ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

ज्योतिर्वेद से संबंधित एक रोचक जानकारी

सुप्रभात मित्रों आईए शुरूआत करें आज के सुप्रभात की, नमन करें खुशहाल आगाज की, वरण करें प्रसन्नानम् नीलकंठम् दयाल की .....
कराग्रे वसते लक्ष्मी : l कर मध्ये सरस्वती l
कर मूले भवेद गोवरी l प्रभाते कर दर्शनम l l १

समुद्रव् सने देवी l पर्व तस्त नंमडले
... विष्णु पत्नि l नमस्थुभ्यम पाद स्पर्श क्षमस्व में l l २

ब्रह्मा मुरारी स्त्रिपुरांत कारी l
भानु शशशी भूमि सुतो बुद्ध्श्च l l
गुरुश्च शुक्र शानिराहू केतव : l
कुर्वतु सर्वे मम सुप्रभातम l l ३

सनत्कुमार ससनक ससनन्दन : l
सनात्नो व्यासु रिपिंगलोच l
सप्स्वरा ससप्तर सात लानी l
कुर्वतु सर्वे मम सुप्रभातम l l ४

सप्तार्ण वा ससप्त कुला चलाश्च l
सप्तर्ष यो द्दीपवनानी सप्त l
भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त l
कुर्वतु सर्वे मम सुप्रभातम l l ५

पृत्वी संगधा सर सा स्त्थाप : l
सप्र्शीच वायु जर्वलन : सतेजा l
नभ ससशब्द महता सहैव l
कुर्वतु सर्वे मम सुप्रभातम l l ६
थोड़ा आ जल्दी में हुं  आपके लिए ज्योतिर्वेद से संबंधित एक रोचक जानकारी देना चाहता हुं..
वेदों में देवताओं की स्तुति हेतु अनेक ऋचाएँ पढ़ने के लिए मिलती हैं। ऋग् वेद में सूर्य की स्तुति के लिए एक ऋचा हैः

तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कुदसि सूर्य। विश्वमाभासि रोचनम्

इस ऋचा को पढ़कर ...सायनाचार्य (c.1300's) ने टिप्पणी के रूप में सूर्य की एक और स्तुति लिखी, जो इस प्रकार हैः

तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते॥

यहाँ पर "द्वे द्वे शते द्वे" का अर्थ है "2202" और "एकेन निमिषार्धेन" का अर्थ "आधा निमिष" है। अर्थात सूर्य की स्तुति करते हुए यह कहा गया है कि सूर्य से चलने वाला प्रकाश आधा निमिष में 2202 योजन की यात्रा करता है।

आइए योजन और निमिष को आज प्रचलित इकाइयों में परिवर्तित करके देखें कि क्या परिणाम आता हैः

अब तक किए गए अध्ययन के अनुसार एक योजन 9 मील के तथा एक निमिष 16/75 याने कि 0.213333333333333 सेकंड के बराबर होता है।

2202 योजन = 19818 मील = 31893.979392 कि.मी.

आधा निमष = 0.106666666666666 सेकंड

अर्थात् सूर्य का प्रकाश 0.106666666666666 सेकंड में 19818 मील (31893.979392 कि.मी.) की यात्रा करता है।

याने कि प्रकाश की गति 185793.750000001 मील (299006.056800002) कि.मी. प्रति सेकंड है।

वर्तमान में प्रचलित प्रकाश की गति लगभग 186000 मील (3 x 10^8 मीटर) है जो कि सायनाचार्य के द्वारा बताई गई प्रकाश की गति से लगभग मेल खाती है।

आखिर सायनाचार्य ने ऋग वेद के उस ऋचा को पढ़कर टिप्पणी में प्रकाश की गति दर्शाने वाली सूर्य की स्तुति कैसे लिखी? कहीं ऋग वेद की वह ऋचा कोई कोड तो नहीं है जिसे सायनाचार्य ने डीकोड किया? ये पूरब वालो की दें है जो आज से सैकड़ो बर्ष पहले लिख दिया  था  समझे पश्चिमी सभ्यता बखान करने वाले ..

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