ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

भूत-प्रेत, पिशाच, आत्माओं का प्रभाव और उपाय :

भूत-प्रेत, पिशाच, आत्माओं का प्रभाव और उपाय :

मित्रों, मैं अन्धविश्वास का प्रतिकार करते हुए आम लोगों को अन्धविश्वास से मोड़कर वैदिक शास्वत व्यवस्थाओं के प्रति आस्थावान बनाने के लिए के लिए मैं यह 'भूत-प्रेत, पिशाच तथा आत्माओं के प्रभाव एवं उनके कुप्रभाव से निपटने के लिये उपाय एवं ज्योतिष के द्वारा इस भूत-प्रेत के दोष को कैसे परखा जा सकता है, आदि के बारे में विस्तृत चर्चा करूंगा ! साथियों , 'भूत-प्रेत या आत्माएं यह केवल अन्धविश्वास नहीं वरन वैदिक साहित्य में योनि के रुप में स्वीकार किया गया है ! ऋग्वेद से लेकर गरुण पुराण- प्रेतकल्प, वायुपुराण, लिंग पुराण एवं अथर्ववेदीय कई अभिजात्य प्रयोगों के संदर्भ में भी प्रेतों के बारे में बताया जाता है ! मेरे लिये यह खास दिन है और आज खास दिन पर मैं आपके सामने बेहद दिलचस्प आलेख लेकर प्रस्तुत हुं, भिलाई के कुरुद रोड पर नाले के पास पहले सतनाम समाज का समाधि-स्थल हुआ करता था वहीं से लगा कुछ मुश्लिम संप्रदाय का कब्रिस्तान भी था, आज वहां समीप में एक प्राईवेट स्कूल है वहीं मेरा २१ दिवसीय रात्रिकालीन 'प्रत्यंगिरा साधना' आरम्भ किया और हमने ठाना की प्रेत से बात करूंगा, और आज के १५ वर्ष पूर्व आज के ही दिन सफलता मिली ! इस अवसर पर आपको यह लेख प्रस्तुत करने का विचार किया जो आपके लिये उपयोगी होगा!  
भूत-प्रेत, पिशाच, आत्माएं इन सब से जुड़ी बातें जितनी ज्यादा रोमांचित करती हैं उतनी ही सिहरन और भय का माहौल भी बनाती हैं. रात के समय इन आत्माओं का अगर जिक्र भी छिड़ जाए तो भी चारों तरफ डर और भय का माहौल बन जाता है. बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो इस अंधेरी दुनिया और काले साये जैसी बातों पर भरोसा नहीं करते लेकिन एक सच यह भी है कि अच्छे के साथ-साथ बुरा भी होता है. अगर हम ईश्वर पर विश्वास करते हैं तो हमें पिशाचों पर भी विश्वास करना होगा, नहीं तो सत्य से मुंह फेरने वाली बात ही होगी. आपने ऐसे बहुत से लोगों को देखा या उनके बारे में सुना होगा जो इन्हीं काले सायों के जाल में फंस जाते हैं.

http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/10/blog-post_14.html?m=1

1. पारलौकिक शक्तियों को समझने वाले लोगों का कहना है कि अपनी इच्छाओं और अधूरी आंकाक्षाओं को पूरा करने के लिए कुछ लोग मरने के बाद भी वापिस आते हैं. इसके अलावा अगर अपने संबंधियों या परिचितों के साथ उनका कोई सौदा बकाया रह जाता है तो भी उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती और वह उस लेन-देन को पूरा करने के लिए जीवित लोगों की दुनिया में कदम रखते हैं.

2. बिना शरीर के मृत आत्माएं अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर सकतीं इसीलिए उन्हें एक शरीर की आवश्यकता पड़ती है. वह किसी व्यक्ति के शरीर में वास कर अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करती हैं. यह उनकी इच्छा की गहराई और उसके पूरे होने की समय सीमा पर निर्भर करता है कि वह किसी व्यक्ति के शरीर में कितनी देर तक ठहरते हैं. यह अवधि कुछ घंटों या सालों की भी हो सकती है. कई बार तो जन्मों-जन्मों तक वह आत्मा उस शरीर का पीछा नहीं छोड़ती.

3. ऐसा माना जाता है कि जानवर किसी आत्मा या पिशाच की उपस्थिति को सबसे पहले भांप सकता है. अगर रात के समय कोई कुत्ता बिना किसी कारण के भौंकने लगे या अचानक शांत होकर बैठ जाए तो इसका मतलब है उसने किसी पारलौकिक शक्ति का अहसास किया है.

4. झगड़े या विवाद के पश्चात किसी भूमि या इमारत का अधिग्रहण किया जाता है और इस झगड़े के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो वह जगह हॉंटेड बन जाती है. निश्चित तौर पर वहां बुरी आत्माएं अपना डेरा जमा लेती हैं.

5. जीवित लोगों को बहुत चीजें प्यारी होती हैं. किसी को अपना मोबाइल प्यारा होता है तो कोई अपने कैमरे के बिना नहीं रह सकता. लेकिन अगर आप यह सोचते हैं कि मरने के बाद यह प्यार समाप्त हो जाता है तो आप गलत हैं. क्योंकि मरने के बाद भी चीजों के साथ यह लगाव बरकरार रहता है और जिन चीजों को मृत व्यक्ति अपने जीवन में बहुत प्यार करता था मरने के बाद भी उसे अपना ही समझता है. इसीलिए अगर कोई दूसरा व्यक्ति उस वस्तु को हाथ लगाए तो यह उन्हें बर्दाश्त नहीं होता..

भूत-प्रेत के बारे में 10 बातें....

भूत-प्रेत का नाम सुनते ही अचानक ही एक भयानक आकृति हमारे दिमाग में उभरने लगती है और मन में डर समाने लगता है। हमारे दैनिक जीवन में कहीं न कहीं हम भूत-प्रेत का नाम अवश्य सुनते हैं। कुछ लोग भूतों को देखने का दावा भी करते हैं जबकि कुछ इसे कोरी अफवाह मानते हैं। भूत-प्रेत से जुड़ी कई मान्यताएं व अफवाएं भी हमारे समाज में प्रचलित हैं। दुनिया के लगभग हर धर्म में भूत-प्रेतों के बारे में कुछ न कुछ बताया गया है।

विभिन्न धर्म ग्रंथों में भी भूत-प्रेतों के बारे में बताया गया है। सवाल यह उठता है कि अगर वाकई में भूत-प्रेत होते हैं तो दिखाई क्यों नहीं देते या फिर कुछ ही लोगों को क्यों दिखाई देते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार जीवित मनुष्य का शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना होता है-पृथ्वी, जल, वायु, आकाश व अग्नि। मानव शरीर में सबसे अधिक मात्रा पृथ्वी तत्व की होती है और यह तत्व ठोस होता है इसलिए मानव शरीर आसानी से दिखाई देता है।

जबकि भूत-प्रेतों का शरीर में वायु तत्व की अधिकता होती है। वायु तत्व को देखना मनुष्य के लिए संभव नहीं है क्योंकि वह गैस रूप में होता है इसलिए इसे केवल आभास किया जा सकता है देखा नहीं जा सकता। यह तभी संभव है जब किसी व्यक्ति के राक्षण गण हो या फिर उसकी कुंडली में किसी प्रकार का दोष हो। मानसिक रूप से कमजोर लोगों को भी भूत-प्रेत दिखाई देते हैं जबकि अन्य लोग इन्हें नहीं देख पाते।

धर्म शास्त्रों के अनुसार भूत का अर्थ है बीता हुआ समय। दूसरे अर्थों में मृत्यु के बाद और नए जन्म होने के पहले के बीच में अमिट वासनाओं के कारण मन के स्तर पर फंसे हुए जीवात्मा को ही भूत कहते हैं।

जीवात्मा अपने पंच तत्वों से बने हुए शरीर को छोडऩे के बाद अंतिम संस्कार से लेकर पिंड दान आदि क्रियाएं पूर्ण होने तक जिस अवस्था में रहती है, वह प्रेत योनी कहलाती है।

गरूण पुराण के अनुसार व्यक्ति की मृत्यु के बाद पुत्र आदि जो पिंड और अंत समय में दान देते हैं, इससे भी पापी प्राणी की तृप्ति नहीं होती क्योंकि पापी पुरुषों को दान, श्रद्धांजलि द्वारा तृप्ति नहीं मिलती। इस कारण भूख-प्यास से युक्त होकर प्राणी यमलोक को जाते हैं इसके बाद जो पुत्र आदि पिंडदान नहीं देते हैं तो वे मर के प्रेत रूप होते हैं और निर्जन वन में दु:खी होकर भटकते रहते हैं।

प्रत्येक नकारात्मक व्यक्ति की तरह भी भूत भी अंधेरे और सुनसान स्थानों पर निवास करते हैं। खाली पड़े मकान, खंडहर, वृक्ष व कुए, बावड़ी आदि में भी भूत निवास कर सकते हैं।

हमें कई बार ऐसा सुनने में आता है कि किसी व्यक्ति के ऊपर भूत-प्रेत का असर है। ऐसा सभी लोगों के साथ नहीं होता क्योंकि जिन लोगों पर भूत-प्रेत का प्रभाव होता है उनकी कुंडली में कुछ विशेष योग बनते हैं जिनके कारण उनके साथ यह समस्या होती है। साथ ही यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा नीच का हो या दोषपूर्ण स्थिति में हो तो ऐसे व्यक्ति पर भी भूत-प्रेत का असर सबसे ज्यादा होता है।

प्रेत बाधा से ग्रस्त व्यक्ति की आंखें स्थिर, अधमुंदी और लाल रहती है। शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होता है। हाथ-पैर के नाखून काले पडऩे के साथ ही ऐसे व्यक्ति की भूख, नींद या तो बहुत कम हो जाती है या बहुत अधिक। स्वभाव में क्रोध, जिद और उग्रता आ जाती है। शरीर से बदबूदार पसीना आता है।

हमारे आस-पास कई ऐसी अदृश्य शक्तियां उपस्थित रहती है जिन्हें हम देख नहीं पाते। यह शक्तियां नकारात्मक भी होती है और सकारात्मक भी। सिर्फ कुछ लोग ही इन्हें देख या महसूस कर पाते हैं। राक्षस गण वाले लोगों को भी इन शक्तियों का अहसास तुरंत हो जाता है। ऐसे लोग भूत-प्रेत व आत्मा आदि शक्तियों को तुरंत ही भांप जाते हैं।

राक्षस गण, यह शब्द जीवन में कई बार सुनने में आता है लेकिन कुछ ही लोग इसका मतलब जानते हैं। यह शब्द सुनते ही मन और मस्तिष्क में एक अजीब सा भय भी उत्पन्न होने लगता है और हमारा मन राक्षस गण वाले लोगों के बारे में कई कल्पनाएं भी करने लगता है। जबकि सच्चाई काफी अलग है। ज्योतिष शास्त्र के आधार पर प्रत्येक मनुष्य को तीन गणों में बांटा गया है। मनुष्य गण, देव गण व राक्षस गण।

कौन सा व्यक्ति किस गण का है यह कुंडली के माध्यम से जाना जा सकता है। मनुष्य गण तथा देव गण वाले लोग सामान्य होते हैं। जबकि राक्षस गण वाले जो लोग होते हैं उनमें एक नैसर्गिक गुण होता है कि यदि उनके आस-पास कोई नकरात्मक शक्ति है तो उन्हें तुरंत इसका अहसास हो जाता है। कई बार इन लोगों को यह शक्तियां दिखाई भी देती हैं लेकिन इसी गण के प्रभाव से इनमें इतनी क्षमता भी आ जाती है कि वे इनसे जल्दी ही भयभीत नहीं होते। राक्षस गण वाले लोग साहसी भी होते हैं तथा विपरीत परिस्थिति में भी घबराते नहीं हैं।

भारत की 5 भूतिया जगह ….

1.) भानगड़ किला, राजस्थान
यहां सूरज ढलते ही इस किले में अगर कोई रुक पाता है, तो वो हैं वहां वास कर रहीं आत्माएं। यकीन मानिए, भानगड़ किला बाहर से दिखने में जितना सुंदर है, उसके अंदर काले जादू का आगोश है। इस किले की भूतिया कहानी के पीछे है वो शाप, जो तांत्रिक सिंघीया ने भानगड़ की राजकुमारी रत्नावती को दिया था। रत्नावती की वजह से ही इस तांत्रिक की मृत्यु हुई थी। दरअसल, राजकुमारी रत्नावती से सिंघीया नाम का व्यक्ति बहुत प्यार करता था। एक दिन राजकुमारी रत्नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी।सिंघीया उसी राज्य  में रहता था और वो काले जादू का महारथी था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था। लेकिन राजकुमारी रत्नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया, लेकिन उसे वही पास के एक पत्थ र पर पटक दिया। पत्थलर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्थयर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्थपर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक की मौके पर ही मौत हो गई। मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्दत ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्मप नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्माकएं इस किले में भटकती रहेंगी। आज उस किले में मौत की चींखें गूंजती हैं। भारत की सरकार ने भी इस किले में शाम के बाद एंट्री बद की हुई है।

2.) दुमास बीच, गुजरात
इस बीच पर हिंदुओं के शवों का दाह-संस्कार किया जाता है। लेकिन शाम के बाद यहां कोई नहीं रुक पाता। क्योंकि लोगों को अकसर यहां अजीब-गरीब आवाज़ें सुनाई देती हैं। यहां कई बार गतिविधियां भी महसूस होती हैं, मानो जैसे वहां कोई हो। जबकि आस-पास कोई नहीं होता। ऐसा माना जाता है कि यहां हर ओर मरे हुए लोगों की रूहें हर पल मौजूद रहती हैं।

3.) कुर्सियांग, पश्चिम बंगाल
कुर्सियांग पश्चिम बंगाल में एक हिल स्टेशन है, जहां पर्यटकों का आना-जाना लगा ही रहता है। लेकिन कहते हैं कि यह हिल स्टेशन जितना ख़ूबसूरत है, उससे कई ज़्यादा यहां डरावनी हरकते होती हैं। यहां के लोगों को भयानक आवाज़े सुनाई देती हैं, उनके कमरों में हलचल होती रहती है और ख़ौफ के चलते, कईओं ने आत्महत्या भी कर ली। लोगों को लगता है कि कोई उनके पीछे चल रहा है। किसी ने तो एक कटे हुए सिर वाले लड़को को भी देखा, जो बाद में पेड़ों के पीछे कहीं छिप गया।

4.) राजकिरन होटल, लोनावाला, महाराष्ट्र
पता : बी वार्ड, सी.एस. नंबर- 162, लोनावाला, मुंबई। मुंबई के इस गेस्ट हाउस में जो भी आता है, वो कोई न कोई किस्सा लेकर इस गेस्ट हाउस से बाहर ज़रूर निकलता है। किसी को लगता है कि रात को सोते समय कोई उसके कानों में कुछ-कुछ बोल रहा है, किसी की बेडशीट खुद ही सरकने लगती है, तो किसी को अजीब-गरीब आहट सुनाई देती है। ग्राउंड फ्लोर पर बने इस कमरे को अब वहां का मालिक भी रेंट पर नहीं देता।

5.) दिल्ली कैंट, दिल्ली, दिल्ली के सेक्टर- 9, द्वारका
कहते हैं कि सेक्टर- 9 के मेट्रो स्टेशन के पास पीपल का एक पेड़ है जहां रूहों का वास है। और इसलिए लोगों ने वहां भगवान की मूर्तियां भी लगाई हुई हैं। इसके अलावा यह भी सुनने को मिला है कि इस जगह पर उन्होंसने एक सफेद रंग के लिबास में औरत देखी है जो लोगों से लिफ्ट मांगती रहती है और जब वे उसे लिफ्ट देते हैं तो वह अपने आप ही गायब हो जाती है। लेकिन जो लिफ्ट देने से मना करता है, उसका क्या हाल होता है ?, यह किसी को नहीं पता।

भूत प्रेत के बारे में सुनकर तो विश्वास नहीं होता है लेकिन जब सामना होता है तब लगते है की हाँ ये भी बिचारे इस दुनिया के ही बशिंदे है .. आपलोग भी इनसे मिलेगे तो इनका भी मन लगा रहेगा .. आखिर है तो ये भी उसी इश्वर के बनाये हुए .. दोस्ते के दोस्त और दुस्मनो के दुश्मन …वैसे भूत शब्द स्वयं में अत्यंत रहस्यमय है और उसी प्रकार उनकी दुनिया भी उतनीही रहस्यमयी है।
आइये, इस लेख से जानें कि भूत-प्रेत कौन होते हैं और कैसे बनते हैं और उनके दुष्प्रभाव से बचने के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए और भूतग्रस्त व्यक्ति की पहचान और उपचार कैसे करें।
भूत प्रेत कैसे बनते हैं: इस सृष्टि में जो उत्पन्न हुआ है उसका नाश भी होना है व दोबारा उत्पन्न होकर फिर से नाश होना है यह क्रम नियमित रूप से चलता रहता है। सृष्टि के इस चक्र से मनुष्य भी बंधा है। इस चक्र की प्रक्रिया से अलग कुछ भी होने से भूत-प्रेत की योनी उत्पन्न होती है। जैसे अकाल मृत्यु का होना एक ऐसा कारण है जिसे तर्क के दृष्टिकोण पर परखा जा सकता है। सृष्टि के चक्र से हटकर आत्मा भटकाव की स्थिति में आ जाती हैं। इसी प्रकार की आत्माओं की उपस्थिति का अहसास हम भूत के रूप में या फिर प्रेत के रूप में करते हैं। यही आत्मा जब सृष्टि के चक्र में फिर से प्रवेश करती है तो उसके भूत होने का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। अधिकांशतः आत्माएं अपने जीवन काल में संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इसलिए उन्हें इसका बोध होता है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वैसे-वैसे जल में डूबकर, बिजली द्वारा, अग्नि में जलकर, लड़ाई-झगड़े में, प्राकृतिक आपदा से मृत्यु तथा अकस्मात होने वाली अकाल मृत्यु व दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं और भूत-प्रेतों की संख्या भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है।

भूत-प्रेत कौन है...?

अस्वाभाविक व अकस्मात होने वाली मृत्यु से मरने वाले प्राणियों की आत्मा भटकती रहती हैं, जब तक कि वह सृष्टि के चक्र में प्रवेश न कर जाए, तब तक ये भटकती आत्माएं ही भूत व प्रेत होते हैं। इनका सृष्टि चक्र में प्रवेश तभी संभव होता है जब वे मनुष्य रूप में अपनी स्वाभाविक आयु को प्राप्त करती है।

क्या करें, या क्या ना करें ?

१)  किसी निर्जन, एकांत या जंगल आदि में मलमूत्र त्याग करने से पूर्व उस स्थान को भलीभांति देख लेना चाहिए कि वहां कोई ऐसा वृक्ष तो नहीं है जिसपर प्रेत आदि निवास करते हैं अथवा उस स्थान पर कोई मजार या कब्रिस्तान तो नहीं है।

२)  किसी नदी, तालाब, कुआं या जलीय स्थान में थूकना या मलमूत्र का त्याग करना किसी अपराध से कम नहीं है क्योंकि जल ही जीवन है। जल को दूषित करने से जल के देवता वरुण रुष्ट हो सकते हैं।

३) सूर्य की ओर मुख करके मलमूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए।

४) गूलर, मोलसरी, शीशम, मेंहदी आदि के वृक्षों पर भी प्रेतों का वास होता है।
इन वृक्षों के नीचे नहीं जाना चाहिए और न ही खुशबूदार पोधों के पास जाना चाहिए।

५)  सेव एकमात्र ऐसा फल है जिस पर क्रिया आसानी से की जा सकती है। इसलिए किसी का दिया सेव नहीं खाना चाहिए।

६) पूर्णतया निर्वस्त्र होकर नहीं नहाना चाहिए।

७) प्रतिदिन प्रातःकाल घर में गंगाजल का छिड़काव करें।

८) प्रत्येक पूर्णमासी को घर में सत्यनारायण की कथा करवाएं।

९) सूर्यदेव को प्रतिदिन जल का अघ्र्य दें। घर में गुग्गल की धूनी दें।

१०) क्या करें कि आप पर अथवा आपके स्थान पर भूत-प्रेतों का असर न हो पाए: ..
अपनी, आत्मशुद्धि व घर की शुद्धि हेतु प्रतिदिन घर में गायत्री मंत्र से हवन करें।

११)  अपने इष्ट देवी-देवता के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें। हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का प्रतिदिन पाठ करें।

१२)  जिस घर में प्रतिदिन सुंदरकांड का पाठ होता है वहां ऊपरी हवाओं का असर नहीं होता।

१३) घर में पूजा करते समय कुशा का आसन प्रयोग में लाएं। मां महाकाली की उपासना करें।

१४) सूर्य को तांबे के लोटे से जल का अघ्र्य दें। संध्या के समय घर में धूनी अवश्य दें। रात्रिकालीन पूजा से पूर्व गुरु से अनुमति अवश्य लें।

१५)  रात्रिकाल में 12 से 4 बजे के मध्य ठहरे पानी को न छूएं। यथासंभव अनजान व्यक्ति के द्वारा दी गई चीज ग्रहण न करें।

१६) प्रातःकाल स्नान व पूजा के पश्चात् ही कुछ ग्रहण करें। ऐसी कोई भी साधना न करें जिसकी पूर्ण जानकारी न हो या गुरु की अनुमति न हो।
कभी किसी प्रकार के अंधविश्वास अथवा वहम में नहीं पड़ना चाहिए। इससे बचने का एक ही तरीका है कि आप बुद्धि से तार्किक बनें व किसी चमत्कार अथवा घटना आदि या क्रिया आदि को विज्ञान की कसौटी पर कसें, उसके पश्चात् ही किसी निर्णय पर पहुंचे।
किसी आध्यात्मिक गुरु, साधु-संत का अपमान न करें। अग्नि व जल का अपमान न करें। अग्नि को लांघें नहीं व जल को दूषित न करें। हाथ से छूटा हुआ या जमीन पर गिरा हुआ भोजन या खाने की कोई भी वस्तु स्वयं ग्रहण न करें।

भूत-प्रेत आदि से ग्रसित व्यक्ति की पहचान कैसे करें…

ऐसे व्यक्ति के शरीर से या कपड़ों से गंध आती है। ऐसा व्यक्ति स्वभाव से चिड़चिड़ा हो जाता है। ऐसे व्यक्ति की आंखें लाल रहती हैं व चेहरा भी लाल दिखाई देता है। ऐसे व्यक्ति को अनायास ही पसीना बार-बार आता है। ऐसा व्यक्ति सिरदर्द व पेट दर्द की शिकायत अक्सर करता ही रहता है। ऐसा व्यक्ति झुककर या पैर घसीट कर चलता है। कंधों में भारीपन महसूस करता है। कभी-कभी पैरों में दर्द की शिकायत भी करता है। बुरे स्वप्न उसका पीछा नहीं छोड़ते।
जिस घर या परिवार में भूत-प्रेतों का साया होता है वहां शांति का वातावरण नहीं होता। घर में कोई न कोई सदस्य सदैव किसी न किसी रोग से ग्रस्त रहता है। अकेले रहने पर घर में डर लगता है बार-बार ऐसा लगता है कि घर के ही किसी सदस्य ने आवाज देकर पुकारा है जबकि वह सदस्य घर पर होता ही नहीं? इसे छलावा कहते हैं। भूत-प्रेत से ग्रसित व्यक्ति का उपचार कैसे करें: भूत-प्रेतों की अनेकानेक योनियां हैं।

इतना ही नहीं इनकी अपनी-अपनी शक्तियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं। इसलिए सभी ग्रसित व्यक्तियों का उपचार एक ही क्रिया द्वारा संभव नहीं है।
योग्य व विद्वान व्यक्ति ही इनकी योनी व शक्ति की पहचान कर इनका उपचार बतलाते हैं। अनेक बार ऐसा भी होता है कि ये उतारा या उपचार करने वाले पर ही हावी हो जाते हैं इसलिए इस कार्य के लिए अनुभव व गुरु का मार्ग दर्शन अत्यंत अनिवार्य होता है।

आइये जानते है कुछ सामान्य उपचार...

१) सामान्य उपचार भी ग्रसित व्यक्ति को ठीक कर देते हैं या भूत-प्रेतों को उनके शरीर से बाहर निकलने के लिए मजबूर कर देते हें। ये उपचार उतारा या उसारा के रूप में किया जाता है। इन्हें आजमाएं।

२) ग्रसित व्यक्ति के गले में लहसुन की कलियां की माला डाल दें। (लहसुन की गंध अधिकांशतः भूत-प्रेत सहन नहीं कर पाते इसलिए ग्रसित व्यक्ति को छोड़कर भाग जाते हैं।) रात्रिकाल में ग्रसित व्यक्ति के सिरहाने लहसुन और हींग को पीसकर गोली बनाकर रखें।

३) ग्रसित व्यक्ति की शारीरिक स्वच्छता बनाए रखने का प्रयास करें। ग्रसित व्यक्ति के वस्त्र अलग से धोएं व सुखाएं।

४)  ग्रसित व्यक्ति के ऊपर से बूंदी का लड्डू उतारकर चैराहे या पीपल के नीचे रखें (रविवार छोड़कर)। तीन दिन लगातार करें।

५) किसी योग्य व्यक्ति से अथवा गुरु से रक्षा कवच या यंत्र आदि बनवाकर ग्रसित व्यक्ति को धारण कराना चाहिए।

६)  ग्रसित व्यक्ति को अधिक से अधिक गंगाजल पिलाना चाहिए व उस स्थान विशेष पर भी प्रतिदिन गंगाजल छिड़कना चाहिए। नवार्ण मंत्र (ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) की एक माला जप करके जल को अभिमंत्रित कर लें व पीड़ित व्यक्ति को पिलाएं।

७) हर मंगल और शनि के दिन श्री हनुमान जी के मंदिर में जाये और उनके चरणों में से सिन्दूर लेकर माथे पर लगाये ..

मित्रों, सर्वप्रथम तो मैं आपसे स्पष्ट कर दूं की 'इस लेख का उद्देश्य लोगों के अन्दर भूत-प्रेत से जुड़े अंध विश्वास को दूर कराना है, और वैदिक सटीक उपायों तथा शास्त्र सम्मत उपायों से इस बाधा से पीड़ित लोगों को मुक्त कराना लक्ष्य है, आप इस विषय पर  "आचार्य पण्डित विनोद चौबे, भिलाई, मोबाईल नं. 9827198828 "  पर संपर्क कर आकर उनसे सीधा संपर्क कर सकते हैं" क्योंकि वैदिक विधान की बजाय बेकार के जादू-टोने -टोटको से दूर रहे अन्यथा ये लाभ की बजाय भयंकर नुकसान भी कर सकते है .. यदि कोई भी अन्य शास्त्रज्ञ, या किसी योग्य जानकार से ही परामर्श लें और समाज कल्याण के लिए ही इन सबका प्रयोग करें, और जो व्यक्ति मानसिक या स्वाभाविक रोग से पीड़ित हो तो उसको चिकीत्सकीय सलाह लेना चाहिए। ना की इस पचड़े में पड़ना चाहिए। - ज्योतिष का सूर्य, राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, 9827198828

ज्योतिष की दृष्टि में भूत - प्रेत की बाधाएं.....

भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा हो और चंद्र दशापति राहु से भाव ६, ८ या १२ में बलहीन हो, तो व्यक्ति पिशाच दोष से ग्रस्त होता है। वास्तुशास्त्र में भी उल्लेख है कि पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाति या भरणी नक्षत्र में शनि के स्थित होने पर शनिवार को गृह-निर्माण आरंभ नहीं करना चाहिए, अन्यथा वह घर राक्षसों, भूतों और पिशाचों से ग्रस्त हो जाएगा। इस संदर्भ में संस्कृत का यह श्लोक द्रष्टव्य है :

”अजैकपादहिर्बुध्न्यषक्रमित्रानिलातकैः।
समन्दैर्मन्दवारे स्याद् रक्षोभूतयुंतगद्यम॥

भूतादि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके स्वभाव एवं क्रिया में आए बदलाव से की जा सकती है। इन विभिन्न आसुरी शक्तियों से पीड़ित होने पर लोगों के स्वभाव एवं कार्यकलापों में आए बदलावों का संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है।

भूत पीड़ा :
भूत से पीड़ित व्यक्ति किसी विक्षिप्त की तरह बात करता है। मूर्ख होने पर भी उसकी बातों से लगता है कि वह कोई ज्ञानी पुरुष हो। उसमें गजब की शक्ति आ जाती है। क्रुद्ध होने पर वह कई व्यक्तियों को एक साथ पछाड़ सकता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और देह में कंपन होता है।

यक्ष पीड़ा :
यक्ष प्रभावित व्यक्ति लाल वस्त्र में रुचि लेने लगता है। उसकी आवाज धीमी और चाल तेज हो जाती है। इसकी आंखें तांबे जैसी दिखने लगती हैं। वह ज्यादातर आंखों से इशारा करता है।

पिशाच पीड़ा :
पिशाच प्रभावित व्यक्ति नग्न होने से भी हिचकता नहीं है। वह कमजोर हो जाता है और कटु शब्दों का प्रयोग करता है। वह गंदा रहता है और उसकी देह से दुर्गंध आती है। उसे भूख बहुत लगती है। वह एकांत चाहता है और कभी-कभी रोने भी लगता है।

शाकिनी पीड़ा :
शाकिनी से सामान्यतः महिलाएं पीड़ित होती हैं। शाकिनी से प्रभावित स्त्री को सारी देह में दर्द रहता है। उसकी आंखों में भी पीड़ा होती है। वह अक्सर बेहोश भी हो जाया करती है। वह रोती और चिल्लाती रहती है। वह कांपती रहती है।

प्रेत पीड़ा :
प्रेत से पीड़ित व्यक्ति चीखता-चिल्लाता है, रोता है और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहा नहीं सुनता। उसकी वाणी कटु हो जाती है। वह खाता-पीता नही हैं और तीव्र स्वर के साथ सांसें लेता है।

चुडैल पीड़ा :
चुडैल प्रभावित व्यक्ति की देह पुष्ट हो जाती है। वह हमेशा मुस्कराता रहता है और मांस खाना चाहता है।

भूत प्रेत कैसे बनते हैं:- इस सृष्टि में जो उत्पन्न हुआ है उसका नाश भी होना है व दोबारा उत्पन्न होकर फिर से नाश होना है यह क्रम नियमित रूप से चलता रहता है। सृष्टि के इस चक्र से मनुष्य भी बंधा है। इस चक्र की प्रक्रिया से अलग कुछ भी होने से भूत-प्रेत की योनी उत्पन्न होती है। जैसे अकाल मृत्यु का होना एक ऐसा कारण है जिसे तर्क के दृष्टिकोण पर परखा जा सकता है। सृष्टि के चक्र से हटकर आत्मा भटकाव की स्थिति में आ जाती है। इसी प्रकार की आत्माओं की उपस्थिति का अहसास हम भूत के रूप में या फिर प्रेत के रूप में करते हैं। यही आत्मा जब सृष्टि के चक्र में फिर से प्रवेश करती है तो उसके भूत होने का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। अधिकांशतः आत्माएं अपने जीवन काल में संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को ही अपनी ओर आकर्षित करती है, इसलिए उन्हें इसका बोध होता है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वे सैवे जल में डूबकर बिजली द्वारा अग्नि में जलकर लड़ाई झगड़े में प्राकृतिक आपदा से मृत्यु व दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं और भूत प्रेतों की संख्या भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है।
इस तरह भूत-प्रेतादि प्रभावित व्यक्तियों की पहचान भिन्न-भिन्न होती है। इन आसुरी शक्तियों को वश में कर चुके लोगों की नजर अन्य लोगों को भी लग सकती है। इन शक्तियों की पीड़ा से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।
जिस प्रकार चोट लगने पर डाक्टर के आने से पहले प्राथमिक उपचार की तरह ही प्रेत बाधा ग्रस्त व्यक्ति का मनोबल बढ़ाने का उपाय किया जाता है!
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे
संपादक- " ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़, मोबाईल नं.- 9827198828

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