बुजुर्ग भार नहीं वरदान हैं
सामाजिक जीवन धाराओं में आज बुजुर्गों के प्रति नई पीढ़ी का नज़रिया बदल सा गया है। इसका मूल कारण पारिवारिक संस्कारों की कमी के साथ ही यह भी है कि आज का इंसान हर किसी को वस्तु समझने लगा है और जब व्यक्ति किसी को भी वस्तु समझने लगता है तब वह लाभ-हानि और भाव-ताव में माहिर हो जाता है।
आत्मघाती है स्वार्थकेन्द्रित सोच
आज अधिकतर लोगों की सोच इस प्रकार आत्मकेन्द्रित और संकीर्ण हो चली है कि वे जीवन की प्रत्येक घटना-दुर्घटना को अपने लिए फायदे और नुकसान की तराजू पर तौलते हैं। मूल भारतीय संस्कारों से दूर होते चले जाने और परिवेशीय प्रदूषणों से प्रभावित होकर वर्तमान पीढ़ी में इस प्रकार के दुर्भावों का व्यापक असर दिखाई देने लगा है।
संबंधों की सौदेबाजी गलत है
जीवन को अपनी ऐषणाओं की पूर्ति मात्र का माध्यम समझ लेने वाले ऐसे लोग संसार में रहते हुए भी पूरी जिन्दगी को सौदेबाज की तरह जीते हैं। इन लोगों के लिए माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी और पुत्र-पुत्रियां, नाते-रिश्तेदारों से लेकर परिचित तक सारे ही लाभ-हानि के गणित से जुड़े रहते हैं। ऐसे में ये लोग जीवन के गणित में दिखने में भले ही सफल हो जाएं मगर जीवन व्यवहार और कुल-परंपरा तथा वंश सूत्र की उदात्त गणित में इतने पिछड़े जाते हैं कि कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसे लोगों के लिए जीवन के अंतिम दिन बड़े बुरे रहते हैं जब इनके पास सोचने को तो बहुत कुछ होता है मगर करने को कुछ भी नहीं। यह विवशता इतनी व्यापक होती है कि ये पश्चाताप तक नहीं कर पाने को विवश रहते हैं और ऐसे इनका बुढ़ापा अभिशापों से घिर कर रह जाता है।
वृद्ध भार नहीं वरदान हैं
घर के बड़े-बुजुर्गों के प्रति आज जो रवैया नई पीढ़ी का देखने को मिल रहा है वह भारतीय इतिहास का सबसे घृणित और शर्मनाक पहलू बना हुआ है। वृद्धजनों से ही घर की शोभा है। इसीलिये कहा गया है -' न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा:।' पर आज वृद्धों के साथ जो व्यवहार उनके अपने लोग कर रहे हैं वह बेमानी है। वृद्धों की छाया समृद्धि का वट वृक्ष है जिसके तले जीवन निर्वाह के कई सुकून अपने आप प्राप्त होते रहते हैं।
कालसर्प दोष से बचाती है वृद्धों की सेवा
आज मनुष्य के भाग्य को उलट-पुलट करने वाले कालसर्प दोष का बोलबाला है। इसकी वजह ही यह है कि अपने पूर्वजों या घर के बड़े-बुजुर्गों की कहीं न कहीं हमने अवहेलना की है या निरादर किया है। जो बेटा या बेटी अपने माता-पिता के साथ अपमान करता है निश्चय ही उसकी संतति में कालसर्प दोष कुण्डली मारकर बैठ जाता है। आज ज्यादातर परिवारों में कालसर्प दोष का यही मूल कारण है। इसे अच्छी तरह समझने की जरूरत है। ग्रहों को अनुकूल बनाएं माता और पिता के सम्मान और आदर से जन्म कुण्डली के ग्रहों को भी अपने अनुकूल किया जा सकता है। कुण्डली में सूर्य और चन्द्र कितने ही खराब हों, माता-पिता की कृपा व सच्चा आशीर्वाद रहने पर ये ग्रह उनके जीते हुए कभी भी खराब फल नहीं दे पाते हैं। इसके उलट कुण्डली में सूर्य और चन्द्र कितने ही अच्छे हों, यदि माता-पिता या बुजुर्गों का निरादर होता है, अपमान होगा, उनके मन को पीड़ा पहुंचायी जाएगी तो ये ग्रह पूरी जिन्दगी खराब से खराब फल देंगे। इस मर्म को समझना होगा। इसी प्रकार गुरु के प्रति दुर्भावना और गुरु अथवा शिक्षक को दु:खी करने से जन्म कुण्डली में बैठा गुरु खराब फल देने लगता है जबकि इसके विपरीत गुरु की सच्चे मन से की गई सेवा कुण्डली में गुरु के प्रतिकूल प्रभाव को भी नष्ट करने का सामथ्र्य रखती है।
माता-पिता का निरादर करने वाले का दाना-पानी भी दूषित
जो संतान अपने माता और पिता तथा वृद्धजनों का निरादर करते हैं उनके घर का पानी पीना अथवा अन्न ग्रहण करना तक आफत लाने वाला है। ऐसे गुणहीन व्यक्ति के वहां जो खाना-पानी ग्रहण करता है उसकी जन्म कुण्डली के सूर्य-चन्द्र के साथ-साथ राहु-केतु और दूसरे ग्रह भी अनिष्ट प्रदान करते हैं। ऐसे व्यक्तियों के साथ रहने वाले लोगों के जीवन में परेशानियां हमेशा बनी रहती हैं तथा हर दिन कोई न कोई मुसीबत सामने आ ही जाती है।
संतानहीनता और अकालमृत्यु का भय
जो लोग अपने माता-पिता का निरादर करते हैं उन्हें किसी भी यज्ञ या अनुष्ठान का भी कोई अधिकार नहीं होता क्योंकि तमाम अनुष्ठानों के आरंभ में ''मातृ-पितृ चरणकमलेभ्यो नम:" आता है। ऐसे में जो व्यक्ति अपने मां-बाप को मन से सम्मान नहीं देता उसके सारे अनुष्ठान व्यर्थ रहते हैं और अधिकांश ऐसे लोगों को संतानहीनता और अकालमृत्यु का भय देखा गया है।
घोर पतन का परिणाम है
वृद्धाश्रम जिनके माता-पिता वृद्धाश्रम में रहते हैं, वे जितने दिन वृद्धाश्रम में रहेंगे उतने जन्मों तक उनकी संतति दु:खी रहेगी और नरकगामी होगी। वृद्धाश्रम की परिकल्पना ही वस्तुत: शर्मनाक है। भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में जो लोग वृद्धाश्रम को स्वीकारते हैं वे समाज और वंश के साथ धोखा करते हैं और उनके जीवन में आने वाली कई संततियों तक कालसर्प और पितृ दोष छाया रहता है। आज जो लोग अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम के हवाले कर देने की बात करते हैं, उनके पुत्र-पौत्र भी उनका यही हश्र करने वाले हैं, यह अभी से समझ लेना चाहिए क्योंकि कालचक्र का पहिया घूम-घूम कर उसी धुरी पर वापस आता रहता है।
बुजुर्गों की आय का उपयोग न करें
जिन परिवारों में बच्चे कमा रहे हैं उनमें बुजुर्ग माता या पिता की पेंशन या अन्य आय का उपयोग बच्चों को नहीं करना चाहिए। जो लोग स्वयं समर्थ होने के बावजूद घर-परिवार के बुजुर्गों की आय पर अधिकार जताते हैं उनके जीवन में बुजुर्गों के गुजरने के बाद लक्ष्मी वह घर सदा के लिए छोड़ देती है और इसकी बजाय दरिद्रता और कलह घर कर लेता है। बुजुर्गों की सम्पत्ति का अनधिकृत उपयोग करने वाली संतति के दाम्पत्य में भी बाधाएँ आती हैं। यह उन परिवारों में लागू नहीं होता जिनमें बुजुर्ग प्रसन्न मन से स्वेच्छापूर्वक बच्चों को भेंट देते हैं। घर के वृद्धजनों की इच्छा के विरूद्ध किए गए कार्यों से भी ईश्वर नाराज रहता है और ऐसे में बुजुर्गों का निरादर करने वाले व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली पूजा या उपासना का कोई फल प्राप्त नहीं होता। अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक बुजुर्ग के प्रति आदर और सम्मान दर्शाएं, इससे मिलने वाले आशीर्वादों से आपके जीवन में चार चाँद लगने लगते हैं। यह अच्छी तरह स्वीकार कर लेना चाहिए कि वृद्धजनों का सान्निध्य होने का अर्थ है ईश्वर की छाया का सुख।( (प्रैसवार्ता) से साभार जनहित में जारी.... मित्रों यह मेरा लेख नहीं है मैंने प्रेस वार्ता में प्रकाशित डॉ. दीपक आचार्य, महालक्ष्मी चौक, बाँसवाड़ा(राजस्थान)जी का लेख है , मै आप सभी के द्वारा भी प्रचार-प्रसार के नियति से संग्रह किया है..
सामाजिक जीवन धाराओं में आज बुजुर्गों के प्रति नई पीढ़ी का नज़रिया बदल सा गया है। इसका मूल कारण पारिवारिक संस्कारों की कमी के साथ ही यह भी है कि आज का इंसान हर किसी को वस्तु समझने लगा है और जब व्यक्ति किसी को भी वस्तु समझने लगता है तब वह लाभ-हानि और भाव-ताव में माहिर हो जाता है।
आत्मघाती है स्वार्थकेन्द्रित सोच
आज अधिकतर लोगों की सोच इस प्रकार आत्मकेन्द्रित और संकीर्ण हो चली है कि वे जीवन की प्रत्येक घटना-दुर्घटना को अपने लिए फायदे और नुकसान की तराजू पर तौलते हैं। मूल भारतीय संस्कारों से दूर होते चले जाने और परिवेशीय प्रदूषणों से प्रभावित होकर वर्तमान पीढ़ी में इस प्रकार के दुर्भावों का व्यापक असर दिखाई देने लगा है।
संबंधों की सौदेबाजी गलत है
जीवन को अपनी ऐषणाओं की पूर्ति मात्र का माध्यम समझ लेने वाले ऐसे लोग संसार में रहते हुए भी पूरी जिन्दगी को सौदेबाज की तरह जीते हैं। इन लोगों के लिए माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी और पुत्र-पुत्रियां, नाते-रिश्तेदारों से लेकर परिचित तक सारे ही लाभ-हानि के गणित से जुड़े रहते हैं। ऐसे में ये लोग जीवन के गणित में दिखने में भले ही सफल हो जाएं मगर जीवन व्यवहार और कुल-परंपरा तथा वंश सूत्र की उदात्त गणित में इतने पिछड़े जाते हैं कि कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसे लोगों के लिए जीवन के अंतिम दिन बड़े बुरे रहते हैं जब इनके पास सोचने को तो बहुत कुछ होता है मगर करने को कुछ भी नहीं। यह विवशता इतनी व्यापक होती है कि ये पश्चाताप तक नहीं कर पाने को विवश रहते हैं और ऐसे इनका बुढ़ापा अभिशापों से घिर कर रह जाता है।
वृद्ध भार नहीं वरदान हैं
घर के बड़े-बुजुर्गों के प्रति आज जो रवैया नई पीढ़ी का देखने को मिल रहा है वह भारतीय इतिहास का सबसे घृणित और शर्मनाक पहलू बना हुआ है। वृद्धजनों से ही घर की शोभा है। इसीलिये कहा गया है -' न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा:।' पर आज वृद्धों के साथ जो व्यवहार उनके अपने लोग कर रहे हैं वह बेमानी है। वृद्धों की छाया समृद्धि का वट वृक्ष है जिसके तले जीवन निर्वाह के कई सुकून अपने आप प्राप्त होते रहते हैं।
कालसर्प दोष से बचाती है वृद्धों की सेवा
आज मनुष्य के भाग्य को उलट-पुलट करने वाले कालसर्प दोष का बोलबाला है। इसकी वजह ही यह है कि अपने पूर्वजों या घर के बड़े-बुजुर्गों की कहीं न कहीं हमने अवहेलना की है या निरादर किया है। जो बेटा या बेटी अपने माता-पिता के साथ अपमान करता है निश्चय ही उसकी संतति में कालसर्प दोष कुण्डली मारकर बैठ जाता है। आज ज्यादातर परिवारों में कालसर्प दोष का यही मूल कारण है। इसे अच्छी तरह समझने की जरूरत है। ग्रहों को अनुकूल बनाएं माता और पिता के सम्मान और आदर से जन्म कुण्डली के ग्रहों को भी अपने अनुकूल किया जा सकता है। कुण्डली में सूर्य और चन्द्र कितने ही खराब हों, माता-पिता की कृपा व सच्चा आशीर्वाद रहने पर ये ग्रह उनके जीते हुए कभी भी खराब फल नहीं दे पाते हैं। इसके उलट कुण्डली में सूर्य और चन्द्र कितने ही अच्छे हों, यदि माता-पिता या बुजुर्गों का निरादर होता है, अपमान होगा, उनके मन को पीड़ा पहुंचायी जाएगी तो ये ग्रह पूरी जिन्दगी खराब से खराब फल देंगे। इस मर्म को समझना होगा। इसी प्रकार गुरु के प्रति दुर्भावना और गुरु अथवा शिक्षक को दु:खी करने से जन्म कुण्डली में बैठा गुरु खराब फल देने लगता है जबकि इसके विपरीत गुरु की सच्चे मन से की गई सेवा कुण्डली में गुरु के प्रतिकूल प्रभाव को भी नष्ट करने का सामथ्र्य रखती है।
माता-पिता का निरादर करने वाले का दाना-पानी भी दूषित
जो संतान अपने माता और पिता तथा वृद्धजनों का निरादर करते हैं उनके घर का पानी पीना अथवा अन्न ग्रहण करना तक आफत लाने वाला है। ऐसे गुणहीन व्यक्ति के वहां जो खाना-पानी ग्रहण करता है उसकी जन्म कुण्डली के सूर्य-चन्द्र के साथ-साथ राहु-केतु और दूसरे ग्रह भी अनिष्ट प्रदान करते हैं। ऐसे व्यक्तियों के साथ रहने वाले लोगों के जीवन में परेशानियां हमेशा बनी रहती हैं तथा हर दिन कोई न कोई मुसीबत सामने आ ही जाती है।
संतानहीनता और अकालमृत्यु का भय
जो लोग अपने माता-पिता का निरादर करते हैं उन्हें किसी भी यज्ञ या अनुष्ठान का भी कोई अधिकार नहीं होता क्योंकि तमाम अनुष्ठानों के आरंभ में ''मातृ-पितृ चरणकमलेभ्यो नम:" आता है। ऐसे में जो व्यक्ति अपने मां-बाप को मन से सम्मान नहीं देता उसके सारे अनुष्ठान व्यर्थ रहते हैं और अधिकांश ऐसे लोगों को संतानहीनता और अकालमृत्यु का भय देखा गया है।
घोर पतन का परिणाम है
वृद्धाश्रम जिनके माता-पिता वृद्धाश्रम में रहते हैं, वे जितने दिन वृद्धाश्रम में रहेंगे उतने जन्मों तक उनकी संतति दु:खी रहेगी और नरकगामी होगी। वृद्धाश्रम की परिकल्पना ही वस्तुत: शर्मनाक है। भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में जो लोग वृद्धाश्रम को स्वीकारते हैं वे समाज और वंश के साथ धोखा करते हैं और उनके जीवन में आने वाली कई संततियों तक कालसर्प और पितृ दोष छाया रहता है। आज जो लोग अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम के हवाले कर देने की बात करते हैं, उनके पुत्र-पौत्र भी उनका यही हश्र करने वाले हैं, यह अभी से समझ लेना चाहिए क्योंकि कालचक्र का पहिया घूम-घूम कर उसी धुरी पर वापस आता रहता है।
बुजुर्गों की आय का उपयोग न करें
जिन परिवारों में बच्चे कमा रहे हैं उनमें बुजुर्ग माता या पिता की पेंशन या अन्य आय का उपयोग बच्चों को नहीं करना चाहिए। जो लोग स्वयं समर्थ होने के बावजूद घर-परिवार के बुजुर्गों की आय पर अधिकार जताते हैं उनके जीवन में बुजुर्गों के गुजरने के बाद लक्ष्मी वह घर सदा के लिए छोड़ देती है और इसकी बजाय दरिद्रता और कलह घर कर लेता है। बुजुर्गों की सम्पत्ति का अनधिकृत उपयोग करने वाली संतति के दाम्पत्य में भी बाधाएँ आती हैं। यह उन परिवारों में लागू नहीं होता जिनमें बुजुर्ग प्रसन्न मन से स्वेच्छापूर्वक बच्चों को भेंट देते हैं। घर के वृद्धजनों की इच्छा के विरूद्ध किए गए कार्यों से भी ईश्वर नाराज रहता है और ऐसे में बुजुर्गों का निरादर करने वाले व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली पूजा या उपासना का कोई फल प्राप्त नहीं होता। अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक बुजुर्ग के प्रति आदर और सम्मान दर्शाएं, इससे मिलने वाले आशीर्वादों से आपके जीवन में चार चाँद लगने लगते हैं। यह अच्छी तरह स्वीकार कर लेना चाहिए कि वृद्धजनों का सान्निध्य होने का अर्थ है ईश्वर की छाया का सुख।( (प्रैसवार्ता) से साभार जनहित में जारी.... मित्रों यह मेरा लेख नहीं है मैंने प्रेस वार्ता में प्रकाशित डॉ. दीपक आचार्य, महालक्ष्मी चौक, बाँसवाड़ा(राजस्थान)जी का लेख है , मै आप सभी के द्वारा भी प्रचार-प्रसार के नियति से संग्रह किया है..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें