ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

चिकित्सा हाथ की मुद्राओं से....

हस्त-मुद्रा-चिकित्सा !!

मानव-शरीर अनन्त रहस्योंसे
भरा हुआ है।
शरीरकी अपनी एक मुद्रामयी
भाषा है।

जिसे करने से शारीरिक
स्वास्थ्य-लाभ में सहयोग
होता है।

यह शरीर पंचतत्त्वोंके योग
से बना है ।

पाँच तत्त्व ये हैं-

(1)पृथ्वी,(2)जल,
(3)अग्नि,(4)वायु,एवं
(5)आकाश।

हस्त-मुद्रा-चिकित्साके अनुसार
हाथ तथा हाथोंकी अँगुलियों
और अँगुलियोंसे बननेवाली
मुद्राओंमें आरोग्यका राज
छिपा हुआ है।

हाथकी अँगुलियों में पंचतत्त्व
प्रतिष्ठित हैं।

ऋषि-मुनियोंने हजारों साल
पहले इसकी खोज कर ली
थी एवं इसे उपयोगमें बराबर
प्रतिदिन लाते रहे,इसीलिये वे
लोग स्वस्थ रहते थे।

ये शरीरमें चैतन्य को अभिव्यक्ति
देनेवाली कुंजियाँ हैं।

अँगुली में पंच तत्व :

हाथों की 10 अँगुलियों से
विशेष प्रकार की आकृतियाँ
बनाना ही हस्त मुद्रा कही
गई है।

हाथों की सारी अँगुलियों
में पाँचों तत्व मौजूद होते
हैं जैसे अँगूठे में अग्नि तत्व,
तर्जनी अँगुली में वायु तत्व,
मध्यमा अँगुली में आकाश
तत्व,अनामिका अँगुली में
पृथ्वी तत्व और कनिष्का
अँगुली में जल तत्व।

अँगुलियों के पाँचों वर्ग से
अलग-अलग विद्युत धारा
प्रवाहित होती है।

इसलिए मुद्रा विज्ञान में जब
अँगुलियों का रोगानुसार आपसी
स्पर्श करते हैं,तब रुकी हुई या
असंतुलित विद्युत बहकर शरीर
की शक्ति को पुन: जगा देती है
और हमारा शरीर निरोग होने
लगता है।

ये अद्भुत मुद्राएँ करते ही यह
अपना असर दिखाना शुरू कर
देती हैं।

किसी भी मुद्राको करते समय
जिन अँगुलियोंका कोई काम
न हो उन्हें सीधी रखे।

वैसे तो मुद्राएँ बहुत हैं पर
कुछ मुख्य मुद्राओंका वर्णन
यहाँ किया जा रहा है,जैसे-

(1) ज्ञान-मुद्रा★

विधि:- अँगूठेको तर्जनी
अँगुलीके सिरेपर लगा दे।
शेष तीनों अँगुलियाँ चित्र
के अनुसार सीधी रहेंगी।

लाभ:-

स्मरण-शक्तिका विकास
होता है और ज्ञानकी वृद्धि
होती है,पढ़नेमें मन लगता
है तथा अनिद्रा का नाश,
स्वभावमें परिवर्तन,अध्यात्म-
शक्तिका विकास और क्रोध
का नाश होता है।

सावधानी:-

खान-पान सात्त्विक रखना
चाहिये,पान-पराग, सुपारी,
जर्दा इत्यादि का सेवन न करे।
अति उष्ण और अति शीतल
पेय पदार्थोंका सेवन न करे।

(2) वायु-मुद्रा★

विधि:- तर्जनी अँगुली को मोड़कर अँगूठेके मूलमें लगाकर हलका दबाये।
शेष अँगुलियाँ सीधी रखे।

लाभ:- वायु शान्त होती है।
लकवा,साइटिका,गठिया,
संधिवात,घुटनेके दर्द ठीक
होते हैं।
गर्दनके दर्द,रीढ़के दर्द आदि
विभिन्न रोगोंमें फायदा होता है।

विशेष- इस मुद्रासे लाभ न
होने पर प्राण-मुद्रा(संख्या10)
-के अनुसार प्रयोग करे ।

सावधानी:- लाभ हो जाने
तक ही करे इस मुद्रा को।

(3) आकाश-मुद्रा★

विधि:- मध्यमा अँगुलीको
अँगूठेके अग्र भाग से मिलाये।
शेष तीनों अँगुलियाँ सीधी रहें।

लाभ:‌- कानके सब प्रकारके रोग
जैसे बहरापन आदि,हड्डियों की
कमजोरी तथा हृदय-रोग ठीक
होता है।

सावधानी:- भोजन करते समय
एवं चलते-फिरते यह मुद्रा न
करे।
हाथोंको सीधा रखे।
लाभ हो जानेतक ही करे।

(4) शून्य-मुद्रा★

विधि:- मध्यमा अँगुली को
मोड़कर अँगुष्ठके मूलमें लगाये
एवं अँगूठेसे दबाये।

लाभ:- कानके सब प्रकार के
रोग जैसे बहरापन आदि दूर
होकर शब्द साफ सुनायी देता
है,मसूढ़ेकी पकड़ मजबूत होती
है तथा गलेके रोग एवं
थायरायड रोगमें फायदा
होता है।

(5) पृथ्वी-मुद्रा★

विधि:- अनामिका अँगुली
को अँगूठे से लगाकर रखे।

लाभ:- शरीरमें स्फूर्ति,कान्ति
एवं तेजस्विता आती है।

दुर्बल व्यक्ति मोटा बन सकता
है,वजन बढ़ता है,जीवनी
शक्तिका विकास होता है।

यह मुद्रा पाचन-क्रिया ठीक
करती है,सात्त्विक गुणों का
विकास करती है,दिमाग में
शान्ति लाती है तथा विटामिन
की कमीको दूर करती है।

(6) सूर्य‌‌-मुद्रा★

विधि:- अनामिका अँगुली
को अँगूठेके मूलपर लगाकर
अँगूठे से दबाये।

लाभ:- शरीर संतुलित होता है,
वजन घटता है,मोटापा कम
होता है।

शरीरमें उष्णताकी वृद्धि,तनाव
में कमी,शक्तिका विकास,खून
का कोलस्ट्रॉल कम होता है।

यह मुद्रा मधुमेह,यकृत्‌(जिगर)
- के दोषोंको दूर करती है।

सावधानी:- दुर्बल व्यक्ति इसे
न करे।
गर्मीमें ज्यादा समय तक न
करे।

(7) वरुण-मुद्रा★

विधि:- कनिष्ठा अँगुलीको
अँगूठे से लगाकर मिलाये।

लाभ:- यह मुद्रा शरीर में
रूखापन नष्ट करके चिकनाई
बढ़ाती है,चमड़ी चमकीली तथा
मुलायम बनाती है।

चर्म-रोग,रक्त-विकार एवं
जल-तत्त्वकी कमी से उत्पन्न
व्याधियोंको दूर करती है।

मुँहासोंको नष्ट करती और
चेहरे को सुन्दर बनाती है।

सावधानी‌:- कफ-प्रकृति वाले
इस मुद्रा का प्रयोग अधिक न
करें।

(8) अपान-मुद्रा★

विधि:- मध्यमा तथा अनामिका
अँगुलियोंको अँगूठे के अग्रभाग
से लगा दे।

लाभ:- शरीर और नाड़ी की
शुद्धि तथा कब्ज दूर होता है।
मल-दोष नष्ट होते हैं,बवासीर
दूर होता है।

वायु-विकार,मधुमेह,मूत्रावरोध,
गुर्दोंके दोष,दाँतोंके दोष दूर
होते हैं।

पेट के लिये उपयोगी है,हृदय
-रोग में फायदा होता है तथा
यह पसीना लाती है।

सावधानी:- इस मुद्रासे मूत्र अधिक होगा।

(9) अपान वायु या
हृदय-रोग-मुद्रा★

विधि:- तर्जनी अँगुली को अँगूठे
के मूलमें लगाये तथा मध्यमा
और अनामिका अँगुलियों को
अँगूठे के अग्र भागसे लगा दे।

लाभ:- जिनका दिल कमजोर
है,उन्हें इसे प्रतिदिन करना
चाहिये।

दिलका दौरा पड़ते ही यह मुद्रा
करानेपर आराम होता है।

पेटमें गैस होनेपर यह उसे
निकाल देती है।

सिर-दर्द होने तथा दमे
की शिकायत होने पर
लाभ होता है।

सीढ़ी चढ़नेसे पाँच-दस मिनट
पहले यह मुद्रा करके चढ़े।

इससे उच्च रक्तचाप में फायदा
होता है।

सावधानी:- हृदयका दौरा आते
ही इस मुद्राका आकस्मिक
तौर पर उपयोग करे।

(10) प्राण-मुद्रा★

विधि:- कनिष्ठा तथा अनामिका
अँगुलियों के अग्रभाग को अँगूठे
के अग्रभागसे मिलायें।

लाभ:- यह मुद्रा शारीरिक
दुर्बलता दूर करती है,मन को
शान्त करती है,आँखों के दोषों
को दूर करके ज्योति बढ़ाती है,
शरीरकी रोग-प्रतिरोधक शक्ति
बढ़ाती है,विटामिनों की कमी
को दूर करती है तथा थकान
दूर करके नवशक्ति का संचार
करती है।

लंबे उपवास-कालके दौरान
भूख-प्यास नहीं सताती तथा
चेहरे और आँखों एवं शरीर
को चमकदार बनाती है।

अनिद्रामें इसे ज्ञान-मुद्रा
(संख्या 1)- के साथ करे।

(11) लिङ्ग-मुद्रा★

विधि:- चित्र के अनुसार मुठ्ठी
बाँधे तथा बायें हाथके अँगूठे
को खड़ा रखे,अन्य अँगुलियाँ
बँधी हुई रखे।

लाभ:- शरीरमें गर्मी बढ़ाती है।
सर्दी,जुकाम,दमा,खाँसी,
साइनस,लकवा तथा निम्न रक्तचापमें लाभप्रद है,कफ
को सुखाती है।

सावधानी‌:- इस मुद्राका प्रयोग
करने पर जल,फल,फलों का
रस,घी और दूधका सेवन
अधिक मात्रा में करे।
इस मुद्राको अधिक लम्बे समय
तक न करे।
-#साभार_संकलित★
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- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक-'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई
'जयतु सनातन संस्कृति'
(ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क करें)

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