वक्री भाग्येश बनाता है, मुकद्दर का सिकन्दर
-पं विनोद चौबे (ज्योतिषाचार्य)
ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे,09827198828,Bhilai,
नोटः हमारे किसी भी लेख को कापी करना दण्डनीय अपराध है ऐसा करने पर उचित कार्यवायी करने को मजबूर हो जाऊंगा। समाचार पत्र पत्रिकाएं हमसे अनुमती लेकर प्रकाशित कर सकते हैं...!.
उदाहरण 3 : मिथुन लग्न, श्री मोरारजी देसाई , जन्म दिनांक : 29.02.1896, जन्म समय : मध्याह्न 1.00 बजे, जन्म स्थान : बिलमोरिया, (20- डिग्री शेष भोग्य दशा- शुक्र : 2 वर्ष 3 माह 25 दिन
यह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री मोरारजी देसाई का जन्मचक्र है। इनके जीवन में शनि की महादशा 24.06.1955 से शुरू हुई थी। नवम्बर, 1956 में श्री देसाई केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में वित्तमंत्री बने और पूरी शनि की महादशा में ये मंत्रिमण्डल में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। कुण्डली में-शनि भाग्येश होकर पंचम भाव में उच्च और वक्री है।
उदाहरण 5 : सिंह लग्न , हर्षद मेहता (विख्यात शेयर दलाल)
जन्म दिनांक : 29.07.1954, जन्म समय : प्रात: लगभग 9.30 बजे , शेष भोग्य दशा- गुरू : 0 वर्ष 9 माह 13 दिन , यह जन्मचक्र विख्यात शेयर दलाल हर्षद मेहता है जिसने 1990-1994 के मध्य शेयर की दुनिया में तहलका मचा दिया था। इनके जीवन की केतू की महादशा 12.05.1991 से 21.05.1998 तक रही थी। मंगल केतू के नक्षत्र में है। अत: केतू की महादशा में मंगल का फल प्राप्त हुआ। केतू भाग्येश मंगल वक्री से दृष्ट भी है। ये केतू में मंगल के अन्तर में 13.11.1993 से 11.04.1994 तक शिखर पर थे। भाग्येश मंगल वक्री है और पंचम भाव में पंचमेश से दृष्ट है।
उदाहरण 6 : कन्या लग्न , किरण बेदी , जन्म दिनांक : 09.06.1949, जन्म समय : दोपहर 2.10 बजे , जन्म स्थान : अमृतसर शेष भोग्य दशा- शनि : 17 वर्ष 01 माह 25 दिन , यह भारतीय पुलिस सेवा की प्रथम महिला आई.पी.एस. अधिकारी श्रीमती किरण बेदी की जन्म कुण्डली है। इनके जीवन में शुक्र की महादशा 4.8.1990 से 3.8.2010 तक रहेगी। शुक्र भाग्येश है। यद्यपि वक्री नहीं है। किन्तु दशमेश वक्री बुध से भाव परिवर्तन कर योग निर्माण के साथ-साथ वक्री ग्रह का प्रभाव भी अपने में समाहित किये हुये है। इस शुक्र की महादशा में श्रीमती किरण बेदी तिहाड जेल का कायाकल्प कर विश्वस्तरीय ख्याति अर्जित की। इन्हें एशिया का मेग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अमेेरिका की नासा संस्थान में इन्हें प्रतिनियुक्ति पर बुलाया गया। इन्होंने अन्य अनेक सामाजिक सेवा के कार्य किये और समाज व देश की सेवा कर लोगों का दिल जीत लिया है।
उदाहरण 7 : तुला लग्न ,सदाबहार फिल्म अभिनेता देवानन्द ,
जन्म दिनांक : 26.03.1923, जन्म समय : प्रात: 9.30 बजे, जन्म स्थान : गुरूदासपुर (पंजाब) शेष भोग्य दशा- बुध : 10 वर्ष 8 माह 16 दिन, अभिनेता देवानन्द का जन्म भाग्येश बुध के नक्षत्र में होने के कारण वे जन्म से ही भाग्यशाली रहे हैं। चन्द्रमा और बुध में नक्षत्र परिवर्तन है। बुध वक्री और सूृर्य से अस्त है। इस कारण सूर्य और चन्द्रमा की महादशा में भाग्येश बुध का प्रभाव भी समाहित रहा था। 1961 से 1977 तक सूर्य और चन्द्रमा की महादशा रही। यह वह समय था जब देवानन्द, दिलीप कुमार और राजकपूर की तिकड़ी फिल्मी दुनिया में छायी हुई थी। जन्मकुण्डली में,-भाग्येश बुध वक्री है। चन्द्रमा से नक्षत्र परिवर्तन कर धर्म-कर्माधिपति का योग निर्माण कर रहा है। इसी काल में देवानंन्द की फिल्में हम दोनों, गाईड आदि पर्दे पर आई थी।
उदाहरण 8 : मकर लग्न, राहुल माली, जन्म दिनांक : 13.06.1981, जन्म समय : रात्रि 9.38 बजे, जन्म स्थान : डंूगरपुर (राज.) शेष भोग्य दशा-राहू : 6 वर्ष 2 माह 6 दिन , यह एक एन.आर.आई. युवक की जन्मकुण्डली है। शनि में बुध के अन्तर में इनको इन्टरनेशनल बिजनेस मैनेजमेंट की डिग्री, दक्षिण अफ्रिका में अच्छी नौकरी, विवाह आदि के श्रेष्ठ भाग्यवद्र्धक फल प्राप्त हुऐ थे। कुण्डली मेें,-शनि लग्नेश होकर भाग्य स्थान में स्थित है और बुध वक्री होकर शुक्र के साथ योग निर्माण करता हुआ षष्ठम भावस्थ है।
उदाहरण 9 : कुंभ लग्न, के.एल.सहगल, जन्म दिनांक : 11.04.1905, जन्म समय : प्रात: 4.30 बजे, जन्म स्थान : जालन्धर ( पंजाब) शेष भोग्य दशा- मंगल : 01 वर्ष सहगल जी की कुण्डली में भाग्येश शुक्र वक्री होकर गुरू और बुध के साथ तृतीय भावस्थ होकर भाग्य स्थान पर पूर्ण दृष्टि डाल रहा है। शुक्र, गुरू और बुध तीनों शुक्र के ही नक्षत्र में मात्र सात अंशो के क्षेत्र में स्थित हैं। यह एक श्रेष्ठ कलानिधि योग है। गुरू की महादशा 1924 से 1940 तक का समय सहगल के जीवन का स्वर्णिम काल रहा था। उस समय इनकी आवाज के जादू ने इन्हें अमर कर दिया है। गुरू की शुक्र के वक्रत्व और कारकत्व का बल भी गुरू को मिला था। गुरू द्वितियेश एवं बुध वाणी का नैसर्गिक कारक होकर गायकी की दिव्यता प्रदान करने वाले हुये।
उदाहरण 10 : मीन लग्न , अभिनेता आमीर खान, जन्म दिनांक : 14.03.1967, जन्म समय : प्रात : 8.00 , जन्म स्थान : मुम्बई , शेष भोग्य दशा- केतु : 6 वर्ष 5 माह 9 दिन , अभिनेता आमिर खान के जीवन में चन्द्रमा की महादशा 23.8.1999 से शुरू हुई थी। चन्द्रमा में राहू के अन्तर में 2002 में लगान प्रदर्शित हुई। लगान बॉक्स आफिस पर हिट हुई और इसे आस्कर के लिए भेजा गया था। लगान ने आमिर खान को फिल्म जगत में शिखर पर ला दिया था। भाग्येश मंगल वक्री है और राहू के नक्षत्र में है। अत: राहू मंगल को फल देने वाला है।
इस कारण चन्द्रमा की महादशा में राहू के अन्तर में आमीर खान को विश्वस्तरीय ख्याति मिली। मंगल की महादशा 22.8.2009 से शुरू हुई है। आने वाले समय में मंगल की महादशा के सात वर्ष आमीर खान फिल्म जगत में ध्रुव तारे के समान चमक उठा पिपली लाईव में बेहतरीन सफलता मिली और आस्कर की भी पूरी उम्मीद है।
सारांश:-पूर्व विवरण में वक्री भाग्येश के प्रभाव को स्पष्ट करने के लिए हमने उदाहरण स्वरूप मेष से तुला लग्र और मकर से मीन लग्र के जातको की एक-एक कुण्डली अर्थात कुल 10 की विवेचना प्रस्तुत की है। वृच्श्रिक और धनु लग्र की कुण्डलियों में भाग्येश क्रमश: चन्द्रमा और सूर्य होते हैं, जो कभी वक्री नहीं होते हैं। इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि जन्मकुण्डली मेें भाग्येश वक्री हो तो सम्बन्धित जातक सफलता के शिखर पर पहुँचता है। भाग्येश की महादशा-अन्तर्दशा में प्राप्त होते हैं। भाग्येश से स्थान परिवर्तन करने वाले, योग निर्माण करने वाले, जिस नक्षत्र में भाग्येश स्थित है उसका स्वामी ग्रह भी भाग्येश के समान ही श्रेष्ठ फल प्रदान करता है। अत: विद्वानों को फलित के दौरान कुण्डली के इस पक्ष को ध्यान में रखना चाहिये।
नोटः हमारे किसी भी लेख को कापी करना दण्डनीय अपराध है ऐसा करने पर उचित कार्यवायी करने को मजबूर हो जाऊंगा। समाचार पत्र पत्रिकाएं हमसे अनुमती लेकर प्रकाशित कर सकते हैं...!.
-पं विनोद चौबे (ज्योतिषाचार्य)
भाग्य, किस्मत, मुकद्दर, ये सभी समानअर्थी शब्द हैं। भाग्य शब्द भगवान से निकला हुआ है। पहले भाग्यशाली व्यक्ति को भगवान अथवा भाग्यवान कहा जाता था। भागवान का अर्थ है जिस पर भगवान की कृपा है। यही भागवान कालान्तर में भाग्यवान में परिवर्तित हो गया अर्थात् भाग्य वाला व्यक्ति भाग्यवान माना गया । भाग्य अर्थात् ईश्वर की कृपा को प्राप्त करने के लिये हम भारतवासी व्रत, पूजा, प्रार्थना आदि अनेक विधियां अपनाते हैं। गीता में श्रीकृष्ण ने पूर्वजन्मों के कर्मो के प्रतिफल को ही इस जन्म का भाग्य कहा है। जन्मकुण्डली के बारह भावों में नवम भाव को भाग्य स्थान का नाम दिया गया है। यदि किसी जातक का नवम भाव, उसका स्वामी बली हो तो वह श्रेष्ठ भाग्य का प्रतिफल उस भाव के स्वामी की दशा-अन्तर्दशा में भोगता है। वक्री ग्रह को विशेष बली माना गया है। यदि कुण्डली के नवम भाव का स्वामी वक्री हो तो वह जातक तेजी से उन्नती कर जीवन में सफलता की ऊँचाइयों को स्पर्श करता है। ऐसे जातक को हम बोलचाल की भाषा में कहते हैं- मुकद्दर का सिकन्दर। इस कथन को और स्पष्ट करने के लिये दस विशिष्ट व्यक्तियों की जन्मकुण्डलियों का अध्ययन करेंगे, जो इस प्रकार हैं-
ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे,09827198828,Bhilai,
नोटः हमारे किसी भी लेख को कापी करना दण्डनीय अपराध है ऐसा करने पर उचित कार्यवायी करने को मजबूर हो जाऊंगा। समाचार पत्र पत्रिकाएं हमसे अनुमती लेकर प्रकाशित कर सकते हैं...!.
- उदाहरण 1 मेष लग्न , श्री सुभाषचन्द्र बोस , जन्म दिनांक : 23.01.1897 , जन्म समय : मध्याह्न 12.00 के लगभग , शेष भोग्य दशा, सूर्य 0 वर्ष 4 माह 15 दिन उपरोक्त जन्मचक्र श्री सुभाष बोस का है। श्री बी.बी. रमन ने इसका जन्म लग्र मेष निर्धारित किया था। भाग्येश गुरू वक्री होकर पंचम भावस्थ है। श्री सुभाषा बोस के जीवन में गुरू की महादशा 8.6.1934 से शुरू हुई थी । गुरू-बुध-1938 में श्री बोस गंाधीजी के विरोध के बावजूद उनके द्वारा समर्थित उम्मीदवार को हराकर कांग्रेस अध्यक्ष बने थे। गुरू-शुक्र में गुप्त रूप से पलायन कर विदेश चले गये। हिटलर से मिले और विवाह किया। इस प्रकार वक्री भाग्येश ने इन्हें श्रेष्ठ उत्थान प्रदान किया ।
- उदाहरण 2 वृष लग्न श्यामा प्रसाद मुखर्जी , शेष भोग्य दशा-गुरू : 14 वर्ष 0 माह 24 दिन
उदाहरण 3 : मिथुन लग्न, श्री मोरारजी देसाई , जन्म दिनांक : 29.02.1896, जन्म समय : मध्याह्न 1.00 बजे, जन्म स्थान : बिलमोरिया, (20- डिग्री शेष भोग्य दशा- शुक्र : 2 वर्ष 3 माह 25 दिन
यह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री मोरारजी देसाई का जन्मचक्र है। इनके जीवन में शनि की महादशा 24.06.1955 से शुरू हुई थी। नवम्बर, 1956 में श्री देसाई केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में वित्तमंत्री बने और पूरी शनि की महादशा में ये मंत्रिमण्डल में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। कुण्डली में-शनि भाग्येश होकर पंचम भाव में उच्च और वक्री है।
- उदाहरण 4 : कर्क लग्न श्रीमती इन्दिरा गांधी,
उदाहरण 5 : सिंह लग्न , हर्षद मेहता (विख्यात शेयर दलाल)
जन्म दिनांक : 29.07.1954, जन्म समय : प्रात: लगभग 9.30 बजे , शेष भोग्य दशा- गुरू : 0 वर्ष 9 माह 13 दिन , यह जन्मचक्र विख्यात शेयर दलाल हर्षद मेहता है जिसने 1990-1994 के मध्य शेयर की दुनिया में तहलका मचा दिया था। इनके जीवन की केतू की महादशा 12.05.1991 से 21.05.1998 तक रही थी। मंगल केतू के नक्षत्र में है। अत: केतू की महादशा में मंगल का फल प्राप्त हुआ। केतू भाग्येश मंगल वक्री से दृष्ट भी है। ये केतू में मंगल के अन्तर में 13.11.1993 से 11.04.1994 तक शिखर पर थे। भाग्येश मंगल वक्री है और पंचम भाव में पंचमेश से दृष्ट है।
उदाहरण 6 : कन्या लग्न , किरण बेदी , जन्म दिनांक : 09.06.1949, जन्म समय : दोपहर 2.10 बजे , जन्म स्थान : अमृतसर शेष भोग्य दशा- शनि : 17 वर्ष 01 माह 25 दिन , यह भारतीय पुलिस सेवा की प्रथम महिला आई.पी.एस. अधिकारी श्रीमती किरण बेदी की जन्म कुण्डली है। इनके जीवन में शुक्र की महादशा 4.8.1990 से 3.8.2010 तक रहेगी। शुक्र भाग्येश है। यद्यपि वक्री नहीं है। किन्तु दशमेश वक्री बुध से भाव परिवर्तन कर योग निर्माण के साथ-साथ वक्री ग्रह का प्रभाव भी अपने में समाहित किये हुये है। इस शुक्र की महादशा में श्रीमती किरण बेदी तिहाड जेल का कायाकल्प कर विश्वस्तरीय ख्याति अर्जित की। इन्हें एशिया का मेग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अमेेरिका की नासा संस्थान में इन्हें प्रतिनियुक्ति पर बुलाया गया। इन्होंने अन्य अनेक सामाजिक सेवा के कार्य किये और समाज व देश की सेवा कर लोगों का दिल जीत लिया है।
उदाहरण 7 : तुला लग्न ,सदाबहार फिल्म अभिनेता देवानन्द ,
जन्म दिनांक : 26.03.1923, जन्म समय : प्रात: 9.30 बजे, जन्म स्थान : गुरूदासपुर (पंजाब) शेष भोग्य दशा- बुध : 10 वर्ष 8 माह 16 दिन, अभिनेता देवानन्द का जन्म भाग्येश बुध के नक्षत्र में होने के कारण वे जन्म से ही भाग्यशाली रहे हैं। चन्द्रमा और बुध में नक्षत्र परिवर्तन है। बुध वक्री और सूृर्य से अस्त है। इस कारण सूर्य और चन्द्रमा की महादशा में भाग्येश बुध का प्रभाव भी समाहित रहा था। 1961 से 1977 तक सूर्य और चन्द्रमा की महादशा रही। यह वह समय था जब देवानन्द, दिलीप कुमार और राजकपूर की तिकड़ी फिल्मी दुनिया में छायी हुई थी। जन्मकुण्डली में,-भाग्येश बुध वक्री है। चन्द्रमा से नक्षत्र परिवर्तन कर धर्म-कर्माधिपति का योग निर्माण कर रहा है। इसी काल में देवानंन्द की फिल्में हम दोनों, गाईड आदि पर्दे पर आई थी।
उदाहरण 8 : मकर लग्न, राहुल माली, जन्म दिनांक : 13.06.1981, जन्म समय : रात्रि 9.38 बजे, जन्म स्थान : डंूगरपुर (राज.) शेष भोग्य दशा-राहू : 6 वर्ष 2 माह 6 दिन , यह एक एन.आर.आई. युवक की जन्मकुण्डली है। शनि में बुध के अन्तर में इनको इन्टरनेशनल बिजनेस मैनेजमेंट की डिग्री, दक्षिण अफ्रिका में अच्छी नौकरी, विवाह आदि के श्रेष्ठ भाग्यवद्र्धक फल प्राप्त हुऐ थे। कुण्डली मेें,-शनि लग्नेश होकर भाग्य स्थान में स्थित है और बुध वक्री होकर शुक्र के साथ योग निर्माण करता हुआ षष्ठम भावस्थ है।
उदाहरण 9 : कुंभ लग्न, के.एल.सहगल, जन्म दिनांक : 11.04.1905, जन्म समय : प्रात: 4.30 बजे, जन्म स्थान : जालन्धर ( पंजाब) शेष भोग्य दशा- मंगल : 01 वर्ष सहगल जी की कुण्डली में भाग्येश शुक्र वक्री होकर गुरू और बुध के साथ तृतीय भावस्थ होकर भाग्य स्थान पर पूर्ण दृष्टि डाल रहा है। शुक्र, गुरू और बुध तीनों शुक्र के ही नक्षत्र में मात्र सात अंशो के क्षेत्र में स्थित हैं। यह एक श्रेष्ठ कलानिधि योग है। गुरू की महादशा 1924 से 1940 तक का समय सहगल के जीवन का स्वर्णिम काल रहा था। उस समय इनकी आवाज के जादू ने इन्हें अमर कर दिया है। गुरू की शुक्र के वक्रत्व और कारकत्व का बल भी गुरू को मिला था। गुरू द्वितियेश एवं बुध वाणी का नैसर्गिक कारक होकर गायकी की दिव्यता प्रदान करने वाले हुये।
उदाहरण 10 : मीन लग्न , अभिनेता आमीर खान, जन्म दिनांक : 14.03.1967, जन्म समय : प्रात : 8.00 , जन्म स्थान : मुम्बई , शेष भोग्य दशा- केतु : 6 वर्ष 5 माह 9 दिन , अभिनेता आमिर खान के जीवन में चन्द्रमा की महादशा 23.8.1999 से शुरू हुई थी। चन्द्रमा में राहू के अन्तर में 2002 में लगान प्रदर्शित हुई। लगान बॉक्स आफिस पर हिट हुई और इसे आस्कर के लिए भेजा गया था। लगान ने आमिर खान को फिल्म जगत में शिखर पर ला दिया था। भाग्येश मंगल वक्री है और राहू के नक्षत्र में है। अत: राहू मंगल को फल देने वाला है।
इस कारण चन्द्रमा की महादशा में राहू के अन्तर में आमीर खान को विश्वस्तरीय ख्याति मिली। मंगल की महादशा 22.8.2009 से शुरू हुई है। आने वाले समय में मंगल की महादशा के सात वर्ष आमीर खान फिल्म जगत में ध्रुव तारे के समान चमक उठा पिपली लाईव में बेहतरीन सफलता मिली और आस्कर की भी पूरी उम्मीद है।
सारांश:-पूर्व विवरण में वक्री भाग्येश के प्रभाव को स्पष्ट करने के लिए हमने उदाहरण स्वरूप मेष से तुला लग्र और मकर से मीन लग्र के जातको की एक-एक कुण्डली अर्थात कुल 10 की विवेचना प्रस्तुत की है। वृच्श्रिक और धनु लग्र की कुण्डलियों में भाग्येश क्रमश: चन्द्रमा और सूर्य होते हैं, जो कभी वक्री नहीं होते हैं। इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि जन्मकुण्डली मेें भाग्येश वक्री हो तो सम्बन्धित जातक सफलता के शिखर पर पहुँचता है। भाग्येश की महादशा-अन्तर्दशा में प्राप्त होते हैं। भाग्येश से स्थान परिवर्तन करने वाले, योग निर्माण करने वाले, जिस नक्षत्र में भाग्येश स्थित है उसका स्वामी ग्रह भी भाग्येश के समान ही श्रेष्ठ फल प्रदान करता है। अत: विद्वानों को फलित के दौरान कुण्डली के इस पक्ष को ध्यान में रखना चाहिये।
नोटः हमारे किसी भी लेख को कापी करना दण्डनीय अपराध है ऐसा करने पर उचित कार्यवायी करने को मजबूर हो जाऊंगा। समाचार पत्र पत्रिकाएं हमसे अनुमती लेकर प्रकाशित कर सकते हैं...!.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें