गोत्र' परम्परा के सृजक एवं 'प्रथम गो-पालक' थे महर्षि कश्यप - आचार्य पण्डित विनोद चौबे
'गोत्र', 'गान्धर्व- भारत' और 'अफगानिस्तान' की सांस्कृतिक मैत्री और आर्ष संस्कृति के प्रथम 'गोपालक' ऋषि कश्यप को नमन, वंदन और मंगलमयी मंगलवासरीय सुप्रभात आज दिनांक 10/10/2017 है, आईये प्रागतैहासिक संदर्भों में 'गोत्र', 'गान्धर्व' और 'प्रथम गो-पालक' को समझने का प्रयास करें ! वैदिक संस्कृति के प्रथम 'गो-पालक' ऋषि कश्यप को नमन ! -आचार्य पण्डित विनोद चौबे, 9827198828 प्राजापत्य संस्कृति एवं आर्ष संस्कृति यानी वर्तमान में आर्ष-भूभाग 'भारत' और 'गन्धर्व-अप्सरा' का भूभाग 'अफगानिस्तान' को ही उस समय "गांधार देश' कहा जाता था, और उसी गांधार नरेश की पुत्री थीं 'गांधारी' जो महाभारत कालीन 'हस्तिनापुर' के शासक " धृतराष्ट्र" की पत्नी थीं ! प्राजापत्य संस्कृति से ही गान्धर्व संस्कृति का जन्म हुआ था। यह संस्कृति भी स्वयं को "अज" से जोड़ती थी। गान्धर्व संस्कृति के सदस्य पुरुष को "गन्धर्व" तथा स्त्री को "अप्सरा" कहा जाता था। अविपालन (sheep-herding or shepherding) एवं संगीत (नृत्य, गायन व वादन) इनके प्रमुख व्यवसाय थे। "वर्तमान अफगानिस्तान" गान्धर्व संस्कृति का केन्द्र था।
आर्ष संस्कृति के सदस्य "ऋषि" कहलाते थे। गोधूम-कृषि (गेहूँ की खेती) एवं गोपालन इनके प्रमुख व्यवसाय थे। ये "गोत्र" नामक समूहों में विभक्त रहते थे जिनके सदस्य प्रायः एक ही वंश के होते थे। प्रत्येक गोत्र का शासक "महर्षि" कहलाता था। आर्ष संस्कृति में शासक के अतिरिक्त नवीन वंश के प्रवर्तक, संस्कृति के प्रसारक तथा नवीन ज्ञान के दाता भी महर्षि कहलाते थे। सर्वप्रथम जिसने गोपालन आरम्भ किया था उस व्यक्ति को यह संस्कृति "कश्यप" के नाम से स्मरण करती थी। सतलज नदी के दक्षिण में स्थित मैदानी भूभाग आर्ष संस्कृति का केन्द्र था! ऐसे महान आर्ष संस्कृति के पुरोधा 'कश्यप' ऋषि को सादर नमन ! - आचार्य पण्डित विनोद चौबे संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई (छ.ग.) दूरभाष क्रमांक -9827198828
(संदर्भ सूत्र: १. श्री अरुण उपाध्याय, २. महाभारत, ३.आह्निक-धर्म सूत्रावली, ४. शब्द कल्पद्रुम)
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