निर्विवाद रुप से 14 अगस्त को ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत करना चाहिये...
- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे
5117 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण का भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार रोहिणी नक्षत्र अर्द्धरात्रि में देवकीतनय, वसुदेवसुत गोविंद का जन्म हुआ ! मित्रों मैं पिछले कुछ दिनों से देख रहा हुं, कि कुछ छपास की बिमारी से पीड़ित मॉडर्न लेपटॉपिये टीवी पर वगैर तथ्यों के बकवास करने वाले कथित ज्योतिषियों ने अपने अहम और वर्चस्व को कायम रखने के चक्कर में पर्व एवं त्योहारों के तिथि में कभी 'उदया तिथि' का हवाला देकर पर्व मनाये जाने की बात करते हैं तो कभी 'तिथि के शुरुआती घटी पल' के आधार पर पर्व मनायें जाने की वकालत करते हैं, यदि उनसे इस विषय पर स्पष्टिकरण मांगा जाता है तो वो बताते हैं कि- हम पिताजी के पूण्य स्मृति में पंचांगकार बन चुके हैं, आप मेरे से बहस मत करें मैंने ऐसे कुछ लोगों के पोस्ट फेसबुक पर देखा कि वह 16 अगस्त 2017 को श्रीकृष्णजन्माष्टमी मनाया जाना बता रहे हैं, जिसे मैं उनकी 'विद्वता को वर्चस्व के इन्फेक्शन से लकवाग्रस्त विकलांगता ही कहूंगा', ऐसे कथित ज्योतिर्विदों से आप सावधानी बरतें !
श्रीकष्णजन्माष्टमी व्रत निर्णय:
'ज्योतिष का सूर्य ' के सुधी पाठकों निर्विवाद रुप से 14 अगस्त 2017 सोमवार को ही श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत किजीए ! 'स्मार्त्तानाम् द्वितीय दिनेष्टम्यां यामद्याधिकसत्वेपि प्रात: काल एव च पारणोक्ता.....! के आधार पर संत, यती, तथा वैष्णवों को 15 अगस्त 2017 मंगलवार को जन्माष्टमी व्रत किया जाना चाहिये !
विष्णु धर्मोत्तर पुराण के अनुसार
रोहिण्यामर्द्धरात्रे च यदा कृष्ण अष्टमी भवेत्...! के अलावां अष्टमी कृष्णपक्षस्य रोहिणीभसमन्विता भवेद् प्रौष्ठपदे मासि जयन्ती नाम सास्मृता !!
और यदि रोहिणी नक्षत्र ना मिले तो इन्होंने कहा कि-
रोहिणी च यदा कृष्णपक्षेष्टम्यां द्विजोत्तम्, जयन्तीनाम सा प्रोक्ता सर्वपापहरातिथि:! अर्थात् अष्टमी तिथि ही अर्द्धरात्रि में मिल जाय तो उसी रात्रि के निशिथ काल में जन्माष्टमी मनायी जानी चाहिये..!
निशिथ काल 14/8/2017 को रात्रि 12 बजकर 3 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक वहीं श्रीकृष्ण का जन्मसमय मध्य चरण रात्रि 12:25 है, जन्म इसी समय पर होगा,इसके बाद विधीवत षोडशोपचार पूजन करके महाआरती करें !
पारण 15/8/2017 को सायंकाल 5 : 41 मिनट के बाद करना चाहिये,क्योंकि इसके बाद नवमी तिथि आरंभ होना जायेगी !
मित्रों समयाभाव की वज़ह से मैंने निर्णय सिंधु या धर्मसिंधु का तथ्यात्मक वर्णन नहीं कर पा रहा हुं !
किन्तु आप सभी लोगों से विनम्र निवेदन कर रहा हुं कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत निर्विवाद रुप से चौदह अगस्त सोमवार को ही मनावें ! देश के सभी हिन्दु जब एक साथ किसी भी पर्व को मनाते हैं तो भारतेतर या गैर हिन्दु अथवा गैर सनातनावलंबी ताकतें सहम कर हिन्दुओं की अखण्डता से 'भीत' होकर 'मीत' बनने को विवश होते हैं ! लेकिन इस बात को इन कथित ज्योतिषियों तथा कथित पोंगा-पंचांगकारों को कौन समझाये ! मैं इतना कठोर शब्दों का प्रयोग दुराग्रह वश नहीं बोल रहा वरन् क्षोभ वश दु:खी होकर बोल रहा हुं, असमञ्जस मे डालकर त्योहारों के तिथियों को विवादित कर देते हैं ! साथियों हमारे आर्ष-मनिषियों ने पर्व-परम्पराओं का निर्धारण इसलिये किया की हमारी पारस्परिक अखण्डता बनी रहे, और यह तभी संभव है जब हम एक साथ, एक समूह में एक घाट पर एक स्वर से वेद की ऋचाओं का गायन करते हुए उत्सवों को मनायेंगे ताकी हमारे संख्याबल के भक्तिपूर्ण शौर्य की गूंज वैदेशिक दार्शनिकों , अर्थशास्त्रियों को सोचने को मजबूर कर दे, और हम सनातनी पूरे विश्व के लिये प्रेरणादायी बन सकें, हंसी के पात्र नहीं !
कुछ मित्रों द्वारा सवाल किये जाते हैं कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत को कैसे किया जाय ?
तो मित्रों मैं आपको बताउं श्रीकृष्ण योगेश्वर होते हुए भी भक्ति मार्ग की आचार्या राधा के अभिष्ट हैं अत: श्रीकृष्ण का चरित्र ' भक्ति मार्ग की ड्योढी से आरंभ होकर ज्ञानमार्ग पर 125 वें वर्ष की श्रीकृष्ण-लीला यात्रा अनवरत्' चलते रहा ! बाते बहुत हैं मैं विस्तृत प्रकल्पों को उद्घाटित नहीं करना चाह रहा हुं कि क्योंकि जितना कहा जाय उतना कम है ! किन्तु भगवान श्रीकृष्ण को भक्ति पूर्वक नाना प्रकार से 'श्रृंगार' करना चाहिये!अलंकार प्रियो कृष्ण:....! अत: निशिथकाल में विधीवत् पूजन-अर्चन करते हुए पंजीरी, पंचामृत, फल में खीरा तथा छप्पनभोग तुलसी दल सहित अनेकों प्रकार के फल-फुलों से सुसज्जित कर हर्षोल्लास के साथ मनाया जाना चाहिये !
- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे
संपादक- ''ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, मोबाईल नं 9827198828
(हमारे लेख में मेरा स्वयं का विचार है)
वैधानिक चेतावनी : हमारे इस लेख को कॉपी-पेस्ट ना करें, ऐसा करते हुए पाये जाने पर "ज्योतिष का सूर्य'' द्वारा वैधानिक कार्यवाही की जावेगी!
॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥
॥ ऊँ राधाकृष्णाभ्यां नमः॥
श्री कृष्ण स्तुति
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम।
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥
गोविंद दामोदर स्तोत्र
अग्रे कुरूणामथ पाण्डवानां दुःशासनेनाहृतवस्त्रकेशा।
कृष्णा तदाक्रोशदनन्यनाथा गोविंद दामोदर माधवेति॥
श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारे भक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे।
त्रायस्व माम् केशव लोकनाथ गोविंद दामोदर माधवेति॥
विक्रेतुकामाखिलगोपकन्या मुरारिपादार्पितचित्तवृत्ति:।
दध्यादिकम् मोहवसादवोचद् गोविंद दामोदर माधवेति॥
श्रीकृष्णाष्टकम्
(श्री शंकराचार्यकृतम्)
भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम् ।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं
अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम् ॥ १ ॥
मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् ।
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णवारणम् ॥ २ ॥
कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं
व्रजाङ्गनैकवल्लभं नमामि कृष्ण दुर्लभम् ।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् ॥ ३ ॥
सदैव पादपङ्कजं मदीयमानसे निजं
दधानमुत्तमालकं नमामि नन्दबालकम्
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् ॥ ४ ॥
भुवोभरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् ।
दृगन्तकान्तभङ्गिनं सदासदालसङ्गिनं
दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसंभवम् ॥ ५ ॥
गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम् ।
नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलंपटं
नमामि मेघसुन्दरं तटित्प्रभालसत्पटम् ॥ ६ ॥
समस्तगोपनन्दनं हृदंबुजैकमोदनं
नमामि कुञ्जमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम् ।
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं
रसालवेणुगायकं नमामि कुञ्जनायकम् ॥ ७ ॥
विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायि नं
नमामि कुञ्जकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम् ।
यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम् ॥ ८ ॥
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान् ।
भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान् ॥ ९ !!
(हमारे लेख में मेरा स्वयं का विचार है)
वैधानिक चेतावनी : हमारे इस लेख को कॉपी-पेस्ट ना करें, ऐसा करते हुए पाये जाने पर "ज्योतिष का सूर्य'' द्वारा वैधानिक कार्यवाही की जावेगी!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें