ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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गुरुवार, 31 अगस्त 2017

आपकी कुण्डली में...फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाला है 'महाभाग्योदय राजयोग' एवं 'पुष्कल राजयोग

आपकी कुण्डली में...फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाला है 'महाभाग्योदय राजयोग' एवं 'पुष्कल राजयोग'

मित्र प्रवर, नमस्कार

कल एक व्हाट्सएप पर एक सदस्य नें ज्योतिष में 'श्रीनाथ' नामक राजयोग के बारे में प्रश्न किया था! जिसका बखूबी हमने संतुष्टिजनक उत्तर भी उनके समक्ष प्रस्तुत किया ही था की कल दोपहर में डाकिया ने एक पत्र दिया वह पत्र
'ज्योतिष का सूर्य' पत्रिका के नियमित पाठकों में से एक बिहार के सिवान जिला के ग्राम नारायणपुर से श्री रमाशंकर सिंह (रिटा. लेक्चरर) जी का पत्र था ! उन्होंने अपने पत्र में फलित ज्योतिष में 'महाभाग्य योग' और  'पुष्कल राजयोग' के बारे में जानना चाहा है, मैंने उनको व्हाट्सएप के माध्यम से ही 'पुष्कल राजयोग' के बारे में प्रेषित किया है, जो आपके लिये भी रुचिकर एवं जिज्ञासा शांत करने में सहयोग प्रदान करेगा ! .... (आप भी हमारे व्हाट्सएप नं 9827198828 से जुड़ीए )

सर्वप्रथम चर्चा करुंगा 'महाभाग्य' की बारे मे 'महाभाग्य योग' मूलत: सुदर्शन चक्र में तीनों लग्न पुरुष में विषम और स्त्रियों में सम राशियों का होना प्रथम पायदान है, आईये थोड़ा इसे और विस्तृत समझते हैं.
वैदिक ज्योतिष में महाभाग्य योग को प्रचलित परिभाषा में या यूं कहें की - किसी पुरुष का जन्म दिन के समय का हो तथा उसकी जन्म कुंडली में लग्न अर्थात पहला घर, सूर्य तथा चन्द्रमा, तीनों ही विषम राशियों जैसे कि मेष, मिथुन, सिंह आदि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में महाभाग्य योग बनता है जो जातक को आर्थिक समृद्धि, सरकार में कोई शक्तिशाली पद, प्रभुत्व, प्रसिद्धि तथा लोकप्रियता आदि जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है। इसी प्रकार यदि किसी स्त्री का जन्म रात के समय का हो तथा उसकी जन्म कुंडली में लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा तीनों ही सम राशियों अर्थात वृष, कर्क, कन्या आदि में स्थित हों तो ऐसी स्त्री की कुंडली में महाभाग्य योग बनता है जो उसे उपर बताए गए शुभ फल प्रदान कर सकता है।

मेरे पास 'महाभाग्य' की शताधिक कुण्डलियां आ चुकी हैं परन्तु मैंने देखा की सभी में अलग अलग फल लोगों के ऊपर घटते हुए होंगे !
वैदिक ज्योतिष में वर्णित अधिकतर योगों का निर्माण पुरुष तथा स्त्री जातकों की कुंडलियों में एक समान नियमों से ही होता है जबकि महाभाग्य योग के लिए ये नियम पुरुष तथा...... और अधिक विस्तृत लेख पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें..  

http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/08/blog-post_31.html?m=1

स्त्री जातकों के लिए विपरीत हैं। इसका कारण यह है कि सूर्य दिन में प्रबल रहने वाला पुरुष ग्रह है तथा चन्द्रमा रात्रि में प्रबल रहने वाला एक स्त्री ग्रह है और किसी पुरुष की कुंडली में दिन के समय का जन्म होने से, लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा सबके विषम राशियों में अर्थात पुरुष राशियों में स्थित हो जाने से कुंडली में पुरुषत्व की प्रधानता बहुत बढ़ जाती है तथा ऐसी कुंडली में सूर्य भी बहुत प्रबल हो जाते हैं जिसके कारण पुरुष जातक को लाभ मिलता है। वहीं पर किसी स्त्री जातक का जन्म रात में होने से, कुंडली में लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा तीनों के विषम राशियों अर्थात स्त्री राशियों में होने से कुंडली में चन्द्रमा तथा स्त्री तत्व का प्रभाव बहुत बढ़ जाता है जिसके कारण ऐसे स्त्री जातकों को लाभ प्राप्त होता है।
अगर 'महाभाग्य' वाला व्यक्ति 'धूम्रपान करने तथा मदिरा पान करता है तो उसके जीवन में "महाभाग्योदय कभी नहीं होगा"

महाभाग्य योग का फल केवल उपर दिये गए नियमों से ही निश्चित कर लेना उचित नहीं है तथा किसी कुंडली में इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण विषयों के बारे में विचार कर लेना भी अति आवश्यक है। किसी भी कुंडली में महाभाग्य योग बनाने के लिए कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों का शुभ होना अति आवश्यक है क्योंकि इन दोनों में से किसी एक ग्रह के अशुभ होने की स्थिति में महाभाग्य योग या तो कुंडली में बनेगा ही नहीं अन्यथा ऐसे महाभाग्य योग का बल बहुत क्षीण होगा जिससे जातक को अधिक लाभ प्राप्त नहीं हो पायेगा जबकि इन दोनों ही ग्रहों के किसी कुंडली में अशुभ होने की स्थिति में ऐसी कुंडली में महाभाग्य योग बिल्कुल भी नहीं बनेगा बल्कि ऐसी स्थिति में कुंडली में कोई अशुभ योग भी बन सकता है जिसके चलते जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि कई बार किसी कुंडली में ऐसे अशुभ सूर्य तथा चन्द्रमा का संयोग होने पर भी जातक बहुत धन कमा सकता है अथवा किसी सरकारी संस्था में कोई शक्तिशाली पद भी प्राप्त कर सकता है किन्तु ऐसा जातक सामान्यतया अवैध कार्यों के माध्यम से धन कमाता है तथा अपने पद और शक्ति का धन कमाने के लिए दुरुपयोग करता है जिसके कारण ऐसे जातक का पद तथा धन स्थायी नहीं रह पाता तथा उसे अपने पद तथा धन से हाथ धोना पड़ सकता है तथा अपयश अथवा बदनामी का सामना भी करना पड़ सकता है। मैंने कुछ दिनों पूर्व भिलाई के ही एक प्रतिष्ठित व्यापारी के परिवार के एक कुण्डली को संयोग से राहु+शनि  की विंशोत्तरी दशा एवं अशुभावस्था का सूर्य उस जातक को 'अर्श से फर्श तक' ला दिया ! हालाकि उनको घटना के ६ वर्ष पूर्व ही इशारा कर दिया था ! परन्तु उन्होंने मेरे बताये अनुरुप सावधानियां नहीं बरतीं परिणाम हुआ की उन्हें लेबर की गलती की वजह ६ माह जेल की हवा खानी पड़ीं ! मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि -  इसलिए कुंडली में महाभाग्य योग बनाने के लिए कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा का शुभ होना अति आवश्यक है।

इसके अतिरिक्त किसी कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा के बल तथा स्थिति का भी भली भांति निरीक्षण करना अति आवश्यक है क्योंकि इनके अनुकूल अथवा प्रतिकूल होने से भी महाभाग्य योग के शुभ फलों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए पुरुष जातकों की जन्म कुंडली में सूर्य के मेष राशि में स्थित होने से बनने वाला महाभाग्य योग सूर्य के तुला राशि में स्थित होने से बनने वाले महाभाग्य योग की अपेक्षा कहीं अधिक बलशाली होगा क्योंकि मेष में सूर्य उच्च के तथा तुला में नीच के हो जाते हैं। इसी प्रकार स्त्री जातकों की जन्म कुंडली में चन्द्रमा के वृष राशि में स्थित होने से बनने वाला महाभाग्य योग चन्द्रमा के वृश्चिक राशि में स्थित होने से बनने वाले महाभाग्य योग की अपेक्षा कहीं अधिक बलशाली होगा क्योंकि वृष में चन्द्रमा उच्च के तथा वृश्चिक में नीच के हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा की विभिन्न घरों में स्थिति तथा कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा पर पड़ने वाले अन्य शुभ अशुभ ग्रहों के प्रभाव का भी भली भांति अध्ययन करना चाहिए तथा कुंडली में उपस्थित अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों का भी निरीक्षण करना चाहिए और इसके पश्चात ही महाभाग्य योग के निर्माण तथा फलादेश को निश्चित करना चाहिए।

पुष्कल राजयोग :
अब आईये 'पुष्कल' योग के बारे में आपको कुछ दिलचस्प बातें बताने जा रहा हुं ! ध्यान से पढें.. 'पुष्कल राज योग' के बारे में...! पुष्कल योग : वैदिक ज्योतिष में पुष्कल योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा लग्नेश अर्थात पहले घर के स्वामी ग्रह के साथ हो तथा यह दोनों जिस राशि में स्थित हों उस राशि का स्वामी ग्रह केन्द्र के किसी घर में स्थित होकर अथवा किसी राशि विशेष में स्थित होने से बलवान होकर लग्न को देख रहा हो तथा लग्न में कोई शुभ ग्रह उपस्थित हो तो ऐसी कुंडली में पुष्कल योग बनता है जो जातक को आर्थिक समृद्धि, व्यवसायिक सफलता तथा सरकार में प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व का पद प्रदान कर सकता है।
अन्य शुभ योगों की भांति ही पुष्कल योग के भी किसी कुंडली में बनने तथा शुभ फल प्रदान करने के लिए यह आवश्यक है कि पुष्कल योग का किसी कुंडली में निर्माण करने वाले सभी ग्रह शुभ हों तथा इनमें से एक अथवा एक से अधिक ग्रहों के अशुभ होने की स्थिति में कुंडली में बनने वाला पुष्कल योग बलहीन हो जाता है अथवा ऐसे अशुभ ग्रहों का संयोग कुंडली में पुष्कल योग न बना कर कोई अशुभ योग भी बना सकता है। इसके अतिरिक्त कुंडली में इन सभी ग्रहों का बल तथा स्थिति आदि का भी भली भांति निरीक्षण करना चाहिए तथा इन सभी ग्रहों पर कुंडली के अन्य शुभ अशुभ ग्रहों के प्रभाव का भी अध्ययन करना चाहिए तथा तत्पश्चात ही किसी कुंडली में पुष्कल योग के बनने या न बनने का तथा इस योग के बनने की स्थिति में इसके शुभ फलों का निर्णय करना चाहिए।

- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे संपादक- ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई 9827198828
(ज्योतिषिय सलाह सशुल्क) और फोन सायंकाल 5 से 7 बजे तक ही इस नंबर पर बात कर सकते हैं)

बुधवार, 30 अगस्त 2017

चाण्डाल योग को मात देता.....एक महान ग्राहस्थ्य संत

चाण्डाल योग को मात देता.....
  एक महान ग्राहस्थ्य संत

(एक कुण्डली का आंशिक समिक्षा अवश्य पढ़ें )
          मित्रों, मैंने कल ऐसी कुण्डली का अवलोकन किया जो ना केवल आश्चर्यजनक बल्कि ज्योतिषिय गणना के लिए कौतुहल का विषय है....रघुनन्दन (परिवर्तित नाम) नामक जातक की कुण्डली का अवलोकन किया तो पाया कि वह 'चाण्डाल योग' से प्रभावित है क्योंकि उसके जन्मांक के दशवें भाव में भाग्येश का गुरु एवं साथ में राहु स्थित है, प्रायः ऐसे जातकों कार्य क्षेत्र अथवा जीवन का अधिकतम समय झूठ, फरेब तथा कुसंगति से लवरेज एक कुख्यात व्यक्तित्त्व होना चाहिए जो हमारा ज्योतिष में फलित--सिद्धांत कहता है.....लेकिन इसके ठिक विपरित गुण उस रघुनन्दन के जन्मांक में देखा जो किसी आश्चर्य से कम नहीं है...मैंने देखा की 56 वर्ष की आयु में लगभग 38 वर्ष समाज की नजरों से काफी दूर अज्ञातावस्था में वृक्षारोपण करना, अपनी सारी जमीन जायदाद बेचकर निर्धन कन्याओं का कन्याओं का विधि विधान से विवाह कराना तथा स्वतः अपने हाथों से उनको कन्यादान करना इसके अलावा यथा संभव निःशक्त जनों को सशक्त बनाने के लिए वैज्ञानिक आधार पर खेती के गुर सिखाना तथा उसे व्यावसायीक बनाने की युक्ति देना आदि कार्य उनके जीवन का मकसद बन गया है, हां एक विषय दिलचस्प रहा कि उनके लग्न में स्वगृह का शनि और शुक्र भी स्थित हैं उनका विवाह भी हुआ किन्तु विवाह के 2 वर्ष बाद ही सर्पदंश से उनकी पत्नि का देहांत हो गया......उसके बाद वे चाण्डाल योग को मात देते हुए...किसी संप्रदाय व अखाड़ा के संत तो नहीं हैं परन्तु उच्च कोटि के किसी संत से कम भी नहीं....तो मित्रों, ऐसा सब कुछ इस लिए हुआ क्योंकि उनके चतुर्थ भाव में चन्द्र एवं पंचम भाव पूर्ण रुप से बुधादित्य योग से समृद्ध है....कुल मिलाकर वृक्षों के प्रति लगाव तथा चतुर्थ भाव का चन्द्र कर्मभाव को दृष्टिगत करते हुए उस जातक को विपरित लिंगी कन्याओं के प्रति मातृत्त्व ममत्त्व को दर्शाता है....कुल मिलाकर किसी भी जातक के जनमांक का विश्लेषण करते समय केवल किसी एक को देखकर निर्णायक फलादेश करना ज्योतिष के साथ नाइंसाफी होगा
- ज्यतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, शांतिनगर, भिलाई, 9827198828 http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/08/blog-post_39.html?m=1

जानिए ... वामावर्ती (बांया) दक्षिणावर्ती (दायां) गणेश जी के सूंड का शास्त्रसम्मत रहस्य....

जानिए ... वामावर्ती (बांया) दक्षिणावर्ती (दायां) गणेश जी के सूंड का शास्त्रसम्मत रहस्य....

-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे
9827198828

 अक्सर श्री गणेश की प्रतिमा लाने से पूर्व या घर में स्थापना से पूर्व यह सवाल सामने आता है कि श्री गणेश की कौन सी सूंड होनी... चाहिये ? सर्वप्रथम हमें 'गणेश' शब्द के बारे में जानना होगा !

गणेशः यानी गणा नां प्रमथसमूहानां यद्वा गणानां जीवजातानां ईशः ईश्वरः । शिवः ! ऐसा 'हारावली' 'महाभारत' एवं 'कैरात' आदि नामक ग्रंंथो में वर्णित किया गया है !

गणेश शब्द की व्याख्या करते हुए महाभारत में कहा गया है कि-“ प्रसादये त्वां भगवन् ! सर्व्वभूतमहेश्वर ! ।

गणेशं जगतः शम्भुं लोककारणकारणम् ॥”गणानां गणाख्यदेवविशेषाणां विघ्नाख्यदेवानांवा ईशः नियन्ता ।) शिवपुत्त्रः । (यथा, महा-भारते । १ । १ । ७३ ।

खैर, आईये 'गणेश' शब्द की व्युत्पत्ति और विस्तृत व्याख्या में न जाकर भगवान गणेश जी के वामावर्ती एवं दक्षिणावर्ती सूंड के रहस्य के बारे में समझने का प्रयास करते हैं !

 भगवान गणेश की तस्वीरों और मूर्तियों में उनकी सूंड दाई या कुछ में बाई ओर होती है। सीधी सूंड वाले गणेश भगवान दुर्लभ हैं। इनकी एकतरफ मुड़ी हुई सूंड के कारण ही गणेश जी को वक्रतुण्ड कहा जाता है। वक्र यानी टेढ़ा तुण्ड का मतलब हाथी का विशेष मुख जिसकी घ्राण नासिक अधिक लंबी होती है !

क्रमश: गणेश पुराण, मुद्गल, शिव, वायु तथा लिंग आदि महापुराण एवं उपपुराणों में गजानन के अलग-अलग मुखाकृति तथा उनके जन्म की कथाएं भी भिन्न ठीक उसी प्रकार जैसे गणेश जी वक्रतुण्ड के वामावर्ती, दक्षिणावर्ती तथा सीधा सूंड को लेकर मत-मतांतर है ! भगवान गणेश के वक्रतुंड स्वरूप के भी कई भेद हैं। कुछ मुर्तियों में गणेशजी की सूंड को बाई को घुमा हुआ दर्शाया जाता है तो कुछ में दाई ओर। गणेश जी की सभी मूर्तियां सीधी या उत्तर की आेर सूंड वाली होती हैं। मान्यता है कि गणेश जी की मूर्ति जब भी दक्षिण की आेर मुड़ी हुई बनाई जाती है तो वह टूट जाती है। हालाकि यह केवल लोक मान्यता है यथार्थ ऐसा नहीं है !  कहा जाता है कि यदि संयोगवश आपको दक्षिणावर्ती मूर्त मिल जाए और उसकी विधिवत उपासना की जाए तो अभिष्ट फल मिलते हैं। गणपति जी की बाईं सूंड में चंद्रमा का और दाईं में सूर्य का प्रभाव  है। 

मुझे ब्रह्मवैवर्त पुराण के गणेश खण्ड के छठवें अध्याय का एक संदर्भ संस्मरण आता है, जो इस प्रकार है...जिसे प्रस्तुत कर रहा हुं.....

“शनिदृष्ट्या शिरश्छेदात् गजवक्त्रेण योजितः ।

गजाननः शिशुस्तेन नियतिः केन बाध्यते ॥”और अब स्कन्दपुराण के गणेश खण्ड ११वें अध्याय  में वर्णित संक्षेप में कुछ अंश दे रहा हुं..जरा अवलोकन करें...“अवतारो यदि धृतः साधुत्राणाय भो विभो !प्रकाशयाशु वदनं सर्व्वेषां शोकनाशनम् ॥नयस्व सर्व्वदेवानामानन्दं हृदये प्रभो ! ।शिव उवाच ।प्रत्युवाच गुरुं पुत्त्रः पार्व्वत्या हीनमस्तकः ॥शिशुरुवाच ।महेशाख्येन राज्ञा ते प्रणतौ चरणौ यदा ।तदाशीर्या त्वया दत्ता तस्मै राज्ञे गुरो मुदा ॥गजयोनौ जनिर्मुक्तिः शिवहस्तादुदीरिता ।तत् सर्व्वमभवत् तस्य विद्यते चारुमस्तकः ॥पूज्यमानः शिवेनास्ते शुण्डादण्डः सुशोभनः ।अवतारकरोऽसौ मे गुरोऽस्ति भविता मुखम् ॥शिव उवाच ।आश्चर्य्यपूर्णहृदयो गुरुरूचे पुनः शिशुम् ॥गुरुरुवाच ।भगवत ! विश्वरूपोऽसि त्रिकालज्ञोऽखिलेश्वरः ।मया यदुदितं तस्मै त्वया ज्ञातं यतः प्रभो ! ॥अहमीशस्वरूपं ते परिच्छेत्तुं न च क्षमः ।श्रुत्वैव ब्रह्मणः पुत्त्रो नारदस्तत्र चाब्रवीत् ॥नारद उवाच ।एवमेवावतीर्णोऽसि हीनमूर्द्धा कथं प्रभो ! ।अथवा बालरूपस्य छिन्नं ते केन तच्छिरः ॥एतन्मे संशयं छिन्धि कृपया परमेश्वर ! ।शिव उवाच ।निपीय नारदीं वाणीमुवाच शिशुरुच्चकैः ॥शिशुरुवाच ।सिन्दूरः कोऽपि दैत्यो मे वायुरूपधरोऽच्छिनत् ।अष्टमे मासि सम्पूर्णे प्रविश्योमोदरं शिरः ॥तमिदानीं हनिष्येऽहं गजास्यं साम्प्रतं द्बिज ! ।शिव उवाच ।श्रुत्वैव नारदः प्राह शिशुरूपिणमीश्वरम् ॥नारद उवाच ।अकिञ्चिज्ज्ञा वयं देव ! योजनेऽस्य मुखस्य ते ।त्वमेव च स्वभावेन मखमेतन्नियोजय !!अब तो आप गणेश जी के मुखाकृति से लेकर पूरे शस्त्र, वाहनादि का समुच्चय वर्णन तो समझ ही गये होंगे..!हमारे कुछ शुभचिंतकों में से एक आदरणीय श्री कनिरामजी शर्मा, सह प्रांत प्रचार प्रमुख, छत्तीसगढ़ प्रांत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ.. जी बार बार मुझसे कहते हैं कि - आचार्य चौबे जी आपका आलेख बहुत लंबा हो जाता है... लेकिन क्या करूं संदर्भवत व सोदाहरण आलेख विहंगम हो ही जाता है... क्षमा प्रार्थी पुन: विषय पर वापस लौटते हैं...तो चर्चा कर रहा था.. वामावर्ती एवं दाहिनावर्ती सूंड का तो आईये....

http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/08/blog-post_65.html?m=1

प्राय: गणेश जी की सीधी सूंड तीन दिशाआें से दिखती है। जब सूंड दाईं आेर घूमी होती है तो इसे पिंगला स्वर और सूर्य से प्रभावित माना गया है। अर्थात् ऐसे गणेश जी का 'तंत्र कल्प'' विशेष महत्त्व बताया गया है ! एेसी प्रतिमा का पूजन विघ्न-विनाश, शत्रु पराजय, विजय प्राप्ति, उग्र तथा शक्ति प्रदर्शन जैसे कार्यों के लिए फलदायी माना जाता है।

वहीं बाईं आेर मुड़ी सूंड वाली मूर्त को इड़ा नाड़ी व चंद्र प्रभावित माना गया है। एेसी  मूर्त  की पूजा स्थायी कार्यों के लिए की जाती है। जैसे  शिक्षा, धन प्राप्ति, व्यवसाय, उन्नति, संतान सुख, विवाह, सृजन कार्य और पारिवारिक खुशहाली।

सीधी सूंड वाली मूर्त का सुषुम्रा स्वर माना जाता है और इनकी आराधना रिद्धि-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। संत समाज एेसी मूर्त की ही आराधना करता है। मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर में दाईं आेर सूंड वाली मूर्ति है इसीलिए इस मंदिर के प्रति मुंबईकरों की अगाध आस्था और अगाध आमदनी भी है !

किन्तु देखो भाई किसी मंदिर में बहुत चढावा आये तो वह मंदिर प्रसिद्ध होगा या जहां सेलिब्रेटी लोगों का जमावाड़ा हो वह मंदिर महत्त्वपूर्ण है ऐसा नहीं ! बल्कि मंदिर की प्रसिद्धि के पिछे वहां के पुजारी व वास्तु संरचनाओं पर आधारित है, यानी 'सिद्ध विनायक गणेश' मंदिर की प्रतिमा में दक्षिणावर्ती सूंड से वह मनोकामना पूर्ति हेतु सिद्ध मूर्ति है.! और वास्तु के अनुरूप वहां की भौगोलिक संरचना भी अष्टदलवत् है, जिसकी वजह से वहां बड़ी मात्रा में चढावा आता है !

कुछ विद्वानों का मानना है कि दाई ओर घुमी सूंड के गणेशजी शुभ होते हैं तो कुछ का मानना है कि बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ फल प्रदान करते हैं। हालांकि कुछ विद्वान दोनों ही प्रकार की सूंड वाले गणेशजी का अलग-अलग महत्व बताते हैं।

यदि गणेशजी की स्थापना घर में करनी हो तो दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ होते हैं। दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी सिद्धिविनायक कहलाते हैं। ऎसी मान्यता है कि इनके दर्शन से हर कार्य सिद्ध हो जाता है। किसी भी विशेष कार्य के लिए कहीं जाते समय यदि इनके दर्शन करें तो वह कार्य सफल होता है व शुभ फल प्रदान करता है।इससे घर में पॉजीटिव एनर्जी रहती है व वास्तु दोषों का नाश होता है।

घर के मुख्य द्वार पर भी गणेशजी की मूर्ति या तस्वीर लगाना शुभ होता है। यहां बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी की स्थापना करना चाहिए। बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी विघ्नविनाशक कहलाते हैं। इन्हें घर में मुख्य द्वार पर लगाने के पीछे तर्क है कि जब हम कहीं बाहर जाते हैं तो कई प्रकार की बलाएं, विपदाएं या नेगेटिव एनर्जी हमारे साथ आ जाती है। घर में प्रवेश करने से पहले जब हम विघ्वविनाशक गणेशजी के दर्शन करते हैं तो इसके प्रभाव से यह सभी नेगेटिव एनर्जी वहीं रूक जाती है व हमारे साथ घर में प्रवेश नहीं कर पाती।

- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक-

'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई

मोबाईल नं. 09827198828

(कृपया कॉपी-पेस्ट ना करें सख्त वैधानिक कार्यवाही की जावेगी)

मंगलवार, 29 अगस्त 2017

भगवान श्रीगणेश के ८अवतार कौन कौन से हैं?

भगवान श्रीगणेश के ८अवतार कौन कौन से हैं?

हम अब तक आपको भगवान शिव के उन्नीस अवतारों, भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों के बारे में बता चुके है। आज  आपको भगवान गणेश के #प्रमुख_आठ_अवतारों के बारे में बताएँंगे।

अन्य सभी देवताओं के समान भगवान गणेश ने भी आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए विभिन्न अवतार लिए। श्रीगणेश के इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि ग्रंथो में मिलता है।जानिए श्रीगणेश के अवतारों के बारे में-

1. #वक्रतुंड_अवतार —राक्षस मत्सरासुर के दमन के लिए हुआ था। मत्सरासुर शिव भक्त था और उसने शिव की उपासना करके वरदान पा लिया था कि उसे किसी से भय नहीं रहेगा।

मत्सरासुर ने देवगुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से देवताओं को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। उसके दो पुत्र भी थे सुंदरप्रिय और विषयप्रिय, ये दोनों भी बहुत अत्याचारी थे। सारे देवता शिव की शरण में पहुंँच गए। शिव जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे गणेश का आह्वान करें, गणपति वक्रतुंड अवतार लेकर आएँंगे।

देवताओं ने आराधना की और गणपति ने वक्रतुंड अवतार लिया। वक्रतुंड भगवान ने मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का संहार किया और मत्सरासुर को भी पराजित कर दिया। वही मत्सरासुर कालांतर में गणपति का भक्त हो गया।

2. #एकदंत_अवतार— महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद की रचना की। वह च्यवन का पुत्र कहलाया। मद ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली। शुक्राचार्य ने उसे हर तरह की विद्या में निपुण बनाया। शिक्षा होने पर उसने देवताओं का विरोध शुरू कर दिया।

सारे देवता उससे प्रताडि़त रहने लगे। मद इतना शक्तिशाली हो चुका था कि उसने भगवान शिव को भी पराजित कर दिया। सारे देवताओं ने मिलकर गणपति की आराधना की।

तब भगवान गणेश #एकदंत_रूप में प्रकट हुए। उनकी चार भुजाएंँ थीं, एक दांँत था, पेट बड़ा था और उनका सिर हाथी के समान था। उनके हाथ में पाश, परशु और एक खिला हुआ कमल था। एकदंत ने देवताओं को अभय वरदान दिया और मदासुर को युद्ध में पराजित किया। Astro guru (9827198828)

3. #महोदर_अवतार—  जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को संस्कार देकर देवताओं के खिलाफ  खड़ा कर दिया। मोहासुर से मुक्ति के लिए देवताओं ने गणेश की उपासना की। तब गणेश ने महोदर अवतार लिया। महोदर का उदर यानी पेट बहुत बड़ा था। वे मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में पहुंँचे तो मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया।

4. #गजानन_अवतार—  एक बार धनराज कुबेर भगवान शिव-पार्वती के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंँचा। वहांँ पार्वती को देख कुबेर के मन में काम प्रधान लोभ जागा। उसी लोभ से लोभासुर का जन्म हुआ।

वह शुक्राचार्य की शरण में गया और उसने शुक्राचार्य के आदेश पर शिव की उपासना शुरू की। शिव लोभासुर से प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसे सबसे निर्भय होने का वरदान दिया। इसके बाद लोभासुर ने सारे लोकों पर कब्जा कर लिया और खुद शिव को भी उसके लिए कैलाश को त्यागना पड़ा।

तब देवगुरु ने सारे देवताओं को गणेश की उपासना करने की सलाह दी। गणेश ने गजानन रूप में दर्शन दिए और देवताओं को वरदान दिया कि मैं लोभासुर को पराजित करूंगा। गणेश ने लोभासुर को युद्ध के लिए संदेश भेजा। शुक्राचार्य की सलाह पर लोभासुर ने बिना युद्ध किए ही अपनी पराजय स्वीकार कर ली।

5. #लंबोदर_अवतार— समुद्रमंथन के समय भगवान विष्णु ने जब मोहिनी रूप धरा तो शिव उन पर काम मोहित हो गए। उनका शुक्र स्खलित हुआ, जिससे एक काले रंग के दैत्य की उत्पत्ति हुई। इस दैत्य का नाम क्रोधासुर था। क्रोधासुर ने सूर्य की उपासना करके उनसे ब्रह्मांड विजय का वरदान ले लिया।

क्रोधासुर के इस वरदान के कारण सारे देवता भयभीत हो गए।  वो युद्ध करने निकल पड़ा। तब गणपति ने लंबोदर रूप धरकर उसे रोक लिया। क्रोधासुर को समझाया और उसे ये आभास दिलाया कि वो संसार में कभी अजेय योद्धा नहीं हो सकता। क्रोधासुर ने अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़कर पाताल लोक में चला गया।

6. #विकट_अवतार— भगवान विष्णु ने जलंधर के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया। उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ, उसका नाम था कामासुर। कामासुर ने शिव की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान पा लिया।

इसके बाद उसने अन्य दैत्यों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। तब सारे देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया। तब भगवान गणपति ने विकट रूप में अवतार लिया। विकट रूप में भगवान मोर पर विराजित होकर अवतरित हुए। उन्होंने देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित किया। 9827198828 (astr guru)

7. #विघ्नराज_अवतार—  एक बार पार्वती अपनी सखियों के साथ बातचीत के दौरान जोर से हँंस पड़ीं। उनकी हँंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई। पार्वती ने उसका नाम मम (ममता) रख दिया। वह माता पार्वती से मिलने के बाद वन में तप के लिए चला गया। वहीं उसकी मुलाकात शम्बरासुर से हुई। शम्बरासुर ने उसे कई आसुरी शक्तियांँ सीखा दीं। उसने मम को गणेश की उपासना करने को कहा। मम ने गणपति को प्रसन्न कर ब्रह्मांड का राज मांँग लिया।

शम्बर ने उसका विवाह अपनी पुत्री मोहिनी के साथ कर दिया। शुक्राचार्य ने मम के तप के बारे में सुना तो उसे दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया। ममासुर ने भी अत्याचार शुरू कर दिए और सारे देवताओं के बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया। तब देवताओं ने गणेश की उपासना की। गणेश विघ्नराज के रूप में अवतरित हुए। उन्होंने ममासुर का मान मर्दन कर देवताओं को छुड़वाया।

8. #धूम्रवर्ण_अवतार—एक बार भगवान ब्रह्मा ने सूर्यदेव को कर्म राज्य का स्वामी नियुक्त कर दिया। राजा बनते ही सूर्य को अभिमान हो गया। उन्हें एक बार छींक आ गई और उस छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई। उसका नाम था अहम। वो शुक्राचार्य के समीप गया और उन्हें गुरु बना लिया। वह अहम से अहंतासुर हो गया। उसने खुद का एक राज्य बसा लिया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिए।

उसने भी बहुत अत्याचार और अनाचार फैलाया। तब गणेश ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया। उनका वर्ण धुंए जैसा था। वे विकराल थे। उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं। धूम्रवर्ण ने अहंतासुर का पराभाव किया। उसे युद्ध में हराकर अपनी भक्ति प्रदान की।

- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
9827198828

वेद के पोषक संतों की पवित्र ज्ञान-भूमि भारत को प्रणाम !!


ऋषियों की पवित्र धरती भारत को प्रणाम, प्रणाम उस मां भारती को जिसने ऋषि विश्वामित्र के शिष्य राम और संदिपनी ऋषि के शिष्य श्री कृष्ण को जन्म दिया ! राम ने पूरे विश्व को 'रामराज्य का संदेश' दिया तो वहीं कृष्ण ने 'श्रीमद्भगवद्गीता का संदेश दिया' ! 

बात बहुत दु:खद है कि कथित व बलात्कारी असंतों के शिष्यों ने हरियाणा के पंचकुला में  हत्या, आगजनी, चरित्र हीनता, अशांति.. और ना जाने क्या क्या नीचताई का संदेश पूरे विश्व को देकर अपने विक्षिप्त व सनकी कथित गुरु रहीम और 'गॉड' भक्त गुरमीत राम रहीम को २० साल के लिये जेल भेजने का काम इन्ही व्यक्तिवादी भक्तों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया क्या ऐसे लोगों को आप शिष्य कहेंगे..? बिल्कुल नहीं यह शिष्य नहीं बल्कि 'फॉलोवर' कहा जाना ही न्यायसंगत होगा ! क्योंकि सनातनी इतिहास में तो शिष्यों ने अपने गुरु, माता-पिता, देश, एवं परिवार की प्रतिष्ठा बढाने का काम किया है ना की रहीम बाबा जैसा उनके शिष्यों द्वारा २० वर्ष की कैद दिलवाने का काम करते हैं ! हां मैने इसलिये यह सुनिश्चित करते चलुं की यह बाबा राम रहीम ना ही संत था, ना ही उनके शिष्य 'शिष्य' ये तो रहीम बाबा वहशी राक्षस था, विधर्मी था और इस व्यक्ति को मानने वाले केवल 'फॉलोवर' ही हो सकते हैं 'शिष्य' नहीं ! हमारे धर्मग्रंथों में 'व्यक्तिवादी' या 'व्यक्ति-भक्ति' को वर्जित किया गया है, लेकिन शॉर्टकट में अमीर बनने की चाहत ही ऐसे कथित बाबाओं को 'ढोंगी व समृद्ध और शोहरत वाला बाबा'' बनाने में सहयोग देते हैं ! ऐसे भोले भाले लोगों के नब्ज पकड़कर इनको बतौर सुरक्षा कवच इस्तेमाल ये बाबा करते हैं, जैसा कि पूर्व के हिन्दुत्व विरोधी कुछ कथित बाबाओं ने किया !

क्योंकि उसके जो परिणाम दिखे उससे  साफ है कुलीन व शास्त्र प्रबुद्ध ऋषि परम्पराओं के शिष्य अपने गुरुजन की ख्याति बढाने का काम करते हैं जैसा की राम ने गुरु वशिष्ठ एवं विश्वामित्र की रामराज्य स्थापना करके ख्याति बढ़ाई तो अर्जुन को महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश देकर अपने गुरु संदीपनी का मान बढाया ! स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस का मान बढ़ाया, इसी प्रकार इस पवित्र की पहचान गोस्वामी तुलसीदास, कबीरदास,सूरदास, संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर, आदि शंकराचार्य,  स्वामी नरहर्यादास,  सहित हजारों हजार ऋषियों की वैदिक अवधानों से भारत पूरे विश्व में प्रतिष्ठित है ! ना की आशाराम, निर्मल बाबा, राधे मां ,  गुरमीत सिंह बाबा रहीम जैसे कथित विधर्मियों की वजह से !

हो सकता है कुछ अन्ध भक्त मेरे इस लेख से सहमत ना भी हों, परन्तु मेरा आपसे अनुरोध है कृपया वैदिक परम्परां के संतो के प्रति आप आस्थावान बनिए ! वेद और आध्यात्मिक पवित्र की ज्ञान-भूमि भारत को ऐसे कृत्रिम तलैया में स्वीमिंग करने वाले कथित संतों से भवसागर पार करने की भ्रांति ना पालें ! व्यक्ति-भक्ति  नहीं 'वेद-भक्ति करें ! यदि आप संकल्प लेंगे तो ऐसे कथित बाबा कभी जन्म हीं लेंगे ! सबसे बड़ा गार्हस्थ्य आश्रम है, आप किसी परम्परागत गुरु से शिक्षा व आध्यात्मिक दीक्षा लेकर वेद से वेदांत की यात्रा करें और 'आत्मा परमात्मा चेति' को सिद्ध करें !

- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे,

संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' भिलाई

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फर्जी कथित बाबाओं द्वारा दिये गये आत्मज्ञानियों जरा इस लेख को पढ़ें

जानामि योगं जपं नैव पूजां,
नतो$हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
जरा-जन्म-दुःखौघ-तातप्यमानं,
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो।।

उत्तरकांड,मानस,शिव स्तुत्यांत,संपूज्य
--------------------------------------गुरुदेव जप,यज्ञ,पूजा के संज्ञान में असमर्थता
व्यक्त करते हुए-  ”नतो$हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं” की प्रस्तुति के माध्यम से “अनन्य-शरणागति” के प्रथम-सूत्र के संबंध में अवगत करा रहे हैं। जो गोस्वामीजी का भी
चिंतन सार है। इस रहस्य को जो समझ जाता है, वह कृतकृत्य हो जाता है।
वह शरणागति का प्रथम सूत्र है--
”हे नाथ!! मैं आपका हूँ”। यही कथन आगे चलकर यथार्थ शरणागति का रूप बन जाता है।
मारवाड़ में ‘क्यामख्यानी’नाम की एक मुसलमान जाति है। यहाँ के शासक ने
इस पूर्व-हिन्दू-जाति के लोगों को मुसलमान बनाने की नीयत से कहा कि
“तुम लोगों से मैं एक ही अपेक्षा करता हूँ कि तुम चाहे वास्तव में मुसलमान
न बनो, पर किसी और के पूछने पर कम से कम अपने को मुसलमान बताते
रहो। इस राजाज्ञा को मान लेने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं हुई। उनके घरू व्यवहार और बैयक्तिक रहन सहन ठीक हिन्दुओं जैसे बने रहे, पर पूछने पर अपने को वे मुसलमान ही बताते थे। आश्चर्य है कि मुसलमान शासक की यह दूरदर्शिता-पूर्ण नीति शीघ्र ही कार्य कर गयी और आज उनके खान-पान और रहन सहन आदि समस्त ब्यवहार मुसलमानी साँचे में पूर्ण रूप से ढल गये। अब वे लोग अपने को वास्तव में पूरे मुसलमान मानने लगे हैं।
इस दृष्टांत के अनुसार यदि हम अपने ईश्वर रूप राजा के व्यापक  राज्य में रहकर, यह स्वीकार करलें कि- ”हे प्रभो!!हम आपके हैं।” तो फिर हमें सच्चा भक्त बन जाने में देर नहीं लगेगी, क्योंकि उस दयालु परमेश्वर ने तो डंके की चोट पर यह
घोषणा कर ही रखी है--
सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते।
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद्गतं मम।।
अर्थात् “मेरी शरण आने के लिए, जो एक बार भी यह कह देता है कि -
”हे नाथ!! मैं आपका हूँ।”  तो मैं उसे समस्त भूतों से निर्भय कर देता हूँ। यह मेरा ब्रत है।”
महाभारत युद्ध के पूर्व अर्जुन अपने चिरंतन सखा भगवान श्रीकृष्ण से कातर
स्वर में कह उठते हैं--
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः,पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढ़चेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे,शिष्यस्ते$हं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।
अर्थात-
”कायरता रूप दोष करके उपहृत हुए स्वभाववाला तथा धर्म के संबंध
में मोहितचित्त हुआ, मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चय ही कल्याणकारक
हों,वह मेरे लिए कहिए, क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिए आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिए।”
ठीक इसके बाद ही वे कहने लगते हैं “मैं युद्ध नहीं करूँगा।”
एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परंतप।
‘न योत्स्य’इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह।।
भगवान उनकी वाणी सुनकर अपनी मुस्कुराहट नहीं रोक सके, क्योंकि एक तरफ तो
वे कह रहे हैं कि, ”मैं आपके शरण हूँ, मुझे उपदेश दीजिए और दूसरी ओर अपनी मनमानी कहते हैं कि, ”मैं युद्ध नहीं करूँगा।”
इस दशा में भी दयामय भगवान को अर्जुन के इस कथन पर अन्यथाभाव नहीं हुआ,
उसे अपनी शरण से दूर नहीं किया।बल्कि हर तरह से समझा-बुझा कर मार्ग पर लाने की सफल चेष्टा की। क्योंकि वे “त्वाम् प्रपन्नम्--मैं आपके शरण हूँ।” ऐसा एक बार कह चुके थे।
प्रथम सूत्र के बाद शरणागति के स्वरूप को देखें। इन्द्रिय,मन,शरीर और आत्मा
सबसे सर्वथा निष्काम प्रेमभाव से भगवान के शरण होने का नाम ही शरणागति है। परमेश्वर के नाम, रूप, गुण, प्रभाव, लीला और रहस्य का सदा मनन करते रहना ही मन से भगवान के शरण होना है। वाणी से भगवन्नाम का उच्चारण करना, चरणों से भगवान के मंदिर आदि में जाना, नेत्रों से भगवान की मूर्ति आदि के दर्शन एवं शास्त्रावलोकन करना, कानों से गुणानुवादादि सुनना तथा हाथों से उनके विग्रह की पूजा करना और सब में भगवद्बुद्धि करके सबकी सेवा करना तथा श्रीहरि की आज्ञाओं का पालन करना इत्यादि ‘इन्द्रियों’ से उनके शरण होना है। और उनके चरणों में साष्टांग प्रणाम करना आदि ‘शरीर’ से भगवान के शरण होना है।
वाणी से शरण होना, जितना सुगम है, शरीर की शरणागति उतनी सुगम नहीं है।
वाणी और शरीर से शरण होने की अपेक्षा इन्द्रियों सहित अंतःकरण द्वारा
शरण होना और भी कठिन है। मन से शरण हो जाने का फल यह है कि भगवा के शिवा किसी अन्य वस्तु का चिंतन ही नहीं होता--
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।
हम भगवान की पूर्णतया शरण हो गये--इसका निश्चय कैसे हो? इस शंका का
समाधान करने के लिए अर्जुन का दृष्टांत देते हैं। भगवान अर्जुन से कहते हैं--
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियो$सि मे।।
--”हे अर्जुन! तू मुझमें मन वाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजा करने वाला हो
और मुझको प्रणाम कर। ऐसा करने से तू मुझे ही प्राप्त होगा, यह मैं तुझसे
सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ, क्योंकि तू मेरा अत्यंत प्रिय है।”
इस श्लोक में शरणागति की चारों बातें आ गयीं--”मन्मनाः अर्थात् मेरे में
मन लगाने वाला हो। ”मद्भक्तः”- मुझमें ही,संसार से प्रेम करने वाला न हो।
“मद्याजी” से भगवान की पूजा और आज्ञापालन समझना चाहिए। ”नमस्कुरु” अर्थात् मेरे चरणो में प्रणाम कर।
इस प्रकार कर्म से, शरीर और इन्द्रियों से और मन-बुद्धि से जो सर्वथा भगवान
के अर्पित हो जाता है, उसे भगवान स्वयं अतिशीघ्र संसार-सागर से उद्धार कर,
अपना परम प्रेमी बना लेते हैं और स्वयं उसके परम प्रेमी बन जाते हैं। वह व्यक्ति
सब ओर प्रभु का रूप और प्रभाव देखकर मस्त हो जाता है।
इसीलिए, ज्ञानमय, भक्तिमय, दिब्यतम् स्तुति के अंत में भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए गुरुदेव ब्रह्मास्त्ररूपी शरणागति  का प्रयोग करके शिष्य को शापमुक्त करने हेतु ब्यग्र हैं, इस पंक्ति का यही निहितार्थ है।
श्रीरामचरितमानस में इसकी विस्तृत चर्चा है, जैसा गुरुदेव मानसरत्नजी ने ब्याख्यायित किया।
गोस्वामीजी कहते हैं कि भाई! या तो सामर्थ्य का उपयोग कीजिए या फिर असमर्थता का सदुपयोग कीजिए। उनका आगे कहना है कि जो बड़े लोग हैं वे ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग का आश्रय लेते हैं, पर जो नन्हें बच्चे हैं, वे असमर्थ हैं। और असमर्थ होने के नाते जैसे,नन्हाँ बालक जितना ही
असमर्थ होगा, माँ का प्यार उतना ही उमड़ेगा। इसी प्रकार से ईश्वर का प्यार
ज्ञानी, भक्त, कर्मयोगी के साथ असमर्थ को भी मिलता है।
पर यह असमर्थता का बोध है कठिन ?हममें न ज्ञान है, न भक्ति है, न कर्म है,
ऐसी असमर्थता की तीव्र  अनुभूति हो जाय, तो यही शरणागति का तत्व  है।
विभीषण भी किस मार्ग से भगवान को पाने वाले हैं? देखें--
अगर ज्ञानी भगवान के पास जाता है तो ज्ञानियों की सबसे कठिन परीक्षा
होती है,भक्त की परीक्षा भी साधारण नहीं होती, कर्मयोगी की परीक्षा भगवान
लेते हैं।
जब दीन हीन शरणागत से भगवान ने पूछा-ज्ञानी ?  -नहीं,भक्त?-नहीं, कर्मयोगी ? -नहीं
तो भगवान ने कहा-फिर तुम्हारी परीक्षा काहे में लूँ ? तो शरणागत ने कहा- मैं तो
परीक्षा देने नहीं आया हूँ, बल्कि आपकी परीक्षा लेने आया हूँ। मैंने आपके विषय
में सुन रखा है कि आप ऐसे हैं, उदार हैं आदि आदि तो मैं देखने आया हूँ कि यह
कहाँ तक सत्य है? विभीषण जी ने हनुमानजी की ओर संकेत करते हुए कहा--
श्रवन सुजसु सुनि आयउँ।
महाराज! यह तो इन संतों से पूछिए कि आपके विषय में क्या-क्या सुनाते रहते हैं, तो मैंने इनकी वाणी पर विश्वास किया और आपके पास चला आया। अब इसके बाद तो आपको परीक्षा देकर सिद्ध करना है कि आपके विषय में सन्तों ने जो कहा है, वह कितना यथार्थ है।सचमुच तुलसीदासजी कहते हैं कि, जब यह वाक्य भगवान राम ने सुना तो रीझ गये, क्या देख करके ?--
दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा।
भुज विसाल गहि हृदय लगावा।।
इसका अभिप्राय है कि जिसमें असमर्थता की सच्ची अनुभूति है, वह भगवान का प्यार पा लेते हैं, भगवान उन्हें हृदय से लगाते हैं।
“जरा-जन्म-दुःखौघतातप्यमानं,
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो”
की यथावत् ब्याख्यार्थ श्रीशर्माजी व आ.गुरुदेव की ज्ञान-गंगा को प्रणाम।साधुवाद कोटि।
असमर्थ का असमर्थ भाव यहीं तक-
नमन सबहिं।
- साभार *ज्योतिष का सूर्य'

सोमवार, 28 अगस्त 2017

हिन्दु  विचारधारा,सनातनी सिद्धांत  साइंटिफिक फ्लोर पर सौ फिसदी सत्य व प्रमाणित है.....

हिन्दु  विचारधारा,सनातनी सिद्धांत  साइंटिफिक फ्लोर पर सौ फिसदी सत्य व प्रमाणित है.....

हिन्दू धर्म जैसा साइंटिफिक धर्म जिसकी कई बातें लगातार सत्य साबित होने से दुनिया भर के वैज्ञानिक भी आश्चर्य चकित होते जा रहे हैं, वही धर्म अगर कुछ कहता है तो उसके पीछे कोई लाजिक जरूर होता है ! हमारा अनन्त वर्ष पुराना और परम आदरणीय हिन्दू धर्म कहता है की हमारी पृथ्वी (जिस पर हम सभी जीव जन्तु रहते हैं) वो सात खम्भे पर टिकी है और सबसे बड़ी खतरनाक बात है की बहुत से भ्रष्ट लोग, जाने अनजाने इन्ही सात खम्भों पर बार बार चोट पंहुचा रहे हैं, जिससे ये खम्भे अब स्थिर खड़े रहने की बजाय, बुरी तरह से कांपने लगे हैं ! खम्भों का कम्पन अगर बढ़ गया तो खम्भों पर टिकी पृथ्वी भी काँप जायेगी जिसका परिणाम उम्मीद से बढ़कर दुखद हो सकता है ! इसलिए अब भी समय हैं इन सात खम्भों के कम्पन को रोककर फिर से उन्हें मजबूत बनाने की कोशिश करे ! ये सात खम्भे कौन से है और ये क्यों काँप रहे हैं इसको जानने के बाद हो सकता है बहुत से लोगों को ये जानकारी अंध विश्वास या फिजूल लगे और इसमें आश्चर्य भी नहीं है क्योंकि जिस हिसाब से बुद्धि हीनता और चारित्रिक पतन समाज में अन्दर तक जड़ जमा चुका है उस लिहाज से जब तक कोई चमत्कार देखने सुनने को न मिले, लोगों के मन में अच्छी चीज या जानकारी के लिए भी प्रेम या आकर्षण नहीं पैदा होता है ! 'अज्ञान को ही कलियुग में सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है' इसी अज्ञान के नाश के लिए, भगवान् कलियुग में शस्त्र अवतार की जगह, सिर्फ ज्ञान अवतार ही लेते हैं !
प्रभु जी महाभारत काल में धृत राष्ट्र और पांडु के पैदा होने से ठीक पहले इस पृथ्वी पर इतना ज्यादा अच्छा माहौल हो गया था की स्वर्ग के देवता भी स्वर्ग छोड़ धरती पर आम आदमी के साथ रहना ज्यादा पसंद करते थे ! पर उस अच्छे माहौल का कंस, शिशुपाल, जरासंध, कौरव आदि असंख्य अधर्मियों ने जो सत्यानाश किया कि महाभारत जैसा महा विनाशक युद्ध हुआ !

इस भयंकर युद्ध के बाद पृथ्वी पर पैदा हुई भीषण नकारात्मकता और निराशा को समाप्त करने के लिए श्री कृष्ण ने एक महा यज्ञ का आयोजन किया जिसमे पूरे ब्रहमांड से हर तरह के जीवों (जैसे – नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, किरात, विद्याधर, ऋक्ष, पितर, देवता, दिक्पाल आदि, जिन्हें आजकल के वैज्ञानिक एलियन समझते हैं) को बुलाकर आदेश दिया था की अब से वे लोग पृथ्वी के मानवों से कोई सम्बन्ध नहीं रखेंगे क्योंकि आने वाले समय में पृथ्वी पर मानवों के अधिकाँश वंशज भावनात्मक और शारीरिक रूप से बहुत कमजोर होंगे और वे अपने छोटे से छोटे फायदे के लिए दूसरों को दुःख देने में हिचकेंगे नहीं !

चूंकि मानव के अतिरिक्त ऊपर लिखी जीवों की सारी प्रजातियाँ टेक्नालाजी (विज्ञान और तकनीकी) में मानवों से कहीं आगे हैं इसलिए मानव उनसे प्राप्त शक्तियों का प्रयोग छोटे छोटे स्वार्थों को पूरा करने के लिए नही कर पायें इसी लिए श्री कृष्ण ने इन प्रजातियों को मानवों से सम्बन्ध रखने के लिए मना कर दिया था जबकि महा भारत काल तक मानव और इन प्रजातियों में कई तरह के लेन देन रोज हुआ करते थे ! महाभारत काल का ही विमान, अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान के तोरा बोरा की पहाड़ियों में अभी कुछ समय पहले मिला था जिसके बाद से अमेरिकी सरकार उस पर रिसर्च कर रही है !

असल में इन विशेष प्रजातियों के विमान दूरी के साथ साथ, समय और दूसरे आयाम (लोक) में भी गति करते थे जिसके लिए प्रचण्ड मान्त्रिक शक्ति या यौगिक शक्ति की जरूरत पड़ती है तथा ऐसे मंत्रो और क्रिया विधियों को बहुत ही गुप्त तरीके से सहेज कर रखा गया है हमारे हिन्दू धर्म में जिसे पाने के लिए पात्रता होना बहुत जरूरी है ! इस दुर्लभ ज्ञान को कभी भी छल से या जबरदस्ती कोई ना पा सके इसका बहुत मजबूत इन्तेजाम किया गया है हमारे परम रहस्यमय हिन्दू धर्म में !

हालांकि अभी भी कुछ विदेशी मैजिशियन (जादूगर) भारतीय साधुओं से छोटे मोटे प्रयोग जैसे भूत प्रेत को सिद्ध कर, असम्भव से दिखने वाले जादू दिखाकर करोड़ो कमा रहे हैं ! भूत प्रेत ऊपर लिखे विशेष प्रजातियों में नहीं आते हैं !http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/08/blog-post_91.html?m=1

हमारे सनातन हिन्दू धर्म में पृथ्वी जिन 7 खम्भों पर टिकी हैं उन खम्भों के नाम हैं – गौ (गाय माता), दान वीरता (दानी मनुष्य), सतित्व (सती स्त्रियां), ब्राह्मणत्व (ब्राह्मण), सत्य (न्याय), प्रेम और धर्म !

अब इसमें बताने की जरूरत नहीं है की ये खम्भे क्यों काँप रहे हैं !

निरीह गाय माता का पिछले कितने साल से कत्ले आम हो रहा है वो भी भारत जैसी पवित्र भूमि पर भी, जहाँ सबको पता है की गाय माता पूरे मानव जाति के लिए ईश्वर की सबसे बड़ी लाभकारी वरदान है ! एक अकेले देशी गाय माता के गो मूत्र और गोबर से बंजर जमीन से भी बढ़िया फसल उगाई जा सकती है ! गो मूत्र और गोबर उच्च क्वालिटी के खाद के साथ उच्च किस्म के कीट नाशक भी हैं और इनके प्रयोग से खेती की पैदावार इतनी बढ़ाई जा सकती है की दुनिया का कोई भी आदमी भूखा ना सोये ! देशी गाय माँ का दूध अपने आप में एक पूर्ण और अति पौष्टिक आहार है जो ताकत प्रदान करने के साथ कैंसर, एड्स जैसे घातक रोगों में भी बहुत फायदा है ! गो मूत्र तो घोषित रूप से कैंसर की दवा साबित हो चुकी है ! तो मामूली घास फूस खा कर, ऐसे अन्य असंख्य कीमती फायदे प्रदान करने वाली, ईश्वर की सबसे बेश कीमती तोहफा गाय माता को, क्यों सिर्फ कुछ किलो मांस के लिए काटा जा रहा है ? गाय माता के प्रति ये अहसान फरामोशी निश्चित रूप से पूरी मानव जाति के लिए अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है !

लोगों का मन करता है तो अपने अय्याशी पर लाखो खर्च करते हैं, पर वास्तव में बिना किसी स्वार्थ के सिर्फ किसी भूखे आदमी या किसी भूखे जानवर के पेट में खाना डालने के लिए कितने लोग पैसा खर्च करते हैं ?

ब्रह्म (अर्थात ईश्वर) का अति दुष्कर सत्य अन्वेषण (खोज) करने वाले कितने सच्चे त्यागी तपस्वी ब्राह्मण बचे हैं ? शास्त्रों के अनुसार, "ब्राह्मण कोई जाति विशेष में पैदा हुआ आदमी नहीं होता है, ब्राह्मण वही होता है जो ब्रह्म अर्थात परम रहस्य स्वरुप ईश्वर की बिना धैर्य खोये अति कष्ट साध्य खोज (अर्थात तप) करे !"

मन वचन कर्म से अपने जीवन साथी के लिए पवित्रता बरतना और हमेशा अपनी मर्यादा बनाए रखना ही सतीत्व है और हो क्या रहा है आजकल ? मॉडर्निटी (आधुनिकता) और फ्रीडम (आजादी) के नाम पर मर्यादा का घोर हनन हो रहा है ! सर्वत्र व्याभिचार का खुल्लम खुल्ला माहौल दिखाई दे रहा है और इसे प्रशंसा की निगाह से भी देखा जा रहा है ! पवित्रता और मर्यादा की बात करना जैसे पिछड़े पन की निशानी हो गयी है ! हमारे धर्म ग्रंथो में सती नारियों का महत्व इतना ज्यादा बताया गया है की सती नारियों को देखने भर से कई पाप भस्म हो जाते हैं ! भक्त भगवान की महिमा गुण गान करते है जबकि भगवान खुद सती नारियों का गुण गान करते हैं ! एक सती नारी ही एक सत्यवान पुरुष को जन्म दे सकती है और सत्यवान पुरुषों से ही आदर्श राष्ट्र का निर्माण हो सकता है ! नारी ही अपने सन्तान की पहली गुरु होती है इसलिए नारी चाहे तो सन्तान को क्या से क्या बना दे !

जब समाज में अत्याचारियों, पापियों को उनके पाप का दंड ना मिले तो फिर दंड देने का काम प्रकृति को खुद करना पड़ता है ! जब समाज में न्याय की व्यवस्था कमजोर पड़ने लगे और गलत काम करने वाले पापियों के मन में पाप करने के लिए डर ख़त्म होने लगे तो समझ लेना चाहिए की उस समाज से सत्य गायब हो रहा हैं ! सत्य का लगातार कमजोर होना निश्चित ही इस धरती को कांपने पर मजबूर कर देगा ! धरती अगर कांपी तो ऐसा भूकम्प आएगा की, पापियों के साथ ऐसे लोग भी दुःख झेलेंगे जिन्होंने इन पापियों को रोकने के लिए कुछ नहीं किया ! पापी आदमियों के पाप या अधर्म को लगातार सहते जाना कोई संतोष का धार्मिक गुण नहीं होता है बल्कि कायरता का अधर्म होता है ! और जो समाज अपने ऊपर पापियों का शासन लगातार बर्दाश्त करता जाता है वो पूरा समाज भी पापियों के साथ प्रकृति का क्रोध झेलता है !

प्रेम की बात जिसका देखो वही कर रहा है पर उसमे से ज्यादातर ढोंग है ! अरे वो लोग प्रेम की बात कैसे कर भी सकते हैं जो निरीह पशु पक्षियों की लाश खाते हैं ! मुर्गियों, बकरे के छोटे बच्चों के जब गले काटे जाते हैं और उनसे खून का फौवारा छूटता है तब उनका प्रेम कहाँ चला जाता है ! लव (प्रेम) के नाम पर लड़के लड़कियों द्वारा बिना शादी के बार बार अमर्यादित रिश्ते बनाने की छूट ही, टूटते परिवार और बढ़ते तलाक तथा अश्लीलता के कारण हैं ! शादी के बाद शादी टूटने की सबसे ज्यादा वजह देखने को मिलती है शादी से पहले और शादी के बाद के नाजायज रिश्ते ! नाजायज प्रेम से उत्पन्न होने वाले पति पत्नी के झगड़े से सन्तान की मनोदशा पर बहुत बुरा असर पड़ता है और कुण्ठित मनोदशा से बड़े होने वाली संतान बड़े होकर देश को कैसे खुश हाल बना पाएंगे !

"धर्म एक रास्ता है जिसका सबसे बड़ा उद्देश्य यही है की आदमी को लगातार याद दिलाते रहना की उसने इस धरती पर किस लिए जन्म लिया है ! धर्म ही एक ऐसा फ़िल्टर (छलनी) है जो आदमी को रोज यह बताता रहता है की वो क्या कर सकता है और क्या नहीं कर सकता है ! धर्म ही है जो आदमी के अन्दर के ईश्वर को बाहर निकालता है !" बिना धर्म का आधार लिए कोई भी आदमी अच्छे रास्तों पर ज्यादा दिन नहीं चल पाता है ! धर्म का सही मतलब समझने के लिए सच्चे साधुओं के पास जाना चाहिए, ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए और जितना हो सके गरीबों दुखियारों की सेवा करनी चाहिए !

समाज में शान्ति और सुख बना रहे इसलिए कम से कम एक स्तर का नैतिक और चारित्रिक माहौल तो होना ही चाहिए, नहीं तो हर तरफ अराजकता बढ़ती जायेगी जिससे समाज का स्वतः पतन अवश्यम्भावी है !

समाज में नैतिक माहौल बना रहे ये शासन का भी परम कर्तव्य है और शासन के वो भ्रष्ट लोग जो अपनी जिम्मेदारियों को छोड़ अपनी तिजोरियों को भरने में लगे रहे, वे भी ईश्वर के क्रोध के पात्र हैं ! ईश्वर का क्रोध किसी प्राकृतिक आपदा के रूप में परिलक्षित होगा या व्यक्तिगत समस्या के रूप में, इसका निर्णय समय आने पर स्वयं ईश्वर ही करेंगे।

#ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे#
'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
शांतिनगर, भिलाई
09827198828

शनिवार, 26 अगस्त 2017

राहु ने किया राशि परिवर्तन, क्या होगा आपकी राशि पर प्रभाव....?

राहु ने किया राशि परिवर्तन, क्या होगा आपकी राशि पर प्रभाव....?

राहु के कर्क राशि में १७ अगस्त २०१७ से प्रवेश करेंगे! यह राहु का कर्क राशि में संचरण का २०१७ - २०१८ में संभावित प्रभाव और परिणाम कुछ विशेष होंगे क्योंकि देवगुरु वृहस्पति भी सितम्बर से तुला राशि में प्रवेश करेंगे। वहीं न्यायाधीश शनि धनु राशि में पहले से ही संचार कर रहे हैं ! राहु के राशि परिवर्तन का आपके ऊपर क्या होगा प्रभाव आईये उसे समझने का प्रयास करें !   

सर्वप्रथम तो आप बिल्कुल आप अपने मन से निगेटीव्ह यानी नकारात्मक सोच को निकाल दें, और राहु के नाम से बिल्कुल भयाक्रांत होने की आवश्यकता नहीं है !

ऐसा मैं इसलिये कह रहा हुं, क्योकि हमारे पास कल  गुजरात के बड़ौदा से एक सज्जन का फोन आया, उन्होंने कहा 'आप आचार्य पण्डित विनोद चौबे जी (भिलाई) ही बोल रहे हैं ना.? मैंने कहा हां भाई मैं ही बोल रहा हुं..! बताईये आप क्या जानना चाहते हैं? वे बोले - मुझे एक ज्योतिष जी ने बताया है कि राहु राशि परिवर्तन करने जा रहा है , तुम्हारा व्यापार बंद हो जायेगा... मैं डर गया... फिर मैंने आपका गुगल से नं. लेकर फोन किया... मैंने उनसे कहा.. बिल्कुल ऐसा नहीं होने वाला !

मित्रों,

  कुछ महत्वपूर्ण भ्रांतियों पर प्रकाश डालना जरूरी है ताकि मात्र "राहु" के नाम से बहुतों के द्वारा जो अंधविश्वास फैलाया गया है उससे भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है !

ऐसा नहीं है कि राहु हमेशा एक बुरा ग्रह है पर "असुर कुल" के होने के कारण उसका आचरण "देव तुल्य" नहीं होता है ! पर महादेव के आशीष से जैसे "शुक्राचार्य (जो असुरों के गुरु हैं)" को नवग्रहों में स्थान मिला , वैसे ही "राहु" भी एक ग्रह है बस इसका कोई भौतिक आकार नहीं होने की वजह से यह एक "छाया ग्रह" है ! 

और यह जिस स्थान पर होता है , या फिर जिस ग्रह या राशि के साथ होता है - उनके परस्पर सम्बन्ध के अनुसार ही फल भी देता है - जो मित्रवत या शत्रुवत हो सकता है (चूँकि राहु का शीश विष्णु ने "अमृतमंथन" के समय काट दिया था और शरीर दो भागों बँटा - दूसरा हिस्सा "केतु" हुआ यह भी एक "असुर- प्रवृति" का छाया ग्रह है , परिवर्तन के साथ ही "केतु" कुम्भ राशि से मकर" में प्रवेश करेगा -

अब समझने का प्रयास करते हैं की - राहु के कर्क राशि में होने का प्रभाव क्यों - कैसा और क्या होगा ! 

कर्क राशि का स्वामी चन्द्र है - जो "मन का कारक" है ! चन्द्रमा और राहु का संबंध अच्छा नहीं है या यूँ कहें की "राहु - चन्द्रमा का चिरस्थायी शत्रु" है और वैदिक शास्त्रों / ग्रंथों के अनुसार चन्द्रमा राहु से हमेशा ही भयभीत रहता है ! ऐसा अनुभव में आया है की राहू का चन्द्रमा की युति या राहु का चंद्र की राशि में संचार मनोवैज्ञानिक विकार - कुत्सित विचारों को जन्म देता है और अगर राहु कुंडली में अच्छा नहीं है या फिर चन्द्रमा कमजोर या दूषित है तो और कई बार यह एक चरित्र हनन भी करता है क्योंकि मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, की यदि शनि - या - मंगल - या फिर गुरु के साथ भी किसी कुंडली में मित्रवत नहीं है तो परिणाम गंभीर होते हैं!

इसलिए राहु का कर्क राशि पर संचार कुछ राशियों के लिए बहुत ही घातक हो सकता है, परन्तु उसके वैदिक पद्धति में सरल से सरल उपाय भी है! (स्थान अनूपलब्धता की वजह से यहां उपाय के बारे में पूर्ण रुप से नहीं बता पा रहा हुं, सटीक व लाभदायी उपाय के लिये आप सीधे हमसे संपर्क कर सकते हैं मोबाईल नं 9827198828 पर )

भारत के लिये १७ अगस्त २०१७ से मार्च २०१९ के मध्य तक बहुत ही परिवर्तनीय कार्य प्रणाली व लोगों में जीने की जीवन शैली में बेहद परिवर्तन देखने को मिलेगा !

एक तो असुर प्रवृति - उसपर से छाया ग्रह - और राहु "शीर्ष भाग प्रधान" होने की वजह से - इसका जातक के - किसी भी देश के शीर्ष नेता - घर के मुखिया - किसी महकमे के प्रधान - प्रभावशाली नेता या अधिकारियों के "मन मस्तिष्क" पर बहुत ही अधिक प्रभाव डालता है ! यह "कली" का अभिशाप भी है !

हाँ यह भी आवश्यक है यह समझना की राहु का कर्क राशि का संचार २० अगस्त २०१७ से ७ मार्च २०१९ तक कैसा रहेगा और इसके उभय-निष्ठ क्या प्रभाव होंगे ! 

वैदिक ज्योतिष ग्रंथों / शास्त्रों के अनुसार 'त्रिषट् एकादशे राहु सर्वारिष्ट प्रशांतये' अर्थात् राहु का कुंडली में ३रे , ६ठे , ११ वें स्थान में होना अच्छा माना जाता है। 

राहु इस पूरे महीने में "सूर्य, बुध, शनि और शुक्र के नक्षत्रों से संचार करेगा जो एक निश्चित रूप से कुछ जातकों / देशों के लिए बहुत ही गंभीर घटनाओं का कारक होगा ! 

२०१७-२०१८ के दौरान - राहु के राशि परिवर्तन से - और विभिन्न नक्षत्रों के संचार और मंगल और गुरु के राशि परिवर्तन / युति और परस्पर दृष्टि के आंकलन के अनुसार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत अलग - अलग परिणामों की संभावना है : 

जैसे नीचे 

१) अलग अलग देशों में गंभीर जनाक्रोश देखने में आएँगी 

२) मीडिया - रंगमंच - साहित्य और सिनेमा से जुड़े बहुप्रतिष्ठित जातक का निधन या आक्समिक दुर्घटना 

३) राहु का मन पर दुष्प्रभाव के कारण राजनीति - सरकारी महकमे में , अहंकार , भ्रष्टाचार और अनाचार बढ़ेगा 

४) बहुत से बाहुबली राजनीतिज्ञ / सरकारी उच्च - अधिकारी / समपन्न व्यसायी भ्रष्टाचार उजागर होने की वजह से दण्डित किये जाएंगे 

५) राजनीति से जुडी किसी कद्दावर महिला नेता सुर्ख़ियों में रहेंगी ( सत्ता परिवर्तन/ निधन- दोनों ही संभावित हैं ) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत से देशों के पड़ोसियों और दूर देशों के साथ गंभीर युद्ध की स्थिति होगी और यदा - कदा - कुछ देश अपने बल प्रयोग के गुरिल्ला युद्ध भी सुर्ख़ियों में रह सकते हैं!

६) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकी घटनाएं बढ़ेंगी , हत्याओं / नरसंहार का एक नया आयाम देखने में आ सकता है !

७) इसी राहु के कर्क में संचार और शनि के धनु में होने के कारण - बहुत सी राजनैतिक संघ इतिहास बन के रह जाएंगे 

८) प्राकृतिक आपदाओं का भी बहुत अधिक प्रादुर्भाव होगा जैसे - भूकंप - अत्याधिक बर्फ़बारी, प्रचंड तूफ़ान और चक्रवात, - भयानक बाढ़ - इमारतों और पुलों का ध्वस्त होना - आगजनी - रेल-वायु दुर्घटनाएं - घात युद्ध - विस्फोट की घटनाएं हो सकती हैं ! 

अब बारी है आपकी राशियों पर पड़ने वाले प्रभाव जानने का ! तो आईये समझने का प्रयास करते हैं...

मेषादि राशियों के शुभाशुभ व सटीक गणना के लिए जातक की अपनी जन्मकुंडली का विश्लेषण कराना आवश्यक है क्योंकि सही परिणाम - राहु के कुंडली की स्थिति - दूसरे ग्रहों के सम्बन्ध और अन्य ग्रहों की दृष्टि और वर्तमान ग्रह की महादशा और अंतर्दशा पर निर्भर करता है ! 

मेष राशि : 

मेष के लिए, राहु का संचार राशि से चौथे स्थान पर होगा ! चौथा स्थान से - जातक के घर - पारिवारिक जीवन , माता - श्वास - फेफड़े से संबंधित पहलुओं का विचार किया जाता है ! सामन्यतः मेष राशि के जातकों को फेफड़े, श्वास आदि की समस्याएं हो सकती हैं ! दमे के रोगियों को ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है !

१)  जो जातक फैक्ट्री में ऐसा काम करते हैं - जहां आग का प्रयोग ज्यादा हो - उन्हें आग से सम्बंधित कामों को बहुत ही सावधानी से करना होगा ।

२) बहुत से मेष जातक - अपना घर भी बदल सकते हैं ! प्रतियोगी परीक्षा में हो सकता है बहुत अच्छे फल ना मिलें ! जो जातक वृद्ध हैं या जिन जातकों की माता वृद्ध हैं उनके स्वास्थ्य की बहुत ही उचित देखभाल करने की आवश्यकता है

३)  पति - पत्नी में मतभेद और मनभेद की प्रबल संभावना है

४)  व्यापार में संलग्न जातक अपनी अचल संपत्ति की खरीद या बिक्री में बहुत ही सावधान रहें - नहीं तो धोखा भी हो सकता है

५)  नौकरी में भी परिवर्तन की संभावना है

६)  इस राहु के गोचर काल में मेष जातक ७)  विदेश भी जा सकते हैं - जो लाभदायी हो सकता है

८) महिलाओं के लिए - इस राहु की दृष्टि - दसवें भाव पर होगी - जिससे - उनके पति के पिता या उनके दादा का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है

वृष राशि :

 कर्क के राहु का गोचर तीसरे स्थान पर होगा ! तीसरा स्थान - कार्य क्षेत्र - मान - प्राधिकार - अधिकार - अनुज - अपनी उम्र से छोटे रिश्ते - शौर्य - का कारक होता है ! यह भी ध्यान देने की बात है की - कोई भी ग्रह अगर तीसरे स्थान पर हो तो उसकी पूर्ण दृष्टि जातक के भाग्य स्थान पर भी होती है !

१)  जिन जातकों का कुंडली में राहु अगर अच्छा है या फिर अन्य ग्रहों की दृष्टि से दूषित नहीं है - वो अपने कार्य क्षेत्र में बहुत प्रगति करेंगे 

२)  पर छोटे भाइयों / बहनों से या अपने से छोटे रिश्तेदारों के साथ वाद - विवाद या फिर गंभीर समस्या हो सकती है 

३)  चौथे स्थान से बारहवें होने के कारण - माता-पिता से भी गंभीर मतभेद हो सकता है

४)  हड्डियों की समस्याएँ हो सकती हैं या फिर कन्धों में चोट की संभावना है

५)  सट्टे या जुए की तरफ झुकाव भी हो सकता है

६)  जिन जातकों की अपनी माता से अच्छे संबंध हों या फिर उनका आशीष हो तो - वृष के जातक किसी भी प्रयास में बहुत ही सफल होंगे

मिथुन राशि : 

आप के लिए गोचर का राहु "दूसरे" स्थान पर होगा ! दूसरा स्थान - ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार - धन का, वाणी का, मुँह, दांत और आँख का कारक होता है ! ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार राहु या केतु के लिए दूसरा स्थान एक कष्टकारी स्थान माना जाता है 

१) राहु का प्रभाव दूसरे स्थान में एक लम्बे समय तक रहता है , आय प्रभावित होगा और व्यर्थ के खर्चों के कारण धन की कमी भी अनुभव में आएगा ! बहुत से बेकार चीज़ों की खरीदी भी होगा जिसकी कोई उपयोगिता नहीं होगी ! 

२) जब राहु शनि के नक्षत्र में संचार करेगा तो वो जातक जो आँखों दांतों की समस्या से गुजर रहे हों उनको शल्यचिकित्सा (सर्जरी) करानी पड़ सकती है । 

३)  विवाहित जीवन की भी परेशानी होगी और साझीदारों के कारण धन का नुक्सान हो सकता है ! 

४)  दूसरे स्थान का राहु - वाणी को भी दूषित करता है और वाणी को कटु बनायेगा और इस कारण मित्रों / अधिकारियों और परिवार के सदस्यों से सम्बन्ध बिगड़ सकते हैं !

५)  लेकिन इसी गोचर के दौरान - वृष के जातक अपनी किसी पुरानी पड़ी अचल सम्पति को बेच कर कुछ धन भी कमा सकते हैं !

कर्क राशि:

 १७ अगस्त २०१७ क कर्क राशि पर ही संचार करेगा - और कर्क राशि के जातक बहुत ही प्रभावित होंगे !

हमने पहले ही यह बताने का प्रयास किया की राहु चन्द्रमा का अति शत्रु है और चन्द्रमा राहु से हमेशा भयभीत रहता है 

१.  राहु का संचार बहुत ही नकारात्मक भावनाओं की वृद्धि करेगा और मन को शंकाओं से भर देगा ! बहुत से जातक जिनकी कुंडली में अगर शनि / गुरु / मंगल अच्छे नहीं होंगे - उनको हर बात पर शंकित और - हर लोग पर संदेह की मानसिकता से ग्रसित कर सकता है 

२)  एक अज्ञात भय हर समय सताता रहेगा ! जातक को भविष्य की योजनाओं के सपने दिखायेगा और दम्भी भी बना देगा कर्क का राहु - जातक के मन को अशांत रखेगा और हमेशा ही किसी अनहोनी के भय से ग्रसित रखेगा ! 

३)  मन एक प्रकार से अनिष्ट की चिंता में रहेगा और नींद की कमी होगी 

४)  मन पर प्रभाव के कारण - जातक बड़े बोल का शिकार होगा - आत्म-प्रंशंसा की वजह से-उपहास का पात्र भी बन सकता है ! अनुचित संबंधों के कारण बहुत अपयश भी हो सकता है - पति-पत्नी के संबंध बिगड़ सकते हैं ! शनि के नक्षत्र के संचार के समय - तलाक तक की भी प्रबल संभावना है 

५)  असुर स्वभाव का होने के कारण - जातक को बहुत ही ईर्ष्यालु बना देगा और - दूसरों की प्रगति से ईर्ष्या करना - उनके पीठ के पीछे अपशब्द कहना जैसी प्रवृत्ति का प्रादुर्भाव होगा कुछ अनैतिक संबंध के कारण असाध्य रोग भी हो सकता है ! जातक के मातृ कुल के पुरुष ( मामा ) की भी मानहानि और प्रतिष्ठा पर आंच आने जैसी स्तिथि हो सकती है 

सिंह राशि : 

आपके लिए गोचर का राहु "बारहवें " स्थान पर होगा ! ज्योतिष शास्त्र के अनुसार - राहु के लिए बारहवां स्थान अशुभ और हानिकारक माना गया है !

सिंह राशि के जातकों के लिए - राहु का संचार कर्क राशि के जातकों से कम कष्टकारी नहीं होगा

१) नींद की कमी के कारण - जातक बहुत ही अशक्त महसूस करेंगे और आंखों - राहु के प्रभाव से आँखों के ईद गिर्द कालापन छाया रहेगा ! मानसिक तनाव भी बढ़ा रहेगा 

२)  कार्य स्थल में भी कुछ भूल जाने की स्थिति हो सकती है - जिसके कारण - अधिकारियों से बहस भी हो सकती है और सहनशीलता में बहुत कमी देखने को आएँगी 

३)  स्वास्थ्य नाजुक रहेगा अचानक कोशिकाओं से संबंधित (नसों) आँखों, दांत दर्द, आंतों (कोलाइटिस - पेप्टिक अलसर) रोग परेशान कर सकते हैं 

४)  राहु के बृहस्पति, शनि और बुध के नक्षत्र में संचार के समय - व्यर्थ यात्राएं भी होंगी - हो सकता है - कोई अनअपेक्षित स्थांनांतर भी हो 

५) कुछ जातकों को - जिनका राहु जातक कुंडली में अच्छा ना हो वो अपने किसी अवैध संबंधों के कारण समाज - घर में सार्वजानिक रूप से बहुत ही अपमानित होंगे । 

६) राहु चूंकि असुर कुल का है - वो किसी अशुभ - मकान - जमीन - खरीदने के लिए प्रेरित कर सकता है ( मेरा सुझाव है - की किसी भी तरह की अचल सम्पति खरीदने से पहले - किसी जानकार ज्योतिर्विद से अपनी कुंडली का विश्लेषण जरूर करा लें ) 

७)  विवाहित जीवन में जटिलता आएगी और हो सकता है की समबन्ध विच्छेद हो जाए या किसी कारणवश पति या पत्नी को कुछ समय के लिए अलग-अलग भी रहना पद सकता है 

८)  किसी पर भी आँख मूँद कर यकीन करना - हानिकारक हो सकता है 

९)  क्षद्म तांत्रिकों - साधुओं से सावधान रहने की आवश्यकता है , वो जातक के कमजोर समय का लाभ उठा सकते हैं , वैदिक सिद्धांत पर आधारित बातों सो ही मानना चाहिये (कठिन परिस्थिति - जातकों को कभी कभी परेशानीवश - इस राह में प्रेरित कर सकता है ) - 

१०)  जातकों को "शीघ्र लाभ" की आशा में जुए और सट्टे से दूर रहना अच्छा होगा !

कन्या राशि :

आपकी राशि के लिए गोचर का राहु "छठे " स्थान पर होगा " ज्योतिष शास्त्रों के के अनुसार - छठा स्थान अशुभ और हानिकारक माना गया है ! पर राहु जैसे पाप ग्रह का छठे स्थान में होना जातक के लिए शुभ फल देगा राहु का संचार कर्क राशि के जातकों के लिए कष्टकारी नहीं होगा

१) राहु का यह गोचर कन्या राशि के जातकों के लिए एक राहतकारी होगा और अचानक सफलता मिलेगी;

२) जो जातक प्रेम-प्रसंग में होंगे - उनका विवाह भी हो सकते है 

३)  विदेश में नौकरी / या उच्च शिक्षा के अवसर भी आएंगे 

४) नौकरी में तरक्की या फिर नयी प्रभाशाली नौकरी मिलने की संभावना है 

५)  नया भवन - वाहन और आभूषण खरीदने की प्रबल संभावना है 

६)  राहु की सप्तम दृष्टि के कारण - जातक के पिता कष्ट हो सकता है - माता का स्वास्थ्य खराब हो सकता है - या फिर पत्नी के माता को भी आँख - दांत या गले से सम्बंधित परेशानी आ सकती है !

अब बारी है तुला से मीन राशि के जातकों के लिए- लेकिन अगली पोस्ट में पढें....

-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे,

संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई, मोबाईल नं 9827198828

(कृपया परामर्श सशुल्क है)

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

हर अभिभावकों को पढ़ना जरुरी है... सिगरेट धारी... भ्रष्टाचारी सर्वभक्षी विद्यार्थिनां पंचलक्षणम्....!

.हर अभिभावकों को पढ़ना जरुरी है... सिगरेट धारी... भ्रष्टाचारी सर्वभक्षी विद्यार्थिनां पंचलक्षणम्....!

अपनी सहचरी मोटरसायकल से अल सुबह 7 बजे सुबह मैं भिलाई स्थित नेहरु नगर के एक स्थान पर पहुंचा ही था की, वर्षा शुरु हो गई, मैं वहीं एक पान ठेला पर रुक गया ! ... साथियों मेरी नजर वहीं पास में खड़े स्कूली लिबास में एक 16 या 17 वर्ष के छात्र पर पड़ी जो पास के ही एक नीजी स्कूल का छात्र है, वह छात्र पान ठेला संचालक से बोला - "अंकल... मुझे एक सिगरेट और मेन्टोफ्रेस टाफी दिजीये..! मैं यह दृश्य देखकर अवाक़ था स्कूली छात्र वहीं बगल में खड़ा होकर सिगरेट की कश़ लगा रहा था, उसके कुछ और दोस्त वहीं बगल में सायकल खड़ी करके सिगरेट की कश़ लगाने लगे !  उन बच्चों के चले जाने के बाद उस पान ठेले के संचालक से पूछा - क्यों भाई ? ये बच्चे रोज आते हैं क्या ? उस पाऩ ठेला संचालक ने कहा - प्रतिदिन 20 से 30 बच्चे आते हैं, कुछ तो बच्चे आते के साथ ही सिगरेट पीना चाहते हैं, कुछ वापसी में लेकर जाते हैं.... ये वो बच्चे होते हैं जो अपनी गाड़ियों या सायकल से स्कूल आते हैं ! 

मेरे लिये बेहद आश्चर्य का विषय था ! क्योंकि हम लोगों ने संस्कृत की शिक्षा ग्रहण की, जहां आज भी वाराणसी के संस्कृत विद्यालयों में आश्रमी-शिक्षण पद्धति के मौलिकता का ध्यान रखा जाता है, वही संस्कार, वही गरु-शिष्य की परम्परा तथा सामाजिक ताना-बाना जो नैतिकता से पूर्ण 'अयं निज: परोवेति....!  और 

काक चेष्टा वको ध्यानम्, श्वान निद्रा तथैव च !

अल्पाहारी गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणम् !! यह विद्यार्थियों के पांच लक्षण बताया जाता था !  की सीख दी जाती थी !  

किन्तु आज प्राईवेट स्कूल चलाने वाले स्कूल को 'प्रोफेशनल बिजनेश' की भांति व्यापार चला रहे हैं, विद्यालय नहीं ! मैकाले शिक्षा प्रणाली के छांव तले इन शिक्षा के व्यापारियों ने लुभावने तथा बच्चों के लिये मनभावन खिलौनों का बड़े-बड़े विज्ञापनों के माध्यम से शहर में ऐसा माहौल तैयार करते हैं मानो की वह सर्वोत्कृष्ट शिक्षण संस्थान है, परन्तु ऐसे शिक्षण संस्थानों में ना ही नैतिकता पर बल दिया जाता है, ना ही इन लोगों ने कभी बच्चों को 'छात्र' समझा ये लोग 'बच्चो' को ग्राहक समझते हैं, नहीं तो स्कूल के आस-पास पान ठेलों, खोमचों पर इनकी पैनी निगाहें अवश्य रहती ! 

खैर, और अधिक कठोर शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहता क्योंकि लगभग भारत के विभिन्न हाईटेक शहरों के कमोबेस सभी नीजी शिक्षण संस्थानों की वही बात है ! जरुरत है हमें ऐसे स्कूलों में बच्चों को दाखिला दिलायें, जहां वैदिक शिक्षण पद्धति के अन्तर्गत नैतिक-शिक्षा प्रदान की जाती हो ! 

 नहीं तो आज बदलते परिवेश में छात्रों के पांच लक्षण कुछ इस प्रकार हो जायेगा.... प्रस्तुत है स्वयं का निर्माणित एक श्लोक....

सिनेचर्चा केशध्यानं कुम्भनिद्रा तथैव च !

सिगरेटधारी, भ्रष्टाचारी सर्वभक्षी विद्यार्थिनां पंचलक्षणम्!!

- पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, 9827198828 http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/08/blog-post_25.html?m=1

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गुरुवार, 24 अगस्त 2017

हे ! अ'ममता पागलपन छोड़ो, प.बंगाल में नफरत घोलने की बजाय, लोगों को आपस में जोड़ो.... नहीं तो गद्दी छोड़ो....

हे ! अ'ममता पागलपन छोड़ो, प.बंगाल में नफरत घोलने की बजाय, लोगों को आपस में जोड़ो.... नहीं तो गद्दी छोड़ो....

हे ! भगवान, ममता बनर्जी को सद्बुद्धी दें !

 प.बंगाल में ममता द्वारा  , 'इस वर्ष दुर्गा पूजा और मुहर्रम एक ही दिन पड़ रहा है। मोहर्रम के 24 घंटों को छोड़कर 2, 3 और 4 अक्टूबर को मूर्ति विसर्जन किया जा सकता है।' ऐसा ममता का तालिबानी आदेश बिल्कुल गलत है, क्योंकि 30 सितम्बर 2017 शनिवार को रात्रि 1:35 तक ही (उत्तराषाढा नक्षत्र के बाद श्रवण नक्षत्र हो जायेगा ) यानी 1अक्टूबर को एकादशी हो जायेगा उसके बाद 2 अक्टूबर से पंचक आरंभ हो जायेगा जिसमें मूर्ति विसर्जन वर्जित है ऐसे में, ममता बनर्जी के मुताबिक  30 सितम्बर को सायंकाल  5: 00 से 6:00 के बाद दुर्गा पंडालों की मूर्तियों के विसर्जन पर रोक लगाया जाना बिल्कुल गलत है, निन्दनीय है, गैर हिन्दुओं के तुष्टिकरण की गहरी व गंदी साजिश है ही प.बंगाल का निक्कमापन है, जो विजयादशमी और मोहर्रम दोनों एक साथ नहीं करा पा रही है ! जबकी कईयो बार भारत में विजयादशमी-मोहर्रम या ईद या अन्य हिन्दु-मुश्लिम त्योहार एक साथ निर्विवाद मनाया जा चुका है, एकाध अपवाद को छोड़ लगभग शांतिपूर्ण ढंग से दोनों समुदाय एक साथ अपने-अपने त्योहार मनाते आये हैं ! किन्तु  ऐसी बेहुदगी प्रतिबंध लगाकर क्या जताना चाहती हो ममता बनर्जी ? इसके पिछे ममता बनर्जी की मनसा है हिन्दुओं को नीचा दिखाना एवं अल्पसंख्यक बनाम मुश्लिम तुष्टिकरण करके वोट अपनी झोली में डालने का कुत्सित प्रयास कर रहीं हैं ममता बनर्जी! 

ममता तुम्हारी या तो बुद्धी भ्रष्ट हो गई है या पूरी तरह से विकृत हो चुकी है ! तुम्हारी यह तुष्टिकरण का राजनीतिक दंभ तुम्हारा सद्य: नाश कर देगा ! प.बंगाल को साम्प्रदायिक दंगल का अखाड़ा मत बनाओ ! राजधर्म का निर्वाह करो ! तुम्हारी औकात नहीं की तुम हिन्दुत्व-संस्कृति का दमन कर पाओगी ! 
हे ! अ'ममता पागलपन छोड़ो, प.बंगाल में नफरत घोलने की बजाय, लोगों को आपस में जोड़ो.... नहीं तो गद्दी छोड़ो....

- पण्डित विनोद चौबे, संपादक- ''ज्योतिष का सूर्य''