पाश्चात्य ज्योतिष और भारतीय ज्योतिष
ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे , 09827198828, भिलाई(छ.ग.)
भारतीय पद्धति निरयण के सिद्धांत को मानता है जबकि पाश्चात्य ज्योतिष सायन पर आधारित है। भारतीय ज्योतिष पद्धति में अदृष्ट फल का विचार अदृष्ट निरयण मेषादि ग्रहों या निरयण पद्धति और ग्रह-वेध, ग्रहण सहित दृष्ट फल का विचार दृष्ट सयन मेषादि ग्रहों के आधार पर होता है। वेदों में कर्म के आधार पर तीन प्रकार के फलों का वर्णन किया गया है इसे ही अदृष्ट फल कहा गया है। इन अदृष्ट फलों के विषय में पाश्चात्य ज्योतिष खामोश रहता है क्योंकि पाश्चात्य ज्योतिष में अदृष्ट फलों की परिकल्पना ही नहीं है। यहां दृष्ट फल का आंकलन सर्वेक्षण पद्धति के आधार पर होता है।
वेदों मे ज्योतिष के तीन स्कंध बताये गये हैं- सिद्धांत स्कन्ध, संहिता स्कन्ध और होरा स्कन्ध। व्यक्ति के जीवन पर ग्रहों का फल फल जानने के लिए जिस जन्म कुण्डली का निर्माण होता है उसका आधार होरा स्कन्ध है, यानी जन्म कुण्डली का निर्माण होरा स्कन्ध के आधार पर होता है। सिद्धांत स्कन्ध सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय काल के दौरान ग्रहों की स्थिति एवं काल गणना के काम आता है। संहिता स्कन्ध के आधार पर ग्रह, नक्षत्रों एवं आपदाओं, वास्तु विद्या, मुहूर्त, प्रश्न ज्योतिष के विषय में गणना किया जाता है।
भारतीय ज्योतिष की मान्यता के अनुसार व्यक्ति का जन्म और भाग्य का आधार कर्म होता है यानी भारतीय ज्योतिष कर्मफल और पुनर्जन्म को आधार मानता है। पाश्चात्य ज्योतिष में पुनर्जन्म और कर्मवाद की मान्यता नहीं होने से सभी प्रकार के फलों का विचार सायन पद्धति से होता है। सायन पद्धति और निरयन पद्धति में यह अंतर है कि जहां निरयन में कोई ग्रह किसी राशि से ७ अंश पर होता है वहीं सायन पद्धति में वही ग्रह उससे दूसरी राशि के १ अंश पर होता है।
मित्रों जरा भारतीय धर्मसाहित्य संविधान सूत्र ग्रंथ पर चर्चा की जाय की वास्तव में भारतीय ज्योतिष की तथ्यात्मकता क्या है मनुस्मृति में महर्षि मनु कहते हैं-वेदोऽखिलो धर्म मूलमयानी वेद ही सभी धर्मो के मूल हैं। वैदिक परंपरा के सभी ऋषियों से लेकर आधुनिक काल में स्वामी दयानंद, महर्षि अरविन्द आदि मनीषियोंने वेदों को ही सभी धर्मोका आधार माना है। सवाल उठता है वेद को ही सभी धर्मोका आधार ऋषियों ने क्यों माना? कलियुग में तो वेद के अलावा दूसरे तमाम ग्रंथ हैं, जिसे पढ कर अच्छा लगता है। लेकिन किन कारणों से वेदों को आज भी सर्वोपरि माना जाता है। इन कारणों को जानने से पहले वेदों के बारे में जानकारी आवश्यक है। वेद चार हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।इन चार वेदों में बीस हजार पांच सौ सोलह मंत्र हैं। वेदों को समझने के लिए छ:वेदांगों को समझना जरूरी है। ये छ:वेदांग हैं-शिक्षा, व्याकरण, कल्प, ज्योतिष, निरुक्त और छन्द। चारों वेद ईश्वरीय वाणी हैं, जो परम पवित्र चार ऋषियों के हृदय में आलोकित हुए थे। ये चार ऋषि थे-अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा।चारों वेदों में मनुष्य के कल्याण के लिए आवश्यक ज्ञान भर दिया गया। ऋग्वेद में ज्ञानकाण्ड,यजुर्वेद में कर्मकाण्ड, सामवेद के जरिए उपासना और अथर्ववेदके माध्यम से पूजन किया जाता है। मनुष्य की उम्र सौ वर्ष की मान कर शास्त्रकारों ने इसे चार भागों में बांट दिया। पहले का पच्चीस साल ब्रह्मचर्य ज्ञानार्जन के लिए, आगे का पच्चीस वर्ष गृहस्थ आश्रम में विभिन्न प्रकार के कर्त्तव्य पूरा करने के लिए, पच्चीस वर्ष वानप्रस्थ आश्रम उपासना व योगाभ्यास के लिए और अन्तिम पच्चीस साल परमात्मा की उपासना और मोक्ष के लिए। इस तरह चारों वेद मनुष्य के पूरे जीवन के लिए बेहद उपयोगी हैं। पूरे ब्रह्माण्ड में वेद परम पवित्र ईश्वरीय ग्रन्थ हैं। वेदों में जो ज्ञान हैं, दुनिया की किसी अन्य पुस्तक या धर्म ग्रन्थ में दुर्लभ है।
वेदों का ज्ञान मनुष्य मात्र के लिए है। वेदों में गुण-कर्म-स्वभाव के आधार पर समाज को चार वर्णो में बांटा गया है। जिस तरह से शरीर के सभी अंगों की उपयोगिता है, उसी तरह से समाज रूपी शरीर के ये चारों अंग अपने आप में उपयोगी और पूरक हैं। वेदों की सबसे बडी विशेषता यह है, इसकी वाणी आम बोल-चाल की भाषा कभी नहीं रही, इसलिए इसमें कोई क्षेपक नहीं हो सकती। वेदों में धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष प्राप्त करने के ज्ञान के अलावा समाज, विज्ञान, साहित्य, गृह निर्माण, उद्योग-धंधे, चिकित्सा, औषधि, गणित, शासन, सैन्य, सुरक्षा, शिक्षा, भाषा विज्ञान, भूतत्व,अग्नि, विमान, जल, वायु, वृष्टि, यजन और याज्ञिक पर्जन्य सहित अनगिनत तरह की विद्याएं दी गई हैं। वेदों की जो सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है, वह है इसका रहस्यवाद। परमात्मा के बारे में जिस तरह से एकमत होकर कुछ नहीं कहा जा सकता है, उसी तरह परमात्मा की वाणी होने की वजह से इसका कोई एक अर्थ नहीं निरूपित किया जा सकता है। इसलिए आज तक जितने भाष्यकारहुए हैं सबने इनके अलग-अलग अर्थ किए हैं, और सृष्टि में आगे भी वेदों के बारे में कोई यह दावा नहीं कर सकता कि वेद मंत्रों के बस यही अर्थ होंगे। एक बात जो सबसे अधिक ध्यान देने की है वेदों में जो लोग आधुनिक ज्ञान-विज्ञान ढूंढते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि वेदों की रचना महज किसी विशेष काल खण्ड को ध्यान में रख कर नहीं हुई, बल्कि जब तक यह सृष्टि चलती रहेगी तब तक वेद ज्ञान उपयोगी और ज्ञान-विज्ञान के सूत्र बताते रहेंगे। दरअसल वेद के मंत्रों में जो ज्ञान दिया गया है वह मनुष्य के विभिन्न आवश्यकताओं और उपयोगिताओंको ध्यान में रखकर दिया गया है। वेद के बारे में अक्सर यह सवाल उठाया जाता है कि आज जबकि मनुष्य ज्ञान-विज्ञान के बारे में काफी ऊंचाई तय कर चुका है, ऐसे में वेद किस तरह उपयोगी हैं? इसका एक सहज जवाब है-वेदों में जो जीवन के सूत्र हैं दुनिया के और किसी भी पुस्तक में नहीं हैं।
वेदों में जो मानवीय मूल्य हैं विश्व के और किसी भी पुस्तक में नहीं हैं। ये दो बातें ही दुनिया के किसी भी पुस्तक के बडे से बडे ज्ञान से भारी हैं।
ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे , 09827198828, भिलाई(छ.ग.)
भारतीय पद्धति निरयण के सिद्धांत को मानता है जबकि पाश्चात्य ज्योतिष सायन पर आधारित है। भारतीय ज्योतिष पद्धति में अदृष्ट फल का विचार अदृष्ट निरयण मेषादि ग्रहों या निरयण पद्धति और ग्रह-वेध, ग्रहण सहित दृष्ट फल का विचार दृष्ट सयन मेषादि ग्रहों के आधार पर होता है। वेदों में कर्म के आधार पर तीन प्रकार के फलों का वर्णन किया गया है इसे ही अदृष्ट फल कहा गया है। इन अदृष्ट फलों के विषय में पाश्चात्य ज्योतिष खामोश रहता है क्योंकि पाश्चात्य ज्योतिष में अदृष्ट फलों की परिकल्पना ही नहीं है। यहां दृष्ट फल का आंकलन सर्वेक्षण पद्धति के आधार पर होता है।
वेदों मे ज्योतिष के तीन स्कंध बताये गये हैं- सिद्धांत स्कन्ध, संहिता स्कन्ध और होरा स्कन्ध। व्यक्ति के जीवन पर ग्रहों का फल फल जानने के लिए जिस जन्म कुण्डली का निर्माण होता है उसका आधार होरा स्कन्ध है, यानी जन्म कुण्डली का निर्माण होरा स्कन्ध के आधार पर होता है। सिद्धांत स्कन्ध सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय काल के दौरान ग्रहों की स्थिति एवं काल गणना के काम आता है। संहिता स्कन्ध के आधार पर ग्रह, नक्षत्रों एवं आपदाओं, वास्तु विद्या, मुहूर्त, प्रश्न ज्योतिष के विषय में गणना किया जाता है।
भारतीय ज्योतिष की मान्यता के अनुसार व्यक्ति का जन्म और भाग्य का आधार कर्म होता है यानी भारतीय ज्योतिष कर्मफल और पुनर्जन्म को आधार मानता है। पाश्चात्य ज्योतिष में पुनर्जन्म और कर्मवाद की मान्यता नहीं होने से सभी प्रकार के फलों का विचार सायन पद्धति से होता है। सायन पद्धति और निरयन पद्धति में यह अंतर है कि जहां निरयन में कोई ग्रह किसी राशि से ७ अंश पर होता है वहीं सायन पद्धति में वही ग्रह उससे दूसरी राशि के १ अंश पर होता है।
मित्रों जरा भारतीय धर्मसाहित्य संविधान सूत्र ग्रंथ पर चर्चा की जाय की वास्तव में भारतीय ज्योतिष की तथ्यात्मकता क्या है मनुस्मृति में महर्षि मनु कहते हैं-वेदोऽखिलो धर्म मूलमयानी वेद ही सभी धर्मो के मूल हैं। वैदिक परंपरा के सभी ऋषियों से लेकर आधुनिक काल में स्वामी दयानंद, महर्षि अरविन्द आदि मनीषियोंने वेदों को ही सभी धर्मोका आधार माना है। सवाल उठता है वेद को ही सभी धर्मोका आधार ऋषियों ने क्यों माना? कलियुग में तो वेद के अलावा दूसरे तमाम ग्रंथ हैं, जिसे पढ कर अच्छा लगता है। लेकिन किन कारणों से वेदों को आज भी सर्वोपरि माना जाता है। इन कारणों को जानने से पहले वेदों के बारे में जानकारी आवश्यक है। वेद चार हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।इन चार वेदों में बीस हजार पांच सौ सोलह मंत्र हैं। वेदों को समझने के लिए छ:वेदांगों को समझना जरूरी है। ये छ:वेदांग हैं-शिक्षा, व्याकरण, कल्प, ज्योतिष, निरुक्त और छन्द। चारों वेद ईश्वरीय वाणी हैं, जो परम पवित्र चार ऋषियों के हृदय में आलोकित हुए थे। ये चार ऋषि थे-अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा।चारों वेदों में मनुष्य के कल्याण के लिए आवश्यक ज्ञान भर दिया गया। ऋग्वेद में ज्ञानकाण्ड,यजुर्वेद में कर्मकाण्ड, सामवेद के जरिए उपासना और अथर्ववेदके माध्यम से पूजन किया जाता है। मनुष्य की उम्र सौ वर्ष की मान कर शास्त्रकारों ने इसे चार भागों में बांट दिया। पहले का पच्चीस साल ब्रह्मचर्य ज्ञानार्जन के लिए, आगे का पच्चीस वर्ष गृहस्थ आश्रम में विभिन्न प्रकार के कर्त्तव्य पूरा करने के लिए, पच्चीस वर्ष वानप्रस्थ आश्रम उपासना व योगाभ्यास के लिए और अन्तिम पच्चीस साल परमात्मा की उपासना और मोक्ष के लिए। इस तरह चारों वेद मनुष्य के पूरे जीवन के लिए बेहद उपयोगी हैं। पूरे ब्रह्माण्ड में वेद परम पवित्र ईश्वरीय ग्रन्थ हैं। वेदों में जो ज्ञान हैं, दुनिया की किसी अन्य पुस्तक या धर्म ग्रन्थ में दुर्लभ है।
वेदों का ज्ञान मनुष्य मात्र के लिए है। वेदों में गुण-कर्म-स्वभाव के आधार पर समाज को चार वर्णो में बांटा गया है। जिस तरह से शरीर के सभी अंगों की उपयोगिता है, उसी तरह से समाज रूपी शरीर के ये चारों अंग अपने आप में उपयोगी और पूरक हैं। वेदों की सबसे बडी विशेषता यह है, इसकी वाणी आम बोल-चाल की भाषा कभी नहीं रही, इसलिए इसमें कोई क्षेपक नहीं हो सकती। वेदों में धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष प्राप्त करने के ज्ञान के अलावा समाज, विज्ञान, साहित्य, गृह निर्माण, उद्योग-धंधे, चिकित्सा, औषधि, गणित, शासन, सैन्य, सुरक्षा, शिक्षा, भाषा विज्ञान, भूतत्व,अग्नि, विमान, जल, वायु, वृष्टि, यजन और याज्ञिक पर्जन्य सहित अनगिनत तरह की विद्याएं दी गई हैं। वेदों की जो सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है, वह है इसका रहस्यवाद। परमात्मा के बारे में जिस तरह से एकमत होकर कुछ नहीं कहा जा सकता है, उसी तरह परमात्मा की वाणी होने की वजह से इसका कोई एक अर्थ नहीं निरूपित किया जा सकता है। इसलिए आज तक जितने भाष्यकारहुए हैं सबने इनके अलग-अलग अर्थ किए हैं, और सृष्टि में आगे भी वेदों के बारे में कोई यह दावा नहीं कर सकता कि वेद मंत्रों के बस यही अर्थ होंगे। एक बात जो सबसे अधिक ध्यान देने की है वेदों में जो लोग आधुनिक ज्ञान-विज्ञान ढूंढते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि वेदों की रचना महज किसी विशेष काल खण्ड को ध्यान में रख कर नहीं हुई, बल्कि जब तक यह सृष्टि चलती रहेगी तब तक वेद ज्ञान उपयोगी और ज्ञान-विज्ञान के सूत्र बताते रहेंगे। दरअसल वेद के मंत्रों में जो ज्ञान दिया गया है वह मनुष्य के विभिन्न आवश्यकताओं और उपयोगिताओंको ध्यान में रखकर दिया गया है। वेद के बारे में अक्सर यह सवाल उठाया जाता है कि आज जबकि मनुष्य ज्ञान-विज्ञान के बारे में काफी ऊंचाई तय कर चुका है, ऐसे में वेद किस तरह उपयोगी हैं? इसका एक सहज जवाब है-वेदों में जो जीवन के सूत्र हैं दुनिया के और किसी भी पुस्तक में नहीं हैं।
वेदों में जो मानवीय मूल्य हैं विश्व के और किसी भी पुस्तक में नहीं हैं। ये दो बातें ही दुनिया के किसी भी पुस्तक के बडे से बडे ज्ञान से भारी हैं।
ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे , 09827198828, भिलाई(छ.ग.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें