना ने भी इस बात का प्रमाण दिया है कि अखिल हिन्दुस्तान पुरातन काल से शिव भक्ति में लीन रहा है। बड़ा ही साधारण और सरल मात्र छह अक्षरों का महामंत्र 'ऊँ नम: शिवायÓ ने अनादिकाल से शिव आराधकों को जो विश्वास और शक्ति प्रदान की है, वह आज भी निरंतर जारी है और आने वाले समय में भी धर्म और संस्कृति को ताकत देता रहेगा। भगवान शिव के सबसे शक्तिशाली मंत्र के रूप में शिव आराधकों द्वारा निम्न मंत्र का जाप किया जाना चाहिये।
ऊँ वंदे देव उमापतिं सुरगुरूं, वंदे जगत्कारणं।
वंदे पन्नभूषणं मृगधरं, वंदे पशुनाम पतिं।।
वंदे सूर्य शशांक, वह्विनयनं, वंदे मुकुंदप्रियमं।
वंदे भक्त जनाश्रयं च वरदं, वंदे शिवम शंकरं।।
विशाल शिव प्रतिमा के दर्शन कर अभिभूत हो रहे शिवभक्त
राजनांदगांव नगर में रायपुर से नागपुर मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 पर पुलिस प्रशिक्षण संस्था के सामने बनाये गये बर्फानी धाम में मां पाताल भैरवी मंदिर के साथ ही विशालकाय शिवलिंग मिलों दूरी से लोगों को दर्शन लाभ दे रहा है। इसी मंदिर के ऊपरी हिस्से में 13 फीट ऊंची भगवान शंकर की भव्य प्रतिमा शिव भक्तों को सुख और शांति प्रदान कर रही है। काले पत्थर और लोहे से बनाई गई कल्याणकर्ता भगवान भोलेनाथ की उक्त प्रतिमा में भोले भंडारी द्वारा धारित त्रिशुल की सुंदरता भी आकर्षण को अलग ही रूप प्रदान कर रही है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस इकलौते मंदिर में आदिदेव की उपासना और दर्शन के लिये पहुंच रहे है। भगवान शंकर की इस विशाल प्रतिमा के समक्ष ही द्वादश ज्योतिर्लिंग सोमनाथ से लेकर श्री शैल के मल्लिकार्जुन, उज्जैन के महाकाल, ओंकार के परमेश्वर, हिमाचल के केदार, डाकिनी के भीमशंकर, काशी के विश्वेश्वर, गौतमी तट के त्रयंवकंम, चिताभूमि के वैद्यनाथ, दारूका वन के नागेश्वर, सेतुवन के रामेश्वरम और शिवालय में स्थित घुसमेश्वर ज्योतिर्लिंग के सामने शीश झुकाते श्रद्धालु सीधे शिवधाम का आनंद उठाते प्रतीत होते है। भगवान शिव का सौम्य रूप हाथों में डमरू और त्रिशुल के साथ बड़ा ही सुख शांति देने वाला अवसर प्रदान कर रहा है। 108 फीट की विशाल शिवलिंग और 13 फीट ऊंची भगवान शिव की अद्भुत प्रतिमा पूरे अंचल में ख्याति प्राप्त कर चुकी है। शिवलिंग और जलहरि के आकार में बना विराट मंदिर सभी धर्मावलंबियों को आकर्षित कर रहा है। मंदिर के ऊपरी हिस्से में 6 अप्रैल 2008 से 14 अप्रैल 2008 तक विशेष सहस्त्र चंडी महायज्ञ के साथ भगवान शिव और द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई है।
डीपाडीह के महेशपुर में है दसवीं शताब्दी का शिव-मंदिर
अंबिकापुर जिले के अंतर्गत आने वाले डीपाडीह के पास महेशपुर एक ऐसा स्थान है जहां दसवीं शताब्दी का प्रचीनतम और विशाल शिव मंदिर स्थापित है, कहा जाता है कि डीपाडीह के लगभग 6 किमी के दायरे में प्राचीन भव्य मंदिरों के अवशेष टीलों के रूप में आज भी विद्यमान है। इसी क्षेत्र में उत्खनन के बाद 6 प्रमुख और 74 लघु मंदिर होने की जानकारी मिली। इनमें से अधिकांश शिव मंदिर है। सामंत राजा के नाम से पुजित स्थल में पशुधर शिवजी की विशालकाय चतुर्भुजी प्रतिमा, कार्तिकेय, नंदी एवं अन्य देवी-देवताओं के साथ स्थापित है। सामंत सरना का मुख्य शिव मंदिर आकार में बड़ा तथा भव्य है। गर्भगृह में चौकोर पीठ पर 7 फीट ऊंचा शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के टीलों की सफाई में कार्तिकेय, शिव-गौरी, उमा-महेश्वर की प्रतिमाएं पाई गई है। शिव तथा पार्वती के शिरो भाग पर बहुत ही आकर्षक केश सज्जा श्रद्धालुओं को यहां खींच लाती है। एक अनोखी प्रतिमा में शिवजी का एक पैर फरसे पर रखा है, अधोवस्त्र भी गिरते दिख रहे है। शिव प्रतिमा के चेहरे का भाव ऐसा दिखाई पड़ रहा है, मानो समस्त विश्व को भस्म कर निर्लिप्त भाव से निहार रहे है। एक ऐसा शिवलिंग भी इस स्थान पर पाया गया है, जिसमें 108 शिवलिंग बने हुये है। एक चतुर्भुजी शिवजी की प्रतिमा तोरन में कच्छप, मीन, नृसिंह, वाराह, राम, परशुराम, वामन-बलराम तथा बुद्ध तथा कल्कि को स्थापित किया गया है। महेशपुर नामक स्थान में रेणुका नदी के किनारे विशाल शिव मंदिर है। इस मंदिर का एक बड़ा भाग नष्ट प्राय है। महेशपुर ग्राम मुख्य रूप से शैव संस्कृति का केंद्र बिंदु दिखाई पड़ता है। यहीं पर भगवान शिव के मुख्य शिवलिंग के चारों ओर एकादश रूद्र स्थापित है।
त्रिधाम शिव मंदिर जांजगीर-चांपा एवं भोरमदेव बना खजुराहो
जांजगीर-चांपा स्थित 'त्रिधाम शिव मंदिरÓ प्रागैतिकहासिक काल का मंदिर माना जाता है। भारत वर्ष स्वर्ण युग काल के ऐतिहासिक चित्रण से परिपूर्ण यह मंदिर शिवभक्तों के आकर्षण का केंद्र रहा है। सृष्टि के कल्याणकर्ता भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में महाशिवरात्रि के अवसर पर लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिये पहुंचते है। धर्म के अलावा यह मंदिर वास्तुकला का अनोखा संग्रहालय भी माना जा सकता है। मंदिर की सुंदरता और भव्यता के साथ शिव उपासकों द्वारा विभिन्न अवसरों पर मंदिर परिसर में आयोजन किये जाते रहे है। पुरातत्व की दृष्टि से भी इस मंदिर का महत्व अपने आप में सिद्ध होता रहा है। छत्तीसगढ़ प्रदेश के कबीरधाम जिले के अंतर्गत 11वीं शताब्दी में बनाये गये मंदिर  'भोरमदेवÓ का इतिहास भी शैव काल से जुड़ा हुआ है। मंदिर की आकर्षक वास्तुकला सैलानियों को आकर्षित करने में कामयाब हो रही है। जिला मुख्यालय से 21 किमी की दूरी पर स्थित यह मंदिर साकरी नदी के किनारे नागवंशी राजाओं द्वारा बनवाया गया था। मंदिर परिसर में स्थापित शिवलिंग और जलहरि अनेक रूपों और अनेक दिशाओं में होने से भगवान शिव की चारों दिशा में कृपा को बरसात प्रतीत हो रहा है। शिवधाम के रूप में अलग पहचान बना चुके भोरमदेव मंदिर की ख्याति खजुराहों से तुलना कर देखी जा रही है।
शिवरीनारायण में हैं चंद्रचूड़ महादेव
छत्तीसगढ़ के धार्मिक एवं सांस्कृतिक केंद्रों में शिवरीनारायण का नाम प्रमुख रहा है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर शबरी ने प्रभु राम को बेर खिलाये थे। उसी शबरी के नाम पर शबरीनारायण नाम बाद में शिवरीनारायण हो गया। यहीं पर नर-नारायण मंदिर के समीप शिवजी का एक अत्यंत प्राचीन मंदिर है। इस प्रसिद्ध मंदिर को चंद्रचूड़ महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। चेदी संवत 919 में निर्मित यह मंदिर नारायण के इस क्षेत्र में अपवाद स्वरूप जाना जाता है। शिवरीनारायण से लगभग 3 किमी की दूरी पर खरौद नामक स्थान है, इस स्थान को शिव मंदिर तथा शैव मठो के कारण शिवकांक्षी कहा जाता है। शिव की विराट रूप की पूजा अंचल के लोग बुढ़ा महादेव के रूप में करते है। नगर के प्रवेश द्वारों पर तालाब एवं उनके किनारे शिव मंदिरों की कतार है। लक्ष्मणेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर भी यहीं स्थापित है। तीन सौ वर्ष पुराने आठवीं शताब्दी के मंदिर के गर्भगृह में एक अद्भुत शिवलिंग है, जिसमें सवा लाख छिद्र है। इस स्थान पर हर वर्ष फरवरी माह में मेला लगता है और महाशिवरात्रि के अवसर पर बड़ा मेला भी यहीं लगाया जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि शिवलिंग के सवा लाख छिद्र में सवा लाख चांवल के दाने चढ़ाने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। भगवान शिव को प्रसन्न करने उनके भक्तों द्वारा मंदिर परिसर को इस महामंत्र से गुंजायमान किया जाता रहा है।
ऊँ ह्वौ ऊँ जँू स:, भूभुर्व: स्व. त्रयम्बकम्,
यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारूकमिव वंंधनान्, मृत्योर्मुक्षियमाम्मृतात्
भूर्भुव: स्वरों जँू स: ह्वौं ऊँ।।
अर्थात समस्त संसार के पालनहार तीन नेत्रों वाले शिव की हम आराधना करते है। विश्व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलायें।


                                          प्रस्तुतकर्ता
                                       (डा. सूर्यकांत मिश्रा)
                                   जूनी हटरी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)