क्या देश की मीडिया ने देश के साथ बेमानी नहीं किया....?? और हमारी क्या जिम्मेदारी है..?? अहसास है की हम हिन्दू हैं, हम भारतीय हैं...??.?.
आज मन क्षुब्ध हुआ, और मैं तो अपनी कौम को ही कोंस रहा हुं, ये हमारा हिन्दू समाज अपनी जिम्मेदारी कब समझेगा ! देश में मीडिया ने पहले श्रीदेवी की मौत पर गलत अफवाह खबरें उड़ाती रहीं और बाद में अपनी कमी को तोपने के लिये लाईव दिखाया जा रहा है लेकिन देश के लिये जो सर्वाधिक अपूरणीय क्षति हुई ऐसे संस्कृत-महामनस्वी जयेन्द्र सरस्वती जी के ब्रह्मलीन की लाईव दिखाना तो दूर , नीचे पट्टी तक नहीं चलाया गया! इस मीडिया को कोसने से पहले हम स्वयं की समीक्षा करें की कितने लोग अपने बच्चों को 'शंकराचार्यों' के बारे मे बताते है ?? जिस देश में पाश्चात्य नर्तकियां, इतनी पूजी जाती हों उस देश में हिन्दुओं को क्या कहा जाय बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक ?? कितनों ने शंकाराचार्य का लाईव समाचार चलाया ? क्या सभी मीडिया अहिन्दु हैं..? नहीं मैं यह बिल्कुल भी नहीं मानता क्योंकि शंकाराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी से कई संस्कृत प्रेमी मुसलमान तथा अन्य धर्मों के लोग भी उनसे जुड़े रहे हैं ऐसे क्या केवल 'मीडिया को अपनी जिम्मेदारी नहीं समझनी चाहिये थी ? मैं मानता हुं की पद्मश्री से नवाजी जा चुकी श्रीदेवी को इतना कव्हरेज मिलना चाहिये, परन्तु शंकाराचार्यजी को बिल्कुल भी न महत्व दिया जाना देश के साथ बेमानी नहीं है ? मैं भिलाई के एक छोटे से शहर का निवासी हुं, लेकिन हमारे शहर से कई लोगों के फोन आये की महाराजजी क्या यह बात सही है ?? इसका मतलब हमारे भिलाई की जनता इतनी जागरूक है अपनी कर्तव्यों की खातीर और पगलाये तो वो लोग हैं जो तीन दिन से लाईन लगाये खड़े होकर 'श्रीदेवी' का दर्शन कर रहे हैं, मेरा मानना है कि हम भारतीय केवल दूसरों को कोंसने वाले आज दुनिया के सबसे कमजोर धर्मरथी होते जा रहे हैं, जबकी २००० वर्ष पूर्व हम सबसे मजबूत थे, और जिसने हमको मजबूत किया उन्हीं की एक शाखा टूट गई, शंकाराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी ब्रह्मलोक गामी हो गई ऐसे महान व्यक्तित्व को हमने स्मरण तक करना मुनासिब नहीं समझा, लानत है ऐसी मीडिया, और ऐसी सोच तथा ऐसी भावुकता पर !- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' मासिक पत्रिका, भिलाई
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