10 मार्च महाशिवरात्रि पर विशेष....
'शिवधाम' बना छत्तीसगढ़ प्रदेश
० राजनांदगांव में 108 फीट ऊंचा शिवलिंग श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र
Dr.S.K.Mishra |
छत्तीसगढ़ प्रदेश एक ओर जहां वनाच्छादित क्षेत्र होने से सुंदर एवं प्राकृतिक वातावरण के साथ विशेष महत्व रखता है, वहीं दूसरी ओर धार्मिक आस्था भी प्रदेश के नागरिकों में कूट-कूटकर भरी हुई है। पूरा प्रदेश विशेष रूप से शिवभक्ति से ओतप्रोत दिखाई पड़ता है। कलचुरी राजाओं की रियासत भी शिवभक्ति से भरी पड़ी है। भोरमदेव में स्थापित सैकड़ों शिवलिंग इस बात को पुष्ट करते देखे जा सकते है। कल्याणकर्ता आदि देव भगवान शंकर की पूजा अर्चना भी बड़ी सहज होने से भक्तों की संख्या सबसे ज्यादा है। यह कहना भी गलत न होगा कि छत्तीसगढ़ ही नहीं वरन पूरे देश में भगवान शंकर ही भक्तजनों के आदि देव बने हुये है। राजाओं के शासनकाल से लेकर अब तक बसे-बसाये जाने वाले छोटे-बड़े कस्बों से लेकर शहरों तक के विकास में रिहायशी तालाबों और नदी तटों पर भगवान शिव के मंदिरों की स्थापना ने भी इस बात का प्रमाण दिया है कि अखिल हिन्दुस्तान पुरातन काल से शिव भक्ति में लीन रहा है। बड़ा ही साधारण और सरल मात्र छह अक्षरों का महामंत्र 'ऊँ नम: शिवायÓ ने अनादिकाल से शिव आराधकों को जो विश्वास और शक्ति प्रदान की है, वह आज भी निरंतर जारी है और आने वाले समय में भी धर्म और संस्कृति को ताकत देता रहेगा। भगवान शिव के सबसे शक्तिशाली मंत्र के रूप में शिव आराधकों द्वारा निम्न मंत्र का जाप किया जाना चाहिये।
ऊँ वंदे देव उमापतिं सुरगुरूं, वंदे जगत्कारणं।
वंदे पन्नभूषणं मृगधरं, वंदे पशुनाम पतिं।।
वंदे सूर्य शशांक, वह्विनयनं, वंदे मुकुंदप्रियमं।
वंदे भक्त जनाश्रयं च वरदं, वंदे शिवम शंकरं।।
विशाल शिव प्रतिमा के दर्शन कर अभिभूत हो रहे शिवभक्त
राजनांदगांव नगर में रायपुर से नागपुर मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 पर पुलिस प्रशिक्षण संस्था के सामने बनाये गये बर्फानी धाम में मां पाताल भैरवी मंदिर के साथ ही विशालकाय शिवलिंग मिलों दूरी से लोगों को दर्शन लाभ दे रहा है। इसी मंदिर के ऊपरी हिस्से में 13 फीट ऊंची भगवान शंकर की भव्य प्रतिमा शिव भक्तों को सुख और शांति प्रदान कर रही है। काले पत्थर और लोहे से बनाई गई कल्याणकर्ता भगवान भोलेनाथ की उक्त प्रतिमा में भोले भंडारी द्वारा धारित त्रिशुल की सुंदरता भी आकर्षण को अलग ही रूप प्रदान कर रही है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस इकलौते मंदिर में आदिदेव की उपासना और दर्शन के लिये पहुंच रहे है। भगवान शंकर की इस विशाल प्रतिमा के समक्ष ही द्वादश ज्योतिर्लिंग सोमनाथ से लेकर श्री शैल के मल्लिकार्जुन, उज्जैन के महाकाल, ओंकार के परमेश्वर, हिमाचल के केदार, डाकिनी के भीमशंकर, काशी के विश्वेश्वर, गौतमी तट के त्रयंवकंम, चिताभूमि के वैद्यनाथ, दारूका वन के नागेश्वर, सेतुवन के रामेश्वरम और शिवालय में स्थित घुसमेश्वर ज्योतिर्लिंग के सामने शीश झुकाते श्रद्धालु सीधे शिवधाम का आनंद उठाते प्रतीत होते है। भगवान शिव का सौम्य रूप हाथों में डमरू और त्रिशुल के साथ बड़ा ही सुख शांति देने वाला अवसर प्रदान कर रहा है। 108 फीट की विशाल शिवलिंग और 13 फीट ऊंची भगवान शिव की अद्भुत प्रतिमा पूरे अंचल में ख्याति प्राप्त कर चुकी है। शिवलिंग और जलहरि के आकार में बना विराट मंदिर सभी धर्मावलंबियों को आकर्षित कर रहा है। मंदिर के ऊपरी हिस्से में 6 अप्रैल 2008 से 14 अप्रैल 2008 तक विशेष सहस्त्र चंडी महायज्ञ के साथ भगवान शिव और द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई है।
डीपाडीह के महेशपुर में है दसवीं शताब्दी का शिव-मंदिर
अंबिकापुर जिले के अंतर्गत आने वाले डीपाडीह के पास महेशपुर एक ऐसा स्थान है जहां दसवीं शताब्दी का प्रचीनतम और विशाल शिव मंदिर स्थापित है, कहा जाता है कि डीपाडीह के लगभग 6 किमी के दायरे में प्राचीन भव्य मंदिरों के अवशेष टीलों के रूप में आज भी विद्यमान है। इसी क्षेत्र में उत्खनन के बाद 6 प्रमुख और 74 लघु मंदिर होने की जानकारी मिली। इनमें से अधिकांश शिव मंदिर है। सामंत राजा के नाम से पुजित स्थल में पशुधर शिवजी की विशालकाय चतुर्भुजी प्रतिमा, कार्तिकेय, नंदी एवं अन्य देवी-देवताओं के साथ स्थापित है। सामंत सरना का मुख्य शिव मंदिर आकार में बड़ा तथा भव्य है। गर्भगृह में चौकोर पीठ पर 7 फीट ऊंचा शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के टीलों की सफाई में कार्तिकेय, शिव-गौरी, उमा-महेश्वर की प्रतिमाएं पाई गई है। शिव तथा पार्वती के शिरो भाग पर बहुत ही आकर्षक केश सज्जा श्रद्धालुओं को यहां खींच लाती है। एक अनोखी प्रतिमा में शिवजी का एक पैर फरसे पर रखा है, अधोवस्त्र भी गिरते दिख रहे है। शिव प्रतिमा के चेहरे का भाव ऐसा दिखाई पड़ रहा है, मानो समस्त विश्व को भस्म कर निर्लिप्त भाव से निहार रहे है। एक ऐसा शिवलिंग भी इस स्थान पर पाया गया है, जिसमें 108 शिवलिंग बने हुये है। एक चतुर्भुजी शिवजी की प्रतिमा तोरन में कच्छप, मीन, नृसिंह, वाराह, राम, परशुराम, वामन-बलराम तथा बुद्ध तथा कल्कि को स्थापित किया गया है। महेशपुर नामक स्थान में रेणुका नदी के किनारे विशाल शिव मंदिर है। इस मंदिर का एक बड़ा भाग नष्ट प्राय है। महेशपुर ग्राम मुख्य रूप से शैव संस्कृति का केंद्र बिंदु दिखाई पड़ता है। यहीं पर भगवान शिव के मुख्य शिवलिंग के चारों ओर एकादश रूद्र स्थापित है।
त्रिधाम शिव मंदिर जांजगीर-चांपा एवं भोरमदेव बना खजुराहो
जांजगीर-चांपा स्थित 'त्रिधाम शिव मंदिरÓ प्रागैतिकहासिक काल का मंदिर माना जाता है। भारत वर्ष स्वर्ण युग काल के ऐतिहासिक चित्रण से परिपूर्ण यह मंदिर शिवभक्तों के आकर्षण का केंद्र रहा है। सृष्टि के कल्याणकर्ता भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में महाशिवरात्रि के अवसर पर लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिये पहुंचते है। धर्म के अलावा यह मंदिर वास्तुकला का अनोखा संग्रहालय भी माना जा सकता है। मंदिर की सुंदरता और भव्यता के साथ शिव उपासकों द्वारा विभिन्न अवसरों पर मंदिर परिसर में आयोजन किये जाते रहे है। पुरातत्व की दृष्टि से भी इस मंदिर का महत्व अपने आप में सिद्ध होता रहा है। छत्तीसगढ़ प्रदेश के कबीरधाम जिले के अंतर्गत 11वीं शताब्दी में बनाये गये मंदिर 'भोरमदेवÓ का इतिहास भी शैव काल से जुड़ा हुआ है। मंदिर की आकर्षक वास्तुकला सैलानियों को आकर्षित करने में कामयाब हो रही है। जिला मुख्यालय से 21 किमी की दूरी पर स्थित यह मंदिर साकरी नदी के किनारे नागवंशी राजाओं द्वारा बनवाया गया था। मंदिर परिसर में स्थापित शिवलिंग और जलहरि अनेक रूपों और अनेक दिशाओं में होने से भगवान शिव की चारों दिशा में कृपा को बरसात प्रतीत हो रहा है। शिवधाम के रूप में अलग पहचान बना चुके भोरमदेव मंदिर की ख्याति खजुराहों से तुलना कर देखी जा रही है।
शिवरीनारायण में हैं चंद्रचूड़ महादेव
छत्तीसगढ़ के धार्मिक एवं सांस्कृतिक केंद्रों में शिवरीनारायण का नाम प्रमुख रहा है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर शबरी ने प्रभु राम को बेर खिलाये थे। उसी शबरी के नाम पर शबरीनारायण नाम बाद में शिवरीनारायण हो गया। यहीं पर नर-नारायण मंदिर के समीप शिवजी का एक अत्यंत प्राचीन मंदिर है। इस प्रसिद्ध मंदिर को चंद्रचूड़ महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। चेदी संवत 919 में निर्मित यह मंदिर नारायण के इस क्षेत्र में अपवाद स्वरूप जाना जाता है। शिवरीनारायण से लगभग 3 किमी की दूरी पर खरौद नामक स्थान है, इस स्थान को शिव मंदिर तथा शैव मठो के कारण शिवकांक्षी कहा जाता है। शिव की विराट रूप की पूजा अंचल के लोग बुढ़ा महादेव के रूप में करते है। नगर के प्रवेश द्वारों पर तालाब एवं उनके किनारे शिव मंदिरों की कतार है। लक्ष्मणेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर भी यहीं स्थापित है। तीन सौ वर्ष पुराने आठवीं शताब्दी के मंदिर के गर्भगृह में एक अद्भुत शिवलिंग है, जिसमें सवा लाख छिद्र है। इस स्थान पर हर वर्ष फरवरी माह में मेला लगता है और महाशिवरात्रि के अवसर पर बड़ा मेला भी यहीं लगाया जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि शिवलिंग के सवा लाख छिद्र में सवा लाख चांवल के दाने चढ़ाने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। भगवान शिव को प्रसन्न करने उनके भक्तों द्वारा मंदिर परिसर को इस महामंत्र से गुंजायमान किया जाता रहा है।
ऊँ ह्वौ ऊँ जँू स:, भूभुर्व: स्व. त्रयम्बकम्,
यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारूकमिव वंंधनान्, मृत्योर्मुक्षियमाम्मृतात्
भूर्भुव: स्वरों जँू स: ह्वौं ऊँ।।
अर्थात समस्त संसार के पालनहार तीन नेत्रों वाले शिव की हम आराधना करते है। विश्व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलायें।
प्रस्तुतकर्ता
(डा. सूर्यकांत मिश्रा)
जूनी हटरी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
ऊँ वंदे देव उमापतिं सुरगुरूं, वंदे जगत्कारणं।
वंदे पन्नभूषणं मृगधरं, वंदे पशुनाम पतिं।।
वंदे सूर्य शशांक, वह्विनयनं, वंदे मुकुंदप्रियमं।
वंदे भक्त जनाश्रयं च वरदं, वंदे शिवम शंकरं।।
विशाल शिव प्रतिमा के दर्शन कर अभिभूत हो रहे शिवभक्त
राजनांदगांव नगर में रायपुर से नागपुर मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 पर पुलिस प्रशिक्षण संस्था के सामने बनाये गये बर्फानी धाम में मां पाताल भैरवी मंदिर के साथ ही विशालकाय शिवलिंग मिलों दूरी से लोगों को दर्शन लाभ दे रहा है। इसी मंदिर के ऊपरी हिस्से में 13 फीट ऊंची भगवान शंकर की भव्य प्रतिमा शिव भक्तों को सुख और शांति प्रदान कर रही है। काले पत्थर और लोहे से बनाई गई कल्याणकर्ता भगवान भोलेनाथ की उक्त प्रतिमा में भोले भंडारी द्वारा धारित त्रिशुल की सुंदरता भी आकर्षण को अलग ही रूप प्रदान कर रही है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस इकलौते मंदिर में आदिदेव की उपासना और दर्शन के लिये पहुंच रहे है। भगवान शंकर की इस विशाल प्रतिमा के समक्ष ही द्वादश ज्योतिर्लिंग सोमनाथ से लेकर श्री शैल के मल्लिकार्जुन, उज्जैन के महाकाल, ओंकार के परमेश्वर, हिमाचल के केदार, डाकिनी के भीमशंकर, काशी के विश्वेश्वर, गौतमी तट के त्रयंवकंम, चिताभूमि के वैद्यनाथ, दारूका वन के नागेश्वर, सेतुवन के रामेश्वरम और शिवालय में स्थित घुसमेश्वर ज्योतिर्लिंग के सामने शीश झुकाते श्रद्धालु सीधे शिवधाम का आनंद उठाते प्रतीत होते है। भगवान शिव का सौम्य रूप हाथों में डमरू और त्रिशुल के साथ बड़ा ही सुख शांति देने वाला अवसर प्रदान कर रहा है। 108 फीट की विशाल शिवलिंग और 13 फीट ऊंची भगवान शिव की अद्भुत प्रतिमा पूरे अंचल में ख्याति प्राप्त कर चुकी है। शिवलिंग और जलहरि के आकार में बना विराट मंदिर सभी धर्मावलंबियों को आकर्षित कर रहा है। मंदिर के ऊपरी हिस्से में 6 अप्रैल 2008 से 14 अप्रैल 2008 तक विशेष सहस्त्र चंडी महायज्ञ के साथ भगवान शिव और द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई है।
डीपाडीह के महेशपुर में है दसवीं शताब्दी का शिव-मंदिर
अंबिकापुर जिले के अंतर्गत आने वाले डीपाडीह के पास महेशपुर एक ऐसा स्थान है जहां दसवीं शताब्दी का प्रचीनतम और विशाल शिव मंदिर स्थापित है, कहा जाता है कि डीपाडीह के लगभग 6 किमी के दायरे में प्राचीन भव्य मंदिरों के अवशेष टीलों के रूप में आज भी विद्यमान है। इसी क्षेत्र में उत्खनन के बाद 6 प्रमुख और 74 लघु मंदिर होने की जानकारी मिली। इनमें से अधिकांश शिव मंदिर है। सामंत राजा के नाम से पुजित स्थल में पशुधर शिवजी की विशालकाय चतुर्भुजी प्रतिमा, कार्तिकेय, नंदी एवं अन्य देवी-देवताओं के साथ स्थापित है। सामंत सरना का मुख्य शिव मंदिर आकार में बड़ा तथा भव्य है। गर्भगृह में चौकोर पीठ पर 7 फीट ऊंचा शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के टीलों की सफाई में कार्तिकेय, शिव-गौरी, उमा-महेश्वर की प्रतिमाएं पाई गई है। शिव तथा पार्वती के शिरो भाग पर बहुत ही आकर्षक केश सज्जा श्रद्धालुओं को यहां खींच लाती है। एक अनोखी प्रतिमा में शिवजी का एक पैर फरसे पर रखा है, अधोवस्त्र भी गिरते दिख रहे है। शिव प्रतिमा के चेहरे का भाव ऐसा दिखाई पड़ रहा है, मानो समस्त विश्व को भस्म कर निर्लिप्त भाव से निहार रहे है। एक ऐसा शिवलिंग भी इस स्थान पर पाया गया है, जिसमें 108 शिवलिंग बने हुये है। एक चतुर्भुजी शिवजी की प्रतिमा तोरन में कच्छप, मीन, नृसिंह, वाराह, राम, परशुराम, वामन-बलराम तथा बुद्ध तथा कल्कि को स्थापित किया गया है। महेशपुर नामक स्थान में रेणुका नदी के किनारे विशाल शिव मंदिर है। इस मंदिर का एक बड़ा भाग नष्ट प्राय है। महेशपुर ग्राम मुख्य रूप से शैव संस्कृति का केंद्र बिंदु दिखाई पड़ता है। यहीं पर भगवान शिव के मुख्य शिवलिंग के चारों ओर एकादश रूद्र स्थापित है।
त्रिधाम शिव मंदिर जांजगीर-चांपा एवं भोरमदेव बना खजुराहो
जांजगीर-चांपा स्थित 'त्रिधाम शिव मंदिरÓ प्रागैतिकहासिक काल का मंदिर माना जाता है। भारत वर्ष स्वर्ण युग काल के ऐतिहासिक चित्रण से परिपूर्ण यह मंदिर शिवभक्तों के आकर्षण का केंद्र रहा है। सृष्टि के कल्याणकर्ता भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में महाशिवरात्रि के अवसर पर लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिये पहुंचते है। धर्म के अलावा यह मंदिर वास्तुकला का अनोखा संग्रहालय भी माना जा सकता है। मंदिर की सुंदरता और भव्यता के साथ शिव उपासकों द्वारा विभिन्न अवसरों पर मंदिर परिसर में आयोजन किये जाते रहे है। पुरातत्व की दृष्टि से भी इस मंदिर का महत्व अपने आप में सिद्ध होता रहा है। छत्तीसगढ़ प्रदेश के कबीरधाम जिले के अंतर्गत 11वीं शताब्दी में बनाये गये मंदिर 'भोरमदेवÓ का इतिहास भी शैव काल से जुड़ा हुआ है। मंदिर की आकर्षक वास्तुकला सैलानियों को आकर्षित करने में कामयाब हो रही है। जिला मुख्यालय से 21 किमी की दूरी पर स्थित यह मंदिर साकरी नदी के किनारे नागवंशी राजाओं द्वारा बनवाया गया था। मंदिर परिसर में स्थापित शिवलिंग और जलहरि अनेक रूपों और अनेक दिशाओं में होने से भगवान शिव की चारों दिशा में कृपा को बरसात प्रतीत हो रहा है। शिवधाम के रूप में अलग पहचान बना चुके भोरमदेव मंदिर की ख्याति खजुराहों से तुलना कर देखी जा रही है।
शिवरीनारायण में हैं चंद्रचूड़ महादेव
छत्तीसगढ़ के धार्मिक एवं सांस्कृतिक केंद्रों में शिवरीनारायण का नाम प्रमुख रहा है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर शबरी ने प्रभु राम को बेर खिलाये थे। उसी शबरी के नाम पर शबरीनारायण नाम बाद में शिवरीनारायण हो गया। यहीं पर नर-नारायण मंदिर के समीप शिवजी का एक अत्यंत प्राचीन मंदिर है। इस प्रसिद्ध मंदिर को चंद्रचूड़ महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। चेदी संवत 919 में निर्मित यह मंदिर नारायण के इस क्षेत्र में अपवाद स्वरूप जाना जाता है। शिवरीनारायण से लगभग 3 किमी की दूरी पर खरौद नामक स्थान है, इस स्थान को शिव मंदिर तथा शैव मठो के कारण शिवकांक्षी कहा जाता है। शिव की विराट रूप की पूजा अंचल के लोग बुढ़ा महादेव के रूप में करते है। नगर के प्रवेश द्वारों पर तालाब एवं उनके किनारे शिव मंदिरों की कतार है। लक्ष्मणेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर भी यहीं स्थापित है। तीन सौ वर्ष पुराने आठवीं शताब्दी के मंदिर के गर्भगृह में एक अद्भुत शिवलिंग है, जिसमें सवा लाख छिद्र है। इस स्थान पर हर वर्ष फरवरी माह में मेला लगता है और महाशिवरात्रि के अवसर पर बड़ा मेला भी यहीं लगाया जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि शिवलिंग के सवा लाख छिद्र में सवा लाख चांवल के दाने चढ़ाने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। भगवान शिव को प्रसन्न करने उनके भक्तों द्वारा मंदिर परिसर को इस महामंत्र से गुंजायमान किया जाता रहा है।
ऊँ ह्वौ ऊँ जँू स:, भूभुर्व: स्व. त्रयम्बकम्,
यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारूकमिव वंंधनान्, मृत्योर्मुक्षियमाम्मृतात्
भूर्भुव: स्वरों जँू स: ह्वौं ऊँ।।
अर्थात समस्त संसार के पालनहार तीन नेत्रों वाले शिव की हम आराधना करते है। विश्व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलायें।
प्रस्तुतकर्ता
(डा. सूर्यकांत मिश्रा)
जूनी हटरी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
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