चाण्डाल योग को मात देता.....
एक महान ग्राहस्थ्य संत
(एक कुण्डली का आंशिक समिक्षा अवश्य पढ़ें )
मित्रों, मैंने कल ऐसी कुण्डली का अवलोकन किया जो ना केवल आश्चर्यजनक बल्कि ज्योतिषिय गणना के लिए कौतुहल का विषय है....रघुनन्दन (परिवर्तित नाम) नामक जातक की कुण्डली का अवलोकन किया तो पाया कि वह 'चाण्डाल योग' से प्रभावित है क्योंकि उसके जन्मांक के दशवें भाव में भाग्येश का गुरु एवं साथ में राहु स्थित है, प्रायः ऐसे जातकों कार्य क्षेत्र अथवा जीवन का अधिकतम समय झूठ, फरेब तथा कुसंगति से लवरेज एक कुख्यात व्यक्तित्त्व होना चाहिए जो हमारा ज्योतिष में फलित--सिद्धांत कहता है.....लेकिन इसके ठिक विपरित गुण उस रघुनन्दन के जन्मांक में देखा जो किसी आश्चर्य से कम नहीं है...मैंने देखा की 56 वर्ष की आयु में लगभग 38 वर्ष समाज की नजरों से काफी दूर अज्ञातावस्था में वृक्षारोपण करना, अपनी सारी जमीन जायदाद बेचकर निर्धन कन्याओं का कन्याओं का विधि विधान से विवाह कराना तथा स्वतः अपने हाथों से उनको कन्यादान करना इसके अलावा यथा संभव निःशक्त जनों को सशक्त बनाने के लिए वैज्ञानिक आधार पर खेती के गुर सिखाना तथा उसे व्यावसायीक बनाने की युक्ति देना आदि कार्य उनके जीवन का मकसद बन गया है, हां एक विषय दिलचस्प रहा कि उनके लग्न में स्वगृह का शनि और शुक्र भी स्थित हैं उनका विवाह भी हुआ किन्तु विवाह के 2 वर्ष बाद ही सर्पदंश से उनकी पत्नि का देहांत हो गया......उसके बाद वे चाण्डाल योग को मात देते हुए...किसी संप्रदाय व अखाड़ा के संत तो नहीं हैं परन्तु उच्च कोटि के किसी संत से कम भी नहीं....तो मित्रों, ऐसा सब कुछ इस लिए हुआ क्योंकि उनके चतुर्थ भाव में चन्द्र एवं पंचम भाव पूर्ण रुप से बुधादित्य योग से समृद्ध है....कुल मिलाकर वृक्षों के प्रति लगाव तथा चतुर्थ भाव का चन्द्र कर्मभाव को दृष्टिगत करते हुए उस जातक को विपरित लिंगी कन्याओं के प्रति मातृत्त्व ममत्त्व को दर्शाता है....कुल मिलाकर किसी भी जातक के जनमांक का विश्लेषण करते समय केवल किसी एक को देखकर निर्णायक फलादेश करना ज्योतिष के साथ नाइंसाफी होगा
- ज्यतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, शांतिनगर, भिलाई, 9827198828 http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/08/blog-post_39.html?m=1
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