ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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सोमवार, 23 अक्तूबर 2017

मानव और दानव

मानव और दानव ...

भारत में धर्म की जड़ें अधिक गहरी थीं, अतः कलियुग में असुरों का प्रभाव बढ़ने पर भी केवल भारत में ही सनातन धर्म बच पाया, सबसे बुरे प्रभाव तो पाकिस्तान से मोरक्को तक और अफ्रीका एवं अमरीकी महादेशों में पड़े | उन क्षेत्रों में पूरी की पूरी सभ्यताओं को मिटा दिया गया और पूरी आबादी का सफाया हुआ या दास बनाया गया |
कहने को पाकिस्तान भारत का हिस्सा था लेकिन द्वापर युग के अन्त में ही वहां के संस्कार पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुके थे यह महाभारत में वर्णित है |
ईसाइयों ने मुसलमानों से अधिक अत्याचार किये हैं - अमरीकी महादेशों और अफ्रीका पर, केवल USA में चार करोड़ रेड इण्डियन का जंगली जानवरों की तरह शिकार किया गया | भारत में बन्दूकें और तोपें थी अतः भारतीय जिन्दा बच पाए, केवल अधीन बनाए गए |
यूरोप से सनातनी परम्परा को मिटाने के लिए रोमनों और बाद में रोमन चर्च ने भयंकर अत्याचार किये | चर्च का ईसा की शिक्षाओं  से कोई लेना-देना नहीं था, अभी जो बाइबिल है उसमें ईसा का कोई विचार नहीं है | ईस्वी 300 के बाद रोमनों ने नए ईसाई सम्प्रदाय को अपने स्वार्थ के लिए खड़ा किया | पुराने सनातनी एवं आसुरी सम्प्रदायों को मानने वालों को जादूगर कहकर जिन्दा जलाया गया |
भारत में जन्मे किसी भी सम्प्रदाय ने धर्म के नाम पर नरसंहार कभी नहीं किया, भले ही कलियुग में अनेक कुरीतियाँ भारत में भी फैली | बौद्ध सम्प्रदाय जबतक भारत में फला-फूला, धार्मिक बना रहा, विदेश गया तो गोमाँस खाकर अहिंसा पर लम्बे प्रवचन देने वाला आसुरी सम्प्रदाय बन गया | जैसा की बहुत भारतीय सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि - "दलाई लामा प्रतिदिन नवजात बछड़ा ("veal") खाते हैं, तभी तो नोबेल पुरस्कार मिला है ! हिंसा नहीं करते, बछड़े का खाना-पीना बन्द करा देते है ताकि वह स्वयं अहिंसापूर्वक मर जाय ! अभी तक तीस करोड़ रूपये से अधिक के बछड़े खा चुके हैं -- वह धन चीन के अत्याचार से पीड़ित तिब्बती शरणार्थियों के लिए दान के नाम पर आता है" हालाकी मैं व्यक्तिगत तौर पर दलाई लामा गोवंश-मांश खाते हैं इस बात से मैं सहमत नहीं हुं ! लेकिन यदि उपरोक्त बातें सही हैं तो....दलाई लामा जैसे लोग कोई धर्मगुरु नहीं वरन् विधर्म प्रवृत्ति-प्रधान भोगवादी गुरु है जिसको तात्कालीन भारतीय सत्ताधारी सरकार ने लामा को भारत में राजनैतिक केन्द्र खोलने की अनुमति देने के कारण भारत का चीन से सम्बन्ध बिगड़ा ! हालाकी चीन भी भारत के पीठ में हमेशा छुरा ही घोंपने का किया है, और अब तो पाकिस्तान को मोहरा बनाकर चीन अघोषित युद्ध कर रहा है भारत से ! चीन+पाक दोनों ही असुरों का देश हैं!

मेगास्थनीस ने लिखा था कि भारत में दास नहीं थे | दासप्रथा के स्थान पर वर्ण व्यवस्था थी, शूद्रों के कारण दासों की आवश्यकता ही नहीं थी | कुछ दास भारत में भी थे, किन्तु उनकी हालत यूरोप के दासों से लाख गुनी बेहतर थी | शूद्रों को दास कहना गलत है, शूद्रों की खरीद-बिक्री सम्भव नहीं थी और उनको नागरिकों वाले वैधानिक अधिकार प्राप्त थे |
फिर भी हमें पढ़ाया जाता है कि हिन्दुओं में मानवाधिकार की स्थिति ठीक नहीं है !!   दानवाधिकार आयोग वालों से और आशा ही क्या ?? जबकी इन लोगों ने 'दास' शब्द की व्याख्या गलत तरीके से किये ! "दास" शब्द तो सनातन धर्म में उत्तम माना गया है ! अब पहली बार भारत में मजबूत इरादों वाली सरकार आई है, जिसका भारतीय जनता द्वारा गुजरात आदि होने वाले चुनावों में विजयी बनाकर मोदी सरकार का मनोबल बढ़ावें ! ताकी बहुत से लंबित पड़े कार्य संपन्न हो सके !
अब देखिए ना जयोतिष के मुताबिक  कालचक्र ने 2000 ईस्वी की मेष संक्रान्ति के बाद पलटा खाया है, 42 हज़ार वर्षों तक भारत के लगातार उत्थान का युग आरम्भ हो चुका है | अब दानवों के पीछे हटने का काल है | जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण आपको मान. न्यायालय द्वारा दिये गये प्रदूषण नियंत्रण हेतु वह आदेश ! जो  दिल्ली मे दीपावली पर पटाखा-बैन की बावजूद दिल्ली में हिन्दुओं ने ठीक उसी तरह मिल,जुलकर फटाका फोड़ा, जैसे ध्वनि प्रदूषण पर मान. न्यायालय द्वारा बैन लगाये जाने के बावजूद कानफोड़ू ध्वनि में अज़ान पढ़ा जाता हैपटाखा फोड़ा गया ! मित्रों,
किन्तु  सनातन धर्म को सबसे अधिक खतरा घर के भेदियों से है जो झूठमूठ हिन्दू-हिन्दू चिल्लाकर सनातन धर्म की जड़ें खोखली करना चाहते हैं, हिन्दुत्व से कोई सरोकार नहीं है | घर ठीक रहेगा तभी बाहरी शत्रुओं से लड़ पायेंगे | ऐसे कथित हिन्दुओं की वजह से ही भारतीय संस्कृति में हिन्दुओं को जाति, वर्ग और स्थानीय भाषाओं के आधार पर हिन्दुओं को परस्पर में बांटकर आरक्षण की आग में झोंक दिया और आपस में लड़ाकर विखण्डित करके रखा ! अब तो बुद्ध और अम्बेडकर को जपने वाले युगपुरुष भी जय श्री राम बोलने लगे हैं !! राहुल गांधी भी अब मंदिर मंदिर भ्रमण करने लगे हैं ..क्योंकि..अब इनको अहसास हो गया है की जो विकास के साथ साथ यहां की सांस्कृतिक संरचनाओं के प्रतीक 'राम' के इस देश में भारत में जो 'राम' की बात करेगा वही सत्ता में बने रहेगा ! दरअसल मानव और दानवोंं में सदियों से युद्ध होता चला आ रहा है, जिसमें मानव का ही विजय होगा, और होता रहा है !

आचार्य पण्डित विनोद चौबेभिलाई,
संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' 09827198828

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