ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

बुधवार, 2 अगस्त 2017

जाति-पांति का जहर गोरे और काले अंग्रेजों की देन है...

कल "अन्तर्नाद" ( व्हाट्सएप ग्रुप) मंच पर एक सदस्य श्रीरामचरितमानस के इस चौपाई  'ढोल गंवार शूद्र पशु नारी......' पर चर्चा किया गया ! जो बहुत सारगर्भित लेख श्री त्रिभुवन सिंह जी द्वारा उल्लेखित आलेख था ! आज उसी संदर्भ को आगे बढाते हुए.... प्रस्तुत है यह लेख,................... जाति-पांति का जहर गोरे यानी ब्रितानी और काले यानी देश में 'मंडल-कमंडल' का जहर घोलकर 'आरक्षण की आग' लगाने वाले भारतीय काले अंग्रेजों की देन है.जो भारतीय सत्ता पर सर्वाधिक  आसीन रहे, जो हिन्दुओं को खण्ड-खण्ड में बांटने का सफलतम प्रयास हुआ....  जबकी हमारे भारतीय प्रागैतिहासिक या वैदिक काल में कभी इस जातिगत विद्वेष को स्वीकृति नहीं दी गई ना ही इसका समर्थन किया गया...हमारे यहां की परम्परा है ''सहनाववतु सहनौ भुनक्तु सहवीर्यम् कर्वावहै तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै' की परम्परा रही है...... ..

हमारे देश का संभ्रांत राजा दशरथ का पुत्र राम शबर जाति की दलित महिला 'शबरी' का जूठा बेर खाया था!
आज भारत में विदेशी पैसे से कई आन्दोलन ऐसे चल रहे हैं जिनका काम सिर्फ दलित और उच्च वर्ग के लोगों के बीच वैमनस्य की भावना को बढ़ाना है l पता नहीं क्यों मगर यह सभी आन्दोलन यह मान कर बैठे हैं के अंग्रेजों द्वारा बनाये गए एस.सी. / एस.टी. ही दलित हैं तथा दलित ही शुद्र हैं | इन सभी आन्दोलनों में गरीब भोले भाले हिन्दुओं को यह बताया जाता है  के तुम शुद्र हो तथा तुम इसलिए गरीब हो क्योंकि भारत के उच्च जाती के लोगों ने तुम पर अत्याचार किये तथा तुम्हारा पैसा लूटा है | इसके बाद बड़ी खूबसूरती से यह एनजीओ इन सभी का इल्जाम हिन्दू धर्म तथा भारतीय संस्कृति पर लगा देते हैं तथा गरीबो से कहते हैं के हिन्दू धर्म छोड़ दो तभी तुम्हारा विकास संभव है | इस तरह हिन्दू धर्म के नाम से यह लोग पूरी भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता और मान्यताओं पर भी चालाकी से कुठाराघात कर देते हैं तथा भोले भाले गरीब लोगों को अपने ही देश के बाकी लोगों के खिलाफ खड़ा कर देते हैं | इसीका फायदा दूसरे विदेशी मजहब भी उठाते है तथा इन गरीबो का मत परिवर्तन कर देते हैं | यही खेल अंग्रेजों के समय से भारत में चल रहा था , मगर अब इसके कारण भारत में लड़ाई झगडे तथा नफरत बढती जा रही है | इसीलिए मैंने इस लेख में इन प्रश्नों का जवाब ढूंढने का प्रयास किया है l

क्या भारत सच में शुद्र विरोधी था ?

क्या एस.सी. / एस.टी. ही दलित और शुद्र हैं ?

क्या शुद्र जन्म से होते हैं ?

क्या हिन्दू धर्म या पौराणिक भारतीय पुस्तकों में दलित विरोधी शिक्षा दी गयी थी ?

प्राचीन इतिहास :

अधिकतर लोग अंग्रेजों की पढाई हुई या लिखी हुई पुस्तकों को पढ़कर यह निष्कर्ष निकालते हैं के भारत शुद्र विरोधी था और उन्ही पुस्तकों को पढ़कर लिखी गयी वामपंथियों या अंग्रेजी क्लास के लोगों की पुस्तके अधिकतर लोग प्रयोग में लाते हैं हिन्दू विरोधी दुष्प्रचार करने के लिए | पर मैंने प्रयास किया के मै मूल ग्रंथो से सामग्री उठाऊंगा तथा जो भारतीय मानस में जिए हैं उन लोगो के साहित्य से तथ्य उठाऊंगा ना कि विदेशियों के द्वारा लिखे गए कपोलकल्पित साहित्य को उपयोग करूँगा |

वैदिक काल :

यदि प्राचीन काल से साहित्य उठाया जाए तो ब्रह्मा से  या  मनु से सभी लोग पैदा हुए | इन दोनों ही बातो में सभी लोग एक ही व्यक्ति से निकले हैं तो कौन छोटा और कौन बड़ा की कल्पना नहीं की जा सकती | अब बात करते हैं ऋग वेद (पुरुषसूक्त दसवे मंडल) की जिसमे दुनिया या समाज  को एक जमीन पर लेटे हुए व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है | इसमें बताया गया है के हर समाज को चलाने के लिए चार प्रकार के कर्मो की आवश्यकता है तथा इसमें यह कहा गया है कि दुनिया तथा एक व्यक्ति को भी जीवन चलाने यही चार कर्म आवश्यक हैं |

‘अब पहला कर्म बताया गया है “ब्राह्मण” मतलब वो जो समाज के लिए सोचेंगे , शिक्षक बनेगे, वैज्ञानिक बनेगे या समाज किस तरह कार्य करेगा उसकी समस्याएं कैसे हल होंगी यह सोचने वाला हर व्यक्ति ब्राह्मण है | चूँकि सोचते दिमाग से हैं इसलिए इसको ‘लेटे हुए व्यक्ति’ के सर के रूप में दर्शाया गया है |’

‘दूसरा कर्म बताया गया है क्षत्रिय जिसका अर्थ है सेना, प्रशासनिक सेवा, रक्षण करना आदि जिस तरह व्यक्ति अपने हाथो से अपनी रक्षा करता है तथा उसकी छाती से उसका बल पता चलता है | उसी प्रकार इस तरह के कर्म को ‘लेटे हुए व्यक्ति’ की छाती के रूप में दर्शाया गया है |’

‘तीसरा कर्म है वैश्य अर्थात हर समाज को धन उपार्जन तथा व्यापार , लेन – देन इत्यादि की आवश्यकता पढ़ती है | इसी कर्म को व्यक्ति के पेट से दर्शाया गया है क्योंकि हम पेट से अन्न ग्रहण करते हैं उसीके अन्दर सारे शरीर में उर्जा प्रवाह की क्षमता होती है | वैसे ही वैश्य पैसे तथा मुद्रा आदि से पूरी इकोनोमी को नियंत्रण करते हैं |’

‘अंत में चौथा कर्म बताया गया है शुद्र | समाज में कई युवा या व्यक्ति ऐसे होते हैं जो बहुत विद्वान नहीं होते या लड़ाई करना भी उनके स्वाभाव में नहीं होता तथा व्यापार चलाने की शातिरता भी उनके भीतर नहीं होती | यह लोग भोले होते हैं किन्तु यह कलाकार होते हैं इनमे कुम्हार, लोहार, बढ़ई , सुतार आदि आते हैं जिनमे कला के क्षेत्र का अद्भुत ज्ञान होता है | यही नहीं यह लोग ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य, आदि के औजार बनाते हैं तथा इनके हर काम में सहयोग करते हैं | वह शुद्र वर्ण में आते हैं | इन्हें ‘लेटे हुए व्यक्ति’ के पैरों के रूप में दर्शाया गया है क्योंकि यदि व्यक्ति के पैर ना हों तो हाथ, छाती और सर सब जमीन पर गिर पढ़ते हैं तथा भीख मांगने पर मजबूर हो जाते हैं | अतः शुद्रो को वेदों में वह स्थान दिया गया है के उनके ऊपर सारा समाज निर्भर करता है |’ इन्ही चार कर्मो को वर्ण कहा गया है | इसमें कोई भी छोटा या बड़ा नहीं है तथा यह पुर्णतः कर्म आधारित व्यवस्था थी | इसमें किसी के भी बच्चे कर्मो के अनुसार दूसरे वर्णों में जा सकते थे |

रामायण काल :

अब आते हैं रामायण पर , रामायण का मूल ग्रन्थ लिखने वाले वाल्मीकि हैं जो की स्वयं शुद्र वर्ण से थे | तथा रामायण में श्री राम ने शबरी के हाथो से बेर खाए तथा केवट की नाव में सफ़र किया दोनों ही शुद्र वर्ण के थे अतः एक क्षत्रिय और शुद्र में भेद कहीं नहीं दिखा | यही नहीं आज जिन्हें आदिवासी कहा जाता है उन्ही की पूरी सेना जिसमे जामवंत, सुग्रीव आदि सभी लोग थे , के साथ श्री राम ने पूरी लड़ाई लड़ी तथा उनके ऊपर कब्ज़ा करने की जगह सुग्रीव को राजा बनाकर आये | यह हिन्दू धर्म की परंपरा रही है | यही नहीं एक ब्राह्मण वर्ण  के रावण ने जब गलती की तो उसे अपनी जान गंवानी पड़ी | राम ने न्याय करते हुए वर्ण या जाती नहीं देखी |

महाभारत काल में : 

इसी तरह महाभारत को जिन्होंने लिखा है वह हैं वेदव्यास भी शुद्र थे | इसमें कुछ लोग एकलव्य को शुद्र बताने का प्रयास करते हैं | जबकि एकलव्य भी भील राजा का बेटा था तथा बाद में सेना में लड़ा भी था | सवाल है इसको द्रोणाचार्य के ना सिखाने का तो उसके पीछे द्रोणाचार्य की शपथ थी के वो अर्जुन को सर्वश्रेठ धनुर्धर बनायेंगे | इसके बाद भी महाभारत में वेदव्यास ने द्रोणाचार्य की गलती ही बतायी है तथा इसे उपयुक्त नहीं माना है , जो की यह दर्शाता है के भारत के आदर्श सही का साथ देने वाले थे | ऐसे ही कुछ लोग कर्ण को शुद्र बताने का प्रयास करते हैं जबकि वो पांडवो का ही भाई था | अब यदि मान भी लें वो शुद्र जाती के पिता के साथ था तो यदि एक क्षत्रिय अर्जुन ने उसे दुत्कारा तो दुसरे क्षत्रिय दुर्योधन ने उसे अंग प्रदेश का राजा बना दिया | इससे यह सिद्ध होता है के यह अर्जुन और कर्ण की निजी लड़ाई थी ना की कोई जातिगत दुर्व्यवहार |

अब आते हैं संतो पर तो कबीर, रविदास, रैदास , वाल्मीकि आदि कई संत भारत में हुए हैं जो शुद्र वर्ण में पैदा हुए थे ! बाद में कर्म से ब्राह्मण हुए | इसके पहले एक ब्राह्मण चाणक्य ने एक शुद्र वर्ण के बालक चन्द्रगुप्त को उठाकर क्षत्रिय वर्ण का राजा बना दिया था | ऐसे कई उदाहरण हमारे इतिहास में भरे पढ़े हैं जिनसे यह सिद्ध होता है के आज अंग्रेजों द्वारा बनायी गयी एस.सी./एस.टी कास्ट की कई जातियां पहले क्षत्रिय राजा हुआ करती थी | अब सवाल यह आता है के यदि यह राजा थे तो इतनी बुरी हालत में कैसे आये |

मुग़ल काल :

इसके जवाब में दलित बुद्धिजीवी एवं लेखक श्री विजय सोनकर शास्त्री जी अपनी पुस्तक ‘हिन्दू चर्मकार जाती’ में लिखते हैं के आज जिन्हें हम चमार समझते हैं असल में वो चंवर वंश के क्षत्रिय थे तथा मुगलों के समय उनसे सबसे अधिक वीरता से लडे मगर एक बार जब वो युद्ध हार गए तब मुगलों ने इन्हें बेईज्ज़त करने के लिए कहा कि या तो इस्लाम कबूल करो, या फिर हमारी औरतों के हरम की गंदगी उठाओ तथा मरे हुए जानवरों की खाल उतारने का काम करो | इन शूरवीरो ने वो काम स्वीकार किया तथा इस्लाम स्वीकार नहीं किया | कालांतर में यह काम करते करते उनका यह हाल हो गया कि लोग उन्हें छूने से कतराने लगे | जब की असल में यह क्षत्रिय राजा थे यही हाल वाल्मीकि जाति तथा खटीक जाति के साथ भी हुआ | अंग्रेजों के समय में भी इनसे यह काम करवाया गया तथा इतिहास में अंग्रेजों ने इन अत्याचारों का पूरा इल्जाम बाकी जातियों पर लगा दिया के इन्होने तुमको लूटा |

ब्रिटिश काल :

अंग्रेजों ने पहले सेन्सस में बड़ी चतुराई से जितनी भी जातियों को लूटा था , उनके धंधे बर्बाद किये थे , जिनके संसाधन छीने थे तथा जिनका शोषण किया था | इन सभी को एस.सी./ एस.टी. में डाल दिया तथा जो अभी भी समृद्ध बच गए थे या  अंग्रेजों से लड़ रहे थे उन्हें जनरल में डाल दिया | इसके बाद पुस्तकों में यह लिखवा दिया के जनरल वालों ने बाकी सभी का सदियों से शोषण किया तथा इन्हें दबाया तथा इनसे बहुत सी चीजों में सहुलियते छीन कर आरक्षण की व्यवस्था करवा दी , इसी के साथ एस.सी./ एस.टी को यह बताना शुरू किया के जब तक हिन्दू धर्म में रहोगे तब तक गरीब और शोषित रहोगे अतः तुम इसाई बन जाओ | इस तरह अंग्रेजों ने एक तरफ तो फूट डालो राज करो नीति के तहत भारतियों को आपस में लड़ाया वहीँ दूसरी तरफ उनका मत परिवर्तन करवाके उन्हें इसाई भी बनाया | इसाई बनाने के पीछे की मंशा धार्मिक ना होकर पुर्णतः राजनैतिक थी , क्योंकि इसाई बनना मतलब पश्चिम की तरह कपडे, भाषा, खान पान तथा पश्चिम का अनुसरण करवाना था | यही चाल अमीर जनरल केटेगरी के बच्चो को कान्वेंट एजुकेशन देकर चली गयी | जिससे मानसिक रूप से इनके बच्चे भी पश्चिमी तथा नास्तिक हो गए |

आज़ादी के बाद :

आज़ादी के बाद भी चूँकि शिक्षा तंत्र मेकाले वाला ही चलता रहा अतः सभी वामपंथी बुद्धिजीवी उसी इतिहास को पढ़कर वही सब पढ़ाने में लग गए | शक्ति का केंद्र ब्रिटेन से अमेरिका पहुँच गया तो विश्वविध्यालय भी ऑक्सफ़ोर्ड की जगह कैलिफ़ोर्निया तथा हार्वर्ड हो गया | अब वहां से हिन्दू विरोधी रिसर्च करने के लिए फण्ड आने लगे जैसे भारत महिला विरोधी था , दलित विरोधी था , आदिवासी विरोधी था ऐसे शोध करने पर अवार्ड बंटने लगे तथा अंग्रेजी शिक्षा में पढ़े चाटुकार अंग्रेजों के तलवे चाटने लगे | इससे हुआ यह के हिन्दुओं के साहित्य में से एक एक बात को पकड़ कर कई किताबे , फिर उन पर पीएचडी , फिर उन्ही पर पेपर लिखे जाने लगे | यह सब बुद्धिजीवी वर्ग के मानसिक दिवालियेपन को दर्शाता है कि अपने ही देश के साहित्य के खिलाफ जे.एन.यू. , टाटा इंस्टिट्यूट, जाधवपुर, आदि विश्वविध्यालयो में कई शोध हुए तथा एक भ्रम जाल खड़ा कर दिया गया | इसमें से महिषासुर, आर्य द्रविड़, सीता का शोषण, द्रोपदी का शोषण, शम्भुक का शोषण , कर्ण-एकलव्य को दलित बताना आदि कई झूठ तथा मनघडंत बाते रची गयी | इससे समाज में एस.सी / एस.टी  और जनरल के बीच नफरत पैदा कर दी गयी | तथा धर्मान्तरण का खेल ओड़िसा , पूर्वोत्तर, बंगाल तथा तमिल नाडू , केरला आदि में तेजी से किया गया | आज के समय में यह नफरत इतनी बढ़ गयी है के दलित और ब्राह्मणों के बीच नफरत बढती ही जा रही है | जबकि किसी को यह नहीं पता के कौन दलित है और कौन ब्राह्मण ? क्योंकि यह कास्ट तो अंग्रेजो की बनायी हुई थी |

उपसंहार :

आज जब भारत इतना पढ़ लिख गया है तब युवाओं को यह बात समझनी चाहिए के वेदों के अनुसार वर्ण व्यवस्था कर्मो पर आधारित थी तथा उसे कास्ट के आधार पर अंग्रेजों ने करी | अंग्रेज इतने मूर्ख थे के कास्ट को हिंदी में क्या कहते हैं यह भी नहीं समझ सके क्योंकि यह जाति, वर्ण, कुल, गोत्र , वंश सभी को कास्ट समझ कर उल्टा सीधा लिख कर चले गए | अफ़सोस की बात यह थी के हमारे लोगों ने इस मान्यता को चुनौती देने की अपेक्षा मान लिया , जिससे समाज बंटता चला गया | मैंने यह लेख आसान भाषा में लोगों को समझाने के लिए लिखा है कि युवाओं को अब यह बात इन अंग्रेजी पढ़े लिखे प्रोफेसरों तथा वामपंथियों से पूछनी चाहिए कि क्यों हमें आपस में लड़ा रहे हो | तथा एस.सी./एस.टी के लोगों को खुलकर बोलना चाहिए के हम कोई शुद्र नहीं हैं हम भी उसी विशुद्ध कुल से आये हैं बस मुगलों और अंग्रेजो के कारण हमें इतने साल भुगतना पढ़ा | जनरल के लोगों को चाहिए के सभी वर्गों को गले लगायें अपने साथ बैठाए सभी साथ में भारत के मूल ग्रन्थ एवं इतिहास पढ़े तभी यह देश मानसिक गुलामी तथा बौद्द्धिक गुलामी से आज़ाद हो सकेगा | इसी के साथ धर्मान्तरण करने वाले लोगों के षड्यंत्र तथा दुष्प्रचार वाली किताबों से दोनों ही वर्गों को बचना चाहिए क्योंकि इन्ही के द्वारा गलत इतिहास रचकर देश को बांटने का प्रयास किया जा रहा है | अंत में मै इस निष्कर्ष पर पंहुचा हूँ के भारत कभी भी शुद्र विरोधी नहीं रहा बल्कि  किसी का भी विरोधी नहीं रहा क्योंकि भारत में तो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की संस्कृति रही है जिसमे इंसानों के साथ पशु, पक्षियों तथा पेड़ पौधों आदि के भी कल्याण की कल्पना की गयी है | अतः भारत की इस तरह बदनामी किसी एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत की जा रही है , भारतीयों को इसे समझ कर जवाब देने की कला सीखनी होगी |

-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, दुर्ग, (छ.ग)

No.9827198828

ग्रन्थ सन्दर्भ-सूची

1. भारत विखंडन – राजीव मल्होत्रा

2. ऋग्वेद

3. वाल्मीकि रामायण

4. महाभारत – गीता प्रेस – वेद व्यास

5. कल्चरल नेशनालिस्म एंड दलित – संजय पासवान

6. हिन्दू चर्मकार जाती 

7. हिन्दू खटीक जाती 

8. हिन्दू वाल्मिक जाती – विजय सोनकर शास्त्री ( अभी वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)

कोई टिप्पणी नहीं: