भाग्यशाली यंत्र देते हैं कर्म करने का संदेश, न कि भाग्यशाली बनाते हैं
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे , मोबा.नं.09827198828, भिलाई
मित्रों, प्राणी मात्र किसी ना किसी यंत्र में बंधा होता है यंत्र का तात्पर्य उपकरण से है जिस प्रकार कई यंत्रों को मिलाकर अथवा जोड़कर एक टू-व्हिलर गाड़ी बनायी जाती है उसी प्रकार यह सृष्टी भी कई उपकरणों अर्थात ईश्वरानुभूतियों पर आश्रीत है जिसके हम और आप एक अंशमात्र प्राणी हैं भारद्वाज मुनि कृत यंत्रणार्व ग्रन्थ के वैमानिक प्रकरण में दी गई मन्त्र, तंत्र और यंत्र की परिभाषा-
मंत्रज्ञा ब्राह्मणा: पूर्वे जलवाय्वादिस्तम्भने।
शक्तेरुत्पादनं चक्रुस्तन्त्रमिति गद्यते॥
दण्डैश्चचक्रैश्च दन्तैश्च सरणिभ्रमकादि भि:।
शक्तेस्तु वर्धकं यत्तच्चालकं यन्त्रमुच्यते॥
मानवी पाशवीशक्तिकार्य तन्त्रमिति स्मृतं - (यन्त्राणर्व)
इससे यह स्पष्ट हो जाता है की मानव जाति को यंत्र ही अपने में समाहित या यंत्रीत कर संचालित करता है जिसका संबंध सीधा इश्वर से है । मित्रों मैं यह कत्तई नहीं मानता कि यह यंत्र भाग्य को पलट देने में क्षमतावान हैं क्योंकि कर्तव्यपरायणता के वगैर कोई यंत्र-मंत्र-तंत्र काम नहीं करता हां, किन्तु इन यंत्रों के सान्निध्य में रहने से काम करने की क्षमता अवश्य बढ़ती है। तो आईए आपको हमारे पुरा वैज्ञानिक महर्षियों द्वारा प्रदत्त अलौकीक यंत्रों के बारे में बताता हुं.
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे , मोबा.नं.09827198828, भिलाई
मित्रों, प्राणी मात्र किसी ना किसी यंत्र में बंधा होता है यंत्र का तात्पर्य उपकरण से है जिस प्रकार कई यंत्रों को मिलाकर अथवा जोड़कर एक टू-व्हिलर गाड़ी बनायी जाती है उसी प्रकार यह सृष्टी भी कई उपकरणों अर्थात ईश्वरानुभूतियों पर आश्रीत है जिसके हम और आप एक अंशमात्र प्राणी हैं भारद्वाज मुनि कृत यंत्रणार्व ग्रन्थ के वैमानिक प्रकरण में दी गई मन्त्र, तंत्र और यंत्र की परिभाषा-
मंत्रज्ञा ब्राह्मणा: पूर्वे जलवाय्वादिस्तम्भने।
शक्तेरुत्पादनं चक्रुस्तन्त्रमिति गद्यते॥
दण्डैश्चचक्रैश्च दन्तैश्च सरणिभ्रमकादि भि:।
शक्तेस्तु वर्धकं यत्तच्चालकं यन्त्रमुच्यते॥
मानवी पाशवीशक्तिकार्य तन्त्रमिति स्मृतं - (यन्त्राणर्व)
इससे यह स्पष्ट हो जाता है की मानव जाति को यंत्र ही अपने में समाहित या यंत्रीत कर संचालित करता है जिसका संबंध सीधा इश्वर से है । मित्रों मैं यह कत्तई नहीं मानता कि यह यंत्र भाग्य को पलट देने में क्षमतावान हैं क्योंकि कर्तव्यपरायणता के वगैर कोई यंत्र-मंत्र-तंत्र काम नहीं करता हां, किन्तु इन यंत्रों के सान्निध्य में रहने से काम करने की क्षमता अवश्य बढ़ती है। तो आईए आपको हमारे पुरा वैज्ञानिक महर्षियों द्वारा प्रदत्त अलौकीक यंत्रों के बारे में बताता हुं.
श्री यंत्र
इस यंत्र को धन वृद्धि, धन प्राप्ति, कर्ज से सम्बन्धित धन पाने के लिए लोन इत्यादि प्राप्त होने के लिए लाटरी, सट्टा आदि द्वारा धन पाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। इस यंत्र की अचल प्रतिष्ठा होती है।
अनन्त ऐश्वर्य एवं लक्ष्मी प्राप्ति के मुमक्ष को चाहिए कि श्री यंत्र के सम्मुख श्री सूक्त का नृत्य पाठ करो पंचमेवा देवी को भोग लगायें तो शीघ्र ही इसका चमत्कार होता है।
लक्ष्मी प्राप्ति जब सभी उपाय निरर्थक साबित हो जायें तब श्री यंत्र के सम्मुख आदि शंकराचार्य निर्मित स्तोत्र का पाठ करें इस स्तोत्र के स्थान से असीमित धन लाभ हो सकता है।
यंत्र का उपयोग
इस यंत्र को व्यापार वृद्धि के लिए तिजोरी में रखा जाता है धान्य वृद्धि के लिए धान्य में रखा जाता है
इस यंत्र को वेलवृक्ष की छाया में उपासना करने से लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती है और अचल सम्पत्ति प्रदान करती हैं।
इस यंत्र को सम्मुख रखकर सूखे वेलपत्र घी में डुबोकर वेल की समिधा में आहूति डालने से मां भगवती शीघ्र ही प्रसन्न होती है एवं धन ऐश्वर्य प्राप्त होता है तथा जीवन भर लक्ष्मी के लिए दुखी नहीं होना पड़ता।
बीसा यंत्र
जिसके पास रहे यह बीसा। उसका क्या करे जगदीशा।।
बीसा यंत्र को अनेक परेशानियों से बचने के लिए एवं चोर भय, अग्नि भय झगड़ा, लड़ाई इत्यादि से बचने के लिए इसे बटुये में या पाॅकेट में रखा जाता है। इस यंत्र की चल प्रतिष्ठा होती है। बीसा यंत्र शक्ति का द्योतक माना जाता है यह यंत्र सभी प्रकार के जातक धारण करते हैं तथा उपासना करते हैं।
यंत्र का उपयोग
प्राचीन काल में तांत्रिक लोग एवं तंत्र से जुड़े वर्ग के लोग इस यंत्र का अत्यधिक उपयोग किया करते थे। बीसा यंत्र अनेक प्रकार के भंय को नष्ट करता है जैसे- चोर भंय, प्रेत भंय, शत्रु भय, रोग भय, दुर्घटना भय आदि।
बीसा यंत्र को सम्मुख रखकर शुभ मुहूर्त में हनुमान चालीसा का एक सौ आठ पाठ करने से बीमार मनुष्यों को बीमारी से छुटकारा मिलता है।
इस यंत्र के सम्मुख शक्ति का सावर मंत्र जप करने से मंत्र सिद्ध होता है और उसमें शक्ति जाग्रत होती है।
इस यंत्र को प्रतिदिन धूप दीप आदि से पूजन करके सिरहाने रखने से बुरे स्वप्न से छुटकारा मिलता है।
शुक्र यंत्र
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्र प्रतिकूल होने पर प्रत्येक कार्य में असफलता नजर आती है। ऐसी स्थिति में शुक्र यंत्र को चल या अचल प्रतिष्ठा करके धारण करने से अथवा पूजन करने से शुक्र का शीघ्र ही अनुकूल फल प्राप्त होने लगता है।
शुक्र यंत्र दो प्रकार के होते हैं। प्रथम नौग्रहों का एक ही यंत्र होता है द्वितीय नौग्रहों का अलग-अलग नौयंत्र होता है। प्रायः दोनों यंत्रों के एक जैसे ही कार्य एवं लाभ होते हैं
इस यंत्र को सम्मुख रखकर नौग्रहों की उपासना करने से सभी प्रकार के भयं नष्ट होते हैं शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है व्यापार आदि में सफलता मिलती है समाज उन्नति प्राप्त होती है तथा कार्यो किसी भी प्रकार की बांधा उत्पन्न नहीं होती है।
यंत्र का उपयोग
शुक्र देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिए।
महालक्ष्मी यंत्र
इस यंत्र को निरन्तर धन वृद्धि के लिए अधिक उपयोगी माना गया है। कम समय में ज्यादा धन वृद्धि के लिए यह यंत्र अत्यन्त उपयोगी है इस यंत्र की चल या अचल दोनों तरह से प्रतिष्ठा की जाती है।
महालक्ष्मी यंत्र अत्यन्त दुर्लभ परंतु लक्ष्मी प्राप्ति के लिए रामबाण प्रयोग है तथा अपने आप में अचूक, स्वयं सिद्ध, ऐश्वर्य प्रदान करने में सर्वथा समर्थ है। इस यंत्र का प्रयोग दरिद्रता का नाश करता है। यह स्वर्ण वर्षा करने वाला यंत्र कहा गया हैै। रंक को राजा बनाने की सामथ्र्य है इसमें। इसकी कृपा से गरीब व्यक्ति एकाएक धनोपार्जन करने लगता है।
यह अद्भुत स्तोत्र तुरंग फलदायनीय है परंतु इस स्तोत्र पाठ के सामने ’कनकधारा यंत्र’ होना चाहिए जिसकी प्राण-प्रतिष्ठा उतनी ही दुर्लभ व दुःसाध्य है जछिल प्रक्रिया के कारण बहुत कम लोग इसे सिद्ध कर पाते हैं। सिद्ध होने पर यह कनकधारा यंत्र व्यापार वृद्धि दारिद्रय नाश करने व ऐश्वर्य प्रदान करने में आश्चर्यजनक रूप से काम करता है।
दीपावली के शुभ अवसर पर सिंह लग्न में इस यंत्र को सम्मुख रखकर धूप दीप आदि द्वारा पूजन करने के पश्चात ऋग्वेद, का श्री सूक्त और कनक धारा को सम्पुटित करके सोलह पाठ करने से तथा अनेक प्रकार के उपचार से महालक्ष्मी का पूजन करने से माता लक्ष्मी वर्षपर्यंत उस स्थान में निवास करती हैं तथा अपने भक्ति गणों अनुग्रहीत करती हैं।
वशीकरण यंत्र
अपने से विपरीत कार्य करने वाले को प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष कार्य करने के लिए प्रेरित करने की क्रिया को वशीकरण कहते है। यह यंत्र स्त्री,पुरुष, वृद्ध बालक, राजा, मंत्री, सभी तरह के लोगों को आकर्षित करता है। और यंत्र धारी को वांछित सफलता प्रदान करता है।
अभिचार कर्म से अच्छा है कि शत्रु को वशीकृत कर लिया जावे। इससे प्रथम लाभ तो यह कि दुष्टजन में सुधार आएगा, द्वितीय यह कि कर्ता किसी दोष का शिकार भी नहीं होगा। यह मन्त्र भी भगवान वज्रांग अर्थात् हनुमान जी से सम्बन्धित है।
इस वशीकरण यं़त्र से साधक इस जगत में सर्वप्रिय लोकप्रिय हो जाता है वह जिस व्यक्ति से मिलता है वह उससे प्रभावित हुये विना नहीं रह सकता। वशीकरण यंत्र मुख्यतः माँ कामाख्या का ध्यान करते हुए एवं उन्हीं का मंत्र जप करते हुये इसे यंत्र को सिद्ध किया जाता है और उपयोग में लाया जाता है।
यंत्र का उपयोग
जब पति कुमार्गगामी हो जाए और उसके सुधार के सारे बाह्य प्रयास असफल हो जाएँ तो पत्नी को ऐसे प्रयोगों के माध्यम से पराँम्बा की शरण लेनी चाहिए।
इस यंत्र का प्रयोग समाज के किसी भी स्त्री, पुरुष पर किया जा सकता है जब पति-पत्नी के आपसी विवाद में सामान्जस कम हो जाये तो ऐसी स्थिति में इस यंत्र का उपयोग अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है।
चंद्र यंत्र
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द प्रतिकूल होने पर प्रत्येक कार्य में असफलता नजर आती है। ऐसी स्थिति में चन्द यंत्र को चल या अचल प्रतिष्ठा करके धारण करने से अथवा पूजन करने से चन्द का शीघ्र ही अनुकूल फल प्राप्त होने लगता है।
चन्द्र यंत्र दो प्रकार के होते हैं। प्रथम नौग्रहों का एक ही यंत्र होता है द्वितीय नौग्रहों का अलग-अलग नौयंत्र होता है। प्रायः दोनों यंत्रों के एक जैसे ही कार्य एवं लाभ होते हैं
इस यंत्र को सम्मुख रखकर नौग्रहों की उपासना करने से सभी प्रकार के भयं नष्ट होते हैं शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है व्यापार आदि में सफलता मिलती है समाज मंे उन्नति प्राप्त होती है तथा कार्यो किसी भी प्रकार की बांधा उत्पन्न नहीं होती है।
यंत्र का उपयोग
चन्द्र देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख भोले शिव की उपासना करनी चाहिए।
कभी-कभी ग्रह अनुकूल होने पर भी अनेक रोग व्याधि से मानव पीड़ित होता है अस्तु जहां तक उपाय का प्रश्न है इनमें महामृत्युंजय मंत्र का जप भी लाभ प्रत होता कभी-कभी राहु की शान्ती के लिए सरसों और कोयले का दान अत्यन्त लाभकारी होता है।
केतु की शान्त के लिए कुत्ते को भोजन कराया जाता है। इसलिये यह उपाय लाभकारी रहेगा। सूर्य आदि ग्रहों की शान्त एक मौलिक नियम यह भी है कि जिस ग्रह पर पाप प्रभाव पड़ रहा हो उसको बलवान किया जाना अभीष्ट है उससे सम्बन्धित रत्न आदि धारण किया जाय अथवा यंत्र रखकर वैदिक मंत्रों द्वारा अनुष्ठान किया जाये।
गायत्री यंत्र
गायत्री यंत्र पाप को नष्ट करने और पुण्य को उदय करने की अद्भुद शक्ति का पुन्ज कहा जाता है। इस यंत्र की पूजा उपासना करने से इस लोक में सुख प्राप्त होता है एवं विष्णु लोक में स्थान प्राप्त होता है। तथा अनेक जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। ओर दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है। इस यंत्र की अचल प्रतिष्ठा होती है।
माँ गायत्री चारों वेदों की प्राण, सार, रहस्य एवं तन (साम) साम संगीत का यह रथन्तर आत्मा के उल्लास को उद्वेलित करता है जो इस तेज को अपने में धारण करता है उसकी वंश परम्परा तेजस्वी बनती चली जाती है। उसकी पारिवारिक संतति और अनुयायिओं की श्रृंखला में ऐ से एक बढ़कर तेजस्वी प्रतिभाशाली उत्पन्न होते चले जाते हैं।
यंत्र का उपयोग
साधना चेता क्षेत्र का ऐसा पुरुषार्थ है जिसमें सामान्य श्रम एवं मनोयोग का नियोजन भी असामान्य विभूतियों एवं शक्तियों को जन्म देता है। साधारण स्थिति में हर वस्तु तुच्छ है। यदि गायत्री यंत्र की उपासना द्वारा उसको पूर्ण बनाया जाय तो वह वस्तु उत्कृष्ट बन जाती है।
हमने संसार के कठिन से कठिन कार्य का सदा सहज रूप में कर सकने की सामथ्र्य गायत्री-साधना से ही जुटाई है। हजारो ऋषि-मुनियों, साधकों, महापुरुषों ने इस साधना को बिना सोचे-समझे, बिना प्रयोग-परीक्षण किये नहीं अपनाया है।
संतान गोपाल यंत्र
मानव जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए एक अच्छे संतान की आवश्यकता होती हैं। परन्तु-कुछ लोग संतान विहीन होते हैं और संतान की प्राप्ति के लिए अनेक प्रयास करते हैं। ऐसी स्थिति में संतान प्राप्ति हेतु यह यंत्र अत्यन्त चमत्कारिक है। इस यंत्र की प्रतिष्ठा पूजा करने से मनोवांछित संतान की प्राप्ति होती है। और वह दीर्घायु और गुणवान होता है।
संतान गोपाल यंत्र की साधना अत्यन्त प्रसिद्ध है जिन्हें संतान नहीं उत्पन्न होती है वे बालकृष्ण की मूर्ति के साथ संतान गोपाल यंत्र स्थापित करते हैं तथा उनके सामने संतानगोपाल स्तोत्र का पाठ करते हैं। कुछ लोग ’पुत्रोष्टि यज्ञ’ करते हैं पुत्रेष्टि यज्ञ एवं संतान गोपाल यंत्र के द्वारा अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है।
यंत्र का उपयोग
संतान गोपाल यंत्र को गुरुपुष्य नक्षत्र में पूजन एवं प्रतिष्ठा करने के पश्चात् संतान गोपाल स्त्रोत्र का पाठी करने से शीघ्र ही गृह में कुलीन एवं अच्छे गुणों से युक्त संतान की उत्पत्ति होती है तथा माता पिता की सेवा में ऐसी संतानें हमेशा तत्पर रहती हैं।
संतान गोपाल यंत्र को गोशाला में प्रतिष्ठित करके गोपालकृष्ण का मंत्र का जप श्रद्धापूर्वक करने से वध्या को भी शीघ्र ही पुत्ररत्न उत्पन्न होता है तथा सभी गुणों से सम्पन्न होता है।
महाकाली यंत्र
दशमहाविद्याओं में काली प्राथमिता सर्वत्र देखी जाता है कालका पुराण के अनुसार मातंग मुनि के आश्रम में मां काली का सभी देवताओं ने स्तवन किया था महाकाली प्रलय काल से सम्बद्ध होने से अतएव कृष्णवर्णा हैं। वे शव पर आरूढ़ इसीलिए है। कि शक्तिविहीन विश्व मृत ही है। शत्रुसंहारक शक्ति भायावह होती हैं, इसीलिए काली की मूर्ति भयावह है। शत्रु संहार के बाद विजयी योद्धा का अट्टहास भीषणता के लिए होता है, इसलिए महाकाली हँसती रहती हैं।
आद्यशक्ति मां महाकाली अपरोक्ष या परोक्ष बाधांओं को नष्ट करके शक्ति प्रदान करती है। इस अद्भुत शक्ति द्वारा मानव अनेक सफलता प्राप्त करता है। और निश्चिन्त जीवन व्यतीत करता है। इस यंत्र की चल अचल दोनों तरह से प्रतिष्ठा होती है।
यंत्र का उपयोग
महाकाली की पूजा सर्वकामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है विशेष रूप से अत्याचारी शत्रु से रक्षा व त्राण पाने के लिए। माया के जाल से छूटकर मोक्ष प्राप्ति के लिए महाकाली की पूजा सर्वश्रेष्ठ है। संसारी जीव असुरों, दुष्टों से रक्षा के लिए मां की पूजा करते हैं।
वाद-विवाद, मुकदमें में जीतने के लिए, प्रतियोगिता में प्रतिद्वन्द्वी को परास्त करने के लिए, दौड़, कुश्ती आदि युद्ध में मल्लयुद्ध में किसी भी प्रकार के युद्ध, शास्त्रार्थ में विजय के लिए काली की उपासना तरुन्त फल देती है।
व्यापार वृद्धि यंत्र
कोई भी व्यापार हो अगर उसमें बार-बार हानि हो रही है। चोरभय, अग्नि भय इत्यादि बार-बार परेशान करता हो। अथवा किसी अन्य प्रकार से व्यापार में बांधा उत्पन्न होती हो तो यह यंत्र वहां प्रतिष्ठित करने से शीघ्र ही व्यापार वृद्धि एवं लाभ होता है। इस यंत्र की चल अचल दोनों तरह से प्रतिष्ठा होती है।
इस यंत्र को काम्यकर्म अर्थात कामनापूर्ती के लिए किया जाता है इस यंत्र को सम्मुख रखकर भिन्न- भिन्न कामनाओं के लिए पृथक्-पृथक् वस्तुओं से होम करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है, उन-उन वस्तुओं से होम करने से तत्-तत् कामनाएँ पूर्ण होती हैं।
यंत्र का उपयोग
व्यापार वृद्धि यंत्र को पूजा प्रतिष्ठा करने के पश्चात् व्यापार से सम्बन्धित ब्रह्मस्थल में स्थापित किया जाता है और हमेशा पूजा की जाती है ऐसा करने से रूके व्यापार में वृद्धि होती है तथा धन का आगमन होता हैं
व्यापार में निरन्तर घाटा होने की स्थिति में इस यंत्र को सम्मुख रखकर व्यापार वृद्धि का दस हजार ऋद्धि- सिद्धि मंत्र जप ने से शीघ्र ही व्यापार में लाभ होता है।
इस यंत्र की अचल प्रतिष्ठा करके व्यक्ति को अपने पास में रखने से अनेक तरह से व्यापार में लाभ होता है। प्रतिकूल रहने वाले व्यक्ति भी अनुकूल हो जाते हैं और अनेक प्रकार से लाभ प्रदान करने के लिए आतुर होने लगते हैं तथा निरन्तर व्यापार में लाभ होता जाता हैं।
बगलामुखी यंत्र
श्रीबगला पीताम्बरा को तामसी मानना उचित नहीं, क्योंकि उनके आभिचारिक कृत्यों मे रक्षा की ही प्रधानता होती है और कार्य इसी शक्ति द्वारा होता है। शुक्ल-आयुर्वेद की माध्यंदिन संहिता के पाँचवें अध्याय की 23, 24, 25वीं कण्डिकाओं में अभिचार-कर्मकी निवृत्ति में श्रीबगलामुखी को ही सर्वोत्तम बाताया गया है, अर्थात् शत्रु के विनाश के लिए जो कृत्याविशेष को भूमि में गाड़ देते हैं, उन्हें नष्ट करने वाली वैष्णवी महाशक्ति श्रीबगलामुखी ही हैं।
शत्रुओं को नष्ट करने के लिए पराजित करने के लिए प्रभावित करने के लिए चाहे वह अपरोक्ष हो या परोक्ष यह यंत्र अत्यन्त उपयोगी है अपने बलशाली शत्रुओं को प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य पराजित नहीं कर सकता यद्यपि इस यंत्र द्वारा शत्रुओं पर विजय पायी जा सकती है। और वांछित सफलता प्राप्त हो सकती है। इस यंत्र की अचल प्रतिष्ठा होती है।
यंत्र का उपयोग
इस यंत्र को शुभ मूहुर्त में सम्मुख रखकर जपकर्ता को पीला वस्त्र पहन कर हल्दी की गांठ की माला से जप करना चाहिए। देवी की पूजा और होम में पीले पुष्पों, प्रियंगु कनेर, गेंदा आदि के पुष्पों का प्रयोग करना चाहिए।
इस यंत्र को सम्मुख रखकर मां बगलामुखी का मंत्र छत्तीस हजार की संख्या में जप करने से शत्रुओं का किया गया अभिचार कार्य नष्ट होता है तथा साधक की मनोकामनायें भगवती शीघ्र ही पूर्ण करती है।
सूर्य यंत्र
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य प्रतिकूल होने पर प्रत्येक कार्य में असफलता नजर आती है। ऐसी स्थिति में सूर्य यंत्र को चल या अचल प्रतिष्ठा करके धारण करने से अथवा पूजन करने से सूर्य का शीघ्र ही अनुकूल फल प्राप्त होने लगता है।
सूर्य यंत्र दो प्रकार के होते हैं। प्रथम नौग्रहों का एक ही यंत्र होता है द्वितीय नौग्रहों का अलग-अलग नौयंत्र होता है। प्रायः दोनों यंत्रों के एक जैसे ही कार्य एवं लाभ होते हैं
इस यंत्र को सम्मुख रखकर नौग्रहों की उपासना करने से सभी प्रकार के भयं नष्ट होते हैं शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है व्यापार आदि में सफलता मिलती है समाज उन्नति प्राप्त होती है तथा कार्यो किसी भी प्रकार की बांधा उत्पन्न नहीं होती है।
यंत्र का उपयोग
सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए इस यंत्र को सम्मुख रखकर विष्णु भगवान का पूजन, हरिवंश पुराण की कथा की व्यवस्था करनी चाहिए।
कभी-कभी ग्रह अनुकूल होने पर भी अनेक रोग व्याधि से मानव पीड़ित होता है अस्तु जहां तक उपाय का प्रश्न है इनमें महामृत्युंजय मंत्र का जप भी लाभ प्रत होता कभी-कभी राहु की शान्ती के लिए सरसों और कोयले का दान अत्यन्त लाभकारी होता है।
सूर्य आदि ग्रहों की शान्त एक मौलिक नियम यह भी है कि जिस ग्रह पर पाप प्रभाव पड़ रहा हो उसको बलवान किया जाना अभीष्ट है उससे सम्बन्धित रत्न आदि धारण किया जाय अथवा यंत्र रखकर वैदिक मंत्रों द्वारा अनुष्ठान किया जाये।
शनि यंत्र
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि प्रतिकूल होने पर अनेक कार्यों में असफलता देता है, कभी वाहन दुर्घटना, कभी यात्रा स्थागित तो कभी क्लेश आदि से परेशानी बढ़ती जाती है ऐसी स्थितियों में ग्रह पीड़ा निवारक शनि यंत्र की शुद्धता पूर्ण पूजा प्रतिष्ठा करने से अनेक लाभ मिलते हैं। यदि शनि की ढै़या या साढ़ेसाती का समय हो तो इसे अवश्य पूजना चाहिए।
उपयोग से लाभ
श्रद्धापूर्वक इस यंत्र की प्रतिष्ठा करके प्रतिदिन यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीप जलायें नीला, या काला पुष्य चढ़ायें ऐसा करने से अनेक लाभ होगा। मृत्यु, कर्ज, केश, मुकद्दमा, हानि, क्षति, पैर आदि की हड्डी, बात रोग तथा सभी प्रकार के रोग से परेशान लोगों हेतु यंत्र अधिक लाभकारी होगा। नौकरी पेशा आदि के लोगों को उन्नति भी शनि द्वारा ही मिलती है अतः यह यंत्र अति उपयोगी यंत्र है जिसके द्वारा शीघ्र ही लाभ पाया जा सकता है।
सुख समृद्धि यंत्र
व्यापार, विदेश गमन, राजनीति, गृहस्थ जीवन नौकरी पेशा आदि में इस यंत्र का उपयोग करने से सुख एवं समृद्धि प्राप्त होती है। इस यंत्र की चल एवं अचल दोनों तरह से प्रतिष्ठा होती है।
जिस लोगों अनेक तरह की भ्रत्तियां उत्पन्न होती हैं घर में निरन्तर क्लेश रहता हो तथा आपसी सम्बन्धों में कटुता उत्पन्न हुयी हो तो यह यंत्र उन लोगों के लिए वरदान स्वरूप साबित होता है। ऐसे लोगो के लिए इस यंत्र की पूजा उपासना करने से उन्हें मानसिक शान्ती एवं सहिष्णुता में वृद्धि होती हैं
यंत्र का उपयोग
जब वाहन, मान नौकरों से कोई न कोई तकलीफ रहती हो व्यापार व्यवसाय में भयानक उतार चढ़ाव आते हो तथा घाटा होता हो तो ऐसी स्थिति में व्यापारिक एवं व्यवसायिक स्थिति अनुकूल होने के लिए इस यंत्र की पूजा उपासना करना उचित होगा।
अथक परिश्रम करने के बाद भी वांछित सफलता जिन्हें नहीं मिलती तथा कार्यो में असफलता मिलती है। बार-बार अपयश का सामना होता है। तो ऐसी स्थिति में यह यंत्र अत्यन्त लाभकारी है इस यंत्र की चल अचल दोनों प्रतिष्ठा होती है।
इस यंत्र के सम्मुख लक्ष्मी और गणेश का सम्पुटित मंत्र जप करने से सुख समृद्धि प्राप्त होती है। तथा आकरण हुये अपमान का शत्रु प्रायश्चित करता है और जीवन परयंत्र सम्मान प्रदान करता है।
मंगल यंत्र
किसी विशेष कार्य को करने के लिए लोगों में अनेक संसय उत्पन्न होते हैं कार्य सफल होगा या असफल होगा ऐसी भावनायें बार-बार मन में उठती हैं। कई बार कार्य असफल भी होते हैं। ऐसे कार्यो को निर्धारित समय में बिना किसी परेशानी के सफलता पाने के लिए यह यंत्र अत्यन्त उपयोगी है इस यंत्र की अचल प्रतिष्ठा होती है।
ार, विदेश गमन, राजनीति, गृहस्थ जीवन नौकरी पेशा आदि में इस यंत्र का उपयोग करने से सुख एवं समृद्धि प्राप्त होती है। इस यंत्र की चल एवं अचल दोनों तरह से प्रतिष्ठा होती है।
यंत्र का उपयोग
जब वाहन, मान नौकरों से कोई न कोई तकलीफ रहती हो व्यापार व्यवसाय में भयानक उतार चढ़ाव आते हो तथा घाटा होता हो तो ऐसी स्थिति में व्यापारिक एवं व्यवसायिक स्थिति अनुकूल होने के लिए इस यंत्र की पूजा उपासना करना उचित होगा।
अथक परिश्रम करने के बाद भी वांछित सफलता जिन्हें नहीं मिलती तथा कार्यो में असफलता मिलती है। बार-बार अपयश का सामना होता है। तो ऐसी स्थिति में यह यंत्र अत्यन्त लाभकारी है इस यंत्र की चल अचल दोनों प्रतिष्ठा होती है।
इस यंत्र के सम्मुख सिद्धि विनायक मंत्र जप करने से सुख समृद्धि प्राप्त होती है। तथा आकरण हुये अपमान का शत्रु प्रायश्चित करता है और जीवन परयंत सम्मान प्रदान करता है।
केतु यंत्र
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु प्रतिकूल होने पर प्रत्येक कार्य में असफलता नजर आती है। ऐसी स्थिति में केतु यंत्र को चल या अचल प्रतिष्ठा करके धारण करने से अथवा पूजन करने से केतु का शीघ्र ही अनुकूल फल प्राप्त होने लगता है।
केतु यंत्र दो प्रकार के होते हैं। प्रथम नौग्रहों का एक ही यंत्र होता है द्वितीय नौग्रहों का अलग-अलग नौयंत्र होता है। प्रायः दोनों यंत्रों के एक जैसे ही कार्य एवं लाभ होते हैं
इस यंत्र को सम्मुख रखकर नौग्रहों की उपासना करने से सभी प्रकार के भयं नष्ट होते हैं शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है व्यापार आदि में सफलता मिलती है समाज उन्नति प्राप्त होती है तथा कार्यो किसी भी प्रकार की बांधा उत्पन्न नहीं होती है।
यंत्र का उपयोग
केतु देव को प्रसनन करना होतो यंत्र के सममुख गणेश जी की पूजा की व्यवस्था करनी चाहिए।
केतु की शान्त के लिए कुत्ते को भोजन कराया जाता है। इसलिये यह उपाय लाभकारी रहेगा।
कभी-कभी ग्रह अनुकूल होने पर भी अनेक रोग व्याधि से मानव पीड़ित होता है अस्तु जहां तक उपाय का प्रश्न है इनमें महामृत्युंजय मंत्र का जप भी लाभ प्रत होता कभी-कभी राहु की शान्ती के लिए सरसों और कोयले का दान अत्यन्त लाभकारी होता है।
केतु की शान्त के लिए कुत्ते को भोजन कराया जाता है। इसलिये यह उपाय लाभकारी रहेगा।
नवग्रह यंत्र
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवग्रह प्रतिकूल होने पर प्रत्येक कार्य में असफलता नजर आती है। ऐसी स्थिति में नवग्रह यंत्र को चल या अचल प्रतिष्ठा करके धारण करने से अथवा पूजन करने से नवग्रहों का शीघ्र ही अनुकूल फल प्राप्त होने लगता है।
नवग्रह यंत्र दो प्रकार के होते हैं। प्रथम नौग्रहों का एक ही यंत्र होता है द्वितीय नौग्रहों का अलग-अलग नौयंत्र होता है। प्रायः दोनों यंत्रों के एक जैसे ही कार्य एवं लाभ होते हैं
इस यंत्र को सम्मुख रखकर नौग्रहों की उपासना करने से सभी प्रकार के भयं नष्ट होते हैं शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है व्यापार आदि में सफलता मिलती है समाज उन्नति प्राप्त होती है तथा कार्यो किसी भी प्रकार की बांधा उत्पन्न नहीं होती है।
यंत्र का उपयोग
सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए इस यंत्र को सम्मुख रखकर विष्णु भगवान का पूजन, हरिवंश पुराण की कथा की व्यवस्था करनी चाहिए।
चन्द्र देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख भोले शिव की उपासना करनी चाहिए।
मंगल देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए।
बुध देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख दुर्गाजी की पूजा तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए।
बृहस्पति देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख ब्रह्माजी की पूजा करनी चाहिए। यदि सन्तान का प्रश्न हो तो हरि पूजन करें।
शुक्र देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिए।
शनि देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख भौरव जी की पूजा करनी चाहिए।
राहु देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख भैरव जी की पूजा करना चाहिए।
केतु देव को प्रसनन करना होतो यंत्र के सममुख गणेश जी की पूजा की व्यवस्था करनी चाहिए।
शान्त एक मौलिक नियम यह भी है कि जिस ग्रह पर पाप प्रभाव पड़ रहा हो उसको बलवान किया जाना अभीष्ट है उससे सम्बन्धित रत्न आदि धारण किया जाय अथवा यंत्र रखकर वैदिक मंत्रों द्वारा अनुष्ठान किया जाये।
महामृत्युंजय यंत्र
यह यंत्र मानव जीवन के लिए अभेद्य कवच है बीमारी अवस्था में एवं दुर्घटना इत्यादि से मृत्यु के भय को यह यंत्र नष्ट करता है। डाक्टर, वैद्य से सफलता न मिलने पर यह यंत्र मनुष्य को मृत्यु से बचाता है। एवं शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा को नष्ट करता है। इसे चल अचल दोनों तरह से प्रतिष्ठित किया जा सकता है।
महामृत्युंजय यंत्र को सम्मुख रखकर रुद्र सूक्त का पाठ करने से अनोखा लाभ होता है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से रुद्रसूक्त के मंत्रों में रश्मि विज्ञान के आधार पर इसमें गूढ़ रहस्य छुपे हैं जिस खोजने के लिए शुद्ध वैज्ञानिक मष्तिष्क् चाहिए। महामृत्युंजय यंत्र उच्चकोटि का दार्शनिक यंत्र है जिसमें जीवन-मृत्यु का रहस्य छिपा हुआ है।
यह स्पष्ट है कि नीलआभायुक्त किरण (न्सजतंअपवसमज तंले) घातक होती है। इसे आधुनिक विज्ञान ने स्वीकार किया है सूर्य की किरणों में सात रंग होते हैं जिसमें बैंगनी रंग की किरण सबसे ज्यादा खतरनाक एवं घातक मानी गयी है। स्टोव-गैस इत्यादि दैनिक प्रयोग की वस्तुओं में भी हम देखते हैं कि अग्नि की ज्वाला जब नीलआभायुक्त होती है तक वह घातक और विषैली हो जाती है।
महामृत्युंजय यंत्र भगवान मृत्युंजय से सम्बन्धित है जिसका शाब्दिक अर्थ स्पष्ट है कि मृत्यु पर विजय इस देवता की आकृति देदीप्यमान है तथा ये नाना रूप धारण करने वाला है यह सब औषधि का स्वामी है तथा वैद्यों में सबसे बड़ा वैद्य है यह अपने उपासकों के पुत्र-पौत्रादि (बच्चों) तक को आरोग्य व दीर्घायु प्रदान करता है। इसके हाथों को ’’मृणयाकु’’ (सुख देने वाला) ’’जलाष’’ (शीतलता, शांति प्रदान करने वाला ) तथा ’’भेषज’’ (आरोग्य प्रदान करने वाला) कहा गया है।
सरस्वती यंत्र
आज का युग बौद्धिक युग है। बौद्धिक विकास को लेकर चारों तरफ तरह-तरह के परीक्षण, कम्पिटीशन, परीक्षाएं एवं प्रतियोगिताएं संपन्न हो रही हैं। बुद्धिहीन व्यक्ति मूर्ख कहलाता है, उसकी कहीं कोई इजजत नहीं। ऐसे मुद्धिशाली व्यक्तियों की बुद्धि को कुशाग्र करने के लिए, मंदबुद्धि वालों की बौद्धिक क्षमता बढ़ोने के लिए एवं स्मरण-शक्ति की तीव्रता के लिए सिद्ध सरस्वती यंत्र एक मात्र अवलम्बन है, जिससे हम आज के इस बौद्धिक युग में सर्वाधिक सफल व्यक्ति हो सकते हैं।
विद्या प्रदान करने की अपरमित शक्ति मां सरस्वती में ही है यह यंत्र मां सरस्वती के बीज मंत्रों द्वारा निर्मित होता है आज वैज्ञानिक युग में हर किसी को ज्ञान और विद्या की आवश्यकता है ज्ञान और विद्या विहीन व्यक्ति कभी सफल नहीं हो पाता। अतः हर क्षेत्र के लोगों को यह यंत्र अत्यन्त लाभकारी साबित हो सकता है तथा सफलता के लिए ज्ञान एवं विद्या प्रदान करता है। इस यंत्र की चल प्रतिष्ठा उचित है।
यंत्र का उपयोग
जो मनुष्य इस यंत्र को श्रृद्धा पूर्वक विधि के अनुसार पूजन दर्शन या धारण करता है वह विद्या-संपन्न, धनवान् और मधुरभाषी हो जाता है, साथ ही सरस्वती की कृपा से ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित होता है।
बुद्धि-विद्या की देवी सरस्वती है, शिक्षा में मन लगे, आपकी बुद्धि प्रखर हो, परीक्षा में सफलता मिले, इस उद्देश्य से सरस्वती यंत्र का पूजा उपासना या धारण करना सर्वश्रेष्ठ हैं।
गणेश यंत्र
देवों के देव भगवान् गणपती आदि महाशक्ति के रूप में जाने जाते हैं और प्रथम पूज्यनीय है विघ्नों के विनाश के लिए ये अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। किसी भी क्षेत्र में ऋद्धि-सिद्धि हेतु श्री गणेश यंत्र सदैव लाभ देता है और कार्यो को निर्विघ्न सम्पन्न होने के लिए सहायता करता है। यह यंत्र चल एवं अचल दोनों तरह से प्रतिष्ठित किया जाता है।
गणेश विघ्न निवारण के देवता हैं सभी कार्यो में सफलता हेतु भगवान गणेश की उपासना ही सर्वश्रेष्ठ मानी गयी है। चारों में वेदों एवं पुराणों में भगवान श्री गणेश की श्रेष्ठता का वर्णन बार-बार आता है इससे यह प्रतीत होता है विघ्नों को नष्ट करने के लिए गणेश की उपासना आवश्यक है।
यंत्र का उपयोग
श्री गणेश यंत्र को सम्मुख रखकर घृत मिश्रित अन्न की आहुतियाँ देने से मनुष्य धन धान्य से समृद्ध हो जाता है। चिउड़ा अथवा नारिकेल अथवा मरिच से प्रतिदिन एक हजार आहुति देने से एक महीने के भीतर बहुत बड़ी सम्पत्ति प्राप्त होती है।
जीरा, सेंधा नमक एवं काली मिर्च से मिश्रित अष्टद्रव्यों से प्रतिदिन एक हजार आहुति देने से व्यक्ति एक ही पक्ष (15दिनों) में कुबेर के समान धनवान् हो जाता है। इतना ही नहीं प्रतिदिन मूलमन्त्र से 444 बार तर्पण करने से मनुष्यों को मनो वांिछत फल की प्राप्ति हो जाती है।
कुबेर यंत्र
स्वर्ण लाभ, रत्न लाभ, गड़े हुए धन का लाभ एवं पैतृक सम्पत्ती का लाभ चाहने वाले लोगों के लिए कुबेर यंत्र अत्यन्त सफलता दायक है। इस यंत्र द्वारा अनेकानेक रास्ते से धन का आवागमन होता है एवं धन संचय होता है। इस यंत्र की अचल प्रतिष्ठा होती है।
’शिव पुराण’ के अनुसार यक्षराज कुबेर अलकावती नामक नगरी के राजा थे। ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार मेरु पर्वत की चोटी मंदार पर ’चैत्ररथ’ नामक एक दिव्य बगीचा है, जहाँ कुबेर आराम करते हैं। अनेक प्रकार के किन्न-गन्धर्व व अप्सरायें यहाँ कुबेर आराम करते हैं। अनेक प्रकार के किन्नर-गन्धर्व व अप्सरायें यहाँ कुबेर आराम करते हैं अनेक प्रकार के किन्नर-गन्धर्व व अप्सरायें यहाँ कुबेर का नित्य पूजन करती है। जिस जगह पर कुबेर ने तपस्या की वह स्थल नर्मदा नदी एवं कावेरी का संगम स्थल था। वह स्थल आज भी ’कौबेर तीर्थ’ के नाम से पूजा जाता है।
यंत्र का उपयोग
विल्व-वृक्ष के नीचे बैठकर यंत्र को सम्मुख रखकर कुबेर मंत्र को शुद्धता पूर्वक जप करने से यंत्र सिद्ध होता है तथा यंत्र सिद्ध होने के पश्चात् इसे गल्ले, तिजोरी या सेफल में स्थापित किया जता है। इसके स्थापना के पश्चात् दरिद्रता का नाश होकर, प्रचुर धन व यश की प्राप्ति होती देखी गई है। यह अनुभूत परीक्षित प्रयोग है।
राहु यंत्र
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु प्रतिकूल होने पर प्रत्येक कार्य में असफलता नजर आती है। ऐसी स्थिति में राहु यंत्र को चल या अचल प्रतिष्ठा करके धारण करने से अथवा पूजन करने से राह का शीघ्र ही अनुकूल फल प्राप्त होने लगता है।
राहु यंत्र दो प्रकार के होते हैं। प्रथम नौग्रहों का एक ही यंत्र होता है द्वितीय नौग्रहों का अलग-अलग नौयंत्र होता है। प्रायः दोनों यंत्रों के एक जैसे ही कार्य एवं लाभ होते हैं
इस यंत्र को सम्मुख रखकर नौग्रहों की उपासना करने से सभी प्रकार के भयं नष्ट होते हैं शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है व्यापार आदि में सफलता मिलती है समाज उन्नति प्राप्त होती है तथा कार्यो किसी भी प्रकार की बांधा उत्पन्न नहीं होती है।
यंत्र का उपयोग
राहु देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख भैरव जी की पूजा करना चाहिए।
कभी-कभी ग्रह अनुकूल होने पर भी अनेक रोग व्याधि से मानव पीड़ित होता है अस्तु जहां तक उपाय का प्रश्न है इनमें महामृत्युंजय मंत्र का जप भी लाभ प्रत होता कभी-कभी राहु की शान्ती के लिए सरसों और कोयले का दान अत्यन्त लाभकारी होता है।
हनुमान यंत्र
हनुमान् देवता प्रोक्तः सर्वाभीष्टफलप्रदः।
श्रीहनुमान् जी भगवान् श्रीराम के भक्त हैं। इनका जन्म वायुदेव के अंश से और माता अंजनि के गर्भ से हुआ है। श्रीहनुमान् जी बालब्रह्मचारी महान् वीर अत्यन्त बुद्धिमान्, स्वामिभक्त है।
तदास्य शांस्त्र दास्यामि येन वाग्मि भविष्यति।
न चास्य भविता कश्चिद् सदृशः शास्त्रदर्शने।।
आदि काव्य के अनुसार ब्रह्मा द्वारा प्रेरति होकर श्रीसूर्यदेव ने हनुमान् को अपने तेज का सौवाँ भाग प्रदान करते हुए आशीर्वा दिया कि मैं इन्हें शास्त्र ज्ञान दूँगा। जिससे यह श्रेष्ठ वक्ता होंगे तथा शास्त्र में समता करने वाला कोई नहीं होगा।
यंत्र का उपयोग
हनुमान यंत्र पौरुष को पुष्ट करता हैं पुरुषों की अनेक बीमारियों को नष्ट करने के लिए इसमें अद्भुत शक्ति पायी जाती है जैसे- स्वप्न दोष, रक्त दोष, वीर्य दोष, मूर्छा, धातु रोग, नपुंसकता आदि को नष्ट करने के लिए यह अत्यन्त लाभकारी यंत्र है। इस यंत्र की प्रतिष्ठा चल एवं अचल दोनों प्रकार से की जाती है।
यह यंत्र मनुष्यों को विष, व्याधि, शान्ति, मोहन, मारण, विवाद, स्तम्भन, द्यूत, भूतभय संकट, वशीरकण, युद्ध, राजद्वार, संग्राम एवं चैरादि द्वारा संकट उपस्थित होने पर निश्चित रूप से इष्ट सिद्धि प्रदान करता है।
नवदुर्गा यंत्र
मार्कण्डेय पुराण में नव दुर्गा के बारे में अनेक चमत्कारिक प्रयोग बताये गये हैं जिनमें से एक नव दुर्गा यंत्र है। इस यंत्र की श्रद्धा पूर्वक पूजा प्रतिष्ठा करने से मानव कल्याण एवं अनेक परेशानियों से छुटकारा मिलता है, मां भगवती के कई मूल मंत्रों कोे इस यंत्र में समाहित किया गया है जो इसकी विशेषता का प्रतीक है।
नौ दुर्गा यंत्र को घर, दुकान, वाहन, व्यापार, संस्थान, आदि में स्थापित किया जा सकता है। इस यंत्र के प्रभाव से अनेक लाभ हैं तथा उपासना विधि अत्यन्त सरल है जिसे हर कोई करने में सफल हो सकता है और लाभ ले सकता है।
यंत्र का उपयोग
इस यंत्र को सम्मुख रखकर (प्रातःकाल) धूपदीप आदि द्वारा साधारण पूजा करके माता दुर्गा के अष्टोत्तर शत नामावली का पाठ करने मात्र से वांछित लाभ मिलता है तथा शीघ्र ही इसका प्रभाव वहां के सम्पूर्ण वातावरण को शुद्ध करता है। इस यंत्र द्वारा चोर भय, प्रेत भय, शत्रु भय, रोग भय, बन्धन भय आदि से छुटकारा पाया जा सकता है। इस यंत्र की विशेष सिद्धि भौमावस्या को सूर्योदय से पहले (2घंटे) की जाती है जिसकी अधिक जानकारी दुर्गा सप्तसती में उल्लिखित है।
वास्तु दोष निवारक यंत्र
भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की तृतीया तिथि, शनिवार, कृतिका नक्ष्ज्ञत्र, व्यतीपात योग, विष्टि करण, भद्रा के मध्य में कुलिक मूहूर्त में वास्तु की उत्पत्ति हुई उसके भंयकर गर्जना से चकित होकर ब्रह्मा ने कहा जो भी व्यक्ति ग्राम, नगर, दुर्ग, यरही, मकान, प्रसाद, जलाशय, उद्यान के निर्माणारम्भ के समय मोहवश आपकी उपासना नहीं करेगा या आपके यंत्र को स्थापित नहीं करेगा वह पग-पग बांधाओं का सामना करेगा और जीवन पर्यंत अस्त-व्यस्त रहेगा।
मकान चाहे विशाल या साधारण हो दुकान हो या कम्पनी हो धर्मशाला हो या मन्दिर हो यहां तक कि मोटरगाड़ियों में भी वास्तु का निवास होता है। अगर किसी कारण वस स्थान निर्माण में वास्तु दोष उत्पन्न होता है तो वास्तु देवता को प्रसन्न एवं सन्तुष्ट करने के लिए अनेक उपाय किये जाते हैं। जिनमें वास्तु यंत्र सरल एवं अधिक उपयोगी है इस यंत्र को स्थापित करने से वास्तु दोष का निवारण होता है। तथा उस स्थान में सुख समृद्धि का वर्चस्व होता है। इस यंत्र को चल या अचल दोनों प्रकार से प्रतिष्ठित किया जाता है।
प्रत्येक वर्ष यज्ञादि में, पुत्र जन्म पर, यज्ञोपवीत, विवाह, महोत्सवों में, जीर्णोद्धार, धान्य संग्र्रह में, बिजली गिरने से टूटू हुए घर में, अग्नि से जल हुए घर पर, सर्प व चांडाल से घिरे हुए घर पर, उल्लू और कौआ सात दिन तक जिस घर में रहते हैं, जिस घर में रात्रि में मृत वास करें, गौ व मार्जार गर्जना करें, हाथी, घोड़े विशेष शब्द करें और जिसमें स्त्रियों के झगड़े होते हों, जिस घर में कबूतर रहते हों, मधुमक्खियों का छत्ता हो और अनेक प्रकार के उत्पात होते हों वहां वास्तुयंत्र अवश्य स्थापित करें। -ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे , मोबा.नं.09827198828, भिलाई
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