ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

विनम्र श्रद्धाँजलि, और हम हिन्दू कब जागेंगे ??

क्या देश की मीडिया ने देश के साथ बेमानी नहीं किया....?? और हमारी क्या जिम्मेदारी है..?? अहसास है की हम हिन्दू हैं, हम भारतीय हैं...??.?.

आज मन क्षुब्ध हुआ, और मैं तो अपनी कौम को ही कोंस रहा हुं, ये हमारा हिन्दू समाज अपनी जिम्मेदारी कब समझेगा ! देश में मीडिया ने पहले श्रीदेवी की मौत पर गलत अफवाह खबरें उड़ाती रहीं और बाद में अपनी कमी को तोपने के लिये लाईव दिखाया जा रहा है लेकिन देश के लिये जो सर्वाधिक अपूरणीय क्षति हुई ऐसे संस्कृत-महामनस्वी जयेन्द्र सरस्वती जी के ब्रह्मलीन की लाईव दिखाना तो दूर , नीचे पट्टी तक नहीं चलाया गया! इस मीडिया को कोसने से पहले हम स्वयं की समीक्षा करें की कितने लोग अपने बच्चों को 'शंकराचार्यों' के बारे मे बताते है ?? जिस देश में पाश्चात्य नर्तकियां, इतनी पूजी जाती हों उस देश में हिन्दुओं को क्या कहा जाय बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक ?? कितनों ने  शंकाराचार्य का लाईव समाचार चलाया ? क्या सभी मीडिया अहिन्दु हैं..? नहीं मैं यह बिल्कुल भी नहीं मानता क्योंकि शंकाराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी से कई संस्कृत प्रेमी मुसलमान तथा अन्य धर्मों के लोग भी उनसे जुड़े रहे हैं ऐसे क्या केवल 'मीडिया को अपनी जिम्मेदारी नहीं समझनी चाहिये थी ? मैं मानता हुं की पद्मश्री से नवाजी जा चुकी श्रीदेवी को इतना कव्हरेज मिलना चाहिये, परन्तु शंकाराचार्यजी को बिल्कुल भी न महत्व दिया जाना देश के साथ बेमानी नहीं है ? मैं भिलाई के एक छोटे से शहर का निवासी हुं, लेकिन हमारे शहर से कई लोगों के फोन आये की महाराजजी क्या यह बात सही है ?? इसका मतलब हमारे भिलाई की जनता इतनी जागरूक है अपनी कर्तव्यों की खातीर और पगलाये तो वो लोग हैं जो तीन दिन से लाईन लगाये खड़े होकर 'श्रीदेवी' का दर्शन कर रहे हैं, मेरा मानना है कि हम भारतीय केवल दूसरों को कोंसने वाले आज दुनिया के सबसे कमजोर धर्मरथी होते जा रहे हैं, जबकी २००० वर्ष पूर्व हम सबसे मजबूत थे, और जिसने हमको मजबूत किया उन्हीं की एक शाखा टूट गई, शंकाराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी ब्रह्मलोक गामी हो गई ऐसे महान व्यक्तित्व को हमने स्मरण तक करना मुनासिब नहीं समझा, लानत है ऐसी मीडिया, और ऐसी सोच तथा ऐसी भावुकता पर !- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' मासिक पत्रिका, भिलाई

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

मन का राजा राजा है, बाकी सब गुलाम.

मन का राजा राजा है, बाकी सब गुलाम. इस नजरिए से एक बार खुद को तौलके देखिये

वैसे यह कथा तो है छोटी सी, रोचकता है इसलिए पढ़ने में अच्छी भी लगेगी लेकिन इसकी विशेषता इसकी रोचकता नहीं है,

बल्कि इसमें हमारे जीवन के बहुत से झंझटों का समाधान भी है अगर हम इसे बड़े नजरिए से देख सकें तो. पहले कथा पढ़िए, अंत में नजरिए पर भी बात होगी.

राजा भोज एक बार जंगल में शिकार करने गए लेकिन घूमते हुए वह अपने सैनिकों से बिछुड़ गए. वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे.

तभी उनके सामने से एक लकड़हारा सिर पर लकड़ियों का गठ्ठर उठाए वहां से गुजरा.
लकड़हारा अपनी धुन में चला जा रहा था.

उसकी नजर राजा भोज पर पड़ी. एक पल के लिए रुका. उसने राजा को गौर से देखा फिर अपने रास्ते पर बढ़ गया.

राजा को लकड़हारे के व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ. लकड़हारे ने न उन्हें प्रणाम किया, न ही उनकी सेवा में आया.

उन्होंने लकड़हारे को रोककर पूछा, ‘तुम कौन हो?’

लकड़हारे ने जवाब दिया, ‘मैं अपने मन का राजा हूं.’

राजा ने पूछा, ‘अगर तुम राजा हो तो तुम्हारी आमदनी भी बहुत होगी. कितना कमाते हो?’

लकड़हारे ने जवाब दिया, ‘मैं छह स्वर्ण मुद्राएं रोज कमाता हूं.’

भोज की दिलचस्पी बढ़ रही थी. उन्होंने पूछा, ‘तुम इन मुद्राओं को खर्च कैसे करते हो?’

लकड़हारा बोला, ‘मैं रोज एक मुद्रा अपने ऋणदाता यानी मेरे माता-पिता को देता हूं.

उन्होंने मुझे पाला-पोसा है, मेरे लिए हर कष्ट सहा है.

दूसरी मुद्रा अपने ग्राहक आसामी यानी अपने बच्चों को देता हूं. मैं उन्हें यह ऋण इसलिए दे रहा हूं ताकि मेरे बूढ़े हो जाने पर वे मुझे यह ऋण वापस लौटाएं.’

तीसरी मुद्रा मैं अपने मंत्री को देता हूं, वह है मेरी पत्नी. अच्छा मंत्री वह होता है जो राजा को उचित सलाह दे, हर सुख-दुख में उसका साथ दे. पत्नी से अच्छा साथी मंत्री कौन हो सकता है!

चौथी मुद्रा मैं राज्य के खजाने में देता हूं. पांचवीं मुद्रा का उपयोग मैं अपने खाने-पीने पर खर्च करता हूं क्योंकि मैं कड़ी मेहनत करता हूं.

छठी मुद्रा मैं अतिथि सत्कार के लिए सुरक्षित रखता हूं क्योंकि अतिथि कभी भी किसी भी समय आ सकता है. अतिथि सत्कार हमारा परम धर्म है.’

एक लकड़हारे से ज्ञान की ऐसी बातें सुनकर राजा हक्के-बक्के रह गए.

राजा भोज सोचने लगे, ‘मेरे पास तो लाखों मुद्राएं है पर मैं जीवन के आनंद से वंचित हूं. छह मुद्राएं कमाने वाला लकड़हारा जीवन की शिक्षा का पालन करता अपना वर्तमान और भविष्य दोनों सुखद बना रहा है.’

राजा इसी उधेड़बुन में थे. लकड़हारा जाने लगा. वह लौटकर आया. उसने राजा भोज को प्रणाम किया और बोला, ‘मैं आपको पहचान गया था कि आप राजा भोज हैं. पर मुझे उससे क्या लेना-देना?

अपने जीवन से मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं इसलिए अपना राजा तो मैं स्वयं हूं.’ जाते-जाते उसने भोज को कई और सबक दे दिए थे.

नजरियाः हमारे जीवन का एक बड़ा भाग सोने में निकल जाता है. उसके बाद का सबसे बड़ा भाग आजीविका जुटाने में. आज की दृष्टि इसी बात पर कि आजीविका आखिर है क्या?

एक तरफ राजा भोज हैं जिनके पास अनंत स्वर्ण मुद्राएं हैं. जिन्हें राज्य की चिंता, अपने परिजनों की चिंता करनी है लेकिन उलझनों में फंसे है.

राजा हैं तो राजा होने का अभिमान भी है. सभी के द्वारा उनकी वंदना हो इसकी भी इच्छा रखते हैं. कैसे सब पर नियंत्रण बनाए रखा जाए, इसकी चिंता अलग.

दूसरी तरफ वह लकड़हारा जो अपनी मेहनत से रोज की छह स्वर्ण मुद्राएं कमाता है. उसमें से कहां और कितना खर्चना है, यह तय कर रखा है. किसी मारामारी में नहीं है.

जीवन सुकून से चल रहा है. सिर्फ सुकून ही क्यों वह अपनी, अपने परिवार की और अपने देश तक की चिंता करता हुआ सुखी है.

इच्छाओं का कहीं अंत है क्या? एक के बाद दूसरी पैदा होगी. एक आत्मअनुशासन रखिए. अपने बच्चों के सामने कभी बड़ी-बड़ी इच्छाओं और उसे पूरी करने के लिए कर रहे प्रपंचों की चर्चा न होने दें.

एक असंतुष्ट मन विवेकपूर्ण निर्णय नहीं कर पाता. अपनी जरूरतों की हमें एक रेखा खींच लेनी चाहिए.

जीवन सुखमय होगा यदि हम राजा भोज की बजाय लकड़हारे बनने का प्रयास करेंगे. मन का राजा होता है. मन के राजा के सामने सभी गुलाम होते हैं.

कबीरदास जी ने कितनी सुंदर बात लिखी है-

चाह मिटी चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह !
उनको कुछ नहीं चाहिए, जो शाहन के शाह !!
#साभार

तंत्र की दृष्टि में एक साधक के लिये महापर्व होली

तंत्र की दृष्टी में होली एक विशेष पर्व
तंत्र के आदि गुरु भगवान् शिव माने जाते है और वे वास्तव में देवों के देव महादेव है। तंत्र शास्त्र का आधार यही है की व्यक्ति का ब्रह्म से साक्षात्कार हो जाये और उसका कुण्डलिनी जागरण हो तथा तृतीय नेत्र (Third Eye) एवं सहस्रार जागृत हो।
भगवान् शिव ने प्रथम बार अपना तीसरा नेत्र फाल्गुन पूर्णिमा होली के दिन ही खोला था और कामदेव को भस्म किया था। इसलिए यह दिवस तृतीय नेत्र जागरण दिवस है और तांत्रिक इस दिन विशेष साधना संपन्न करते है जिससे उन्हें भगवान् शिव के तीसरे नेत्र से निकली हुई ज्वाला का आनंद मिल सके और वे उस अग्नि ऊर्जा को ग्रहण कर अपने भीतर छाये हुए राग, द्वेष, काम, क्रोध, मोह-माया के बीज को पूर्ण रूप से समाप्त कर सकें।
होली का पर्व पूर्णिमा के दिन आता है और इस रात्रि से ही जिस काम महोस्तव का प्रारम्भ होता है उसका भी पूरे संसार में विशेष महत्त्व है क्योंकि काम शिव के तृतीय नेत्र से भस्म होकर पुरे संसार में अदृश्य रूप में व्याप्त हो गया। इस कारण उसे अपने भीतर स्थापित कर देने की क्रिया साधना इसी दिन से प्रारम्भ की जाती है। सौन्दर्य, आकर्षण, वशीकरण, सम्मोहन, उच्चाटन आदि से संबन्धित विशेष साधनाएं इसी दिन संपन्न की जाती है। शत्रु बाधा निवारण के लिए, शत्रु को पूर्ण रूप से भस्म कर उसे राख बना देना अर्थात अपने जीवन की बाधाओं को पूर्ण रूप से नष्ट कर देने की तीव्र साधनाएं महाकाली, चामुण्डा, भैरवी, बगलामुखी धूमावती, प्रत्यंगिरा इत्यादि साधनाएं भी प्रारम्भ की जा सकती हैं तथा इन साधनाओं में विशेष सफलता शीघ्र प्राप्त होती है।
काम जीवन का शत्रु नहीं है क्योंकि संसार में जन्म लिया है तो मोह-माया, इच्छा, आकांक्षा यह सभी स्थितियां सदैव विद्यमान रहेंगी ही और इन सब का स्वरुप काम ही हैं। लेकिन यह काम इतना ही जाग्रत रहना चाहिए कि मनुष्य के भीतर स्थापित शिव, अपने सहस्रार को जाग्रत कर अपनी बुद्धि से इन्हें भस्म करने की क्षमता रखता हो।
और फिर होली का पर्व ... दो महापर्वों के ठीक मध्य घटित होने वाला पर्व! होली के पंद्रह दिन पूर्व ही संपन्न होता है, महाशिवरात्रि का पर्व और पंद्रह दिन बाद चैत्र नवरात्री का। शिव और शक्ति के ठीक मध्य का पर्व और एक प्रकार से कहा जाएं तो शिवत्व के शक्ति से संपर्क के अवसर पर ही यह पर्व आता है। जहां शिव और शक्ति का मिलन है वहीं ऊर्जा की लहरियां का विस्फोट है और तंत्र का प्रादुर्भाव है, क्योंकि तंत्र की उत्पत्ति ही शिव और शक्ति के मिलन से हुई। यह विशेषता तो किसी भी अन्य पर्व में सम्भव ही नहीं है और इसी से होली का पर्व का श्रेष्ठ पर्व, साधना का सिद्ध मुहूर्त, तांत्रिकों के सौभाग्य की घड़ी कहा गया है।
प्रकृति मैं हो रहे कम्पनों का अनुभव सामान्य रूप से न किया जा लेकिन महाशिवरात्रि के बाद और चैत्र नवरात्रि के पहले - क्या वर्ष के सबसे अधिक मादक और स्वप्निल दिन नहीं होतें? ... क्या इन्हीं दिनों में ऐसा नहीं लगता है कि दिन एक गुनगुनाहट का स्पर्श देकर चुपके से चला गया है और सारी की सारी रात आखों ही आखों में बिता दें ... क्योंकि यह प्रकृति का रंग है, प्रकृति की मादकता, उसके द्वारा छिड़की गई यौवन की गुलाल है और रातरानी के खिले फूलों का नाशिलापन है। पुरे साल भर में यौवन और अठखेलियां के ऐसे मदमाते दिन और ऐसी अंगडाइयों से भरी रातें फिर कभी होती ही नहीं है और हो भी कैसे सकती हैं ....
तंत्र भी जीवन की एक मस्ती ही है, जिससे सुरूर से आंखों में गुलाबी डोरें उतर आते हैं, क्योंकि तंत्र का जानने वाला ही सही अर्थ में जीवन जीने की कला जानता है। वह उन रहस्यों को जानता हैं जिनसे जीवन की बागडोर उसके ही हाथ में रहती है और उसका जीवन घटनाओं या संयोगों पर आधारित न होकर उसके ही वश में होता है, उसके द्वारा ही गतिशील होता है। तंत्र का साधक ही अपने भीतर उफनती शक्ति की मादकता का सही मेल होली के मुहूर्त से बैठा सकता है और उन साधनाओं को संपन्न कर सकता है, जो न केवल उसके जीवन को संवार दे बल्कि इससे भी आगे बढ़कर उस उंचे और उंचे उठाने में सहायक हो।
इस साल यह होली पर्व मार्च में संपन्न हो रहा है। जो भी अपने जीवन को और अपने जीवन से भी आगे बढ़कर समाज व् देश को संवारने की इच्छा रखते है, लाखों-लाख लोगों का हित करने, उन्हें प्रभावित करने की शैली अपनाना चाहते है, उनके लिए तो यही एक सही अवसर है। इस दिन कोई भी साधना संपन्न की जा सकती है। तान्त्रोक्त साधनाएं ही नहीं दस महाविद्या साधनाएं, अप्सरा या यक्षिणी साधना या फिर वीर-वेताल, भैरवी जैसी उग्र साधनाएं भी संपन्न की जाएं तो सफलता एक प्रकार से सामने हाथ बाँध खड़ी हो जाती है। जिन साधनाओं में पुरे वर्ष भर सफलता न मिल पाई हो, उन्हें भी एक एक बार फिर इसी अवसर पर दोहरा लेना ही चाहिए।

सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

'शुभवेसि' राजयोग में जन्म लेने वाला राजाप्रिय अधिकारी (IS,IPS,IFS) होता है, और लोकप्रिय भी

महान व्यक्तित्व के धनी और देश की दशा-दिशा तय करने वाले होते हैं 'शुभवेसि' योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति.....

!! ऊँ हनुमते नम:!! मंगलवासरीय यथायोग्य आप सभी को नमस्कार/प्रणाम/मंगल आशीष..आईए हनुमानजी के विग्रह रुप का दर्शन करते हुए आज के दिन की शुरुआत करें.
🌹☘🌹☘🌹☘🌹☘
जात: स्यात् सुभग: सुखी, गुणनिधिर्धीरो धार्मिको, 
विख्यात: सकल प्रियोsति सुभगो दाता महीशप्रिय: !!
चार्वांग: प्रियवाक्पञ्चरसिको वाग्मी यशस्वी धनी,
विद्यादत्र सुवेसिवास्युभयचर्याख्येषु पादक्रमात् !! - फलदीपिका

अर्थ : जो व्यक्ति 'शुभवेसि' नामक योग में जन्म लेते हैं वह सुन्दर, सुखी, गुणनिधि, धीर, धार्मिक, विख्यात, सर्वजनप्रिय, सुभग, अनेको व्यक्तियों पर राज करने वाला, राजा का प्रिय यानी बड़े ओहदे वाला उच्चाधिकारी होता है, 'पापवेसि योग' में उपरोक्त फलों का परिणाम ठिक विपरित हो जाता है (संबंधित जानकारी के लिये आप संपर्क करें- आचार्य पण्डित विनोद चौबे,9827198828) , मित्रों यह योग केन्द्र व राज्य सरकारों की नीतियों की दशा-दिशा तय करने वाले आईएस अधिकारियों में ज्यादातर देखा गया है, हां इसमें कुछ पापग्रहों के विंशोत्तरी दशा-अन्तर्दशा में प्रतिकूलता भी देखी गई है अत: यह प्रतिकूलता क्षणिक तो होती हैं परन्तु तेज रफ्तार से चल रही गाड़ी में अचानक ब्रेक जैसा ही हानिप्रद होता है अत: उस वक्त जन्मकुण्डली की समीक्षा कराकर 'बगलामुखी पुरश्चरण' या 'मृतसंजिवनी महाविद्या' अथवा 'विपरितप्रत्यंगिरा अनुष्ठान' अधिक उपयुक्त होता है ! (अगले लेख में 'पापवेशि योग' के बारे में बतायेंगे) -आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक-'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांति नगर, भिलाई, जिला -दुर्ग (छ.ग.) मोबा. न.9827198828
🚩🚩🌹🌹🚩🚩

रविवार, 25 फ़रवरी 2018

असाधारण व्यक्तित्व बनाता है 'गजकेसरी राजयोग' और 'पारिजात राजयोग'

सोमवारीय सुप्रभात आज बात करेंगे, फलित ज्योतिष में बहुप्रशंसित राजयोग 'गजकेसरी राजयोग' के बारे में !

गजकेसरी योग को असाधारण राजयोग है। यह योग जिस व्यक्ति की कुंडली में पाया जाता है वह जीवन में कभी भी अभाव ग्रस्त नहीं रहता। इस योग मे जन्म लेने वाले व्यक्ति को धन, यश और किर्ति स्वत: खिंची चली आती है। जब कुंडली में गुरु और चंद्र पूर्ण कारक प्रभाव के साथ होते हैं तब यह योग बनता है। लग्र स्थान में कर्क, धनु, मीन, मेष या वृश्चिक हो तब यह कारक प्रभाव के साथ माना जाता है। हालांकि अकारक होने पर भी फलदायी माना जाता है परन्तु यह मध्यम दर्जे का होता है चंद्रमा से केंद्र स्थान में 1, 4, 7, 10 बृहस्पति होने से गजकेसरी योग बनता है। इसके अलावा अगर चंद्रमा के साथ बृहस्पति हो तब भी यह योग बनता है।

'गजकेसरी योग' जैसा ही है 'पारिजात राजयोग'- पण्डित विनोद चौबे

पारिजात योग भी उत्तम योग माना जाता है। इस योग की विशेषता यह है कि यह जिस व्यक्ति की कुंडली में होता है वह जीवन में कामयाबी और सफलता के शिखर पर पहुंचता है परन्तु रफ्तार धीमी रहती है यही कारण है कि मध्य आयु के पश्चात इसका प्रभाव दिखाई देता है।

-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांति नगर, भिलाई, जिला- दुर्ग (..) मोबा. नं. 9827198828

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

क्यों होते हैं शादी कार्ड पर श्री गणेश विराजमान
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
श्री गणेश पूजा अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण व कल्याणकारी है। चाहे वह किसी कार्य की सफलता के लिए हो या फिर चाहे किसी कामनापूर्ति स्त्री, पुत्र, पौत्र, धन, समृद्धि के लिए या फिर अचानक ही किसी संकट मे पड़े हुए दुखों के निवारण हेतु हो। जब कभी किसी व्यक्ति को किसी अनिष्ट की आशंका हो या उसे शारीरिक या आर्थिक कष्ट उठाने पड़ रहे हो तो ऐसे में उसे श्री गणेश की आराधना करने को कहा जाता है। श्री गणेश को सभी दुखों को हरने वाला या दुखहर्ता माना गया है। श्री गणेश बुद्धि के देवता हैं। इसीलिए श्री गणेश प्रथम पूज्य है यानि हर शुभ कार्य में गणेशजी की पूजा सबसे पहले की जाती है क्योंकि उनके स्वरूप में अध्यात्म और जीवन के गहरे रहस्य छुपे हैं। जिनसे हम जीवन प्रबंधन के सफल सूत्र हासिल कर सकते हैं।
इसी तरह श्री गणेश की छोटी आंखें मानव को जीवन में सूक्ष्म दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं। उनकी बड़ी नाक (सूंड) दूर तक सूंघने में समर्थ है जो उनकी दूरदर्शिता को बताती है। जिसका अर्थ है कि उन्हें हर बात का ज्ञान है। श्री गणेश के दो दांत हैं एक पूर्ण व दूसरा अपूर्ण। पूर्ण दांत श्रद्धा का प्रतीक है तथा टूटा हुआ दांत बुद्धि का। शास्त्रों के अनुसार गणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है। इसीलिए शादी के कार्ड पर श्री गणेश का चित्र बनवाने की परंपरा अस्तित्व में आई ताकि शादी जैसा बड़ा आयोजन श्री गणेश की कृपा से बिना किसी विघ्न के सम्पन्न हो जाए। श्री गणेश का विघ्नकर्ता का रूप जगत के प्राणियों के कार्य और व्यवहार को मर्यादा और सीमाओं में रखता है, तो विघ्नहर्ता रूप कार्य के शुभ आरंभ और उसमें आने वाली बाधाओं को दूर कर निर्विघ्न संपन्न करता है।
भारतीय परंपरा में हर काम की शुरुआत में गणपति को पहले मनाया जाता है। शिक्षा से लेकर नए वाहन तक, व्यापार से लेकर विवाह तक हर काम में पहले गणपति को ही आमंत्रित किया जाता है। ऐसा कौन सा कारण है कि हम गणपति के बिना कोई काम नहीं कर सकते? आखिर किस कारण से गणपति को पहले पूजा जाता है? गणपति को पहले पूजे जाने के पीछे बड़ा ही दार्शनिक कारण है, हम इसकी ओर ध्यान नहीं देते कि इस बात के पीछे संदेश क्या है। दरअसल गणपति बुद्धि और विवेक के देवता है। बुद्धि से ही विवेक आता है और जब दोनों साथ हों तो कोई भी काम किया जाए उसमें सफलता मिलना निश्चित है। हम जब गणपति को पूजते हैं तो यह आशीर्वाद मांगते हैं कि हमारी बुद्धि स्वस्थ्य रहे और हम सही वक्त पर सही निर्णय लेते रहे ताकि हमारा हर काम सफल हो।
इसके पीछे संदेश यही है कि आप जब भी कोई काम शुरू करें अपनी बुद्धि को स्थिर रखें, इसलिए गणपति जी का चित्र भी कार्ड पर बनाया जाता है साथ ही गणेश जी को विघ्रहर्ता भी कहा जाता है शादी जैसा बड़ा आयोजन बिना किसी बाधा के सम्पन्न हो जाए इसलिए सबसे पहले श्री गणेश को पीला चावल और लड्डू का भोग अर्पित कर पूरा परिवार एकत्रित होकर उनसे शादी में पधारने के लिए प्रार्थना करता है ताकि शादी में सभी गजानन की कृपा से खुश रहें।
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

मुस्लिम उलेमा बोले भगवान शंकर हमारे पहले पैगंबर

अब यह पूर्णतया सिद्ध हो
गया है कि मक्का में मक्केश्वर
महादेव विराजित हैं !!

मुस्लिम उलेमा बोले,
भगवान शंकर हमारे
पहले पैगंबर !!

जमीयत उलमा,बलरामपुर
के सरपरस्त मुफ्ती मोहम्मद
इलियास ने कहा कि शंकर
और पार्वती हमारे मां-बाप हैं।

भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित
करने का हम विरोध नहीं
करते हैं।

जैसे चाइनीज व जापानी हैं।
वैसे ही हम हिंदुस्तानी हैं।
हम भी सनातनधर्मीं हैं।’

जमीयत उलमा के मौलानाओं
ने देश व समाज की बुराइयों
व सामाजिक सौहार्द और
एकता के लिए बलरामपुर
में 27 फरवरी को आयोजित
राष्ट्रीय कौमी एकता कॉन्फ्रेंस
के लिए संतों को आमंत्रित
किया।

क्या शिव-पार्वती हैं
'आदम और ईव'?

हमने यह तो ढूंढ लिया कि
नूह ही मनु है और ह.इब्राहिम
अलै.ही अभिराम है,लेकिन
प्राप्त शोध कहते हैं कि शिव
ही 'आदम' है।

क्यों और कैसे?

भगवान शिव को आदिदेव
कहा जाता है।

यह भी माना जाता है कि सबसे
पहले धरती पर शिव ही प्रकट
हुए।

शिव के दो पुत्र थे,गणेश और
कार्तिकेय।

''जैसा कि कहा गया है कि
आदम के दो पुत्र कैन और
हाबिल थे।

कैन बुरा और हाबिल अच्छा।

कहीं हमने पढ़ा था आदमसेन
और हव्यवती के बारे में।

पार्वती ही क्या ईव है।

भविष्य पुराण में इसका
उल्लेख मिलता है।

भविष्य पुराण में माता पार्वती
को 'हव्यवती' भी कहा गया है।

कुछ विद्वानों का मानना है
कि मनु और शतरूपा ही
आदम और हव्वा थे,लेकिन
कुछ विद्वान कहते हैं कि
वे पहले नहीं दूसरे थे यानी
जल-प्रलय के मनु (नूह)बच
गए थे तो वे दूसरे थे।

दूसरी बार मानव-जीवन रचना
हुई।

कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि
ईडन गार्डन श्रीलंका में था।

श्रीलंका आज जैसा द्वीप नजर
आता है यह पहले ऐसा नहीं
था।

यह इंडोनेशिया,जावा,सुमात्रा
और भारत से जुड़ा हुआ था।

श्रीलंका में रहते थे बाबा
आदम और उनकी पत्नी हव्वा।

क्या यह सच है ?

हमने पढ़ा है कि शिव और
पार्वती भी कैलाश पर्वत से
श्रीलंका रहने चले गए थे
जबकि कुबेर ने उन्हें सोने
की लंका बनवाकर दी थी।

हजरत आदम जब आसमान
की जन्नत (ईडन उद्यान)
से निकाले गए तो सबसे
पहले 'हिंदुस्तान की जमीं'
पर ही उतरे,जहां उन्होंने
सबसे पहले कदम रखे
उसे आदम चोटी कहते हैं।

ह.आदम अलै. का 'तनूर'
हिंद में था।

क्या आपको पता है कि
'कश्मीर' ही उस दौर का
स्वर्ग (जन्नत) था,
जहां का राजा इंद्र था।

वहां आज भी सेबफल
की खेती होती है।

एक दूसरा भी स्वर्ग था जिसका
स्थान सप्तऋषि तारामंडल और
ध्रुव तारे के बीच माना गया है।

शिव की कथा और आदम
की कथा में बहुत समानता है।

अगले पन्ने पर 'आदम चोटी'
जिसे रावण ने उठाने का साहस
किया था लेकिन...

श्रीलंका में एक आदम चोटी है।

इस चोटी पर भगवान शंकर
के पांवों के निशान हैं।

इसका प्राचीन नाम सारान्दीप
पर्वत है जिसे 'एडम पीक' भी
कहते हैं।

यह श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिम
में स्थित है।

यह पर्वत 2,243 मीटर ऊंचा
और रत्नपुरा से 18 किलोमीटर
पूर्वोत्तर में स्थित है।

इस पर्वत का शंक्वाकार शिखर
22/7 मीटर आयताकार आधार
में समाप्त होता है,जिस पर
मानव पांव के निशान से
मिलता-जुलता एक विशाल
गड्ढा है।

प्राचीन हिंदू मान्यता अनुसार
यह गड्ढा भगवान शिव का
पदचिह्न है जबकि मुसलमान
और ईसाई इसे आदम के पैर
के निशान मानते हैं।

दूसरी ओर बौद्ध इसे बुद्ध
के पैर का निशान कहते हैं।

रामायण में एक प्रसंग आता है
कि एक बार रावण जब अपने
पुष्पक विमान से यात्रा कर
रहा था तो रास्ते में एक वन
क्षेत्र से गुजर रहा था।

उस क्षेत्र के पहाड़ पर
शिवजी ध्यानमग्न बैठे थे।

शिव के गण नंदी ने रावण
को रोकते हुए कहा कि इधर
से गुजरना सभी के लिए
निषिद्ध कर दिया गया है,
क्योंकि भगवान तप में
मगन हैं।

रावण को यह सुनकर
क्रोध उत्पन्न हुआ।

उसने अपना विमान नीचे
उतारकर नंदी के समक्ष खड़े
होकर नंदी का अपमान किया
और फिर जिस पर्वत पर शिव
विराजमान थे  उसे उठाने लगा।

यह देख शिव ने अपने अंगूठे से
पर्वत को दबा दिया जिस कारण
रावण का हाथ भी दब गया और
फिर वह शिव से प्रार्थना करने
लगा कि मुझे मुक्त कर दें।

इस घटना के बाद वह शिव
का भक्त बन गया।

क्या यह वही पहाड़ है और
क्या शिव के पैरों के दबाव
के कारण यह विशालकाय
गड्ढा बन गया ?

हालांकि कुछ लोग इसे रावण
के पैरों के निशान मानते हैं।

श्रीलंका में आदम पुल भी है।

रामसेतु को भी एडम्स ब्रिज
कहा जाता है।

मान्यता है कि बाबा आदम
इसी पुल से होकर भारत,
अफ्रीका और फिर अरब
चले गए थे।

=================

मोहम्मद इलयासी ने क्यों
कहा शिव जी उनके पहले
पैगम्बर हैं....?

रामायण में सभी राक्षसों
का वध हुआ था लेकिन
सूर्पनखा का वध नहीं हुआ
था,उसका नाक और कान
काट कर छोड़ दिया गया था।

वह कपडे से अपने चेहरे को
छुपा कर रहती थी,रावन के
मर जाने के बाद वह अपने
पति के साथ शुक्राचार्य के
पास गयी और जंगल में
उनके आश्रम में रहने लगी....

राक्षसों का वंश ख़त्म न हो
इसलिए शुक्राचार्य ने शिव
जी की आराधना की।

शिव जी ने अपना स्वरुप
शुक्राचार्य को दे कर कहा
कि जिस दिन कोई वैष्णव
इस पर गंगा जल चढ़ा देगा
उस दिन राक्षसों का नाश हो
जायेगा....

उस आत्म लिंग को शुक्राचार्य
ने वैष्णव मतलब हिन्दुओं से
दूर रेगिस्तान में स्थापित किया
जो आज अरब में है।

सूर्पनखा जो उस समय चेहरा
ढक कर रहती थी वो परंपरा
को उसके बच्चो ने पूरा निभाया
आज भी मुस्लिम औरतें चेहरा
ढकी रहती हैं।

सूर्पनखा वंसज आज मुसलमान
कहलाते हैं,क्योंकि शुक्राचार्य ने
इनको जीवन दान दिया इस
लिए ये शुक्रवार को विशेष
महत्त्व देते हैं...

पूरी जानकारी तथ्यों पर
आधारित सच हैं आप
जानते है मक्का मे शिव
लिंग है।
#सन्दर्भ_भविष्य_पुराण