वेद में 'पशु बलि' या 'पशु वध' बताकर वेद विरोधियों ने भ्रमित किया....
मित्रों मंगलमयी सुप्रभात...
एक दिन हमारे 'अन्तर्नाद' व्हाट्सएप ग्रुप पर आ़़चार्य श्री रुपेश शर्मा जी ने 'वेदों में वर्णित बलि में विषय में आलेख प्रस्तुत किया था' जिसमें 'हिंसा मा स्यात्' पर जोर दिया गया था, जो सद्य: न्याय संगत था, मैं उसी विषय को आगे बढ़ाते हुए आज अपने ब्लॉग के माध्यम से इससे जुड़ी कुछ अहम बातें आपके समक्ष रखने जा रहा हुं ! वेद विरोधियों द्वारा बहु प्रचारित किया गया कि वेद बलि-नीति का निर्धारक व कारक है, लेकिन यह वेद की व्याख्या की गलत तरीके से किया गया ! साथियों भिलाई के शांतिनगर में मैं अपने 'ज्योतिष कार्यालय' में चिन्ता मग्न इस बारे सोच ही रहा था कि 'अन्तर्नाद' व्हाट्सएप ग्रुप पर श्री शर्मा जी के पोस्ट को देखकर, अचानक मेरे ध्यान मे 'पशु' और 'मेध' इन दोनों शब्दों पर गया और इन दोनो शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शब्द-व्याख्या इस प्रकार है, हमें बलि शब्द को समझने के पूर्व आशय को यानी संदर्भवत हम क्या करने जा रहे हैं, उसमें प्रयोग किये जाने वाले शब्दों की व्याख्या जो प्रसंगवश करना चाहिये, जिसे हम 'भावार्थ' भी कहते हैं ! यह लेख थोड़ा क्लिष्ट है आपको समझने में परेशानी आ रही हो तो इस विषय पर आप हमसे मिलकर या फोन पर संपर्क कर सकते हैं हमारा फोन नं. है (9827198828, Acharya Pandit Vinod Choubey, Bhila) वेद में बलि शब्द को समझने के पहले हमें जिनकी बलि देने की बात की गई है उसे समझने की आवश्यकता है!
तो बलि का जिक्र है परन्तु वह शब्द 'पशु' आता है जिसकी बलि देने की बीत की गई है, हमें सर्वप्रथम ',पशु' शब्द को समझना होगा ! पशु का आशय है जिसके लिए आंग्ल भाषा में social animal का प्रयोग होता हैI मेध का विधान इन्ही पांच पशुओं का हैI अथर्ववेद में इसका स्पष्ट उल्लेख है-
तमेवे पञ्चपशवो विभाक्ता गावो-अश्वाः पुरुषा अजावयःI (अथर्ववेद ११.२.९)
इन्ही पाँचों पशुओं के साथ मेध शब्द का संयोजन कर पञ्चमेधों का प्रणयन किया गया है, यथा- पुरुषमेध, अश्वमेध, गोमेध, अजामेध तथा अविमेधI (9827198828, Acharya Pandit Vinod Choubey, Bhila)
जिसे आधार बनाकर पाश्चात्य विद्वानों ने और उनका अन्धानुकरण करने वाले तथाकथित प्रगतिशील भारतीयों ने इन यज्ञों के माध्यम से पुरुष, अश्व, गौ, अजा और अवि की बलि दी जाती है ऐसा दुष्प्रचार आरम्भ कियाI ये मान्यता वैदिक विचारधारा के सर्वथा विपरीत हैI चरक सहिंता, चिकित्सास्थानं १०.३ में स्पष्ट कहा गया है कि किसी यज्ञ में पशुबलि नहीं दी जाती हैI यह सब वेद विरोधियों का प्रोपेगंडा मात्र है, यदि आप इस आलेख से संतुष्ट नहीं है तो, आप समय सुनिश्चित कर आमने-सामने इस विषय पर डीबेट कर लें! किन्तु वेद विरोधी गतिवीधियां छोड़े, समाज को अच्छा संदेश दें, वगैर क्रिट्साईज करने के !
--आचार्य पण्डित विनोद चौबे
(वैदिक ज्योतिष, वास्तु एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ) संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,शांतिनगर, भिलाई, मोबाईल नं. 9837198828
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